नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़


जैव विविधता और पर्यावरण

IPCC की छठी आकलन रिपोर्ट- भाग 2

  • 01 Mar 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन (IPCC), जलवायु परिवर्तन, गैर-संचारी रोग, क्योटो प्रोटोकॉल, ग्रीनहाउस गैसों पर अंतर-सरकारी पैनल की छठी आकलन रिपोर्ट

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन (IPCC) पर अंतर-सरकारी पैनल की छठी आकलन रिपोर्ट, जलवायु परिवर्तन, अनुकूलन उपाय, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) ने अपनी छठी आकलन रिपोर्ट का दूसरा भाग जारी किया। रिपोर्ट का यह दूसरा भाग जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, ज़ोखिमों और कमज़ोरियों एवं अनुकूलन विकल्पों से संबंधित है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • ज़ोखिम में जनसंख्या: वैश्विक आबादी के 45% से अधिक 3.5 बिलियन से अधिक लोग जलवायु परिवर्तन के लिये अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्रों में रह रहे है।
  • भारतीय परिदृश्य: रिपोर्ट में भारत को एक संवेदनशील हॉटस्पॉट के रूप  पहचाना गया है, जिसमें कई क्षेत्रों एवं महत्त्वपूर्ण शहरों में बाढ़, समुद्र के स्तर में वृद्धि तथा हीट वेव्स जैसी जलवायु आपदाओं जैसे ज़ोखिमो का सामना करना पड़ रहा है।
    • उदाहरण के लिये मुंबई में समुद्र के स्तर में वृद्धि के साथ बाढ़ का उच्च ज़ोखिम है, जबकि अहमदाबाद में हीट वेव्स का गंभीर खतरा है।
  • जटिल, मिश्रित और व्यापक जोखिम: नवीनतम रिपोर्ट में यह बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ कई  अन्य आपदाएँ अगले दो दशकों में विश्व के विभिन्न हिस्सों में उभरने की संभावना है।
    • कई जलवायु खतरे एक साथ घटित होंगे तथा जलवायु एवं गैर-जलवायु ज़ोखिम परस्पर क्रिया करेंगे, जिसके परिणामस्वरूप समग्र ज़ोखिम व खतरा सभी क्षेत्रों में बढ़ेंगे।
  • दीर्घकालिक ज़ोखिमों के निकट: भले ही पूर्व-औद्योगिक समय से वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से कम रखने हेतु पर्याप्त प्रयास किये गए हों।
    • यहाँ तक ​​कि अस्थायी रूप से वैश्विक तापमान में वृद्धि से कुछ अतिरिक्त गंभीर प्रभाव का सामना करना पड़ सकता है, जिनमें से कुछ अपरिवर्तनीय भी हो सकते है।
    • जलवायु परिवर्तन में वृद्धि तथा इससे जुड़े ज़ोखिम निकट अवधि के शमन तथा अनुकूलन कार्यों पर काफी हद तक निर्भर करते हैं।
    • अनुमानित प्रतिकूल प्रभाव और संबंधित नुकसान वैश्विक तापमान में वृद्धि के साथ बढ़ते हैं।
  • युग्मित प्रणाली: युग्मित प्रणाली जलवायु, पारिस्थितिक तंत्र (उनकी जैव विविधता सहित) और मानव समाज के बीच बातचीत पर एक मज़बूत ध्यान है।

Climate-Change

  • क्षेत्रीय भिन्नता: पारिस्थितिक तंत्र और लोगों की जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता क्षेत्रों के बीच और भीतर काफी भिन्न होती है।
    • ये सामाजिक-आर्थिक विकास, अस्थिर महासागर और भूमि उपयोग, असमानता, हाशिए पर, ऐतिहासिक तथा असमानता के चल रहे पैटर्न जैसे उपनिवेशवाद एवं शासन के प्रतिच्छेदन के पैटर्न से प्रेरित हैं।
  • जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य प्रभाव: यह पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन, विशेष रूप से एशिया के उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मलेरिया या डेंगू जैसे वेक्टर जनित और जल जनित रोग बढ़ रहे हैं। 
    • इसमें यह भी कहा है कि तापमान में वृद्धि के साथ संचार, श्वसन, मधुमेह और संक्रामक रोगों के साथ-साथ शिशु मृत्यु दर में वृद्धि होने की संभावना है।
    • हीटवेब्स, बाढ़ और सूखे जैसी चरम मौसम की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और यहाँ तक ​​​​कि वायु प्रदूषण भी कुपोषण, एलर्जी संबंधी बीमारियों और यहाँ तक ​​​​कि मानसिक विकारों को भी उत्पन्न कर रहा था।
  • वर्तमान अनुकूलन और इसके लाभ: अनुकूलन योजना और कार्यान्वयन में प्रगति सभी क्षेत्रों में देखी गई है, जिसके कई लाभ हुए हैं।
    • कई पहलें तत्काल और निकटवर्ती जलवायु जोखिम में कमी को प्राथमिकता देती हैं जो परिवर्तनकारी अनुकूलन के अवसर को कम करती हैं।

अनुकूलन जोखिम  और रणनीतियाँ

Adaption-Risk

  • अनुकूलन में अंतराल: रिपोर्ट में किये जा रहे अनुकूलन कार्यों और आवश्यक प्रयासों में बड़े अंतराल पर भी प्रकाश डाला गया है। यह बताती  है कि ये अंतराल "धन की कमी, राजनीतिक प्रतिबद्धता, विश्वसनीय जानकारी और तात्कालिकता की भावना" का परिणाम है।
    • नुकसान को कम करने के लिये अनुकूलन आवश्यक है, लेकिन इसे प्रभावी बनाने के लिये ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में महत्वाकांक्षी कटौती की जानी चहिये क्योंकि बढ़ती गर्मी के साथ कई अनुकूलन विकल्पों की प्रभावशीलता कम हो जाती है।
  • समग्र परिवर्तनों की आवश्यकता: अब यह स्पष्ट है कि मामूली, सीमांत, प्रतिक्रियाशील या वृद्धिशील परिवर्तन पर्याप्त नहीं होंगे।
    • तकनीकी और आर्थिक परिवर्तनों के अलावा अनुकूलन की सीमाओं को पार करने, लचीला बनाने, जलवायु जोखिम को सहनीय स्तरों तक कम करने, समावेशी, न्यायसंगत और न्यायपूर्ण विकास की गारंटी देने और किसी को पीछे छोड़े बिना सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये समाज के अधिकांश पहलूओं में बदलाव की आवश्यकता है।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल

  • यह जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान का आकलन करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था है।
  • IPCC की स्थापना संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organisation- WMO) द्वारा वर्ष 1988 में की गई थी। यह जलवायु परिवर्तन पर नियमित वैज्ञानिक आकलन, इसके निहितार्थ और भविष्य के संभावित जोखिमों के साथ-साथ अनुकूलन तथा शमन के विकल्प भी उपलब्ध कराता है।
  • IPCC आकलन जलवायु संबंधी नीतियों को विकसित करने हेतु सभी स्तरों पर सरकारों के लिये एक वैज्ञानिक आधार प्रदान करते हैं और वे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) में इस पर परिचर्चा करते हैं।

IPCC आकलन रिपोर्ट

  • आकलन रिपोर्ट, जो कि पहली बार रिपोर्ट वर्ष 1990 में सामने आई थी, पृथ्वी की जलवायु की स्थिति का सबसे व्यापक मूल्यांकन है।
    • प्रत्येक सात वर्षों में IPCC मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार करता है।
  • बदलती जलवायु को लेकर एक सामान्य समझ विकसित करने हेतु सैकड़ों विशेषज्ञ प्रासंगिक, प्रकाशित वैज्ञानिक जानकारी के हर उपलब्ध स्रोत का अध्ययन करते हैं।
  • अन्य चार मूल्यांकन रिपोर्टें वर्ष 1995, वर्ष 2001, वर्ष 2007 और वर्ष 2015 में प्रकाशित हुईं।
    • ये रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन के प्रति वैश्विक प्रतिक्रिया का आधार हैं।
  • प्रत्येक मूल्यांकन रिपोर्ट में पिछली रिपोर्ट के काम पर अधिक सबूत, सूचना और डेटा एकत्रित किया जाता है।
    • ताकि जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों के विषय में अधिक स्पष्टता, निश्चितता और नए साक्ष्य मौजूद हों।
  • इन्हीं वार्ताओं ने पेरिस समझौते और क्योटो प्रोटोकॉल को जन्म दिया था।
    • पाँचवीं आकलन रिपोर्ट के आधार पर पेरिस समझौते पर वार्ता हुई थी।
  • आकलन रिपोर्ट- वैज्ञानिकों के तीन कार्य समूहों द्वारा
    • कार्यकारी समूह- I: जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक आधार से संबंधित है। 
    • कार्यकारी समूह- II : संभावित प्रभावों, कमज़ोरियों और अनुकूलन मुद्दों को देखता है।
    • कार्यकारी समूह-III: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये की जा सकने वाली कार्रवाइयों से संबंधित है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow