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डेली न्यूज़


जैव विविधता और पर्यावरण

भूजल संरक्षण

  • 01 Sep 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

हरित क्रांति, राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद, न्यूनतम समर्थन मूल्य, यूनेस्को

मेन्स के लिये:

भूजल की कमी का कारण और इसके प्रभाव

चर्चा में क्यों?   

भारत सिंचाई के लिये मुख्य रूप से भूजल पर निर्भर है और यह भूजल की कुल वैश्विक मात्रा के एक बड़े हिस्से का उपयोग कर रहा है। भारत में लगभग 70% खाद्य उत्पादन नलकूपों (सिंचाई के लिये प्रयुक्त कुएँ) की मदद से किया जाता है।

  • हालांँकि भूजल पर यह अत्यधिक निर्भरता भूजल संकट को जन्म दे रही है। भूजल संरक्षण हेतु एक समग्र कार्ययोजना की आवश्यकता है।

प्रमुख बिंदु 

  • यूनेस्को की विश्व जल विकास रिपोर्ट, 2018 के अनुसार, भारत विश्व का सबसे बड़ा भूजल उपयोग करने वाला देश है।
    • भारत में सिंचाई के लिये कुओं के निर्माण हेतु किसी मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं होती है और बंद पड़े या सिंचाई में प्रयोग न होने वाले कुओं का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है।
      • भारत में प्रतिदिन कई सौ कुओं का निर्माण किया जाता है और जल सूखने पर छोड़े जाने वाले कुओं की संख्या और भी अधिक है।
    • राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में भूजल के योगदान को कभी भी मापा नहीं जाता है।
    • केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी, जल शक्ति मंत्रालय) के अनुसार, भारत में कृषि भूमि की सिंचाई हेतु हर वर्ष 230 बिलियन मीटर क्यूबिक भूजल का उपयोग होता है, देश के कई हिस्सों में भूजल का तेज़ी से क्षरण हो रहा है। 
      • भारत में कुल अनुमानित भूजल की कमी 122-199 बिलियन मीटर क्यूबिक की सीमा में है।
  • भूजल की कमी का कारण:
    • सीमित सतही जल संसाधनों के साथ घरेलू, औद्योगिक और कृषि ज़रूरतों की बढ़ती मांग।
    • कठोर चट्टानी भूभाग के कारण सीमित भंडारण सुविधाओं के साथ ही वर्षा की कमी के अतिरिक्त भूजल का नुकसान, विशेष रूप से मध्य भारतीय राज्यों में।
    • हरित क्रांति के कारण सूखा प्रवण/पानी की कमी वाले क्षेत्रों में जल गहन फसलों को उगाने की ज़रूरतों पर बल देना, जिससे भूजल का अत्यधिक दोहन हुआ।
      • इससे जल की पुनः पूर्ति किये बिना ज़मीन से पानी को बार-बार पंप करने से भूजल की मात्रा में त्वरित कमी आती है।
    • पानी की अधिक खपत वाली फसलों के लिये बिजली और उच्च न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सब्सिडी।
    • लैंडफिल, सेप्टिक टैंक, भूमिगत गैस टैंक से रिसाव और उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अत्यधिक  प्रयोग से भूजल संसाधनों की क्षति तथा कमी के कारण होने वाला जल प्रदूषण।
    • बिना किसी हर्जाने के भूजल का अपर्याप्त विनियमन भूजल संसाधनों के अधिक उपयोग को प्रोत्साहित करता है।
    • वनों की कटाई, कृषि के अवैज्ञानिक तरीके, उद्योगों के  रासायनिक अपशिष्ट, स्वच्छता की कमी से भी भूजल प्रदूषण होता है, जिससे यह अनुपयोगी हो जाता है।
  • भूजल की समस्या और महिलाओं पर इसका प्रभाव:
    • महिलाएँ सिंचित कृषि में कृषि श्रम शक्ति का बड़ा हिस्सा होती हैं लेकिन इस प्रकार के निवेश में उनकी कोई निर्णायक भूमिका नहीं होती है।
    • इसके अलावा भूमि के अपने अधिकार, प्राकृतिक संसाधनों और बैंकों तक पहुँच में कमी, उनके पास इस अन्याय से लड़ने के लिये आवश्यक कानूनी समर्थन नहीं है।
    • हालाँकि महिलाएँ भूजल संकट से पहले उत्तरदाताओं के रूप में उभरी हैं और पीने के पानी की कमी को दूर करने, वैकल्पिक आजीविका खोजने तथा कृषि एवं परिवार के जल निर्वहन के लिये ज़िम्मेदार हैं।
  • भूजल संरक्षण हेतु सरकारी पहल:

आगे की राह:

  • भूजल संरक्षण में महिलाओं की बढ़ती भूमिका:
    • फसल योजनाओं, पानी की मांग और ‘क्रॉप फुटप्रिंट’ पर महिलाओं का निर्णय पुरुषों से अलग है।
    • चिपको आंदोलन के दौरान महिलाओं और पुरुषों द्वारा विपरीत मूल्यों पर आधारित प्रदर्शन किया गया। महिलाओं ने पर्यावरण की रक्षा में मदद करने के लिये पेड़ों की कटाई पर पूर्ण प्रतिबंध से कम की मांग नहीं की, जबकि उनके पुरुष समकक्षों ने आजीविका के बदले नियंत्रित ‘लॉगिंग’ को स्वीकार किया।
    • चिपको आंदोलन ने महिला समूहों को सामाजिक न्याय, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिलाओं के खिलाफ अपराध और अन्य स्थानीय मुद्दों से जुड़ी रोजमर्रा की चिंताओं पर बोलने तथा अधिकारियों का सामना करने के लिये प्रेरित किया।
  • विनियमित पंपिंग:
    • अनुमोदित फसल योजना के आधार पर प्रत्येक खेत के लिये भूजल पंपिंग को सीमित करना।
    • नदी बेसिन तक की विभिन्न इकाइयों में वार्षिक भूजल लेखा परीक्षा आयोजित करना।
  • स्थानीय शासन का प्रवर्तन:
    • ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र को फिर से स्थापित करने, स्थानीय संस्थानों को मज़बूत करने और स्थानीय शासन का प्रयोग करने से भूजल संरक्षण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
    • पूरी मूल्य शृंखला के प्रबंधन हेतु ज़िम्मेदार महिलाओं की समान भागीदारी के साथ गाँवों में छोटे किसानों को पंजीकृत निकायों के रूप में संगठित करना।

स्रोत- डाउन टू अर्थ

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