डेली न्यूज़ (29 Oct, 2024)



लिंग-संवेदनशील जलवायु नीतियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs), UNFCCC, पेरिस समझौता, शुद्ध-शून्य उत्सर्जन

मेन्स के लिये:

लिंग-संवेदनशील जलवायु नीतियाँ: आवश्यकता, चुनौतियाँ, सिफारिशें

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सचिवालय की एक नई रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर लिंग-संवेदनशील जलवायु नीतियों में वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है।

वर्ष 2014 में लैंगिक दृष्टिकोण पर प्रथम UNFCCC लीमा वर्क प्रोग्राम (LWPG) और वर्ष 2019 में LWPG के उन्नत संस्करण को अपनाने के बाद से राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) सहित सभी रिपोर्टों एवं संचारों में लिंग एकीकरण को महत्त्व मिला है।

नोट:

  • LWPG की स्थापना लैंगिक संतुलन को बढ़ावा देने तथा पेरिस समझौते के कार्यान्वयन में विभिन्न पक्षों एवं सचिवालय के कार्य में लैंगिक विचारों को एकीकृत करने के लिये की गई थी, ताकि लैंगिक संवेदनशील जलवायु नीति एवं कार्रवाई को महत्त्व मिल सके।

Lima Work Programme on gender

इस रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

निष्कर्ष:

  • लैंगिक दृष्टिकोण को महत्त्व देना: पेरिस समझौते के लगभग 81% पक्षकारों ने अब अपने NDCs में लैंगिक दृष्टिकोण को शामिल किया है। 
    • यह वर्ष 2015 की तुलना में एक महत्त्वपूर्ण सुधार है, जब बहुत कम NDCs में लैंगिक दृष्टिकोण का उल्लेख किया गया था।
  • संस्थागत तंत्र को मज़बूत करना: लगभग 62.3% पक्षकारों ने जलवायु कार्रवाई में लैंगिक विचारों को एकीकृत करने के लिये संस्थागत तंत्र को मज़बूत करने के प्रयासों पर प्रकाश डाला है।
  • लैंगिक संतुलन पहल: लगभग 11.5% पक्षकारों ने अनुकूलन प्रयासों (विशेष रूप से कृषि, वानिकी और जल संसाधनों के क्षेत्र में) की निगरानी एवं मूल्यांकन में शामिल हितधारक समूहों के बीच लैंगिक संतुलन और विविधता को बढ़ाने के उद्देश्य से संबंधित पहल की विस्तृत जानकारी दी है।

लैंगिक संवेदनशीलता की आवश्यकता:

  • लैंगिक समानता के प्रति प्रतिबद्धता: लगभग 55.7% पक्षकारों ने जलवायु कार्रवाई में लैंगिक समानता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की है, जो इसके महत्त्व को दर्शाता है।
  • खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव: इस रिपोर्ट में बताया गया है कि किस प्रकार जलवायु परिवर्तन से उपलब्धता, पहुँच, उपयोग एवं स्थिरता के संदर्भ में खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है।
    • विकासशील देशों में खाद्य उत्पादन में 45-80% की हिस्सेदारी रखने वाली महिलाएँ इससे असमान रूप से प्रभावित होती हैं क्योंकि इससे खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ जाती हैं।
  • भेद्यता पर विचार: इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के प्रति महिलाओं की बढ़ती संवेदनशीलता पर बल दिया गया है, इसमें यह भी कहा गया है कि संवेदनशील परिस्थितियों में रहने वाले पुरुषों को अक्सर नीति नियोजन में नज़रअंदाज किया जाता है।

सिफारिशें एवं भविष्य के पहलू:

  • जलवायु पहलों को बढ़ावा देना: हितधारकों का मानना ​​है कि जलवायु पहलों की महत्त्वाकांक्षा और प्रभावशीलता में सुधार के लिये लैंगिक-संवेदनशील रणनीतियों को अपनाना आवश्यक है। 
    • अधिकांश पक्षों ने जलवायु कार्रवाई के मूलभूत पहलू के रूप में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है।
  • वैश्विक समीक्षा परिणाम: UNFCCC के पक्षकारों के 28 वें सम्मेलन में प्रथम वैश्विक समीक्षा के परिणाम, पक्षकारों को लिंग-संवेदनशील जलवायु नीतियों और कार्यों को लागू करने के लिये प्रोत्साहित करते हैं।
  • NDC का अगला दौर (NDC 3.0): वर्ष 2025 में NDC की आगामी प्रस्तुति लैंगिक समानता और प्रभावी जलवायु परिणामों को प्राप्त करने की दिशा में सहयोगात्मक प्रयासों को मज़बूत करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करती है।

भारत का राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC)

  • भारत ने वर्ष 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करने की प्रतिबद्धता जताई है।
  • अद्यतन NDC वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन तक पहुँचने के भारत के दीर्घकालिक लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • वर्ष 2021-2030 की अवधि में स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन के लिये एक नए ढाँचे का उद्देश्य हरित क्षेत्र में नौकरियों को बढ़ाना, इलेक्ट्रिक वाहनों और कम उत्सर्जन वाले उत्पादों के विनिर्माण को बढ़ावा देना और हरित हाइड्रोजन जैसी नवीन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना है।
  • देश मज़बूत अनुकूलन लक्ष्यों के लिये प्रतिबद्ध है। 
    • इससे जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों पर केंद्रित विकास कार्यक्रमों में निवेश बढ़ेगा।
  • भारत अत्याधुनिक जलवायु प्रौद्योगिकी के त्वरित प्रसार के लिये क्षमता निर्माण करेगा।

जलवायु कार्रवाई में लैंगिक समानता का क्या महत्त्व है?

  • कृषि पर प्रभाव: महिलाएँ कृषि उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं लेकिन संसाधनों, सेवाओं और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं तक उनकी समान पहुँच नहीं है। 
    • यदि महिला किसानों को पुरुषों के समान संसाधनों तक पहुँच प्राप्त हो तो कृषि उपज में 20-30% की वृद्धि हो सकती है जिससे संभवतः 100-150 मिलियन लोगों की भुखमरी कम हो सकती है तथा वर्ष 2050 तक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 2.1 गीगाटन की कमी आ सकती है।
  • भूमि स्वामित्व और संसाधन नियंत्रण: वैश्विक कृषि कार्यबल में महिलाएँ एक तिहाई हैं लेकिन भूस्वामियों में उनकी हिस्सेदारी केवल 12.6% है। 
    • यह असमानता कृषि सहायता तक उनकी पहुँच को सीमित करती है तथा अनुकूलन तकनीकों एवं फसल पैटर्न के बारे में सीमित जानकारी के कारण उनकी भेद्यता में वृद्धि होती है।
  • निर्णय-निर्माण एवं जलवायु नेतृत्व: जलवायु संबंधी निर्णय-निर्माण में महिलाओं को शामिल करना प्रभावी जलवायु नीतियाँ बनाने के लिये आवश्यक है। 
    • हालांकि महिलाएँ अक्सर वैश्विक स्तर पर 75% अवैतनिक देखभाल कार्य में संलग्न हैं। जलवायु-प्रेरित आपदाओं से महिलाओं पर अधिक भार पड़ता है।
  • शिक्षा और रोजगार पर प्रभाव: जलवायु संबंधी तनाव से महिलाओं के लिये शिक्षा एवं श्रम बाज़ार तक पहुँच सीमित हो सकती है।
    • आपदा की स्थिति में लिंग आधारित हिंसा का जोखिम बढ़ जाता है, जिससे गुणवत्तापूर्ण सेवाओं तक पहुँच और निर्णय लेने में सार्थक भागीदारी की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है।

लिंग-संवेदनशील जलवायु कार्रवाई के उदाहरण

  • भूटान: इसने लैंगिक समानता एवं जलवायु परिवर्तन पहलों के समन्वय एवं कार्यान्वयन के लिये विभिन्न मंत्रालयों और महिला संगठनों में लैंगिक दृष्टिकोण को महत्त्व दिया है।
  • ज़िम्बाब्वे: इसने महिलाओं के लिये उद्यमिता के अवसर सृजित करने के लिये एक नवीकरणीय ऊर्जा कोष की स्थापना की है।
  • उज़्बेकिस्तान: यहाँ एक प्रायोगिक हरित बंधक योजना के तहत ग्रामीण परिवारों को निम्न-कार्बन ऊर्जा प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराई गई, जिसमें 67% बंधक महिलाओं के नेतृत्व वाले परिवारों द्वारा लिये गए।
  • उरुग्वे: इसने लैंगिक समानता पर NDCs के प्रभाव को ट्रैक करने के लिये लिंग-संवेदनशील निगरानी, ​​रिपोर्टिंग और सत्यापन प्रणाली स्थापित की है।

लिंग-संवेदनशील जलवायु नीतियों में सुधार किस प्रकार किया जा सकता है?

  • लिंग विश्लेषण करना: यह आकलन करने से कि जलवायु परिवर्तन पुरुषों एवं महिलाओं को किस प्रकार अलग-अलग तरीके से प्रभावित करता है, संसाधन वितरण और अवसरों में असमानताओं तथा अंतरालों की पहचान करने में सहायक है। 
    • लिंग विश्लेषण से साक्ष्य-आधारित जलवायु नीतियाँ बनाने में मदद मिलती है, जिससे सभी लिंगों की विशिष्ट आवश्यकताओं एवं कमज़ोरियों का पता चलता है।
  • लिंग-संवेदनशील बजट: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये सभी उपलब्ध कौशल, संसाधनों एवं नेतृत्व क्षमताओं को जुटाने के लिये जलवायु कार्रवाई निधि का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।
    • इस बजट दृष्टिकोण से पुरुषों एवं महिलाओं पर जलवायु परिवर्तन के अलग-अलग प्रभावों पर विचार होता है तथा समावेशी एवं प्रभावशाली जलवायु समाधानों को बढ़ावा मिलता है।
  • लैंगिक समानता उद्देश्यों को एकीकृत करना: लैंगिक समानता लक्ष्यों के साथ संरेखित जलवायु नीतियों से जलवायु संकट से निपटने एवं सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक संरचनात्मक परिवर्तन प्राप्त करने की अधिक संभावना है। 
    • लिंग आधारित कमज़ोरियों के मूल कारणों का समाधान करने से अधिक अनुकूल समुदाय एवं धारणीय जलवायु परिणाम मिलते हैं।
  • हितधारक सहभागिता में लैंगिक संतुलन को बढ़ावा देना: जलवायु कार्यों की निगरानी एवं मूल्यांकन में लैंगिक विविधता को प्रोत्साहित करने से जलवायु पहलों की समग्र प्रभावशीलता में सुधार हो सकता है। 
    • निर्णय लेने में महिलाओं तथा अन्य कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों को शामिल करने से व्यापक दृष्टिकोण और अनुभवों पर विचार किया जा सकता है।
  • विकासशील और अल्पविकसित देशों (LDCs) को समर्थन देना: विकासशील देशों और LDCs ने जलवायु नीतियों में लैंगिक विचारों को एकीकृत करने में रूचि दिखाई है। 
    • विकसित देशों को लिंग-संवेदनशील जलवायु कार्रवाई के लिये वैश्विक ढाँचे को बढ़ावा देने के क्रम में इस दृष्टिकोण को अपनाना चाहिये। अंतर्राष्ट्रीय जलवायु नीतियों एवं रणनीतियों में लैंगिक समानता को एकीकृत करने के लिये सहयोगात्मक प्रयास महत्त्वपूर्ण हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: विकासशील एवं विकसित देशों में लिंग-संवेदनशील जलवायु नीतियों के महत्त्व को बताते हुए इसमें लिंग संबंधी विचारों को एकीकृत करने की चुनौतियों की व्याख्या कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रारंभिक:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा भारत सरकार के 'हरित भारत मिशन' के उद्देश्य का सबसे अच्छा वर्णन करता है? (2016)

  1. संघ और राज्य के बजट में पर्यावरणीय लाभों और लागतों को शामिल करते हुए 'ग्रीन एकाउंटिंग' को लागू करना।
  2.  कृषि उत्पादन बढ़ाने हेतु दूसरी हरित क्रांति की शुरुआत करना ताकि भविष्य में सभी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
  3.  अनुकूलन और शमन उपायों के संयोजन द्वारा वन आवरण को बहाल करना एवं बढ़ाना तथा जलवायु परिवर्तन का सामना करना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न. 'भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन संधि' (ग्लोबल क्लाइमेट चेंज एलाएन्स के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. यह यूरोपीय संघ की पहल है।
  2.  यह लक्ष्याधीन विकासशील देशों को उनकी विकास नीतियों और बजट में जलवायु परिवर्तन के एकीकृत हेतु तकनीकी एवं वित्तीय सहायता प्रदान करता है। 
  3.  इसका समन्वय विश्व संसाधन संस्थान (WRI) और धारणीय विकास हेतु विश्व व्यापार परिषद (WBCSD) द्वारा किया जाता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a) 


मेन्स:

प्रश्न. वहनीय (अफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य हैं। भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018)


7वाँ भारत-जर्मनी अंतर-सरकारी परामर्श

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-जर्मनी अंतर-सरकारी परामर्श, सतत् विकास लक्ष्य, भारत-जर्मन डिजिटल वार्ता, उभरती डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ, डिजिटल कृषि, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS), राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR), न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड, नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य, UNFCCC COP21 पेरिस, भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौता, निवेश संरक्षण समझौता, P-75I पनडुब्बी 

मेन्स के लिये:

बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत-जर्मनी संबंधों का महत्त्व।  

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री और जर्मनी के संघीय चांसलर ने नई दिल्ली में भारत-जर्मनी अंतर-सरकारी परामर्श (7वें IGC) के 7वें दौर की सह-अध्यक्षता की।

  • "नवाचार, गतिशीलता और स्थिरता के साथ मिलकर आगे बढ़ना" के आदर्श वाक्य के तहत, इसने प्रौद्योगिकी, नवाचार, जलवायु कार्रवाई तथा रणनीतिक सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया।
  • इससे पहले, जर्मनी ने भारत को एक विशेष दर्जा दिया है, जिससे सैन्य खरीद के लिये त्वरित मंजूरी मिल सकेगी।

भारत-जर्मनी बैठक के मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • जर्मनी का "भारत पर ध्यान" दस्तावेज़: इसमें एक खाका प्रस्तुत किया गया है कि किस प्रकार भारत और जर्मनी सहयोग करके "वैश्विक कल्याण के लिये एक शक्ति" बन सकते हैं, जैसे नवाचार तथा  प्रौद्योगिकी नेतृत्व, सतत् विकास लक्ष्य आदि पर साझेदारी।
  • कुशल भारतीयों के लिये वीज़ा: जर्मनी ने कुशल भारतीय कार्यबल के लिये वीज़ा की संख्या 20,000 से बढ़ाकर 90,000 करने का निर्णय लिया है। 
  • डिजिटल और प्रौद्योगिकी साझेदारी: दोनों देशों ने नवाचार को बढ़ावा देने के लिए इंटरनेट शासन, तकनीकी विनियमन, अर्थव्यवस्था के डिजिटल परिवर्तन, उभरती डिजिटल प्रौद्योगिकियों, डिजिटल कृषि, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) के लिये एक कार्य योजना को अंतिम रूप दिया।
  • महत्त्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियाँ: दोनों ने महत्त्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियों, नवाचार और कौशल विकास में नवाचार एवं प्रौद्योगिकी साझेदारी रोडमैप में रेखांकित प्राथमिकताओं की पुष्टि की। 
  • आपदा न्यूनीकरण: आपदा न्यूनीकरण और संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान को बढ़ाने के लिये भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) तथा राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR) के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।
  • अंतरिक्ष सहयोग: न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड तथा जर्मनी स्थित रिमोट सेंसिंग कंपनी (GAF AG ) ने ओशनसैट - 3 और रीसैट - 1A (RISAT- 1A) उपग्रहों से डेटा के प्रसंस्करण के लिये जर्मनी के न्यूस्ट्रेलिट्ज़ में अंतर्राष्ट्रीय ग्राउंड स्टेशन को अपग्रेड करने पर सहमति व्यक्त की।
  • हरित एवं सतत् भविष्य: दोनों पक्षों ने नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) पर संयुक्त रूप से कार्य करने की आवश्यकता पर बल दिया, जिसमें विकासशील देशों के लिये प्रति वर्ष कम से कम 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की व्यवस्था करने का आह्वान किया गया है।
    • दोनों पक्षों ने भारत-जर्मनी ग्रीन हाइड्रोजन रोडमैप का उद्घाटन किया, जो भारत में सतत् शहरी गतिशीलता को बढ़ावा देता है।
  • भारत-यूरोपीय संघ सामरिक साझेदारी: दोनों ने भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद का समर्थन किया तथा भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे सहित कनेक्टिविटी पहलों को आगे बढ़ाने के प्रयासों का समन्वय किया।
  • ट्रैक 1.5 संवाद: अभिकर्त्ताओं ने आपसी दृष्टिकोण की गहन समझ को बढ़ावा देने के लिये थिंक टैंकों और विशेषज्ञों को शामिल करते हुए भारत-जर्मनी ट्रैक 1.5 संवाद के महत्त्व पर बल दिया।
  • त्रिकोणीय विकास सहयोग (TDC): अभिकर्त्ताओं ने कैमरून, घाना और मलावी में सफल पायलट परियोजनाओं को आगे बढ़ाने तथा इथियोपिया व मेडागास्कर में कदन्न (Millets) से संबंधित नई परियोजनाएँ शुरू करने पर सहमति व्यक्त की।
    • TDC में विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिये दो या दो से अधिक विकासशील देशों के बीच साझेदारी शामिल होती है, जिसे विकसित देश(देशों)/या बहुपक्षीय संगठन(संगठनों) द्वारा समर्थन प्राप्त होता है।
  • पारस्परिक कानूनी सहायता संधि (MLAT): भारत और जर्मनी ने आपराधिक मामलों में MLAT पर हस्ताक्षर किये, जिसका उद्देश्य कानूनी मुद्दों पर सहयोग को बढ़ावा देना है, जिससे भारत तथा जर्मनी की सुरक्षा चुनौतियों का संयुक्त रूप से समाधान करने की क्षमता में वृद्धि होगी।

Germany

जर्मनी और भारत एक दूसरे के लिये क्यों महत्त्वपूर्ण हैं? 

  • व्यापारिक संबंध: जर्मनी यूरोप में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
    • वित्त वर्ष 2020-21 में द्विपक्षीय व्यापार 21.76 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा, जो मज़बूत व्यापार संबंधों को दर्शाता है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): अप्रैल 2000 से सितंबर 2021 तक 13 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक के निवेश के साथ जर्मनी भारत के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का सातवाँ सबसे बड़ा स्रोत है।
    • चूँकि जर्मनी चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम करना चाहता है, इसलिये भारत एशिया में व्यापार संबंधों में विविधता लाने के लिये एक प्रमुख साझेदार के रूप में सामने आ रहा है।
  • नवीन सहयोग: जर्मन निवेश में ऑटोमोटिव प्रौद्योगिकी और विनिर्माण संयंत्र शामिल हैं, जो कनेक्टेड एवं स्वायत्त प्रौद्योगिकियों जैसे उन्नत क्षेत्रों में सहयोग पर ज़ोर देते हैं।
    • ऐसी साझेदारियाँ  भारत में नवाचार और कौशल विकास को बढ़ावा देती हैं।
  • बाज़ार में प्रवेश में सहायता: "मेक इन इंडिया मिटेलस्टैंड" कार्यक्रम जैसी पहल जर्मन SME को भारतीय बाज़ार में प्रवेश करने में सहायता करती है, जिससे आपसी विकास को बढ़ावा मिलता है।
  • वित्तीय सहायता: मुख्य रूप से रियायती ऋण और तकनीकी सहायता के माध्यम से जर्मनी की सहायता, भारत की बुनियादी अवसरंचना एवं सतत् विकास प्रयासों को मज़बूत करती है।
  • मुक्त व्यापार समझौते: दोनों देश भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते और निवेश संरक्षण समझौते की दिशा में आगे बढ़ने के लिये प्रतिबद्ध हैं, जिससे व्यापार एवं निवेश प्रवाह में और वृद्धि हो सकती है।
  • जर्मनी में भारतीय निवेश: जर्मनी में 213 से अधिक भारतीय कंपनियाँ मुख्य रूप से आईटी और ऑटोमोटिव क्षेत्रों में कार्य करती हैं, जो बढ़ती द्विपक्षीय आर्थिक निर्भरता को दर्शाता है।
  • साझा सुरक्षा चिंताएँ: दोनों देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन द्वारा उत्पन्न खतरों को पहचानते हैं।
    • भारत सक्रिय रूप से हथियारों के आयात पर अपनी निर्भरता कम करने का प्रयास कर रहा है, जिसमें जर्मनी हथियारों के सह-उत्पादन और रक्षा में नवाचार के माध्यम से सहायता कर रहा है, जैसे कि P-75I पनडुब्बी का प्रस्तावित संयुक्त विकास।
  • जलवायु पर संयुक्त पहल: साझेदारी की विशेषता जलवायु परिवर्तन पर सहयोग है, विशेष रूप से हरित और सतत विकास के एजेंडे के माध्यम से, जिसके परिणामस्वरूप हरित हाइड्रोजन और ऊर्जा सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने वाले कई समझौते हुए हैं। 
  • जन संपर्क: युवा शिक्षित भारतीय रोज़गार की तलाश कर रहे हैं, जबकि जर्मनी में कुशल श्रमिकों की उच्च मांग है, जिससे दोनों देशों और उनके युवाओं के लिये संभावित 'जीत-जीत' परिदृश्य उत्पन्न हो रहा है।

भारत-जर्मनी संबंधों में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • साझेदारी में गहराई का अभाव: यद्यपि भारत और जर्मनी वर्ष 2000 से ही सामरिक साझेदार रहे हैं, लेकिन इनके बीच संबंधों को अक्सर निराशाजनक बताया जाता रहा है।
    • भारत-फ्राँस संबंधों में गर्मजोशी की तुलना में भारत और जर्मनी की साझेदारी ने जुड़ाव एवं सहयोग का समान स्तर हासिल नहीं किया है।
    • भारत और जर्मनी के बीच एक स्वतंत्र द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) की अनुपस्थिति निवेशकों के विश्वास और सुरक्षा को सीमित करती है।
      • इससे गहन आर्थिक सहभागिता में बाधा उत्पन्न होती है, क्योंकि जर्मनी निवेश से संबंधित चिंताओं के समाधान के लिये भारत के साथ यूरोपीय संघ के BTIA पर निर्भर है।
  • लोकतांत्रिक मूल्यों पर कटाक्ष: भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के विषय में चिंता व्यक्त करने की जर्मनी की प्रवृत्ति ने संघर्ष उत्पन्न कर दिया है।
    • भारत में राजनीतिक गिरफ्तारियों पर जर्मनी की टिप्पणी जैसी घटनाओं से नई दिल्ली में नाराजगी उत्पन्न हुई।
  • रूस के प्रति मतभेद: यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा करने में भारत की अनिच्छा के कारण जर्मनी में निराशा उत्पन्न हुई है, जिसके परिणामस्वरूप एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में जर्मनी के प्रति भारत की धारणा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
  • सीमित रक्षा सहयोग: भारत के साथ रक्षा सहयोग में शामिल होने के लिये जर्मनी की ऐतिहासिक अनिच्छा, गहन सहयोग में बाधा रही है।  
  • सार्वजनिक सहभागिता और जागरूकता: जर्मनी में भारत की तुलना में चीन के प्रति अधिक रुचि रही है, जो वित्त पोषण आवंटन और मीडिया कवरेज में परिलक्षित होती है।
  • पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण: ग्लोबल साउथ के संबंध में नकारात्मक भाषा वैश्विक मंच पर  भारत की स्थिति और योगदान के प्रति सराहना की कमी को दर्शाती है।
    • इस तरह के दृष्टिकोण आपसी सम्मान और सहयोग को कमज़ोर कर सकते हैं।

आगे की राह 

  • लोकतांत्रिक सहभागिता को बढ़ावा देना: सतत् राजनीतिक संवाद को बढ़ावा देने के लिये नियमित उच्च-स्तरीय बैठकों का कार्यक्रम स्थापित करना।
    • ट्रैक 1.5 संवाद का विस्तार करके इसमें व्यापारिक अभिकर्त्ताओं, शिक्षाविदों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों सहित अधिक हितधारकों को शामिल करना।
  • रक्षा संबंधों को बढ़ावा देना: सह-उत्पादन समझौतों, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और संयुक्त सैन्य अभ्यासों सहित रक्षा सहयोग के लिये एक संरचित ढाँचा विकसित करना।
  • संप्रभुता का सम्मान: बाहरी आलोचना के कारण उत्पन्न टकराव को रोकने के लिये भारत के आंतरिक मामलों में उसकी संप्रभुता को स्वीकार करना और उसका सम्मान करना।
    • जर्मनी चर्चाओं में अधिक सहयोगात्मक रुख अपना सकता है तथा भारत के संदर्भ को समझते हुए उसकी चिंताओं का समाधान कर सकता है।
  • वैश्विक सहयोग: स्वास्थ्य, सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों पर मिलकर कार्य करना तथा ज़िम्मेदार वैश्विक शक्तियों के रूप में अपनी भूमिका को सुदृढ़ करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: विकसित वैश्विक भू-राजनीति के संदर्भ में भारत और जर्मनी के बीच रणनीतिक साझेदारी का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न - व्यापक-आधारयुक्त व्यापार और निवेश करार (ब्रॉड-बेस्ड ट्रेड ऐंड इन्वेस्टमेंट ऐग्रीमेंट/BTIA)' कभी-कभी समाचारों में भारत और निम्नलिखित में से किस एक के बीच बातचीत के संदर्भ में दिखाई पड़ता है? (2017)

(a) यूरोपीय संघ
(b) खाड़ी सहयोग परिषद
(c) आर्थिक सहयोग और विकास संगठन
(d) शंघाई सहयोग संगठन

उत्तर: (a)


मेन्स

प्रश्न: "यूरोपीय प्रतिस्पर्धा की दुर्घटनाओं द्वारा अफ्रीका को कृत्रिम रूप से निर्मित छोटे-छोटे राज्यों में काट दिया गया।" विश्लेषण कीजिये। (2013)

प्रश्न: किस सीमा तक जर्मनी को दो विश्व युद्धों का कारण बनने का ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है? समालोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2015)


सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का आवंटन

परिचय:

सैटेलाइट स्पेक्ट्रम आवंटन, प्रशासनिक आवंटन बनाम नीलामी, अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU), दूरसंचार अधिनियम, 2023

मेन्स के लिये:

भारत में स्पेक्ट्रम प्रबंधन, स्पेक्ट्रम आवंटन के आर्थिक निहितार्थ, नियामक ढाँचा, विभिन्न देशों में स्पेक्ट्रम से संबंधित आवंटन पद्धतियाँ।

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारत ने उद्योग जगत के दिग्गजों की प्रतिक्रिया और स्पेक्ट्रम संबंधी प्रबंधन पर नए सिरे से छिड़ी बहस के बीच,  सैटेलाइट स्पेक्ट्रम आवंटन नीलामी के माध्यम से नहीं, बल्कि “प्रशासनिक रूप से” किया जाएगा

सैटेलाइट स्पेक्ट्रम क्या है? 

  • परिचय: 
    • सैटेलाइट स्पेक्ट्रम से तात्पर्य उपग्रहों (सैटेलाइट) के माध्यम से संचार के लिये प्रयुक्त विशिष्ट आवृत्ति बैंड से है।
      • ये रेडियो फ्रीक्वेंसियाँ भू-स्टेशनों से कक्षा में स्थित उपग्रहों तक और इसके विपरीत संकेतों को प्रेषित करने के लिये आवश्यक हैं, जिससे टेलीविजन प्रसारण, इंटरनेट एक्सेस एवं मोबाइल संचार जैसी सेवाओं को सुविधाजनक बनाया जा सके।
  • नियामक निरीक्षण: 
    • सैटेलाइट स्पेक्ट्रम मोबाइल संचार के लिये प्रयुक्त स्थलीय स्पेक्ट्रम से भिन्न होता है, क्योंकि यह राष्ट्रीय सीमाओं के बिना संचालित होता है। 
  • सैटेलाइट के महत्त्व: 
    • विशेष रूप से ब्रॉडबैंड और आपातकालीन संचार जैसे क्षेत्रों में उपग्रह सेवाओं की बढ़ती मांग के साथ, स्पेक्ट्रम आवंटन महत्त्वपूर्ण हो जाता है। 
      • सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का कुशल प्रबंधन विश्वसनीय संचार, विशेष रूप से दूरदराज या कम सुविधा वाले क्षेत्रों में, सुनिश्चित करता है।
  • सैटेलाइट फ्रीक्वेंसी (आवृत्ति) बैंड: 
    • एल-बैंड (1-2 गीगाहर्ट्ज): GPS और मोबाइल उपग्रह सेवाओं के लिये उपयोग किया जाता है।
    • एस-बैंड (2-4 गीगाहर्ट्ज): मौसम रडार, हवाई यातायात नियंत्रण और मोबाइल उपग्रह अनुप्रयोगों के लिये उपयोग किया जाता है।
    • सी-बैंड (4-8 गीगाहर्ट्ज): आमतौर पर उपग्रह टीवी प्रसारण और डेटा संचार के लिये उपयोग किया जाता है।
    • एक्स-बैंड (8-12 गीगाहर्ट्ज): मुख्य रूप से रडार और संचार के लिये सैन्य अनुप्रयोगों में उपयोग किया जाता है।
    • कू-बैंड (12-18 गीगाहर्ट्ज) और का-बैंड (26-40 गीगाहर्ट्ज): उपग्रह टेलीविजन, इंटरनेट सेवाओं और  'हाई-थ्रूपुट' डेटा संचरण के लिये उपयोग किया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU)

  • यह सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के लिये संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी है।
  • संचार नेटवर्क में अंतर्राष्ट्रीय संपर्क को सक्षम करने हेतु वर्ष 1865 में स्थापित अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) का मुख्यालय ज़िनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है। 
  • यह वैश्विक रेडियो स्पेक्ट्रम और उपग्रह कक्षाओं का आवंटन करता है, तकनीकी मानकों को निर्धारित कर नेटवर्क और प्रौद्योगिकियों को निर्बाध रूप से आपस में जोड़ना सुनिश्चित करता है, तथा दुनिया भर में वंचित समुदायों के लिये ICT तक पहुँच में सुधार करने का प्रयास करता है। 

भारत में उपग्रह संचार (SatCom) क्षेत्र की स्थिति

  • मार्केट के खरीददार और बेचने वाले: 
    • सैटकॉम क्षेत्र में निवेश के मामले में भारत विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है।
    • भारतीय सैटकॉम क्षेत्र का वार्षिक मूल्य लगभग 2.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जिसके वर्ष 2028 तक 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है।
    • भारत में लगभग 290.4 मिलियन घरों तक ब्रॉडबैंड सेवाएँ उपलब्ध नहीं हैं, जिससे सैटेलाइट ऑपरेटरों के लिये काफी अवसर मिलता है।
      • 5G/6G सेवाओं और उपग्रह संचार (सैटकॉम) में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के विकास और अपनाने पर भारत के फोकस ने इस क्षेत्र की प्रगति को और तेज़ कर दिया है। 
  • अनुप्रयोग: 
    • सैटकॉम सेवाओं से दूरसंचार, प्रसारण, रेल और समुद्री संचार सहित प्रमुख क्षेत्रों को सहायता मिलती है।
    • सैटकॉम सेवाओं के तहत 125,000 वेरी स्मॉल अपर्चर टर्मिनल (VSAT) सक्षम एटीएम के माध्यम से प्रतिवर्ष 5 बिलियन एटीएम लेनदेन को समर्थन मिलता है।

भारत में स्पेक्ट्रम आवंटन की पद्धतियाँ क्या हैं?

  • नीलामी पद्धति: प्रतिस्पर्द्धी बोली प्रक्रिया के तहत सरकार सबसे अधिक बोली लगाने वाले को स्पेक्ट्रम लाइसेंस बेचती है। 
    • यह दूरसंचार अधिनियम, 2023 (जिसके तहत अधिकांश स्पेक्ट्रम आवंटन के लिये नीलामी को अनिवार्य बनाया गया है) द्वारा शासित है।
    • लाभ: 
      • इससे कुशल संसाधन आवंटन को बढ़ावा मिलता है, पारदर्शिता सुनिश्चित होती है तथा सरकार के लिये राजस्व उत्पन्न होता है।
      • इसका उपयोग मुख्य रूप से स्थलीय मोबाइल सेवाओं के लिये किया जाता है, जहाँ कई संस्थाएँ पहुँच के लिये प्रतिस्पर्द्धा करती हैं। 
  • प्रशासनिक आवंटन: सरकार बोली प्रक्रिया के बिना सीधे स्पेक्ट्रम लाइसेंस आवंटित करती है। 
    • दूरसंचार अधिनियम, 2023 की प्रथम अनुसूची की कुछ प्रविष्टियों के तहत प्रशासनिक आवंटन की अनुमति (विशेष रूप से उपग्रह स्पेक्ट्रम के लिये) मिलती है।
    • लाभ: 
      • इससे लचीलापन मिलने के साथ यह कम प्रतिस्पर्द्धा वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है तथा सरकारी सेवाओं तक आसान पहुँच सुनिश्चित होती है।
      • इसका उपयोग अक्सर उभरते उद्योगों, सार्वजनिक सेवाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये किया जाता है।

नीलामी और प्रशासनिक आवंटन के बीच अंतर:

नीलामी विधि 

प्रशासनिक आवंटन 

  • दूरसंचार अधिनियम, 2023 द्वारा अनिवार्य।
  • विशिष्ट क्षेत्रों के लिये दूरसंचार अधिनियम, 2023 के प्रावधानों द्वारा शासित।
  • प्रतिस्पर्द्धी नीलामी ; लाइसेंस उच्चतम बोली लगाने वाले को बेचे जाएंगे।
  • सरकार द्वारा बिना बोली के प्रत्यक्ष असाइनमेंट। 
  • उच्च पारदर्शिता; पक्षपात की संभावना कम हो जाती है
  • कम पारदर्शिता; कम निगरानी की संभावना।
  • यह सरकार के लिये राजस्व का प्रमुख स्रोत है। 
  • इसमें आमतौर पर प्रशासनिक लागतों को कवर करने वाली नाममात्र की फीस शामिल होती है।
  • स्पेक्ट्रम उन लोगों को आवंटित होता है जो इसे सबसे अधिक महत्त्व देते हैं; प्रतिस्पर्द्धी बाज़ारों में कुशल।
  • संसाधन आवंटन में अधिक लचीला लेकिन कम कुशल।
  • आमतौर पर वाणिज्यिक दूरसंचार के लिये उपयोग किया जाता है।
  • यह राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक सेवाओं और विशेष क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है।

भारत में स्पेक्ट्रम आवंटन विवाद

  • प्रशासनिक कार्यों में बदलाव: भारत के स्पेक्ट्रम आवंटन को जाँच का सामना करना पड़ा है, खासकर प्रशासनिक प्रक्रियाओं में बदलाव के कारण।
  • 2G स्पेक्ट्रम घोटाला: इस बड़े घोटाले में 2G लाइसेंसों का पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर आवंटन किया गया, जिसके परिणामस्वरूप:
    • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय (2012) में 2G घोटाले के कारण नीलामी को पसंदीदा आवंटन पद्धति के रूप में अनिवार्य किया गया।
    • वित्तीय घाटा: सरकारी खजाने को 30,984 करोड़ रुपए का कथित नुकसान।
      • अनुमानित हानि: 122 2G लाइसेंसों से 1.76 ट्रिलियन रुपए की हानि का अनुमान है।

भारत ने प्रशासनिक आवंटन के लिये भारत को क्यों चुना? 

  • गैर-विशिष्ट उपयोग: स्थलीय स्पेक्ट्रम के विपरीत, उपग्रह स्पेक्ट्रम को कई ऑपरेटरों के बीच साझा किया जा सकता है, जिससे विविध उपयोगकर्त्ताओं के लिये प्रशासनिक आवंटन व्यावहारिक हो जाता है।
  •  सुदूर क्षेत्रों तक पहुँच: प्रशासनिक आवंटन का उद्देश्य सुदूर और कम सुविधा वाले क्षेत्रों में कनेक्टिविटी को बढ़ाना है, जिससे उपग्रह सेवाओं तक पहुँच आसान हो सके।
  • लचीलापन: यह विधि सरकार को लंबी नीलामी प्रक्रिया के बिना कंपनियों को शीघ्रता से स्पेक्ट्रम आवंटित करने की अनुमति देती है, जिससे सेवाओं की तीव्र तैनाती को बढ़ावा मिलता है।
    • नीलामी को अव्यावहारिक पाते हुए अमेरिका और ब्राज़ील ने पुनः प्रशासनिक आवंटन की ओर कदम बढ़ा दिये।
  • उभरते उद्योगों को प्रोत्साहित करना: यह उपग्रह संचार जैसी नई प्रौद्योगिकियों और सेवाओं के विकास का समर्थन करता है, जिन्हें नीलामी द्वारा पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया जा सकता है।
  • नियामक संरेखण: ITU के हस्ताक्षरकर्त्ता के रूप में, भारत ने उपग्रह स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन के वैश्विक मानक को अपनाने का विकल्प चुना।
    • दूरसंचार अधिनियम, 2023 ने प्रशासनिक आवंटन की सूची में उपग्रह संचार के लिये स्पेक्ट्रम को भी जोड़ा है।

दूरसंचार अधिनियम, 2023 की मुख्य विशेषताएँ

  • परिभाषाएँ: यह दूरसंचार अधिनियम, अधिनियम के कार्यान्वयन से संबंधित विभिन्न शब्दावलियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है, जिससे अनिश्चितताएँ कम होती हैं
    • इंटरनेट-आधारित मैसेजिंग सेवा प्रदाताओं जैसे कि व्हाट्सएप, सिग्नल और टेलीग्राम के माध्यम से भेजे गए संदेश तथा साथ ही एन्क्रिप्टेड संदेश (ओवर-द-टॉप (OTT) सेवाओं को छोड़कर) अधिनियम के दायरे में आते हैं।
  • राइट ऑफ वे (RoW) फ्रेमवर्क: यह अधिनियम सार्वजनिक और निजी दोनों प्रकार की संपत्तियों पर प्रभावी RoW ढाँचा प्रदान करता है। 
    • सरकारी एजेंसियों, स्थानीय निकायों और हवाई अड्डों, बंदरगाहों एवं राजमार्गों जैसी सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) परियोजनाओं को शामिल करने के लिये सार्वजनिक संस्थाओं की परिभाषा को व्यापक बनाया गया है।
    • सार्वजनिक संस्थाओं को विशेष परिस्थितियों को छोड़कर मार्ग का अधिकार प्रदान करने के लिये बाध्य किया जाएगा।
  • कॉमन डक्ट्स: पीएम गति शक्ति के दृष्टिकोण के अनुरूप, इस कानून में केंद्र सरकार को कॉमन डक्ट्स और केबल गलियारों को स्थापित करने का प्रावधान है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा उपाय: अधिनियम की धारा 20 (2) सरकार को सार्वजनिक सुरक्षा के हित में और सार्वजनिक आपातकाल के दौरान किसी भी संदेश के प्रसारण को रोकने की अनुमति देती है।
    • इससे उन सरकारी संस्थाओं की संख्या में काफी वृद्धि हो जाएगी जो संदेशों को रोकने में सक्षम हो सकती हैं। 
  • डिजिटल भारत निधि: नए अधिनियम के साथ, सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि (USOF) डिजिटल भारत निधि बन जाएगी जिसका उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार सेवाओं की स्थापना का समर्थन करने के बजाय अनुसंधान, विकास और पायलट परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये किया जा सकता है।
    • यह अधिनियम, नवीन प्रौद्योगिकी के नवप्रवर्तन और प्रयोग को सुगम बनाने के लिये विनियामक सैंडबॉक्स हेतु कानूनी ढाँचा भी प्रदान करता है।
  • उपयोगकर्त्ताओं की सुरक्षा: उपयोगकर्त्ता की सहमति के बिना भेजे गए वाणिज्यिक संदेशों के कारण संबंधित ऑपरेटर पर जुर्माना लगाया जा सकता है और उसे सेवाएँ प्रदान करने से प्रतिबंधित किया जा सकता है।

निष्कर्ष 

सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के लिये प्रशासनिक आवंटन को अपनाने का भारत का निर्णय वैश्विक प्रथाओं के अनुरूप है, जो तेज़ी से विकसित हो रहे सैटकॉम क्षेत्र में दक्षता और पहुँच को बढ़ाता है। सैटकॉम बाज़ार में उल्लेखनीय वृद्धि की आशा के साथ, प्रशासनिक आवंटन का उद्देश्य वंचित क्षेत्रों में कनेक्टिविटी को सुविधाजनक बनाना और डिजिटल समावेशन को बढ़ावा देना है। यह कदम पिछले स्पेक्ट्रम आवंटन विवादों, विशेष रूप से 2G घोटाले से सीखे गए सबक को दर्शाता है, जो नियामक ढाँचे में पारदर्शिता और जवाबदेही पर ज़ोर देता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न 

प्रश्न: पिछले विवादों और भविष्य की बाज़ार संभावनाओं के मद्देनजर उपग्रह स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन में भारत के बदलाव के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये।


भारत के ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्र के लिये खतरा

प्रिलिम्स के लिये:

धन शोधन, चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR), PMLA 2002, के.वाई.सी. दिशा-निर्देश, वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (FATF), सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021, रियल मनी गेमिंग (RMG) ऑपरेटर, केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017, वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (VPN), जियो-ब्लॉकर्स 

मेन्स के लिये:

ऑनलाइन गेमिंग के माध्यम से धन शोधन, गेमिंग क्षेत्र के लिये चुनौतियाँ, धन शोधन की रोकथाम हेतु  सरकार की पहल

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

डिजिटल इंडिया फाउंडेशन (DIF) की एक रिपोर्ट के अनुसार, धन शोधन भारत के ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्र की अखंडता और दीर्घकालिक सफलता के लिये एक बड़ा खतरा है।

नोट: डिजिटल इंडिया फाउंडेशन (DIF) एक गैर-लाभकारी थिंक टैंक है जिसका लक्ष्य डिजिटल समावेशन और अंगीकरण को बढ़ावा देना तथा विकासात्मक प्रक्रिया में इंटरनेट और संबंधित प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना है।

रिपोर्ट से संबंधित मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • अंतर्राष्ट्रीय ऑनलाइन द्युत के खतरे: "कॉम्बैटिंग मनी लॉन्ड्रिंग इन ऑनलाइन गेमिंग इकोसिस्टम" शीर्षक वाली रिपोर्ट में साइबर अपराध में धन शोधन और आतंकवाद के वित्तपोषण के लिये अंतर्राष्ट्रीय ऑनलाइन बेटिंग साइटों के उपयोग की बढ़ती प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला गया है।
  • क्षेत्रीय वृद्धि: भारत के ऑनलाइन गेमिंग उद्योग में वित्त वर्ष 20 से वित्त वर्ष 23 में 28% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि हुई है।
    • पाँच वर्षों में इस क्षेत्र का राजस्व 7.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है।
  • रोज़गार सृजन: भारत में 568 मिलियन गेमर्स के साथ, क्लाउड सेवाओं, साइबर सुरक्षा और फिनटेक सहित विभिन्न उद्योगों में रोज़गार के अनेक अवसर हैं।
    • 400 से अधिक स्टार्ट-अप और 100 मिलियन दैनिक ऑनलाइन गेमर्स के साथ यह क्षेत्र वर्ष 2025 तक 250,000 नौकरियाँ सृजित कर सकता है।

सुभेद्यता और जोखिम:

  • इस रिपोर्ट में ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्र में धन शोधन के लिये प्रयुक्त विभिन्न प्रक्रियाओं की पहचान की गई है:
    • अवैध ऑपरेटर: कई प्लेटफॉर्म प्रतिबंधों से बचने के लिये मिरर साइट्स और वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (VPN) का उपयोग करते हैं।
    • इन गेम करेंसी और परिसंपत्तियाँ: इनका प्रयोग प्रायः विधिविरुद्ध क्रियाकलापों के लिये किया जाता है।
    • क्रिप्टोकरेंसी: इससे अनामिता बनी रहती है और सीमा पार धन शोधन सुविधाजनक होता है।
    • म्यूल अकाउंट: इन खातों का उपयोग अवैध धन के स्रोत को छिपाते हुए लेनदेन को सुविधाजनक बनाने हेतु किया जाता है।
    • स्मर्फिंग और मनी डंपिंग: इनमें वे प्रक्रियाएँ शामिल हैं जिनमें संसूचन से बचने के लिये छोटे लेनदेन किये जाते हैं।

ऑनलाइन गेमिंग क्या है?

  • परिचय:
    • ऑनलाइन गेमिंग में इंटरनेट पर दूसरों के साथ वीडियो गेम खेलना शामिल है। खिलाड़ी कंप्यूटर, गेमिंग कंसोल या स्मार्टफोन के माध्यम से जुड़ सकते हैं।
    • यह खिलाड़ियों के बीच वास्तविक समय की बातचीत और प्रतिस्पर्धा को सक्षम बनाता है, चाहे वे किसी भी स्थान पर हों।
  • वर्गीकरण:
    • कौशल-आधारित खेल: ये खेल भारत में तब तक वैध हैं जब तक वे मौके के बजाय कौशल पर ज़ोर देते हैं। उदाहरण के लिये गेम 24X7, ड्रीम11, मोबाइल प्रीमियर लीग (MPL)
    • भाग्य-आधारित खेल: ये खेल अवैध माने जाते हैं यदि परिणाम मुख्य रूप से कौशल के बजाय मौके से निर्धारित होता है। उदाहरण के लिये, रूलेट जहाँ खिलाड़ी मुख्य रूप से मौद्रिक पुरस्कार की संभावना के कारण आकर्षित होते हैं।
  • वर्तमान परिदृश्य:
    • युवा जनसांख्यिकी: भारत में 600 मिलियन से अधिक लोग 35 वर्ष से कम आयु के हैं, जो जनसंख्या का 45% है और गेमिंग उद्योग के विकास को बढ़ावा दे रहा है।
    • स्मार्टफोन का उपयोग: स्मार्टफोन का उपयोग 75% तक पहुँच गया है, जिससे गेमिंग तक पहुँच बढ़ी है और बढ़ती भागीदारी में योगदान मिला है।
      • कुल गेमिंग राजस्व में मोबाइल गेमिंग का योगदान 90% है, जो मुख्य रूप से फ्री-टू-प्ले गेम्स और इन-ऐप खरीदारी के माध्यम से प्राप्त होता है।
    • ई-स्पोर्ट्स में वृद्धि: सरकारी समर्थन और पेशेवर गेमर्स की बढ़ती संख्या के कारण भारत में ई-स्पोर्ट्स दर्शकों की संख्या 80 मिलियन से अधिक हो गई है।

भारत में ऑनलाइन गेमिंग और द्यूत की वैधता क्या है?

  • कानूनी क्षेत्राधिकार: राज्य विधायकों को भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची II (राज्य सूची) की प्रविष्टि संख्या 34 के अनुसार, गेमिंग, सट्टेबाजी और द्यूत से संबंधित कानून बनाने की विशेष शक्ति दी गई है।  
    • अधिकांश भारतीय राज्य 'कौशल-आधारित खेल' और 'भाग्य-आधारित खेल' के बीच कानून में अंतर के आधार पर गेमिंग को विनियमित करते हैं।
  • सार्वजनिक द्युत अधिनियम, 1867: वर्तमान में भारत में केवल एक केंद्रीय कानून है जो द्युत के सभी रूपों को नियंत्रित करता है। इसे सार्वजनिक द्युत अधिनियम, 1867 के रूप में जाना जाता है, जो एक पुराना कानून है और डिजिटल कैसीनो, ऑनलाइन गैंबलिंग/द्युत एवं गेमिंग की चुनौतियों से निपटने के लिये अपर्याप्त है।  
  • हाल ही में भारत के वित्त मंत्रालय ने ऑनलाइन मनी गेमिंग, कैसीनो और हॉर्स रेसिंग पर 28% वस्तु एवं सेवा कर (GST) लगाने की घोषणा की।
  • लॉटरी विनियमन अधिनियम 1998: भारत में लॉटरी को वैध माना जाता है। लॉटरी का आयोजन राज्य सरकार द्वारा किया जाना चाहिये और ‘ड्रा’ का स्थान उस विशेष राज्य में अवस्थित होना चाहिये।

धन शोधन

  • परिचय:
    • यह अवैध रूप से अर्जित धन के स्रोत को छिपाने के लिये व्यक्तियों और संगठनों द्वारा अपनाई गई एक जटिल विधि है, जिसमें कई लेन-देन के माध्यम से अवैध धन को वैध धन में परिवर्तित किया जाता है।
  • धन शोधन के तरीके:
    • स्ट्रक्चरिंग (स्मर्फिंग): नकदी की बड़ी रकम को बैंक जमा के लिये छोटी, कम ध्यान देने योग्य मात्रा में विभाजित करना।
    • व्यापार-आधारित शोधन: अवैध धन के स्रोत को छिपाते हुए, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मूल्य हस्तांतरण हेतु व्यापार लेन-देन का उपयोग करना।
    • शेल कंपनियाँ: बिना किसी वास्तविक गतिविधि के व्यवसाय स्थापित करना तथा वैध लेन-देन के माध्यम से अवैध धन का लेन-देन करना।
    • रियल एस्टेट: अवैध धन से संपत्ति अर्जित करना और उसे बेचकर उसके मूल्य को वैध संपत्ति में परिवर्तित करना।
  • भारत में धन शोधन को रोकने के लिये पहल: 

गेमिंग क्षेत्र के समक्ष कौन सी चुनौतियाँ हैं?

  • वित्तीय पारदर्शिता संबंधी मुद्दे: भारत के अवैध सट्टेबाजी बाज़ार में प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक जमा आकर्षित होती है, जिससे आसान परिसंपत्ति अंतरण के कारण वित्तीय पारदर्शिता के बारे में चिंताएँ पैदा होने से धन शोधन को बढ़ावा मिलता है।
  • साइबर सुरक्षा संबंधी खतरे: साइबर हमले के जोखिम से गेमिंग में उपयोगकर्त्ता की सुरक्षा और डेटा संरक्षण को खतरा उत्पन्न होता है। उपयोगकर्त्ता अवैध जुआ साइटों तक पहुँचने के लिये VPNs और जियो-ब्लॉकर्स का उपयोग करके प्रतिबंधों से बच जाते हैं।
  • इन-गेम परिसंपत्तियों का दुरुपयोग: इन-गेम परिसंपत्तियों और क्रिप्टोकरेंसी के संभावित दुरुपयोग से संबंधित जोखिम से इनका विनियमन जटिल हो सकता है।
  • अवैध ऑफशोर प्लेटफाॅर्मों का संचालन: अवैध ऑफशोर ऑनलाइन सट्टेबाजी साइटों का प्रचलन नियामक प्रयासों के समक्ष चुनौती बना हुआ है।
  • विनियमों का उल्लंघन: कई प्लेटफॉर्म पर मिरर साइट्स, अवैध ब्रांडिंग और भ्रामक वादों से मौजूदा नियमों को दरकिनार किये जाने के कारण मज़बूत निगरानी एवं प्रवर्तन की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है।

जोखिम-शमन के कदम क्या हो सकते हैं?

  • टास्कफोर्स की स्थापना: गेमिंग क्षेत्र के बेहतर विनियमन के लिये नीतिगत उपायों की सिफारिश करने हेतु विशेषज्ञों की एक समर्पित टास्कफोर्स गठित किया जाएगा।
  • अनिवार्य पंजीकरण: सभी ऑनलाइन और ऑफशोर रियल मनी गेमिंग (RMG) ऑपरेटरों को उत्तरदायी बनने के 30 दिनों के भीतर केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 के तहत पंजीकरण कराना आवश्यक है।
  • वाइटलिस्ट का निर्माण: वैध ऑनलाइन RMG ऑपरेटरों की वाइटलिस्ट प्रकाशित और नियमित रूप से अद्यतन करना, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भुगतान गेटवे, होस्टिंग प्रदाता और आईएसपी केवल इन ऑपरेटरों को ही सेवा प्रदान करें।
  • विज्ञापन संबंधी परामर्श: सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को परामर्श जारी करना चाहिये, जिसमें केवल वाइटलिस्ट में शामिल ऑनलाइन गेमिंग एप्लीकेशनों को ही विज्ञापन देने की अनुमति दी प्रदान की जाए।
  • वित्तीय संस्थाओं के साथ सहयोग: बैंकों और भुगतान सेवा प्रदाताओं के साथ मिलकर ज्ञात गैर-कानूनी गेमिंग ऑपरेटरों के साथ लेनदेन को रोकने के लिये प्रक्रियाएँ स्थापित करना।
  • सीमा पार सहयोग: अवैध ऑनलाइन जुए से निपटने में सहयोग बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और अन्य देशों के साथ बहुपक्षीय समझौते विकसित करने के प्रयासों का नेतृत्व करना।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय ऑनलाइन गेमिंग पारिस्थितिकी तंत्र में उन कमज़ोरियों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये जो धन शोधन को सक्षम बनाती हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार का/के "डिजिटल इंडिया" योजना का/के उद्देश्य है/हैं?  (2018) 

  1. भारत की अपनी इंटरनेट कंपनियों का गठन हुआ जैसा कि चीन ने किया।  
  2. एक नीतिगत ढाँचे की स्थापना जिससे बड़े आँकड़े एकत्रित करने वाली समुद्रपारीय बहुराष्ट्रीय कंपनियों को प्रोत्साहित किया जा सके कि वे हमारी राष्ट्रीय भौगोलिक सीमाओं के अंदर अपने बड़े डेटा केंद्रों की स्थापना करें।   
  3. हमारे अनेक गाँवों को इंटरनेट से जोड़ना तथा हमारे बहुत से विद्यालयों, सार्वजनिक स्थलों एवं प्रमुख पर्यटन केंद्रों में वाई-फाई (Wi-Fi) लाना। 

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (b) 


मुख्य:

प्रश्न: चर्चा कीजिये कि किस प्रकार उभरती प्रौद्योगिकियाँ और वैश्वीकरण मनी लॉन्ड्ऱिग में योगदान करते हैं। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर मनी लॉन्ड्ऱिग की समस्या से निपटने के लिये किये जाने वाले उपायों को विस्तार से समझाइये। (2021)