वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिये राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम

संदर्भ


हाल ही में केंद्र सरकार ने ‘देर आयद दुरुस्त आयद’ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए देशभर में वायु प्रदूषण के खिलाफ युद्धस्तर पर अभियान छेड़ने का फैसला किया है। इसके तहत 300 करोड़ की लागत से राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Programme-NCAP) शुरू किया गया है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन ने नई दिल्ली में 10 जनवरी को इस कार्यक्रम की शुरुआत की। NCAP नाम की यह योजना कई चरणों में लागू की जाएगी।

क्या है NCAP?

  • यह वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिये व्यापक और समयबद्ध रूप से बनाया गया पाँच वर्षीय कार्यक्रम है।
  • इसमें संबंद्ध केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों और अन्य हितधारकों के बीच प्रदूषण एवं समन्वय के सभी स्रोतों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • इसका प्रमुख लक्ष्य वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उन्मूलन के लिये काम करना है।
  • देश के ज्यादातर शहरों में गंभीर वायु प्रदूषण से निपटने के लिये पर्यावरण मंत्रालय की इस देशव्यापी योजना के तहत अगले पांच वर्षों में 102 प्रदूषित शहरों की वायु को स्वच्छ करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • इसके तहत 2017 को आधार वर्ष मानते हुए वायु में मौज़ूद PM 2.5 और PM10 पार्टिकल्स को 20 से 30 फीसदी तक कम करने का ‘अनुमानित राष्ट्रीय लक्ष्य’ रखा गया है।
  • इस योजना के तहत राज्यों को आर्थिक सहायता भी दी जाएगी, ताकि वायु प्रदूषण से निपटने के लिये जो काम किये जाने हैं, उनमें पैसे की कमी बाधा न बने।
  • प्रत्येक शहर को प्रदूषण के स्रोतों के आधार पर कार्यान्वयन के लिये अपनी कार्ययोजना विकसित करने के लिये कहा जाएगा।
  • दोपहिया वाहनों के क्षेत्र में ई-मोबिलिटी की राज्य-स्तरीय योजनाएँ, चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर में तेज़ी से वृद्धि, बीएस-VI मानदंडों का कड़ाई से कार्यान्वयन, सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को बढ़ावा देना और प्रदूषणकारी उद्योगों के लिये तीसरे पक्ष के ऑडिट को अपनाना भी NCAP में शामिल हैं।
  • NCAP केवल एक योजना है और कानूनन बाध्यकारी नहीं है तथा इसमें ई दंडात्मक कार्रवाई करने या जुर्माना लगाने का कोई प्रावधान नहीं है।

क्या है NCAP का लक्ष्य?


NCAP को बनाते समय उपलब्ध अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों और राष्ट्रीय अध्ययनों को मद्देनज़र रखा गया है। इसमें यह ध्यान रखा गया है कि वायु प्रदूषण कम करने वाले अधिकांश कार्यक्रम पूरे देश के लिये न होकर शहर विशेष के लिये बनाए जाएं, जैसा कि विदेशों में देखने को मिलता है। उदाहरण के लिये, बीजिंग और सियोल जैसे शहर, जिनमें ऐसे विशिष्ट कार्यक्रम चलाने के बाद पाँच वर्षों में PM2.5 के स्तर में 35 से 40 फीसदी कमी देखने को मिली।

लेकिन विदेशों में ऐसे कार्यक्रम कितना भी सफल क्यों न रहे हों, उपरोक्त मात्रा में कमी होने बावजूद हमारे देश के अधिकांश शहरों में प्रदूषण का स्तर काफी अधिक रहेगा। दिल्ली में वायु प्रदूषण का जो हाल है उसमें 2024 तक तक यदि 30 फीसदी की कमी हो भी जाती है तो उसके बाद भी प्रदूषण का स्तर खतरे की सीमा से बहुत अधिक रहेगा।

शहरों का चयन

  • NCAP के लिये केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की प्रदूषित शहरों की सूची से 102 शहरों को चुना गया है। इन शहरों का चयन राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (National Ambient Air Quality Monitoring Programme) के 2011-15 तक के डेटा के आधार पर किया गया है।
  • इन शहरों में से 94 में इन पाँच वर्षों में PM10 का स्तर लगातार सीमा से अधिक बना रहा तथा पाँच शहरों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर सीमा से अधिक पाया गया।
  • जहाँ तक सवाल PM2.5 का है तो 2015 तक के डेटा से पता चलता है कि इनमें से 16 शहर ऐसे हैं, जो NCAP का निर्धारित लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकते।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अप्रैल 2018 के डेटाबेस से टॉप-10 शहरों को भी चुना गया, जिसमें विश्व के 15 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में थे।

कैसे लागू होगा NCAP?

  • मोटे तौर पर NCAP केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों के बीच सहयोगी, बहुस्तरीय और क्षेत्रीय समन्वय के साथ लागू करने की योजना है।
  • इसमें वायु (रोकथाम और प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अनुरूप केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड NCAP की संरचना के तहत वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उन्मूलन के लिये राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम का संचालन करेगा।
  • इसमें अधिनियम की धारा 16(2)(बी) के प्रावधानों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगा।
  • NCAP को संबद्ध मंत्रालयों द्वारा संस्थागत रूप दिया जाएगा और इसे अंतर-क्षेत्रीय समूहों द्वारा संगठित स्वरूप दिया जाएगा।
  • इन समूहों में वित्त मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, नीति आयोग और विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होंगे।

NCAP की रणनीतियों में से कुछ ऐसी हैं जो देश के लिये नई नहीं हैं, लेकिन NCAP के तहत इनके बेहतर क्रियान्वयन की व्यवस्था की जाएगी। उदाहरणार्थ, NCAP में ट्रैफिक चौराहों पर पुलिस द्वारा वाहनों की आवाजाही का प्रबंधन करने की संकल्पना की गई है। इसी तरह नगर निगमों द्वारा ठोस कचरा प्रबंधन करने और संबद्ध मंत्रालयों द्वारा कड़े औद्योगिक मानकों को अपनाने की बात NCAP में कही गई है।

पार्टिकुलेट मैटर है सबसे बड़ी चुनौती

  • NCAP में पार्टिकुलेट मैटर को सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर चिन्हित किया है। यह पूरे देश में और गंगा के मैदानी क्षेत्र के शहरों में सीमा से अधिक पाया जाता है।
  • इसमें वाहनों, उद्योगों, बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य, डीजल जेनरेटरों का इस्तेमाल और ईंधन के वाणिज्यिक और घरेलू उपयोग की पहचान प्रमुख प्रदूषकों के रूप में की गई है।
  • देश में पार्टिकुलेट मैटर के बारे में सबसे अधिक अध्ययन दिल्ली को लेकर हुए हैं। NCAP में कहा गया है कि दिल्ली और NCR में इसकी शुरुआत 1992 में पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (Environment Pollution Control Authority-EPCA) के गठन के साथ शुरू हुई थी। इसीलिये इसे उन शहरों की तुलना में बढ़त हासिल है, जहाँ पार्टिकुलेट मैटर को लेकर अध्ययन नहीं हुए हैं।
  • ऐसे में कहा जा सकता है कि शहरों के बारे में उपलब्ध वर्तमान जानकारी विभिन्न क्षेत्रों में कार्रवाई शुरू करने के लिये एक आधार प्रदान करती है। लेकिन वायु गुणवत्ता प्रबंधन योजनाओं को और मज़बूत बनाने के लिये विभिन्न शहरों की स्थिति के अनुसार अध्ययन किये जाने की आवश्यकता है।

कैसे की जाएगी रोकथाम?


प्रदूषण कम करने के लिये NCAP में सुझाए गए कुछ प्रमुख उपाय इस प्रकार हैं:

  1. वेब-आधारित त्रि-स्तरीय तंत्र के माध्यम से कड़े प्रवर्तन नियमों को लागू करना, जो किसी भी प्रकार की कोताही को रोकने के लिये समीक्षा, निगरानी, मूल्यांकन और निरीक्षण करेगा। अब तक हुए अनुभवों से पता चलता है कि नियमित निगरानी और निरीक्षण की कमी की वज़ह से नियमों का अनुपालन नहीं होता। नियमों के कठोर कार्यान्वयन के लिये प्रशिक्षित कर्मी और नियमित निरीक्षण अभियान चलाया जाना ज़रूरी है।
  2. बिजली उत्पादन के दौरान होने वाले उत्सर्जन के लिये दिसंबर 2015 में पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा थर्मल पावर प्लांटों (कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों) के लिये निर्धारित उत्सर्जन मानकों को दो साल की अवधि में लागू किया जाए। वैसे इसे पहले ही 2022 तक बढ़ाया जा चुका है।
  3. पराली जैसे कृषि अवशेषों को जलाने से होने वाले प्रदूषण के बारे में NCAP में कहा गया है कि इसके लिये 1,151 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता के माध्यम से पहल शुरू हो चुकी है।

चुनौती आसान नहीं है


वायु प्रदूषण की वजह से देश की राजधानी दिल्ली सहित कई शहर गैस चैंबर बन चुके हैं। वैश्विक एजेंसियाँ प्रदूषित शहरों की जो सूची जारी करती हैं उनमें भारत के शहर टॉप पर होते हैं। यही वज़ह है कि अगले पांच वर्षों में वायु प्रदूषण को 20 से 30 फीसदी तक नीचे लाने का जो लक्ष्य रखा गया है, उसे हासिल कर पाना एक बड़ी चुनौती है। इसकी वजह यह है कि देश में प्रदूषण बढ़ने की रफ्तार इसको रोकने वाले उपायों की तुलना में काफी तेज़ है। हमारे देश में वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण ठोस परिवहन नीति का नहीं होना भी है। इस वजह से ज्यादातर शहरों में हजारों-लाखों की बड़ी संख्या में ऐसे पुराने वाहन दौड़ रहे हैं जिनकी अवधि खत्म हो चुकी है और इनमें भी डीजल वाहनों की संख्या अधिक है। ऐसे में वायु प्रदूषण से निपटने के लिये त्वरित और ठोस कदमों की जरूरत है। प्रदूषण से निपटने के लिये जन-भागीदारी भी बहुत जरूरी है। जब तक लोगों को जागरूक नहीं किया जाएगा, सरकार के प्रयास कारगर साबित नहीं होंगे। ऐसे में पर्यावरण मंत्रालय के इस कदम को एक अच्छी पहल के रूप में देखा जाना चाहिये और उम्मीद की जानी चाहिये कि इस दिशा में किये गए प्रयास सार्थक होंगे।