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शासन व्यवस्था

भारत में सूचना आयोग

  • 16 Oct 2023
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सूचना का अधिकार अधिनियम (आर.टी.आई. अधिनियम), केंद्रीय सूचना आयोग (CIC), राज्य सूचना आयोग (SIC), सतर्क नागरिक संगठन

मेन्स के लिये:

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 तथा देश में शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही पर इसका प्रभाव

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सतर्क नागरिक संगठन (SATARK NAGRIK SANGATHAN- SNS) ने सूचना का अधिकार (Right to Information- RTI) अधिनियम, 2005 के तहत 'भारत में सूचना आयोगों के प्रदर्शन पर रिपोर्ट कार्ड (Report Card on the Performance of Information Commissions in India), 2022-23' जारी किया है, जिससे ज्ञात होता है कि महाराष्ट्र, 1,15,524 लंबित अपीलों के साथ, RTI प्रतिक्रिया में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य रहा है।

  • SNS भारत में पारदर्शिता एवं जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिये समर्पित एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) है जो नागरिकों को लोकतंत्र में सक्रिय और सूचित भागीदार बनने के लिये सशक्त बनाने का कार्य करता है।

रिपोर्ट कार्ड के प्रमुख बिंदु:

  • अन्य खराब प्रदर्शनकर्त्ता:
    • लंबित अपीलों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या कर्नाटक (41,047) में थी, जबकि तमिलनाडु ने अपने सूचना आयोग में कुल लंबित अपीलों के बारे में जानकारी देने से इनकार कर दिया, जिसका वर्ष 2022 में सबसे खराब प्रदर्शन रहा था।
  • वर्ष 2023 में समग्र स्थिति:
    • पूरे देश के 27 राज्य सूचना आयोगों में कुल 3,21,537 अपीलें एवं शिकायतें लंबित हैं और बैकलॉग लगातार बढ़ रहा है।
  • विगत वर्षों की स्थिति:
    • वर्ष 2019 के आकलन से ज्ञात हुआ कि 26 सूचना आयोगों में कुल 2,18,347 अपील/शिकायतें लंबित थीं, जो वर्ष 2021 में बढ़कर 2,86,325 हो गईं तथा फिर वर्ष 2022 में बढ़कर तीन लाख तक पहुँच गईं।
  • निष्क्रिय सूचना आयोग:
    • चार सूचना आयोग (झारखंड, तेलंगाना, मिज़ोरम और त्रिपुरा) निष्क्रिय हैं क्योंकि पद छोड़ने के बाद रिक्त पदों पर कोई नया सूचना आयुक्त नियुक्त नहीं किया गया है।
    • छह सूचना आयोग (केंद्रीय सूचना आयोग तथा मणिपुर, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार और पंजाब के राज्य सूचना आयोग) वर्तमान में नेतृत्त्वहीन हैं।
  • निपटान दर:
    • आकलन से ज्ञात होता है कि पश्चिम बंगाल राज्य सूचना आयोग (SIC) को मौजूदा मानकों के अनुसार किसी मामले के निपटान में अनुमानित 24 वर्ष और एक महीने का समय लगेगा तथा निपटान दर में यह सबसे खराब प्रदर्शन है।
    • छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में अपील या शिकायत के निपटारे में SIC द्वारा लिया गया अनुमानित समय चार वर्ष से अधिक है। आकलन से पता चलता है कि 10 सूचना आयोगों को किसी अपील/शिकायत का निपटारा करने में एक वर्ष या उससे अधिक का समय लगेगा।

केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोग:

  • केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission- CIC):
    • स्थापना: CIC की स्थापना सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) के प्रावधानों के तहत वर्ष 2005 में केंद्र सरकार द्वारा की गई थी। यह कोई संवैधानिक निकाय नहीं है।
    • सदस्य: इस आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त और अधिकतम दस सूचना आयुक्त होते हैं।
    • नियुक्ति: उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिश पर की जाती है जिसमें अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।
    • कार्यकाल: मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि के लिये या 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक (जो भी पहले हो) पद पर बने रहेंगे। वे पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं हैं (वर्ष 2019 में RTI अधिनियम, 2005 में किये गए संशोधन के अनुसार)।
      • आयोग का कर्तव्य है कि वह सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत किसी विषय पर प्राप्त शिकायतों के मामले में संबंधित व्यक्ति से पूछताछ करे।
      • आयोग उचित आधार होने पर किसी भी मामले में स्वतः संज्ञान (Suo-Moto Power) लेते हुए जाँच का आदेश दे सकता है।
      • आयोग के पास पूछताछ करने हेतु सम्मन भेजने, दस्तावेज़ों की आवश्यकता आदि के संबंध में सिविल कोर्ट की शक्तियाँ होती हैं।
  • राज्य सूचना आयोग:
    • इसका गठन राज्य सरकार द्वारा किया जाता है।
    • इसमें एक राज्य मुख्य सूचना आयुक्त (State Chief Information Commissioner- SCIC) तथा मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली नियुक्ति समिति की सिफारिश पर राज्यपाल द्वारा नियुक्त किये जाने वाले अधिकतम 10 राज्य सूचना आयुक्त (State Information Commissioners- SIC) शामिल होते हैं।

सूचना का अधिकार अधिनियम:

  • श्री कुलवाल बनाम जयपुर नगर निगम मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के माध्यम से वर्ष 1986 में RTI कानून की उत्पत्ति हुई, जिसमें यह निर्देश दिया गया कि संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदान की गई भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता स्पष्ट रूप से सूचना का अधिकार है। जानकारी के बिना सूचना, वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नागरिकों द्वारा पूरी तरह से उपयोग नहीं किया जा सकता है।
  • इसका उद्देश्य भारतीय नागरिकों को व्यावहारिक रूप से सरकार और विभिन्न सार्वजनिक उपयोगिता सेवा प्रदाताओं से कुछ प्रासंगिक प्रश्न पूछने के अपने अधिकारों का प्रयोग करने में सक्षम बनाना है।
  • सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम, 2002 को RTI अधिनियम में बदल दिया गया।
  • इस अधिनियम का उद्देश्य नागरिकों को सरकारी एजेंसियों की त्वरित सेवाओं का लाभ उठाने में मदद करना था क्योंकि यह अधिनियम उन्हें यह सवाल पूछने में सक्षम बनाता है कि किसी विशेष आवेदन या आधिकारिक कार्यवाही में देरी क्यों होती है।
  • इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार मुक्त भारत के सपने को साकार करना है।
  • केंद्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर CIC व IC के कार्यकाल तथा सेवा शर्तों के संबंध में बदलाव लाने हेतु सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 में वर्ष 2019 में संशोधन किया गया।
  • हाल ही में डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023 की धारा 44 (3) द्वारा RTI अधिनियम की धारा 8 (1) (j) को संशोधित किया है, जिससे सभी व्यक्तिगत जानकारी को प्रकटीकरण की समस्या से निदान मिल गया है तथा पहले से मौजूद अपवादों को हटा दिया गया है जिनके तहत इस तरह की जानकारी जारी करने की अनुमति का प्रावधान था।

अधिनियम के तहत प्रदान की जाने वाली जानकारियाँ:

  • कोई भी भारतीय नागरिक किसी सरकारी प्राधिकरण से विलंबित IT रिफंड, ड्राइविंग लाइसेंस अथवा पासपोर्ट के लिये आवेदन करने अथवा आधारभूत अवसंरचना परियोजना के पूर्ण होने अथवा मौजूदा विवरण की प्राप्ति के लिये आवेदन करने हेतु स्वतंत्र है।
  • देश में विभिन्न प्रकार के राहत कोषों के तहत आवंटित राशि के बारे में जानकारी मांगने की स्वतंत्रता ।
  • यह अधिनियम छात्रों को विश्वविद्यालयों से उत्तर पुस्तिकाओं की प्रतियाँ प्राप्त करने संबंधी स्वतंत्रताएँ भी प्रदान करता है।


RTI अधिनियम, 2005 से संबंधित चुनौतियाँ:

  • इस अधिनियम के प्रावधान के तहत कई बार ऐसी जानकारियों की मांग की जाती है जो सार्वजनिक हित से संबंधित नहीं होती हैं तथा कभी-कभी इनका उपयोग कानून का दुरुपयोग करने और सार्वजनिक प्राधिकरण को परेशान करने के लिये किया जा सकता है। उदाहरण के लिये:
    • निरंतर और अत्यधिक जानकारी की मांग करना।
    • दिखावे के लिये RTI दाखिल करना।
    • सार्वजनिक प्राधिकरण को परेशान करने अथवा दबाव डालने के लिये प्रतिशोधी उपकरण के रूप में RTI दाखिल करना।
  • देश की बहुसंख्यक आबादी में निरक्षरता और निर्धनता के कारण RTI का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
  • हालाँकि RTI का उद्देश्य शिकायत निवारण तंत्र बनाना नहीं है, सूचना आयोगों के नोटिस अमूमन सार्वजनिक अधिकारियों को शिकायतों के निवारण के लिए आव्हान करने से संबंधित होते हैं।
  • उप-ज़िला और ब्लॉक स्तर पर डिजिटल एकीकरण की कमी ई-गवर्नेंस तंत्र को अवरुद्ध करती है जो RTI अधिनियम, 2005 के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करती है।

आगे की राह

  • लोकतंत्र जनता द्वारा, जनता के लिये, जनता का शासन है। तीसरे प्रतिमान को प्राप्त करने हेतु राज्य को जागरूक जनता के महत्त्व और एक राष्ट्र के रूप में देश के विकास में उसकी भूमिका को स्वीकार करना होगा। इस संदर्भ में RTI अधिनियम से संबंधित अंतर्निहित मुद्दों को हल किया जाना चाहिये, ताकि यह समाज की सूचना आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके।
  • 2019 के आदेश में शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को पारदर्शी व समयबद्ध तरीके से केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोगों में रिक्त पदों को भरने के लिये कई निर्देश जारी किये थे।
  • अभिलेखों का त्वरित रूप से डिजिटलीकरण और उचित रिकॉर्ड प्रबंधन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि लॉकडाउन में अभिलेखों तक दूरस्थ पहुँच (Remote Access) की कमी को व्यापक रूप से आयोगों द्वारा अपीलों तथा शिकायतों की सुनवाई करने में बाधक होने का कारण बताया गया है।
  • यह सर्वविदित है कि अधिशासन सुधारने के लिये आवश्यक है, किंतु पर्याप्त नहीं। अधिशासन में जवाबदेही लाने की ज़रूरत है, जिसमें भेद खोलने वालों को संरक्षण प्रदान करना, शक्ति का विकेंद्रीकरण करना और सभी स्तरों पर जवाबदेही के साथ प्राधिकार का प्रसार शामिल है।
  • फिर भी इस कानून से हमें अधिशासन की प्रक्रिया पर विशेष रूप से आधारभूत स्तर, जहाँ नागरिकों की अन्योन्य-क्रिया अधिकतम होती है, पर फिर से गौर करने का बहुमूल्य अवसर प्राप्त होता है। इसलिये RTI अधिनियम, 2005 के संबंध में स्थानीय स्तर पर बड़े पैमाने पर जागरूकता उत्पन्न की जानी चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न: सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में नहीं है, यह अनिवार्य रूप से जवाबदेही की अवधारणा को पुनः परिभाषित करता है। चर्चा कीजिये। (2018)

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