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शासन व्यवस्था

भारत में सहकारिता और उसका विकास

  • 11 Jul 2024
  • 18 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सहकारी क्षेत्र, प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ, बहुराज्य सहकारी सोसायटी अधिनियम, 2002, 97वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2011, बहुराज्य सहकारी सोसायटी (संशोधन) अधिनियम, 2022, IFFCO

मेन्स के लिये:

भारत में सहकारी समितियों की स्थिति, भारत में सहकारी समितियों के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ

स्रोत: पी.आई.बी. 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री ने गुजरात में 102वें अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस (International Day of Cooperatives) के अवसर पर आयोजित 'सहकार से समृद्धि' कार्यक्रम को संबोधित किया।

नोट:

  • अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस प्रत्येक वर्ष 6 जुलाई को मनाया जाता है।
    • वर्ष 2024 की थीम "कोऑपरेटिव बिल्डिंग ए बेटर फ्यूचर फोर ऑल" है।
    • यह थीम संयुक्त राष्ट्र के आगामी समिट ऑफ द फ्यूचर के उद्देश्यों के साथ अच्छी तरह से मेल खाती है जिसकी थीम "मल्टीलेटरल सॉल्यूशंस फोर ए बेटर टुमाॅरो" है।
    • सामाजिक विकास में सहकारिता पर वर्ष 2023 की संयुक्त राष्ट्र महासचिव की रिपोर्ट के अनुसार सहकारिता हमेशा से हाशियाई समूहों सहित सभी व्यक्तियों के आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने का कार्य करती रही है।
    • यह दिवस वर्ष 2025 के अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष का मार्ग प्रशस्त करेगा।

भारत में सहकारी समितियों का विकास किस प्रकार हुआ?

  • परिचय:
    • सहकारी समितियाँ जन-केंद्रित उद्यम हैं जिनका स्वामित्व, नियंत्रण और संचालन उनके सदस्यों द्वारा उनकी साझा आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की प्राप्ति के लिये किया जाता है।
    • कृषि, ऋण, डेयरी, आवास और मत्स्य पालन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में 800,000 से अधिक सहकारी समीतियों के साथ भारत का सहकारिता नेटवर्क विश्व के सबसे बड़े नेटवर्कों में से एक है।
    • कृषि ऋण के वितरण में 20%, फर्टिलाइज़र्स के वितरण में 35%, चीनी उत्पादन में 31%, गेहूँ की खरीदी में 13% और धान की खरीदी में 20% का योगदान सहकारिता क्षेत्र दे रहा है।

  • स्वतंत्रता पूर्व युग में सहकारी समितियाँ:
    • भारत में पहला सहकारी अधिनियम: भारतीय अकाल आयोग (1901) द्वारा वर्ष 1904 में प्रथम सहकारी ऋण समिति अधिनियम पारित हुआ, जिसके बाद (संशोधित) सहकारी समिति अधिनियम, 1912 पारित हुआ।
    • मैक्लेगन समिति: वर्ष 1915 में सर एडवर्ड मैक्लेगन की अध्यक्षता में एक समिति को इस विषय का अध्ययन और रिपोर्ट करने के लिये नियुक्त किया गया था कि क्या सहकारी आंदोलन आर्थिक तथा वित्तीय रूप से सुदृढ़ दिशा में आगे बढ़ रहा है या नहीं।
    • मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार: 1919 के मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के माध्यम से सहकारिता एक प्रांतीय विषय बन गया जिसने इस आंदोलन को और गति प्रदान की।
    • आर्थिक मंदी के बाद, 1929: सहकारी समितियों के पुनर्गठन की संभावनाओं की जाँच करने के लिये मद्रास, बॉम्बे, त्रावणकोर, मैसूर, ग्वालियर और पंजाब में विभिन्न समितियों की नियुक्ति की गई।
    • गांधीवादी समाजवादी दर्शन: गांधीजी के अनुसार, समाजवादी समाज के निर्माण और सत्ता के पूर्ण विकेंद्रीकरण के लिये सहयोग आवश्यक था।
      • उनके अनुसार लोगों को सशक्त बनाने के लिये सहयोग एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है।
      • महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में 'फीनिक्स सेटलमेंट' की स्थापना एक समाजवादी पद्धति में सहकारी संस्था के रूप में की थी।
      • उन्होंने इस अवधि के दौरान दक्षिण अफ्रीकी स्वतंत्रता संग्राम से प्रभावित परिवारों के लिये पुनर्वास सहकारी बस्ती के रूप में टॉल्स्टॉय फार्म की स्थापना की।
  • स्वतंत्रता के बाद के भारत में सहकारिता:
    • प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56): व्यापक सामुदायिक विकास के लिये सहकारी समितियों को बढ़ावा दिया गया।
    • बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002: बहु-राज्य सहकारी समितियों के गठन एवं उसकी कार्यप्रणाली हेतु प्रावधान करता है।
    • 97वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 2011: सहकारी समितियों के गठन के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित किया गया (अनुच्छेद 19)।
      • सहकारी समितियों पर राज्य की नीति का एक नया निदेशक सिद्धांत प्रस्तुत किया गया (अनुच्छेद 43-B)।
      • संविधान में "सहकारी समितियाँ" शीर्षक से एक नया भाग IX-B जोड़ा गया (अनुच्छेद 243-ZH से 243-ZT)।
      • बहु-राज्य सहकारी समितियों (multi-state cooperative societies- MSCS) को नियंत्रित करने वाले कानून बनाने के लिये संसद को अधिकार दिया गया और साथ ही अन्य सहकारी समितियों के लिये राज्य विधानसभाओं को अधिकार सौंपा गया।
    • केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय की स्थापना (2021): सहकारी मामलों की ज़िम्मेदारी संभाली गई, जिसकी देख-रेख पहले कृषि मंत्रालय करता था।
  • सहकारिता का प्रभाव:
    • हाशिये पर पड़े समुदायों को सशक्त बनाना: गुजरात में अमूल डेयरी सहकारी संस्था, जिसके 3.6 मिलियन से अधिक दुग्ध उत्पादक हैं (जिनमें से अधिकांश छोटे और सीमांत किसानों से हैं), दुग्ध के लिये उचित मूल्य उपलब्ध कराकर तथा विशेष रूप से महिलाओं हेतु आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देकर ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाती है।
    • कृषि उत्पादकता और विपणन को बढ़ावा देना: भारतीय किसान उर्वरक सहकारी लिमिटेड (Indian Farmers Fertiliser Cooperative Limited- IFFCO) विश्व की सबसे बड़ी उर्वरक उत्पादक है। IFFCO जैसी सहकारी संस्थाएँ किसानों को उर्वरक, बीज और ऋण जैसे आवश्यक कृषि इनपुट प्रतिस्पर्द्धी कीमतों पर उपलब्ध कराती हैं, जिससे उत्पादकता तथा कृषि आय में वृद्धि होती है।
    • आवश्यक सेवाओं तक पहुँच को सुगम बनाना: केरल राज्य दुग्ध विपणन संघ (मिल्मा), एक डेयरी सहकारी संस्था है, जो किसानों से दुग्ध खरीदती है और इसे केरल में उपभोक्ताओं को किफायती दामों पर उपलब्ध कराती है। इससे उत्पादकों के लिये बाज़ार तक पहुँच सुनिश्चित होती है तथा लोगों को आवश्यक डेयरी उत्पाद उपलब्ध होते हैं।
    • समावेशी विकास और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देना: नीति आयोग की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि महाराष्ट्र में चीनी सहकारी समितियाँ 5 लाख से अधिक लोगों (प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष) को रोज़गार प्रदान करती हैं, जो ग्रामीण रोज़गार सृजन एवं आय सृजन में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।

सहकारिता को मज़बूत करने के लिये सरकारी पहल

  • UCB के लिये अम्ब्रेला संगठन: RBI ने UCB क्षेत्र के लिये एक अम्ब्रेला संगठन (Umbrella Organization- UO) के गठन हेतु नेशनल फेडरेशन ऑफ अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक्स एंड क्रेडिट सोसाइटीज लिमिटेड (National Federation of Urban Co-operative Banks and Credit Societies Ltd.- NAFCUB) को मंज़ूरी दे दी है, जो लगभग 1,500 UCB को आवश्यक IT बुनियादी ढाँचा और परिचालन सहायता प्रदान करेगा।
  • पारदर्शिता और स्थिरता सुनिश्चित करना:
    • PACS के लिये आदर्श उपनियम, जिससे वे बहुउद्देशीय, बहुआयामी और पारदर्शी संस्थाएँ बन सकें।
    • सहकारी क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी विकेंद्रीकृत अनाज भंडारण योजना (2023)।
    • सरकार का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि वर्ष 2029 तक प्रत्येक पंचायत में एक PACS हो, जिससे प्रधानमंत्री मोदी के 'सहकार से समृद्धि' (सहयोग से समृद्धि) के दृष्टिकोण को पूरा किया जा सके।
  • अन्य पहल:
    • प्रामाणिक एवं अद्यतन डेटा संग्रह हेतु राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस।
    • सहकारी कल्याण के लिये राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (National Cooperative Development Corporation- NCDC) द्वारा 2000 करोड़ रुपए के बांड जारी किये गए।
    • सहकारी समितियों को GeM पोर्टल पर ‘खरीदार’ के रूप में शामिल करना।
    • NCDC का विस्तार कर इसकी सीमा और गहराई बढ़ाई जाएगी।
    • राष्ट्रीय सहकारी जैविक लिमिटेड (National Cooperative Organic Limited- NCOL) की स्थापना जैविक खेती को बढ़ावा देने और उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिये की गई थी।
    • भारत ऑर्गेनिक आटा का शुभारंभ।

सहकारी समितियों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?

  • शासन संबंधी चुनौतियाँ: सहकारी समितियाँ पारदर्शिता, जवाबदेही और लोकतांत्रिक निर्णय लेने की प्रक्रियाओं की कमी की चुनौतियों से जूझती हैं।
    • सदस्यों की सीमित भागीदारी, हाशिए पर पड़े समुदायों का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व तथा कुछ व्यक्तियों के पास सत्ता का संकेंद्रण सहकारी उद्यमों की समावेशी प्रकृति को कमज़ोर कर सकता है।
  • वित्तीय संसाधनों तक सीमित पहुँच: कई सहकारी समितियाँ, खास तौर पर हाशिये पर पड़े समुदायों की सेवा करने वाली, वित्तीय संसाधनों तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करती हैं। उनके पास अक्सर पारंपरिक वित्तीय संस्थानों द्वारा अपेक्षित संपार्श्विक या औपचारिक दस्तावेज़ों की कमी होती है, जिससे ऋण प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।
  • सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ और बहिष्कार: सहकारी समितियों को अक्सर समावेशिता की कमी, संरचनात्मक असमानताओं आदि से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ: बुनियादी ढाँचे की कमी और कनेक्टिविटी की कमी उनकी दक्षता तथा प्रभावशीलता को प्रभावित करती है, जिससे पहुँच सीमित हो जाती है।
  • तकनीकी और प्रबंधकीय क्षमताओं का अभाव: प्रशिक्षण और कौशल विकास पहलों का अभाव एक तथा चुनौती है, जिसके कारण मानव संसाधन पुराने हो जाते हैं।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक कारक: संभावित सदस्यों के बीच सहकारी मॉडल और इसके लाभों के बारे में जागरूकता की कमी उनकी भागीदारी को सीमित करती है।
    • कुछ मामलों में, सामाजिक पदानुक्रम और जाति-आधारित विभाजन सहकारी समितियों के भीतर न्यायसंगत भागीदारी तथा प्रतिनिधित्व के लिये बाधाएँ पैदा करते हैं।

आगे की राह

  • वित्तीय रिपोर्टिंग के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म लागू करें, नियमित ऑडिट करें और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सदस्यों की भागीदारी को प्रोत्साहित करें।
  • हाशिये पर पड़े समुदायों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये लचीली संपार्श्विक आवश्यकताओं के साथ सहकारी विकास निधि स्थापित करें। सहकारी समितियों को क्राउडफ़ंडिंग, सामाजिक प्रभाव बॉण्ड और अन्य अभिनव वित्तपोषण समाधानों का पता लगाने के लिये प्रोत्साहित करें।
  • हाशिये पर पड़े समुदायों के सदस्यों को शिक्षित करने और आकर्षित करने के लिये आउटरीच कार्यक्रम तैयार करें, जिसमें विशिष्ट आवश्यकताओं तथा चुनौतियों का समाधान किया जा सके।
  • ग्रामीण बुनियादी ढाँचे के विकास में सरकारी निवेश की वकालत करें, सहकारी समितियों के लिये कनेक्टिविटी और बाजारों तक पहुँच में सुधार करें।
  • सहकारी सदस्यों और प्रबंधकों के लिये कौशल निर्माण कार्यशालाओं की पेशकश करने के लिये सरकारी एजेंसियों तथा प्रशिक्षण संस्थानों के साथ साझेदारी करें।
  • संभावित सदस्यों को सहकारी समितियों के लाभों और सिद्धांतों के बारे में शिक्षित करने के लिये स्थानीय भाषाओं में लक्षित जागरूकता अभियान शुरू करें।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में सहकारी क्षेत्र के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। भारत में सहकारी आंदोलन को मज़बूत करने के लिये इन चुनौतियों का समाधान कैसे किया जा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किस की कृषि तथा सहबद्ध गतिविधियों में ऋण के वितरण में सबसे अधिक हिस्सेदारी है? (2011) 

(a) वाणिज्यिक बैंकों की
(b) सहकारी बैंकों की
(c) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की
(d) सूक्ष्म-वित्त (माइक्रोफाइनेंस) संस्थाओं की

उत्तर: (a)


प्रश्न. भारत के संदर्भ में, निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. बैंकों का राष्ट्रीयकरण
  2. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का गठन
  3. बैंक शाखाओं द्वारा गाँवों को अपनाना

उपर्युक्त में से किस/किन को, भारत में "वित्तीय समावेशन" प्राप्त करने के लिये उठाए गए कदम/कदमों के रूप में माना जा सकता है?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न."भारतीय शासकीय तंत्र में, गैर-राजकीय कर्त्ताओं की भूमिका सीमित ही रही है।" इस कथन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2016)

प्रश्न . "गाँवों में सहकारी समिति को छोड़कर ऋण संगठन का कोई भी ढाँचा उपयुक्त नहीं होगा।" - अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण। भारत में कृषि वित्त की पृष्ठभूमि में इस कथन पर चर्चा कीजिये। कृषि वित्त प्रदान करने वाली वित्त संस्थाओं को किन बाधाओं और कसौटियों का सामना करना पड़ता है? ग्रामीण सेवार्थियों तक बेहतर पहुँच और सेवा के लिये प्रौद्योगिकी का किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है?” (2014)

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