अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अमेरिका-ईरान तनाव और भारत
- 24 Feb 2020
- 7 min read
प्रीलिम्स के लियेचाबहार बंदरगाह, ओमान की खाड़ी, स्ट्रेट ऑफ होर्मुज़ मेन्स के लियेभारत पर पड़ने वाले प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
वर्तमान में अमेरिका-ईरान तनाव का दौर अपने चरम पर है। ऐसी स्थिति में भारत के लिये दोनों देशों के साथ अपने संबंधों में संतुलन स्थापित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। भारत ईरान के साथ अपने आर्थिक संबंधों का विस्तार करना चाहता है परंतु तेहरान और वाशिंगटन के बीच उत्पन्न तनाव नई दिल्ली के प्रयासों में बाधक बन रहा है।
प्रमुख बिंदु
- भारत के आर्थिक और राजनीतिक हित ईरान में केंद्रित हैं। ईरान वर्ष 2019 में भारतीय चाय के शीर्ष खरीदार के रूप में उभरा है।
- नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, ईरान ने वर्ष 2019 में 53.3 मिलियन किलोग्राम चाय का भारत से आयात किया।
- चाय के व्यापार को सुचारु रूप से संचालित करने तथा अमेरिकी प्रतिबंधों को दरकिनार करने के लिये दोनों देशों ने रुपया-रियाल आधारित भुगतान प्रणाली विकसित की है।
- चाय निर्यात में इस वृद्धि के बावजूद खाड़ी क्षेत्र में तनाव के कारण भारत-ईरान वाणिज्यिक संबंधों का विस्तार बाधित हुआ है।
भारत के रणनीतिक हित
- अमेरिका-ईरान तनाव के बीच ईरानी बंदरगाह चाबहार भारत के लिये एक रणनीतिक महत्त्व के केंद्र के रूप में उभरा है।
- बंदरगाह के विस्तार एवं विकास के लिये ईरान ने भारत और अफगानिस्तान के साथ सहयोग करने का वादा किया है।
- ओमान की खाड़ी (Gulf of Oman) पर स्थित चाबहार बंदरगाह इस क्षेत्र में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव में एक फ्लैशपॉइंट बन गया है क्योंकि यहाँ से निकलने वाले जहाज़ों को स्ट्रेट ऑफ होर्मुज़ (The Strait of Hormuz) से गुज़रना नहीं पड़ता है।
स्ट्रेट ऑफ होर्मुज़
- यह जलमार्ग ईरान को ओमान से अलग करता है तथा फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है।
- खाड़ी देशों से अधिकांश कच्चे तेल का निर्यात इसी जलमार्ग के माध्यम से किया जाता है।
- विश्व में तरलीकृत प्राकृतिक गैस (liquefied natural gas-LNG) के सबसे बड़े निर्यातक कतर द्वारा भी गैस के परिवहन के लिये इसी नौवहन मार्ग का उपयोग किया जाता है।
- अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह को अपनी प्रतिबंध सूची में शामिल नहीं किया है क्योंकि वे इसे अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के एक अवसर के रूप में देखते हैं।
- अमेरिका द्वारा चाबहार बंदरगाह पर प्रतिबंध न लगाए जाने से भारतीय निवेशक निवेश हेतु उत्साहित हैं।
खाड़ी संकट का प्रभाव
- ईरान और अमेरिका के बीच संघर्ष के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। स्ट्रेट ऑफ होर्मुज़ कच्चे तेल की वैश्विक आपूर्ति के लिये विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है।
- स्ट्रेट ऑफ होर्मुज़ से वैश्विक रूप से तेल का एक-चौथाई और प्राकृतिक गैस के एक-तिहाई हिस्से का परिवहन किया जाता है।
- भारत अपने 65% तेल का आयात इस नौवहन मार्ग से करता है। अगर सैन्य तनाव के कारण इस यातायात को बाधित किया गया, तो तेल की वैश्विक कीमत पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
- खाड़ी क्षेत्र में बढ़ता तनाव क्षेत्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से खतरनाक तो है ही, ऊर्जा सुरक्षा को भी गंभीर नुकसान पहुँचा सकता है। कच्चे तेल की कीमत में तेज़ी से भारत के बजट और चालू खाता घाटे पर नकारात्मक असर पडे़गा।
- खाड़ी में किसी भी प्रकार के संघर्ष से लगभग आठ मिलियन भारतीयों पर प्रभाव पड़ेगा जो इस क्षेत्र से रोज़गार पा रहे हैं और यहाँ निवास करते हैं।
- यहाँ किसी भी प्रकार के संघर्ष की स्थिति में उन्हें अपना रोज़गार और निवास स्थान छोड़ना पड़ेगा जिसके कारण भारत को प्रेषण के रूप में प्राप्त होने वाले लगभग 40 बिलियन डॉलर का नुकसान होगा।
- खाड़ी में किसी भी प्रकार का संकट अफगानिस्तान में स्थिति को बदतर बना सकता है और मध्य-पूर्व में शांति-प्रक्रिया को ठप कर सकता है। अफगानिस्तान की स्थिरता भारत की सुरक्षा के लिये काफी मायने रखती है।
सऊदी प्रायद्वीप का महत्त्व
- तात्कालिक रूप से भारत के संबंध तेहरान के अलावा सऊदी प्रायद्वीप से भी समान रूप से उपयोगी हैं। संयुक्त अरब अमीरात भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी और एक प्रमुख निवेशक भी है।
- सरकार को सऊदी और संयुक्त अरब अमीरात से संप्रभु धन कोष और विप्रेषित धन (Remittance) प्राप्त होता है जिसका उपयोग भारत में बुनियादी ढाँचा निर्माण में किया जाता है।
- दोनों देश भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था को निवेश के लिये एक प्रमुख गंतव्य के रूप में देखते हैं।
- दूसरी ओर ईरान को पश्चिम एशिया में भारत की क्षेत्रीय नीति के तीन स्तंभों में से एक माना जाता है क्योंकि यह भारत के लिये विशाल तेल और गैस संसाधनों के साथ-साथ भू-राजनीतिक महत्त्व रखता है।
- ईरान भारत को एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है जिसके माध्यम से भारत, पाकिस्तान द्वारा अवरुद्ध अपनी यूरेशियाई महत्वाकांक्षाओं को पूरा कर सकता है।