मैनुअल स्कैवेंजिंग का उन्मूलन
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC), मैनुअल स्कैवेंजर्स, हेपेटाइटिस, टेटनस, हैजा, श्वासावरोध, मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013, यंत्रीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना (National Action for Mechanized Sanitation Ecosystem- NAMASTE), शहरी स्थानीय निकाय (ULB), NALSA, राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम (NSKFDC), व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य शर्तें संहिता 2020, स्वच्छ भारत मिशन (SBM)। मेन्स के लिये:भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग के उन्मूलन में प्रौद्योगिकी की भूमिका। मैनुअल स्कैवेंजिंग के उन्मूलन में न्यायपालिका की भूमिका। |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने 'व्यक्ति की गरिमा और स्वतंत्रता - मैनुअल स्कैवेंजरों के अधिकार' पर एक खुली चर्चा का आयोजन किया।
मैनुअल स्कैवेंजिंग
- परिचय: मैनुअल स्कैवेंजिंग से आशय किसी व्यक्ति द्वारा बिना किसी विशेष सुरक्षा उपकरण के अपने हाथों से ही मानवीय अपशिष्टों (human excreta) की सफाई करने से है।
- इसमें अस्वास्थ्यकर शौचालयों, खुली नालियों, गड्ढों या रेलवे पटरियों से मानव मल को मैन्युअल रूप से साफ करना शामिल है।
- वर्तमान स्थिति: वर्ष 2021 में भारत में मैनुअल स्कैवेंजर की संख्या 58,098 दर्ज की गई, जिनमें से 75% महिलाएँ थीं।
- 31 जुलाई, 2024 तक देश के 766 ज़िलों में से 732 ज़िलों ने खुद को मैनुअल स्कैवेंजिंग-मुक्त बताया है।
- मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: मैनुअल स्कैवेंजिंग मौलिक अधिकारों, विशेषकर अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन) और अनुच्छेद 21 (सम्मान के साथ जीवन का अधिकार) का उल्लंघन है।
- मैनुअल स्कैवेंजिंग से संबंधित कानूनी ढांचा:
- मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013: मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 अस्वास्थ्यकर शौचालयों के निर्माण सहित मैनुअल स्कैवेंजिंग पर प्रतिबंध लगाता है, और ऐसे शौचालयों को नष्ट करने या स्वच्छ शौचालयों में परिवर्तित करने का आदेश देता है।
- इसमें कौशल विकास, वित्तीय सहायता और वैकल्पिक रोज़गार के माध्यम से मैनुअल स्कैवेंजरों की पहचान और पुनर्वास का भी प्रावधान है।
- मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013: मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 अस्वास्थ्यकर शौचालयों के निर्माण सहित मैनुअल स्कैवेंजिंग पर प्रतिबंध लगाता है, और ऐसे शौचालयों को नष्ट करने या स्वच्छ शौचालयों में परिवर्तित करने का आदेश देता है।
- SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989: यह मैनुअल स्कैवेंजिंग में अनुसूचित जातियों के नियोजन को अपराध मानता है।
मैनुअल स्कैवेंजर्स के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- स्वास्थ्य: मैनुअल स्कैवेंजरों को प्रायः मानव मल के संपर्क में आना पड़ता है, जिसमें अनेक रोगाणु होते हैं।
- इस जोखिम के कारण वे हेपेटाइटिस, टेटनस और हैजा जैसी बीमारियों के प्रति अतिसंवेदनशील हो जाते हैं।
- सेप्टिक टैंकों में हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी जहरीली गैसों की मौजूदगी से श्वासावरोध का गंभीर खतरा पैदा होता है, जिससे अचानक मृत्यु हो सकती है।
- सरकारी आँकड़ों के अनुसार, सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई के कारण वर्ष 2019 से वर्ष 2023 तक 377 लोगों की मौत हो चुकी है।
- सामाजिक कलंक: मैनुअल स्कैवेंजरों को कलंकित किया जाता है और उनके साथ अस्पृश्यता का व्यवहार किया जाता है, जिससे सामाजिक बहिष्कार को बल मिलता है और जाति व्यवस्था कायम रहती है।
- आर्थिक चुनौतियाँ: मैनुअल स्कैवेंजरों को बहुत कम, न्यूनतम मजदूरी से भी कम, भुगतान किया जाता है, जिससे वे गरीबी के चक्र में फँसे रहते हैं।
- उन्हें बिना किसी नौकरी की सुरक्षा या लाभ के, संविदा या दैनिक मजदूरी के आधार पर नियुक्त किया जाता है।
- दोहरा भेदभाव: महिलाएँ, जो मैनुअल स्कैवेंजरों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं, को लैंगिक भेदभाव और सामाजिक कलंक के साथ-साथ यौन उत्पीड़न और शोषण जैसी असमानता का सामना करना पड़ता है।
- मनोवैज्ञानिक मुद्दे: इस पेशे से जुड़ा सामाजिक कलंक प्रायः चिंता और अवसाद जैसी गंभीर मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों का कारण बनता है।
- नशीली दवाओं का प्रयोग: अपने अनिश्चित कार्य के तनाव और कलंक से निपटने के लिये, कई मैनुअल स्कैवेंजर नशीली दवाओं का प्रयोग करते हैं, जिससे उनकी स्वास्थ्य समस्याएँ और बढ़ जाती हैं।
मैनुअल स्कैवेंजिंग पर सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश क्या हैं?
- डॉ. बलराम सिंह मामला, 2023: सर्वोच्च न्यायालय ने मैनुअल स्कैवेंजिंग के पूर्ण उन्मूलन हेतु केंद्र, राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेशों को 14 निर्देश जारी किये, जिसमें अनुकूल नीतियाँ बनाने, पुनर्वास, मुआवज़ा आदि शामिल हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- मैनुअल सीवर सफाई प्रथा का उन्मूलन: मैनुअल सीवर सफाई को समाप्त करने के लिये चरणबद्ध उपाय करना।
- सीवेज श्रमिकों का पुनर्वास: मुआवजा (मृत्यु पर 30 लाख रुपए, विकलांगता पर 10-20 लाख रुपए), निकटतम रिश्तेदारों के लिये रोज़गार तथा आश्रितों के लिये शिक्षा के प्रावधान।
- आउटसोर्स कार्य हेतु जवाबदेही: जवाबदेही तंत्र का प्रावधान, जिसमें अनुबंध रद्द करना एवं दंड शामिल हैं।
- मुआवजे में NALSA की भागीदारी: मुआवजा संवितरण और प्रबंधन में NALSA की भागीदारी का प्रावधान।
- निगरानी एवं पारदर्शिता: मृत्यु, मुआवज़ा और पुनर्वास की निगरानी हेतु एक पोर्टल का प्रावधान।
मैनुअल स्कैवेंजिंग को रोकने के लिये भारत की क्या पहल हैं?
- सफाईमित्र सुरक्षा चैलेंज
- स्वच्छता अभियान ऐप
- राष्ट्रीय गरिमा अभियान
- राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग
- स्वच्छता उद्यमी योजना (SUY)
- पूर्व शिक्षण की मान्यता (RPL)
- NAMASTE (मशीनीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र के लिये राष्ट्रीय कार्रवाई)
- आपातकालीन प्रतिक्रिया स्वच्छता इकाइयाँ (ERSU): एक पेशेवर, अच्छी तरह से प्रशिक्षित एवं पर्याप्त रूप से सुसज्जित कार्यबल विकसित करने पर केंद्रित।
- तकनीकी पहल:
- बैंडिकूट रोबोट: यह सीवर लाइनों की सफाई एवं निरीक्षण में सहायक है।
- एँडोबोट और स्वस्थ AI: यह जल संदूषण, अपव्यय एवं सीवर ओवरफ्लो का पता लगाने तथा उसे कम करने के लिये पाइपलाइनों के प्रबंधन पर केंद्रित है।
- रोबो-ड्रेन सिस्टम: यह भूमिगत सीवरों की सफाई के लिये स्वचालित रोबोटिक प्रौद्योगिकी है।
- वैक्यूम ट्रक: इसके तहत मानव प्रवेश के बिना सीवेज अपशिष्ट को साफ करने के लिये शक्तिशाली पंपों का उपयोग करना शामिल है।
आगे की राह
- मशीनीकरण: स्वचालित या अर्द्ध-स्वचालित उपकरणों के प्रयोग से स्वच्छता कार्य को अधिक सुरक्षित एवं अधिक कुशल तरीके से प्रबंधित किया जाना चाहिये।
- रोबोटिक उपकरण या वैक्यूम ट्रक इस कार्य को दूर से ही कर सकते हैं, जिससे खतरनाक वातावरण में मानव की भूमिका कम हो जाएगी।
- OHS मानक: व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता 2020 (OHS संहिता 2020) के तहत सैनिटेशन कार्य को एक खतरनाक व्यवसाय के रूप में मान्यता देने से सुरक्षा मानकों एवं प्रवर्तन में बदलाव आ सकता है।
- स्वास्थ्य परीक्षण: सभी शहरी स्थानीय निकायों में सफाई कर्मचारियों की समय-समय पर स्वास्थ्य जाँच होनी चाहिये, जिसमें श्वसन तथा त्वचा संबंधी स्थितियों पर ध्यान केंद्रित किये जाने के साथ स्पष्ट उपचार एवं रोकथाम प्रोटोकॉल अपनाए जाना शामिल हो।
- स्वच्छ भारत मिशन (SBM) का विस्तार करके इसमें सफाई कर्मचारियों के स्वास्थ्य तथा सम्मान को शामिल किया जाना चाहिये और सुरक्षा तथा सशक्तीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- क्षमता निर्माण: श्रमिकों के लिये क्षमता निर्माण प्रशिक्षण एवं सुरक्षा उपकरण प्रदान करने चाहिये। खतरनाक अपशिष्ट की सफाई से संबंधित तकनीकी नवाचारों हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिये।
- स्थायी आजीविका हेतु मशीनीकरण को प्रोत्साहित करना चाहिये तथा श्रमिकों को प्रशिक्षित करने के साथ महिलाओं के नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूहों को सशक्त बनाया जाना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में सफाई कर्मचारियों के समक्ष आने वाली चुनौतियों का परीक्षण करने के साथ इस संबंध में न्यायपालिका की भूमिका पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: 'राष्ट्रीय गरिमा अभियान' एक राष्ट्रीय अभियान है, जिसका उद्देश्य है: (2016) (a) बेघर एवं निराश्रित व्यक्तियों का पुनर्वास और उन्हें आजीविका के उपयुक्त स्रोत प्रदान करना। उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे और फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्रा का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे जहरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018) प्रश्न. "जल, स्वच्छता और स्वच्छता आवश्यकताओं को संबोधित करने वाली नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये लाभार्थी वर्गों की पहचान को प्रत्याशित परिणामों के साथ समन्वित किया जाना है।" WASH योजना के संदर्भ में कथन की जाँच कीजिये। (2017) |
छत्तीसगढ़ द्वारा वन पारिस्थितिकी तंत्र को ग्रीन GDP से जोड़ना
प्रिलिम्स के लिये:सकल घरेलू उत्पाद, ग्रीन GDP, भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023, सतत् विकास लक्ष्य, पर्यावरण-आर्थिक लेखांकन प्रणाली, विश्व बैंक, मृदा अपरदन मेन्स के लिये:हरित सकल घरेलू उत्पाद, सतत् विकास और आर्थिक संवृद्धि, पर्यावरण अर्थशास्त्र, भारत की वानिकी एवं पर्यावरण नीतियाँ |
स्रोत: द न्यू इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
छत्तीसगढ़ भारत का ऐसा पहला राज्य बन गया है जिसने अपने वन पारिस्थितिकी तंत्र को हरित सकल घरेलू उत्पाद से जोड़ा है।
- इस दृष्टिकोण से वनों के आर्थिक एवं पर्यावरणीय मूल्यों के साथ जैवविविधता संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन शमन के महत्त्व पर प्रकाश पड़ता है।
- यह पहल आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हुए सतत् विकास प्राप्त करने के व्यापक लक्ष्य के अनुरूप है।
हरित सकल घरेलू उत्पाद (ग्रीन GDP) क्या है?
- पारंपरिक GDP: यह किसी देश की सीमाओं के अंदर उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के वार्षिक मूल्य का माप है। GDP वर्ष 1944 से वैश्विक मानक के रूप में स्थापित है।
- GDP की संकल्पना देने वाले अर्थशास्त्री साइमन कुज़नेट्स ने कहा कि GDP से किसी देश के वास्तविक कल्याण का संकेत नहीं मिलता है क्योंकि इसमें पर्यावरणीय स्वास्थ्य तथा सामाजिक कल्याण जैसे कारकों की अनदेखी होती है।
- ग्रीन GDP: यह पारंपरिक GDP का संशोधित संस्करण है जिसके तहत आर्थिक गतिविधियों की पर्यावरणीय लागतों को ध्यान में रखा जाना शामिल है।
- इसके तहत आर्थिक उत्पादन के क्रम में प्राकृतिक संसाधनों में होने वाली कमी, पर्यावरणीय क्षरण तथा प्रदूषण जैसे कारकों को शामिल किया जाता है, जिससे किसी देश की वास्तविक संपदा के संदर्भ में अधिक व्यापक दृष्टिकोण मिलता है।
- ग्रीन GDP की आवश्यकता: पारंपरिक GDP में धारणीयता, पर्यावरण क्षरण और सामाजिक कल्याण को नज़रअंदाज किया जाता है। इसमें पर्यावरण पर दीर्घकालिक परिणामों के संदर्भ में विचार किये बिना केवल आर्थिक उत्पादन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- दूसरी ओर, हरित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से यह सुनिश्चित होता है कि आर्थिक विकास धारणीय प्रथाओं के अनुरूप हो तथा पर्यावरणीय क्षति एवं प्राकृतिक संसाधनों की कमी की वास्तविक लागत को प्रतिबिंबित किया जा सके।
- फॉर्मूला:
- विश्व बैंक के अनुसार, ग्रीन GDP = NDP (शुद्ध घरेलू उत्पाद) - (प्राकृतिक संसाधन ह्रास की लागत + पारिस्थितिकी तंत्र क्षरण की लागत)।
- जहाँ एनडीपी = GDP - उत्पादित परिसंपत्तियों का मूल्यह्रास।
- प्राकृतिक संसाधन ह्रास की लागत से तात्पर्य प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक उपयोग के कारण होने वाली मूल्य हानि से है।
- पारिस्थितिकी तंत्र क्षरण की लागत से तात्पर्य प्रदूषण एवं वनों की कटाई जैसे पर्यावरणीय कारकों से होने वाली हानि से है।
- विश्व बैंक के अनुसार, ग्रीन GDP = NDP (शुद्ध घरेलू उत्पाद) - (प्राकृतिक संसाधन ह्रास की लागत + पारिस्थितिकी तंत्र क्षरण की लागत)।
नोट: वर्ष 2024 में उत्तराखंड, सकल पर्यावरण उत्पाद (GEP) सूचकांक शुरू करने वाला विश्व स्तर पर पहला राज्य बन गया। इस सूचकांक में पारंपरिक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं से परे पर्यावरण में किये जाने वाले योगदान को भी मापा जाना शामिल है।
- GEP सूचकांक में वृक्ष प्रजातियों के मूल्य, उत्तरजीविता दर तथा संरक्षण प्रयासों जैसे कारकों को शामिल किया जाता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र के विकास का आकलन करने के क्रम में एक व्यापक दृष्टिकोण मिलता है।
छत्तीसगढ़ द्वारा वन पारिस्थितिकी तंत्र को ग्रीन GDP से जोड़ने के क्या निहितार्थ हैं?
- छत्तीसगढ़ में वनों की भूमिका: भारत वन स्थिति रिपोर्ट, 2023 के अनुसार, छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्र में सबसे अधिक वृद्धि (683.62 वर्ग किमी) दर्ज की गई।
- राज्य का कुल वन क्षेत्र इसके भौगोलिक क्षेत्रफल की तुलना में 44.2% है जो कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में प्रमुख भूमिका निभाने के साथ जलवायु परिवर्तन शमन में प्रमुख योगदान देता है।
- छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक संसाधन लाखों लोगों की आजीविका का आधार हैं तथा तेंदू पत्ता, लाख, शहद एवं औषधीय पौधे जैसे वन उत्पाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- छत्तीसगढ़ के वन स्थानीय जनजातीय परंपराओं एवं सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं जहाँ सरना और मंदार जैसे पवित्र वनों को दैवीय स्थल के रूप में पूजा जाता है।
- वनों को हरित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से जोड़ने के निहितार्थ: इस दृष्टिकोण से वनों के आर्थिक और पारिस्थितिक मूल्य पर प्रकाश पड़ता है तथा विकास एवं स्थिरता के बीच संतुलन को बढ़ावा मिलता है।
- प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को प्राथमिकता देने के साथ राज्य का लक्ष्य भावी पीढ़ियों के लिये पर्यावरण के दीर्घकालिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना है।
ग्रीन GDP से सतत् विकास को किस प्रकार बढ़ावा मिलता है?
- संसाधनों का सतत् उपयोग: पर्यावरणीय क्षति को ध्यान में रखते हुए, ग्रीन GDP से अधिक सतत् उत्पादन एवं उपभोग पैटर्न को प्रोत्साहन मिलने के साथ SDG 12 (ज़िम्मेदार उपभोग और उत्पादन) को महत्त्व मिलता है।
- हरित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के तहत आर्थिक उत्पादन को अधिकतम करने के साथ प्राकृतिक पूंजी के संरक्षण पर बल दिया जाता है।
- जलवायु परिवर्तन शमन: हरित GDP के अंतर्गत जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता में कमी लाने के साथ नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने को महत्त्व दिया जाता है, जो SDG 13 (जलवायु कार्रवाई) के अनुरूप है।
- जैवविविधता संरक्षण: ग्रीन GDP पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के साथ पारिस्थितिकी तंत्र एवं प्रजातियों की सुरक्षा पर केंद्रित है, जो SDG 15 (भूमि पर जीवन) और SDG 14 (जल के नीचे जीवन) के अनुरूप है।
- इससे नीति निर्माताओं को ऐसे नियम बनाने का प्रोत्साहन मिलता है जिससे आर्थिक विकास को पारिस्थितिकी स्थिरता के साथ संतुलित किया जा सके।
- हरित निवेश को प्रोत्साहन: हरित GDP से धारणीय प्रौद्योगिकियों एवं प्रथाओं में निवेश को बढ़ावा मिलने के साथ हरित क्षेत्र से संबंधित रोज़गार और उद्योगों को बढ़ावा मिलता है।
- इसके तहत पर्यावरणीय स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के साथ समावेशी, सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जाना शामिल है, जो SDG 8 (सम्मानजनक रोज़गार और आर्थिक विकास) के अनुरूप है।
ग्रीन GDP से संबंधित वैश्विक प्रथाएँ
- संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र द्वारा विकसित पर्यावरण-आर्थिक लेखांकन प्रणाली (SEEA) के तहत आर्थिक एवं पर्यावरणीय आँकड़ों को एकीकृत किया जाना शामिल है ताकि अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण के बीच अंतर्संबंधों का एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के साथ पर्यावरणीय परिसंपत्तियों और मानवता के लिये उनके लाभों पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।
- यूरोपीय संघ: यूरोपीय संघ की GDP से परे पहल के तहत आर्थिक आकलन में धारणीयता मैट्रिक्स को एकीकृत किया जाना शामिल है, जिसके तहत ग्रह के दीर्घकालिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- विश्व बैंक: संपत्ति लेखांकन एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का मूल्यांकन (WAVES) एक विश्व बैंक के नेतृत्व वाली प्रणाली है जो विकास योजनाओं में प्राकृतिक संसाधन लेखांकन को एकीकृत करने के साथ सतत् विकास को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
- भूटान: भूटान द्वारा सकल राष्ट्रीय खुशहाली (GNH) रूपरेखा के तहत पारिस्थितिक स्थिरता को अपनी विकास नीतियों के मूल में रखा जाना शामिल है।
- अन्य देश: चीन, नॉर्वे एवं अमेरिका ने पर्यावरणीय लागतों को अपने राष्ट्रीय लेखांकन में शामिल करने संबंधी प्रयोग किया है।
ग्रीन GDP फ्रेमवर्क के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- वनावरण की परिभाषा: भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) के अंतर्गत "वन" शब्द में पाम ऑयल और रबर जैसे बागान शामिल हैं, जो पर्यावरण के लिये हानिकारक हो सकते हैं तथा प्राकृतिक वनों के समान पारिस्थितिक लाभ प्रदान नहीं कर सकते हैं।
- उदाहरण: पाम ऑयल और रबर बागान द्वारा अक्सर प्राकृतिक वनों का स्थान ले लिया जाता है जिससे जैवविविधता की हानि एवं मृदा क्षरण के साथ पर्यावरणीय व्यवधान उत्पन्न होते हैं।
- ग्रीन GDP गणना में वृक्षारोपण को वन मान लेने से राज्य के पारिस्थितिकी स्वास्थ्य की भ्रामक तस्वीर प्रस्तुत हो सकती है।
- राजनीतिक एजेंडा: यदि वन क्षेत्र को वित्तपोषण का मानदंड बना दिया जाता है तो कम पारिस्थितिकी वन मूल्य वाले राज्य अनुदान प्राप्त करने के क्रम में आँकड़ों में हेरफेर कर सकते हैं।
- स्थानीय निकायों का एकीकरण: स्थानीय निकायों (जैसे पंचायतों) को हरित GDP ढाँचे में शामिल करना चुनौतीपूर्ण है क्योंकि जमीनी स्तर पर राजनेताओं में जागरूकता और साक्षरता की कमी है।
- लाभों के संबंध में स्पष्टता का अभाव: ग्रीन GDP लेखांकन के वित्तीय लाभों (कि यह स्थानीय समुदायों, जैसे जनजातियों एवं वनवासियों किस प्रकार मिलेंगे, जिन्होंने पारंपरिक रूप से पीढ़ियों से वनों को संरक्षित किया है) के संबंध में स्पष्टता का अभाव है।
- पद्धतिगत अंतर: ग्रीन GDP की गणना के लिये कोई एकल, सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत विधि नहीं है, जिससे विभिन्न देशों के बीच तुलना करना कठिन हो जाता है।
- पर्यावरणीय लागतों एवं सेवाओं का मूल्यांकन एक जटिल प्रक्रिया है तथा यह स्थानीय परिस्थितियों और प्राथमिकताओं के आधार पर भिन्न हो सकती है।
आगे की राह
- एक स्पष्ट मानक ढाँचा: सरकारों को हरित सकल घरेलू उत्पाद की गणना के लिये एक सुसंगत एवं पारदर्शी पद्धति अपनाने की आवश्यकता है, जिससे पर्यावरणीय सेवाओं तथा लागतों में स्पष्टता सुनिश्चित हो सके।
- सार्वजनिक निगरानी: हेरफेर से बचने के लिये, डेटा पारदर्शी होना चाहिये और विश्लेषकों एवं आलोचकों के परीक्षण हेतु उपलब्ध होना चाहिये।
- मात्रा की अपेक्षा गुणवत्ता को प्राथमिकता देना: बेहतर कार्बन पृथक्करण और जैवविविधता संरक्षण के लिये स्थानीय वनों तथा पारिस्थितिकी प्रणालियों को प्रबंधित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- जन जागरूकता: ग्रीन GDP के लाभों के बारे में समुदायों को शिक्षित करना चाहिये। वन संरक्षण के लिये स्थानीय समुदायों को प्रोत्साहित करने से न्यायसंगत तथा प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित होता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: ग्रीन GDP के बारे में बताइये। सतत् विकास को बढ़ावा देने में भारत जैसे देशों के लिये यह क्यों महत्त्वपूर्ण है? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)मेन्सप्रश्न: वर्ष 2015 से पहले और वर्ष 2015 के बाद भारत के सकल घरेलू उत्पाद (2021) की गणना पद्धति के बीच अंतर स्पष्ट कीजिये। (2021) |
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने विद्युत अधिनियम, 2022 को रद्द किया
प्रिलिम्स के लिये: विद्युत (हरित ऊर्जा ओपन एक्सेस के माध्यम से अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देना) नियम, 2022 (GEOA नियम, 2022), विद्युत नियामक आयोग, नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रम, हरित ऊर्जा, अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्र, डिस्कॉम, नवीकरणीय खरीद दायित्व (RPO), ग्रीन हाइड्रोजन, ग्रीन अमोनिया, विद्युत अधिनियम, 2003, ग्लासगो शिखर सम्मेलन 2021, संघ सूची, समवर्ती सूची। मेन्स के लिये: ओपन एक्सेस ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देना और इससे उत्पन्न होने वाले मुद्दे। |
स्रोत: बिजनेस स्टैण्डर्ड
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वृंदावन हाइड्रोपॉवर प्राइवेट लिमिटेड मामले 2024 में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा तैयार किये गए विद्युत (ग्रीन एनर्जी ओपन एक्सेस के माध्यम से अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देना) नियम, 2022 (GEOA नियम, 2022) को रद्द कर दिया है।
- न्यायालय ने कर्नाटक विनियामक आयोग (ग्रीन एनर्जी ओपन एक्सेस के लिये नियम और शर्तें) विनियम, 2022 को भी रद्द कर दिया, जिसे कर्नाटक विद्युत विनियामक आयोग (KERC) ने अब अमान्य हो चुके GEOA नियम 2022 के आधार पर तैयार किया था।
मामले से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- याचिकाकर्त्ताओं की दलीलें: जलविद्युत कंपनियों ने GEOA नियम 2022 को चुनौती दी, जिसमें कहा गया कि यह नियम विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 42(2) और 181 के तहत नियम बनाने के KERC के विशेष अधिकारों का उल्लंघन करता है।
- केंद्र का बचाव: केंद्र सरकार ने संघ सूची की प्रविष्टि 14 समवर्ती सूची की प्रविष्टि 38 और विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 176 (1) के तहत अपनी शक्तियों का हवाला देते हुए नियमों का बचाव किया।
- इसने दावा किया कि ग्लासगो शिखर सम्मेलन 2021 में COP26 प्रतिबद्धताओं के तहत अंतर्राष्ट्रीय संधि के दायित्वों को पूरा करने के लिये ये नियम आवश्यक थे।
- रद्द करने का कारण: न्यायालय ने फैसला सुनाया कि केंद्र सरकार के पास विद्युत अधिनियम, 2003 के अंतर्गत ऐसे नियम बनाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि ये शक्तियाँ KERC जैसे राज्य विद्युत विनियामक आयोगों को सौंपी गई हैं।
- न्यायालय ने कहा कि केंद्र विनियामक ढाँचे को दरकिनार करने के लिये अवशिष्ट शक्ति के रूप में धारा 176(2) का उपयोग नहीं कर सकता।
- विद्युत अधिनियम, 2003 यह सुनिश्चित करता है कि टैरिफ निर्धारण और ओपन एक्सेस प्रावधानों समेत विनियामक शक्तियों का प्रयोग, सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त, स्वतंत्र नियामक आयोगों द्वारा किया जाए।
नोट:
- विद्युत नीति, 2005 में ओपन एक्सेस को सुगम बनाने की ज़िम्मेदारी सीधे राज्य नियामक आयोगों पर डाली गई है।
- विद्युत अधिनियम, 2003:
- धारा 42(2): इस धारा के अंतर्गत लाइसेंसधारियों के वितरण के लिये ओपन एक्सेस पर उपयुक्त आयोग को विशेष अधिकार सौंपा गया।
- धारा 181: राज्य आयोग विद्युत अधिनियम, 2003 और उसके प्रावधानों को लागू करने के लिये उसके नियमों के अनुरूप विनियम जारी कर सकते हैं।
- धारा 176(1): केंद्र सरकार इस अधिनियम, 2003 के उपबंधों को क्रियान्वित करने के लिये नियम बना सकेगी।
- धारा 176(2): इसमें उल्लिखित विशिष्ट उद्देश्यों के लिये नियम बनाने का प्रावधान किया गया है। उदाहरण के लिये केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के कार्य और कर्त्तव्य।
- संघ सूची की प्रविष्टि 14: यह विदेशी देशों के साथ संधियाँ और समझौते करने तथा विदेशी देशों के साथ संधियों, समझौतों और अभिसमयों को क्रियान्वित करने से संबंधित है।
- समवर्ती सूची की प्रविष्टि 38: भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची-III की प्रविष्टि 38 में विद्युत एक समवर्ती विषय है।
- विद्युत मंत्रालय देश में विद्युत ऊर्जा के विकास के लिये मुख्य रूप से ज़िम्मेदार है।
GEOA नियम, 2022 क्या हैं?
- परिचय: इसे भारत के महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रमों में तेजी लाने के लिये अधिसूचित किया गया था, जिसका उद्देश्य ओपन एक्सेस के माध्यम से सभी के लिये सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और हरित ऊर्जा तक पहुँच सुनिश्चित करना है।
- ओपन एक्सेस से तात्पर्य उपभोक्ता अपने आपूर्ति क्षेत्र के वितरण लाइसेंसधारी के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति से भी विद्युत खरीद सकता है।
- मुख्य विशेषताएँ:
- ग्रीन एनर्जी: यह अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्रों से ऊर्जा समेत हरित ऊर्जा के उत्पादन खरीद और खपत को बढ़ावा देता है।
- निम्न सीमा: ओपन एक्सेस संव्यवहार की सीमा 1 मेगावाट से घटाकर 100 किलोवाट कर दी गई, जिससे छोटे उपभोक्ताओं को नवीकरणीय ऊर्जा खरीदने की अनुमति मिल गई।
- ग्रीन एनर्जी की मांग करने का अधिकार: उपभोक्ताओं को डिस्कॉम से हरित ऊर्जा मांगने का अधिकार है, जिन्हें इसकी आपूर्ति करनी होगी।
- एक समान RPO: एक समान नवीकरणीय खरीद दायित्व (RPO) सभी दायित्वपूर्ण संस्थाओं पर लागू होता है, जिसमें ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया भी शामिल है।
- RPO के अंतर्गत डिस्कॉम जैसी बाध्य संस्थाओं को विद्युत का एक निश्चित प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा (RE) स्रोतों से खरीदना अनिवार्य किया गया है।
- हरित प्रमाणपत्र: हरित ऊर्जा का उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं को मान्यता के रूप में हरित प्रमाणपत्र प्राप्त होता है।
- क्रॉस-सब्सिडी पर सीमा लगाना और अतिरिक्त अधिभार हटाना जैसे प्रोत्साहन ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देते हैं।
भारत के विद्युत क्षेत्र की स्थिति क्या है?
- भारत, तीसरा सबसे बड़ा विद्युत उत्पादक और उपभोक्ता (अप्रैल 2024 तक 442.85 गीगावाट), ने वित्त वर्ष 23 में विद्युत की खपत में 9.5% की वृद्धि देखी।
- ऊर्जा परियोजनाएँ 111 लाख करोड़ रुपए की बुनियादी ढाँचा पाइपलाइन का 24% हिस्सा निर्माण करती हैं।
- वित्त वर्ष 2023 में समग्र तकनीकी और वाणिज्यिक (AT&C) घाटा 15.4% रहने का अनुमान है।
- पुनर्विकसित वितरण क्षेत्र योजना (RDSS) के अंतर्गत भारत का लक्ष्य वर्ष 2024-25 तक अखिल भारतीय स्तर पर AT&C घाटे को 12-15% तक कम करना है।
- विद्युत क्षेत्र में सुधार से संबंधित समिति:
- किरीट पारीख समिति (2022): विद्युत उत्पादन से संबंधित पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस के लिये मूल्य निर्धारण सुधारों की सिफारिश की गई।
- अशोक चावला समिति (2011): विद्युत उत्पादन के लिये कोयला एवं प्राकृतिक गैस समेत संसाधन आवंटन का अध्ययन किया गया।
- दीपक पारेख समिति (2008): विद्युत क्षेत्र की परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये उपाय सुझाए गए।
भारत का अद्यतन NDC लक्ष्य
- COP26 ग्लासगो शिखर सम्मेलन 2021 में भारत ने पाँच-आयामी "पंचमित्र" जलवायु कार्य योजना की रूपरेखा तैयार करते हुए वर्ष 2070 तक उत्सर्जन को शून्य तक कम करने का संकल्प लिया।
- वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता हासिल करना।
- वर्ष 2030 तक ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त करना।
- वर्ष 2030 तक अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में 1 बिलियन टन की कमी लाना।
- वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता में 45% की कमी लाना।
- वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन तक पहुँचना।
निष्कर्ष
कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय विद्युत अधिनियम, 2003 के अनुपालन की आवश्यकता को रेखांकित करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि ओपन एक्सेस को विनियमित करने की शक्ति राज्य विद्युत विनियामक आयोगों के पास बनी रहे। यह निर्णय केंद्रीय नीतियों और राज्य स्वायत्तता के बीच संतुलन को उज़ागर करता है, जो भारत के ऊर्जा क्षेत्र के शासन के लिये महत्त्वपूर्ण है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: COP26 शिखर सम्मेलन के अंतर्गत भारत की प्रतिबद्धताओं और राष्ट्रीय ऊर्जा नीतियों पर उनके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न 1. भारत में दूरसंचार, बीमा, विद्युत आदि जैसे क्षेत्रकों में स्वतंत्र नियामकों का पुनरीक्षण निम्नलिखित में से कौन करते/करती हैं? (2019)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) 1 और 2 उत्तर: (a) प्रश्न 2. भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (IREDA) के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है/हैं? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. “वहनीय (एफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।” भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (वर्ष 2018) प्रश्न. जल-वृष्टि-पोषित नदी (Run-of-river) जलविद्युत परियोजना से आप क्या समझते हैं? वह किसी अन्य जलविद्युत परियोजना से किस प्रकार भिन्न होती हैं? (2013) |
सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में देरी
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, सूचना का अधिकार अधिनियम 2005, सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम, 2002, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, CEC, निर्वाचन आयुक्त, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023, केंद्रीय सूचना आयोग (CIC), RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019, वैधानिक निकाय, विपक्ष का नेता, लाभ का पद, सहकारिता। मेन्स के लिये:RTI की प्रभावशीलता को कमज़ोर करने वाले मुद्दे और आगे की राह |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI अधिनियम, 2005) के तहत सूचना आयुक्तों (IC) की नियुक्ति में केंद्र तथा राज्यों द्वारा की जा रही लगातार देरी की निंदा की है।
- सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में देरी से नागरिकों की सूचना के अधिकार का प्रयोग करने की क्षमता सीमित होने के साथ मामले लंबित रहते हैं।
RTI अधिनियम, 2005 के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?
- नियुक्ति में देरी: वर्ष 2024 तक केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) में IC के 8 पद रिक्त थे तथा नागरिकों द्वारा दायर 23,000 अपीलें लंबित थीं।
- राज्यों में कई सूचना आयोग वर्ष 2020 से निष्क्रिय हो गए हैं और कुछ ने RTI अधिनियम, 2005 के तहत याचिकाएँ स्वीकार करना बंद कर दिया है।
- लोक सूचना प्राधिकारियों (PIO) से प्राप्त RTI की प्रतिक्रियाओं से असंतुष्ट होकर नागरिक प्रायः नामित अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष प्रथम अपील दायर करने के लिये प्रेरित होते हैं।
- अधीनस्थ नियम: अलग-अलग नियमों के कारण RTI अधिनियम का क्रियान्वयन राज्यों में अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिये, कुछ राज्यों में ऑनलाइन पोर्टल की कमी है या पंजीकरण में असंगतता है, जिससे संबंधित प्रक्रिया जटिल हो जाती है।
- पारदर्शिता का अभाव: सूचना आयुक्तों के पद पर नियुक्त अधिकांश लोग पूर्व नौकरशाह हैं, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया में निष्पक्षता तथा पारदर्शिता के संदर्भ में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- अंजलि भारद्वाज एवं अन्य बनाम भारत संघ मामला, 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने विविध पृष्ठभूमि से लोगों की नियुक्ति की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
- व्यक्तिगत डेटा को सार्वजनिक करना: RTI अधिनियम, 2005 में सार्वजनिक हित होने पर सरकार को व्यक्तिगत डेटा को सार्वजनिक करने की अनुमति दी गई। हालाँकि, DPDP अधिनियम, 2023 द्वारा इसे पूर्ण प्रतिबंध में बदल दिया गया, जिससे शक्तिशाली लोक प्राधिकारियों की जवाबदेहिता कम होगी।
- एकतरफा संशोधन: RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019 द्वारा केंद्र सरकार को सूचना आयुक्तों के कार्यकाल एवं वेतन का निर्धारण करने का एकमात्र अधिकार प्रदान किया गया, जिससे संभावित रूप से इनकी स्वायत्तता से समझौता हो सकता है।
नोट: डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 द्वारा व्यक्तिगत डेटा को सार्वजनिक करने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया, जिससे सार्वजनिक ऑडिट एवं जवाबदेहिता में बाधा आ सकती है। इससे पहले, सार्वजनिक हित न होने पर सरकार को नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा को सार्वजनिक करने से प्रतिबंधित किया गया था।
RTI अधिनियम, 2005 से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?
- सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों से सूचना प्राप्त करने के अधिकार से सशक्त बनाने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- इसका उद्देश्य सरकारी निकायों और सार्वजनिक प्राधिकरणों के कामकाज़ में पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन को बढ़ावा देना है।
- उत्पत्ति: RTI अधिनियम की उत्पत्ति 1980 के दशक में राजस्थान में हुए एक ज़मीनी आंदोलन से हुई, जहाँ ग्रामीणों ने जवाबदेही और अभिलेखों तक पहुँच की मांग की थी।
- प्रमुख प्रावधान:
- यह अधिनियम केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों समेत सरकार के सभी स्तरों पर लागू होता है।
- धारा 8(2) सूचना के प्रकटीकरण की अनुमति देती है जब सार्वजनिक हित सूचना की गोपनीयता से अधिक महत्त्वपूर्ण हो।
- धारा 22 यह सुनिश्चित करती है कि RTI अधिनियम को अन्य कानूनों के साथ किसी भी विसंगति पर प्राथमिकता दी जाएगी।
- छूट: आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (OSA), 1923 नौकरशाहों को आधिकारिक दस्तावेज़ों की गोपनीयता बनाए रखने के लिये जानकारी रोकने की अनुमति देता है।
- अन्य कानून, जैसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 ( भारतीय साक्ष्य अधिनियम ) और अखिल भारतीय सेवा आचरण नियम, 1968, अधिकारियों को RTI अधिनियम, 2005 के तहत सूचना को प्रतिबंधित करने की अनुमति देते हैं।
- RTI अधिनियम, 2005 में प्रमुख संशोधन:
- सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019: RTI अधिनियम, 2005 के अंतर्गत मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और IC का कार्यकाल 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, निर्धारित किया गया है। सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 के बाद कार्यकाल केंद्र सरकार द्वारा तय किया जाता है।
- मूल रूप से, सीआईसी का वेतन और सेवा की शर्तें CEC के साथ और IC का चुनाव आयुक्त के साथ संरेखित होती हैं। संशोधनों के बाद, सीआईसी और आईसी दोनों के लिये वेतन, भत्ते और सेवा की शर्तें केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
- सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019: RTI अधिनियम, 2005 के अंतर्गत मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और IC का कार्यकाल 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, निर्धारित किया गया है। सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 के बाद कार्यकाल केंद्र सरकार द्वारा तय किया जाता है।
केंद्रीय सूचना आयोग क्या है?
- स्थापना: इसकी स्थापना RTI अधिनियम, 2005 के अंतर्गत एक वैधानिक निकाय (संवैधानिक निकाय नहीं) के रूप में की गई थी।
- संरचना: इस अधिनियम के अनुसार केंद्रीय सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और 10 से अधिक नहीं, जितनी आवश्यक समझी जाए, केंद्रीय सूचना आयुक्तों की संख्या शामिल होगी।
- नियुक्ति: सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिशों के आधार पर की जाती है, जिसमें निम्नलिखित शामिल होते हैं:
- प्रधानमंत्री (अध्यक्ष)।
- लोकसभा में विपक्ष के नेता
- प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री।
- पात्रता और छूट: विधि, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, समाज सेवा, प्रबंधन, पत्रकारिता या शासन में अनुभव वाले प्रतिष्ठित व्यक्ति।
- सांसद, विधायक नहीं होना चाहिये, या किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिये।
- कोई राजनीतिक संबद्धता, व्यवसाय या पेशेवर जुड़ाव नहीं।
- ये पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं हैं।
- CIC की शक्तियाँ: गवाहों को बुलाना, दस्तावेज़ों का निरीक्षण करना, सार्वजनिक अभिलेखों की मांग करना, तथा जाँच के लिये समन जारी करना।
- कार्य: इसकी प्राथमिक भूमिका RTI अधिनियम, 2005 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना और नागरिकों के सूचना के अधिकार को बनाए रखना है।
- यह न्यायालय केंद्र सरकार और केंद्रशासित प्रदेशों के कार्यालयों, वित्तीय संस्थानों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और अन्य संस्थाओं से जुड़े मामलों का समाधान करता है।
आगे की राह
- रिक्तियों पर ध्यान देना: समय पर अपीलों के समाधान हेतु सूचना आयोगों में रिक्तियों की पूर्ति के लिये नियुक्तियों में तीव्रता लाना तथा RTI के ढाँचे में नागरिकों का विश्वास बनाए रखना।
- उच्चतम न्यायालय की सिफारिश के अनुसार विविध क्षेत्रों के पेशेवरों को शामिल करने के लिये चयननात्मक मानदंडों को व्यापक बनाया जाना चाहिये।
- उन्नत कवरेज़: सार्वजनिक-निज़ी भागीदारी (PPP), खेल निकायों और सहकारी समितियों को RTI अधिनियम, 2005 के अंतर्गत शामिल किया जाना चाहिये, ताकि विशेष रूप से सार्वजनिक धन के प्रबंधन में अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
- वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये राजनीतिक दलों को RTI अधिनियम के अंतर्गत लाया जाए।
- डिज़िटल एकीकरण: सभी डाकघरों को डाक-मुक्त RTI आवेदन स्वीकार करने की अनुमति दी जाए, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के नागरिकों के लिये।
- सभी राज्यों को राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) द्वारा डिज़ाईन किया गया एकीकृत RTI पोर्टल अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना, ताकि नागरिकों के लिये याचिका दायर करना आसान हो सके।
- जवाबदेही: सार्वजनिक प्राधिकरणों को जनता के प्रति अधिक जवाबदेह होना चाहिये तथा उन्हें नियमित रूप से जानकारी देनी चाहिये तथा रिपोर्ट देनी चाहिये कि वे RTI याचिकाओं को किस प्रकार संभाल रहे हैं।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के वर्तमान मुद्दों पर चर्चा कीजिये और बेहतर प्रशासन के लिये इसे सुदृढ़ करने के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्सप्रश्न: सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में ही नहीं है, अपितु यह आवश्यक रूप से जवाबदेही की संकल्पना को पुनः परिभाषित करता है।” विवेचना कीजिये। (2018) |