नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

चंद्रयान-3 मिशन

  • 04 Feb 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

चंद्रयान-3, चंद्रयान-2, चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण मिशन, विभिन्न कक्षाएँ।

मेन्स के लिये:

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, चंद्रयान- 3 मिशन और इसका महत्त्व, विभिन्न प्रकार की कक्षाएँ और उनका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतरिक्ष विभाग द्वारा इस बात की जानकारी साझा की गई है कि भारत की योजना अगस्त 2022 में चंद्रयान-3 मिशन (Chandrayaan-3) को लॉन्च करना है।

प्रमुख बिंदु 

चंद्रयान-3 मिशन

  • चंद्रयान-3 मिशन जुलाई 2019 के चंद्रयान-2 का अनुवर्ती/उत्तराधिकारी मिशन है जिसका उद्देश्य चंद्र के दक्षिणी ध्रुव पर एक रोवर को उतारना था।
  • विक्रम लैंडर की विफलता के बाद लैंडिंग क्षमताओं को प्रदर्शित करने हेतु एक और मिशन की खोज की आवश्यकता महसूस की गई जो वर्ष 2024 में जापान के साथ साझेदारी में प्रस्तावित चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण मिशन (Lunar Polar Exploration Mission) से संभव है। 
  • इसमें एक ऑर्बिटर और एक लैंडिंग मॉड्यूल होगा। हालांँकि इस ऑर्बिटर को चंद्रयान-2 जैसे वैज्ञानिक उपकरणों से सुसज्जित नहीं किया जाएगा।
    • इसका कार्य केवल लैंडर को चंद्रमा तक ले जाने, उसकी कक्षा से लैंडिंग की निगरानी करने और लैंडर व पृथ्वी स्टेशन के मध्य संचार करने तक ही सीमित रहेगा।

चंद्रयान-2 मिशन:

  • चंद्रयान-2 में एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल थे, जो सभी चंद्रमाओं का अध्ययन करने के लिये वैज्ञानिक उपकरणों से लैस थे।
    • ऑर्बिटर द्वारा 100 किलोमीटर की कक्षा में चंद्रमा को देखा गया, जबकि चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के लिये लैंडर और रोवर मॉड्यूल को अलग किया गया था।
    • इसरो ने लैंडर मॉड्यूल का नाम विक्रम, भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के अग्रणी विक्रम साराभाई के नाम पर रखा था और रोवर मॉड्यूल को प्रज्ञान नाम दिया गया जिसका अर्थ है- ज्ञान।
  • इसे देश के सबसे शक्तिशाली जियोसिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल, जीएसएलवी-एमके 3 (GSLV-Mk 3) द्वारा भेजा गया था।
  • हालांँकि लैंडर विक्रम द्वारा नियंत्रित लैंडिंग के बजाय क्रैश-लैंडिंग की गई जिस कारण रोवर प्रज्ञान को चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक स्थापित नहीं किया जा सका। 

GSLV-Mk 3: 

  • जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-एमके 3 (GSLV-Mk 3) ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (ISRO) द्वारा विकसित एक उच्च प्रणोदन क्षमता वाला यान है। यह एक तीन-चरणीय वाहन है, जिसे संचार उपग्रहों को भूस्थिर कक्षा में लॉन्च करने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
  • इसका द्रव्यमान 640 टन है जो 8,000 किलोग्राम पेलोड को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) और 4000 किलोग्राम पेलोड को जीटीओ (जियो-सिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में स्थापित कर सकता है।

कक्षाओं (ऑर्बिट) के प्रकार:

ध्रुवीय कक्षा:

  • एक ध्रुवीय कक्षा वह कक्षा है जिसमें कोई पिंड या उपग्रह ध्रुवों के ऊपर से उत्तर से दक्षिण की ओर गुज़रता है और एक पूर्ण चक्कर लगाने में लगभग 90 मिनट का समय लेता है।
  • इन कक्षाओं का झुकाव 90 डिग्री के करीब होता है। यहाँ से उपग्रह द्वारा पृथ्वी के लगभग हर हिस्से को देखा जा सकता है क्योंकि पृथ्वी इसके नीचे घूमती है।
  • इन उपग्रहों के कई अनुप्रयोग हैं जैसे- फसलों की निगरानी, ​​वैश्विक सुरक्षा, समताप मंडल में ओज़ोन सांद्रता को मापना या वातावरण में तापमान को मापना।
  • ध्रुवीय कक्षा में स्थित लगभग सभी उपग्रहों की ऊँचाई कम होती है।
  • एक कक्षा को सूर्य-तुल्यकालिक कहा जाता है क्योकि पृथ्वी के केंद्र और उपग्रह तथा सूर्य को मिलाने वाली रेखा के बीच का कोण संपूर्ण कक्षा में स्थिर रहता है।
  • इन कक्षाओं को "लो अर्थ ऑर्बिट (LEO)" के रूप में भी जाना जाता है, जो ऑनबोर्ड कैमरा को प्रत्येक बार की जाने वाली यात्रा के दौरान समान सूर्य-रोशनी की स्थिति में पृथ्वी की छवियों को लेने में सक्षम बनाता है, इस प्रकार यह उपग्रह को पृथ्वी के संसाधनों की निगरानी के लिये उपयोगी बनाता है।
  • यह सदैव पृथ्वी की सतह पर किसी बिंदु के ऊपर से गुज़रता है।

भू-तुल्यकालिक कक्षा (Geosynchronous Orbit):

  • भू-तुल्यकालिक उपग्रहों को उसी दिशा में कक्षा में प्रक्षेपित किया जाता है जिस दिशा में पृथ्वी घूम रही है।
  • जब उपग्रह एक विशिष्ट ऊँचाई (पृथ्वी की सतह से लगभग 36,000 किमी.) पर कक्षा में स्थित रहता है, तो वह उसी गति से परिक्रमा करता है जिस पर पृथ्वी घूर्णन कर रही होती है
    • जबकि भूस्थैतिक कक्षा भी भू-तुल्यकालिक कक्षा की श्रेणी में आते हैं, लेकिन इसमें भूमध्य रेखा के ऊपर कक्षा में स्थित रहने का एक विशेष गुण है।
  • भूस्थिर उपग्रहों के मामले में पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल वृत्तीय गति हेतु आवश्यक त्वरण प्रदान करने के लिये पर्याप्त होता है।
  • भू-तुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा (GTO): भू-तुल्यकालिक कक्षा या भूस्थैतिक कक्षा को प्राप्त करने के लिये एक अंतरिक्षयान को पहले भू-तुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा में लॉन्च किया जाता है।
    • GTO से अंतरिक्षयान अपने इंजन का उपयोग भूस्थैतिक और भू-तुल्यकालिक कक्षा में स्थानांतरित होने के लिये करता है।

Types-of-orbit

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow