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भारतीय अर्थव्यवस्था

वैश्विक निवेश केंद्र के रूप में भारत का उदय

  • 28 Sep 2024
  • 31 min read

यह संपादकीय 26/09/2024 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “The world wants to Make in India” पर आधारित है। यह लेख मेक इन इंडिया पहल द्वारा संचालित एवं स्टार्टअप इंडिया और PLI योजनाओं जैसी प्रतिपूरक नीतियों द्वारा समर्थित भारत के वैश्विक निवेश केंद्र में परिवर्तन पर प्रकाश डालता है। यह अपने “चार D” के माध्यम से भारत की अपील और खिलौना निर्माण जैसे क्षेत्रों में सफलता को रेखांकित करता है, जिससे निर्यात, रोज़गार सृजन और विदेशी निवेश में वृद्धि हुई है।

प्रिलिम्स के लिये:

मेक इन इंडिया पहल, स्टार्टअप इंडिया, उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन, आत्मनिर्भर भारत अभियान, राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन, भारत औद्योगिक भूमि बैंकक्वाड, आपूर्ति शृंखला समुत्थानशीलता पहल, स्टार्टअप इंडिया पहल, डिजिटल अवसंरचना, भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम 2013  

मेन्स के लिये:

एक निवेश गंतव्य के रूप में भारत के आकर्षण में बाधा डालने वाली चुनौतियाँ, एक निवेश गंतव्य के रूप में अपना आकर्षण बढ़ाने के लिये भारत द्वारा उठाए जा सकने वाले कदम।

आर्थिक रूप से निरुद्ध राष्ट्र से वैश्विक निवेश अधिकेंद्र में भारत के परिवर्तन का श्रेय मेक इन इंडिया पहल को दिया जा सकता है। इस प्रमुख कार्यक्रम ने रोज़गार सृजन को पुनर्जीवित किया है, आर्थिक विकास उत्प्रेरित किया है और व्यवसायों, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों को उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों का उत्पादन करने के लिये सशक्त बनाया है। इसने कई क्षेत्रों को घटिया उत्पादों के आयातकों से प्रीमियम वस्तुओं के निर्यातकों में परिवर्तित करने में सहायता की है, जिसमें खिलौना निर्माण उद्योग एक प्रमुख उदाहरण है, जिसने निर्यात में 239% की वृद्धि देखी जबकि आयात आधा रह गया।

मेक इन इंडिया की सफलता को स्टार्टअप इंडिया, उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं और महत्त्वपूर्ण अवसंरचना के निवेश जैसी अन्य प्रभावी नीतियों और पहलों द्वारा पूरित किया गया है। इन प्रयासों ने पर्याप्त विदेशी निवेश को आकर्षित किया है, लाखों नौकरियाँ सृजित की हैं तथा भारत को उच्च तकनीक और उभरती प्रौद्योगिकियों में एक प्रमुख भागीदार के रूप में स्थापित किया है। वैश्विक निवेशकों के लिये देश की अपील इसके "चार D": निर्णायक नेतृत्व, बड़ी आबादी से मांग, जनसांख्यिकीय लाभांश और स्पंदनशील लोकतंत्र द्वारा और भी बढ़ जाती है। परिणामतः, भारत विनिर्माण और नवाचार के लिये एक पसंदीदा गंतव्य बन गया है, जिसका भविष्य उज्ज्वल है।

भारत किस प्रकार एक आकर्षक निवेश स्थल बनता जा रहा है? 

  • सुदृढ़ आर्थिक विकास: भारत विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में उभरा है, जिसमें अप्रैल 2000 से मार्च 2024 तक कुल FDI प्रवाह 990.97 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँच गया है। 
    • IMF को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2024 में भारत की GDP में 6.7% वृद्धि होगी, जिससे यह सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन जाएगा। 
    • आत्मनिर्भर भारत अभियान  के तहत 270 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज पेश किया गया, जो देश की GDP के 10% के बराबर है।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश: भारत में विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी है, जिसकी अनुमानित वृद्धि वर्ष 2011 में 121.1 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2036 तक 152.2 करोड़ हो जाएगी, जो इसे जनसांख्यिकीय लाभ का केंद्र बनाती है। जीवंत कार्यबल और युवा प्रतिभाओं के विशाल समूह के साथ, भारत वर्ष 2030 तक वैश्विक रूप से सबसे युवा देशों में से एक बना रहेगा। 
    • यह युवा आबादी तेज़ी से तकनीक-प्रेमी हो रही है, अनुमान है कि वर्ष 2025 तक भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 900 मिलियन तक पहुँच जाएगी, जिससे ई-कॉमर्स, डिजिटल सेवाओं और तकनीक-सक्षम क्षेत्रों में अवसर उत्पन्न होंगे।
  • अवसंरचना विकास: भारत का अवसंरचना विकास तेज़ी से अग्रेषित हो रहा है, जिसमें राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) विकास का प्रमुख चालक है।
    • इस पहल का उद्देश्य विश्व स्तरीय अवसंरचना का निर्माण करना और वित्त वर्ष 2025 तक भारत की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाना है। 
    • 3,093.51 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की 9,700 से अधिक परियोजनाओं की पहचान की गई है, जो ऊर्जा (24%), सड़क (18%), शहरी (17%) और रेलवे (12%) जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में विस्तृत हैं। 
      • इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय निवेश एवं अवसंरचना कोष (NIIF) में 6,000 करोड़ रुपये की महत्त्वपूर्ण इक्विटी निवेश से वैश्विक निवेश आकर्षित करने की भारत की क्षमता और सुदृढ़ होगी। 
  • इज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार: भारत सरकार ने कारोबारी वातावरण को बेहतर बनाने के लिये कई सुधार कार्यान्वित किये हैं। 
    • विश्व बैंक के इज ऑफ डूइंग बिजनेस सूचकांक में भारत का श्रेणीक्रम वर्ष 2014 में 142 से सुधरकर वर्ष 2019 में 63 हो गया है।
    • हाल की पहलों में 25,000 से अधिक अनुपालन आवश्यकताओं को समाप्त करना, प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण और माल एवं सेवा कर (GST) की शुरूआत शामिल है।
    • GIS आधारित पोर्टल, इंडिया इंडस्ट्रियल लैंड बैंक (IILB) औद्योगिक पार्कों के बारे में व्यापक जानकारी प्रदान करता है, जिससे इज ऑफ डूइंग बिजनेस में संवर्द्धन होता है।
  • प्रतिस्पर्द्धी श्रम लागत: भारत का विस्तृत और वर्द्धित कार्यबल निवेशकों को महत्त्वपूर्ण लागत लाभ प्रदान करता है।
    • भारत के पास विश्व की सबसे बड़ी श्रम शक्ति है, जो विभिन्न कौशल स्तरों पर श्रमिकों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करती है। भारतीय श्रम लागत कई अन्य देशों की तुलना में प्रतिस्पर्द्धी बनी हुई है, विशेषकर विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में। 
    • भारत में औसत विनिर्माण श्रम लागत चीन और कई दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों की तुलना में काफी कम है।
    • हाल के श्रम सुधारों का उद्देश्य श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करते हुए व्यवसायों को अधिक समुत्थानशीलता प्रदान करना है, जिससे भारत संभवतः श्रम-प्रधान उद्योगों के लिये अधिक आकर्षक बन जाएगा।
  • विस्तृत एवं वर्द्धित उपभोक्ता आधार: भारत का विस्तृत और वर्द्धित उपभोक्ता बाज़ार निवेशकों के लिये एक प्रमुख आकर्षण है:
    • भारत की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या के 17.78% के बराबर है, जो एक विस्तृत संभावित ग्राहक आधार प्रदान करती है।
    • मध्यम वर्ग की संख्या वर्ष 2020-21 में 432 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2030-31 में 715 मिलियन (47%) हो जाने की उम्मीद है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में उपभोक्ता व्यय में वृद्धि होगी।
  • सामरिक भू-राजनीतिक अवस्थिति : भारत के बढ़ते भू-राजनीतिक महत्त्व और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रति संतुलन के रूप में इसकी स्थिति ने वैश्विक निवेशकों के लिये इसके आकर्षण को बढ़ा दिया है।
    • क्वाड (अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ) जैसे सामरिक समूहों में भारत की भागीदारी और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन जैसी पहलों में इसका नेतृत्व इसके बढ़ते वैश्विक प्रभाव को प्रदर्शित करता है। 
    • हाल के घटनाक्रमों, जैसे कि आपूर्ति शृंखला समुत्थानशीलता पहल, ने चीन के विकल्प की तलाश कर रहे अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के लिये इसकी अपील को और बढ़ा दिया है।
  • संवर्द्धित स्टार्ट-अप इकोसिस्टम: भारत के स्टार्ट-अप इकोसिस्टम में तेज़ी से वृद्धि हुई है, जिससे यह विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा इकोसिस्टम बन गया है। 
    • 3 अक्टूबर 2023 तक, भारत में 111 यूनिकॉर्न हैं जिनका कुल मूल्य निर्धारण 349.67 बिलियन डॉलर है।
    • वर्ष 2016 में शुरू की गई सरकार की स्टार्टअप इंडिया पहल ने वित्तपोषण, कर लाभ और नियामक सहायता प्रदान करके इस वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
      • इस संपन्न पारिस्थितिकी तंत्र ने महत्त्वपूर्ण विदेशी निवेश आकर्षित किया है, भारतीय स्टार्ट-अप्स ने वैश्विक आर्थिक प्रतिकूलताओं के बावजूद वर्ष 2022 में इक्विटी फंडिंग में 24 बिलियन अमरीकी डॉलर संगृहीत किये हैं।
  • नवीकरणीय ऊर्जा वर्द्धन: नवीकरणीय ऊर्जा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता ने पर्याप्त निवेश अवसर उत्पन्न किये हैं। 
    • देश का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करना है, जो वर्ष 2023 की शुरुआत में लगभग 170 गीगावाट था।
    • इस महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य ने सौर, पवन और हरित हाइड्रोजन परियोजनाओं में निवेश को दलपटयुक्त किया है। 
      • ऐसी पहल न केवल विदेशी निवेश को आकर्षित करती हैं, बल्कि भारत को स्वच्छ ऊर्जा के लिये वैश्विक परिवर्तन में अग्रणी के रूप में भी स्थापित करती हैं।
  • डिजिटल अवसंरचना और फिनटेक क्रांति: भारत की डिजिटल अवसंरचना, विशेषकर इंडिया स्टैक ने वित्तीय समावेशन में क्रांति ला दी है और नए निवेश अवसर उत्पन्न किये हैं। 
    • यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) ने प्रति सेकंड 3729.1 लेनदेन संसाधित किये, जिससे वर्ष 2023 में प्लेटफॉर्म पर 117.6 बिलियन संव्यवहार संसाधित किये गए।
    • इस डिजिटल आधार ने फिनटेक के विकास को उत्प्रेरित किया है, भारत का फिनटेक बाज़ार वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है। 
    • वैश्विक प्रौद्योगिकी दिग्गज और उद्यम पूंजीपति भारत के बड़े, कम सेवा वाले बाज़ार और नवीन डिजिटल समाधानों की क्षमता को पहचानते हुए भारतीय फिनटेक स्टार्टअप्स में तेज़ी से निवेश कर रहे हैं।

निवेश गंतव्य के आकर्षण रूप में भारत के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ बाधा उत्पन्न करती हैं?

  • अवसंरचना अंतराल: महत्त्वपूर्ण सुधारों के बावजूद, भारत की अवसंरचना अभी भी वैश्विक मानकों से पीछे है, जिससे व्यवसायों की दक्षता प्रभावित हो रही है और लागत में वृद्धि हो रही है। 
    • वर्ष 2023 में विश्व बैंक के रसद प्रदर्शन सूचकांक (LPI) में भारत 139 देशों में से 38वें स्थान पर है, जो सुधार की संभावना को प्रदर्शित करता है। 
    • अवसंरचना की कमी विशेष रूप से विद्युत् वितरण, जलापूर्ति और अंतिम छोर तक संयोजकता जैसे क्षेत्रों में गंभीर है, जिससे विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित हो रही है।
  • विनियामक जटिलता और नीति अनिश्चितता: भारत के विनियामक वातावरण में यद्यपि सुधार हो रहा है, परंतु जटिल और कभी-कभी अप्रत्याशित बना हुआ है, जिससे संभावित निवेशक हतोत्साहित हो रहे हैं।
    • हाल के उदाहरणों में वोडाफोन और केयर्न एनर्जी जैसी कंपनियों के साथ पूर्वव्यापी कर विवाद शामिल हैं, जो वर्षों की मुकदमेबाजी के बाद वर्ष 2021 में ही हल हो पाए। 
    • ई-कॉमर्स नियमों और डेटा स्थानीयकरण आवश्यकताओं में लगातार परिवर्तन ने भी तकनीकी कंपनियों के लिये अनिश्चितता को उत्पन्न किया है। 
  • श्रम बाज़ार की कठोरता: भारत के नए 4 श्रम संहिता जो वर्ष 2019 और वर्ष 2020 में पेश किये गए थे, अभी तक कार्यान्वित नहीं हुए हैं। असंगठित क्षेत्र के श्रमिक देश के कुल रोज़गार का 90% से अधिक हिस्सा हैं।
    • श्रम बाज़ार में कौशल का बेमेल होना एक और चिंता का विषय है। वर्ष 2019 के एक रोज़गार सर्वेक्षण से पता चलता है कि 80% भारतीय इंजीनियर ज्ञान अर्थव्यवस्था में किसी भी नौकरी के लिये उपयुक्त नहीं हैं और उनमें से केवल 2.5% के पास कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) में तकनीकी कौशल है जिसकी उद्योग को आवश्यकता है।
  • बैंकिंग क्षेत्र की चुनौतियाँ: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र, विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, उच्च गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) और पूंजी पर्याप्तता के मुद्दों से जूझ रहे हैं, जिससे व्यवसायों को ऋण प्रवाह बाधित हो रहा है। 
    • RBI की जून 2024 की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPA) (हालाँकि घट रही हैं) अभी भी 2.8% (सकल NPA) पर हैं।
    • हाल ही में वर्ष 2020 में यस बैंक के लगभग दिवालिया हो जाने से वित्तीय प्रणाली की स्थिरता पर प्रश्न उठे हैं।
  • भूमि अर्जन संबंधी चुनौतियाँ: भारत में बड़े पैमाने की औद्योगिक और अवसंरचना परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण एक महत्त्वपूर्ण बाधा बनी हुई है।
  • बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) संबंधी चिंताएँ: यद्यपि भारत ने अपनी IPR व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में प्रगति की है, फिर भी अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों, विशेषकर औषध और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में, चिंताएँ बनी हुई हैं। 
    • यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स के वर्ष 2023 अंतर्राष्ट्रीय IP सूचकांक में भारत 55 देशों में से 42वें स्थान पर है।
    • देश के पेटेंट कानून, विशेषकर पेटेंट अधिनियम की धारा 3(D), जो औषध क्षेत्र में पेटेंट के लिये उच्च मानदंड निर्धारित करती है, विवाद का विषय रही है। 
    • नकली वस्तुओं का प्रचलन, वर्ष 2022 की फिक्की रिपोर्ट के अनुसार भारत में नकली बाज़ार का आकार 2.6 ट्रिलियन रुपये (5 प्रमुख भारतीय उद्योगों में) होने का अनुमान है, जो IPR संरक्षण में चुनौतियों को और अधिक रेखांकित करता है।
  • डिजिटल अवसंरचना और साइबर सुरक्षा: तीव्र डिजिटलीकरण के बावजूद, भारत को अभी भी डिजिटल अवसंरचना और साइबर सुरक्षा में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो तकनीकी क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। 

निवेश गंतव्य के रूप में अपना आकर्षण बढ़ाने के लिये भारत क्या कदम उठा सकता है?

  • अवसंरचना के विकास में त्वरण: भारत को परियोजना कार्यान्वयन में तेज़ी लाकर और निवेश बढ़ाकर अपनी अवसंरचना अंतराल को पाटने को प्राथमिकता देनी चाहिये। 
    • रसद दक्षता में सुधार पर बल दिया जाना चाहिये; भारत की रसद लागत (GDP का 14%) विकसित देशों (8-10%) की तुलना में काफी अधिक है। पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान जैसी पहलों को तेज़ी से अग्रेषित करना चाहिये।
    • सफल कार्यान्वयन से संभावित रूप से प्रतिवर्ष रसद लागत में अरबों डॉलर की बचत हो सकती है तथा निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रोत्साहन प्राप्त हो सकता है।
  • विनियामक प्रक्रियाओं का धारारेखांकन: भारत को अनुपालन भार को कम करने तथा व्यापार सुगमता के लिये अपने विनियामक वातावरण को और अधिक सरल बनाने की आवश्यकता है। 
    • सरकार को 25,000 से अधिक अनुपालन आवश्यकताओं को समाप्त करने और छोटे अपराधों को अपराधमुक्त करने में अपनी सफलता को आगे बढ़ाना चाहिये। 
    • सभी केंद्रीय और राज्य स्तरीय अनुमोदनों के लिये एकल खिड़की मंजूरी प्रणाली कार्यान्वित करने से परियोजना में होने वाली देरी में काफी कमी आ सकती है।
    • उदाहरण के लिये, गुजरात की एकल खिड़की प्रणाली की सफलता को राष्ट्रीय स्तर पर कार्यान्वित किया जा सकता है। 
    • विभिन्न विनियामक प्रक्रियाओं को डिजिटल बनाने और एकीकृत करने से व्यवसायों को प्रतिवर्ष अनुपालन लागत में अरबों की बचत हो सकती है।
  • श्रम विधि सुधार और कौशल विकास: श्रम बाज़ार में सुनम्यता की वृद्धि के लिये चार नए श्रम संहिताओं को शीघ्रता और प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करना महत्त्वपूर्ण है। 
    • इसके साथ ही, भारत को रोज़गार संबंधी अंतर को दूर करने के लिये अपने कौशल विकास पहलों में तेज़ी लानी चाहिये।
    • सरकार को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत कुशल लोगों की संख्या बढ़ाने का लक्ष्य रखना चाहिये। 
    • उद्योग जगत के साथ सहयोग को बढ़ाया जाना चाहिये, जैसे कि क्लाउड प्रौद्योगिकियों में 100,000 डेवलपर्स को प्रशिक्षित करने के लिये गूगल और नैसकॉम के बीच हाल ही में हुई साझेदारी।
  • बैंकिंग क्षेत्र का सुदृढ़ीकरण: भारत को बैंक तुलन पत्र को परिशोधित करने और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पुनः पूंजीकृत करने के अपने प्रयास जारी रखने चाहिये। 
    • भारतीय निजी क्षेत्र के बैंकों के लिये स्वामित्व संबंधी दिशा-निर्देशों पर RBI के आंतरिक कार्य समूह की सिफारिशों को कार्यान्वित करने से बैंकिंग क्षेत्र में अधिक निवेश आकर्षित हो सकता है। 
  • भूमि सुधार और डिजिटलीकरण: भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण और भूमि अर्जन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने सहित व्यापक भूमि सुधारों को कार्यान्वित करना महत्त्वपूर्ण है। 
    • सरकार को सभी राज्यों में डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम के अंतर्गत भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण का कार्य पूरा करने का लक्ष्य रखना चाहिये।
    • सफल कार्यान्वयन से भूमि संबंधी विवादों में 50% तक कमी आ सकती है तथा परियोजना कार्यान्वयन समय में भी उल्लेखनीय कमी आ सकती है। 
  • बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण का सुदृढ़ीकरण: भारत को निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिये अपनी बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, विशेष रूप से उच्च तकनीक और अनुसंधान एवं विकास-गहन क्षेत्रों में। 
    • पेटेंट की आवेदन प्रक्रिया में लगने वाले समय को कम करने के लिये, पहले चरण के लिये निर्धारित समय सीमा को घटाकर 14-15 महीने (वर्तमान में 18 महीने) किया जा सकता है, जिससे यह अमेरिका और चीन के अनुरूप हो जाएगा।
    • पेटेंट परीक्षकों की संख्या बढ़ाने और IP कार्यालयों का आधुनिकीकरण करने से इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता मिल सकती है। 
  • डिजिटल अवसंरचना और साइबर सुरक्षा का संवर्द्धन: भारत को अपने डिजिटल अवसंरचना विकास में तेज़ी लानी चाहिये, जिसका लक्ष्य भारतनेट परियोजना के तहत सभी गाँवों तक उच्च गति की इंटरनेट अभिगम्यता प्रदान करना है। 
    • सरकार को औसत फिक्स्ड ब्रॉडबैंड स्पीड बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिये।
    • राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा कार्यनीति को कार्यान्वित करने और एक सुदृढ़ प्रणाली स्थापित करने से साइबर सुरक्षा घटनाओं में 50% तक कमी आ सकती है और भारत को डेटा-संचालित निवेश के लिये एक सुरक्षित गंतव्य के रूप में स्थापित किया जा सकता है।
  • सतत् विकास को प्रोत्साहन: भारत को ई.एस.जी.-केंद्रित निवेशों को आकर्षित करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा और सतत् प्रथाओं की ओर अपने परिवर्तन में तेज़ी लानी चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त, चक्रीय अर्थव्यवस्था प्रथाओं और जल संरक्षण को बढ़ावा देने से संसाधन की कमी की समस्या का समाधान हो सकता है।
    • ये उपाय संभावित रूप से वर्ष 2030 तक 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हरित निवेश आकर्षित कर सकते हैं तथा भारत को संवहनीय विनिर्माण में अग्रणी बना सकते हैं।
  • शिक्षा और कौशल विकास को संवर्द्धन: भारत को अपनी शिक्षा प्रणाली को उद्योग जगत की ज़रूरतों, विशेषकर उभरती प्रौद्योगिकियों के अनुरूप बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। 
    • डिजिटल कौशल और व्यावहारिक प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हुए  राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को प्रभावी ढंग से कार्यान्वयन करना महत्त्वपूर्ण है।
    • भारतीय कौशल संस्थान जैसे सफल मॉडलों को अग्रेषित करने से, जिसका उद्देश्य उद्योग-प्रासंगिक प्रशिक्षण प्रदान करना है, कौशल अंतर को पाटने में सहायता मिल सकती है।

निष्कर्ष:

वैश्विक निवेश केंद्र बनने की दिशा में भारत की यात्रा एक आशाजनक पथ पर है, जो सामरिक सुधारों, अवसंरचनात्मक विकास और एक युवा, तकनीक-प्रेमी कार्यबल द्वारा संचालित है। अपनी क्षमता को पूरी तरह से साकार करने के लिये, भारत को अवसंरचना, नियामक जटिलता और कौशल विकास में प्रमुख चुनौतियों का समाधान करना चाहिये, साथ ही अपनी डिजिटल और सतत् विकास पहलों को सुदृढ़ करना चाहिये। लक्षित उपायों के साथ, भारत वैश्विक निवेश के लिये एक शीर्ष गंतव्य के रूप में अपनी स्थिति को सुदृढ़ कर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

निवेश गंतव्य आकर्षण के रूप में भारत के समक्ष बाधा प्रस्तुत करने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं तथा विदेशी और घरेलू निवेश के लिये इसकी क्षमता के संवर्द्धन हेतु कौन-से सामरिक उपाय अंगीकृत किये जा सकते हैं? चर्चा कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत् वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि में निम्नलिखित में से कौन-सा एक मदसमूह सम्मिलित है?

(a) विदेशी मुद्रा परिसम्पत्ति, विशेष आहरण अधिकार (एस० डी० आर०) तथा विदेशों से ऋण
(b) विदेशी मुद्रा परिसम्पत्ति, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा धारित स्वर्ण तथा विशेष आहरण अधिकार (एस० डी० आर०)
(c) विदेशी मुद्रा परिसम्पत्ति, विश्व बैंक से ऋण तथा विशेष आहरण अधिकार (एस० डी० आर०)
(d) विदेशी मुद्रा परिसम्पत्ति, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा धारित स्वर्ण तथा विश्व बैंक से ऋण

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सी उसकी प्रमुख विशेषता मानी जाती है?

(a) यह मूलतः किसी सूचीबद्ध कम्पनी में पूँजीगत साधनों द्वारा किया जाने वाला निवेश है।
(b) यह मुख्यतः ऋण सृजित न करने वाला पूँजी प्रवाह है।
(c) यह ऐसा निवेश है जिससे ऋण-समाशोधन अपेक्षित होता है।
(d) यह विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में किया जाने वाला निवेश है।

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में एफ.डी.आइ. की आवश्यकता की पुष्टि कीजिये। हस्ताक्षरित समझौता-ज्ञापनों तथा वास्तविक एफ.डी.आइ. के बीच अंतर क्यों है? भारत में वास्तविक एफ.डी.आइ. को बढ़ाने के लिये सुधारात्मक कदम सुझाइए। (2016)

प्रश्न. रक्षा क्षेत्रक में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफ.डी.आइ.) को अब उदारीकृत करने की तैयारी है। भारत की रक्षा और अर्थव्यवस्था पर अल्पकाल और दीर्घकाल में इसके क्या प्रभाव अपेक्षित हैं? (2014)

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