अंतर्राष्ट्रीय संबंध
चाबहार बंदरगाह समझौता
- 17 May 2024
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प्रिलिम्स के लिये:चाबहार बंदरगाह, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा, बेल्ट और रोड इनिशिएटिव मेन्स के लिये:भारत के लिये चाबहार बंदरगाह का महत्त्व, भारत और ईरान के मध्य विवादित क्षेत्र। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और ईरान ने ईरान के चाबहार बंदरगाह के संचालन के लिये 10 वर्ष के अनुबंध पर हस्ताक्षर किये।
- इस दीर्घकालिक समझौते पर इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) और ईरान के पोर्ट एंड मैरीटाइम ऑर्गनाइज़ेशन (PMO) के बीच शाहिद-बेहिश्ती टर्मिनल के संचालन करने हेतु हस्ताक्षर किये गए।
- ईरान के साथ दीर्घकालिक अनुबंध पर हस्ताक्षर करना मध्य एशिया के लिये भारत की रणनीतिक एवं आर्थिक दृष्टि का हिस्सा है।
चाबहार बंदरगाह भारत के लिये महत्त्वपूर्ण क्यों है?
- परिचय:
- चाबहार, ईरान का एकमात्र समुद्री बंदरगाह है। यह मकरान तट पर सिस्तान एवं बलूचिस्तान प्रांत में ओमान की खाड़ी में स्थित है।
- चाबहार में दो मुख्य बंदरगाह हैं, शाहिद कलंतरी एवं शाहिद बेहिश्ती बंदरगाह।
- ईरान ने भारत को शाहिद बेहिश्ती बंदरगाह के निर्माण का प्रस्ताव दिया और भारत ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
- चाबहार बंदरगाह समझौते के संबंध में प्रगति:
- भारत ने मई 2015 में चाबहार बंदरगाह के विकास के लिये एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये।
- मई 2016 में भारत, ईरान एवं अफगानिस्तान द्वारा अंतर्राष्ट्रीय परिवहन और पारगमन गलियारे की स्थापना के लिये एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसे चाबहार समझौते के रूप में भी जाना जाता है।
- इस समझौते का उद्देश्य ईरान में चाबहार बंदरगाह को एक प्रमुख पारगमन बिंदु के रूप में उपयोग करके उक्त तीनों देशों के बीच परिवहन और व्यापार संपर्क में सुधार करना है।
- हालाँकि, दीर्घकालिक समझौते को अंतिम रूप देने में समझौते के कुछ खंडों पर मतभेद सहित कई कारकों के कारण बाधा उत्पन्न हुई।
- भारत एक तटस्थ देश में मध्यस्थता चाहता था, जबकि ईरान अपने देश के न्यायालयों या किसी अनुकूल देश में यह प्रक्रिया करना चाहता था।
- विवाद का मुख्य बिंदु यह था कि विवादों के समाधान के लिये मध्यस्थता कहाँ की जाए। अब, दोनों पक्ष एक ऐसे समझौते पर सहमत हुए हैं जो उनसे संबंधित हितों को संतुष्ट करता है। अनुबंध में कहा गया है कि किसी भी असहमति को दोनों देशों के नेताओं के बीच खुले संचार और सहयोग के माध्यम से सुलझाया जाना चाहिये।
- इस नवीनतम दीर्घकालिक समझौते का उद्देश्य स्वचालित नवीनीकरण प्रावधानों के साथ 10 वर्षों की अवधि वाले प्रारंभिक अनुबंध को प्रतिस्थापित करना है।
- चाबहार बंदरगाह का महत्त्व:
- वैकल्पिक व्यापार मार्ग: ऐतिहासिक रूप से अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत की पहुँच काफी हद तक पाकिस्तान के माध्यम से पारगमन मार्गों पर निर्भर रही है।
- चाबहार बंदरगाह भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया में व्यापार के लिये एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है, जिसके लिये भारत पहले पाकिस्तान पर निर्भर करता था।
- इसके अतिरिक्त, चाबहार बंदरगाह भारत की ईरान तक पहुँच को सुविधाजनक बनाएगा, जो अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (International North-South Transport Corridor-INSTC) का मुख्य प्रवेश बिंदु है, जो भारत, ईरान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप को सड़क, रेल और समुद्र के माध्यम से जोड़ता है।
- आर्थिक लाभ: संसाधन संपन्न मध्य एशियाई देशों और अफगानिस्तान के साथ संबंध बढ़ाने के भारत के प्रयासों में चाबहार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- यह भारत को अपने व्यापारिक मार्गों में विविधता लाने तथा ईरान व अफगानिस्तान के अतिरिक्त रूस, यूरेशिया और यूरोप के बाज़ारों तक पहुँच बढ़ाने में सहायता करेगा।
- INSTC मार्ग के माध्यम से कार्गो आवाजाही से लागत में 30% और परिवहन में लगने वाले समय में 40% की बचत होने का अनुमान है, जिससे प्रतिस्पर्धी लागत में त्वरित बदलाव सुनिश्चित हो सकेगा।
- मध्य एशियाई देश, जो संसाधनों से समृद्ध हैं, लेकिन कज़ाखस्तान और उज़्बेकिस्तान जैसे देशों, जो समुद्र तक सीधी पहुँच नहीं रखते हैं, ने हिंद महासागर क्षेत्र से जुड़ने तथा भारतीय बाज़ार में प्रवेश करने के लिये चाबहार का उपयोग करने में रुचि दिखाई है।
- यह भारत को अपने व्यापारिक मार्गों में विविधता लाने तथा ईरान व अफगानिस्तान के अतिरिक्त रूस, यूरेशिया और यूरोप के बाज़ारों तक पहुँच बढ़ाने में सहायता करेगा।
- मानवीय सहायता: चाबहार बंदरगाह अफगानिस्तान में मानवीय सहायता और पुनर्निर्माण प्रयासों के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रवेश बिंदु के रूप में कार्य कर सकता है।
- कोविड-19 महामारी के दौरान चाबहार बंदरगाह ने मानवीय सहायता की आपूर्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- चाबहार बंदरगाह के माध्यम से भारत से अफगानिस्तान तक 2.5 मिलियन टन गेहूँ और 2,000 टन दालों का निर्यात किया है।
- वर्ष 2021 में भारत ने टिड्डियों के हमलों से निपटने के लिये बंदरगाह के माध्यम से ईरान को 40,000 लीटर पर्यावरण-अनुकूल कीटनाशक मैलाथियान भेजा।
- रणनीतिक प्रभाव और क्षेत्रीय स्थिरता: चाबहार बंदरगाह को विकसित और संचालित करके, भारत हिंद महासागर क्षेत्र में अपने रणनीतिक प्रभाव को बढ़ा सकता है, जिससे भारत की भू-राजनीतिक स्थिति मज़बूत हो सकती है।
- चाबहार बंदरगाह चीन द्वारा पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह के विकास के प्रतिकार के रूप में कार्य करेगा।
- इसके अतिरिक्त, चाबहार में उपलब्ध डॉकिंग सुविधाओं के कारण भारत समुद्री डकैती के मामलों पर प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया दे सकता है और अरब सागर में रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में काम कर सकता है।
- वैकल्पिक व्यापार मार्ग: ऐतिहासिक रूप से अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत की पहुँच काफी हद तक पाकिस्तान के माध्यम से पारगमन मार्गों पर निर्भर रही है।
चाबहार बंदरगाह की क्षमता को साकार करने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- ईरान को लेकर अमेरिका की चिंता:
- ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास के लिये दीर्घकालिक मुख्य अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के पश्चात संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत को "प्रतिबंधों के संभावित जोखिम" की चेतावनी दी है।
- तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर कब्ज़ा करने के बाद, वर्ष 1979 से अमेरिका ने विभिन्न कानूनी प्राधिकरणों के तहत ईरान के साथ की जाने वाली आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया है।
- इससे पहले वर्ष 2018 में अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह की प्रगति और इसे अफगानिस्तान से जोड़ने हेतु रेलवे लिंक के निर्माण में सहायता के लिये भारत को विशिष्ट प्रतिबंधों से छूट दी थी।
- ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास के लिये दीर्घकालिक मुख्य अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के पश्चात संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत को "प्रतिबंधों के संभावित जोखिम" की चेतावनी दी है।
- हाउथी-लाल सागर संकट:
- हाउथी विद्रोही संचार के समुद्री मार्गों को बाधित कर सकते हैं, जिससे चाबहार बंदरगाह पर यातायात भी प्रभावित होगा।
- सुरक्षा संबंधी चिंताएँ, क्षेत्रीय तनाव:
- अफगानिस्तान से अमेरिका सेना की वापसी और तालिबान के पुनः वापसी के कारण वहाँ अस्थिरता उत्पन्न हो गई है, जिसका भारत के साथ व्यापार संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- ईरान व उसके कुछ पड़ोसी देशों, जैसे कि इज़रायल के मध्य अस्थिर संबंधों के साथ-साथ अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों में अस्थिर राजनीतिक स्थितियाँ भी चाबहार बंदरगाह और भारत के आर्थिक हितों को प्रभावित कर रही हैं।
- समान परियोजनाओं से प्रतिस्पर्धा:
- चाहबहार में कई परिवहन मार्गों से चुनौतियाँ हैं, जैसे भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (India-Middle East-Europe Economic Corridor- IMEC) जो एशिया और पूर्वी यूरोप को जोड़ता है।
- चीन से प्रतिस्पर्द्धा:
- चाबहार में चीन जैसे मज़बूत प्रतिस्पर्द्धियों के द्वारा किया गया निवेश, ईरान में भारत के हितों को प्रभावित कर सकता है।
- अवसंरचना विकास:
- चाबहार परियोजना का उद्देश्य बंदरगाहों, सड़कों एवं रेलवे जैसे बुनियादी ढाँचे में सुधार करना है, जिसके लिये महत्त्वपूर्ण निवेश, समय तथा विशेषज्ञता की आवश्यकता है। कोई भी देरी या अक्षमता इसकी प्रगति में बाधा बन सकती है।
भारत और ईरान के बीच आर्थिक संबंधों की स्थिति क्या है?
- वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान भारत-ईरान द्विपक्षीय व्यापार 2.33 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो वर्ष-दर-वर्ष 21.76% की वृद्धि दर्शाता है।
- ईरान को भारत का निर्यात 1.66 बिलियन अमेरिकी डॉलर था और ईरान से भारत का आयात 672.12 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- पिछले वर्ष के इसी आंकड़े की तुलना में कुल व्यापार में 23.32% की कमी आई।
- भारत, ईरान को मुख्य रूप से कृषि उत्पाद एवं पशु उत्पाद जैसे-मांस, दुग्ध उत्पाद, प्याज, लहसुन तथा डिब्बाबंद सब्ज़ियाँ निर्यात करता था।
- ईरान से आयात में मिथाइल अल्कोहल, पेट्रोलियम बिटुमेन, तरलीकृत ब्यूटेन, तरलीकृत प्रोपेन, सेब, खजूर और बादाम शामिल थे।
- अप्रैल 2000 से दिसंबर 2023 तक ईरान से भारत में FDI प्रवाह केवल 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर दर्ज़ किया गया।
- भारत वर्तमान में ईरानी तेल का आयात नहीं करता है क्योंकि ईरान, संयुक्त राज्य अमेरिका (US) के प्रतिबंधों के अधीन है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: रूस और यूरेशिया के साथ भारतीय संपर्क को अनुकूल बनाने के लिये INSTC और चाबहार पोर्ट एक दूसरे के पूरक कैसे सिद्ध होंगे? |
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