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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (JCPOA)

  • 08 Oct 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (JCPOA), अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA), चाबहार पोर्ट, इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांज़िट कॉरिडोर (INSTC), काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सैंक्शन्स एक्ट (CAATSA)।

मेन्स के लिये:

भारत से जुड़े समूह और समझौते और/या भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, JCPOA और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका ने मुंबई स्थित एक पेट्रोकेमिकल कंपनी, तिबालाजी पेट्रोकेम प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ प्रतिबंध लगाए क्योंकि उस पर ईरानी पेट्रोलियम उत्पादों को बेचने का आरोप लगाया गया है।

  • संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (JCPOA) से अमेरिका के बाहर निकलने के बाद वर्ष 2018-19 में पारित एकतरफा प्रतिबंधों के तहत अमेरिकी पदनाम का सामना करने वाली यह पहली भारतीय इकाई है।

संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (JCPOA):

  • इस समझौते को ईरान परमाणु समझौते, 2015 के नाम से भी जाना जाता है।
  • CPOA ईरान और P5+1 देशों (चीन, फ्राँस, जर्मनी, रूस, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं यूरोपीय संघ या EU) के बीच वर्ष 2013-2015 के बीच चली लंबी बातचीत का परिणाम था।
  • ईरान एक प्रोटोकॉल को लागू करने पर भी सहमत हुआ जो अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के निरीक्षकों को अपने परमाणु स्थलों तक पहुँचने की अनुमति देगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु हथियार विकसित नहीं कर रहा है।
  • हालाँकि पश्चिम, ईरान के परमाणु प्रसार से संबंधित प्रतिबंधों को हटाने के लिये सहमत हो गया है, जबकि मानवाधिकारों के कथित हनन और ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को संबोधित करने वाले अन्य प्रतिबंध यथावत रहेंगे।
  • अमेरिका ने तेल निर्यात पर प्रतिबंध हटाने के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की है, लेकिन वित्तीय लेन-देन को प्रतिबंधित करना जारी रखा है जिससे ईरान का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बाधित हुआ है।
  • बहरहाल ईरान की अर्थव्यवस्था मंदी, मुद्रा मूल्यह्रास और मुद्रास्फीति के बाद सौदे के प्रभावी होने के चलते काफी स्थिर हो गई तथा इसका निर्यात भी काफी बढ़ गया है।
  • अमेरिका द्वारा वर्ष 2018 में सौदे को छोड़ने और बैंकिंग एवं तेल प्रतिबंधों को बहाल करने के बाद ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को बढ़ावा दिया, जो वर्ष 2015 से पहले की उसकी परमाणु क्षमताओं का लगभग 97% था।

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अमेरिका के इस सौदे से पीछे हटने के प्रभाव:

  • अप्रैल 2020 में अमेरिका ने प्रतिबंधों को वापस लेने के अपने उद्देश्य की घोषणा की। हालाँकि अन्य भागीदारों ने इस कदम पर आपत्ति जताते हुए कहा था, चूँकि अमेरिका अब इस सौदे का हिस्सा नहीं है, इसलिये वह एकतरफा प्रतिबंधों को फिर से लागू नहीं कर सकता था।
  • शुरुआत में वापसी के बाद कई देशों ने ट्रंप प्रशासन द्वारा दी गई छूट के तहत ईरान से तेल का आयात करना जारी रखा। लगभग एक वर्ष बाद अमेरिका ने अंतर्राष्ट्रीय आलोचनाओं के दबाव में छूट को समाप्त कर दिया और ऐसा करके ईरान के तेल निर्यात पर काफी हद तक अंकुश लगा दिया।
  • अन्य शक्तियों ने, सौदे को बनाए रखने के प्रयास में, अमेरिकी बैंकिंग प्रणाली के बाहर ईरान के साथ लेन-देन की सुविधा के लिये एक वस्तु विनिमय प्रणाली शुरू की जिसे व्यापार विनिमय के समर्थन में साधन (Instrument in Support of Trade Excahanges-INSTEX) के रूप में जाना जाता है। हालाँकि INSTEX में केवल भोजन एवं दवा को कवर किया, जो पहले से ही अमेरिकी प्रतिबंधों से मुक्त थे।
  • जनवरी 2020 में अमेरिका द्वारा शीर्ष ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद ईरान ने घोषणा की कि वह अब अपने यूरेनियम संवर्द्धन को सीमित नहीं करेगा।
  • सितंबर 2022 में ईरान और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के अधिकारियों ने रिएक्टरों की निगरानी के लिये निरीक्षकों को ईरान में वापस लाने के लिये ईरान के समझौते की संभावना पर चर्चा करने हेतु एक दौर को वार्त्ता की।
    • अमेरिका और ईरान ने भी JCPOA में फिर से शामिल होने पर "अंतिम मसौदे" के लिये यूरोपीय संघ के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से अपने पक्ष का आदान-प्रदान किया है।

भारत के लिये संयुक्त व्यापक कार्ययोजना का महत्त्व:

  • क्षेत्रीय कनेक्टिविटी में वृद्धि:
    • यदि प्रतिबंध हटा लिये जाते हैं तो बंदर अब्बास और चाबहार बंदरगाहों के साथ-साथ क्षेत्रीय संपर्क की अन्य योजनाओं में भारत की दिलचस्पी फिर से पुनर्जीवित हो सकती है।
    • इससे भारत को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर चीन की भूमिका को बेअसर करने में मदद मिलेगी।
    • चाबहार के अलावा ईरान से होकर गुज़रने वाले अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) में भारत की दिलचस्पी को भी बढ़ावा मिल सकता है, जो पाँच मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ संपर्क में सुधार करेगा।
  • ऊर्जा सुरक्षा:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन 'खाड़ी सहयोग परिषद' का सदस्य नहीं है? (2016)

(a) ईरान
(b) सऊदी अरब
(c) ओमान
(d) कुवैत

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) अरब प्रायद्वीप में 6 देशों- बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात का गठबंधन है। ईरान GCC का सदस्य नहीं है।
  • यह सदस्यों के बीच आर्थिक, सुरक्षा, सांस्कृतिक और सामाजिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 1981 में स्थापित किया गया था तथा सहयोग एवं क्षेत्रीय मामलों पर चर्चा करने के लिये प्रत्येक वर्ष एक शिखर सम्मेलन आयोजित करता है।

अतः विकल्प (a)  सही है।

स्रोत: द हिंदू

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