ग्लोबल नॉर्थ एंड साउथ के बीच सेतु के रूप में भारत
प्रिलिम्स के लिये:ग्लोबल साउथ, गुटनिरपेक्ष आंदोलन, समूह-77, अफ्रीकी संघ, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, मिशन लाइफ मेन्स के लिये:भारत की विदेश नीति और वैश्विक शासन में इसकी भूमिका, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में दक्षिण-दक्षिण सहयोग। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ग्लोबल साउथ (वैश्विक दक्षिण) की भागीदारी को बढ़ाना तथा समावेशी वैश्विक शासन सुधारों का नेतृत्व करने के लिये भारत की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला, जिसका उद्देश्य ग्लोबल नॉर्थ एंड साउथ के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करना है।
ग्लोबल नॉर्थ एंड साउथ के बीच सेतु के रूप में भारत कैसे उभर रहा है:
- ग्लोबल नॉर्थ-साउथ: कई विकासशील राष्ट्र ऋण संकट और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की प्रतिबंधात्मक शर्तों के कारण आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं।
- भारत, पश्चिमी या चीनी दृष्टिकोणों के विपरीत, एक सहयोगात्मक विकास मॉडल प्रस्तुत करता है, तथा इसका प्रस्तावित "वैश्विक विकास समझौता" एक वैकल्पिक, बिना शर्त विकास सहयोग ढाँचा प्रदान करता है।
- शीत युद्ध युग की कूटनीति के विपरीत, भारत पश्चिम (अमेरिका, यूरोप) के साथ संबंधों को गहरा कर रहा है, जबकि अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया की भागीदारी का विस्तार कर रहा है।
- भारत ग्लोबल साउथ के हितों के अनुरूप एक अधिक न्यायसंगत वैश्विक आर्थिक प्रणाली की समर्थन करता है।
- भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) सुधार की समर्थन करता है तथा तर्क देता है कि विकासशील देशों को वैश्विक निर्णय प्रक्रिया में अधिक प्रतिनिधित्व मिलना चाहिये।
- भारत ग्लोबल साउथ देशों के लिये वित्तपोषण को अधिक सुलभ बनाने के लिये IMF और विश्व बैंक के सुधारों का समर्थन करता है।
- ग्लोबल साउथ में भारत की प्रारंभिक भूमिका: भारत ने विकासशील देशों के लिये आत्मनिर्णय को बढ़ावा देने हेतु गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इसने वर्ष 1964 में विकासशील देशों को संयुक्त राष्ट्र में एकजुट करने के लिये समूह 77 (G-77) के गठन में मदद की।
- वर्ष 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन में भारत ने जलवायु न्याय का समर्थन किया, जिसके परिणामस्वरूप साझा किंतु विभेदित उत्तरदायित्व (CBDR) का सिद्धांत सामने आया।
- विदेश नीति: गुटनिरपेक्ष आंदोलन के विपरीत, भारत अब निष्क्रिय पर्यवेक्षक नहीं है, बल्कि वैश्विक शासन को नया स्वरूप देने में सक्रिय भागीदार है।
- भारत की अध्यक्षता में G-20 (2023) में अफ्रीकी संघ को शामिल करना इसकी कूटनीतिक क्षमता को प्रदर्शित करता है।
- भारत के वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन ने विकासशील देशों को सामूहिक रूप से सुधारों के लिये प्रयास करने हेतु एक मंच प्रदान किया है।
- भारत विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) संधि जैसी पहलों के माध्यम से पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण का समर्थन करता है तथा G-20 जैसे मंचों में ग्लोबल साउथ का समर्थन करता है।
- महामारी के दौरान लाखों वैक्सीन खुराक उपलब्ध कराने वाली भारत की वैक्सीन मैत्री पहल, विकासशील देशों के कल्याण के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
- भारत ने हानि एवं क्षति कोष की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे कमज़ोर देशों के लिये जलवायु वित्तपोषण सुनिश्चित हुआ।
- विकासशील देशों में स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) की सह-स्थापना की।
- सामरिक स्वायत्तता: भारत वैश्विक मुद्दों पर स्वतंत्र रहता है, जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध, दक्षिण-दक्षिण संबंधों को मज़बूत करता है।
- भारत पूरी तरह से पश्चिम विरोधी नहीं है, बल्कि वह किसी भी गुट से जुड़े बिना विकसित और विकासशील दोनों देशों के साथ संबंध स्थापित कर रहा है।
- चीन का मुकाबला: चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) ने कई ग्लोबल साउथ देशों को ऋण संकट में डाल दिया है।
- भारत स्वयं को एक वैकल्पिक विकास साझेदार के रूप में स्थापित तथा ऋण-चालित अवसंरचना परियोजनाओं के बजाय पारदर्शी, सतत् सहयोग पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- भारत क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के साथ मिलकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के समुद्री विस्तार का मुकाबला कर रहा है।
ग्लोबल साउथ, ग्लोबल नॉर्थ क्या है?
और पढ़ें: ग्लोबल साउथ, ग्लोबल नॉर्थ
भारत के ग्लोबल साउथ नेतृत्व के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- चीन के प्रभाव का प्रबंधन: चीन की वित्तीय शक्ति और ग्लोबल साउथ देशों में बड़े पैमाने पर निवेश प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न करते हैं ।
- भारत की अपनी आर्थिक और बुनियादी ढाँचागत चुनौतियाँ, चीन की तुलना में बड़े पैमाने पर सहायता देने की उसकी क्षमता को सीमित कर सकती हैं।
- परियोजना कार्यान्वयन में विलंब भारत की बुनियादी संरचना और विकास परियोजनाएँ अक्सर विलंब और अकुशलता से ग्रस्त रहती हैं।
- कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट परियोजना (म्याँमार) दो दशक बाद भी अधूरी है।
- जापान-भारत पहल, एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर (AAGC) ने चीन की BRI की तुलना में धीमी प्रगति की है।
- संस्थागत एवं नीतिगत अंतराल: भारत में वैश्विक विकास सहायता के लिये एक सुपरिभाषित संस्थागत ढाँचे का अभाव है।
- इसके लिये चीन के BRI के समान एक संरचित दीर्घकालिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सदस्यता के लिये भारत की दावेदारी का प्रतिद्वंद्वी ग्लोबल साउथ देशों (जैसे, पाकिस्तान) द्वारा विरोध किया जा रहा है।
- निरंतर सहभागिता का अभाव: NAM और G-77 जैसे पारंपरिक ग्लोबल साउथ मंचों के साथ भारत की सीमित सहभागिता, तथा वर्ष 2015 से भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन की अनुपस्थिति ने कूटनीतिक अंतराल उत्पन्न कर दिया है तथा विकासशील देशों में इसके प्रभाव में बाधा उत्पन्न की है।
- ग्लोबल नॉर्थ के साथ संबंधों को संतुलित करना: अमेरिका और यूरोप के साथ भारत के गहरे होते संबंधों से ग्लोबल साउथ के सहयोगियों को अलग-थलग नहीं होना चाहिये। अमेरिका, यूरोपीय संघ और विकासशील देशों की अपेक्षाओं को संतुलित करना एक कूटनीतिक चुनौती बनी हुई है।
- बड़े भाई जैसा रवैया: मालदीव में "इंडिया आउट" अभियान ने भारत पर घरेलू मुद्दों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया, जिससे यह प्रदर्शित हुआ कि कुछ वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) देश भारत को क्षेत्रीय राजनीति में अत्यधिक प्रभावशाली और अविश्वास को बढ़ावा देने वाला मानते हैं।
भारत एक प्रभावी वैश्विक विकास साझेदार कैसे बन सकता है?
- विकास कूटनीति को संस्थागत बनाना: भारत को चीन की BRI और जापान की आधिकारिक विकास सहायता (ODA) के समान एक स्पष्ट अंतर्राष्ट्रीय विकास सहायता नीति निर्धारित करनी चाहिये।
- भारत अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी की स्थापना से विदेशी सहायता का समन्वय हो सकता है, जबकि जापान के साथ AAGC बीआरआई के लिये एक व्यवहार्य विकल्प प्रस्तुत करता है।
- भारत के नेतृत्व में ग्लोबल साउथ डेवलपमेंट फंड सतत् बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को वित्तपोषित कर सकता है।
- उत्तर-दक्षिण सहयोग: भारत को अपना प्रभाव बढ़ाने के लिये ग्लोबल साउथ एंड नॉर्थ (जैसे, भारत-अमेरिका-अफ्रीका, भारत-रूस-आसियान) दोनों को शामिल करते हुए त्रिपक्षीय साझेदारी करनी चाहिये।
- दक्षिण-दक्षिण सहयोग को गहरा करना: IBSA (भारत-ब्राज़ील-दक्षिण अफ्रीका) और ब्रिक्स जैसे क्षेत्रीय समझौतों को मज़बूत करना, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और आसियान के साथ व्यापार को प्राथमिकता देना तथा बुनियादी ढाँचे के लिये ग्लोबल साउथ देशों को कम लागत वाली ऋण लाइनें प्रदान करना है।
- विकासशील देशों में वित्तीय संपर्क को बढ़ावा देने के लिये भारतीय मुद्रा, RuPay, एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) और डिजिटल भुगतान के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देना।
- मानव-केन्द्रित विकास: भारत के मिशन LiFE (पर्यावरण के लिये जीवन शैली) का विस्तार किया जाना चाहिये, ताकि कौशल भारत, महिला उद्यमिता और ITEC (भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग) जैसी पहलों के माध्यम से ग्लोबल साउथ देशों में मानव पूंजी विकास को शामिल किया जा सके, साथ ही सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) में निवेश भी किया जा सके।
- सॉफ्ट पावर में वृद्धि: तकनीकी प्रशिक्षण कार्यक्रमों और छात्रवृत्तियों के माध्यम से, अनुसंधान और शैक्षिक संबंधों को मज़बूत करते हुए दक्षिण एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में प्रवासी भागीदारी को बढ़ाना।
निष्कर्ष
समावेशी विकास को प्रोत्साहित करके, विश्व दक्षिण में भारत का नेतृत्व विश्व शासन को बदलने की दिशा में एक सुनियोजित कदम है। भारत में अपने आंतरिक मुद्दों से निपटने और ठोस, खुली साझेदारी विकसित करके वैश्विक निष्पक्षता और सतत् प्रगति के पीछे एक प्रमुख शक्ति बनने की क्षमता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत ग्लोबल साउथ की 'आवाज़' बनने की आकांक्षा रखता है, लेकिन एक अच्छा नेतृत्वकर्त्ता बनने के लिये उसे 'सुनना' भी होगा।" वैश्विक शासन को नया स्वरूप देने में भारत की भूमिका का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्स:प्रश्न. शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में, भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्याकंन कीजिये। (2016) |
दैनिक अनुप्रयोगों हेतु ISRO का अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी हस्तांतरण
प्रिलिम्स के लिये:IN-SPACe, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, चंद्रयान-3, LiDAR मेन्स के लिये:अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और दैनिक जीवन में इसके अनुप्रयोग, आर्थिक विकास पर तकनीकी हस्तांतरण |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) ने अंतरिक्ष मिशनों के लिये भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित 166 प्रौद्योगिकियों की पहचान की है, जिन्हें गैर-अंतरिक्ष अनुप्रयोगों के लिये उद्योगों को हस्तांतरित किया जा सकता है।
- इस कदम से ऑटोमोटिव, निर्माण और लॉजिस्टिक्स सहित विभिन्न क्षेत्रों को लाभ मिलने की उम्मीद है, जिससे दैनिक जीवन में सुधार होगा।
इसरो की अंतरिक्ष तकनीक विभिन्न उद्योगों पर क्या प्रभाव डालेगी?
- मोटर वाहन उद्योग:
- बचाव प्रणालियाँ: वाहन दुर्घटनाओं को रोककर, चंद्रयान-3 की लैंडिंग के लिये प्रयुक्त एल्गोरिदम और सॉफ्टवेयर को वाहन सुरक्षा बढ़ाने के लिये संशोधित किया जा सकता है।
- एयरबैग की तैनाती: एयरबैग की तैनाती के लिये सर्वोत्तम अवधि की पहचान करके, दाब सेंसरों को, जो प्रणोदकों को ट्रैक करने के लिये प्रक्षेपण वाहनों में उपयोग किये जाते हैं, यात्रियों की सुरक्षा में सुधार के लिये पुनः उपयोग किया जा सकता है।
- 3D LiDAR कैमरा: मूल रूप से अंतरिक्ष नेविगेशन के लिये विकसित, 3D LiDAR कैमरा गहराई की जानकारी के साथ 3D छवियाँ उत्पन्न करता है और खतरे की पहचान, पैदल यात्री की सुरक्षा एवं स्वायत्त ड्राइविंग में सहायता कर सकता है।
- सेंसर: इसरो द्वारा विकसित विशिष्ट सेंसर स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देकर और आयात पर निर्भरता कम करके ऑटोमोटिव व औद्योगिक अनुप्रयोगों में लागत को घटा सकते हैं।
- स्वास्थ्य सेवा: 3D LiDAR कैमरा का उपयोग जीवनशैली संबंधी बीमारियों की भविष्यवाणी करने के लिये सटीक शारीरिक माप या चिकित्सा निदान में उन्नत इमेजिंग समाधान के लिये किया जा सकता है।
- निर्माण और बुनियादी ढाँचा: इसरो का NRCM-204, एक अत्यधिक संक्षारण प्रतिरोधी कोटिंग है, जो धातुओं को अम्लीय संक्षारण समेत कठोर वातावरण से बचाता है।
- इसका उपयोग विनिर्माण में धातु संरचनाओं की सुरक्षा के लिये तथा मोटर वाहन उद्योग में वाहनों के क्षरण को रोकने के लिये किया जा सकता है।
- कंपन प्रबंधन प्रणाली, जिसे मूल रूप से प्रक्षेपण के दौरान उपग्रह इलेक्ट्रॉनिक्स को कंपन से बचाने के लिये डिज़ाइन किया गया था, इस तकनीक का प्रयोग भवनों को भूकंप से बचाने के लिये किया जा सकता है, जिससे ये भूकंप के दौरान अधिक सुरक्षित बन सकते हैं।
- इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस: इसरो का बेन्ज़ोक्साज़िन बहुलक इलेक्ट्रॉनिक घटकों और मुद्रित सर्किट बोर्डों को समाहित करने के लिये उपयुक्त है।
- यह विभिन्न तापमानों पर स्थिरता और उत्कृष्ट अग्निरोधी गुण प्रदान करता है।
- लॉजिस्टिक्स और खुदरा: LiDAR कैमरे का उपयोग पार्सल (parcel) को सटीक रूप से मापने, पैकेजिंग को अनुकूलित करने और शिपिंग लागत को कम करने के लिये किया जा सकता है।
- इसका उपयोग बाज़ारों और कार्यक्रमों जैसे भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर लोगों की गिनती करने, भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा में सहायता के लिये भी किया जा सकता है।
- ऊर्जा और परिवहन: इसरो की लागत प्रभावी लिथियम-आयन बैटरी प्रौद्योगिकी इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में तेजी ला सकती है, तथा स्वच्छ एवं अधिक सतत् परिवहन प्रणालियों को बढ़ावा दे सकती है।
अंतरिक्ष तकनीक हस्तांतरण के क्या लाभ हैं?
- भारत के विनिर्माण को बढ़ावा मिलना: सेंसर, बैटरी और LiDAR-आधारित प्रणालियों का घरेलू उत्पादन, आयातित ऑटोमोटिव और इलेक्ट्रॉनिक घटकों पर निर्भरता को कम कर सकता है , जिससे लागत कम करने एवं स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देने के साथ-साथ भारत की आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत) को समर्थन मिलेगा।
- औद्योगिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: एयरोस्पेस, स्वास्थ्य सेवा और विनिर्माण क्षेत्र में भारतीय स्टार्टअप और MSMEs इन प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाकर नवीन उत्पाद विकसित कर सकते हैं, जिससे उद्यमशीलता को बढ़ावा मिलेगा।
- लोक सुरक्षा और शहरी प्रबंधन: भारत में प्रमुख सार्वजनिक स्थानों पर भगदड़ की बढ़ती घटनाओं के आलोक में LiDAR के उपयोग द्वारा भीड़ निगरानी समाधान से कानून प्रवर्तन, आपदा प्रबंधन तथा कुशल शहरी नियोजन में सहायता मिल सकती है।
भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe)
- IN-SPACe एक एकल-विंडो, स्वतंत्र, नोडल एजेंसी है जो अंतरिक्ष विभाग (DOS) में एक स्वायत्त एजेंसी के रूप में कार्य करती है।
- इसका गठन वर्ष 2020 में अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधारों के बाद निजी हितधारकों की भागीदारी को सक्षम तथा सुविधाजनक बनाने के लिये किया गया था।
- IN-SPACe गैर-सरकारी संस्थाओं की अंतरिक्ष गतिविधियों को बढ़ावा देने, अधिकृत करने एवं पर्यवेक्षण करने में भूमिका निभाता है जिसमें प्रक्षेपण यानों का निर्माण, अंतरिक्ष सेवाएँ प्रदान करना, इसरो के बुनियादी ढाँचे को साझा करना एवं नई अंतरिक्ष सुविधाएँ स्थापित करना शामिल है।
- IN-SPACe इसरो और निजी संस्थाओं के बीच सेतु का कार्य करने, अंतरिक्ष संसाधनों के उपयोग का आकलन करने और अनुसंधान संस्थानों सहित निजी हितधारकों की ज़रूरतों को पूरा करने में भूमिका निभाता है।
और पढ़ें: अंतरिक्ष मिशनों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: इसरो द्वारा निजी क्षेत्र को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण से कई उद्योगों में क्रांति आने की संभावना है। इस प्रकार से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)मेन्सप्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। इस तकनीक के अनुप्रयोग ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायता की? (2016) |
राज्यों में पंचायतों को अंतरण (विकेंद्रीकरण) की स्थिति रिपोर्ट, 2024
प्रिलिम्स के लिये:पंचायती राज संस्थाएँ (PRIs), अनुच्छेद 243G, 11वीं अनुसूची, राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान, राज्य वित्त आयोग (SFCs), GST, ग्राम सभा, MGNREGA, NHM, PMAY, वित्त आयोग। मेन्स के लिये:पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) की कार्यप्रणाली में प्रगति और संबंधित चुनौतियाँ। |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
पंचायती राज मंत्रालय ने “राज्यों में पंचायतों को अंतरण (विकेंद्रीकरण) की स्थिति – एक सांकेतिक साक्ष्य आधारित रैंकिंग” शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें पूरे भारत में पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) को सशक्त बनाने की प्रगति पर प्रकाश डाला गया है।
राज्यों में पंचायतों को अंतरण (विकेंद्रीकरण) की स्थिति, 2024 रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- परिचय: इसे पंचायत अंतरण सूचकांक 2024 के रूप में भी जाना जाता है जिसके तहत भारतीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में शक्तियों तथा संसाधनों के अंतरण का आकलन करके पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) की स्वायत्तता एवं सशक्तीकरण का मूल्यांकन किया जाता है।
- यह संविधान के अनुच्छेद 243G को प्रतिबिंबित करते हुए निर्णय लेने एवं कार्यान्वयन में पंचायतों की स्वायत्तता का आकलन करने पर केंद्रित है।
- आयाम: इसके तहत छह प्रमुख आयामों अर्थात पंचायतों की रूपरेखा, कार्य, वित्त, पदाधिकारी, क्षमता निर्माण और जवाबदेही का आकलन किया जाता है।
- मुख्य निष्कर्ष:
- समग्र अंतरण: ग्रामीण स्थानीय निकायों को समग्र अंतरण वर्ष 2013-14 के 39.9% से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 43.9% हो गया।
- राज्य रैंकिंग: इस संदर्भ में शीर्ष 5 राज्य कर्नाटक (प्रथम ), केरल (द्वितीय ), तमिलनाडु (तृतीय ), महाराष्ट्र (चौथा) और उत्तर प्रदेश (5वाँ) हैं।
- सबसे निचले स्थान वाले राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों में दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन और दीव (13.62), पुदुचेरी (16.16) और लद्दाख (16.18) शामिल हैं।
- बुनियादी ढाँचे में सुधार: सरकारी प्रयासों के क्रम में बुनियादी ढाँचे, स्टाफिंग एवं डिजिटलीकरण के माध्यम से PRIs को मज़बूत किया गया है, जिससे पदाधिकारियों से संबंधित सूचकांक 39.6% से बढ़कर 50.9% हो गया है।
- राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (RGSA, 2018) से सूचकांक का क्षमता वृद्धि घटक 44% से बढ़कर 54.6% हो गया।
- 6 आयामों में प्रदर्शन:
आयाम |
राज्य |
मुख्य बिंदु |
ढाँचा |
केरल |
पंचायतों के लिये मज़बूत विधिक और संस्थागत ढाँचा |
कार्य |
तमिलनाडु |
पंचायतों को कार्यात्मक ज़िम्मेदारियाँ सौंपी गईं |
वित्त |
कर्नाटक |
सर्वोत्तम वित्तीय प्रबंधन पद्धतियाँ |
पदाधिकारी |
गुजरात |
कार्मिक प्रबंधन और क्षमता निर्माण प्रयास |
क्षमता वृद्धि |
तेलंगाना |
संस्थागत सुदृढ़ीकरण के प्रयास |
जवाबदेही |
कर्नाटक |
पारदर्शिता और वित्तीय जवाबदेही |
- चुनौतियाँ:
- संस्थागत खामियाँ: अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों का क्रम नेतृत्व की निरंतरता को प्रभावित करता है,क्योंकि नए नेता समान लक्ष्यों को प्राथमिकता नहीं दे सकते हैं अर्थात् उनके दृष्टिकोण अलग हो सकते हैं।
- ज़िला योजना समितियाँ (DPC) तो मौज़ूद हैं, लेकिन इनका उचित क्रियान्वयन नहीं हो रहा है।
- कार्यों का असंगत हस्तांतरण: 29 विषयों (11वीं अनुसूची) को असंगत रूप से हस्तांतरित किया गया है, क्योंकि राज्य सरकारों को ज़मीनी स्तर पर नियंत्रण या प्रभाव खोने का भय है, जिससे पंचायतों के निर्णय लेने के अधिकार सीमित हो रहे हैं।
- कमज़ोर वित्तीय स्वायत्तता: राज्य वित्त आयोग (SFC) की सिफारिशों का गैर-कार्यान्वयन, केंद्रीकृत GST और वित्तीय स्वायत्तता की कमी पंचायतों के वित्तीय नियंत्रण को प्रतिबंधित करती है।
- संसाधन क्षमता का अभाव: निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास शासन, बजट और योजना बनाने में उचित प्रशिक्षण का अभाव होता है।
- न्यूनतम जवाबदेही: कम सामाजिक अंकेक्षण और ग्रामसभा में न्यूनतम भागीदारी निगरानी को कमज़ोर करती है और अपर्याप्त वित्तीय प्रकटीकरण पारदर्शिता को बाधित करता है।
- संस्थागत खामियाँ: अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों का क्रम नेतृत्व की निरंतरता को प्रभावित करता है,क्योंकि नए नेता समान लक्ष्यों को प्राथमिकता नहीं दे सकते हैं अर्थात् उनके दृष्टिकोण अलग हो सकते हैं।
- अनुशंसाएँ:
- निधि का उपयोग: दुरुपयोग और भ्रष्टाचार को रोकने के लिये निधियों की सख्त निगरानी पर बल देना।
- पंचायत भवनों को सुदृढ़ बनाना: इनका लोक सेवाओं के केंद्र के रूप में कार्य करना तथा सरकारी योजनाओं जैसे आयुष्मान भारत तक पहुँच में सुधार करना।
- पंचायतों को सशक्त बनाना: राज्यों से पंचायतों को पूर्ण रूप से शक्तियाँ और ज़िम्मेदारियाँ सौंपने का आग्रह करना।
- राज्य वित्त आयोगों को सुदृढ़ बनाना: समय पर निधि आवंटन सुनिश्चित करना।
- पंचायतों को निर्णय लेने में स्वायत्तता देना, विशेषकर मनरेगा, NHM और PMAY जैसी प्रमुख योजनाओं में।
- डिजिटल अवसंरचना: बेहतर प्रशासन और पारदर्शिता के लिये पंचायतों में डिजिटल अवसंरचना को बढ़ावा देना।
PRI फंडिंग की स्थिति क्या है?
- राजस्व संरचना: पंचायती राज संस्थाएँ (PRI) करों के माध्यम से केवल 1% राजस्व उत्पन्न करती हैं, जिससे उनकी सीमित स्व-वित्त पोषण क्षमता प्रदर्शित होती है।
- पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) के 80% राजस्व का स्रोत केंद्र सरकार से मिलने वाले अनुदान हैं, जबकि 15% राज्य सरकार से प्राप्त अनुदान से आता है।
- प्रति पंचायत राजस्व: प्रत्येक पंचायत अपने करों से 21,000 रुपए और गैर-कर स्रोतों से 73,000 रुपए अर्जित करती है।
- केंद्रीय अनुदान औसतन 17 लाख रुपए है, तथा राज्य अनुदान प्रति पंचायत लगभग 3.25 लाख रुपए है, जो बाह्य सहायता पर अत्यधिक निर्भरता को दर्शाता है।
- न्यूनतम राजस्व व्यय: सभी राज्यों में पंचायतों के राजस्व व्यय का अंकित GSDP से अनुपात 0.6% से कम है, जो बिहार में 0.001% से लेकर ओडिशा में 0.56% तक है।
- अंतर-राज्यीय असमानताएँ: केरल और पश्चिम बंगाल का औसत राजस्व सबसे अधिक है (60 लाख रुपए और 57 लाख रुपए से अधिक), जबकि आंध्र प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों का राजस्व बहुत कम है ( 6 लाख रुपए से कम)।
PRI वित्तपोषण को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है?
- वित्त का नियमित हस्तांतरण: 14वें और 15वें वित्त आयोगों ने पंचायतों को पर्याप्त अनुदान देने की सिफारिश की थी, लेकिन स्थायित्व के लिये तदर्थ अनुदान के बजाय नियमित हस्तांतरण की आवश्यकता है।
- नियमित लेखा-परीक्षण, RTI खुलासे और सुदृढ़ खरीद प्रक्रियाओं के माध्यम से वित्तीय पारदर्शिता तथा जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिये ताकि निधियों का कुशल उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
- क्षमता समानता: पंचायती राज संस्थाओं को वित्तीय हस्तांतरण राज्यों की पंचायतों को वित्तपोषित करने की क्षमता के अनुरूप होना चाहिये, जिससे संतुलित और सतत् स्थानीय शासन विकास सुनिश्चित हो सके।
- राज्य वित्त आयोग को मज़बूत बनाना: राज्य वित्त आयोग की रिपोर्ट नियमित रूप से प्रस्तुत की जानी चाहिये, तथा पंचायतों को निरंतर वित्त पोषण सुनिश्चित करने के लिये सिफारिशों का पूर्ण कार्यान्वयन किया जाना चाहिये।
- स्वयं के राजस्व सृजन में वृद्धि: पंचायतों को स्थानीय करों (जैसे, भूमि कर) के माध्यम से राजस्व में वृद्धि करनी चाहिये, साथ ही राज्यों को बेहतर कर संग्रह और प्रशासन के लिये समर्थन और प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिये।
- विशेष प्रयोजन अनुदान का सृजन: प्रदर्शन को प्रोत्साहित करने तथा ग्रामीण अवसंरचना और सड़क, जल एवं स्वच्छता जैसी सेवाओं में सुधार लाने के लिये विशेष प्रयोजन अनुदान का सृजन किया जाना चाहिये।
और पढ़ें.. पंचायती राज संस्था क्या है?
निष्कर्ष:
"पंचायतों का विकेंद्रीकरण" रिपोर्ट में स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने में उल्लेखनीय प्रगति को दर्शाया गया है, जिसमें हस्तांतरण में वृद्धि और मज़बूत बुनियादी ढाँचा शामिल है। हालाँकि, कमज़ोर वित्तीय स्वायत्तता, असंगत हस्तांतरण और जवाबदेही में कमी जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। इन कमियों को दूर करके स्थायी स्थानीय शासन और विकास के लिये पीआरआई को और सशक्त बनाया जा सकता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में पंचायतों के शक्तियों के हस्तांतरण के समक्ष चुनौतियों और प्रगति पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न1. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है (2017) (a) संघवाद का उत्तर: (b) प्रश्न 2. पंचायती राज व्यवस्था का मूल उद्देश्य क्या सुनिश्चित करना है? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न 1. भारत में स्थानीय शासन के एक भाग के रूप में पंचायत प्रणाली के महत्त्व का आकलन कीजिये। विकास परियोजनाओं के वित्तीयन के लिये पंचायतें सरकारी अनुदानों के अलावा और किन स्रोतों को खोज सकती हैं? (2018) प्रश्न 2. आपकी राय में भारत में शक्ति के विकेंद्रीकरण ने ज़मीनी-स्तर पर शासन परिदृश्य को किस सीमा तक परिवर्तित किया है? (2022) |
भारत का विदेशी बंदरगाह निवेश
प्रारंभिक परीक्षा:दक्षिण चीन सागर, भारत-प्रशांत महासागर पहल, सागर (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास), भारत की एक्ट ईस्ट नीति, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा, समुद्री भारत विज़न 2030, सागरमाला कार्यक्रम, मोतियों की माला, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा मुख्य परीक्षा:भारत का विदेशी बंदरगाह निवेश, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री अवसंरचना में भारत की उपस्थिति बढ़ाने की पहल, भारत की विदेशी समुद्री उपस्थिति के लिये चुनौतियाँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी राष्ट्रपति राष्ट्रीय सुरक्षा ज्ञापन (PNSM-2) ईरान पर "अधिकतम दबाव" को लागू करता है, जिसमें विशेष रूप से चाबहार बंदरगाह का उल्लेख है।
- इससे भारत के विदेशी बंदरगाह निवेश और व्यापार पर चिंताएँ उत्पन्न हो रही हैं, तथा क्षेत्र में इसके भू-रणनीतिक और आर्थिक हितों पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
भारत के प्रमुख विदेशी बंदरगाह निवेश क्या हैं?
- हाइफा बंदरगाह (इज़रायल): यह भारत-इज़रायल व्यापार, सुरक्षा संबंधों और भूमध्यसागरीय संपर्क को बढ़ाता है।
- मोंगला और चटगाँव बंदरगाह (बाँग्लादेश): इससे भारत-बाँग्लादेश व्यापार, ट्रांसशिपमेंट और पूर्वोत्तर कनेक्टिविटी में सुधार होगा, तथा परिवहन लागत में कमी आएगी।
- दुक्म बंदरगाह (ओमान): यह भारत की खाड़ी उपस्थिति, नौसैनिक संचालन और ऊर्जा सुरक्षा को सुदृढ़ करता है।
- सित्तवे बंदरगाह (म्याँमार): यह कलादान परियोजना का हिस्सा है, जो पूर्वोत्तर भारत और आसियान के साथ संपर्क को बढ़ावा देगा तथा सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता को कम करेगा।
- सबांग बंदरगाह (इंडोनेशिया): भारत तथा इंडोनेशिया मलक्का जलडमरूमध्य के पास सबांग बंदरगाह पर सहयोग कर रहे हैं।
- त्रिंकोमाली और कांकेसंथुराई बंदरगाह (श्रीलंका): व्यापार और यात्री संपर्क बढ़ाना, भारत-श्रीलंका समुद्री संबंधों को मज़बूत करना।
भारत के विदेशी बंदरगाह निवेश का क्या महत्त्व है?
- भू-राजनीतिक और सामरिक महत्त्व: भारत का विदेशी बंदरगाह निवेश, प्रमुख समुद्री मार्गों को सुरक्षित करने के साथ चीन के BRI प्रभुत्व (जैसे, ग्वादर, हंबनटोटा) का मुकाबला करने में सहायक है।
- चाबहार (ईरान) और कोलंबो (श्रीलंका) जैसे बंदरगाह क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ाने में सहायक होने के साथ मध्य एशिया के साथ व्यापार को मज़बूत करते हैं।
- दुकम (ओमान) जैसे रणनीतिक स्थान सैन्य एवं रसद संबंधी लाभ प्रदान करते हैं जिससे हिंद महासागर में भारत की समुद्री सुरक्षा और प्रभाव को मज़बूती मिलती है।
- आर्थिक और व्यापारिक लाभ: भारत के विदेशी बंदरगाह निवेश से व्यापारिक मार्ग (जैसे, चाबहार, हाइफा) में वृद्धि होने एवं पारगमन लागत में कमी आने के साथ आपूर्ति शृंखला दक्षता में सुधार होगा।
- ये मध्य एशिया और अफ्रीका के स्थलरुद्ध बाज़ारों तक पहुँच को सुगम बनाने में सहायक हैं जिससे व्यापार के अवसर बढ़ते हैं।
- इसके अतिरिक्त, ये निवेश द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के साथ दीर्घकालिक आर्थिक एवं कूटनीतिक साझेदारी को बढ़ावा देने में सहायक हैं।
- ऊर्जा सुरक्षा: यह हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में प्रमुख पारगमन बिंदुओं को नियंत्रित करने के क्रम में प्रमुख तेल एवं गैस आयात की सुरक्षा के माध्यम से ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायक है।
- ये वैकल्पिक मार्ग (जैसे, चाबहार) की सुविधा प्रदान करके आपूर्ति शृंखला व्यवधानों को भी कम करने में सहायक हैं जिससे क्षेत्रीय संघर्षों या नाकेबंदी से उत्पन्न होने वाली समस्याओं में कमी आती है।
भारत अपनी वैश्विक समुद्री उपस्थिति बढ़ाने के क्रम में और क्या पहल कर रहा है?
- क्षेत्रीय संपर्क को मज़बूत करना:
- INSTC
- अफ्रीका-एशिया विकास गलियारा (AAGC): AAGC एक भारत-जापान पहल है जो बुनियादी ढाँचे, व्यापार और क्षमता निर्माण के माध्यम से एशिया-अफ्रीका संपर्क को बढ़ाने पर केंद्रित है।
- शिपिंग अवसंरचना में निवेश:
- नौसेना कूटनीति और सुरक्षा पहल:
- गहन समुद्र में अन्वेषण और जल के नीचे की अवसंरचना:
विदेशी बंदरगाह निवेश से संबंधित क्या चुनौतियाँ हैं?
- भू-राजनीतिक जोखिम: ग्वादर और हंबनटोटा में चीन के निवेश से भारत को समुद्री परियोजनाओं का विस्तार करने की प्रेरणा मिली है लेकिन मेजबान देशों (जैसे श्रीलंका) में राजनीतिक बदलाव से निवेश स्थिरता पर प्रभाव पड़ता है।
- इसके अतिरिक्त आतंकवाद और संघर्ष (जैसे कि चाबहार में भारतीय श्रमिकों पर तालिबान के हमले और सित्तवे बंदरगाह को प्रभावित करने वाली म्यांमार की अस्थिरता) से सुरक्षा चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- प्रतिबंध और नियामक बाधाएँ: ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण चाबहार बंदरगाह का परिचालन बाधित होने से भारत की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी प्रभावित हो रही है।
- इसके अतिरिक्त संवेदनशील क्षेत्रों में भारत की साझेदारी पर पश्चिमी देशों की निगरानी के चलते निवेश निर्णयों के संबंध में भू-राजनीतिक दबाव उत्पन्न होता है।
- आंतरिक नीतिगत बहस: इस बात पर चर्चा चल रही है कि क्या सरकारी स्वामित्व वाली इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) या निजी संस्थाओं को विदेशी बंदरगाह निवेश का नेतृत्व करना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त ठेके देने और परियोजनाओं के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेहिता को लेकर चिंताएँ बनी हुई हैं।
आगे की राह:
- कूटनीतिक एवं रणनीतिक साझेदारियाँ: भारत को पूर्वी अफ्रीका, इंडोनेशिया और दक्षिण एशिया में नए बंदरगाह निवेश को सुरक्षित करने के लिये कूटनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करना चाहिये, साथ ही संयुक्त उद्यमों को सुविधाजनक बनाने और चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिये पश्चिमी सहयोगियों के साथ संबंधों को मज़बूत करना चाहिये।
- भारत को अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में अपनी भूमिका पर ज़ोर देते हुए चाबहार पर प्रतिबंधों में छूट की मांग करनी चाहिये, साथ ही आईएनएसटीसी के माध्यम से व्यापार में विविधता लाकर उस पर निर्भरता कम करनी चाहिये।
- क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाना: भारत को दक्षिण एशिया में चीनी ऋण-जाल कूटनीति के लिये एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में खुद को स्थापित करना चाहिये। श्रीलंका में अमेरिका समर्थित निवेश का लाभ उठाकर भारत अपनी समुद्री उपस्थिति को मज़बूत कर सकता है।
- संतुलित निवेश दृष्टिकोण: भारत को सतत् समुद्री अवसंरचना विकास के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), संप्रभु निधि और बहुपक्षीय समर्थन (ADB) का लाभ उठाते हुए राज्य संचालित संस्थाओं और निजी खिलाड़ियों के साथ एक संकर निवेश मॉडल अपनाना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: भारत के विदेशी बंदरगाह निवेश के क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव पर पड़ने वाले प्रभाव का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स: प्रश्न. भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह विकसित करने का क्या महत्त्व है?(2017) (a) अफ्रीकी देशों से भारत के व्यापार में अपार वृद्धि होगी। उत्तर: C मेन्स: प्रश्न. इस समय जारी अमेरिका-ईरान नाभिकीय समझौता विवाद भारत के राष्ट्रीय हितों को किस प्रकार प्रभावित करेगा? भारत को इस स्थिति के प्रति क्या रवैया अपनाना चाहिये? (2018) प्रश्न. भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिये। (2017) |