अंतर्राष्ट्रीय संबंध
कोविड-19 और भारतीय विदेश नीति
- 06 May 2021
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यह एडिटोरियल दिनांक 05/05/2021 को 'द हिंदू में प्रकाशित लेख “A COVID blot on India’s foreign policy canvas” पर आधारित है। इसमें आगामी वर्षों में भारत की विदेश नीति पर कोविड-19 के प्रभावों की चर्चा की गई है।
संदर्भ
कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर और इसके आक्रामक परिणामों के कारण भारत को 17 वर्षों के अंतराल के बाद पहली बार विदेशी सहायता स्वीकार करनी पड़ रही है। भारत के लिये इसके दूरगामी रणनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं।
भारत पर महामारी के भीषण परिणामों के कारण देश की क्षेत्रीय प्रधानता और नेतृत्त्व क्षमता पर प्रश्नचिह्न खड़े होते हैं। नतीजतन आने वाले वर्षों में भारत की विदेश नीति के स्वरूप पर भी प्रभाव पड़ेगा।
भारत की विदेश नीति पर कोविड-19 के संभावित प्रभाव
- क्षेत्रीय राजनीति: दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत का नेतृत्त्व मुख्यतः तीन बातों पर निर्भर करता हैं- सहायता हेतु प्रदान की जाने वाली वस्तु एवं सेवाएँ, राजनीतिक प्रभुत्त्व एवं ऐतिहासिक संबंध।
- कोविड-19 के कारण पड़ोसी देशों को भौतिक रूप से प्रदत्त सहायता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और साथ ही इससे राजनीतिक प्रभुत्त्व को भी चुनौती मिलेगी। ऐसे में केवल ऐतिहासिक संबंधों के कारण भारत का क्षेत्रीय आधिपत्य बरकरार नहीं रह सकता है।
- भारत के रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण स्थानों में चीन की घुसपैठ: चीन अपनी 'चेकबुक कूटनीति' के कारण पहले से ही भारत को अपने महत्त्वपूर्ण रणनीतिक स्थान यानी भारतीय उपमहाद्वीप के अंदर भी चुनौती दे रहा है।
- कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर ने इस प्रक्रिया को और तेज़ कर दिया है। इस महामारी के कारण भौतिक शक्ति, शक्ति के संतुलन और राजनीतिक इच्छाशक्ति तीनों के संदर्भ में भारत, चीन का मुकाबला कर पाने में फिलहाल अक्षम नज़र आ रहा है।
- ‘क्वाड’ में भारत की स्थिति पर प्रभाव: कोविड-19 के कारण भारत की किसी भी महत्त्वाकांक्षी सैन्य खर्च या आधुनिकीकरण संबंधी योजना पर रोक लग सकती है तथा देश का ध्यान वैश्विक कूटनीति और क्षेत्रीय भू-राजनीति के स्थान पर अंदरूनी समस्याओं पर केंद्रित होगा।
- सैन्य खर्चों में कमी और क्षेत्रीय भू-राजनीति पर कम ध्यान देने के कारण ‘क्वाड’ को मज़बूत बनाने में योगदान करने की भारत क्षमता पर प्रभाव पड़ेगा।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कूटनीति पर प्रभाव: भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण देश है, किंतु कोविड-19 के कारण महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने में असमर्थता और क्षेत्र में छोटे राष्ट्रों को लुभाने में चीन की रणनीति से अंततः शक्ति संतुलन चीन के पक्ष में जा सकता है।
- अर्थशास्त्र से प्रभावित भू-राजनीति: कोविड-19 महामारी के कारण एक आर्थिक संकट के साथ-साथ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में कमी आई है और औद्योगिक उत्पादन में गिरावट तथा बेरोज़गारी में वृद्धि दर्ज की गई है, जिसने भारत की रणनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं को भी सीमित किया है।
- अमेरिका-चीन संबंध: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभुत्त्व और भारत में कोविड-19 से संबंधित परेशानियों तथा संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए अमेरिका, चीन के साथ अपने आर्थिक संबंधों को सामान्य बनाने का प्रयास कर सकता है।
- भारत-चीन संबंध: कोविड-19 की दूसरी लहर से होने वाले नुकसान का अन्य संभावित परिणाम यह हो सकता है कि भारत, चीन के साथ उसके शर्तों पर संधि करने के लिये मज़बूर हो जाए।
- भारत-अमेरिका संबंध: कोविड-19 के कारण भारत के लिये अमेरिका के साथ घनिष्ठ सैन्य संबंधों का विरोध करना कठिन हो सकता है।
आगे की राह: नए अवसर
- SAARC को पुनः मजबूत करना: कोविड-19 विशेष रूप से SAARC देशों के मध्य सहयोग के नए अवसरों को खोलेगा, ज्ञात हो कि महामारी की पहली लहर के दौरान इस संबंध में कुछ महत्त्वपूर्ण प्रयास भी किये गए थे।
- क्षेत्रीय एवं बहुपक्षीय स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना: भारत इस समय स्वास्थ्य की आपातकालीन स्थिति में आपसी सहायता और संयुक्त कार्रवाई को बढ़ावा देकर 'क्षेत्रीय स्वास्थ्य बहुपक्षवाद' पर पूरे क्षेत्र का सामूहिक ध्यान केंद्रित कर सकता है।
- दक्षिण-एशिया में हमेशा से चलती आ रही भू-राजनीति के साथ स्वास्थ्य कूटनीति, पर्यावरण संबंधी चिंताओं और क्षेत्रीय संपर्क जैसे मुद्दों को भी लाया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
चूँकि कोविड-19 महामारी ने भारत की मौज़ूदा विदेश नीति के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये आवश्यक राजनयिक क्षमता को सीमित कर दिया है, इसलिये आगामी समय में भारत की विदेश नीति में काफी अधिक बदलाव आने की संभावना है। हालाँकि कोविड-19 ने संभवतः दुनिया के सबसे कम एकीकृत क्षेत्र, दक्षिण-एशिया, के लिये कुछ नए अवसर प्रदान किये है।
अभ्यास प्रश्न: भारत की विदेश नीति पर कोविड-19 महामारी का क्या प्रभाव पड़ सकता है?