MPLADS फंड पर CIC का क्षेत्राधिकार
प्रिलिम्स के लिये:सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission- CIC), राज्य सूचना आयोग (State Information Commission- SIC), MPLADS योजना। मेन्स के लिये:केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोग का अधिकार क्षेत्र एवं शक्तियाँ, केंद्रीय सूचना आयोग में सुधार, अप्रभावी सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 का देश में सुशासन तथा पारदर्शिता एवं जवाबदेही पर प्रभाव। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission- CIC) को सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (Members of Parliament Local Area Development Scheme- MPLADS) के तहत धन के उपयोग पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है।
न्यायालय के फैसले की पृष्ठभूमि क्या है?
- मुख्य घटनाएँ:
- वर्ष 2018 में केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के एक आदेश में कुछ सांसदों द्वारा कार्यकाल के अंतिम वर्ष तक अपने MPLAD निधि को रणनीतिक रूप से बचाने के बारे में चिंता जताई गई थी। CIC को संदेह था कि चुनावों के दौरान अनुचित लाभ उठाने के लिये इस रणनीति का इस्तेमाल किया गया था।
- इसने सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) को सुझाव दिया था कि धन के इस “दुरुपयोग” को रोका जाए और पाँच साल की अवधि में प्रत्येक वर्ष के लिये धन को समान रूप से वितरित करने के लिये दिशा-निर्देशों को लागू किया जाए।
- इसके बाद सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत आवेदन को लेकर CIC के फैसले को दिल्ली उच्च न्यायालय में कानूनी चुनौती दी।
- न्यायालय का निर्णय:
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि MPLADS के तहत सांसदों द्वारा निधि के उपयोग पर टिप्पणी करने का केंद्रीय सूचना आयोग को कोई अधिकार नहीं है।
- RTI अधिनियम का दायरा सार्वजनिक प्राधिकरणों के नियंत्रण में सूचना तक पहुँच प्रदान करने तक सीमित है।
- न्यायालय ने कहा कि RTI अधिनियम की धारा 18 के अनुसार, CIC केवल RTI अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना से संबंधित उन मुद्दों या किसी अन्य मुद्दे से निपट सकता है, जिसमें आवेदक द्वारा मांगी गई सूचना का दुरुपयोग होता हो।
- हालाँकि न्यायालय ने CIC के आदेश के उस हिस्से को बरकरार रखा है, जिसमें उसने सार्वजनिक प्राधिकरण को RTI अधिनियम के तहत सांसद-वार, निर्वाचन क्षेत्र-वार और कार्य-वार निधियों का विवरण प्रकाशित करने का निर्देश दिया था।
MPLAD योजना क्या है?
- परिचय:
- यह वर्ष 1993 में घोषित केंद्रीय क्षेत्र की एक योजना है।
- उद्देश्य:
- यह संसद सदस्यों (MP) को मुख्य रूप से उनके निर्वाचन क्षेत्रों में पेयजल, प्राथमिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और सड़क आदि जैसे क्षेत्रों में सतत् सामुदायिक परिसंपत्तियों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए विकासात्मक प्रकृति के कार्यों की सिफारिश करने में सक्षम बनाता है।
- जून 2016 से MPLAD निधि का उपयोग स्वच्छ भारत अभियान, सुगम्य भारत अभियान, वर्षा जल संचयन के माध्यम से जल संरक्षण और सांसद आदर्श ग्राम योजना आदि जैसी योजनाओं के कार्यान्वयन के लिये भी किया जा सकता है।
- यह संसद सदस्यों (MP) को मुख्य रूप से उनके निर्वाचन क्षेत्रों में पेयजल, प्राथमिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और सड़क आदि जैसे क्षेत्रों में सतत् सामुदायिक परिसंपत्तियों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए विकासात्मक प्रकृति के कार्यों की सिफारिश करने में सक्षम बनाता है।
- कार्यान्वयन:
- MPLAD के अंतर्गत प्रक्रिया की शुरुआत सांसदों द्वारा नोडल ज़िला प्राधिकरण को कार्यों की सिफारिश करने से होती है।
- संबंधित नोडल जिला प्राधिकरण, संसद सदस्यों द्वारा अनुशंसित कार्यों को क्रियान्वित करने तथा योजना के अंतर्गत निष्पादित किये गए व्यक्तिगत कार्यों और व्यय की गई राशि का ब्यौरा रखने के लिये ज़िम्मेदार है।
- कार्यकरण:
- प्रत्येक वर्ष सांसदों को 2.5 करोड़ रुपए की दो किस्तों में 5 करोड़ रुपए मिलते हैं। MPLADS के तहत मिलने वाली धनराशि कभी भी समाप्त नहीं होती।
- लोकसभा सांसदों को अपने लोकसभा क्षेत्र में ज़िला प्रशासन को परियोजनाओं की सिफारिश करनी होती है, जबकि राज्यसभा सांसदों को इसे उस राज्य में खर्च करना होता है जिसने उन्हें सदन के लिये चुना है।
- राज्यसभा और लोकसभा दोनों के मनोनीत सदस्य देश में कहीं भी कार्यों की सिफारिश कर सकते हैं।
- चिंताएँ:
- संघवाद का उल्लंघन: MPLADS स्थानीय स्वशासी संस्थाओं के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करता है, जिससे संविधान के भाग IX और IX-A में निर्धारित सिद्धांतों का उल्लंघन होता है।
- कार्यान्वयन में खामियाँ: MPLAD योजना सांसदों को संरक्षण के स्रोत के रूप में निधियों का उपयोग करने की अनुमति देती है, जिसका वे अपने विवेकानुसार उपयोग कर सकते हैं।
- नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General- CAG) ने वित्तीय कुप्रबंधन और व्यय में कृत्रिम वृद्धि के उदाहरणों को उजागर किया है।
- इस योजना की आलोचना इस आधार पर भी की जाती है कि इससे सांसदों और निजी कंपनियों के बीच गठजोड़ को बढ़ावा मिलता है, जिससे निजी परियोजनाओं हेतु धन का दुरुपयोग होता है, अयोग्य एजेंसियों को धन आवंटित होता है तथा धन का निजी ट्रस्टों में हस्तांतरण होता है।
- कोई वैधानिक समर्थन नहीं: MPLAD योजना किसी भी वैधानिक कानून द्वारा शासित नहीं है, जिससे यह सरकार द्वारा मनमाने ढंग से किये जाने वाले परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील है।
- आलोचना: राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग (2002) और द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2007) दोनों ने इसकी समाप्ति की सिफारिश की थी।
- उनका तर्क इस योजना की केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्ति विभाजन के साथ असंगतता पर केंद्रित है।
आगे की राह
- पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना: परियोजना प्रस्तावों, स्वीकृतियों और निधि उपयोग के लिये एक मज़बूत ऑनलाइन ट्रैकिंग प्रणाली लागू की जानी चाहिये। नियमित ऑडिट एवं सार्वजनिक रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिये।
- नागरिक भागीदारी को सशक्त बनाना: सहभागी बजट तंत्र को बढ़ावा देकर, सामुदायिक मंचों को शामिल करना, जहाँ नागरिक निर्वाचन क्षेत्र के भीतर विकास आवश्यकताओं की पहचान कर उन्हें प्राथमिकता दे सकते हैं।
- साक्ष्य-आधारित निर्णय को बढ़ावा देना: सांसदों को आवश्यकता का आकलन तथा अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लिये सर्वाधिक प्रभावी परियोजनाओं की पहचान के लिये डेटा के उपयोग हेतु प्रोत्साहित करना।
- अभिसरण को बढ़ाना: MPLADS निधियों को अन्य केंद्रीय और राज्य सरकार की योजनाओं के साथ अभिसरण करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिये, जिससे बड़ी, अधिक टिकाऊ परियोजनाएँ बनाने में सहायता मिल सकती है।
- परियोजना का कुशल क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिये स्थानीय कार्यान्वयन एजेंसियों की क्षमता को मज़बूत किया जाना चाहिये।
- फंड की कमी को संबोधित करना: फंड की कमी को दूर करने के लिये वैकल्पिक तरीकों पर विचार किया जाना चाहिये। फंड को अगले साल के लिये आगे बढ़ाया जा सकता है या अधिक ज़रूरत वाले निर्वाचन क्षेत्रों में वितरण हेतु राष्ट्रीय पूल (National Pool) में भेजा जा सकता है।
केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission- CIC) क्या है?
- इसकी स्थापना वर्ष 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत की गई थी।
- यह एक गैर-संवैधानिक निकाय है जो केंद्रीय सरकारी एजेंसियों द्वारा संगृहीत सूचना तक पहुँच सुनिश्चित करता है।
- इसमें एक CIC और अधिकतम 10 सूचना आयुक्त (Information Commissioners- IC) शामिल होते हैं, जो केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित कार्यकाल (अधिकतम आयु सीमा 65 वर्ष) तक कार्य करते हैं और पुनर्नियुक्ति के लिये अपात्र होते हैं।
- CIC के प्रमुख कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- RTI अधिनियम के अंतर्गत प्रस्तुत सूचना अनुरोधों से संबंधित शिकायतें प्राप्त करना और उनकी जाँच करना।
- उचित आधारों (स्वतः संज्ञान शक्ति) पर प्रासंगिक मामलों की जाँच शुरू करना।
- जाँच के दौरान व्यक्तियों को सम्मन और दस्तावेज़ों का अनुरोध करने के लिये सिविल न्यायालय के समान शक्तियों का प्रयोग करना।
- भारत के प्रत्येक राज्य में एक राज्य सूचना आयोग (State Information Commission- SIC) है जिसकी संरचना लगभग समान है।
सूचना का अधिकार (Right to Information- RTI) अधिनियम, 2005
- RTI अधिनियम, 2005 के तहत सार्वजनिक प्राधिकरणों को अपनी संरचना और कार्यप्रणाली के विभिन्न पहलुओं पर स्वतः संज्ञान द्वारा प्रकटीकरण करने की आवश्यकता होती है। इसमें शामिल हैं:
- उनके संगठन, कार्यों और संरचना का प्रकटीकरण।
- इसके अधिकारियों और कर्मचारियों की शक्तियाँ और कर्त्तव्य।
- वित्तीय जानकारी।
- ऐसे प्रकटीकरणों का उद्देश्य जनता को ऐसी सूचना तक पहुँच प्रदान कर अधिनियम के माध्यम से न्यूनतम सहायता की आवश्यकता को पूरा करना।
- यदि ऐसी जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जाती है, तो नागरिकों को प्राधिकारियों के समक्ष ऐसी मांग करने का अधिकार है।
- इस अधिनियम को लागू करने के पीछे उद्देश्य सार्वजनिक प्राधिकरणों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना है।
'सार्वजनिक प्राधिकरण' शब्द का अर्थ:
- 'सार्वजनिक प्राधिकरण' में संविधान के तहत या किसी कानून या सरकारी अधिसूचना के तहत स्थापित स्वशासन निकाय, जैसे केंद्रीय मंत्रालय, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम और नियामक शामिल हैं।
- इसमें सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए धन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तपोषित स्वामित्व वाली, नियंत्रित या पर्याप्त रूप से वित्तपोषित कोई भी संस्था और गैर-सरकारी संगठन भी शामिल हो सकता है (यह बात सर्वोच्च न्यायालय ने डी.ए.वी. कॉलेज ट्रस्ट एंड मैनेजमेंट सोसाइटी बनाम डायरेक्टर ऑफ पब्लिक इंस्ट्रक्शंस केस, 2019 में अपने फैसले में कही थी)।
CIC की स्वायत्तता से संबंधित क्या चिंताएँ हैं?
- नियुक्ति प्रक्रिया:
- CIC और सूचना आयुक्तों (Information Commissioner's- IC) की नियुक्ति राजनेताओं की एक समिति द्वारा की जाती है, जिससे चयन पर राजनीतिक प्रभाव पड़ने की संभावना रहती है और CIC की निष्पक्षता से समझौता हो सकता है।
- कार्यकाल और निष्कासन:
- RTI अधिनियम में मूल रूप से सूचना आयुक्तों के लिये 5 वर्ष के निश्चित कार्यकाल की गारंटी दी गई थी। हालाँकि RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019 में इसे हटा दिया, जिससे केंद्र सरकार को उनके कार्यकाल पर नियंत्रण मिल गया।
- इससे यह चिंता उत्पन्न हो गई है कि सरकार इन अधिकारियों को प्रभावित कर उनकी स्वतंत्रता प्रभावित कर सकती है।
- RTI अधिनियम में मूल रूप से सूचना आयुक्तों के लिये 5 वर्ष के निश्चित कार्यकाल की गारंटी दी गई थी। हालाँकि RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019 में इसे हटा दिया, जिससे केंद्र सरकार को उनके कार्यकाल पर नियंत्रण मिल गया।
- मुख्य चुनाव आयुक्त को वेतन और भत्ते:
- RTI अधिनियम (2005) ने CIC और IC के वेतन को मुख्य चुनाव आयुक्त तथा चुनाव आयुक्तों के वेतन से जोड़ दिया।
- हालाँकि वर्ष 2019 के संशोधन ने इस लिंक को हटा दिया, जिससे केंद्र सरकार को उनके वेतन और लाभ तय करने का अधिकार मिल गया। यह बदलाव संभावित सरकारी प्रभाव के बारे में चिंताएँ पैदा करता है।
- RTI अधिनियम (2005) ने CIC और IC के वेतन को मुख्य चुनाव आयुक्त तथा चुनाव आयुक्तों के वेतन से जोड़ दिया।
- वित्तपोषण एवं संसाधन:
- CIC अपने बजटीय आवंटन और प्रशासनिक सहायता के लिये केंद्र सरकार पर निर्भर रहता है, जो CIC की स्वायत्तता एवं प्रभावशीलता को सीमित कर सकती है।
- प्रवर्तन शक्तियाँ:
- CIC के पास सूचना के प्रकटीकरण का आदेश देने तथा अनुपालन न करने वाले अधिकारियों पर दंड लगाने की शक्ति है, लेकिन मज़बूत प्रवर्तन तंत्र का अभाव इन शक्तियों की प्रभावशीलता में बाधा डालता है, जिससे अनुपालन सुनिश्चित करना कठिन हो जाता है।
केंद्रीय सूचना आयोग की मज़बूती हेतु क्या सुधार प्रस्तावित हैं?
- स्वतंत्र चयन समिति की स्थापना:
- चयन समिति में न्यायपालिका, नागरिक समाज और अन्य स्वतंत्र निकायों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना चाहिये, जिससे राजनीतिक प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी तथा यह सुनिश्चित होगा कि सक्षम और निष्पक्ष व्यक्ति CIC का नेतृत्व करे।
- निश्चित एवं गैर-नवीकरणीय अवधि:
- नवीनीकरण की संभावना के बिना एक निश्चित अवधि (जैसे 5 वर्ष) प्रस्तावित की जानी चाहिये। साथ ही समय से पहले हटाए जाने के खिलाफ मज़बूत सुरक्षा उपाय होने चाहिये, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि CIC अधिकारी स्वतंत्र रूप से काम कर सकें।
- वित्तीय एवं प्रशासनिक स्वायत्तता:
- CIC को अलग से बजट आवंटित करके तथा उसका समय पर वितरण सुनिश्चित कर वित्तीय स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिये।
- उन्हें स्टाफ की भर्ती और बुनियादी ढाँचे सहित प्रशासनिक मामलों के प्रबंधन में भी सशक्त बनाया जाना चाहिये।
- उन्नत प्रवर्तन शक्तियाँ:
- उन्हें गैर-अनुपालन के लिये व्यक्तियों या संगठनों को अवमानना हेतु दोषी ठहराने की शक्तियाँ प्रदान की जा सकती हैं, CIC के आदेशों का पालन करने में विफल रहने वाले सार्वजनिक प्राधिकारियों पर ज़ुर्माना लगाने की शक्ति और इसके निर्णय को प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु एक निष्पादन तंत्र प्रदान किया जा सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न वर्तमान समय में सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना की प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS) के अंतर्गत निधियों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 मेन्स:प्रश्न. सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में नहीं है, अपितु यह आवश्यक रूप से जवाबदेही की संकल्पना को पुनः परिभाषित करता है।” विवेचना कीजिये। (2018) |
संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आपूर्ति शृंखला फोरम
स्रोत: द प्रिंट
चर्चा में क्यों?
हाल ही में व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Trade and Development- UNCTAD) और बारबाडोस सरकार द्वारा आयोजित संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आपूर्ति शृंखला फोरम (United Nations Global Supply Chain Forum- UNGSCF) के उद्घाटन में वैश्विक आपूर्ति शृंखला में बढ़ती बाधाओं से निपटने के लिये कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों और पहलों पर प्रकाश डाला गया।
UNGSCF में किन प्रमुख मुद्दों पर प्रकाश डाला गया?
- इसमें वैश्विक व्यापार में अस्थिरता तथा आपूर्ति शृंखलाओं को अधिक समावेशी, सतत् और लचीला बनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
- वैश्विक व्यवधानों के कारण जहाज़ों के समुद्री परिचालन समय में वृद्धि देखी जा रही है तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन भी बढ़ रहा है।
- इसमें जलवायु परिवर्तन, भू-राजनीतिक तनाव और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर कोविड-19 महामारी के संयुक्त प्रभावों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- प्रौद्योगिकी और सतत् प्रवृत्तियों के माध्यम से वैश्विक मूल्य शृंखलाओं को बनाए रखने के लिये बंदरगाहों को महत्त्वपूर्ण बताया गया।
- बारबाडोस के ब्रिज़टाउन बंदरगाह को अन्य छोटे द्वीपीय विकासशील राज्य (Small Island Developing States- SIDS) के लिये एक मॉडल के रूप में प्रदर्शित किया गया।
- फोरम ने वैश्विक शिपिंग में कार्बन उत्सर्जन को निम्न करने की चुनौतियों पर विचार किया, विशेष रूप से उन विकासशील देशों में जिनके पास नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन हैं।
- "इंटरमॉडल, निम्न-कार्बन, कुशल और समुत्थानशील माल परिवहन और लॉजिस्टिक्स के लिये घोषणापत्र (Manifesto for Intermodal, Low-Carbon, Efficient and Resilient Freight Transport and Logistics)" का शुभारंभ किया गया, जिसमें ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये शून्य-उत्सर्जन ईंधन, अनुकूलित लॉजिस्टिक्स और सतत् मूल्य शृंखलाओं की वकालत की गई।
- SIDS को परिवहन अवसंरचना पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बढ़ते जोखिम का सामना करना पड़ रहा है। मल्टीमॉडल परिवहन नेटवर्क और सीमा शुल्क प्रक्रियाओं में सुधार को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- SIDS के मंत्रियों ने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं और दाता देशों से अपने परिवहन और लॉजिस्टिक्स क्षेत्रों में समुत्थानशीलता तथा स्थिरता को बढ़ावा देने वाली परियोजनाओं को वित्तपोषित करने का आह्वान किया।
- ब्लॉकचेन-सक्षम ट्रेसेबिलिटी और उन्नत सीमा शुल्क स्वचालन को व्यापार सुविधा को अनुकूलित करने तथा पारदर्शिता बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण माना गया।
- संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास ने व्यापार प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिये इलेक्ट्रॉनिक एकल खिड़की हेतु दिशा-निर्देश प्रस्तुत किये।
- विश्व बैंक के साथ मिलकर विकसित एक नया व्यापार और परिवहन डेटासेट लॉन्च किया गया, जिसमें 100 से अधिक वस्तुओं तथा विभिन्न परिवहन साधनों पर डेटा शामिल है। इस निशुल्क व्यापक डेटासेट का उद्देश्य वैश्विक व्यापार प्रवाह की समझ एवं अनुकूलन को बढ़ाना है।
व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD):
- व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Trade and Development- UNCTAD) संयुक्त राष्ट्र का एक स्थायी अंतर-सरकारी निकाय है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1964 में हुई थी और इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
- इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, निवेश, वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से, विशेष रूप से विकासशील देशों में सतत् विकास को बढ़ावा देना है।
- UNCTAD का कार्य चार मुख्य क्षेत्रों पर केंद्रित है:
- व्यापार एवं विकास
- निवेश एवं उद्यमिता
- तकनीक एवं नवाचार
- समष्टि अर्थशास्त्र और विकास नीतियाँ
भारत के लिये लचीली आपूर्ति शृंखला की क्या आवश्यकता है?
- परिचय:
- लचीली आपूर्ति शृंखला: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में आपूर्ति शृंखला में लचीलापन किसी देश को यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि इसने केवल एक या कुछ आपूर्तिकर्त्ता देशों पर निर्भर रहने के बजाय आपूर्तिकर्त्ता देशों के समूह में अपने आपूर्ति जोखिम को विविधतापूर्ण बना दिया है।
- अप्रत्याशित घटनाएँ, चाहे ज्वालामुखी विस्फोट, सुनामी, भूकंप या महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाएँ हों या सशस्त्र संघर्ष जैसे मानव-कारक मुद्दे, किसी विशिष्ट देश से व्यापार को बाधित या रोक सकते हैं। यह उस देश की अर्थव्यवस्था को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है जो उन आपूर्तियों पर निर्भर करता है।
- लचीली आपूर्ति शृंखला: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में आपूर्ति शृंखला में लचीलापन किसी देश को यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि इसने केवल एक या कुछ आपूर्तिकर्त्ता देशों पर निर्भर रहने के बजाय आपूर्तिकर्त्ता देशों के समूह में अपने आपूर्ति जोखिम को विविधतापूर्ण बना दिया है।
- आवश्यकता:
- कोविड-19: वैश्विक स्तर पर कोविड-19 के प्रसार ने यह एहसास कराया है कि किसी एक राष्ट्र पर निर्भरता वैश्विक अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था दोनों के लिये उचित नहीं है।
- असेंबली लाइंस (Assembly Lines) के मामले में एक देश (चीन) से होने वाली आपूर्ति पर बहुत अधिक निर्भरता है।
- यदि स्रोत अनैच्छिक कारणों से या यहाँ तक कि आर्थिक दबाव में जान-बूझकर उत्पादन बंद कर देता है, तो आयातक देशों पर इसका प्रभाव विनाशकारी हो सकता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका-चीन व्यापार तनाव: वैश्विक आपूर्ति शृंखला के लिये समस्याएँ तब बढ़ सकती हैं जब संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन दोनों व्यापार विवादों के कारण एक-दूसरे पर टैरिफ प्रतिबंध लगाते हैं।
- उभरते आपूर्ति केंद्र के रूप में भारत: व्यवसायों ने भारत को "आपूर्ति शृंखलाओं के केंद्र" के रूप में देखना शुरू कर दिया है, इसलिये मज़बूत आपूर्ति शृंखला की आवश्यकता है।
- भारत में चीन से किया गया आयात:
- भारतीय उद्योग परिसंघ के अनुसार, वर्ष 2018 में भारत में चीन द्वारा किये गए आयात की हिस्सेदारी (चीन द्वारा आपूर्ति की जाने वाली शीर्ष 20 वस्तुओं के संदर्भ में) 14.5% थी।
- पैरासिटामोल जैसी दवाओं के लिये सक्रिय औषधीय अवयवों जैसे क्षेत्रों में भारत काफी हद तक चीन पर निर्भर है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में भारत के आयात का 45% हिस्सा चीन से प्राप्त होता है।
- कोविड-19: वैश्विक स्तर पर कोविड-19 के प्रसार ने यह एहसास कराया है कि किसी एक राष्ट्र पर निर्भरता वैश्विक अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था दोनों के लिये उचित नहीं है।
- पहल:
- समृद्धि के लिये हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा (Indo-Pacific Economic Framework for Prosperity- IPEF)।
- सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव (SCRI): सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव का उद्देश्य आपूर्ति शृंखला में लचीलापन को बढ़ावा देना है, ताकि अंततः हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मज़बूत, टिकाऊ, संतुलित और समावेशी विकास किया जा सके।
- चूँकि भारत सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला में अपनी विश्वसनीय उपस्थिति स्थापित करना चाहता है, इसलिये केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला साझेदारी विकसित करने के लिये भारत और जापान के बीच सहयोग ज्ञापन (Memorandum of Cooperation- MoC) को मंज़ूरी दे दी है।
- वर्ष 2023 में आयोजित G-7 शिखर सम्मेलन में भारत ने आपूर्ति शृंखला लचीलापन बढ़ाने के विषय पर महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप किया और इस मुद्दे पर कई सुझाव दिये।
- महत्त्वपूर्ण खनिजों की स्थिर और विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करने के उद्देश्य से भारत, अफ्रीका में महत्त्वपूर्ण खनिज अधिग्रहण की अपनी योजनाओं को आगे बढ़ा रहा है, जिससे इस क्षेत्र में चीन की प्रमुख स्थिति को चुनौती मिल रही है।
- अन्य पहल:
आपूर्ति शृंखला में लचीलापन में सुधार हेतु भारत के लिये क्या सुझाव हैं?
- आपूर्तिकर्त्ताओं और विनिर्माण आधार का विविधीकरण: कच्चे माल, घटकों या तैयार माल के लिये एक ही स्रोत पर अत्यधिक निर्भरता को कम किया जाना चाहिये। उदाहरण के लिये 60% से अधिक इलेक्ट्रॉनिक घटक मुख्य रूप से पूर्वी एशिया से आयात किये जाते हैं।
- भू-राजनीतिक तनावों या प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले जोखिमों को कम करने के लिये घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करना और विभिन्न देशों में आयात स्रोतों में विविधता लाया जाना चाहिये। यह आत्मनिर्भर भारत पहल के साथ संरेखित है।
- GVC में MSME का एकीकरण: क्षेत्रीय नवाचार प्रणालियों का निर्माण और सुदृढ़ीकरण करके तथा SME समूहों में बहुउद्देशीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आयोग की स्थापना कर भारतीय MSME को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (Global Value Chains- GVC) के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
- भारतीय बेड़े की हिस्सेदारी बढ़ाएँ: क्षमता के मामले में भारतीय बेड़ा विश्व के बेड़े का सिर्फ 1.2% है और भारत के EXIM व्यापार का सिर्फ 7.8% (2018-19 के लिए) वहन करता है (आर्थिक सर्वेक्षण 2021-2022)। भारतीय बेड़े को बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिये।
- वैश्विक व्यापार में हिस्सेदारी: OECD के अनुसार, वस्तुओं और सेवाओं के विश्व निर्यात में भारत की हिस्सेदारी वर्ष 1990 के दशक की शुरुआत की 0.5% से बढ़कर 2018 में 2.1% हो गई। हालाँकि वैश्विक आपूर्ति शृंखला का हिस्सा बनने के लिये भारत को अपनी हिस्सेदारी धीरे-धीरे बढ़ाने की ज़रूरत है।
- लॉजिस्टिक्स अवसंरचना में निवेश: भारत की लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 13-14% होने का अनुमान है, जबकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में यह 8-11% है।
- इसलिये सड़क, रेलवे, जलमार्ग और बंदरगाहों सहित परिवहन नेटवर्क को उन्नत किये जाने की आवश्यकता है।
- महत्त्वपूर्ण इनपुट के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना: वर्तमान में भारी मात्रा में आयात किये जाने वाले महत्त्वपूर्ण कच्चे माल और घटकों जैसे API की पहचान करना तथा उन्हें प्राथमिकता दिया जाना चाहिये।
- PLI योजना जैसे तंत्रों के माध्यम से बाहरी व्यवधानों के प्रति संवेदनशीलता को कम करने के लिये इन वस्तुओं के घरेलू उत्पादन के लिये प्रोत्साहन और सहायता प्रदान की जानी चाहिये।
- डिजिटल एकीकरण को मज़बूत करना: पारदर्शिता, दृश्यता और जोखिम प्रबंधन में सुधार के लिये आपूर्ति शृंखला में डिजिटलीकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- इसमें मज़बूत साइबर सुरक्षा उपायों को लागू करना और साझा डेटा प्लेटफॉर्मों के माध्यम से सहयोग को बढ़ावा देना शामिल है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. वैश्विक व्यापार के संदर्भ में आपूर्ति शृंखला में लचीलापन सुनिश्चित करने में भारत के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। भारत एक विश्वसनीय आपूर्ति शृंखला केंद्र के रूप में उभरने के लिये इन चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकता है? (250 शब्द) |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न.निम्नलिखित में से किस समूह के सभी चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020) (a) अर्जेंटीना, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका एवं तुर्की उत्तर: (a) प्रश्न. हाल में तत्त्वों के एक वर्ग, जिसे 'दुर्लभ मृदा धातु' कहते हैं, की कम आपूर्ति पर चिंता जताई गई। क्यों? (2012)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. 'चतुर्भुजीय सुरक्षा संवाद (क्वाड)' वर्तमान समय में स्वयं को सैनिक गठबंधन से एक व्यापारिक गुट में रूपांतरित कर रहा है - विवेचना कीजिये। (2020) |
घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2022-23
प्रिलिम्स के लिये:घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, सकल घरेलू उत्पाद, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, नीति आयोग, मासिक प्रति व्यक्ति उपभोक्ता व्यय, सी. रंगराजन समिति मेन्स के लिये: |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Household Consumption Expenditure Survey- HCES) 2022-23 की विस्तृत रिपोर्ट जारी की गई।
- इसने विभिन्न राज्यों के ग्रामीण और शहरी परिवारों की व्यय आदतों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की।
घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Household Consumption Expenditure Survey- HCES) क्या है?
- परिचय:
- HCES का आयोजन राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) द्वारा प्रत्येक 5 वर्ष में किया जाता है।
- इसे घरों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं के उपभोग के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- HCES में एकत्रित आँकड़ों का उपयोग सकल घरेलू उत्पाद (GDP), गरीबी दर और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) जैसे विभिन्न अन्य व्यापक आर्थिक संकेतकों को प्राप्त करने के लिये भी किया जाता है।
- औसत MPCE की गणना 2011-12 के मूल्यों पर की गई है।
- सर्वेक्षण में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के कुछ दुर्गम गाँवों को छोड़कर संपूर्ण भारतीय संघ को शामिल किया गया।
- वर्ष 2017-18 में आयोजित अंतिम HCES के निष्कर्ष सरकार द्वारा “डेटा गुणवत्ता” के मुद्दों का हवाला देने के बाद जारी नहीं किये गए थे।
- व्युत्पन्न जानकारी:
- यह वस्तुओं (खाद्य और गैर-खाद्य वस्तुओं सहित) एवं सेवाओं पर सामान्य व्यय के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
- इसके अतिरिक्त यह घरेलू मासिक प्रति व्यक्ति उपभोक्ता व्यय (Monthly Per Capita Consumer Expenditure- MPCE) के अनुमान की गणना करने और विभिन्न MPCE श्रेणियों में परिवारों और व्यक्तियों के वितरण का विश्लेषण करने में सहायता करता है।
हाल के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण की मुख्य बातें क्या हैं?
- खाद्य व्यय प्राथमिकताएँ:
- पेय पदार्थ, जलपान और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ: यह श्रेणी कई राज्यों में खाद्य व्यय का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा रही, विशेष रूप से तमिलनाडु में, जहाँ ग्रामीण (28.4%) और शहरी (33.7%) दोनों क्षेत्रों में सबसे अधिक व्यय प्रतिशत देखा गया।
- दूध और दुग्ध उत्पाद: हरियाणा (ग्रामीण 41.7%, शहरी 33.1%) और राजस्थान (शहरी 33.2%) जैसे उत्तरी राज्यों के ग्रामीण एवं शहरी परिवारों में प्रमुख रूप से दूध और दुग्ध उत्पाद पसंद किये जाते हैं।
- अंडा, मछली और मांस: केरल में परिवारों ने ग्रामीण (23.5%) और शहरी (19.8%) दोनों ही स्थितियों में इस श्रेणी में सबसे अधिक व्यय किया।
- समग्र खाद्य बनाम गैर-खाद्य व्यय:
- खाद्य व्यय: ग्रामीण भारत में खाद्य, कुल घरेलू उपभोग व्यय का लगभग 46% है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह लगभग 39% है।
- गैर-खाद्य व्यय: गैर-खाद्य वस्तुओं पर उच्च व्यय की ओर एक महत्त्वपूर्ण बदलाव देखा गया है, गैर-खाद्य वस्तुओं पर ग्रामीण व्यय वर्ष 1999 के 40.6% से बढ़कर 2022-23 में 53.62% हो गया और इसी अवधि में शहरी व्यय 51.94% से बढ़कर 60.83% हो गया।
- प्रमुख गैर-खाद्य व्यय श्रेणियाँ:
- परिवहन: यह ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में गैर-खाद्य व्यय में शीर्ष स्थान पर रहा, केरल में इसका प्रतिशत सबसे अधिक रहा।
- चिकित्सा व्यय: ग्रामीण क्षेत्रों में केरल, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश तथा शहरी क्षेत्रों में पश्चिम बंगाल, केरल और पंजाब में यह विशेष रूप से अधिक है।
- टिकाऊ वस्तुएँ: टिकाऊ वस्तुओं पर सबसे अधिक व्यय केरल के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में देखा गया।
- ईंधन और प्रकाश: पश्चिम बंगाल और ओडिशा ने क्रमशः ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण व्यय दर्शाया।
- क्षेत्रीय विविधताएँ:
- विभिन्न राज्यों ने विशिष्ट खाद्य और गैर-खाद्य वस्तुओं पर खर्च के लिये अलग-अलग प्राथमिकताएँ दिखाईं, जो सांस्कृतिक और क्षेत्रीय आर्थिक अंतर को दर्शाती हैं।
- उपभोग व्यय में वृद्धि:
- सर्वेक्षण से पता चलता है कि पिछले दशक में उपभोग व्यय में पर्याप्त वृद्धि हुई है। वर्ष 2011-12 से 2022-23 तक ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति मासिक खपत में 164% की वृद्धि हुई, जबकि शहरी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति मासिक खपत में 146% की वृद्धि हुई।
- भारत में शहरी क्षेत्र की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति मासिक खपत में अधिक वृद्धि देखी गई है।
- शहरी और ग्रामीण MPCE के बीच अंतर में पिछले कुछ वर्षों में कमी देखी गई है, जो वर्ष 2009-10 के 90 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 75 प्रतिशत हो गया है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय
- परिचय: वर्ष 2019 में केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (Central Statistical Office- CSO) और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office- NSSO) को विलय करके गठित किया गया।
- सी. रंगराजन समिति ने सबसे पहले सभी प्रमुख सांख्यिकीय गतिविधियों के लिये नोडल निकाय के रूप में NSO की स्थापना का सुझाव दिया था।
- यह वर्तमान में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation- MoSPI) के अंतर्गत कार्य करता है।
- कार्य: विश्वसनीय, वस्तुनिष्ठ एवं प्रासंगिक सांख्यिकीय डेटा एकत्र, संकलित और प्रसारित करता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Household Consumption Expenditure Survey) 2022-23 के आलोक में, भारत की आर्थिक योजना और विकास रणनीतियों पर उपभोग पैटर्न में बदलाव के संभावित प्रभावों की जाँच कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. एन.एस.एस.ओ. के 70वें चक्र द्वारा संचालित "कृषक-कुटुम्बों की स्थिति आकलन सर्वेक्षण" के अनुसार निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये : (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 2 और 3 उत्तर: (c) प्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत में कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं, क्योंकि: (2019) (a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होती है उत्तर: (b) |
बृहद अवसंरचनात्मक परियोजनाओं का वित्तपोषण
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), प्रावधान, राजकोषीय घाटा, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnerships- PPP), केयर रेटिंग, कॉर्पोरेट बाॅण्ड बाज़ार मेन्स के लिये:राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (National Infrastructure Pipeline- NIP), राष्ट्रीय अवसंरचना एवं विकास वित्तपोषण बैंक (National Bank for Financing Infrastructure and Development- NaBFID), राष्ट्रीय निवेश एवं अवसंरचना कोष (National Investment and Infrastructure Fund- NIIF), भारत में बड़ी अवसंरचना परियोजनाओं के समक्ष वित्तपोषण संबंधी मुद्दे। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने बुनियादी ढाँचे, गैर-बुनियादी ढाँचे और वाणिज्यिक अचल संपत्ति क्षेत्रों में दीर्घकालिक परियोजनाओं के वित्तपोषण के विनियमन में सुधार के लिये एक नया ढाँचा प्रस्तावित किया है।
- यह कदम इन परियोजनाओं के समक्ष आने वाली चुनौतियों, जैसे विलंब और लागत में वृद्धि को देखते हुए उठाया गया है।
परियोजना के वित्तपोषण के लिये RBI द्वारा प्रस्तावित प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
- ऋण वितरण कार्यक्रमों को सीमित करना: यह ढाँचा ऋण चूक, परियोजना की वाणिज्यिक परिचालन प्रारंभ तिथि (DCCO) में विस्तार, अतिरिक्त ऋण आवश्यकताओं या परियोजना के शुद्ध वर्तमान मूल्य (Net Present Value- NPV) में कमी जैसे ऋणों वितरण अवसरों में कमी करने को प्राथमिकता देता है।
- प्रावधान में वृद्धि: संभावित नुकसान के विरुद्ध बफर बनाने के लिये रूपरेखा में बैंकों द्वारा प्रावधान (निधि अलग रखना) में महत्त्वपूर्ण वृद्धि का प्रस्ताव किया गया है।
- निर्माण चरण (परियोजना शुरू होने से पहले) के दौरान प्रावधान को ऋण राशि के मौजूदा 0.4% से बढ़ाकर 5% कर दिया गया है।
- 5% प्रावधान धीरे-धीरे लागू किया जाएगा, जो वित्त वर्ष 2025 में 2%, वित्त वर्ष 2026 में 3.5% तथा वित्त वर्ष 2027 तक 5% तक पहुँच जाएगा।
- अनुमान है कि अतिरिक्त प्रावधान आवश्यकताएँ बैंकों की निवल संपत्ति का 0.5-3% होंगी और इससे CET1 (Common Equity Tier 1) अनुपात प्रभावित हो सकता है।
- निर्माण चरण (परियोजना शुरू होने से पहले) के दौरान प्रावधान को ऋण राशि के मौजूदा 0.4% से बढ़ाकर 5% कर दिया गया है।
- परिचालन के दौरान प्रावधान में कमी: यदि कोई परियोजना सकारात्मक शुद्ध परिचालन नकदी प्रवाह (पुनर्भुगतानों को कवर करने के लिये पर्याप्त आय) प्रदर्शित करती है तथा वाणिज्यिक परिचालन शुरू करने के बाद अपने कुल ऋण को 20% तक कम कर देती है, तो प्रावधान को कम किया जा सकता है।
- प्रस्तावित ढाँचे के संभावित प्रभाव:
- बैंकों पर प्रभाव:
- उच्च प्रावधान आवश्यकताओं से अल्पावधि में बैंक की लाभप्रदता प्रभावित हो सकती है। इसके अतिरिक्त उच्च जोखिम को दर्शाने के लिये ऋण मूल्य निर्धारण में अल्प वृद्धि हो सकती है।
- सरकारी स्वामित्व वाले बैंक सतर्कता के साथ आशावादी हैं, तथा उनका कहना है कि मूल्य निर्धारण पर प्रभाव मध्यम हो सकता है।
- उधारकर्त्ताओं पर प्रभाव:
- उधारकर्त्ताओं को सख्त वित्तपोषण शर्तों और संभावित रूप से उच्च ब्याज दरों का सामना करना पड़ सकता है। हालाँकि इस ढाँचे का उद्देश्य परियोजना की व्यवहार्यता में सुधार करना और लंबे समय में समग्र जोखिम को कम करना है।
- रेटिंग एजेंसियों का अनुमान है कि वित्तपोषण लागत में 20-40 आधार अंकों की वृद्धि हो सकती है।
- बैंकों पर प्रभाव:
बैंक पूंजी का वर्गीकरण:
- बेसल-III मानदंडों के अनुसार, बैंकों की नियामक पूंजी को टियर 1 और टियर 2 में विभाजित किया गया है, जबकि टियर 1 को कॉमन इक्विटी टियर-1 (CET-1) और अतिरिक्त टियर-1 (AT-1) पूंजी में विभाजित किया गया है।
- कॉमन इक्विटी टियर 1 कैपिटल में इक्विटी इंस्ट्रूमेंट शामिल होते हैं, जहाँ रिटर्न बैंकों के प्रदर्शन और इसलिये शेयर की कीमत के प्रदर्शन से जुड़े होते हैं। इनकी कोई परिपक्वता नहीं होती।
- अतिरिक्त टियर-1 पूंजी स्थायी बाॅण्ड हैं, जिन पर बैंक के पिछले या वर्तमान मुनाफे से सालाना भुगतान योग्य एक निश्चित कूपन होता है। इनकी कोई परिपक्वता नहीं होती है और इनके लाभांश को कभी भी रद्द किया जा सकता है।
- टियर 2 पूंजी में असुरक्षित अधीनस्थ ऋण शामिल होता है जिसकी मूल परिपक्वता अवधि कम-से-कम पाँच वर्ष होती है।
प्रावधान कवरेज अनुपात (Provisioning Coverage Ratio- PCR):
- प्रावधान के तहत बैंकों को अपनी खराब परिसंपत्तियों का एक निर्धारित प्रतिशत धनराशि अलग रखनी होती है या उपलब्ध करानी होती है।
- यह मूलतः सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के लिये प्रावधान का अनुपात है तथा यह दर्शाता है कि बैंक ने ऋण घाटे को कवर करने के लिये कितनी धनराशि अलग रखी है।
भारत में बड़ी अवसंरचना परियोजनाओं के समक्ष वित्तपोषण संबंधी क्या समस्याएँ हैं?
- सरकार पर राजकोषीय भार: परंपरागत रूप से सरकार अवसंरचना परियोजनाओं के लिये धन का प्राथमिक स्रोत रही है, जिसके कारण राजकोषीय घाटा अधिक होता है। इससे शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे अन्य सामाजिक कार्यक्रमों पर खर्च सीमित हो जाता है।
- वर्ष 2022 में सरकार का बुनियादी ढाँचा व्यय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 3.3% था, जो एक सकारात्मक कदम है लेकिन अभी भी वांछित स्तर से नीचे है।
- वाणिज्यिक बैंकों की परिसंपत्ति-देयता में असमानता: वाणिज्यिक बैंक, जो अवसंरचना के वित्तपोषण का एक प्रमुख स्रोत है, वे कम अवधि के ऋणों को प्राथमिकता देते हैं, जिनमें कम रिटर्न मिलता है। धीमा रिटर्न वाली दीर्घकालिक अवसंरचना परियोजनाएँ कम आकर्षक हो जाती हैं।
- कई अवसंरचना परियोजनाओं में देरी और लागत में वृद्धि का सामना करना पड़ता है, जिससे ऋण देने वाले बैंकों के लिये वित्तीय तनाव उत्पन्न होता है। इससे बड़ी परियोजनाओं के लिये आगे ऋण देने में बाधा उत्पन्न होती है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnerships- PPP) परियोजनाओं में निवेश में कमी: PPP के माध्यम से निजी क्षेत्र की भागीदारी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है। अनिश्चित विनियामक वातावरण, जटिल परियोजना संरचना और भूमि अधिग्रहण के मुद्दे निजी निवेशकों को हतोत्साहित करते हैं।
- भारतीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी केयर रेटिंग्स (CARE Ratings) की 2023 की रिपोर्ट में कहा गया है कि अवसंरचना परियोजनाओं में निजी क्षेत्र का निवेश कुल आवश्यकता का लगभग 5% रहा है।
- अकुशल और अविकसित कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार: भारत का कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार, जो अवसंरचना के लिये दीर्घकालिक वित्तपोषण का एक संभावित स्रोत है, अभी भी अपेक्षाकृत छोटा है और इसमें तरलता की कमी है। इससे अवसंरचना कंपनियों के लिये बॉण्ड जारी करके धन जुटाना मुश्किल हो जाता है।
- वर्ष 2023 में भारत के कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार का आकार लगभग 1.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, जो कि महत्त्वपूर्ण है लेकिन 51 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ अमेरिका जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अभी भी छोटा है।
- बीमा एवं पेंशन फंडों के निवेश दायित्व: विनियमों के अनुसार अक्सर बीमा एवं पेंशन फंडों को अपने फंड का एक बड़ा हिस्सा सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करना पड़ता है। इससे जोखिमपूर्ण अवसंरचना परियोजनाओं में निवेश करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है, जो कि उच्च रिटर्न दे सकती हैं।
- विश्व बैंक के अनुसार, भारतीय पेंशन फंड की केवल 2% परिसंपत्तियाँ ही अवसंरचना परियोजनाओं में निवेशित हैं, जबकि वैश्विक औसत 5-10% है।
भारत में बड़ी अवसंरचना परियोजनाओं के वित्तपोषण से संबंधित सरकार की क्या नई पहलें हैं?
- राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP)
- राष्ट्रीय अवसंरचना एवं विकास वित्तपोषण बैंक (NaBFID)
- राष्ट्रीय निवेश एवं अवसंरचना कोष (NIIF)
- अवसंरचना निवेश ट्रस्ट (InvITs) और रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट (REITs)
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल में सुधार: सरकार कानूनी जटिलताओं को कम करने, अनुमोदन प्रक्रिया को सरल बनाने और विवाद समाधान प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने जैसे उपाय कर रही है।
- उदाहरण: वित्त मंत्रालय ने निजी निवेशकों की चिंताओं को दूर करने तथा परियोजनाओं को मंज़ूरी देने के लिये एक समर्पित PPP सेल और मॉडल रियायत समझौते (Model Concession Agreements) की स्थापना की है।
- सॉवरेन वेल्थ फंड (SWF):
- भारत सरकार बड़े सॉवरेन वेल्थ फंड (Sovereign Wealth Funds- SWF) वाले संयुक्त अरब अमीरात, नॉर्वे आदि देशों के साथ भारतीय बाज़ार में उनके निवेश को सुविधाजनक बनाने के लिये सक्रिय रूप से संपर्क कर रही है।
- SWF बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये दीर्घकालिक वित्तपोषण का एक स्थिर स्रोत प्रदान कर सकते हैं तथा सरकार के बजट पर जोखिम के बोझ को कम करने में मदद कर सकते हैं।
- भारत सरकार बड़े सॉवरेन वेल्थ फंड (Sovereign Wealth Funds- SWF) वाले संयुक्त अरब अमीरात, नॉर्वे आदि देशों के साथ भारतीय बाज़ार में उनके निवेश को सुविधाजनक बनाने के लिये सक्रिय रूप से संपर्क कर रही है।
भारत में बड़ी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण में सुधार हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- परियोजना की तैयारी और जोखिम न्यूनीकरण को बढ़ाना: व्यापक व्यवहार्यता अध्ययन आयोजित करना, जो परियोजना की व्यवहार्यता, लागत तथा संभावित जोखिमों का सटीक आकलन करता है, निवेशकों को आकर्षित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- एक निष्पक्ष और पारदर्शी जोखिम आवंटन ढाँचा सुनिश्चित करना जो सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के हितों में संतुलन बनाए रखे।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी को आकर्षित करना: सरकार परियोजना लागत और निजी निवेशकों द्वारा भुगतान की जाने वाली राशि (व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण) के बीच के अंतर को पाटने के लिये अनुदान या सब्सिडी प्रदान कर सकती है, जिससे परियोजनाएँ अधिक आकर्षक बन सकती हैं।
- वित्तपोषण स्रोतों में विविधता लाना: पेंशन फंड, बीमा कंपनियों और अन्य संस्थागत निवेशकों से निवेश आकर्षित करने के लिये अधिक इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (Infrastructure Investment Trusts- InvITs) और रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट (Real Estate Investment Trusts- REITs) के निर्माण को प्रोत्साहित करना।
- दीर्घकालिक अवसंरचना वित्तपोषण के लिये देश के विदेशी मुद्रा भंडार का लाभ उठाने हेतु भारत में एक संप्रभु संपदा निधि का निर्माण करना।
- अनुमोदन और मंज़ूरी को सुव्यवस्थित करना: परियोजना विकास के लिये भूमि की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु भूमि अधिग्रहण की प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना, जो वर्तमान में एक बड़ी बाधा है।
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन और मंज़ूरी के लिये अधिक कुशल प्रणाली विकसित करना, परियोजना समय-सीमा के साथ पर्यावरण संरक्षण को संतुलित करना।
- परियोजना निष्पादन और दक्षता में सुधार: परियोजना दक्षता में सुधार तथा लागत को कम करने के लिये प्री-फैब्रिकेशन और मॉड्यूलर निर्माण जैसी नई प्रौद्योगिकियों के उपयोग को प्रोत्साहित करना।
- बड़ी परियोजनाओं को समय पर पूरा करने और लागत में वृद्धि से बचने के लिये सख्त निष्पादन निगरानी तथा जवाबदेही उपायों को लागू करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में बड़ी अवसंरचना परियोजनाओं के वित्तपोषण से संबंधित प्रमुख मुद्दों पर चर्चा कीजिये। साथ ही यह स्पष्ट कीजिये कि इनकी सुविधा को आसान बनाने के लिये सरकार ने क्या पहल की है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. मौद्रिक नीति समिति (मोनेटरी पालिसी कमिटी/MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न. यदि आर.बी.आई. प्रसारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण करने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. वित्तीय संस्थाओं व बीमा कंपनियों द्वारा की गई उत्पाद विविधता के फलस्वरूप उत्पादों व सेवाओं में उत्पन्न परस्पर व्यापन ने सेबी (SEBI) व इरडा (IRDA) नामक दोनों नियामक अभिकरणों के विलय के प्रकरण को प्रबल बनाया है। औचित्य सिद्ध कीजिये। (2013) |