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सिविल सेवकों के लिये आचरण नियमावली

  • 19 Nov 2024
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियमावली 1968, संवैधानिक मूल्य, अर्द्ध-न्यायिक शक्ति, अनुच्छेद 311, प्रत्यायोजित विधान। 

मेन्स के लिये:

लोकतंत्र में सिविल सेवाओं की भूमिका, सिविल सेवकों द्वारा सोशल मीडिया की सक्रियता के निहितार्थ।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केरल में अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियमावली, 1968 (AIS नियमों) के उल्लंघन का हवाला देते हुए दो आईएएस अधिकारियों को निलंबित किया गया है। 

  • एक आईएएस अधिकारी ने अपने वरिष्ठ सहकर्मी के खिलाफ सोशल मीडिया पर अपमानजनक टिप्पणी की थी जबकि एक अन्य को कथित तौर पर धर्म आधारित व्हाट्सएप ग्रुप बनाने के लिये निलंबित किया गया।

अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियमावली, 1968 में क्या प्रावधान हैं?

  • परिचय: यह नियम आईएएस, आईपीएस और भारतीय वन सेवा अधिकारियों के आचरण में निष्पक्षता, सत्यनिष्ठा और संवैधानिक मूल्यों के पालन को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से नैतिक एवं पेशेवर मानकों के आधार हैं।
  • उल्लिखित मानक: उल्लिखित प्रमुख मानकों का सारांश इस प्रकार है।
    • नैतिक मानक: अधिकारियों को नैतिकता, सत्यनिष्ठा और ईमानदारी का पालन करना चाहिये। उनसे यह भी अपेक्षा की जाती है कि वे अपने कार्यों एवं निर्णयों में राजनीतिक रूप से तटस्थ, जवाबदेह एवं पारदर्शी बने रहें।
    • संवैधानिक मूल्यों की सर्वोच्चता: अधिकारियों को संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखना चाहिये, जिससे देश के विधिक ढाँचे के प्रति प्रतिबद्ध लोक सेवक के रूप में उनके कर्त्तव्य बने रहें।
    • लोक मीडिया में भागीदारी: अधिकारी वास्तविक पेशेवर क्षमता के संदर्भ में लोक मीडिया में भागीदारी कर सकते हैं। हालाँकि उन्हें सरकारी नीतियों की आलोचना करने के लिये ऐसे प्लेटफाॅर्मों का उपयोग करने से प्रतिबंधित किया गया है।
    • विधिक और मीडिया संबंधी दृष्टिकोण: अधिकारियों को सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना न्यायालय या मीडिया के माध्यम से आलोचना के अधीन आधिकारिक कार्यों का निवारण या बचाव करने की अनुमति नहीं है।
    • सामान्य आचरण: अधिकारियों को किसी भी ऐसे व्यवहार से बचना चाहिये जो उनकी सेवा के लिये "अनुचित" माना जाता हो। इससे सुनिश्चित होता है कि अधिकारी शिष्टाचार और व्यावसायिकता का उच्च मानक बनाए रखें।

AIS नियम, 1968 से संबंधित मुद्दे क्या हैं? 

  • स्पष्ट सोशल मीडिया दिशानिर्देशों का अभाव: मौजूदा नियम सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर अधिकारियों के संचार और आचरण को स्पष्ट रूप से संबोधित नहीं करते हैं।
    • डिजिटल जुड़ाव के बढ़ने से अस्पष्टता पैदा हो गई है, जिससे सीमाएँ निर्धारित करना और उचित व्यवहार लागू करना कठिन हो गया है।
  • अनुचित आचरण संबंधी खंड: "सेवा के सदस्य के लिये अनुचित आचरण" शब्द एक व्यापक, अपरिभाषित खण्ड है, जो असंगत प्रवर्तन की ओर ले जाता है तथा दुरुपयोग की संभावना उत्पन्न करता है। 
  • प्रवर्तन में शक्ति असंतुलन: इन नियमों का प्रवर्तन प्रायः वरिष्ठ अधिकारियों और सरकारी अधिकारियों के हाथों में होता है। जूनियर अधिकारी वरिष्ठों द्वारा नियमों के दुरुपयोग के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं, जिसके लिये पक्षपात और मनमानी कार्यवाहियों के खिलाफ सुरक्षा की आवश्यकता होती है।

लोकतंत्र में सिविल सेवाओं की भूमिका क्या है?

  • नीति निर्माण: सिविल सेवक तकनीकी विशेषज्ञता और व्यावहारिक अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं जो सार्वजनिक नीति के निर्माण और निर्धारण में मदद करते हैं। 
  • नीतियों का क्रियान्वयन: सिविल सेवक विधायिका द्वारा पारित नीतियों के क्रियान्वयन के लिये ज़िम्मेदार होते हैं। इसमें कानूनों और नीतियों के व्यावहारिक अनुप्रयोग की देखरेख करना शामिल है।
  • प्रत्यायोजित विधान: सिविल सेवकों को प्रायः प्रत्यायोजित विधान के तहत विस्तृत नियम और विनियम बनाने का काम सौंपा जाता है। विधानमंडल रूपरेखा निर्धारित करता है, जबकि सिविल सेवक दैनिक सरकारी कार्यों के लिये आवश्यक विशिष्टताओं को परिभाषित करते हैं।
  • प्रशासनिक न्यायनिर्णयन: सिविल सेवकों के पास अर्द्ध-न्यायिक शक्तियाँ भी होती हैं और वे नागरिकों के अधिकारों और दायित्वों से संबंधित मामलों को सुलझाने के लिये ज़िम्मेदार होते हैं।
    • यह सार्वजनिक हित में, विशेष रूप से कमज़ोर समूहों या तकनीकी मुद्दों के लिये त्वरित, निष्पक्ष निर्णय सुनिश्चित करता है, तथा समय पर विवाद समाधान की सुविधा प्रदान करता है।
  • स्थिरता और निरंतरता: सिविल सेवक चुनाव-प्रेरित राजनीतिक परिवर्तनों के दौरान शासन में स्थिरता और निरंतरता बनाए रखते हैं, तथा नेतृत्व में बदलाव के बावजूद सुचारू नीति और प्रशासनिक प्रक्रिया सुनिश्चित करते हैं।
  • राष्ट्रीय आदर्शों के संरक्षक: सिविल सेवक राष्ट्र के आदर्शों, मूल्यों और विश्वासों के संरक्षक के रूप में कार्य करते हैं। वे राष्ट्र के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ताने-बाने की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

Foundational_Values_For_Civil_Service

अनुच्छेद 311

  • अनुच्छेद 311 (1) के अनुसार अखिल भारतीय सेवा या राज्य सरकार के किसी भी सरकारी कर्मचारी को अपने अधीनस्थ प्राधिकारी द्वारा बर्खास्त या हटाया नहीं जाएगा, जिसने उसे नियुक्त किया था।
  • अनुच्छेद 311 (2) के अनुसार, किसी भी सिविल सेवक को ऐसी जाँच के बाद ही पदच्युत किया जाएगा या पद से हटाया जाएगा अथवा रैंक में अवनत किया जाएगा जिसमें उसे अपने विरुद्ध आरोपों की सूचना दी गई है तथा उन आरोपों के संबंध में सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर प्रदान किया गया है।
  • जाँच की आवश्यकता के अपवाद (अनुच्छेद 311 (2)): निम्नलिखित परिस्थितियों में जाँच की आवश्यकता नहीं है:
    • आपराधिक दोषसिद्धि: हाँ एक व्यक्ति की उसके आचरण के आधार पर बर्खास्तगी या हटाना या रैंक में कमी की जाती है जिसके कारण उसे आपराधिक आरोप में दोषी ठहराया गया है (धारा 2(a))।
    • व्यावहारिक असंभवता: जहाँ किसी व्यक्ति को बर्खास्त करने या हटाने या उसके रैंक को कम करने के लिये अधिकृत प्राधिकारी संतुष्ट है कि किसी कारण से उस प्राधिकारी द्वारा लिखित रूप में दर्ज किया जाना है, ऐसी जाँच करना उचित रूप से व्यावहारिक नहीं है (धारा 2(b))।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा: जहाँ राष्ट्रपति या राज्यपाल, जैसा भी मामला हो, संतुष्ट हो जाता है कि राज्य की सुरक्षा के हित में ऐसी जाँच करना उचित नहीं है (खण्ड 2(c))।

आगे की राह

  • सटीक सोशल मीडिया दिशा-निर्देश: नियमों में अधिकारियों द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग की सीमाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अधिकारी ज़िम्मेदार तरीके से सरकारी पहलों के बारे में सार्वजनिक संचार में शामिल हो सकें।
  • 'अनुपयुक्त आचरण' संबंधी धारा को स्पष्ट करना: अस्पष्ट शब्द "सेवा के सदस्य के लिये अनुपयुक्त" को अतीत में ऐसे उदाहरणों की सूची प्रदान करके स्पष्ट किया जा सकता है, जहाँ इस धारा के अंतर्गत कार्रवाई की गई थी।
  • जिम्मेदार गुमनामी: जनता की सेवा करते समय तटस्थ और निष्पक्ष बने रहने पर जोर दिया जा सकता है, विशेष रूप से सोशल मीडिया के युग में जहाँ विवेक से अधिक दृश्यता को प्राथमिकता दी जाती है।
  • सोशल मीडिया का विवेकपूर्ण उपयोग: अधिकारियों, विशेषकर युवा अधिकारियों को यह याद दिलाया जाना चाहिये कि यद्यपि सोशल मीडिया सरकारी पहलों को बढ़ावा देने का एक साधन है, लेकिन इसे सिविल सेवा की गरिमा और निष्पक्षता को बनाए रखना चाहिये।
    • उन्हें व्यक्तिगत राय या पक्षपातपूर्ण बयान देने से बचना चाहिये जिससे उनकी तटस्थता पर असर पड़ सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 यह कैसे सुनिश्चित करते हैं कि सिविल सेवक अपने व्यावसायिक आचरण में नैतिक मानकों को बनाए रखते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न: "आर्थिक प्रदर्शन के लिये संस्थागत गुणवत्ता एक निर्णायक चालक है"। इस संदर्भ में लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिये सिविल सेवा में सुधारों के सुझाव दीजिये। (2020)

प्रश्न: प्रारंभिक तौर पर भारत में लोक सेवाएँ तटस्थता और प्रभावशीलता के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अभिकल्पित की गई थीं, जिनका वर्तमान संदर्भ में अभाव दिखाई देता है। क्या आप इस मत से सहमत हैं कि लोक सेवाओं में कड़े सुधारों की आवश्यकता है? टिप्पणी कीजिये। (2017)

प्रश्न: "पारंपरिक अधिकारीतंत्रीय संरचना और संस्कृति ने भारत में सामाजिक-आर्थिक विकास की प्रक्रिया में बाधा डाली है।" टिप्पणी कीजिये। (2016)

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