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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

मध्य-पूर्व की डावाँडोल होती अर्थव्यवस्था

  • 17 Aug 2017
  • 9 min read

भूमिका
पिछले कुछ समय से वैश्विक बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों में निरंतर कमी देखी जा रही है।  इस संबंध में यदि पारंपरिक ज्ञान का उपयोग किया जाए तो यह कहा जा सकता है कि मध्य पूर्व की प्राकृतिक गैस की माँग में समय के साथ एकबार फिर उछल आने की संभावना है। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2016 से 2026 तक के आगामी 10 वर्षों के भीतर प्राकृतिक गैस के उपभोग में प्रतिदिन 25 बिलियन घन फीट की बढ़ोतरी होने की संभावना है।

  • बी. पी. पी.एल.सी. की वर्ष 2017 की ऊर्जा आउटलुक रिपोर्ट में यह दर्शाया गया है कि इसकी प्राकृतिक गैस की माँग में वर्ष 2015 (प्रतिदिन 47 बिलियन क्यूबिक फीट) की तुलना में वर्ष 2035 में (73 बिलियन क्यूबिक फीट) वृद्धि होगी। 
  • ध्यातव्य है कि सभी राष्ट्रीय तेल कंपनियाँ और तरल प्राकृतिक गैस के निर्यातक इस क्षेत्र में महत्त्वाकांक्षी विस्तार योजनाओं के क्रियान्वयन के लिये प्रयासरत हैं।  
  • हालाँकि इस स्तर पर पहुँचने के लिये इस दृष्टिकोण में आंशिक परिवर्तन करने की आवश्यकता है।

इस अनुमान का आधार 

  • जैसा कि हम सभी जानते हैं कि वर्ष 2000 से ही मध्य-पूर्व एशिया के आर्थिक क्षेत्र में निरंतर उछाल आ रहा है। इसका कारण यह है कि कच्चे तेल के मूल्य में अपेक्षाकृत वृद्धि होती रही है जिससे इस क्षेत्र ने तीव्र गति से बहुत विकास किया है। 
  • इस प्रगति के परिणामस्वरूप ही इस क्षेत्र में नए शहरों का निर्माण हुआ।
  • साथ ही वातानुकूलन उपकरणों, विंटर हीटिंग उपकरणों, कुकिंग, विलवणीकृत जल एवं भौतिक रूप से एक सुखद जिंदगी जीने के लिये आवश्यक सभी साधनों की माँग में वृद्धि होना इस क्षेत्र के निवासियों की उच्च आय प्रतिशतता को भी दर्शाता है।
  • यहाँ की सरकारें ऊर्जा सघन औद्योगीकरण (energy-intensive industrialization) की अवधारणा को आगे बढ़ाते हुए उन क्षेत्रों में अपनी अर्थव्यवस्थाओं का विविधिकरण करना चाहती है जहाँ पर उन्हें प्रतिस्पर्धी लाभ प्राप्त हो सके। उदाहरण के तौर पर- पेट्रोरसायन, एल्युमीनियम, स्टील एवं सीमेंट।

परिवर्तन का दौर

  • सामाजिक दबाव के कारण मध्य-पूर्व एशिया के तेल उत्पादक देशों ने प्राकृतिक गैस की माँग में वृद्धि एवं अक्षमता को मद्देनज़र रखते हुए प्राकृतिक गैस, विद्युत और जल को सब्सिडीयुक्त कर दिया।
  • समय के साथ-साथ तेल उत्पादन के एक उत्पाद के रूप में सस्ती गैस के पूर्णतः उपयोग का स्तर बढ़ने लगा।
  • परंतु, बदलते समय के साथ बदलती राजनीतिक और वाणिज्यिक स्थितियों ने क़तर के वृहद उत्तरी क्षेत्र से ईरान के निकटवर्ती दक्षिण पार्स क्षेत्र को निर्यात किये जाने हेतु प्रयोग की जाने वाली परियोजनाओं को मंजूरी नहीं दी।
  • इसी प्रकार मिस्र से जॉर्डन, इज़राइल से सीरिया तक जाने वाली प्राकृतिक गैस पाइपलाइन को भी बार-बार क्षतिग्रस्त किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि प्राकृतिक गैस की अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में मिस्र असफल होने लगा।
  • यही कारण रहा कि विश्व के प्रमुख गैस क्षेत्रों में से एक, इस क्षेत्र के तीन सबसे समृद्ध राष्ट्रों ने टैंकरों की सहायता से वर्ष 2009 में कुवैत, वर्ष 2010 में दुबई, वर्ष 2013 में इज़राइल, वर्ष 2015 में मिस्र व जॉर्डन और वर्ष 2016 में अबू धाबी से तरल प्राकृतिक गैस का आयात करना प्रारंभ कर दिया। 
  • इसी क्रम में, संयुक्त अरब अमीरात के शारजाह शहर और बहरीन ने क्रमशः वर्ष 2018 और 2019 में तरल प्राकृतिक गैस का आयात करने की योजना बनाई है। इस संबंध में सऊदी अरब द्वारा वार्ता भी आरंभ कर दी गई है।

इसका प्रभाव क्या हुआ?

  • जैसा कि हम सभी जानते हैं कि प्रत्येक क्रिया की विपरीत प्रतिक्रिया होती है। इसी प्रकार कभी मध्य-पूर्व एशिया के तेल बाज़ार पर नज़र रखने वाले गैस उत्पादकों एवं निर्यातकों द्वारा अब इस माँग को उतना महत्त्व नहीं दिया जा रहा है।
  • इसकी विपरीत प्रक्रिया के तीन महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर नज़र डाले तो हम पाएंगे कि आर्थिक, कुशलता और प्रतिस्पर्द्धा की दृष्टि से इसका नकारात्मक प्रभाव बहुत अधिक हुआ।
  • जिसके कारणवश अपेक्षाकृत तेल की कीमतों में आने-वाले उतार-चढ़ाव के चलते विकास की गति धीमी हो गई, इतना ही नहीं बल्कि इस क्षेत्र के कुछ स्थानों पर मंदी का इतना अधिक प्रभाव हुआ कि खाड़ी देशों द्वारा अपने लोगों को धन का व्यर्थ अपव्यय न करने की सलाह दी गई।
  • ऐसा इसलिये किया गया ताकि ज्यादा से ज्यादा धन का संरक्षण किया जा सके और समय पड़ने पर लोगों द्वारा अपनी उच्च जीवन शैली के अनुरूप इसका उपभोग किया जा सके।
  • इतना ही नहीं बल्कि नई आकर्षक अवसंरचना परियोजनाओं के निर्माण को भी धन की कमी के चलते रोक दिया गया। जिसके परिणामस्वरूप ईरान में गैसीकरण की एक ऐसी लहर चल पड़ी कि इस दौरान सुदूर स्थित गाँवों को भी ग्रिड व्यवस्था से जोड़ दिया गया ताकि भविष्य की माँग का संचालन नए ग्राहकों द्वारा न किया जा सके।
  • तेल और गैस के मूल्यों ने इस क्षेत्र की सरकारों को अपनी सब्सिडियों की अत्यधिक लागतों के प्रति भी जागरूक किया।
  • यह ऐसा समय था जब स्थानीय विनियामक दरों और अंतर्राष्ट्रीय कीमतों  के मध्य के अंतराल को कम किया जा सकता था, अत: खाड़ी देशों द्वारा ऐसा ही किया गया जिसके चलते उनके लिये इस स्थिति को संभालना थोडा आसान हो गया ।
  • ईरान ने वर्ष 2010 में गैस, विद्युत और ईंधन की कीमतों में वृद्धि कर दी गई, हालाँकि मुद्रास्फीति और ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों ने इन सुधारों का प्रभाव थोड़ा कम कर दिया।
  • तत्पश्चात् संयुक्त अरब अमीरात, अरब, ओमान, बहरीन, मिस्र, जोर्डन और अन्य देशों द्वारा भी ईरान का अनुसरण किया गया।
  • इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र की सरकारों द्वारा भवनों और उपकरणों के निर्माण एवं उपभोग हेतु गुणवत्तापूर्ण मानकों की भी शुरुआत की गई ताकि यहाँ के लोगों को कम से कम अपशिष्ट उत्सर्जन के प्रति जागरूक किया जा सके।

वर्तमान स्थिति

  • वर्तमान स्थिति यह है कि प्राकृतिक गैस के उच्च मूल्यों और घरेलू आपूर्ति की कमी के कारण मध्य-पूर्व एशिया के देशों द्वारा अब वैकल्पिक स्रोतों की तलाश शुरू कर दी गई हैं। उदाहरण के तौर पर, संयुक्त अरब अमीरात के बड़े नाभिकीय शक्ति कार्यक्रम की शुरुआत इसी कड़ी का अगला भाग है।
  • यदि इस क्षेत्र में सौर ऊर्जा एवं पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग किया जाता है तो संभव है कि मध्य-पूर्व के देशों की अर्थव्यवस्था तेल आधारित अर्थव्यवस्था के विकल्प के इतर भी काम कर पाएगी। इससे न केवल प्राकृतिक गैस की बचत होगी बल्कि खर्च भी कम आएगा।
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