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लाल सागर में बढ़ता संकट

  • 19 Jan 2024
  • 19 min read

यह एडिटोरियल 18/01/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “A search for deterrence in the Red Sea” लेख पर आधारित है। इसमें लाल सागर क्षेत्र में उभरी विभिन्न चुनौतियों की चर्चा की गई है जहाँ हूती विद्रोही समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने में समन्वित प्रतिक्रिया की कमी का लाभ उठा रहे हैं। इसमें संकट के शमन के लिये सुझाव भी दिये गए हैं।

प्रिलिम्स के लिये:

लाल सागर व्यापार मार्ग, पनामा नहर, केप ऑफ गुड होप, हूती विद्रोही, स्वेज़ नहर, बेन गुरियन नहर परियोजना, MV केम प्लूटो, बाब-अल मंडेब जलडमरूमध्य, अदन की खाड़ी, सिनाई प्रायद्वीप, अकाबा की खाड़ी, स्वेज़ की खाड़ी।

मेन्स के लिये:

लाल सागर और पनामा नहर से संबंधित प्रमुख मुद्दे, वैश्विक व्यापार में समुद्री परिवहन का महत्त्व।

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय (MoCI) की रिपोर्ट है कि यूरोप में भारतीय निर्यात, विशेष रूप से कृषि और कपड़ा जैसे निम्न-मूल्य उत्पादों, को लाल सागर (Red Sea) में बढ़ते तनाव और पनामा नहर में चल रहे सूखे की समस्या के कारण व्यवधान का सामना करना पड़ रहा है। इसकी प्रतिक्रिया में केंद्रीय वाणिज्य सचिव की अध्यक्षता में एक अंतर-मंत्रालयी बैठक आहूत की गई जिसमें विदेश, रक्षा, जहाज़रानी जैसे प्रमुख मंत्रालय और वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग (DFS) ने भागीदारी की तथा वैश्विक व्यापार पर संभावित प्रभावों के बारे में चिंताओं को संबोधित किया। 

लाल सागर और पनामा नहर में बढ़ती सुरक्षा चिंताओं के परिदृश्य में ‘केप ऑफ गुड होप’ के माध्यम से शिपमेंट के मार्ग परिवर्तन या री-रूटिंग से यूरोप की ओर नौपरिवहन में अधिक समय लग रहा है और माल ढुलाई दरों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

लाल सागर (Red Sea)

  • लाल सागर एक अर्द्ध-परिबद्ध उष्णकटिबंधीय बेसिन है जो पश्चिम में उत्तर-पूर्वी अफ्रीका और पूर्व में अरब प्रायद्वीप से घिरा है।
  • लंबे और संकीर्ण आकार का यह बेसिन उत्तर-पश्चिम में भूमध्य सागर और दक्षिण-पूर्व में हिंद महासागर के बीच विस्तृत है।
  • उत्तरी छोर पर, यह अकाबा की खाड़ी और स्वेज़ की खाड़ी में पृथक होता है, जो स्वेज़ नहर के माध्यम से भूमध्य सागर से जुड़ा हुआ है।
  • दक्षिणी छोर पर, यह बाब-अल-मंडेब जलडमरूमध्य के माध्यम से अदन की खाड़ी और बाह्य हिंद महासागर से जुड़ा हुआ है।
  • यह रेगिस्तानी या अर्द्ध-रेगिस्तानी इलाकों से घिरा हुआ है, जहाँ मीठे पानी का कोई बड़ा प्रवाह मौजूद नहीं है।

लाल सागर और पनामा नहर में वर्तमान में कौन-से मुद्दे प्रकट हुए हैं?

  • लाल सागर:
    • मुद्दा: रासायनिक टैंकर एमवी केम प्लूटो पर गुजरात के तट से लगभग 200 समुद्री मील की दूरी पर एक ड्रोन हमला किया गया।
      • एमवी केम प्लूटो लाइबेरिया के झंडे के तहत पंजीकृत, जापानी स्वामित्व का और नीदरलैंड द्वारा संचालित रासायनिक टैंकर है। इसने सऊदी अरब के अल जुबैल से कच्चा तेल लेकर अपनी यात्रा शुरू की थी और इसके भारत के न्यू मैंगलोर पहुँचने की उम्मीद थी।
    • हूती विद्रोहियों पर संदेह: माना जाता है कि यह हमला यमन के हूती विद्रोहियों द्वारा किया गया जो गाज़ा में इज़राइल की कार्रवाइयों पर प्रतिरोध जताना चाहते थे। 
      • हूती विद्रोही यमन सरकार के साथ एक दशक से जारी नागरिक संघर्ष में भी शामिल हैं।
  • पनामा नहर:
    • मुद्दा: सूखे (drought) की स्थिति के कारण, पनामा नहर के 51 मील लंबे विस्तार के माध्यम से शिपिंग में 50% से अधिक की कमी आई है।
      • मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में सामान्य से अधिक गर्म जल से संबद्ध प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाला अल नीनो जलवायु पैटर्न पनामा के इस सूखे में योगदान दे रहा है।
    • अवसंरचनात्मक खामियाँ: पनामा नहर की परिचालन संबंधी चुनौतियों और लाल सागर जैसे वैकल्पिक मार्गों पर व्यापार फोकस में बदलाव ने कई चिंताएँ उत्पन्न की हैं, जिन पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है।
      • ‘ड्रेजिंग’ (dredging) की आवश्यकता और गहराई कम होने जैसे मुद्दे सामने आए हैं, जो बड़े जहाज़ों के नौपरिवहन में बाधाएँ पैदा कर रहे हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
    • ये दोनों मार्ग विश्व के सबसे व्यस्ततम मार्गों में शामिल हैं।

उपर्युक्त मुद्दों के कारण भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

  • कृषि वस्तुओं पर प्रभाव:
    • इस महत्त्वपूर्ण व्यापार मार्ग में व्यवधान के कारण बासमती और चाय जैसी प्रमुख वस्तुओं के निर्यातकों के लिये चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।
    • लाल सागर मार्ग में व्यवधान से भारतीय कृषि उत्पाद की कीमतें 10-20% तक बढ़ सकती हैं क्योंकि शिपमेंट की ‘केप ऑफ गुड होप’ के माध्यम से री-रूटिंग की जा रही है।
  • तेल और पेट्रोलियम व्यापार पर प्रभाव:
    • प्रमुख शिपिंग कंपनियों द्वारा लाल सागर मार्ग के प्रयोग से बचने के कारण वैश्विक तेल और पेट्रोलियम प्रवाह में गिरावट आई है। हालाँकि, रूस से भारत का तेल आयात अप्रभावित रहा है।
  • अमेरिका को महँगा निर्यात:
    • पनामा नहर में जल की कमी का मुद्दा और फिर सूखे की स्थिति के कारण एशिया से अमेरिका जाने वाले जहाज़ों को स्वेज़ नहर मार्ग चुनने के लिये विवश होना पड़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप पनामा नहर मार्ग की तुलना में यात्रा में छह दिन का अतिरिक्त समय लगता है।
  • पनामा नहर एक व्यवहार्य विकल्प नहीं:
    • जबकि लाल सागर क्षेत्र में स्वेज़ नहर की ओर स्थित बाब-अल-मंडेब जलडमरूमध्य एशिया को यूरोप से जोड़ता है, 100 साल पुरानी पनामा नहर अटलांटिक एवं प्रशांत महासागरों को जोड़ती है और भारत के लिये अधिक व्यवहार्य विकल्प नहीं है।

वर्तमान संकट में कौन-से कारक योगदान दे रहे हैं?

  • आधुनिक हथियार संबंधी चिंताएँ:
    • लाल सागर की स्थिति जटिल होती जा रही है, जिसका असर स्थिरता और व्यापार दोनों पर पड़ रहा है।
    • उन्नत हथियारों का उपयोग राष्ट्रों के बीच संयुक्त रक्षा प्रयासों की प्रभावशीलता पर सवाल उठाता है, जिससे व्यापार व्यवधान और उच्च अंतर-संचालनीयता के दावों के बारे में चिंताएँ पैदा होती हैं।
  • पाइरेसी तकनीकों का अनुकूलन:
    • अतीत की समुद्री पाइरेसी चुनौतियों के ही समान, विलंबित अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं ने विद्रोहियों को आधुनिक प्रौद्योगिकियों को अपनाने का अवसर दे दिया है।
    • इससे जहाज़ों की हाईजैकिंग और उन्हें मदर शिप के रूप में उपयोग करने जैसी रणनीति को बढ़ावा मिला है, जिससे ‘उच्च जोखिम क्षेत्र’ का विस्तार हुआ है और मार्ग परिवर्तन के कारण समुद्री व्यापार के प्रभावित होने एवं बीमा लागत में वृद्धि जैसी स्थिति बनी है।
  • राज्य का समर्थन और मिसाइल प्रसार:
    • ड्रोन और एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइलों (ASBMS) का उपयोग करने वाले हूती विद्रोहियों की संलग्नता के साथ ही ईरान और चीन के संभावित राज्य समर्थन ने मिसाइल प्रौद्योगिकी प्रसार के बारे में चिंता उत्पन्न की है।
    • ASBMS की आपूर्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चीन से जुड़ी हुई है, जिससे स्थिति की जटिलता बढ़ गई है।
  • ‘ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन’ के प्रति उदासीन प्रतिक्रिया:
    • अमेरिका द्वारा शुरू किये गए ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन (Operation Prosperity Guardian), जिसका उद्देश्य संयुक्त समुद्री बल के तहत कार्य करना था, को सहयोगियों और भागीदारों की ओर से उदासीन प्रतिक्रिया प्राप्त हुई।
    • फ्राँस, इटली और स्पेन जैसे नाटो सहयोगी स्वतंत्र रूप से अभियान चला रहे हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय सहकारी तंत्र के संचालन में अमेरिका की क्षमता के बारे में संदेह का संकेत देता है।
  • सऊदी अरब और यूएई की गैर-भागीदारी:
    • ऑपरेशन से सऊदी अरब की अनुपस्थिति (संभवतः यमन समझौता वार्ता और ईरान के साथ संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिये) निहित जटिलताओं को उजागर करती है।
    • यूएई की अनिच्छा इज़राइल के लिये कथित समर्थन से बचने के कारण हो सकती है।
    • भारत, पूर्ण सदस्य होने के बावजूद, संभवतः ईरान के साथ अपने संबंधों के कारण स्वतंत्र रूप से अभियान चलाता है।
  • समुद्री सुरक्षा पर वैश्विक प्रभाग:
    • ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन की गठबंधन के रूप में कार्य कर सकने की असमर्थता समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCLOS) द्वारा निर्दिष्ट नौपरिवहन की स्वतंत्रता का समर्थन करने वाले समान विचारधारा वाले देशों के बीच विभाजन को उजागर करती है।
    • यहाँ तक कि जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे अमेरिकी सहयोगी भी अभी तक इसमें शामिल नहीं हुए हैं, जो समुद्री सुरक्षा और नियम-आधारित विश्व व्यवस्था के संबंध में अभिसरण की कमी को उजागर करता है।

भारत इन मुद्दों की संवेदनशीलता को कम करने के लिये कौन-से उपाय कर सकता है?

  • संयुक्त समुद्री सुरक्षा पहल: लाल सागर क्षेत्र के प्रमुख हितधारकों (मिस्र, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, यमन) के साथ एक सहयोगी सुरक्षा ढाँचे का प्रस्ताव किया जा सकता है जिसमें खुफिया जानकारी साझा करना, समन्वित गश्त और संयुक्त अभ्यास शामिल हो सकते हैं।
  • उन्नत निगरानी प्रणालियाँ तैनात करना: खतरे का शीघ्र पता लगाने और प्रतिक्रिया क्षमताओं को बढ़ाने के लिये भारत के पश्चिमी तट पर एकीकृत रडार और ड्रोन निगरानी प्रणालियाँ स्थापित की जाएँ।
  • अधिमान्य अभिगम्यता पर वार्ता: भारतीय जहाज़ों के लिये अधिमान्य मार्ग या विशिष्ट मार्गों के लिये संभावित टोल छूट पा सकने के लिये पनामा नहर अधिकारियों के साथ वार्ता करें।
  • वैकल्पिक व्यापार मार्गों पर विचार करना: हाल ही में बेन गुरियन नहर परियोजना (Ben Gurion Canal Project) में नए सिरे से दिलचस्पी बढ़ी है, जो एक प्रस्तावित 160 मील लंबी समुद्र-स्तरीय नहर है जो स्वेज़ नहर को बायपास करते हुए भूमध्य सागर को अकाबा की खाड़ी से जोड़ेगी।

  • हूती विद्रोहियों को वैश्विक आतंकवादी के रूप में नामित करना: इस वर्ष फ़रवरी के मध्य से  अमेरिका द्वारा हूती विद्रोहियों को एक विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी समूह के रूप में लेबल किया जाएगा, जो संभावित रूप से वैश्विक वित्तीय प्रणाली तक उनकी पहुँच को अवरुद्ध करेगा।
    • यह कदम सऊदी अरब द्वारा हूती खतरे की चेतावनी दिये जाने के बाद भी उन्हें अमेरिकी आतंकी सूची से निकाले जाने के बावजूद उठाया गया है। भारत ऐसे खतरों से बचने के लिये समान विचारधारा वाले देशों से हाथ मिला सकता है।
  • सुविचारित और सहयोगात्मक दृष्टिकोण: हूती विद्रोही विभिन्न राष्ट्रों के बीच विभाजन का लाभ उठाते हैं और अमेरिका के वैश्विक प्रभुत्व को प्रश्नगत करते हैं। समुद्री पाइरेसी समाधानों के ही के समान हथियारों की आपूर्ति को संबोधित करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • यमन में स्थिति अलग है और राज्य-राज्य टकराव को रोकने और स्थिरता बनाए रखने के लिये कार्रवाइयों को व्यवस्थित करने की आवश्यकता है।
  • यमन के युद्ध-क्षेत्र में बदलने से बचना: हूती विद्रोहियों के राज्य-अभिकर्ता (state actor) के रूप में वैधीकरण को रोककर एक प्राप्ति-योग्य ‘एंड स्टेट’ (end state) की आवश्यकता है, जो यमन को लेबनान की तरह युद्ध-क्षेत्र में बदलने से बचने के महत्त्व को उजागर करता है।
  • निर्यात ऋण की सुविधा: उच्च माल ढुलाई लागत और अधिभार के कारण खेपों पर रोक से चिंतित MoCI ने DFS को निर्यातकों को निरंतर ऋण प्रवाह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है।
  • बफर स्टॉक बनाए रखना: रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने आश्वासन दिया है कि लाल सागर क्षेत्र में तनाव के कारण भारत में उर्वरक की कमी नहीं होगी।
    • इसने कहा है कि देश के पास आगामी खरीफ मौसम की आवश्कताओं की पूर्ति के लिये पर्याप्त भंडार मौजूद है।

निष्कर्ष:

यमन में हूती विद्रोहियों से संबद्ध संघर्ष की वृद्धि और लाल सागर में व्यापारिक जहाज़ों पर उनके हमले एक बहुआयामी चुनौती पेश करते हैं। ड्रोन और एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइलों सहित उन्नत हथियारों का उपयोग, हूती विद्रोहियों की क्षमताओं को उजागर करता है और विशेष रूप से ईरान और संभवतः चीन की ओर से उनके राज्य समर्थन के बारे में चिंताएँ बढ़ाता है। जो परिदृश्य उभर रहा है, स्थिति के आगे और बिगड़ने पर रोक के लिये एक सावधान एवं सुव्यवस्थित दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण है। यह एक व्यवहार्य एवं प्राप्ति-योग्य ‘एंड स्टेट’ की तात्कालिकता को उजागर करता है जो यमन को एक दीर्घकालिक युद्ध-क्षेत्र में बदलने से रोक सकता है।

अभ्यास प्रश्न: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रभावित करने वाली हाल की घटनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए, लाल सागर में भू-राजनीतिक चुनौतियों की जाँच कीजिये। इसके साथ ही समुद्री सुरक्षा और वैश्विक व्यापार की सुरक्षा के लिये रणनीतियाँ बताइये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भूमध्य सागर निम्नलिखित में से किस देश की सीमा है? (2017)

  1. जॉर्डन
  2. इराक
  3. लेबनान
  4. सीरिया

निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3 और 4
(d) केवल 1, 3 और 4

उत्तर: (c)


प्रश्न. दक्षिण-पश्चिम एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा एक देश भूमध्यसागर तक नहीं फैला है? (2015)

(a) सीरिया
(b) जॉर्डन
(c) लेबनान
(d) इज़रायल

उत्तर: (b)

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