अंतर्राष्ट्रीय संबंध
चाबहार में भारत का रणनीतिक निवेश
- 22 May 2024
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यह एडिटोरियल 21/05/2024 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “Anchoring ties in Chabahar waters” लेख पर आधारित है। इसमें चाबहार बंदरगाह पर एक टर्मिनल के संचालन के लिये भारत और ईरान के बीच 10 वर्ष के अनुबंध और इसके रणनीतिक महत्त्व के बारे में चर्चा की गई है।
प्रिलिम्स के लिये:चाबहार बंदरगाह, शाहिद बेहिश्ती बंदरगाह, होर्मुज जलडमरूमध्य, अंतर्राष्ट्रीय परिवहन और पारगमन गलियारा, चीन की मोतियों की माला, यमन संकट, स्वेज नहर, लाल सागर, चाबहार-ज़ाहेदान रेलवे परियोजना। मेन्स के लिये:भारत के लिये चाबहार बंदरगाह का महत्त्व, चाबहार बंदरगाह परियोजना के संबंध में भारत के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ। |
रणनीतिक अवस्थिति रखने वाले चाबहार बंदरगाह पर एक टर्मिनल के संचालन के लिये भारत और ईरान के बीच हाल ही में 10 वर्ष के एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये गए, जो वृहत मध्य एशियाई क्षेत्र में अपनी कनेक्टिविटी और प्रभाव का विस्तार करने के भारत के प्रयासों में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है। समझौते के तहत, भारत चाबहार में शाहिद बेहिश्ती बंदरगाह के विकास एवं संचालन के लिये लगभग 120 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगा और अवसंरचना के उन्नयन के लिये 250 मिलियन डॉलर की ऋण सुविधा प्रदान करेगा।
हालाँकि चाबहार बंदरगाह में भारत की भागीदारी इसके रणनीतिक महत्त्व के बावजूद चुनौतियों का सामना कर रही है। इसमें सफलता के लिये, भारत को कूटनीतिक कौशल, अवसंरचना के उन्नयन और विविध कनेक्टिविटी विकल्पों की आवश्यकता होगी।
चाबहार बंदरगाह परियोजना (Chabahar Port Project):
- चाबहार, जिसका फ़ारसी में अर्थ है ‘चार झरने’ (four springs), ईरान के सिस्तान बलूचिस्तान प्रांत में अवस्थित एक डीप-वाटर बंदरगाह है।
- खुले समुद्र में स्थित यह बंदरगाह बड़े मालवाहक जहाज़ों के लिये आसान एवं सुरक्षित पहुँच प्रदान करता है।
- 10वीं शताब्दी के ईरानी विद्वान अल बिरूनी द्वारा उपमहाद्वीप के प्रवेश बिंदु के रूप में वर्णित यह स्थान ओमान की खाड़ी के साथ-साथ होर्मुज जलडमरूमध्य के भी निकट स्थित है।
- यह भारत के गुजरात में कांडला बंदरगाह से महज 550 समुद्री मील की दूरी पर स्थित है।
- चाबहार बंदरगाह में दो टर्मिनल शामिल हैं: शाहिद बेहेश्ती और शाहिद कलंतरी।
- भारत का निवेश केवल शाहिद बेहेश्ती टर्मिनल में है।
- बंदरगाह का विकास चार चरणों में किया जा रहा है। पूरा होने पर इसकी क्षमता 82 मिलियन टन प्रतिवर्ष हो जाएगी।
चाबहार बंदरगाह के विकास से संबंधित समयरेखा
- भू-राजनीतिक बदलाव और व्यापार मार्ग पर फोकस (1990-2000 के दशक)
- 1990 का दशक: भारत ने अपनी भू-राजनीतिक रणनीति के केंद्रीय तत्व के रूप में व्यापार मार्गों (Trade Routes) की ओर कदम बढ़ाया।
- 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध में: अफगानिस्तान में तालिबान के उदय के बीच भारत और ईरान के बीच सहयोग की वृद्धि हुई।
- आरंभिक सहभागिता और रणनीतिक सहयोग (2002-2003)
- 2002: भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह के विकास के लिये चर्चा शुरू हुई। यह भारत की बढ़ती आर्थिक आवश्यकताओं और पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए मध्य एशिया तक वैकल्पिक व्यापार मार्गों की तलाश की भारत की इच्छा के अनुरूप था।
- 2003: भारत और ईरान ने चाबहार बंदरगाह के विकास सहित वृहत रणनीतिक सहयोग के लिये एक रोडमैप पर हस्ताक्षर किये।
- हालाँकि राष्ट्रपति बुश के कार्यकाल में अमेरिका द्वारा ईरान को ‘बुराई की धुरी’ (Axis of Evil) का अंग करार दिये जाने से भारत पर दबाव बढ़ा, जिससे इस दिशा में कोई उल्लेखनीय प्रगति अवरुद्ध रही।
- विकासात्मक प्रगति और समझौते (वर्ष 2010 के बाद)
- 2010 का दशक (आरंभिक दौर): भारत चाबहार के प्रति प्रतिबद्ध बना रहा और अभिगम्यता को बेहतर बनाने के लिये डेलाराम (अफगानिस्तान) को ईरान-अफगान सीमा पर ज़रांज से जोड़ने वाली 218 किलोमीटर लंबी सड़क में निवेश किया। हालाँकि, परियोजना का समग्र विकास धीमा ही बना रहा।
- 2015: ईरान और P-5+1 शक्तियों के बीच वार्ता में सफलता मिली, जिससे चाबहार में प्रगति का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- 2016: भारत, ईरान एवं अफगानिस्तान के बीच त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए, अंतर्राष्ट्रीय परिवहन एवं पारगमन गलियारे की स्थापना हुई और चाबहार के विकास में तेज़ी आई।
- 2017: शाहिद बेहेश्ती टर्मिनल के प्रथम चरण का उद्घाटन हुआ जिसने चाबहार के परिचालन में एक महत्त्वपूर्ण मील के पत्थर को चिह्नित किया।
- भारत ने चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान को गेहूँ की पहली खेप भेजी, जिससे बंदरगाह की कार्यक्षमता प्रदर्शित हुई।
- 2018: वर्ष 2015 में भारत के रणनीतिक उद्देश्यों के अनुरूप चाबहार के विकास में इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) को एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में शामिल किया गया। वर्ष 2018 में IPGL ने चाबहार परिचालन का कार्यभार संभाल लिया, जिससे बंदरगाह के माध्यम से कार्गो हैंडलिंग और मानवीय सहायता प्रयासों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- 2021: ईरान को पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल कीटनाशकों की आपूर्ति के लिये बंदरगाह का उपयोग किया गया।
- वर्तमान प्रगति
- भारत और ईरान ने चाबहार बंदरगाह पर IPGL द्वारा एक टर्मिनल के संचालन के लिये 10 वर्ष के अनुबंध पर हस्ताक्षर किये हैं। यह चाबहार के विकास के लिये भारत की दीर्घकालिक रणनीतिक एवं आर्थिक प्रतिबद्धता को परिलक्षित करता है।
भारत के लिये चाबहार बंदरगाह का महत्त्व:
- चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति (String of Pearls Strategy) का प्रतिसंतुलन: चीन ने चटगांव (बांग्लादेश), कराची एवं ग्वादर (पाकिस्तान), कोलंबो एवं हंबनटोटा (श्रीलंका) और क्यौक्फ्यू (म्यांमार) जैसे विभिन्न स्थानों पर रणनीतिक प्रतिष्ठान स्थापित किये हैं।
- यद्यपि इन्हें वाणिज्यिक परियोजनाओं के रूप में प्रस्तुत किया गया है, लेकिन भारत से संबंधित किसी भी संघर्ष की स्थिति में ये तुरंत ही चीनी नौसैनिक अड्डों में रूपांतरित हो सकते हैं।
- चाबहार भारत के लिये नेकलेस ऑफ डायमंड रणनीति (Necklace of Diamond Strategy) के एक भाग के रूप में एक रणनीतिक प्रतिकार की भूमिका में कार्य करता है। यह भारत को क्षेत्र में चीनी गतिविधियों पर नज़र रखने और ‘स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स’ के माध्यम से चीन की घेरेबंदी की रणनीति का मुक़ाबला कर सकने का अवसर प्रदान करता है।
- पश्चिम एशियाई अस्थिरता के बीच कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना: पश्चिम एशियाई क्षेत्र में जारी संघर्ष एवं तनावों (जैसे यमन संकट और ईरान एवं पाकिस्तान के बीच हाल ही में बढ़े तनाव) ने महत्त्वपूर्ण समुद्री व्यापार मार्गों को बाधित कर दिया है।
- चाबहार भारत को अपने वाणिज्यिक हितों के लिये एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है, जिससे होर्मुज जलडमरूमध्य जैसे पारंपरिक अवरोधक बिंदुओं पर निर्भरता कम हो जाती है।
- ‘न्यू ग्रेट गेम’ में भारत की भूमिका की वृद्धि: मध्य एशिया में प्रभाव जमाने की होड़—जिसे प्रायः ‘न्यू ग्रेट गेम’ (New Great Game) के रूप में संदर्भित किया जाता है—चीन, रूस एवं अमेरिका जैसी वैश्विक शक्तियों की भागीदारी के साथ तेज़ हो गई है।
- चाबहार इस भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा में भारत की स्थिति को सुदृढ़ करता है, जिससे उसे क्षेत्र में अपने आर्थिक एवं रणनीतिक हितों का लाभ उठाने का अवसर मिलता है।
- भारत की विस्तारित पड़ोस की नीति को सुविधाजनक बनाना: चाबहार भारत की ‘विस्तारित पड़ोस की नीति’ (Extended Neighborhood Policy) के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य अपने निकटतम पड़ोस से परे क्षेत्रों में अपने प्रभाव एवं संलग्नता को बढ़ाना है।
- यह बंदरगाह मध्य एशिया के लिये एक रणनीतिक प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है, जिससे भारत को इस क्षेत्र में अपने ‘सॉफ्ट पावर’ और आर्थिक सामर्थ्य के प्रदर्शन में मदद मिलती है।
- अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (International North-South Transport Corridor- INSTC): चाबहार INSTC परियोजना में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है, जिसका उद्देश्य स्वेज नहर (जो हाल ही में पारगमन से संबंधित एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बन गया है) जैसे पारंपरिक मार्गों की तुलना में भारत, ईरान, अफगानिस्तान, रूस एवं यूरोप के बीच माल की आवाजाही के लिये परिवहन समय और लागत को कम करना है।
- उद्योग आकलन के अनुसार, INSTC मार्ग से शिपमेंट में स्वेज नहर मार्ग की तुलना में 15 दिन कम लगेंगे।
नोट: ईरान में चाबहार बंदरगाह के विकास के अलावा, भारत इंडोनेशिया के सबांग (Sabang) में एक गहरे समुद्र में स्थित बंदरगाह या डीप-सी पोर्ट का निर्माण कर रहा है, जबकि मोंगला में बंदरगाह के पुनर्विकास में बांग्लादेश की सहायता करेगा। वर्ष 2016 में भारत ने म्यांमार के सितवे में एक डीप-सी पोर्ट का निर्माण किया।
चाबहार बंदरगाह परियोजना में भारत के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ
- भारत-अमेरिका-ईरान त्रिकोण पर नियंत्रण: चूँकि अमेरिका और ईरान के बीच तनाव बढ़ रहा है, भारत के समक्ष यह चुनौती है कि वह सुनिश्चित करे कि चाबहार में उसके निवेश के कारण अमेरिका की ओर से कोई अतिरिक्त प्रतिबंध न लगाया जाए, जिससे फिर अमेरिका के साथ भारत के व्यापक आर्थिक एवं रणनीतिक संबंध खतरे में पड़ सकते हैं।
- इसके अलावा, ईरान पर नए अमेरिकी प्रतिबंधों (इज़राइल पर ईरान के ड्रोन हमलों के परिदृश्य में) के कारण चाबहार में कंपनियों द्वारा भागीदारी से बचने का पुराना जोखिम बढ़ गया है।
- ईरान में अस्थिर राजनीतिक वातावरण: ईरान की राजनीतिक अस्थिरता और आंतरिक संघर्ष परियोजना की निरंतरता को बाधित कर सकते हैं।
- गाजा में इज़राइल के जारी युद्ध और लाल सागर में समुद्री व्यापार में ईरान समर्थित सशस्त्र समूहों के कारण व्यापक व्यवधान से क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ेगी।
- विश्व बैंक के अनुसार, कारोबार सुगमता के मामले में ईरान 190 देशों की सूची में 127वें स्थान पर है, जो इसके चुनौतीपूर्ण कारोबारी माहौल को परिलक्षित करता है।
- चीन और पाकिस्तान के प्रति ईरान का खुलापन: ईरान चाबहार में भारत के साथ ही चीन और पाकिस्तान के निवेश के प्रति भी खुला रुख रखता है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2020 में चाबहार-ज़ाहेदान रेलवे परियोजना से भारत के पीछे हटने को अप्रत्यक्ष रूप से ईरान द्वारा चीन के साथ 25 वर्षीय समझौते (जिसमें अवसंरचना विकास के लिये 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश शामिल है) की संभावना के प्रभाव के रूप में देखा गया था।
- भिन्न-भिन्न क्षेत्रीय प्राथमिकताओं में सामंजस्य स्थापित करना: चाबहार में भारत की भागीदारी सऊदी अरब और इज़राइल जैसे अन्य प्रमुख क्षेत्रीय भागीदारों के साथ उसके संबंधों को तनावपूर्ण बना सकती है, जो ईरान को क्षेत्र में अस्थिरता पैदा करने वाली शक्ति के रूप में देखते हैं।
- पर्यावरणीय चिंताएँ: ओमान की खाड़ी (जहाँ चाबहार स्थित है) का भंगुर पारिस्थितिकी तंत्र बढ़ते शिपिंग यातायात और संभावित तेल रिसाव से होने वाले प्रदूषण के प्रति संवेदनशील है।
- प्रतिस्पर्द्धा या प्रतिबंधों से संबंधित चिंताओं के विपरीत, पर्यावरणीय मुद्दों पर यदि सक्रियता से ध्यान न दिया जाए तो वे अंतर्राष्ट्रीय आलोचना का कारण बन सकते हैं और परियोजना के वित्तपोषण को जटिल बना सकते हैं।
चाबहार से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिये भारत कौन-से उपाय कर सकता है?
- बहुपक्षीय वित्तपोषण तंत्र: भारत चाबहार परियोजना के वित्तपोषण के लिये समान विचारधारा वाले देशों को शामिल करते हुए एक बहुपक्षीय वित्तपोषण तंत्र स्थापित करने पर विचार कर सकता है।
- इसमें रूस या यहाँ तक कि ऐसे कुछ यूरोपीय राष्ट्र भी संलग्न किये जा सकते हैं जो अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे में रुचि रखते हैं।
- निवेशकों का एक विविध समूह परियोजना को एकतरफा प्रतिबंधों या राजनीतिक दबावों के जोखिम से बचाने में मदद कर सकता है।
- परियोजना का क्षेत्रीयकरण: इसे एक पूर्णतया द्विपक्षीय भारत-ईरान पहल के रूप में नहीं देखा जाए, इसके लिये भारत चाबहार परियोजना के क्षेत्रीयकरण की दिशा में कार्य कर सकता है।
- इसके तहत, बंदरगाह के विकास एवं संचालन में भागीदारी के लिये मध्य एशियाई देशों जैसे क्षेत्रीय खिलाड़ियों को आमंत्रित करना शामिल हो सकता है।
- उनकी भागीदारी से ईरान के अस्थिरकारी प्रभाव के बारे में चिंताओं को कम करने में मदद मिल सकती है और इन देशों के साथ तनाव कम करने में भी सहायता प्राप्त हो सकती है।
- ‘ग्रीन शिपिंग कॉरिडोर’: भारत चाबहार को इस भूभाग में ‘ग्रीन शिपिंग कॉरिडोर’ स्थापित करने वाली अग्रणी परियोजना के रूप में आगे बढ़ा सकता है।
- कड़े पर्यावरणीय मानकों को लागू करने, हरित प्रौद्योगिकियों को अपनाने और संवहनीय अभ्यासों को बढ़ावा देने से, यह बंदरगाह पर्यावरणीय संवहनीयता पर केंद्रित संस्थानों से अंतर्राष्ट्रीय समर्थन एवं वित्तपोषण आकर्षित कर सकता है।
- इससे पारिस्थितिकीय प्रभाव से संबंधित चिंताओं का समाधान करने तथा व्यापक समर्थन प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।
- ‘डिजिटल सिल्क रोड’: चाबहार के भौतिक संपर्क उद्देश्यों के अतिरिक्त, भारत क्षेत्र में ‘डिजिटल सिल्क रोड’ स्थापित करने के लिये भी चाबहार का लाभ उठा सकता है।
- इसमें डिजिटल अवसंरचना का विकास करना, ई-कॉमर्स को बढ़ावा देना और INSTC के साथ सीमा-पार डेटा प्रवाह को सक्षम करना शामिल हो सकता है।
- ऐसा डिजिटल घटक प्रौद्योगिकी कंपनियों से निवेश आकर्षित कर सकता है, परियोजना के हितधारकों में विविधता ला सकता है और भू-राजनीतिक तनावों से प्रभावित होने वाले पारंपरिक कंपनियों पर निर्भरता को कम कर सकता है।
- ‘सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी’: भारत इस भूभाग में ‘सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी’ के साथ अपने आर्थिक प्रयासों को पूरकता प्रदान कर सकता है। इसमें INSTC मार्ग पर स्थित देशों को शामिल करते हुए सांस्कृतिक आदान-प्रदान, शैक्षिक भागीदारी और लोगों के प्रत्यक्ष संपर्क संबंधी पहलों को बढ़ावा देना शामिल हो सकता है।
- ऐसे प्रयासों से सद्भावना निर्माण, आपसी समझ को बढ़ावा देने तथा ऐसे भू-राजनीतिक तनावों को कम करने में मदद मिल सकती है जो चाबहार परियोजना को प्रभावित कर सकते हैं।
अभ्यास प्रश्न: चाबहार बंदरगाह परियोजना के क्रियान्वयन में विद्यमान बाधाओं और इसकी सफलता के लिये आवश्यक समाधानों को रेखांकित करते हुए भारत के लिये इसके रणनीतिक महत्त्व की चर्चा कीजिये।
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