भारतीय अर्थव्यवस्था
वित्त आयोग
- 16 Nov 2019
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इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में वित्त आयोग और उसमें हुए हालिया संशोधनों की चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
केंद्र सरकार वर्ष 2017 में गठित 15वें वित्त आयोग के कार्यकाल के विस्तार पर विचार कर रही है। मूलतः आयोग का कार्यकाल अक्तूबर 2019 में समाप्त होने वाला था, परंतु जब जुलाई 2019 में 15वें वित्त आयोग के विचारार्थ विषयों (Term of Reference-ToR) में संशोधन किया गया तो राष्ट्रपति ने आयोग के कार्यकाल को भी 30 नवंबर तक बढ़ा दिया था। जानकारों का मानना है कि बीते कुछ समय में हुए बदलावों जैसे- खाड़ी क्षेत्र के हालिया घटनाक्रम, देश की GDP विकास दर में कमी, प्रत्यक्ष कर की दरों में बदलाव और नए केंद्रशासित प्रदेशों के निर्माण आदि ने अल्पावधि में आर्थिक विकास के आकलन को जटिल बना दिया है। चूँकि 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें अगले पाँच वर्षों तक लागू रहेंगी, इसलिये इसके कार्यकाल का विस्तार किया जाना आवश्यक है।
ToR में संशोधन
- इसी वर्ष जुलाई 2019 में केंद्र सरकार ने 15वें वित्त आयोग के विचारार्थ विषयों (ToR) में दो संशोधन किये थे।
- पहले संशोधन में शामिल था कि वित्त आयोग इस बात की जाँच करे कि "क्या रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के वित्तपोषण के लिये एक अलग तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये और यदि हाँ, तो इस तरह के तंत्र का संचालन कैसे किया जाएगा।"
- ToR में दूसरा संशोधन जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 (J&K Act) की धारा 83 से संबंधित था, जो कि 31 अक्तूबर को जम्मू-कश्मीर के केंद्रशासित प्रदेश बनने के साथ लागू हुई थी।
- अधिनियम की उक्त धारा देश के राष्ट्रपति के लिये यह निश्चित करती है कि वह “जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख को 15वें वित्त आयोग के विचारार्थ विषयों (ToR) में शामिल करें।”
वित्तपोषण के लिये अलग तंत्र
- गौरतलब है कि वर्तमान व्यवस्था के तहत भारत सरकार (GoI), रक्षा और गृह मंत्रालयों के तहत रक्षा एवं सशस्त्र बलों की तैनाती के लिये लोकसभा से अनुदान की मांग करती हैं।
- जानकारों के अनुसार, जिस अलग तंत्र की अभिकल्पना की जा रही है वह सार्वजनिक खाते में एक रक्षा और आंतरिक सुरक्षा निधि के रूप में हो सकता है, जिसमें उनके वार्षिक बजटीय आवंटन को क्रेडिट कर दिया जाएगा जिसे आवश्यक मदों पर खर्च किया जा सकेगा।
- इस प्रकार की व्यवस्था पहले भी अपनाई जा चुकी है और राष्ट्रीय आपदा राहत कोष इसका प्रमुख उदाहरण है।
अलग तंत्र निर्माण में चुनौतियाँ
- रक्षा क्षेत्र के लिये वर्ष 2019-20 का बजट और गृह मंत्रालय का पुलिस के लिये बजट कुल लगभग 5,30,000 करोड़ रुपए है।
- इतनी बढ़ी राशि निधि में जमा करने से सरकार के बजटीय प्रबंधन में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- अलग तंत्र के निर्माण से संबंधित इसी प्रकार की मांग कई अन्य मंत्रालयों से भी देखी जा सकती है, जो कि बजटीय प्रबंधन को और अधिक प्रभावित करेगा।
- यह तंत्र सरकारी लेखा नियम 1990 (GAR) का उल्लंघन करता है, जो केवल मंत्रालयों की निर्दिष्ट योजनाओं के कार्यान्वयन के लिये सार्वजनिक खाते में एक निधि बनाने की अनुमति देता है, न कि विभागों के संपूर्ण बजटीय आवंटन के लिये।
- कई आलोचकों का यह भी मानना है कि यह तंत्र संविधान में दिये गए वार्षिक बजट के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
- यदि ऐसा कोई कोष भारत सरकार के सार्वजनिक खाते में बनाया जाता है तो वित्त आयोग यह निर्धारित करने में भी चुनौतियों का सामना करेगा कि इसे राज्यों के साथ कैसे साझा किया जाए।
जम्मू-कश्मीर संबंधी संशोधन
- जम्मू-कश्मीर से संबंधित संशोधन भी उतना ही चुनौतीपूर्ण है जितना कि एक अलग तंत्र का निर्माण।
- कई जानकार जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 83, जो कि जम्मू-कश्मीर को वित्त आयोग के ToR में शामिल करने से संबंधित है, को अनिश्चित मानते हैं, क्योंकि 15वें वित्त आयोग के ToR में कुल 15 खंड हैं और किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश का नाम इन 15 खंडों में शामिल नहीं है।
- राज्यों का तर्क है कि इस तरह के प्रावधान के प्रभाव से दावेदारों की संख्या में वृद्धि होगी और व्यक्तिगत हिस्से की राशि में कमी आएगी।
15वाँ वित्त आयोग
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 22 नवंबर, 2017 को 15वें वित्त आयोग के गठन को मंज़ूरी प्रदान की थी।
- गौरतलब है कि 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें वित्तीय वर्ष 2020-25 तक पाँच साल की अवधि में लागू की जाएंगी।
- अब तक 14 वित्त आयोगों का गठन किया जा चुका है। 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें वित्तीय वर्ष 2019-20 तक के लिये वैध हैं।
- ध्यातव्य है कि 27 नवंबर, 2017 को श्री एन.के. सिंह को 15वें वित्त आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
- श्री एन.के. सिंह भारत सरकार के पूर्व सचिव एवं वर्ष 2008-2014 तक बिहार से राज्य सभा के सदस्य भी रह चुके हैं।
वित्त आयोग
- संविधान के अनुच्छेद 280 के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि संविधान के प्रारंभ से दो वर्ष के भीतर और उसके बाद प्रत्येक पाँच वर्ष की समाप्ति पर या पहले उस समय पर, जिसे राष्ट्रपति द्वारा आवश्यक समझा जाता है, एक वित्त आयोग का गठन किया जाएगा।
- इस व्यवस्था को देखते हुए पिछले वित्त आयोग के गठन की तारीख के पाँच वर्षों के भीतर अगले वित्त आयोग का गठन हो जाता है, जो एक अर्द्धन्यायिक एवं सलाहकारी निकाय है।
वित्त आयोग की आवश्यकता क्यों?
- भारत की संघीय प्रणाली केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति तथा कार्यों के विभाजन की अनुमति देती है और इसी आधार पर कराधान की शक्तियों को भी केंद्र एवं राज्यों के बीच विभाजित किया जाता है।
- राज्य विधायिकाओं को अधिकार है कि वे स्थानीय निकायों को अपनी कराधान शक्तियों में से कुछ अधिकार दे सकती हैं।
- केंद्र कर राजस्व का अधिकांश हिस्सा एकत्र करता है और कुछ निश्चित करों के संग्रह के माध्यम से बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था में योगदान देता है।
- स्थानीय मुद्दों और ज़रूरतों को निकटता से जानने के कारण राज्यों की यह ज़िम्मेदारी है कि वे अपने क्षेत्रों में लोकहित का ध्यान रखें।
- हालाँकि इन सभी कारणों के चलते कभी-कभी राज्य का खर्च उनको प्राप्त होने वाले राजस्व से कहीं अधिक हो जाता है।
- इसके अलावा, विशाल क्षेत्रीय असमानताओं के कारण कुछ राज्य दूसरों की तुलना में पर्याप्त संसाधनों का लाभ उठाने में असमर्थ हैं। इन असंतुलनों को दूर करने के लिये वित्त आयोग राज्यों के साथ साझा किये जाने वाले केंद्रीय निधियों की सीमा निर्धारित करने की सिफारिश करता है।
वित्त आयोग के कार्य
- भारत के राष्ट्रपति को यह सिफारिश करना कि संघ एवं राज्यों के बीच करों की शुद्ध प्राप्तियों को कैसे वितरित किया जाए एवं राज्यों के बीच ऐसे आगमों का आवंटन कैसे किया जाए।
- निर्णय लेना कि अनुच्छेद 275 के तहत संचित निधि में से राज्यों को अनुदान/सहायता दिया जाना चाहिये या नहीं।
- राज्य वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर पंचायतों एवं नगरपालिकाओं के संसाधनों की आपूर्ति हेतु राज्य की संचित निधि में संवर्द्धन के लिये आवश्यक क़दमों की सिफारिश करना।
- राष्ट्रपति द्वारा प्रदत्त अन्य कोई विशिष्ट निर्देश, जो देश के सुदृढ़ वित्त के हित में हो।
वित्त आयोग की शक्तियाँ
- आयोग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपता है, जिसे राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखवाता है।
- प्रस्तुत सिफारिशों के साथ स्पष्टीकारक ज्ञापन भी रखवाना होता है ताकि प्रत्येक सिफारिश के संबंध में हुई कार्यवाही की जानकारी हो सके।
- वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशें सलाहकारी प्रवृत्ति की होती हैं, उन्हें मानना या न मानना सरकार पर निर्भर करता है।
निष्कर्ष
वित्त आयोग केंद्र और राज्य के मध्य वित्तीय संतुलन बनाए रखने का महत्त्वपूर्ण कार्य करता है, और इसीलिये इसे संघीय व्यवस्था का अभिन्न अंग माना जाता है। परंतु कुछ लोग मानते हैं कि वित्त आयोग सदैव ही अपने विचारार्थ विषयों की चुनौतियों के बोझ से दबा रहा है। 15वें वित्त आयोग के विचारार्थ विषयों में होने वाले उपरोक्त संशोधन वित्त आयोग के बोझ को और अधिक बढ़ाने का कार्य करेंगे। परंतु इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वित्त आयोग का गठन ही इस कार्य हेतु किया जाता है, साथ ही यह देश के संघीय ढाँचे के लिये भी आवश्यक है।
प्रश्न: वित्त आयोग संघीय ढाँचे का महत्त्वपूर्ण अंग है। चर्चा कीजिये।