NOTA का विकल्प
प्रीलिम्स के लिये:चुनाव आयोग, NOTA मेन्स के लिये:चुनाव सुधार से संबंधित मुद्दे, NOTA के विकल्प के निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के बाद चुनाव आयोग ने नोटा (None of the Above- NOTA) से संबंधित आँकड़े जारी किये हैं।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- EVM में NOTA विकल्प की शुरुआत पहली बार वर्ष 2013 में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिज़ोरम और राजस्थान में संपन्न हुए चुनावों से हुई।
- NOTA विकल्प के शुरू होने से अब तक दिल्ली पहला ऐसा राज्य है जिसने दिल्ली में हुए 5 चुनावों (वर्ष 2013, 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव एवं वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव) में NOTA से संबंधित आँकड़ों को प्रदर्शित किया है। ध्यातव्य है कि NOTA विकल्प की शुरुआत के बाद दिल्ली में संपन्न हालिया विधानसभा चुनाव देश में 45वाँ चुनाव था।
नोटा (NOTA) के बारे में
- इसका अर्थ है ‘इनमें से कोई नहीं’।
- भारत में नोटा के विकल्प का उपयोग पहली बार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2013 में दिये गए एक आदेश के बाद शुरू हुआ, विदित हो कि ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ बनाम भारत सरकार’ (People's Union Of Civil Liberties vs Union Of India) मामले में शीर्ष न्यायालय ने आदेश दिया था कि जनता को मतदान के लिये नोटा का भी विकल्प उपलब्ध कराया जाए।
- इस आदेश के बाद भारत नकारात्मक मतदान का विकल्प उपलब्ध कराने वाला विश्व का 14वाँ देश बन गया।
- ईवीएम मशीन में नोटा (NONE OF THE ABOVE-NOTA) के उपयोग के लिये गुलाबी रंग का बटन होता है।
- यदि पार्टियाँ गलत उम्मीदवार खड़ा करती हैं तो जनता नोटा का बटन दबाकर पार्टियों के प्रति अपना विरोध दर्ज़ करा सकती है।
NOTA की शुरुआत के कारण
- वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि जिस प्रकार नागरिकों को मत देने का अधिकार है उसी प्रकार उन्हें किसी भी उम्मीदवार को मत न देने का अधिकार भी प्राप्त है। इसके बाद जनवरी, 2014 में नोटा के प्रावधान संबंधी अधिसूचना जारी की गई थी।
- लोकतंत्र में मतदाताओं द्वारा उम्मीदवारों को चुनने या न चुनने के अधिकार को सुरक्षित करने हेतु यह विकल्प लाया गया था। इसके पीछे का उद्देश्य चुनाव को साफ-सुथरा बनाना है।
- नोटा की माँग का एक उद्देश्य यह भी था कि लोकतंत्र में जनता के मालिकाना हक को सुनिश्चित किया जाए। यह जनप्रतिनिधियों को निरंकुश न होने तथा उन्हें उनके दायित्वों के प्रति ईमानदार बनाए रखने के लिये कारगर व्यवस्था हो सकती है। जनता को उम्मीदवारों को नकारने का विकल्प देना इस बात का परिचायक है कि लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है।
NOTA के पक्ष में तर्क
- इस संदर्भ में यह तर्क दिया जाता है कि यह मतदाताओं को किसी भी उम्मीदवार को न चुनने का अधिकार देकर चुनाव में प्रतिभागी उम्मीदवारों के प्रति असंतोष जाहिर करने का महत्त्वपूर्ण विकल्प है।
- इस विकल्प की सहायता से जनता को अब दो भ्रष्ट उम्मीदवारों में से कम भ्रष्ट उम्मीदवार को चुनने से राहत मिली है तथा मतदाता अपने मत का सही उपयोग कर सकता है।
- इस विकल्प के कारण राजनैतिक दल चुनाव में ईमानदार प्रतिभागी को ही उम्मीदवार के रूप में नामाँकित करने का प्रयास करेंगे जिससे राजनीति के अपराधीकरण की प्रक्रिया पर अंकुश लगेगा।
- यह विकल्प लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया को स्वच्छ बनाने में महत्त्वपूर्ण विकल्प माना जा रहा है।
विपक्ष में तर्क
- इसके विपक्ष में सबसे बड़ा तर्क यह है कि चुनाव में यह विकल्प केवल नकारात्मक मताधिकार देता है, किसी उम्मीदवार की उम्मीदवारी को निरस्त करने का नहीं। जिसका चुनाव में उम्मीदवार की जीत या हार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
- उदाहरण के लिये, यदि चुनाव में 100 मतदाताओं में से 99 मतदाताओं ने NOTA का विकल्प चुना है किंतु एक मतदाता ने किसी उम्मीदवार को चुना है तो वह उम्मीदवार विजयी घोषित होगा और उन 99 मतों का कोई महत्त्व नहीं रह जाता है।
- NOTA का विकल्प केवल नकारात्मक वोटिंग का अधिकार है, उम्मीदवार की उम्मीदवारी को निरस्त करने का नहीं। इसी कारण पूर्व चुनाव आयुक्त ने भारत में NOTA को दंतहीन विकल्प की संज्ञा दी।
- आलोचकों का मानना है कि वर्तमान नियमों पर आधारित NOTA का विकल्प एक महत्त्वहीन विकल्प है जो मतदाता के मतों की अवहेलना करता है।
- दरअसल जो लोग नोटा के मौजूदा स्वरूप से असंतुष्ट हैं, उनका तर्क यह है कि इससे मतदाता को चुनाव में भाग ले रहे प्रत्याशियों को खारिज करने का हक नहीं मिलता।
NOTA से संबंधित अन्य तथ्य
- NOTA के संदर्भ में दिल्ली के मतदाताओं की प्राथमिकता राष्ट्रीय औसत से कम है। दिल्ली के मतदाताओं ने वर्ष 2013 में 0.63% तथा वर्ष 2015 में NOTA के पक्ष में 0.39% मतदान किया। किंतु हालिया विधानसभा चुनावों में NOTA का वोट प्रतिशत बढ़कर 0.46% हो गया है।
- वर्ष 2017 के गुजरात विधानसभा चुनावों में NOTA को 1.8% मत प्राप्त होने के बावजूद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (निर्दलीय को छोड़कर) के अलावा किसी भी राजनीतिक दल से अधिक वोट मिले थे।
- वर्ष 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में NOTA, दो निर्वाचन क्षेत्रों - लातूर (ग्रामीण) और पलस-कडगाँव में दूसरे स्थान पर था।
- NOTA को सशक्त करने के संदर्भ में भी कई प्रयास किये गए-
- वर्ष 2018 में पूर्व चुनाव आयुक्त टी.एस. कृष्णमूर्ति ने उन निर्वाचन क्षेत्रों में फिर से चुनाव कराने की सिफारिश की थी जहाँ जीत का अंतर NOTA की कुल संख्या से कम है।
- NOTA के स्थान पर ‘अस्वीकार करने का पूर्ण अधिकार’ (Right to Reject) मांगने के लिये मद्रास उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई थी।
- वर्ष 2018 में महाराष्ट्र एवं हरियाणा राज्य चुनाव आयोग (State Election Commission- SEC) ने एक आदेश जारी किया था कि यदि नोटा को सबसे अधिक वैध मत प्राप्त होते हैं तो उस विशेष सीट के लिये उक्त चुनाव को रद्द कर दिया जाएगा और इस तरह के पद के लिये नए सिरे से चुनाव किया जाएगा।
आगे की राह
- चुनाव में NOTA विकल्प को सार्थकता प्रदान करने हेतु इसे सशक्त करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में NOTA को अन्य उम्मीदवारों की तुलना में अधिक वोट मिलते हैं तो चुनाव को रद्द कर पुनः करवाना चाहिये साथ ही उक्त उम्मीदवारों को पुनर्निर्वाचन में भाग लेने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त राजनीति के अपराधीकरण एवं अपराधियों के राजनीतिकरण को रोकने हेतु व्यापक चुनाव सुधार की आवश्यकता है।
- साथ ही सरकार एवं चुनाव आयोग को मतदाताओं में नोटा के बारे में जागरूकता फैलाने का प्रयास करना चाहिये जिससे कि मतदाता नोटा के निहितार्थ को समझ सके।