डेली न्यूज़ (30 Apr, 2024)



ईरान -इज़रायल संघर्ष

प्रिलिम्स के लिये:

ईरान, इज़रायल, मध्य पूर्व, 1979 इस्लामी क्रांति, स्टक्सनेट, गाज़ा पट्टी, लाल सागर संकट, इज़रायली वायु रक्षा प्रणाली, ओपेक (पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन), दो राज्य समाधान, खाड़ी सहयोग परिषद, यूरोपीय संघ, संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA )

मेन्स के लिये:

ईरान व इज़रायल के बीच संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, प्रमुख घटनाएँ जिनके कारण ईरान ने इज़रायल पर हमला किया, ईरान-इज़रायल संघर्ष का भारत और विश्व पर प्रभाव

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

इज़रायल और ईरान के बीच जारी संघर्ष ने खाड़ी क्षेत्र में बड़ी संख्या में रहने वाले भारतीय प्रवासियों की सुरक्षा को प्रभावित करने वाली उथल-पुथल की स्थिति उत्पन्न कर दी है।

  • ईरान ने ड्रोन, क्रूज़ मिसाइलों और बैलिस्टिक मिसाइलों सहित 300 से अधिक प्रक्षेपक तैनात करके इज़रायल पर बड़े हमले किये हैं। इस कार्यवाही को व्यापक रूप से सीरिया के दमिश्क में ईरान के वाणिज्य दूतावास पर घातक हमले के प्रतिशोध के रूप में देखा गया था।
  • इससे खाड़ी क्षेत्र में समुद्री डकैती और लोगों को बंधक बनाने का अतिरिक्त संकट उत्पन्न हो गया है।

ईरान-इज़रायल संघर्ष के कारण क्या हैं?

  • ऐतिहासिक संदर्भ: 1979 इस्लामी क्रांति के बाद से ईरान और इज़रायल के मध्य उतार-चढ़ाव भरे संबंध रहे हैं, जिसने शाह के शासन के अंतर्गत ईरान को इज़रायल के निकट सहयोगी से एक ऐसे इस्लामी गणराज्य में परिवर्तित कर दिया जो वर्तमान में इज़रायल के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार रखता है।
  • धार्मिक एवं वैचारिक मतभेद: ईरान शिया इस्लाम द्वारा शासित एक इस्लामी गणराज्य है, जबकि इज़रायल मुख्यतः यहूदी राज्य है।
    • दोनों देशों के बीच धार्मिक एवं वैचारिक मतभेदों ने आपसी संदेह तथा शत्रुता को बढ़ावा दिया है।
  • इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष: ईरान फिलिस्तीनी हितों का कट्टर समर्थक रहा है, जिसमें हमास और हिज़बुल्लाह जैसे आतंकवादी समूहों का समर्थन करना भी शामिल है, जिन्हें इज़रायल द्वारा आतंकवादी संगठन माना जाता है।
    • इन समूहों के लिये ईरान के समर्थन और इज़रायल के विनाश के उसके आह्वान ने तनाव बढ़ा दिया है।
  • भूराजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: ईरान और इज़रायल मध्य-पूर्व में प्रभाव के लिये प्रतिस्पर्धा करने वाले क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी हैं। सीरिया और यमन में गृहयुद्ध सहित विभिन्न क्षेत्रीय संघर्षों में उनके परस्पर विरोधी हित रहे हैं।
    • जहाँ ईरान क्रमशः असद शासन और हूती विद्रोहियों का समर्थन करता है, वहीं इज़रायल इन देशों में ईरानी प्रभाव का विरोध करता है।
  • परमाणु कार्यक्रम: इज़रायल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को बड़ी चिंता के साथ देखता है, उसे भय है कि ईरान परमाणु हथियार विकसित कर सकता है जो इज़रायल की सुरक्षा के लिये संकट उत्पन्न कर सकता है।
    • इज़रायल, ईरान के परमाणु समझौते संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) का मुखर आलोचक रहा है और उसने ईरान की परमाणु गतिविधियों को बाधित करने के लिये गुप्त अभियानों सहित कई उपाय भी किये हैं।
  • छद्म संघर्ष: ईरान और इज़रायल पड़ोसी देशों में विरोधी गुटों को समर्थन देकर छद्म संघर्ष में लगे हुये हैं।
    • उदाहरण के लिये, लेबनान में हिज़बुल्लाह और इराक में शिया मिलिशिया के लिये ईरान के समर्थन को इज़रायल द्वारा खतरे के रूप में माना जाता है।
  • क्षेत्रीय शक्ति संतुलन: मध्य पूर्व में शक्ति संतुलन एक तरफ ईरान व उसके सहयोगियों तथा दूसरी तरफ इज़रायल और उसके सहयोगियों के मध्य प्रतिस्पर्द्धा से उत्पन्न होता है।
    • इस प्रतिस्पर्द्धा ने क्षेत्र में तनाव व संघर्ष की स्थिति को और बढ़ा दिया है।

हाल की कौन-सी घटनाएँ हैं जिन्होंने इज़रायल-ईरान प्रतिद्वंद्विता को एक नया आयाम दिया है?

  • ईरान का परमाणु समझौते से हटना: वर्ष 2018 में इज़रायल ने ईरान परमाणु समझौते के संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) से हटने के अमेरिकी निर्णय की प्रशंसा की, जिसके विरुद्ध उसने वर्षों से पैरवी की थी तथा इसे एक महत्त्वपूर्ण कदम माना।
  • ईरान के सेना जनरल की हत्या: 2020 में इज़रायल ने बगदाद में अमेरिकी ड्रोन हमले का समर्थन किया, जिसमें एक शीर्ष ईरानी सैन्य कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की मौत हो गयी, जिससे अमेरिकी सैनिकों के आवास वाले इराकी ठिकानों पर ईरान की ओर से जवाबी मिसाइल हमले हुये ।
  • हमास मिसाइल हमलाः ईरान समर्थित संगठन हमास ने अक्तूबर 2023 में इज़रायल पर रॉकेट हमला किया, जिसके परिणामस्वरूप नागरिक क्षेत्रों में काम करते समय हमास की कथित धमकियों की प्रतिक्रिया के रूप में गाज़ा पर इज़रायली द्वारा हवाई हमले हुये।
  • यमन में ईरान समर्थित हूती गुट नवंबर 2023 से लाल सागर में इज़रायल और उसके सहयोगियों से जुड़े कई जहाज़ों पर हमला कर रहा है। इसके परिणामस्वरूप "लाल सागर संकट" और आपूर्ति समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।
  • ईरानी दूतावास पर हवाई हमला और ईरान का जवाबी हमलाः संदिग्ध इज़रायली हवाई हमलों ने सीरिया में ईरानी दूतावास परिसर को निशाना बनाया, जिसके परिणामस्वरूप हताहत हुए और जवाबी कार्रवाई में ईरान ने अप्रैल 2024 में इज़रायल पर मिसाइल हमला किया, जिससे दोनों देशों के बीच आपसी शत्रुता में वृद्धि हुई

ईरान-इज़रायल संघर्ष का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

  • आर्थिक निहितार्थ:
    • इज़रायल और तेल समृद्ध ईरान के बीच संघर्ष इस क्षेत्र से तेल की आपूर्ति को बाधित कर सकता है, जिससे वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में वृद्धि हो सकती है।
    • भारत फारस की खाड़ी के मुहाने पर स्थित महत्त्वपूर्ण होर्मुज़ जलडमरूमध्य के माध्यम से प्रति दिन लगभग दो मिलियन बैरल कच्चे तेल का आयात करता है। क्षेत्र में किसी भी अशांति या युद्ध के कारण आपूर्ति की कमी, ऊर्जा की बढ़ती कीमतें, मुद्रास्फीति और पूरे देश में मंद आर्थिक वृद्धि होगी।
  • प्रवासी: क्षेत्र में तनाव के कारण पश्चिम एशिया और विशेष रूप से फारस की खाड़ी में बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी प्रभावित हो सकते हैं।
    • हमें उनकी सुरक्षा पर सर्वप्रथम होगी। भारत ने अतीत में बड़े पैमाने पर निकासी का आयोजन किया है-प्रथम खाड़ी युद्ध के समय कुवैत से तथा हाल ही में लीबिया और यूक्रेन से।
  • संपर्कः भारत के रणनीतिक संपर्क हित प्रभावित हो सकते हैं। इसमें ईरान में चाबहार का बंदरगाह शामिल है, जो भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया से जोड़ता है।
    • लाल सागरमें नौवहन बाधित होने से इस क्षेत्र में व्यापार प्रभावित होगा।
    • इस क्षेत्र में व्यवधान के कारण देरी, उच्च नौवहन लागत और अस्थिर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हो सकता है।
  • भारत के लिये कूटनीतिक चुनौतियाँ:
    • पिछले एक दशक में भारत के इज़रायल के साथ अच्छे संबंध रहे हैं और उसने रक्षा, प्रौद्योगिकी तथा स्टार्ट-अप में इज़रायली विशेषज्ञता का लाभ उठाया है।
    • मुद्दा यह है कि यदि युद्ध अभियान ज़ोर पकड़ता है तो भारत को एक पक्ष चुनना पड़ सकता है। निःसंदेह, भारत हमेशा तटस्थ या मध्यमार्गी दृष्टिकोण अपना सकता है, लेकिन वे रणनीतियाँ वर्तमान में प्रभावी नहीं हैं।

इज़रायल और उसके पड़ोसियों के बीच शांति लाने के लिये किये गये प्रयास:

  • ओस्लो समझौता: वर्ष1993 का अमेरिका द्वारा प्रायोजित किया गया ओस्लो समझौता, इज़रायल-फिलिस्तीनी शांति प्रयासों में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ था, हालाँकि तब से शांति प्रक्रिया रुकी हुई है।
  • अब्राहम समझौता: अब्राहम समझौते पर 2020 में इज़रायल, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के बीच हस्ताक्षर किये गये थे तथा इसकी मध्यस्थता अमेरिका ने की थी।
  • I2U2: I2U2 का अर्थ है भारत, इज़रायल, संयुक्त राज्य अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात। इसका गठन अक्तूबर 2021 में इज़रायल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच अब्राहम समझौते के बाद क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा, अवसंरचनात्मक ढाँचे एवं परिवहन से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिये किया गया था।
  • संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा जैसे अपने कई संस्थानों के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र ने इज़रायल-फिलिस्तीन मुद्दे को हल करने के प्रयासों में सक्रिय रूप से भाग लिया है।
    • 1967 से पूर्व की सीमाओं पर आधारित टू-स्टेट साॅल्यूशन के तहत पूर्वी यरुशलम फिलिस्तीन की राजधानी होगी, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र लगातार मांग करता रहा है।
  • अरब शांति पहल: अरब राज्यों ने भी शांति प्रयासों में भूमिका निभाई है, विशेष रूप से अरब शांति पहल के माध्यम से
    • यह पहल, पहली बार 2002 में सऊदी अरब द्वारा प्रस्तावित और बाद में अरब लीग द्वारा समर्थित, इज़रायल को कब्ज़े वाले क्षेत्रों से पूर्ण वापसी एवं फिलिस्तीनी शरणार्थी मुद्दे के न्यायसंगत समाधान के बदले में अरब राज्यों के साथ सामान्य संबंध प्रदान करती है।
  • भारत की भूमिका
    • कूटनीतिक संबंध: भारत ने ऐतिहासिक रूप से इज़रायल और फिलिस्तीन सहित विभिन्न अरब राज्यों के साथ कूटनीतिक संबंध बनाये रखे हैं।
    • टू-स्टेट साॅल्यूशन: भारत ने परंपरागत रूप से 1967 से पूर्व की सीमाओं के आधार पर इज़रायल के साथ एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना का समर्थन किया है, जिसमें पूर्वी यरुशलम फिलिस्तीन की राजधानी के रूप में कार्य करेगा। इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के इस समाधान को "टू-स्टेट साॅल्यूशन" के रूप में जाना जाता है।
      • भारत इस विचार का समर्थन करता है, जो कई अंतरराष्ट्रीय नेताओं और समूहों की राय के अनुरूप है।
    • भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) और गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) जैसे मध्य पूर्व के मुद्दों को संबोधित करने वाले बहुपक्षीय मंचों में भाग लिया है।
      • भारत ने विभिन्न मंचों पर व्यक्त किया है कि वह स्थायी शांति लाने के लिये कूटनीतिक प्रयासों के साथ-साथ इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष जैसे क्षेत्रीय विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करता है।
    • मानवीय सहायता: भारत ने विभिन्न माध्यमों से फिलिस्तीनियों को मानवीय सहायता प्रदान की है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों को योगदान और फिलिस्तीनी क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं के लिये समर्थन करना शामिल है।
      • इस सहायता का उद्देश्य फिलिस्तीनियों की मानवीय पीड़ा को कम करना और क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने में योगदान करना है।

आगे की राह 

  • सतत् युद्धविराम और दो-राज्य के मध्य समाधान:
    • इज़रायल को जल्द से जल्द गाज़ा में एक स्थायी युद्धविराम स्वीकार करना चाहिये, गाज़ा के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानवीय सहायता के लिये सीमाएँ से प्रतिबन्ध समाप्त कर देना चाहिये तथा टू स्टेट सॉल्यूशन को साकार करके 70 साल पुराने संकट को समाप्त करने के लिये संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का सम्मान करना चाहिये।
    • क्षेत्र में दीर्घकालिक सुरक्षा, शांति और स्थिरता हेतु दो-राज्य समाधान ही एकमात्र संभव रास्ता है।
    • समाधान इज़रायल के साथ-साथ एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना करेगा; दो अलग वर्ग के लोगों के लिये दो राज्य।
    • सैद्धांतिक रूप से इससे इज़रायल को सुरक्षा प्राप्त होगी और फिलिस्तीनियों को एक राज्य प्रदान करते हुए उसे यहूदी जनसांख्यिकीय बहुमत बनाए रखने की अनुमति मिलेगी।
  • संवाद और कूटनीति:
    • अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थों की सहायता से दोनों देशों को सीधी बातचीत में शामिल होने के लिये प्रोत्साहित करने से विश्वास बनाने एवं सामान्य स्थल खोजने में सहायता मिल सकती है।
    • ईरान और इज़रायल यूरोपीय संघ या संयुक्त राष्ट्र जैसे तटस्थ तीसरे पक्ष की सहायता से सीधी बातचीत में शामिल हो सकते हैं।
  • परमाणु प्रसार संबंधी चिंताओं का समाधान:
    • ईरान संयुक्त व्यापक कार्य योजना (Joint Comprehensive Plan of Action- JCPOA) की शर्तों का पालन कर सकता है तथा समझौते का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये अपनी परमाणु सामग्री के अंतर्राष्ट्रीय निरीक्षण की अनुमति प्रदान कर सकता है।
    • बदले में, इज़रायल ईरान को शांतिपूर्ण रूप से परमाणु ऊर्जा रखने के अधिकार को मान्यता दे सकता है और ईरानी परमाणु सुविधाओं के खिलाफ सैन्य हमलों से परहेज़ करने के लिये प्रतिबद्ध हो सकता है।
  • क्षेत्रीय सहयोग:
    • अरब लीग या खाड़ी सहयोग परिषद जैसे क्षेत्रीय संगठनों के ढाँचे के भीतर ईरान और इज़रायल के मध्य सहयोग को बढ़ावा देने से साझा सुरक्षा चिंताओं को दूर करने तथा मध्य पूर्व में स्थिरता को बढ़ावा देने में सहायता मिल सकती है।
  • मध्य-पूर्व के लिये दीर्घकालिक दृष्टिकोण:
    • क्षेत्रीय शक्तियाँ मध्य-पूर्व के लिये एक व्यापक सुरक्षा वास्तुकला स्थापित करने हेतु मिलकर काम कर सकती हैं, जिसमें विश्वास-निर्माण के उपाय, हथियार नियंत्रण समझौते और संघर्षों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने के लिये आवश्यक तंत्र की स्थापना शामिल हैं।
    • ऐतिहासिक शिकायतों, क्षेत्रीय विवादों और धार्मिक अतिवाद जैसे अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करने से शांति तथा सुलह के लिये अनुकूल वातावरण बनाने में सहायता मिल सकती है।
  • संबंधों का सामान्यीकरण:

दृष्टि मेन्स प्रश्न

ईरान-इज़रायल संघर्ष में भारत की हिस्सेदारी क्या है? चर्चा कीजिये कि भारत तनाव क्यों नहीं बढ़ाना चाहता

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. दक्षिण-पश्चिमी एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा एक देश भूमध्यसागर तक फैला नहीं है? (2015)

(a) सीरिया
(b) जॉर्डन
(c) लेबनान
(d) इज़रायल

उत्तर: (b)


प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित पद "टू-स्टेट सोल्यूशन" किसकी गतिविधियों के संदर्भ में आता है? (2018)

(a) चीन
(b) इज़रायल
(c)  इराक
(d) यमन

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल में एक ऐसी गहराई एवं विविधता प्राप्त कर ली है, जिसकी पुनर्वापिसी नहीं की जा सकती है” विवेचना कीजिये। (2018) 


महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा

और पढ़ें: घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षामहिलाओं के खिलाफ हिंसामहिलाओं के खिलाफ अपराध और हिंसा पर सर्वोच्च न्यायालय


व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य, चरम मौसमीय घटनाएँ, श्रम सुरक्षा, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और से संबंधित संवैधानिक प्रावधान, मज़दूरी संहिता (केंद्रीय) नियम -2020

मेन्स के लिये:

व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव।

स्रोत: अंतर्राष्ट्रीय श्रम 

चर्चा में क्यों? 

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO) की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन विश्व में व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य (Occupational Safety and Health- OSH) को अत्यधिक प्रभावित कर रहा है, जिससे श्रमिकों को बढ़ते खतरों का सामना करना पड़ रहा है और उन्हें विपरीत परिस्थितियों में काम करना पड़ता है।

व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव क्या हैं?

व्यावसायिक खतरा

प्रभावित उद्योग

स्वास्थ्य संबंधी जोखिम

प्रभाव

अत्यधिक गर्मी का जोखिम

कृषि, पर्यावरणीय सेवाएँ, निर्माण, आदि।

हीट स्ट्रेस, हीटस्ट्रोक, रबडोमायोलिसिस (मांसपेशियों का खिंचाव), हृदय संबंधी रोग, आदि।

प्रतिवर्ष 2.41 अरब कर्मचारी जोखिम में पड़ते हैं, 22.85 लाख घायल होते हैं, जबकि 18,970 कार्य-संबंधी मौतें होती हैं।

यूवी विकिरण एक्सपोज़र

बाहरी कार्य जैसे निर्माण, कृषि, जीवन रक्षक, आदि।

सनबर्न, त्वचा कैंसर, कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली, आदि।

प्रतिवर्ष 1.6 अरब कर्मचारी इसके संपर्क में आते हैं, अकेले नॉन-मेलेनोमा त्वचा कैंसर से 18,960 से अधिक मौतें होती हैं।



खराब मौसम की घटनाएँ 

आपातकालीन कर्मचारी, निर्माण, कृषि आदि।

खराब मौसम की घटनाओं के कारण विभिन्न प्रकार के जोखिमों का डर 

भारत, बांग्लादेश, थाईलैंड और लाओस के कई हिस्सों में अप्रैल, वर्ष 2023 में रिकॉर्ड उच्च तापमान दर्ज़ किया गया।

कार्यस्थलीय वायु प्रदूषण

बाह्य कर्मचारी, परिवहन कर्मचारी, अग्निशामक आदि।

फेफड़ों का कैंसर, श्वसन रोग, हृदय रोग

1.6 बिलियन बाह्य कर्मचारियों को वायु प्रदूषण के कारण जोखिम में वृद्धि का सामना करना पड़ता है, हर साल लगभग 860,000 कार्य से संबंधी मृत्यु होती हैं।

वेक्टर-जनित रोग

बाह्य श्रमिक जैसे किसान, भूस्वामी, निर्माण श्रमिक आदि।

मलेरिया, लाइम रोग, डेंगू व अन्य

सीमित डेटा, परजीवी और वेक्टर जनित रोगों के कारण हर साल लगभग 15,170 से अधिक कार्य से संबंधी मृत्यु होती हैं।

एग्रोकेमिकल एक्सपोज़र

कृषि, रासायनिक उद्योग, वानिकी आदि।

विषाक्तन, कैंसर, न्यूरोटॉक्सिसिटी, प्रजनन संबंधी विकार आदि।

कृषि में 873 मिलियन श्रमिकों के लिये महत्त्वपूर्ण जोखिम, कीटनाशक विषाक्तता के कारण सालाना 300,000 से अधिक मृत्यु

भारत में श्रम सुरक्षा से संबंधित प्रावधान क्या हैं?

  • संवैधानिक प्रावधान:
  • समवर्ती सूची: श्रम समवर्ती सूची का एक विषय है जहाँ केंद्र और राज्य दोनों सरकारें केंद्र के लिये आरक्षित कुछ मामलों के तहत कानून बनाने में सक्षम हैं।
  • इस सूची में प्रविष्टि संख्या 55 में "खानों और तेल क्षेत्रों में श्रम एवं सुरक्षा का विनियमन" का उल्लेख है।
  • राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत:
  • संविधान का अनुच्छेद 39(e) लिंग की परवाह किये बिना श्रमिकों के स्वास्थ्य की सुरक्षा पर ज़ोर देता है और यह सुनिश्चित करता है कि उम्र कम होने के कारण बच्चों का शोषण न किया जाए।
  • इसका उद्देश्य व्यक्तियों को आर्थिक परिस्थितियों के कारण ऐसे व्यवसायों में शामिल होने के लिये मजबूर होने से रोकना है जो उनकी शारीरिक क्षमताओं के लिये उपयुक्त नहीं हैं।
  • अनुच्छेद 42 में कहा गया है कि राज्य न्यायसंगत सुरक्षा एवं श्रम की मानवीय स्थितियों तथा मातृत्व राहत के लिये प्रावधान करेगा
  • अनुच्छेद 43 राज्य के उत्तरदायित्व को रेखांकित करते हुए यह सुनिश्चित करता है कि सभी श्रमिकों को, चाहे वे कृषि, उद्योग अथवा अन्य क्षेत्रों में हों, एक ऐसा वेतन मिले जो उन्हें एक बेहतर जीवन स्तर प्रदान करता हो।
  • इसमें श्रम की वह स्थितियाँ सम्मिलित हैं जो जीवन की संतोषजनक गुणवत्ता, पर्याप्त अवकाश तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक अवसरों तक पहुँच सुनिश्चित करती हैं
  • इसके अतिरिक्त, राज्य को ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्तिगत या सहकारी रूप से कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन देने की दिशा में कार्य करना चाहिये।
  • विधायी प्रावधान: व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020 नियोक्ताओं तथा कर्मचारियों के लिये उत्तरदायित्वों को निरूपित करती है, सभी व्यावसायिक क्षेत्रों में सुरक्षा मानक, कर्मचारी स्वास्थ्य, कार्य के घंटे तथा छुट्टी संबंधी नीतियों को निर्धारित करती है।
  • भारत में श्रम और रोज़गार मंत्रालय के अंतर्गत श्रम ब्यूरो, औद्योगिक दुर्घटनाओं पर आँकड़े संकलित करता है तथा व्यावसायिक सुरक्षा की देखरेख करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ: भारत ने 1 प्रोटोकॉल के साथ 47 अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन सम्मेलन समझौतों की पुष्टि की है, जिसमें से 39 समझौते वर्तमान में लागू हैं।
  • श्रमिकों के स्वास्थ्य से संबंधित प्रमुख सम्मेलनों में सम्मिलित हैं- युवा व्यक्तियों की चिकित्सा जाँच (समुद्री) सम्मेलन, 1921, उपचार की समानता (दुर्घटना मुआवज़ा) सम्मेलन, 1925, दुर्घटनाओं के विरुद्ध सुरक्षा (डॉकर्स) सम्मेलन (संशोधित), 1932।

विभिन्न देशों में कार्यस्थल से संबंधित तापमान सीमाएँ क्या हैं?

देश 

तापमान सीमाएँ 

भारत 

फैक्ट्री वर्करूम में वेट बल्ब ग्लोब तापमान (WBGT) 30°C से अधिक नहीं होना चाहिये

चीन 

40°C बाहरी तापमान से अधिक पर काम रोकना

सिंगापुर 

कार्य कक्षों में तापमान 29°C से अधिक नहीं होना चाहिये 

ब्राज़ील 

कम तीव्रता के लिये 29.4°C के WBGT से अधिक होने पर काम रोकना

नोट:

  • भारतीय राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने गृह मंत्रालय के साथ मिलकर श्रमिकों की सुरक्षा के लिये हीटवेव के प्रबंधन के लिये दिशानिर्देश जारी किये।
  • ये दिशानिर्देश श्रमिकों को शिक्षित करने, जलयोजन सुनिश्चित करने, कार्यक्रम को विनियमित करने और चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करने पर ज़ोर देते हैं।
  • गर्भवती श्रमिकों और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं वाले लोगों पर विशेष ध्यान देने की सलाह दी जाती है। आमतौर पर उन्हें हल्के, वायु पारगम्य वस्त्र पहनने और छतरियों या टोपी का उपयोग करने की सलाह दी जाती है।

आगे की राह

  • प्रशिक्षण और जागरूकता: जलवायु संबंधी खतरों और सुरक्षा उपायों पर व्यापक प्रशिक्षण तथा जागरूकता कार्यक्रम प्रदान करने से श्रमिकों को जोखिमों की पहचान करने व प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने के लिये सशक्त बनाया जा सकता है।
  • हरित रोज़गार और सतत् प्रथाएँ: हरित रोज़गार और सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देना न केवल जलवायु परिवर्तन को कम करने में योगदान देता है, बल्कि स्वस्थ एवं सुरक्षित कामकाज़ी वातावरण, जैसे हानिकारक पदार्थों या उत्सर्जन के संपर्क को कम करना को भी बढ़ावा देता है।
  • जलवायु-अनुकूल नीतियाँ: जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में श्रमिक सुरक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने वाली जलवायु-अनुकूल नीतियों एवं विनियमों का विकास तथा कार्यान्वयन संगठनों को पालन करने के लिये एक संरचित ढाँचा प्रदान कर सकता है।
  • ऊष्मा तनाव प्रबंधन: नियमित ब्रेक, हाइड्रेशन स्टेशन और छायादार स्थानों तक पहुँच सहित ऊष्मा तनाव प्रबंधन कार्यक्रमों को लागू करने से श्रमिकों को गर्म जलवायु में गर्मी से संबंधित बीमारियों से बचाया जा सकता है।
  • अत्यधिक खतरनाक कीटनाशक (HHP) नियंत्रण: HHP के उत्पादन, बिक्री और उपयोग के लिये सख्त नियमों एवं मानकों को लागू करना। इसमें अनुमोदन से पहले संपूर्ण जोखिम मूल्यांकन, समय-समय पर समीक्षा और विशेष रूप से खतरनाक पदार्थों पर प्रतिबंध या चरणबद्ध समाप्ति शामिल हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

भारत की वर्तमान व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य ढाँचे की जाँच कीजिये, प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालिये और नवीन समाधान सुझाइए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:    

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. कारखाना अधिनियम, 1881 को औद्योगिक मज़दूरों की मज़दूरी तय करने और मज़दूरों को ट्रेड यूनियन बनाने की अनुमति देने के उद्देश्य से पारित किया गया था।
  2.  एन.एम. लोखंडे ब्रिटिश भारत में श्रमिक आंदोलन के आयोजन में अग्रणी थे।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. "'भारत में बनाइये' कार्यक्रम की सफलता, 'कौशल भारत' कार्यक्रम और आमूल श्रम सुधारों की सफलता पर निर्भर करती है।" तर्कसम्मत दलीलों के साथ चर्चा कीजिये। (2015)


भारत में सौर विकिरण में गिरावट

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन, भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD), एरोसोल, नवीकरणीय ऊर्जा, PM-कुसुम, प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना

मेन्स के लिये:

भारत में सौर ऊर्जा और विकास, सौर ऊर्जा से संबंधित चुनौतियाँ, भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के लिये सरकारी योजनाएँ

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों

जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के बारे में चिंताएँ बढ़ती जा रही हैं, सौर ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का महत्त्व तेज़ी से बढ़ता जा रहा है।

अध्ययन की मुख्य बातें क्या हैं?

  • एरोसोल लोड:
    • कार्बन उत्सर्जन, जीवाश्म ईंधन के जलने और धूल के साथ-साथ बादलों के कारण एरोसोल लोड में वृद्धि, सौर विकिरण में गिरावट में योगदान करती है।
    • एरोसोल सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करते हैं और इसे ज़मीन से दूर विक्षेपित कर देते हैं तथा वे घने बादलों का निर्माण भी कर सकते हैं जो पुनः सूर्य के प्रकाश को अवरुद्ध कर देते हैं।
    • सौर पैनलों की दक्षता उन पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी की मात्रा से काफी प्रभावित होती है।

  • सौर फोटोवोल्टिक (SPV) क्षमता में गिरावट:
    • विश्लेषण से पता चलता है कि सभी मॉनिटर किये गए स्टेशनों की SPV क्षमता में व्यापक गिरावट आई है।
      • SPV विकिरण की वह मात्रा है जो पैनलों द्वारा बिजली में परिवर्तित करने के लिये व्यावहारिक रूप से उपलब्ध हो सकती है।
    • SPV क्षमता में सभी स्टेशनों में सामान्य गिरावट देखी गई, जिसमें अहमदाबाद, चेन्नई, गोवा, जोधपुर, कोलकाता, मुंबई, नागपुर, नई दिल्ली, पुणे, शिलांग, तिरुवनंतपुरम और विशाखापत्तनम शामिल हैं।
    • भारत के सबसे बड़े सौर पार्क उत्तर पश्चिम, विशेष रूप से गुजरात व राजस्थान में स्थित हैं, और इन दोनों राज्यों के शहरों में भी SPV क्षमता में कमी देखी जा रही है।
  • भारत पर वैश्विक सौर विकिरण (GR):
    • वैश्विक सौर विकिरण (GR) सौर विकिरण की कुल मात्रा है जो पृथ्वी की सतह पर प्रति इकाई क्षेत्र में प्राप्त हो रही है।
      • GR उत्तर पश्चिम भारत तथा अंतर्देशीय प्रायद्वीपीय भारत में अधिकतम है, सुदूर उत्तर और पूर्वोत्तर भारत में न्यूनतम है।
        • कमी का कारण वायुमंडलीय अशांति और बादल में वृद्धि है। भारत के अधिकांश हिस्सों में मानसूनी बादल GR को कम कर देते हैं।
      • श्रीनगर को छोड़कर अधिकांश स्टेशनों के लिये प्री-मानसून सीज़न में अधिकतम GR होता है।
      • स्टेशन के आधार पर न्यूनतम GR मानसून, मानसून के बाद या सर्दियों के बीच भिन्नता होती है।
  • विकिरण का प्रकीर्णन (DR):
    • विकिरण का प्रकीर्णन, वायुमंडलीय कणों द्वारा बिखेरे गए सौर विकिरण को संदर्भित करता है।
      • स्वच्छ आकाश, सौर विकिरण का एक बड़ा प्रतिशत संचारित करता है, जिसके परिणामस्वरूप विकिरण का प्रकीर्णन अपेक्षाकृत कम होता है।
      • इसके विपरीत, आंशिक रूप से छाए बादल तथा अशांत वातावरण, वायुमंडलीय कणों द्वारा सौर विकिरण के बढ़ते प्रकीर्णन के कारण उच्च विसरित विकिरण प्रदर्शित करता है।
    • 50% से अधिक स्टेशनों पर सौर विकिरण प्रकीर्णन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, विशेष रूप से उत्तर पश्चिम तथा प्रायद्वीपीय भारत के कुछ भागों में।
      • इस वृद्धि का कारण वायुमंडलीय अशांति और वातावरण में बादल छाए रहना है।

                                                           मुख्य बिंदु

सौर विकिरण 

    • सौर विकिरण सूर्य द्वारा उत्सर्जित विद्युत चुंबकीय विकिरण है जिसे ऊर्जा के उपयोगी रूपों, जैसे ऊष्मा तथा विद्युत में परिवर्तित किया जा सकता है।
    • पृथ्वी की सतह पर किसी स्थान तक पहुँचने वाले सौर विकिरण की मात्रा भौगोलिक स्थिति, दिन के समय होने, मौसम, स्थानीय परिदृश्य तथा स्थानीय मौसम के आधार पर भिन्न होती है।
    • पृथ्वी के गोल आकार के कारण सूर्य का सौर विकिरण इसकी सतह से 0° (क्षितिज के ठीक ऊपर) से लेकर 90° (सीधे सिर के ऊपर) तक विभिन्न कोणों पर होता है। ऊर्ध्वाधर 90° सूर्य की किरणें अधिकतम ऊर्जा प्रदान करती हैं, जबकि 0-89° पर वायुमंडल में यात्रा करने वाली तिरछी किरणें अधिक प्रकीर्णित हो जाती हैं।
    • पृथ्वी के गोल आकार और 23.5° झुके हुए अक्ष के कारण ठंडे ध्रुवीय क्षेत्रों को कभी भी 90° का उच्च सूर्य विकिरण प्राप्त नहीं होता है। 
      • पृथ्वी का घूर्णन भी सूर्य के विकिरण में प्रति घंटा भिन्नता उत्पन्न करता है।

      एरोसोल

      • एरोसोल सूक्ष्म कण होते हैं जो गैस या तरल वातावरण में प्रसुप्त होते हैं।
        • वे ठोस या तरल हो सकते हैं और उनका आकार कुछ नैनोमीटर से लेकर मानव बाल के व्यास के बराबर कई माइक्रोमीटर तक हो सकता है।
      • एरोसोल प्राकृतिक या कृत्रिम दोनों प्रकार के हो सकते हैं 
        • प्राकृतिक एरोसोल: कोहरा, ज्वालामुखी विस्फोट से निकलने वाली गैस, लहरों से उत्पन्न समुद्री फेन, और हवा द्वारा सतह से उड़ने वाली खनिज धूल।
        • कृत्रिम एरोसोल में जीवाश्म ईंधन जलाने से निकलने वाला धुआँ और ऑटोमोबाइल, भस्मक, स्मेल्टर और बिजली संयंत्रों से उत्सर्जित होने वाले सल्फेट, नाइट्रेट, ब्लैक कार्बन तथा अन्य कण शामिल होते हैं।
      • ग्रीनहाउस गैसों के विपरीत एरोसोल अल्पकालिक होते हैं, ग्रीनहाउस गैसें  एकत्रित होती रहती हैं और लंबे समय तक वायुमंडल में बनी रहती हैं।

      नोट:

      • भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देशों में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएँ हैं। भारत के भू-क्षेत्र पर प्रतिवर्ष लगभग 5,000 ट्रिलियन kWh की सौर ऊर्जा आपतित होती है।
      • जैसा कि IMD द्वारा पुष्टि की गई है कि पृथ्वी की सतह पर आने वाले सौर विकिरण में मंदता(Dimming) और चमक(Brightening) की बहुदशकीय प्रवृत्ति विश्व में विभिन्न स्थानों पर देखी गई है, जो IPCC AR6 (जलवायु परिवर्तन आकलन रिपोर्ट 6 पर अंतर सरकारी पैनल) के परिणामों के अनुरूप है।

      भारत के सौर ऊर्जा लक्ष्यों के लिये क्या निहितार्थ हैं?

      • वर्तमान परिदृश्य:
      • भारत की वर्तमान स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता लगभग 81 गीगावॉट (1 गीगावॉट 1,000 मेगावाट है) या कुल स्थापित बिजली का लगभग 17% है।
      • भारत विश्व स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित क्षमता में चौथे, पवन ऊर्जा क्षमता में चौथे और सौर ऊर्जा क्षमता में पाँचवें स्थान पर है (अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी - नवीकरणीय क्षमता सांख्यिकी 2023 के अनुसार)।
      • महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य:
      • भारत की वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से लगभग 500 गीगावॉट, यानी अपनी बिजली की लगभग आधी आवश्यकता प्राप्त करने की महत्त्वाकांक्षी योजना है।
      • इसका अर्थं होगा कि उस वर्ष तक कम से कम 280 गीगावॉट सौर ऊर्जा या वर्ष 2030 तक कम से कम 40 गीगावॉट की वार्षिक सौर क्षमता जोड़ी जाएगी।
      • चुनौतियाँ:
      • महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों के बावजूद, देश को अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिये संघर्ष करना पड़ा है, पिछले पाँच वर्षों में वार्षिक वृद्धि बड़ी कठिनता से 13 गीगावॉट को पार कर पाई है।
      • कोविड-19 महामारी जैसे कारकों को प्रगति में बाधा के रूप में उद्धृत किया गया है और देश आने वाले वर्षों में सालाना 25-40 गीगावॉट जोड़ने की राह पर है।
      • तथा भारत में सौर ऊर्जा विकास के लिये अन्य चुनौतियों में भूमि अधिग्रहण जटिलताएँ, ग्रिड एकीकरण मुद्दे, छत पर सौर ऊर्जा की धीमी वृद्धि, भंडारण प्रौद्योगिकी की सीमित उपलब्धता और अधिक नवाचार की आवश्यकता शामिल है।

      सौर उन्नति की संभावना:  

      • आर्थिक और तकनीकी प्रगति के अलावा, सौर ऊर्जा प्रगति के पर्यावरणीय लाभों में शामिल हैं
        • जलवायु परिवर्तन को कम करना: सौर पैनल अपने न्यूनतम पारिस्थितिक प्रभाव और कार्बन पदचिह्न के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को कम करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
        • प्रदूषण में कमी: स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तन से वायु और जल प्रदूषण में कमी आती है, जिससे एक स्वस्थ एवं स्थायी वातावरण के निर्माण को बढ़ावा मिलता है।
        • ग्रह के भविष्य को सुरक्षित करना: सौर ऊर्जा के पर्यावरणीय लाभ प्रगति से परे हैं, जो एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है

      सौर ऊर्जा से संबंधित सरकारी पहल क्या हैं?


      दृष्टि मेन्स प्रश्न:

      प्रश्न. भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर सौर विकिरण की उपलब्धता में कमी के प्रभाव और नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने में इसके निहितार्थ का विश्लेषण कीजिये

        UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के   

      प्रिलिम्स:  

      प्रश्न: निम्नलिखित में से किसके संदर्भ में कुछ वैज्ञानिक पक्षाभ मेघ विरलन तकनीक तथा समतापमंडल में सल्पेट वायुविलय अंत:क्षेपण के उपयोग का सुझाव देते हैं? (2019)

      (a) कुछ क्षेत्रों में कृत्रिम वर्षा करवाने के लिये
      (b) उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की बारंबारता और तीव्रता को कम करने के लिये
      (c) पृथ्वी पर सौर पवनों के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिये
      (d) भूमंडलीय तापन को कम करने के लिये

      उत्तर: (d)


      प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

      1. अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance) को 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में प्रारंभ किया गया था।
      2. इस गठबंधन में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश सम्मिलित हैं।

      उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

      (a) केवल 1
      (b) केवल 
      (c) 1 और 2 दोनों
      (d) न तो 1 और न ही 2

      उत्तर: (a)


      मेन्स:

      प्रश्न: भारत में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएँ हैं, हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएँ हैं। व्याख्या कीजिये। (2020)


      निर्विरोध चुनावी विजय

      प्रिलिम्स के लिये:

      लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, नोटा, नियम 49-O, भारत का निर्वाचन आयोग, सामान्य वित्तीय नियम, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दल

      मेन्स के लिये:

      'निर्विरोध निर्वाचित होने' के परिणाम, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, NOTA की प्रभावशीलता

      स्रोत : द हिंदू  

      चर्चा में क्यों

      हाल ही में गुजरात के सूरत लोकसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार को निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया गया है।

      • यह अन्य उम्मीदवारों के नामांकन पत्रों की अस्वीकृति और अन्य उम्मीदवारों द्वारा नामांकन वापस लेने के बाद होता है।

      वैध नामांकन के लिये आवश्यकताएँ क्या हैं?

      • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 की धारा 33 में वैध नामांकन की आवश्यकताएँ शामिल हैं।
        • 25 वर्ष से अधिक आयु का मतदाता भारत के किसी भी निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ सकता है।
        • उम्मीदवार का प्रस्तावक संबंधित निर्वाचन क्षेत्र का निर्वाचक होना चाहिये जहाँ नामांकन दाखिल किया जा रहा है।
        • किसी मान्यता प्राप्त दल (राष्ट्रीय या राज्य) के मामले में, उम्मीदवार के पास एक प्रस्तावक होना आवश्यक है।
        • गैर-मान्यता प्राप्त दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों द्वारा खड़े किये गए उम्मीदवारों के लिये दस प्रस्तावकों की सदस्यता आवश्यक है।
        • एक उम्मीदवार विभिन्न प्रस्तावकों के साथ अधिकतम चार नामांकन पत्र दाखिल कर सकता है
          • यह किसी उम्मीदवार के नामांकन को स्वीकार करने में सक्षम बनाता है, भले ही नामांकन पत्रों का एक सेट क्रम में हो।
      • RPA की धारा 36 रिटर्निंग ऑफिसर (RO) द्वारा नामांकन पत्रों की जाँच से संबंधित कानून निर्धारित करती है।
        • इसमें यह प्रावधान है कि RO किसी ऐसे दोष के लिये किसी भी नामांकन को अस्वीकार नहीं करेगा जो पर्याप्त नहीं है। हालाँकि, यह निर्दिष्ट करता है कि उम्मीदवार या प्रस्तावक के हस्ताक्षर वास्तविक नहीं पाए जाने पर अस्वीकृति का आधार है
      • RPA, 1951 की धारा 53 (3) निर्विरोध चुनावों की प्रक्रिया से संबंधित है।
        • इस प्रावधान के अनुसार, यदि ऐसे उम्मीदवारों की संख्या भरी जाने वाली सीटों की संख्या से कम है, तो RO तुरंत ऐसे सभी उम्मीदवारों को निर्वाचित घोषित करेगा।
      • RO की गतिविधियाँ अधिनियम की धारा 33 द्वारा शासित होती हैं, जो नामांकन पत्रों की प्रस्तुति और वैध नामांकन के लिये आवश्यकताओं से संबंधित है।

      सूरत लोकसभा क्षेत्र में नामांकन अस्वीकृति का कारण क्या है?

      • सूरत निर्वाचन क्षेत्र के लिये कॉन्ग्रेस पार्टी के उम्मीदवार ने नामांकन पत्र के तीन सेट दाखिल किये।
      • BJP के एक कार्यकर्त्ता ने कॉन्ग्रेस पार्टी के उम्मीदवार पर आपत्ति जताते हुए आरोप लगाया कि उनके प्रस्तावकों के हस्ताक्षर वास्तविक नहीं थे।
      • RO को प्रस्तावकों से शपथ पत्र प्राप्त हुए जिसमें दावा किया गया कि उन्होंने नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किये थे।
        • चूँकि प्रस्तावकों को निर्धारित समय के भीतर RO के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जा सका, इसलिये नामांकन पत्रों के सभी तीन सेट खारिज़ कर दिये गए।
      • कॉन्ग्रेस पार्टी के स्थानापन्न उम्मीदवार का नामांकन भी इसी कारण से खारिज़ कर दिया गया था।
      • इससे BJP उम्मीदवार के निर्विरोध विजेता घोषित होना तय हुआ।

      नोट

      भारत में 35 उम्मीदवार ऐसे हैं जो लोकसभा के लिये निर्विरोध चुने गए हैं। उनमें से अधिकांश स्वतंत्रता के बाद पहले दो दशकों में थे और आखिरी बार वर्ष 2012 में थे

      सबंधित विधिक प्रावधान क्या हैं?

      • RPA, 1951 के साथ पढ़े गए संविधान के अनुच्छेद 329 (b) में प्रावधान है कि संबंधित उच्च न्यायालय के समक्ष चुनाव याचिका के अलावा किसी भी निर्वाचन पर प्रश्न नहीं उठाया जाएगा।
      • जिन आधारों पर ऐसी चुनाव याचिका दायर की जा सकती है उनमें से एक नामांकन पत्रों की अनुचित अस्वीकृति है। इसलिये उपलब्ध कानूनी सहायता गुजरात उच्च न्यायालय में चुनाव याचिका दायर करना है।
      • RP अधिनियम में यह प्रावधान है कि उच्च न्यायालय छह माह के भीतर ऐसे परीक्षणों को समाप्त करने का प्रयास करेंगे, जिसका अतीत में ज्यादातर पालन नहीं किया गया है।
      • चुनाव याचिकाओं का शीघ्र निस्तारण सही दिशा में एक कदम होगा।

      निर्विरोध निर्वाचन:

      रिटर्निंग अधिकारियों के लिये ECI की हैंडबुक में कहा गया है कि यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में केवल एक उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा है, तो उसे उम्मीदवारी वापस लेने की समय सीमा के तुरंत बाद निर्वाचित घोषित किया जाना चाहिये, और उस स्थिति में मतदान आवश्यक नहीं है। इसे निर्विरोध चुनाव कहा जाता है।

      निर्विरोध निर्वाचन में परिणाम घोषित करने को लेकर क्या चिंताएँ हैं?

      • लोकतांत्रिक निहितार्थ:
        • निर्विरोध जीत प्रतिस्पर्धी निर्वाचन प्रक्रिया के बिना निर्वाचित उम्मीदवारों की घोषणा की वैधता पर प्रश्न उठाती है, जो संभावित रूप से प्रतिनिधित्व के लोकतांत्रिक सिद्धांत को कमज़ोर करती है।
        • प्रणाली चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों का पक्ष लेती है, क्योंकि RPA पूर्ण बहिष्कार की अनुमति देता है, जिसके परिणामस्वरूप सभी उम्मीदवारों को शून्य वोट मिलते हैं।
        • यह लोकतंत्र के विचार का खंडन करता है और संभावित सुधारों पर प्रश्न उठाता है जैसे जीतने वाले उम्मीदवारों के लिये वोटों का न्यूनतम प्रतिशत लागू करना या निर्विरोध सीटों को नामांकित व्यक्तियों को हस्तांतरित करना।
      • मतदाता सहभागिता और विकल्प:
        • निर्विरोध चुनाव मतदाताओं की भागीदारी और पसंद को सीमित कर देते हैं, जिससे मतदाताओं को चुनावी प्रक्रिया के माध्यम से अपनी प्राथमिकताएँ व्यक्त करने का अवसर नहीं मिलता है।
        • निर्विरोध चुनाव में विजेता तो होता है परंतु कोई "पराजित" पार्टी नहीं होती। जो लोग नियमों के अंतर्गत खारिज़ कर दिये जाते हैं या स्वेच्छा से पीछे हट जाते हैं उन्हें प्रभावी रूप से चुनाव लड़ने के अवसर से वंचित कर दिया जाता है।
        • यह प्रक्रिया मतदाताओं को उपरोक्त में से कोई नहीं (NOTA) विकल्प का प्रयोग करने की अनुमति नहीं देती है, जिसे मतदाताओं की धारणाओं के बारे में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को "प्रबुद्ध" करने के लिये प्रयुक्त किया गया था।
          • हालाँकि, NOTA विकल्प की "दंतहीन बाघ" के रूप में आलोचना की गयी है क्योंकि पिछले पाँच वर्षों में 1.29 करोड़ से अधिक वोट प्राप्त करने के बावजूद यह चुनाव प्रक्रिया को किसी भी सार्थक तरीके से प्रभावित नहीं करता है।
            • ऐसे उदाहरण हैं जहाँ राजनीतिक दलों को NOTA से भी कम वोट मिले हैं।
        • चुनाव आयोग का कहना यह है कि किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक वोट पाने वाले उम्मीदवार को अभी भी विजेता घोषित किया जाएगा, भले ही NOTA वोटों की संख्या कितनी भी हो।
          • हालाँकि, महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों के लिये NOTA को एक काल्पनिक उम्मीदवार के रूप में माना जाता है, और यदि NOTA को सबसे अधिक वोट मिलते हैं, तो ऐसी स्थिति में आयोग फिर से मतदान कराएगा।
        • उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में चुनाव आयोग से उन निर्वाचन क्षेत्रों में नए सिरे से चुनाव कराने की याचिका पर जवाब देने को कहा, जहाँ NOTA को अधिकांश वोट मिले थे।
        • चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 49-O के अंतर्गत, मतदाता वोट देने से इंकार कर सकते हैं तथा इसके लिये पीठासीन अधिकारी को रिकॉर्ड पर टिप्पणी करनी होगी।
          • ऐसा विकल्प मतदाता को पार्टियों द्वारा खड़े किये जा रहे उम्मीदवारों के प्रति अपनी अस्वीकृति व्यक्त करने का अधिकार देता है।
          • नियम 49-O का प्रयोग करने वाले मतदाता और NOTA विकल्प का प्रयोग करने वाले मतदाता के बीच अंतर है।
        • पूर्व के मामले में ऐसे मतदाता द्वारा अपनी गोपनीयता से समझौता करने की संभावना अधिक है, क्योंकि मतदान केंद्र पर व्यक्तिगत रूप से पालन की जाने वाली प्रक्रिया होती है। हालाँकि, बाद वाले मामले में ऐसा कोई मुद्दा नहीं है।

      वित्तीय नियमों और चुनावी प्रक्रिया में समानता :

      • सामान्य वित्तीय नियम (GFRs) जो भारत के सार्वजनिक वित्त से संबंधित हैं, सार्वजनिक खरीद में निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं।
      • जबकि GFRs मानकीकरण या आपात स्थिति जैसे कुछ मामलों में 'एकल निविदा पूछताछ' की अनुमति देते हैं, वे यह भी कहते हैं कि प्रतिस्पर्धा की कमी केवल बोली लगाने वालों की संख्या से निर्धारित नहीं होनी चाहिये।
      • यदि खरीद पर्याप्त रूप से विज्ञापित की गई थी और मानदंड अत्यधिक प्रतिबंधात्मक नहीं थे, तो एक भी बोली को वैध माना जा सकता है।
      • यह RPA, वर्ष 1951 के तहत अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के समान है जहाँ मतदाताओं को उपलब्ध विकल्पों में से चयन करना होता है। हालाँकि, यदि निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिये केवल एक 'एकल बोलीदाता' (अर्थात उम्मीदवार) है, तो मतदाता को प्रभावी रूप से चयन प्रक्रिया से बाहर रखा जाता है
      • यह एक द्वंद्व उत्पन्न करता है, जहाँ बिना वोट वाला उम्मीदवार संसद में पूर्ण निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर सकता है।

      आगे की राह 

      • फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (FPTP) प्रणाली में संशोधन:
        • FPTP प्रणाली को साधारण बहुमत प्रणाली के रूप में भी जाना जाता है। इस मतदान पद्धति में किसी निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक वोट पाने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है।
          • जबकि FPTP अपेक्षाकृत सरल है, यह हमेशा वास्तव में प्रतिनिधि जनादेश की अनुमति नहीं देता है, क्योंकि उम्मीदवार किसी चुनाव में आधे से कम वोट प्राप्त करने के बावजूद भी जीत सकता है।
      • महत्त्वपूर्ण जनादेश के बिना चुने जाने वाले उम्मीदवारों के मुद्दे को संबोधित करने के लिये जीतने वाले उम्मीदवार के लिये आवश्यक वोटों का न्यूनतम प्रतिशत शुरू करने पर विचार करना 
      • उम्मीदवारों की कमी को पूरा करना:
        • सीट को नामांकित श्रेणी में स्थानांतरित करने की संभावना का पता लगाइए, जहाँ यदि कोई उम्मीदवार खुद को चुनाव के लिये पेश नहीं करता है तो भारत के राष्ट्रपति निर्धारित योग्यता के अनुसार किसी व्यक्ति को नामांकित कर सकते हैं
      • NOTA विकल्प को मज़बूत बनाना:
        • NOTA विकल्प को अधिक प्रभावशाली बनाने के तरीकों की जाँच की जानी चाहिये, संभावित रूप से इसे एक वैध वोट के रूप में मानकर और इसे सार्थक तरीके से चुनावी प्रक्रिया में शामिल करके, यह सुनिश्चित करते हुए कि मतदाता का असंतोष चुनाव परिणामों में परिलक्षित होता है
      • चुनाव याचिकाओं का शीघ्र निपटान:
        • नामांकन अस्वीकृति या चुनावी विवादों के मामलों में दायर चुनाव याचिकाओं का त्वरित समाधान सुनिश्चित कीजियेI
        • उच्च न्यायालयों को समय पर न्याय वितरण और जवाबदेही को बढ़ावा देते हुए छह माह की निर्धारित समय सीमा के अंतर्गत ऐसे परीक्षणों को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिये।

      दृष्टि मेन्स प्रश्न:

      प्रश्न. निर्विरोध चुनावी जीत के लोकतांत्रिक निहितार्थों का आकलन कीजिये, विशेष रूप से प्रतिनिधित्व और मतदाता भागीदारी के संदर्भ में।

      प्रश्न. भारतीय चुनाव प्रणाली में पहचानी गई चुनौतियों जैसे नामांकन अस्वीकृति, प्रतिस्पर्धा की कमी और मतदाता मोहभंग के समाधान के लिये सुधारों का प्रस्ताव रखियेI

        UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न    

      प्रिलिम्स:

      प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

      1. भारत का निर्वाचन आयोग पाँच-सदस्यीय निकाय है।
      2. संघ का गृह मंत्रालय, आम चुनाव और उप-चुनावों दोनों के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है।
      3. निर्वाचन आयोग मान्यता-प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवाद निपटाता है।

      उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

      (a) केवल 1 और 2
      (b) केवल 2
      (c) केवल 2 और 3
      (d) केवल 3

      उत्तर: (d)


      मेन्स

      प्रश्न. आदर्श- संहिता के उद्भव के आलोक में, भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका का विवेचन कीजिये।(2022)


      प्रश्न. भारत में लोकतंत्र की गुणता को बढ़ाने के लिये भारत के चुनाव आयोग ने 2016 में चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए सुधार क्या हैं और लोकतंत्र को सफल बनाने में वे किस सीमा तक महत्त्वपूर्ण हैं? (2017)

      नोट