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शासन व्यवस्था

शहरी शासन में सुधार

  • 22 Jul 2024
  • 23 min read

यह एडिटोरियल 17/07/2024 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “Why our large cities need metropolitan governance” लेख पर आधारित है। इसमें तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण के बीच भारत के सबसे बड़े शहरों को संचालित करने में विद्यमान चुनौतियों पर विचार किया गया है। लेख में इस पक्ष को भी उजागर किया गया है कि एक सुसंगत महानगरीय शासन ढाँचे की कमी से समूहन बचत (agglomeration economies) का लाभ उठाने और पर्यावरणीय संवहनीयता को संबोधित करने में बाधा आती है।

प्रिलिम्स के लिये:

शहरीकरण, शहरी शासन, सतत् विकास, 74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992, एमपी/एमएलए स्थानीय क्षेत्र विकास निधि, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP), वर्ष 2022 तक सभी के लिये आवास

मेन्स के लिये:

संघवाद और सामाजिक कल्याण को मज़बूत करने में शहरी शासन का महत्त्व

पिछले तीन दशकों में भारत एक गतिहीन अर्थव्यवस्था से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। इस वृद्धि के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण शहरीकरण भी हुआ है। वर्ष 2036 तक 600 मिलियन लोग (जनसंख्या का 40%) शहरी क्षेत्रों में रह रहे होंगे, जो वर्ष 2011 में 31% की तुलना में बड़ी आबादी होगी। इसके साथ ही, शहरी क्षेत्रों से सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 70% योगदान प्राप्त होने का अनुमान है।

अवसंरचनात्मक विकास के प्रबंधन के लिये उचित शासन व्यवस्था आवश्यक है, ताकि सड़क, जल आपूर्ति और स्वच्छता जैसी महत्त्वपूर्ण प्रणालियों का रखरखाव सुनिश्चित हो सके। इसके अलावा, प्रभावी शहरी शासन संवहनीयता को बढ़ावा देता है और प्रदूषण से निपटने तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिये पर्यावरण-अनुकूल अभ्यासों को बढ़ावा देता है।

इसके अलावा, शहरों को अकुशल प्रशासन, अपर्याप्त अवसंरचना और अपर्याप्त सेवाओं जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, हालाँकि इस दिशा में सकारात्मक बदलाव के संकेत भी उभर रहे हैं।

शहरी शासन (Urban Governance) क्या है?

  • परिचय:
    • शहरी शासन से तात्पर्य उन प्रणालियों, प्रक्रियाओं और अभ्यासों से है, जिनके माध्यम से शहरों का प्रबंधन एवं विकास किया जाता है।
      • इसमें निर्णय-निर्माण ढाँचे और संस्थान शामिल हैं जो शहरी नियोजन, सेवा वितरण शहरी क्षेत्रों के समग्र प्रशासन का मार्गदर्शन करते हैं।
    • शहर निवासियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने, शहरी प्रत्यास्थता को बढ़ाने और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये प्रभावशील शहरी प्रशासन महत्त्वपूर्ण है।
  • शहरी शासन के प्रमुख तत्वों में शामिल हैं:
    • हितधारक: इसमें स्थानीय सरकारें, नागरिक, व्यवसाय और गैर-सरकारी संगठन (NGOs) शामिल हैं।
    • नीतियाँ और विनियमन: इसमें भूमि उपयोग, क्षेत्रीकरण, आवास, परिवहन और पर्यावरण प्रबंधन को नियंत्रित करने वाले कानून, नीतियाँ एवं विनियमन शामिल हैं।
    • सेवा वितरण: इसमें जल आपूर्ति, अपशिष्ट प्रबंधन, परिवहन और सार्वजनिक सुरक्षा जैसी आवश्यक सेवाओं का प्रबंधन शामिल है।
    • सहभागी शासन: यह पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में नागरिकों की भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
    • संवहनीयता: यह सामाजिक समता और पर्यावरण संरक्षण के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करने पर ध्यान केंद्रित करता है।

भारत में शहरी शासन की वर्तमान व्यवस्था क्या है?

  •  74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा संविधान में एक नया भाग IX-A जोड़ा गया और स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के रूप में नगर निगमों सहित शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) के गठन का उपबंध किया गया।
    • इसने संविधान में अनुच्छेद 243P से 243ZG तक और एक नई बारहवीं अनुसूची का योग किया।
    • इसने राज्यों को शहरी नियोजन, भूमि उपयोग का विनियमन, जलापूर्ति और मलिन बस्ती उन्नयन सहित 18 कार्यों की ज़िम्मेदारी ULBs को सौंपने का अधिकार दिया।
  • शहरी स्थानीय सरकार में आठ प्रकार के शहरी स्थानीय निकाय शामिल हैं:
    • नगर निगम (Municipal Corporation): नगर निगम आमतौर पर बड़े शहरों, जैसे बैंगलोर, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि में पाए जाते हैं।
    • नगरपालिका (Municipality): छोटे शहरों के लिये नगरपालिका का प्रावधान है, जिन्हें प्रायः नगर परिषद, नगर समिति, नगर बोर्ड जैसे विभिन्न नामों से पुकारा जाता है।
    • अधिसूचित क्षेत्र समिति (Notified Area Committee): तेज़ी से विकास कर रहे क़स्बों और बुनियादी सुविधाओं से वंचित क़स्बों के लिये अधिसूचित क्षेत्र समितियाँ स्थापित की जाती हैं।
    • नगर क्षेत्र समिति (Town Area Committee): नगर क्षेत्र समिति छोटे शहरों में पाई जाती है जो न्यूनतम प्राधिकार रखती है।
    • छावनी बोर्ड (Cantonment Board): यह आमतौर पर छावनी क्षेत्र में रहने वाली नागरिक आबादी के लिये स्थापित किया जाता है।
    • टाउनशिप (Township): यह शहरी सरकार का एक अन्य रूप है जो किसी औद्योगिक संयंत्र के पास स्थापित कॉलोनियों में रहने वाले कर्मचारियों और श्रमिकों को बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करता है।
    • पोर्ट ट्रस्ट (Port Trust): ये बंदरगाह के प्रबंधन एवं देखभाल के लिये तटीय क्षेत्रों में स्थापित किये जाते हैं।
    • विशेष प्रयोजन एजेंसी (Special Purpose Agency): ये एजेंसियाँ नगर निगमों या नगरपालिकाओं से संबंधित निर्दिष्ट गतिविधियों या विशिष्ट कार्यों का कार्यभार संभालती हैं।

शहरी प्रशासन में सुधार के लिये क्या कदम उठाए गए हैं?

  • स्मार्ट सिटी मिशन (SCM):
    • यह एक केंद्र-प्रायोजित योजना है, जिसे वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया था। यह 100 शहरों को आवश्यक अवसंरचना और स्वच्छ एवं संवहनीय वातावरण प्रदान करने का लक्ष्य रखता है, ताकि ‘स्मार्ट सोल्यूशंस’ के माध्यम से वहाँ के नागरिकों को एक सभ्य गुणवत्तापूर्ण जीवन प्रदान किया जा सके।
    • इसका उद्देश्य सतत् एवं समावेशी विकास के माध्यम से नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
  • प्रदूषण नियंत्रण के लिये धन का आवंटन:
    • दिसंबर 2023 में ऐसे 131 शहरों (मिलियन प्लस सिटीज़/नॉन-अटेनमेंट सिटीज़) की पहचान की गई जो लगातार पाँच वर्षों से राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) को पार कर गए हैं और तदनुसार वायु गुणवत्ता में सुधार के लिये इन शहरों के लिये धन आवंटन के साथ-साथ शहर विशिष्ट स्वच्छ वायु कार्ययोजनाएँ (City Specific Clean Air Action Plans) तैयार की गई हैं।
  • प्रधान मंत्री आवास योजना (PMAY):
    • यह सरकार के ‘वर्ष 2022 तक सभी के लिये आवास अभियान’ के अंतर्गत आता है, जिसका क्रियान्वयन आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है।
    • यह EMI के माध्यम से पुनर्भुगतान के दौरान गृह ऋण की ब्याज दर पर सब्सिडी प्रदान कर शहरी गरीबों के लिये गृह ऋण को वहनीय बनाता है।
  • स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (SBM-U):
    • इसे वर्ष 2014 में आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा शहरी क्षेत्रों में सफाई, स्वच्छता और उचित अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये एक राष्ट्रीय अभियान के रूप में लॉन्च किया गया था।
  • ऑनलाइन शासन वितरण के लिये शहरी मंच/उपयोग प्लेटफॉर्म (Urban Platform for Delivery of Online Governance- UPYOG):
    • यह ऑनलाइन माध्यम से नगरपालिका सेवाएँ प्रदान करने के लिये सृजित राष्ट्रीय संदर्भ मंच है, जो नेशनल अर्बन इनोवेशन स्टैक (National Urban Innovation Stack- NUIS) सिद्धांतों का उपयोग करता है।
  • अमृत योजना:
    • कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन/अमृत (Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation- AMRUT) वर्ष 2014 में लॉन्च किया गया था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हर घर में जल की सुनिश्चित आपूर्ति के साथ नल और सीवरेज कनेक्शन उपलब्ध हो।

शहरी शासन में विद्यमान चुनौतियाँ कौन-सी हैं?

  • स्वायत्तता का अभाव:
    • शहरी शासन भारतीय संविधान के तहत राज्य सूची का विषय है। इसलिये, ULBs का प्रशासनिक ढाँचा और विनियमन अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है।
    • इसके अलावा, विशेषज्ञों ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि देश भर में शहरी स्थानीय निकायों के पास शहर प्रबंधन के मामले में स्वायत्तता का अभाव है और शहर स्तर के कई कार्यों का प्रबंधन अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं (राज्य द्वारा प्रबंधित और उसके प्रति जवाबदेह) द्वारा किया जाता है।
  • वित्तीय संसाधनों का ह्रास:
    • आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) के अनुसार, भारत में संपत्ति कर संग्रह दर (संपत्ति कर और जीडीपी का अनुपात) विश्व में न्यूनतम है।
      • 221 नगर निगमों के RBI सर्वेक्षण (2020-21) से पता चला है कि इनमें से 70% से अधिक निगमों के राजस्व में गिरावट आई है, जबकि उनके व्यय में लगभग 71.2% की वृद्धि हुई।
    • RBI की रिपोर्ट में संपत्ति कर के सीमित कवरेज तथा नगर निगम के राजस्व को बढ़ाने में इसकी विफलता पर भी प्रकाश डाला गया है।
    • इन निकायों को कराधान संबंधी विभिन्न शक्तियाँ भी हस्तांतरित नहीं की गई हैं, जिसके कारण नगर निगमों की वित्तीय स्थिति पर दबाव बढ़ रहा है।
      • जबकि कर उनके राजस्व का मुख्य स्रोत है, इससे प्राप्त आय उनकी ज़िम्मेदारियों के सापेक्ष अपर्याप्त है।
  • एजेंसियों की बहुलता:
    • प्रत्यक्ष राज्य पर्यवेक्षण के तहत विशेष प्रयोजन एजेंसियों का निर्माण, जहाँ वे शहरी स्थानीय सरकारों के प्रति जवाबदेह नहीं हैं, शासन को जटिल बनाता है।
    • नगर निकायों द्वारा इन एजेंसियों पर नियंत्रण रखे बिना उन्हें वित्तपोषण प्रदान करना है, जैसा कि राज्य परिवहन निगम और जल आपूर्ति विभाग जैसी संस्थाओं के मामले में देखा गया है।
    • इसके अलावा, समानांतर एजेंसियाँ और योजनाएँ, जैसे कि सांसद/विधायक स्थानीय क्षेत्र विकास निधि, स्थानीय सरकारों की वित्तीय स्वायत्तता को कमज़ोर करती हैं, इच्छित संघीय ढाँचे को विकृत करती हैं और शहरी शासन एवं सेवा वितरण को जटिल बनाती हैं।
  • अनियोजित शहरीकरण :
    • उपयुक्त योजना-निर्माण के बिना, नगरपालिका सेवाएँ गुणवत्ता और मात्रा दोनों के मामले में जनसंख्या की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने में संघर्षरत नज़र आती हैं।
    • स्थानीय निकायों की प्रशासनिक क्षमता सीमित है, जिसके कारण भूमि के अकुशल उपयोग, अपर्याप्त आवास विकास, मलिन बस्तियों का बढ़ना, अनाधिकृत कॉलोनियों की स्थापना और जलापूर्ति, सीवेज, बिजली एवं यातायात जैसी सुविधाओं की अपर्याप्तता जैसी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।
    • उदाहरण के लिये, दिल्ली में 1,799 अनाधिकृत कॉलोनियाँ हैं, जिनमें से 1,638 में पानी की पाइपलाइनें बिछाई जा चुकी हैं और जल की आपूर्ति की जा रही है, जबकि 48 अन्य में कार्य काम चल रहा है या आरंभ होने वाला है।
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ:
    • शहरों में प्रदूषण का उच्च स्तर और अकुशल अपशिष्ट प्रबंधन निवासियों के लिये प्रमुख समस्याओं में से एक है।
      • शहरी भारत में प्रतिवर्ष लगभग 42.0 मिलियन टन म्यूनिसिपल ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जो लगभग 1.15 लाख मीट्रिक टन प्रतिदिन (TPD) है, जिसमें से 72% बेंगलुरु, दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद जैसे 423 टियर-I शहरों में उत्पन्न होता है।
      • हाल के एक अध्ययन के अनुसार, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के दायरे में शामिल 45% शहरों में वर्ष 2024 के ग्रीष्मकाल में PM2.5 में वृद्धि देखी गई।
    • शहरी पर्यावरण में गिरावट से सार्वजनिक स्वास्थ्य और उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे जीवन की समग्र गुणवत्ता कम हो जाती है।
  • निम्न सार्वजनिक भागीदारी:
    • अपेक्षाकृत उच्च साक्षरता और शैक्षिक स्तर के बावजूद, शहर के निवासी प्रायः शहरी सरकारी निकायों के कार्यकरण में सीमित रुचि रखते हैं।
    • इसके अलावा, अपशिष्ट प्रबंधन और प्रदूषण नियंत्रण में लोगों की भागीदारी का अभाव है।

आगे की राह:

  • शहरी शासन के लिये तीन F’s:
    • नगर सरकारों को कार्यात्मक स्वायत्तता दी जानी चाहिये और यह तीन F’s के साथ होना चाहिये; अर्थात नगर सरकारों को कार्य, वित्त और कार्यकारियों (Functions, Finances and Functionaries) का हस्तांतरण किया जाना।
    • उदाहरण के लिये, केरल के जन नियोजन मॉडल (People’s Planning model) में राज्य के योजना बजट का 40% स्थानीय निकायों के लिये (प्रत्यक्ष रूप से) था, जहाँ योजना-निर्माण आदि महत्त्वपूर्ण विषयों का हस्तांतरण किया गया, जिसने शहरी शासन के लिये एक नए आयाम का मार्ग प्रशस्त किया।
  • अवसंरचना में निवेश:
    • विश्व बैंक के अनुसार, भारत को अवसंरचना के लिये सालाना औसतन 55 बिलियन डॉलर (जीडीपी का 1.2%) निवेश करने की आवश्यकता है।
    • केंद्र और राज्य सरकारें वर्तमान में शहरी परियोजनाओं के 72% भाग का वित्तपोषण करती हैं, जबकि वाणिज्यिक वित्तपोषण केवल 5% है। शहरी अवसंरचना के वित्तपोषण में निजी पूंजी की महत्त्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिये।
  • नगर निकाय के राजस्व को सुदृढ़ करना:
    • स्कैंडिनेवियाई देश नागरिकों से एकत्रित आयकर का एक बड़ा हिस्सा शहरी सरकारों को सौंपकर शहरी नियोजन एवं परिवहन से लेकर अपशिष्ट प्रबंधन तक उनके कार्यों का बेहतर तरीके से प्रबंधन करते हैं।
    • वित्त आयोग ने नगर निकायों की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिये संपत्ति कर राजस्व में वृद्धि की आवश्यकता को चिह्नित किया है।
    • उदाहरण के लिये, 12वें वित्त आयोग ने संपत्ति कर प्रशासन में सुधार के लिये भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) और डिजिटलीकरण के उपयोग को प्रोत्साहित किया।
  • रणनीतिक संपत्ति प्रबंधन:
    • स्थानीय निकायों के पास प्रायः अप्रयुक्त संपत्तियाँ होती हैं। इन्हें सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से वाणिज्यिक स्थान, बाज़ार या पार्किंग स्थल विकसित करने के लिये मुद्रीकृत किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये, विश्व बैंक ने स्थानीय सरकारों की अवसंरचना विकास के लिये वित्तपोषण और विशेषज्ञता तक पहुँच के लिये एक साधन के रूप में PPP की अनुशंसा की है।
      • 14वें वित्त आयोग ने अनुशंसा की थी कि नगर निकायों को खाली भूमि पर कर लगाने का अधिकार दिया जाना चाहिये।
  • शहरी स्थानीय निकायों के लिये क्षमता निर्माण:
    • क्षमता निर्माण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मूल्य-वर्द्धित निर्देश शामिल होते हैं। इसमें संस्थागत क्षमता निर्माण के साथ-साथ मानवीय क्षमता निर्माण भी शामिल है।
    • शहरी स्थानीय निकायों को अपनी क्षमता विकसित करने तथा ऋण योग्य परियोजनाओं के क्रियान्वयन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
  • म्यूनिसिपल बॉण्ड और सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE):
    • म्यूनिसिपल बॉण्ड एक ऋण प्रतिभूति है जो किसी राज्य, नगर निकाय या काउंटी द्वारा अपने पूंजीगत व्ययों के वित्तपोषण के लिये (जिसमें राजमार्गों, पुलों या स्कूलों का निर्माण करना शामिल है) जारी की जाती है।
    • सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) सामाजिक उद्यमों को पूंजी जुटाने की अनुमति देता है, जो लाभ सृजन के साथ-साथ सामाजिक प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
    • म्यूनिसिपल बॉण्ड बाज़ार और SSE का विकास करने से उन पहलों की ओर निवेश आकर्षित हो सकता है जो स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ स्थानीय निकाय के लिये राजस्व भी उत्पन्न करेंगे।
  • रूपांतरण के लिये व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता:
    • शहरों को शासन के महत्त्वपूर्ण केंद्रों के रूप में देखा जाना चाहिये, जहाँ लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण और जन भागीदारी से आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये, अपशिष्ट प्रबंधन का इंदौर मॉडल, जो एक विकेंद्रीकृत और लोगों द्वारा संचालित मॉडल है, महत्त्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में सतत् शहरी विकास की प्राप्ति में शहरी शासन की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। समावेशी विकास और पर्यावरणीय संवहनीयता के लिये शहरी शासन की प्रभावशीलता को बढ़ाने की राह की प्रमुख चुनौतियों और आवश्यक उपायों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. संविधान (73वाँ संशोधन) अधिनियम, 1992, जिसका उद्देश्य देश में पंचायती राज संस्थाओं को बढ़ावा देना है, निम्नलिखित में से किसका प्रावधान करता है? (2011)

  1. ज़िला योजना समितियों का गठन। 
  2. राज्य चुनाव आयोग सभी पंचायत चुनाव कराएंगे। 
  3. राज्य वित्त आयोगों की स्थापना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स: 

प्रश्न: तेरहवें वित्त आयोग की अनुशंसाओं की विवेचना कीजिए जो स्थानीय शासन की वित्त-व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए पिछले आयोगों से भिन्न हैं। [200 शब्द] (2013)

प्रश्न: क्या कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिये आवश्यक सामाजिक संसाधनों को सुरक्षित करने के द्वारा, उनकी उन्नति के लिये सरकारी योजनाएँ, शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना करने में उनको बहिष्कृत कर देती हैं? (2014)

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