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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

चंद्रयान-3

  • 17 Jul 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

चंद्रयान-3, रहने योग्य पृथ्वी ग्रह की स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री, सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, एलिप्टिक पार्किंग ऑर्बिट, LVM3 M4, फ्लाईबीज़, ऑर्बिटर्स, इम्पैक्ट मिशन, NASA का आर्टेमिस प्रोग्राम

मेन्स के लिये:

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, चंद्रयान-3 मिशन और इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?  

चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण के साथ ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) चंद्रमा पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग कराने की तैयारी में है।

  • भारत का लक्ष्य संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन की कतार में शामिल होकर यह उपलब्धि हासिल करने वाला विश्व का चौथा देश बनना है। 

चंद्रयान-3 मिशन:  

  • परिचय:  
    • चंद्रयान-3 भारत का तीसरा चंद्र मिशन और चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग का दूसरा प्रयास है।
    • इस मिशन के तहत चंद्रयान-3 ने 14 जुलाई, 2023 को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से उड़ान भरी थी।
    • इसमें एक स्वदेशी लैंडर मॉड्यूल (LM), प्रोपल्शन मॉड्यूल (PM) और एक रोवर शामिल है जिसका उद्देश्य अंतर ग्रहीय मिशनों के लिये आवश्यक नई प्रौद्योगिकियों को विकसित एवं प्रदर्शित करना है। 
  • चंद्रयान-3 मिशन का उद्देश्य:  
    • चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सुगम लैंडिंग करना।
    • रोवर को चंद्रमा पर घूमते हुए प्रदर्शित करना। 
    • यथास्थान वैज्ञानिक प्रयोगों का संचालन करना।
  • विशेषताएँ:  
    • चंद्रयान-3 के लैंडर (विक्रम) और रोवर पेलोड (प्रज्ञान) चंद्रयान-2 मिशन के समान ही हैं।
    • लैंडर पर वैज्ञानिक पेलोड का उद्देश्य चंद्रमा के पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करना है। इन पेलोड में चंद्रमा पर आने वाले भूकंपों का अध्ययन, सतह के तापीय गुण, सतह के पास प्लाज़्मा में बदलाव और पृथ्वी तथा चंद्रमा के बीच की दूरी को सटीक रूप से मापना शामिल है। 
    • चंद्रयान-3 के प्रणोदन मॉड्यूल में एक नया प्रयोग किया गया है जिसे स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (SHAPE) कहा जाता है।
      • SHAPE का लक्ष्य परावर्तित प्रकाश का विश्लेषण कर संभावित रहने योग्य छोटे ग्रहों की खोज करना है।

  • चंद्रयान-3 में बदलाव और सुधार:  
    • इसके लैंडिंग क्षेत्र का विस्तार किया गया है जो एक बड़े निर्दिष्ट क्षेत्र के भीतर सुरक्षित रूप से उतरने की सुविधा देता है।
    • लैंडर को अधिक ईंधन से लैस किया गया है ताकि आवश्यकतानुसार लैंडिंग स्थल अथवा वैकल्पिक स्थानों तक लंबी दूरी तय की जा सके।
    • चंद्रयान-2 में केवल दो सौर पैनल की तुलना में चंद्रयान-3 लैंडर में चार तरफ सौर पैनल लगाए गए हैं
    • चंद्रयान-2 ऑर्बिटर से प्राप्त उच्च-रिज़ॉल्यूशन छवियों का उपयोग लैंडिंग स्थान निर्धारित करने के लिये किया जाता है और साथ ही स्थिरता तथा मज़बूती बढ़ाने के लिये इसमें कुछ संशोधन किया गया है।
    • लैंडर की गति की निरंतर निगरानी करने और आवश्यक सुधार के लिये चंद्रयान-3 में अतिरिक्त नेविगेशनल एवं मार्गदर्शन उपकरण मौजूद हैं।
      • इसमें लेज़र डॉपलर वेलोसीमीटर नामक एक उपकरण शामिल है जो लैंडर की गति का माप करने के लिये चंद्रमा की सतह पर लेज़र बीम उत्सर्जित/छोड़ेगा करेगा।
  • प्रक्षेपण और समयरेखा:  
    • चंद्रयान-3 को लॉन्च करने के लिये  LVM3 M4 लॉन्चर का सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है
      • LVM3 के उड़ान भरने के लगभग 16 मिनट बाद अंतरिक्ष यान रॉकेट से अलग हो गया। यह एक अंडाकार पार्किंग कक्षा (EPO) में प्रवेश कर गया।
    • चंद्रयान-3 की यात्रा में लगभग 42 दिन लगने का अनुमान है, 23 अगस्त, 2023 को  इसकी चंद्रमा पर लैंडिंग निर्धारित है।
    • लैंडर और रोवर का मिशन लाइफ, एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के लगभग 14 दिन) का होगा क्योंकि वे सौर ऊर्जा पर कार्य करते हैं।
      • चंद्रयान-3 की लैंडिंग साइट चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के समीप है।

दक्षिणी ध्रुव के समीप चंद्रमा की लैंडिंग का महत्त्व:

  • ऐतिहासिक रूप से चंद्रमा के लिये अंतरिक्ष यान मिशनों ने मुख्य रूप से भूमध्यरेखीय क्षेत्र को उसके अनुकूल भूखंड और परिचालन स्थितियों के कारण लक्षित किया है।
    • हालाँकि चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव भूमध्यरेखीय क्षेत्र की तुलना में काफी अलग और अधिक चुनौतीपूर्ण भू-भाग है।
  • कुछ ध्रुवीय क्षेत्रों में सूर्य का प्रकाश दुर्लभ है जिसके परिणामस्वरूप उन क्षेत्रों में हमेशा अंधेरा रहता है जहाँ तापमान -230 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच सकता है। 
    • सूर्य के प्रकाश की कमी के साथ अत्यधिक ठंड उपकरणों के संचालन एवं स्थिरता के लिये कठिनाइयाँ उत्पन्न करती है।
  • चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव अत्यधिक विपरीत स्थितियाँ प्रदान करता है जो मनुष्यों के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करता है लेकिन यह उन्हें प्रारंभिक सौरमंडल के बारे में बहुमूल्य जानकारी का संभावित भंडार बनाता है।
    • इस क्षेत्र का पता लगाना महत्त्वपूर्ण है जो भविष्य में गहरे अंतरिक्ष अन्वेषण को प्रभावित कर सकता है।

भारत के अन्य चंद्रयान मिशन:   

  • चंद्रयान-1:  
    • भारत का चंद्र अन्वेषण मिशन 2008 में चंद्रयान-1 के साथ शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य चंद्रमा का त्रि-आयामी एटलस निर्मित करना और खनिज मानचित्रण करना था।
      • प्रक्षेपण यान: PSLV-C11.  
    • चंद्रयान-1 ने चंद्रमा की सतह पर पानी और हाइड्रॉक्सिल का पता लगाने सहित महत्त्वपूर्ण खोजें कीं।
  • चंद्रयान-2: आंशिक सफलता और खोज:
    • चंद्रयान-2 में एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल थे, जिसका लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की खोज करना था।
      • प्रक्षेपण यान: GSLV MkIII-M1 
    • यद्यपि लैंडर और रोवर चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गए, ऑर्बिटर ने सफलतापूर्वक डेटा एकत्र किया और सभी अक्षांशों पर पानी के प्रमाण पाए।

चंद्रमा मिशन के प्रकार: 

  • फ्लाईबीज़: इन मिशनों में चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किये बिना अंतरिक्ष यान का चंद्रमा के पास से गुज़रना शामिल है, जिससे दूर से अवलोकन की अनुमति मिलती है।
    • उदाहरणतः संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा पायनियर 3 और 4 तथा सोवियत रूस द्वारा लूना (Luna) 3 शामिल हैं।
  • ऑर्बिटर: ये अंतरिक्ष यान चंद्रमा की सतह और वायुमंडल का लंबे समय तक अध्ययन करने के लिये चंद्र कक्षा में प्रवेश करते हैं।
    • चंद्रयान-1 और 46 अन्य मिशन में ऑर्बिटर का उपयोग किया गया है।
  • प्रभाव मिशन: ऑर्बिटर मिशन का विस्तार, प्रभाव मिशन में उपकरण को चंद्रमा की सतह पर अनियंत्रित लैंडिंग करवाना, नष्ट होने से पहले मूल्यवान डेटा प्रदान करवाना शामिल था।
    • चंद्रयान-1 के चंद्रमा प्रभाव जाँच (MIP) ने इस दृष्टिकोण का पालन किया।
  • लैंडर्स: इन मिशनों का लक्ष्य चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करना है, जिससे करीब से अवलोकन किया जा सके।
    • सोवियत रूस द्वारा वर्ष 1966 में Luna 9 चंद्रमा पर पहली सफल लैंडिंग थी।
  • रोवर्स: रोवर्स, विशेष पेलोड हैं जो लैंडर्स से अलग हो जाते हैं और चंद्रमा की सतह पर स्वतंत्र रूप से गति करते हैं।
    • ये बहुमूल्य डेटा एकत्रित करते हैं और स्थिर लैंडर्स की सीमाओं को पार कर जाते हैं। चंद्रयान-2 के रोवर को प्रज्ञान नाम दिया गया था (चंद्रयान-3 के लिये भी यही नाम रखा गया है)।
  • मानव मिशन: इन मिशनों में चंद्रमा की सतह पर अंतरिक्ष यात्रियों की लैंडिंग शामिल है।
    • वर्ष 1969 से 1972 के दौरान छह सफल लैंडिंग के साथ केवल NASA ने ही यह उपलब्धि हासिल की है।
    • वर्ष 2025 के लिये नियोजित नासा का आर्टेमिस III, चंद्रमा पर मानव की वापसी को चिह्नित करेगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग ने भारत को इसके सामाजिक-आर्थिक विकास में कैसे मदद की है? (2016) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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