भारतीय राजव्यवस्था
राज्य वित्त आयोग
- 18 Nov 2024
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प्रिलिम्स के लिये:राज्य वित्त आयोग, संवैधानिक निकाय, अनुच्छेद 243-I, 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1992, पंचायती राज संस्थान (PRIs), शहरी स्थानीय निकाय (ULBs), 15वाँ वित्त आयोग (2021-26), वित्त आयोग, नगर पार्षद, अनुच्छेद 280, भारत की संचित निधि, राज्य की संचित निधि, 16वाँ वित्त आयोग। मेन्स के लिये:वित्तीय विकेंद्रीकरण में राज्य वित्त आयोगों की भूमिका। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
पंचायती राज मंत्रालय के अनुसार, अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर सभी राज्यों ने राज्य वित्त आयोग (SFC) का गठन किया है।
- 15 वें वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट में राज्य वित्त आयोगों के गठन में हो रही देरी पर चिंता व्यक्त की।
राज्य वित्त आयोगों (SFCs) के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?
- परिचय: राज्य वित्त आयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243-I के तहत राज्यों द्वारा स्थापित संवैधानिक निकाय हैं।
- अनुच्छेद 243-I के अनुसार, राज्यपाल को 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के अधिनियमित होने के एक वर्ष के अंदर तथा उसके बाद प्रत्येक पाँच वर्ष में राज्य वित्त आयोग का गठन करना आवश्यक होगा।
- अधिदेश: इनकी प्राथमिक भूमिका राज्य सरकार और स्थानीय निकायों यानी पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) तथा शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) के बीच वित्तीय संसाधनों के वितरण की सिफारिश करना है।
- अनुपालन संबंधी मुद्दे: 15वें वित्त आयोग (2021-26) ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि केवल नौ राज्यों ने अपने छठे SFC को गठित किया है जबकि सभी राज्यों द्वारा इसका वर्ष 2019-20 तक गठन करना था।
- कई राज्य अभी भी दूसरे या तीसरे SFC तक सीमित हैं, जिससे समय पर इनके नवीनीकरण और अद्यतनीकरण की कमी प्रदर्शित होती है।
- राज्य वित्त आयोग पर 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट: 15वें वित्त आयोग ने राज्यों को राज्य वित्त आयोगों का गठन करने, उनकी सिफारिशों को लागू करने और विधानमंडल को एक कार्य रिपोर्ट प्रस्तुत करने की सिफारिश की।
- इसने उन राज्यों की अनुदान सहायता रोकने का सुझाव दिया जो इन आवश्यकताओं का अनुपालन नहीं करते हैं।
- पंचायती राज मंत्रालय की भूमिका: इसका कार्य वर्ष 2024-25 और 2025-26 हेतु अनुदान जारी करने से पहले राज्य वित्त आयोगों के संदर्भ में राज्यों की संवैधानिक प्रावधानों के अनुपालन की स्थिति को प्रमाणित करना है।
राज्य वित्त आयोगों (SFCs) का गठन क्यों महत्त्वपूर्ण है?
- संवैधानिक आवश्यकता: अनुच्छेद 243(I) के तहत प्रत्येक पाँच वर्ष में राज्य वित्त आयोगों का नियमित और समय पर गठन करना एक संवैधानिक अधिदेश है, जिसका उद्देश्य स्थानीय निकायों की वित्तीय स्थिरता एवं स्वायत्तता सुनिश्चित करना है।
- राजकोषीय हस्तांतरण: स्थानीय निकायों के बीच धन के उचित आवंटन से स्थानीय निकायों की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित होती है।
- इससे केंद्रीय वित्त आयोग द्वारा राज्यों और स्थानीय निकायों को केंद्रीय निधियों के आवंटन में सहायता मिलती है।
- जवाबदेहिता में वृद्धि: वित्तीय आवश्यकताओं का मूल्यांकन करके, संसाधनों के इष्टतम उपयोग का सुझाव देकर तथा राजकोषीय उपायों की सिफारिश करके, राज्य वित्त आयोग स्थानीय निकायों की सेवा वितरण में सुधार करने के साथ इन्हें नागरिकों की आवश्यकताओं के प्रति अधिक उत्तरदायी बनने हेतु प्रेरित कर सकते हैं।
- SFC से प्रदर्शन-आधारित मूल्यांकन के लिये तंत्र मिलता है जिससे पुरस्कार और दंड की प्रणाली विकसित होने के साथ स्थानीय स्तर पर बेहतर शासन प्रथाओं को बढ़ावा मिल सकता है।
- स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करना: स्थानीय शासन निकाय स्वच्छता, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं बुनियादी ढाँचे जैसी सेवाएँ प्रदान करके दैनिक जीवन को प्रभावित करते हैं।
- SFC की सिफारिशों द्वारा समर्थित उचित वित्तपोषण और वित्तीय स्वायत्तता, सेवा की गुणवत्ता में सुधार हेतु महत्त्वपूर्ण हैं।
- कार्यात्मक एवं वित्तीय अंतराल को कम करना: स्थानीय निकायों को अक्सर वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करने में समस्याएँ आती हैं।
- राज्य वित्त आयोग उत्तरदायित्वों के आधार पर वित्तीय हस्तांतरण की सिफारिश करके इस समस्या का समाधान करने के साथ यह सुनिश्चित करते हैं कि स्थानीय सरकारों के पास अपने दायित्वों को पूरा करने के लिये पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों।
- राज्य वित्त निगम प्रभावी सिफारिशों द्वारा राजकोषीय हस्तांतरण को सुव्यवस्थित करने, वित्तपोषण की पूर्वानुमेयता में सुधार करने तथा वित्तीय अस्थिरता को कम करने में भूमिका निभा सकते हैं।
- राजनीतिक और प्रशासनिक विकेंद्रीकरण: राज्य वित्त आयोग की भूमिका वित्तीय अनुशंसाओं से कहीं अधिक विस्तारित है। यह नगरपालिका पार्षदों और पंचायत प्रधानों जैसे स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधियों को सशक्त बनाने का कार्य करता है।
वित्त आयोग
- संवैधानिक आधार: यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत स्थापित एक संवैधानिक निकाय है।
- इसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक पाँच वर्ष में या राष्ट्रपति द्वारा आवश्यक समझे जाने पर पहले भी की जाती है।
- संरचना: आयोग में एक अध्यक्ष और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त चार अन्य सदस्य होते हैं।
- अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होना चाहिये जिसे सार्वजनिक मामलों का अनुभव हो।
- कार्य और कर्तव्य: वित्त आयोग का प्राथमिक कार्य विभिन्न वित्तीय मामलों पर राष्ट्रपति को सिफारिशें करना है।
- कर वितरण: यह करों की शुद्ध आय के संघ और राज्यों के बीच वितरण की सिफारिश करता है इसमें कर आय से राज्यों के बीच शेयरों का आवंटन शामिल है।
- सहायता अनुदान: यह विधेयक भारत की संचित निधि से राज्यों को सहायता अनुदान देने के सिद्धांतों का सुझाव देता है।
- इसमें भारत की संचित निधि से राज्यों को सहायता अनुदान को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों की स्थापना करना शामिल है।
- राज्य निधि में वृद्धि: यह विधेयक राज्य के वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर पंचायतों और नगर पालिकाओं के संसाधनों के पूरक के लिये राज्य की समेकित निधि में वृद्धि के उपायों की सिफारिश करता है।
- अतिरिक्त मामले: वित्त आयोग सुदृढ़ सार्वजनिक वित्त के हित में राष्ट्रपति द्वारा उसे सौंपे गए किसी अन्य मामले पर भी विचार कर सकता है।
- स्थानीय शासन के लिये महत्त्व: वित्त आयोग न केवल संघ और राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों को निर्धारित करता है, बल्कि स्थानीय निकायों की राजकोषीय क्षमताओं को मज़बूत करने के तरीकों की भी सिफारिश करता है।
- इससे यह सुनिश्चित होता है कि स्थानीय सरकारों के पास आवश्यक सेवाएं प्रदान करने के लिये पर्याप्त धनराशि हो, जिससे विकेंद्रीकृत शासन और जन-केंद्रित नीतियों में योगदान मिले।
- 16 वां वित्त आयोग: 16वें वित्त आयोग का गठन दिसंबर 2023 में किया गया, जिसके अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया होंगे।
- इसमें 1 अप्रैल, 2026 से प्रारंभ होकर 5 वर्ष की पुरस्कार अवधि शामिल है।
राज्य वित्त आयोगों (SFC) की समस्याएँ क्या हैं?
- राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव: 73वें और 74वें संविधान संशोधनों के अनुसार, स्थानीय निकायों को पूर्ण रूप से शक्ति और संसाधन हस्तांतरित करने के प्रति राज्य सरकारों में व्यापक प्रतिरोध है।
- संसाधनों की कमी: SFC को अक्सर डेटा एकत्र करते समय शुरुआत से ही काम करना पड़ता है, क्योंकि आसानी से उपलब्ध तथा व्यवस्थित जानकारी की कमी होती है, जिससे उनकी प्रभावशीलता और भी अधिक बाधित होती है।
- विशेषज्ञता में कमी: कई राज्य वित्त आयोगों का नेतृत्व नौकरशाहों या राजनेताओं द्वारा किया जाता है, तथा इनमें डोमेन विशेषज्ञों और सार्वजनिक वित्त पेशेवरों का अभाव होता है।
- योग्य टेक्नोक्रेटों की अनुपस्थिति SFC की सिफारिशों की विश्वसनीयता और गुणवत्ता को कम करती है, जिससे उनका प्रभाव कमज़ोर हो जाता है।
- अपारदर्शिता: राज्य अक्सर SFC की सिफारिशों के बाद विधायिका में कार्रवाई रिपोर्ट (Action Taken Reports- ATR) पेश करने में विफल रहते हैं, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही कम हो जाती है।
- राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों की अनदेखी: राज्य सरकारों द्वारा राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों का अनुपालन न करने की एक प्रवृत्ति रही है, जो स्थानीय शासन के लिये राजकोषीय नीतियों को आकार देने में राज्य वित्त आयोग की भूमिका को कमज़ोर करती है।
- जन प्रतिरोध: विशेषज्ञों का कहना है कि शहरी स्थानीय निकायों को उपेक्षा का सामना करना पड़ता है, उनमें राजनीतिक जागरूकता कम है और जनता की भागीदारी भी सीमित है, जिससे राजकोषीय विकेंद्रीकरण की स्थिति और खराब हो जाती है।
आगे की राह
- संवैधानिक समय-सीमा का अनुपालन: संविधान के अनुसार राज्यों को हर पाँच वर्ष में SFC का गठन करना चाहिये। समय-सीमा का पालन न करने वालों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिये, अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये नियमित निगरानी की जानी चाहिये।
- राजनीतिक प्रतिरोध को कम करना: राज्य सरकारों को स्थानीय सरकारों के लिये वित्तीय स्वायत्तता के लाभों के बारे में पता होना चाहिये, जिससे बेहतर सेवाएँ, नागरिक संतुष्टि तथा जवाबदेह शासन प्राप्त होगा।
- सार्वजनिक वित्त विशेषज्ञ: राज्यों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि आयोगों का नेतृत्व अर्थशास्त्रियों, वित्त विशेषज्ञों और प्रासंगिक पेशेवरों द्वारा किया जाए, न कि केवल नौकरशाहों तथा राजनेताओं द्वारा, ताकि उनकी कार्यकुशलता बढ़ाई जा सके।
- स्थानीय डेटा प्रणालियों को सुदृढ़ बनाना: स्थानीय निकायों को सटीक वित्तीय रिपोर्टिंग के लिये आधुनिक डेटा प्रणालियों को अपनाना चाहिये, जिससे राज्य वित्त आयोगों को सूचित सिफारिशें करने में सहायता मिलेगी।
- कार्रवाई रिपोर्ट (ATR): राज्यों को विधानमंडल में कार्रवाई रिपोर्ट (ATR) प्रस्तुत करनी चाहिये, जिसमें बेहतर पारदर्शिता और जवाबदेही के लिये SFC की सिफारिशों को लागू करने के लिये समयसीमा तथा उपायों की रूपरेखा हो।
- स्वतंत्र निकायों को वित्तीय हस्तांतरण की प्रभावशीलता और SFC सिफारिशों के कार्यान्वयन का मूल्यांकन करने का कार्य सौंपा जा सकता है।
- प्रोत्साहन ढाँचा: मंत्रालय को SFC अनुपालन में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले राज्यों के लिये पुरस्कार प्रणाली बनानी चाहिये तथा अन्य राज्यों को स्थानीय शासन में सुधार करने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में स्थानीय शासन को मज़बूत करने में राज्य वित्त आयोगों (SFC) की भूमिका पर चर्चा कीजिये |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न: निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2023)
2.वन और पारिस्थितिकी 3.शासन सुधार 4.स्थिर सरकार 5.कर और राजकोषीय प्रयास समस्तर कर-अवक्रमण के लिये पंद्रहवें वित्त आयोग ने उपर्युक्त में से कितने को जनसंख्या क्षेत्रफल और आय के अंतर के अलावा निकष के रूप में प्रयुक्त किया? (a)केवल दो (b)केवल तीन (c)केवल चार (d)सभी पाँच उत्तर: (b) प्रश्न: संविधान (तिहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1992, जिसका उद्देश्य देश में पंचायती राज संस्थाओं को बढ़ावा देना है, निम्नलिखित में से क्या प्रावधान करता है? (2011)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a)केवल 1 (b)केवल 1 और 2 (c)केवल 2 और 3 (d)1, 2 और 3 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न: भारत के 14वें वित्त आयोग की संतुस्तियों ने राज्यों को अपनी राजकोषीय स्थिति में सुधारने में कैसे सक्षम किया है? (2021) प्रश्न: आपके विचार में सहयोग, स्पर्द्धा एवं संघर्ष ने किस प्रकार से भारत में महासंघ को किस सीमा तक आकार दिया है ? अपने उत्तर को प्रमाणित करने के लिये कुछ हालिया उदाहरण उद्धत कीजिये। (2020) |