भारतीय राजव्यवस्था
अर्द्ध-न्यायिक न्यायालयों का संचालन
- 22 Nov 2022
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:भारत में अर्द्ध-न्यायिक निकाय मेन्स के लिये:भारत में अर्द्ध-न्यायिक निकाय, अर्द्ध-न्यायिक निकायों की भूमिका और बेहतर संचालन के उपाय |
चर्चा में क्यों?
प्रशासनिक और राजनीतिक नेतृत्त्व द्वारा उचित निरीक्षण एवं स्वामित्त्व का अभाव अर्द्ध-न्यायिक न्यायालयों के सामने सबसे गंभीर समस्या है।
- कई राज्य लंबित मामलों की संख्या या निपटान की दर के बारे में जानकारी संकलित नहीं करते हैं।
अर्द्ध-न्यायिक निकाय:
- परिचय:
- “अर्द्ध-न्यायिक निकाय” न्यायालय अथवा विधानमंडल के अतिरिक्त सरकार का एक अंग है, जो निजी हितधारकों के अधिकारों को कानून निर्माण द्वारा प्रभावित करता है।
- यह अनिवार्य नहीं है कि एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय को आवश्यक रूप से न्यायालय जैसा संगठन होना चाहिये।
- उदाहरण के लिये भारत निर्वाचन आयोग भी एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय है, लेकिन न्यायलय के समान इसके कर्त्तव्य प्राथमिक नहीं हैं।
- भारत में अन्य अर्द्ध-न्यायिक निकाय:
- शासन में भूमिका:
- पारंपरिक न्यायिक प्रक्रिया में खर्च के डर से आबादी के एक बड़े हिस्से का न्यायालयों की ओर रुख करने से हिचकिचाना आम बात थी जो कि न्याय के उद्देश्य की विफलता दर्शाती है।
- वहीं अर्द्ध-न्यायिक निकायों की कुल लागत काफी कम होती है जो लोगों को उनकी शिकायतों के निवारण के लिये प्रोत्साहित करती है।
- अधिकरण और अन्य ऐसे निकाय आवेदन या साक्ष्य आदि जमा करने के लिये किसी लंबी या जटिल प्रक्रिया का पालन नहीं करते हैं।
- अर्द्ध-न्यायिक निकाय, विशिष्ट मामलों को उठाते समय न्यायपालिका की सहायता उसके कार्यभार को साझा करने के रूप में करते हैं।
- जैसे राष्ट्रीय हरित अधिकरण पर्यावरण और प्रदूषण से संबंधित मामलों का फैसला करता है।
- अर्द्ध-न्यायिक निकाय सुलभ, जटिलताओं से मुक्त, विवाद निपटान के साथ कुशल विशेषज्ञों द्वारा संचालित होते हैं।
- पारंपरिक न्यायिक प्रक्रिया में खर्च के डर से आबादी के एक बड़े हिस्से का न्यायालयों की ओर रुख करने से हिचकिचाना आम बात थी जो कि न्याय के उद्देश्य की विफलता दर्शाती है।
- चुनौतियाँ:
- लंबित मामलों पर बातचीत करने के संदर्भ में अर्द्ध-न्यायिक एजेंसियों पर विचार नहीं किया जाता है।
- ये आमतौर पर राजस्व अधिकारियों द्वारा नियंत्रित किये जाते हैं और बड़े पैमाने पर आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत भूमि, किरायेदारी, उत्पाद कर, हथियार, खनन या निवारक कार्यों से संबंधित होते हैं। आमतौर पर इनमें से कई कार्यालयों में कर्मचारियों की कमी देखी जाती है।
- कानून और व्यवस्था, प्रोटोकॉल, समन्वय एवं अन्य प्रशासनिक कार्यों जैसे कर्तव्यों के चलते व्यस्तता के कारण उन्हें अदालत के काम के लिये बहुत कम समय मिल पाता है।
- अदालत के क्लर्कों और रिकॉर्ड कीपरों तक उनकी पहुँच सीमित है। इनमें से कई साथ ही अदालतों में कंप्यूटर और वीडियो रिकॉर्डर की सुविधा उपलब्ध न होना।
- पीठासीन अधिकारियों में से कई को कानून और प्रक्रियाओं की उचित जानकारी नहीं होती है, जो कई सिविल सेवकों के लिये हथियार लाइसेंस से संबंधित संवेदनशील मामलों में परेशानी का कारण बन जाता है।
- लंबित मामलों पर बातचीत करने के संदर्भ में अर्द्ध-न्यायिक एजेंसियों पर विचार नहीं किया जाता है।
अर्द्ध-न्यायिक न्यायालयों में सुधार के लिये:
- सरकार को इन एजेंसियों के कुशल कामकाज को प्राथमिकता देनी चाहिये और इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिये।
- इन एजेंसियों के कामकाज पर विस्तृत डेटा समय-समय पर कम-से-कम वार्षिक रूप से एकत्र और प्रकाशित किया जाना चाहिये।
- इन्हें संबंधित विधानमंडलों के समक्ष रखा जाना चाहिये।
- ये परिणाम कर्मचारियों की संख्या को तर्कसंगत बनाने के बारे में निर्णयों का आधार होना चाहिये।
- न्याय प्रशासन से संबंधित सभी सहायक कार्यों जैसे कि शिकायतें दर्ज करना, समन जारी करना, अदालतों के बीच मामले के रिकॉर्ड के आदान-प्रदान, निर्णयों की प्रतियाँ जारी करना आदि को सुव्यवस्थित करने के लिये एक इलेक्ट्रॉनिक मंच स्थापित किया जाना चाहिये।
- यह इन निकायों के कामकाज़ का विश्लेषण करने और आँकड़ों के प्रकाशन की सुविधा के लिये एक ठोस आधार स्थापित कर सकता है।
- अधीनस्थ न्यायालयों का वार्षिक निरीक्षण अनिवार्य किया जाए।
- यह उच्च प्राधिकारी द्वारा मूल्यांकन के लिये एक महत्त्वपूर्ण संकेतक होना चाहिये। निरीक्षण पीठासीन अधिकारियों के अनुकूलित प्रशिक्षण का आधार बन सकता है।
- इन न्यायालयों के कामकाज़ पर अंतःविषय अनुसंधान को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- यह सुधार के क्षेत्रों की पहचान करेगा जैसे कानूनी सुधार या स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करना।
- समय-समय पर निर्णायक अधिकारियों का नियमित प्रशिक्षण और उन्मुखीकरण किया जाना चाहिये।
- इन अर्द्ध-न्यायिक न्यायालयों के प्रदर्शन का राज्य सूचकांक बनाना और प्रकाशित किया जाए।
- यह अन्य राज्यों की तुलना में उनके प्रदर्शन की ओर राज्यों का ध्यान आकर्षित करेगा और उन्हें कमज़ोर क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करेगा।
- महत्त्वपूर्ण निर्णयों, दिशा-निर्देशों और निर्देशों को संकलित किया जा सकता है एवं राजस्व बोर्ड जैसे शीर्ष निर्णायक फोरम के पोर्टल पर प्रकाशित किया जा सकता है।
- ये निचले स्तर की एजेंसियों के लिये मददगार होंगे।
- न्यायिक कार्य संभालने वाले अधिकारियों का अधिक गहन प्रारंभिक प्रशिक्षण इसमें सहायक होगा।
- प्रशिक्षुओं के बीच न्यायिक कार्य के महत्त्व को स्थापित किया जाना चाहिये और उनमें कौशल एवं आत्मविश्वास को विकसित किया जाना चाहिये।
- प्रक्रियात्मक सुधार जैसे स्थगन को कम करना, लिखित बहस को अनिवार्य रूप से दाखिल करना और नागरिक प्रक्रिया संहिता में सुधार के लिये विधि आयोग जैसे निकायों द्वारा प्रस्तावित ऐसे अन्य सुधारों को इन सहायक निकायों द्वारा अपनाया जाना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. "केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण जिसकी स्थापना केंद्र सरकार के कर्मचारियों द्वारा या उनके खिलाफ शिकायतों एवं परिवादों के निवारण के लिये की गई थी, आजकल एक स्वतंत्र न्यायिक प्राधिकरण के रूप में अपनी शक्तियों का प्रयोग कर रहा है।" व्याख्या कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2019) |