डेली न्यूज़ (06 Jul, 2024)



नेट-ज़ीरो लक्ष्य के लिये नीति आयोग पैनल

प्रिलिम्स के लिये:

पेरिस समझौता, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, COP26, COP 27, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC), शुद्ध शून्य, राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन, जैव ईंधन, नीति आयोग

मेन्स के लिये:

2070 तक नेट-जीरो हासिल करने के लिये नीति आयोग की कार्य योजना, पेरिस जलवायु समझौता और इसके प्रभाव।

स्रोत: बिजनेस स्टैण्डर्ड 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग ने वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य (Net-Zero) अर्थव्यवस्था बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये नीतियों को तैयार करने और रोडमैप बनाने के लिये समर्पित बहु-क्षेत्रीय समितियों का गठन किया है।

  • भारत द्वारा वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य अर्थव्यवस्था बनने के अपने लक्ष्य की घोषणा के 3 वर्ष बाद यह शुरू किया गया है।

नीति आयोग द्वारा गठित कार्यसमूहों के प्रमुख क्षेत्र क्या हैं?

  • परिचय:
    • नीति आयोग ने 6 कार्य समूह बनाए हैं। ये समूह मैक्रोइकोनॉमिक संकेतक, जलवायु वित्त, महत्त्वपूर्ण खनिजों और ऊर्जा संक्रमण के सामाजिक पहलुओं जैसे मुख्य क्षेत्रों के लिये नीति प्रारूप, कार्य मॉडल विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
    • यह परिवहन, उद्योग, भवन, विद्युत एवं कृषि पर क्षेत्रीय समितियाँ भी बनाएगा।
  • 6 शुद्ध-शून्य कार्य समूह:
    • मैक्रोइकोनॉमिक संकेतक: यह मैक्रोइकोनॉमिक संकेतकों पर शुद्ध-शून्य मार्गों के निहितार्थों की जाँच करेगा और संरेखित मौद्रिक एवं राजकोषीय नीतियों का सुझाव देगा।
    • जलवायु वित्त: शमन और अनुकूलन के लिये भारत की जलवायु वित्त आवश्यकताओं का अनुमान लगाना और वित्त के संभावित स्रोतों की पहचान करना।
    • महत्त्वपूर्ण खनिज: महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये अनुसंधान एवं विकास, घरेलू विनिर्माण और आपूर्ति शृंखला का निर्माण करना।
    • ऊर्जा संक्रमण के सामाजिक पहलू: ऊर्जा संक्रमण के सामाजिक प्रभावों का आकलन करना और शमन रणनीतियों को प्रस्तावित करना।
    • नीतियों का समन्वयन: क्षेत्रीय समितियों की रिपोर्टों को एकत्रित करना और एक समेकित नीति पुस्तिका तैयार करना।
    • क्षेत्रीय समितियाँ: विद्युत, उद्योग, भवन, परिवहन एवं कृषि क्षेत्रों के लिये संक्रमण मार्ग तैयार करना।
  • अपेक्षित परिणाम:
    • सभी कार्य समूहों के लिये अपनी कार्ययोजनाएँ प्रस्तुत करने की समय-सीमा अक्तूबर, 2024 है। नीति आयोग की रिपोर्ट से यह अपेक्षा की जाती है कि यह सभी केंद्रीय मंत्रालयों के लिये जलवायु-लचीली और अनुकूली नीतियों का मसौदा तैयार करने के लिये एक नीति पुस्तिका (Policy Handbook) बनेगी, ताकि वर्ष 2070 तक भारत के शुद्ध-शून्य लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।

शुद्ध-शून्य लक्ष्य क्या है?

  • शुद्ध-शून्य से तात्पर्य उत्पादित कार्बन उत्सर्जन और वायुमंडल से निष्काषित कार्बन के बीच एक समग्र संतुलन हासिल करना है।
    • इसे कार्बन तटस्थता कहा जाता है, जिसका अर्थ यह नहीं है कि कोई देश अपने उत्सर्जन को शून्य पर ले आएगा।
    • इसके अतिरिक्त वनों जैसे अधिक कार्बन सिंक का निर्माण कर उत्सर्ज़न के अवशोषण को बढ़ाया जा सकता है।
      • वायुमंडल से गैसों को निष्काषित करने के लिये कार्बन कैप्चर और स्टोरेज जैसी भविष्य की तकनीकों की आवश्यकता है।
  • 70 से अधिक देशों ने वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है।

शुद्ध शून्य लक्ष्य हासिल करने के लिये भारत की पहल क्या हैं?

  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना: इसका उद्देश्य जनप्रतिनिधियों, विभिन्न सरकारी अभिकर्त्ताओं, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों के बीच जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इससे निपटने के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना है।
  • भारत ने कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज-26 (COP) ग्लासगो शिखर सम्मेलन में वर्ष 2070 तक अपने उत्सर्जन को शून्य तक कम करने की प्रतिबद्धता जताई है।
  • इसके लिये भारत ने 5-आयामी 'पंचमित्र' जलवायु कार्रवाई लक्ष्य की रूपरेखा तैयार की:
    • वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता तक पहुँच।
    • वर्ष 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% नवीकरणीय ऊर्जा से आपूर्ति करना।
    • अभी से वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में 1 बिलियन टन की कमी।
    • वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था की कार्बन उत्सर्जन तीव्रता में 45% की कमी।
    • वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करना।

शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने के लिये भारत द्वारा क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

  • कार्बन पृथक्करण को बढ़ाना: भारत अपने वन एवं वृक्ष आवरण का विस्तार करके, बंज़र भूमि को बहाल करके, कृषि वानिकी को बढ़ावा देकर और न्यून कार्बन वाली कृषि पद्धतियों को अपनाकर अपनी कार्बन पृथक्करण क्षमता को बढ़ा सकता है।
    • कार्बन पृथक्करण न केवल उत्सर्जन को कम कर सकता है, बल्कि जैवविविधता संरक्षण, मृदा उर्वरता में सुधार, जल सुरक्षा, आजीविका सहायता और आपदा जोखिम में कमी जैसे कई सह-लाभ भी प्रदान कर सकता है।
  • जलवायु अनुकूल बनाना: भारत अपनी आपदा प्रबंधन प्रणालियों को मज़बूत करके, प्रारंभिक चेतावनी और पूर्वानुमान क्षमताओं में सुधार कर सकता है साथ ही जलवायु-सह्य बुनियादी ढाँचे में निवेश करके, जलवायु-स्मार्ट कृषि, स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में वृद्धि कर स्थानीय समुदायों एवं संस्थानों को सशक्त बनाकर जलवायु के अनुकूल बना सकता है।
  • भारत की हरित परिवहन क्रांति को आगे बढ़ाना: एक बेहतरीन चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर नेटवर्क स्थापित करके और EV अपनाने के लिये प्रोत्साहित कर इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • इलेक्ट्रिक बसों, साझा गतिशीलता सेवाओं और स्मार्ट ट्रैफिक प्रबंधन प्रणालियों जैसे अभिनव सार्वजनिक परिवहन समाधानों को पेश करके भीड़भाड़ और उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
  • जलवायु स्मार्ट कृषि: जैविक खेती, कृषि वानिकी और परिशुद्ध कृषि को बढ़ावा देकर सतत् कृषि की विधियों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
    • रिमोट सेंसिंग, IoT डिवाइस और AI-आधारित एनालिटिक्स जैसे प्रौद्योगिकी-संचालित समाधानों को एकीकृत करने से संसाधन उपयोग को अनुकूलित किया जा सकता है, जल की खपत को कम किया जा सकता है और फसल उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारत विकसित देशों के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों के माध्यम से उन्नत स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को प्राप्त करके, अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वित्त को सुरक्षित करके और अन्य विकासशील देशों के साथ सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करके अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का लाभ उठा सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

‘वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की भारत की प्रतिज्ञा’ पर चर्चा कीजिये। भारत की सतत् विकास प्राथमिकताओं के लिये इस प्रतिबद्धता के प्रमुख नीतिगत उपायों और निहितार्थों पर भी चर्चा कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रिलिम्स 

प्रश्न. ‘अभीष्ट राष्ट्रीय निर्धारित अंशदान (Intended Nationally Determined Contributions)’ पद को कभी-कभी समाचारों में किस संदर्भ में देखा जाता है? (2016)

(a) युद्ध-प्रभावित मध्य-पूर्व के शरणार्थियों के पुनर्वास के लिये यूरोपीय देशों द्वारा दिये गए वचन
(b) जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये विश्व के देशों द्वारा बनाई गई कार्य-योजना
(c) एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक) की स्थापना करने में सदस्य राष्ट्रों द्वारा किया गया पूंजी योगदान
(d)  धारणीय विकास लक्ष्यों के बारे में विश्व के देशों द्वारा बनाई गई कार्य-योजना

उत्तर: (b)


प्रश्न. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:  (2021)

  1. भारत में ‘जलवायु-स्मार्ट ग्राम (क्लाइमेट-स्मार्ट विलेज)’ दृष्टिकोण, अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम-जलवायु परिवर्तन, कृषि एवं खाद्य सुरक्षा (सी.सी.ए.एफ.एस.) द्वारा संचालित परियोजना का एक भाग है। 
  2. सी.सी.ए.एफ.एस. परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान हेतु परामर्शदात्री समूह (सी.जी.आई.ए.आर.) के अधीन संचालित किया जाता है, जिसका मुख्यालय प्राँस में है। 
  3. भारत में स्थित अंतर्राष्ट्रीय अर्धशुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (आई.सी.आर.आई.एस.ए.टी.), सी.जी.आई.ए.आर. के अनुसंधान केंद्रों में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2             
(b)  केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3  
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से भारत सरकार के 'हरित भारत मिशन' के उद्देश्यों को सर्वोत्तम रूप से वर्णित करता है/करते हैं? (2016)

  1. पर्यावरणीय लाभों और लागतों को केंद्र एवं राज्य के बजट में शामिल करते हुए, इसके द्वारा हरित लेखांकन (ग्रीन अकाउंटिंग) को अमल में लाना।
  2. कृषि उत्पाद के संवर्द्धन हेतु द्वितीय हरित क्रांति आरंभ करना जिससे भविष्य में सभी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो।
  3. वन आच्छादन की पुनर्प्राप्ति और संवर्द्धन करना तथा अनुकूलन एवं शमन उपायों के संयोजन से जलवायु परिवर्तन का प्रत्युत्तर देना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिए। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं ? (2021)


स्मार्ट सिटी मिशन का विस्तार

प्रिलिम्स के लिये:

स्मार्ट सिटी मिशन, केंद्र प्रायोजित योजना, सतत् विकास, विशेष प्रयोजन वाहन (SPV), सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), शहरी कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन (AMRUT), प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (PMAY-U), जलवायु स्मार्ट सिटीज़ असेसमेंट फ्रेमवर्क 2.0, ट्यूलिप-शहरी शिक्षण इंटर्नशिप कार्यक्रम 

मेन्स के लिये:

स्मार्ट सिटी मिशन: महत्त्व और चुनौतियाँ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने स्मार्ट सिटी मिशन (Smart Cities Mission) की समयसीमा 31 मार्च, 2025 तक बढ़ाने का फैसला किया है।

  • इस मिशन को पहले वर्ष 2020 तक पूरा करने की योजना बनाई गई थी, लेकिन इसे पहले ही दो बार बढ़ाया जा चुका है।

स्मार्ट सिटीज़ मिशन (SCM) क्या है?

  • परिचय:
  • यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसे जून 2015 में "स्मार्ट सॉल्यूशंस" के अनुप्रयोग के माध्यम से नागरिकों को जीवन की गुणवत्ता एवं स्वच्छ तथा संवहनीय वातावरण प्रदान करने के लिये, 100 शहरों के आवश्यक बुनियादी ढाँचे को बदलने के लिये प्रारंभ किया गया था।
  • इसका उद्देश्य सतत् और समावेशी विकास के माध्यम से नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
  • SCM के घटक::
    • क्षेत्र-आधारित विकास:

      • पुनर्विकास (शहर नवीनीकरण): बुनियादी ढाँचे और सुविधाओं में सुधार के लिये मौजूदा शहरी क्षेत्रों का नवीनीकरण। जैसे भिंडी बाज़ार, मुंबई।
      • रेट्रोफिटिंग  (शहर सुधार): मौजूदा क्षेत्रों को अधिक उपयोगी और टिकाऊ बनाने के लिये बुनियादी ढाँचे का विकास करना। जैसे स्थानीय क्षेत्र विकास (अहमदाबाद)।
      • ग्रीनफील्ड परियोजनाएँ (शहर विस्तार): स्थिरता और स्मार्ट प्रौद्योगिकियों पर ध्यान देने के साथ नए शहरी क्षेत्रों का विकास। जैसे न्यू टाउन, कोलकाता, नया रायपुर, गिफ्ट सिटी (गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी)।
    • पैन-सिटी समाधान:
      • ई-गवर्नेंस, अपशिष्ट प्रबंधन, जल प्रबंधन, ऊर्जा प्रबंधन, शहरी गतिशीलता और कौशल विकास जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) समाधानों का अनुप्रयोग किया जाना।
  • शासन संरचना:
  • स्मार्ट शहरों का वित्तपोषण:
    • SCM के लिये 5 वर्षों हेतु केंद्र सरकार द्वारा प्रदत्त लगभग 48,000 करोड़ रुपए (प्रतिवर्ष प्रति शहर औसतन 100 करोड़ रुपए), इनके विकास के क्रम में निर्णायक हैं। 
    • राज्यों और शहरी स्थानीय निकायों (ULB) को इसमें समान राशि का योगदान करना आवश्यक होता है, जिससे कुल मिलाकर यह राशि लगभग 1 लाख करोड़ रुपए हो जाती है।
  • अन्य सरकारी योजनाओं के साथ अभिसरण:
    • SCM के संसाधनों और उद्देश्यों को AMRUT (शहरी रूपांतरण), स्वच्छ भारत मिशन (स्वच्छता), HRIDAY  (विरासत शहर विकास), डिजिटल इंडिया, कौशल विकास और सभी के लिये आवास जैसी योजनाओं के साथ जोड़ने से इसकी प्रभावशीलता को बढ़ावा मिलता है। 
    • अभिसरण के लाभ:
      • SCM के तहत समान लक्ष्यों को प्राप्त करने के क्रम में विभिन्न योजनाओं के मौजूदा फंड एवं बुनियादी ढाँचे का लाभ उठाया जा सकता है। 
      • अन्य योजनाओं के साथ इसके अभिसरण से सुनिश्चित होता है कि स्मार्ट शहरों में भौतिक बुनियादी ढाँचे के विकास के साथ-साथ सामाजिक बुनियादी ढाँचे (स्वास्थ्य, शिक्षा, संस्कृति) को भी प्रमुखता दी जाए।
      • SCM को इसकी पूरी क्षमता का उपयोग करने के लिये केंद्र और राज्य सरकार के अन्य कार्यक्रमों के साथ रणनीतिक रूप से एकीकृत किया जा सकता है। 

स्मार्ट सिटी क्या है?

  • स्मार्ट सिटी एक अवधारणा है जो शहरी क्षेत्रों में दक्षता, स्थिरता के साथ-साथ जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिये प्रौद्योगिकी, डेटा एवं नवीन समाधानों के उपयोग को संदर्भित करती है।
  • स्मार्ट सिटी के मुख्य बुनियादी ढाँचे में निम्नलिखित तत्त्व शामिल हैं:
    • पर्याप्त जलापूर्ति,
    • सुनिश्चित विद्युत आपूर्ति,
    • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सहित स्वच्छता,
    • कुशल शहरी गतिशीलता एवं सार्वजनिक परिवहन,
    • विशेष रूप से गरीबों के लिये किफायती आवास,
    • मज़बूत आईटी कनेक्टिविटी एवं डिजिटलीकरण,
    • सुशासन, विशेष रूप से ई-गवर्नेंस एवं नागरिक भागीदारी,
    • पर्यावरण की धारणीयता,
    • नागरिकों, विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों और बुज़ुर्गों की सुरक्षा 
    • स्वास्थ्य एवं शिक्षा।

  • नोट:
  • जनगणना 2011 के अनुसार, भारत की वर्तमान जनसंख्या का लगभग 31% हिस्सा शहरों में निवास करती है तथा सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में इनका योगदान 63% है। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत की 40% जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में निवासित होगी तथा भारत के सकल घरेलू उत्पाद में इनका योगदान 75% होगा।

स्मार्ट सिटी मिशन के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?

  • परिभाषा में स्पष्टता का अभाव: SCM ने "स्मार्ट सिटी" शब्द के लिये एक सार्वभौमिक परिभाषा की कमी को स्वीकार किया है। यह मान्यता इस समझ को दर्शाती है कि स्मार्ट सिटी के लिये प्रत्येक शहर का दृष्टिकोण उसके अद्वितीय स्थानीय संदर्भों एवं आकांक्षाओं द्वारा आकार लेता है।हालाँकि, स्मार्ट शहर की अवधारणा में यह अस्पष्ट संसाधनों के प्रभावी आवंटन के साथ ही परियोजनाओं को प्राथमिकता देने  में चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है।
    • स्मार्ट सिटी की संकल्पना एक शहर से दूसरे शहर तथा एक देश से दूसरे देश में भिन्न- भिन्न होती है। ये अंतर विकास के स्तर, परिवर्तन और सुधार को स्वीकार करने की इच्छा, संसाधनों की उपलब्धता तथा शहर के निवासियों की आकांक्षाओं जैसे कारकों से प्रभावित होते हैं।
  • परियोजना पूर्ण होने में विलम्ब: समय सीमा बढ़ाए जाने के बावजूद, बड़ी संख्या में परियोजनाएँ (लगभग 10%) अभी भी अधूरी हैं, जो निष्पादन में देरी का संकेत देती हैं। इसके लिये अपर्याप्त नियोजन, तकनीकी विशेषज्ञता की कमी तथा भूमि अधिग्रहण एवं मंजूरी में देरी जैसी समस्याओं को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
  • अपर्याप्त वित्तपोषण एवं उसका उपयोग: जबकि 74 शहरों को उनके केंद्रीय हिस्से का 100% वित्त प्राप्त हुआ है, परियोजनाओं की धीमी प्रगति के कारण 26 शहरों को अभी भी संपूर्ण वित्त नहीं प्राप्त हो सका है।
    • स्मार्ट सिटी परियोजनाओं के लिये अपनाए गए SPV मॉडल को 74वें संविधान संशोधन के साथ इसके गलत संरेखण के कारण आपत्तियों का सामना करना पड़ा है। इसके परिणामस्वरूप स्मार्ट सिटी पहलों के टॉप-डाउन शासन ढाँचे की आलोचना हुई है।
  • समन्वय का अभाव: प्राथमिकताओं में अंतर, नौकरशाही बाधाओं एवं भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों में स्पष्टता की कमी के कारण केंद्र, राज्य तथा स्थानीय सरकारों के बीच प्रभावी समन्वय एक चुनौती रहा है, जिससे मिशन के निर्बाध कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न हुई है।
  • स्थिरता संबंधी चिंताएँ: स्मार्ट सिटी परियोजनाओं की दीर्घकालिक स्थिरता के बारे में संदेह है, क्योंकि उनमें से विभिन्न शहरी नियोजन एवं शासन के बुनियादी मुद्दों को संबोधित करने के स्थान पर प्रौद्योगिकी-संचालित समाधानों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • विस्थापन एवं सामाजिक प्रभावt: विश्व बैंक के अनुसार, भारत के शहरी क्षेत्रों में 49% से अधिक आबादी झुग्गी-झोपड़ियों में निवास करती है।
    • स्मार्ट सिटी परियोजनाओं के क्रियान्वयन के कारण गरीब क्षेत्रों के निवासियों, जैसे स्ट्रीट वेंडरों का विस्थापन हुआ है, जिससे शहरी समुदायों का ताना-बाना बाधित हुआ है। कुछ कस्बों में बुनियादी ढाँचे के विकास ने जल प्रणालियों में व्यवधान के कारण शहरी बाढ़ में वृद्धि में योगदान दिया है।

स्मार्ट सिटी मिशन को प्रभावी बनाने के लिये कौन से कदम उठाए जाने चाहिये?

  • प्रभावी शासन एवं योजना का प्रभावी कार्यान्वयन: निश्चित कार्यकाल वाले CEOs की नियुक्ति से निरंतरता सुनिश्चित होने के साथ योग्य पेशेवर आकर्षित होते हैं। विशेषज्ञों और संसद सदस्यों (MPs) सहित विभिन्न हितधारकों को समावेशी निर्णय लेने पर बल देना चाहिये।
  • परियोजना पर रणनीतिक फोकस: SCM डिजिटल बुनियादी ढाँचे के तहत विभिन्न स्रोतों से बड़ी मात्रा में डेटा उत्पन्न करने एवं उपयोग करने की आशा है। इसलिये यह आवश्यक है कि इन प्लेटफार्मों को साइबर हमलों से बचाने के साथ संवेदनशील सार्वजनिक एवं निजी डेटा के लिये पर्याप्त सुरक्षा की गारंटी देने के क्रम में एक मज़बूत प्रणाली लागू की जाए।

  • डेटा सुरक्षा एवं उन्नयन: साइबर खतरों का मुकाबला करने एवं डेटा गोपनीयता की सुरक्षा के क्रम में मज़बूत डिजिटल बुनियादी ढाँचे की स्थापना की जानी चाहिये।

    • बुनियादी ढाँचे की समयावधि को अधिकतम करने तथा समय पर इसका उन्नयन सुनिश्चित करने हेतु संचालन एवं रखरखाव संबंधी समग्र रणनीति विकसित करनी चाहिये।

  • क्षमता निर्माण और वित्तपोषण: क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के माध्यम से छोटे शहरों में शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को मज़बूत बनाना चाहिये। इस क्रम में संगठनात्मक पुनर्गठन तथा कौशल विकास हेतु केंद्र सरकार की सहायता महत्त्वपूर्ण हो सकती है।
  • परियोजनाओं का क्रियान्वयन सुनिश्चित होना: संबंधित मंत्रालय की भूमिका निधि आवंटन से विस्तारित होकर समय पर परियोजना निष्पादन हेतु सक्रिय निगरानी एवं विशेषज्ञता प्रदान करने तक होनी चाहिये।
  • वैश्विक ज्ञान साझाकरण: विकासशील देशों की सतत् शहरी विकास से संबंधित इसी तरह की परियोजनाएँ इस संदर्भ में सूचना साझाकरण हेतु निर्णायक हो सकती हैं (उदाहरण: भूटान की गेलेफू स्मार्ट सिटी परियोजना)।
    • गेलेफू स्मार्ट सिटी परियोजना का उद्देश्य भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को शामिल करते हुए दक्षिण एशिया को दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ने वाला एक आर्थिक गलियारा बनाना है। इसमें पर्यावरण मानकों एवं स्थिरता को प्राथमिकता देने से अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों से निवेश आकर्षित होगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: स्मार्ट सिटीज़ मिशन क्या है? इसके समक्ष विद्यमान चुनौतियों को बताते हुए इनसे निपटने हेतु उपाय बताइए।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

मेन्स:

प्रश्न. भारत में नगरीय जीवन की गुणता की संक्षिप्त पृष्ठभूमि के साथ, ‘स्मार्ट नगर कार्यक्रम’ के उद्देश्य और रणनीति बताइए। (2016)


भारत ने सर्वाधिक पेटेंट प्रदान किये

प्रिलिम्स के लिये:

वर्ष 2024 में रिकॉर्ड पेटेंट, भारतीय पेटेंट कार्यालय (IPO), विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO), पेटेंट सहयोग संधि (PCT), पेटेंट अधिनियम, 1970।

मेन्स के लिये:

विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप तथा उनका निर्माण और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत ने वर्ष 2024 में लगभग एक लाख पेटेंट जारी किये हैं, जो पेटेंट अनुमोदन में उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है।

पेटेंट क्या है?

  • परिचय:
    • पेटेंट एक आविष्कार का विधिक अधिकार है जो किसी व्यक्ति या संस्था को दूसरों के हस्तक्षेप के बिना दिया जाता है जो इसे दोहराने, उपयोग करने या बेचने की इच्छा रखते हैं
    • पेटेंट संरक्षण एक क्षेत्रीय अधिकार है और इसलिये यह केवल भारतीय क्षेत्र के अंर्तगत ही प्रभावी है। वैश्विक पेटेंट की कोई अवधारणा नहीं है।
    • भारत में पेटेंट प्रणाली पेटेंट अधिनियम, 1970 द्वारा शासित होती है, जिसमें बदलते परिवेश के अनुरूप पेटेंट नियमों में नियमित रूप से संशोधन किया जाता है, सबसे संशोधन पेटेंट (संशोधन) नियम, 2024 है।
  • पेटेंट योग्यता के मानदंड: कोई आविष्कार पेटेंट योग्य विषय वस्तु होता है यदि वह नवीन, स्पष्ट एवं औद्योगिक अनुप्रयोग हेतु सक्षम है।
    • इसके अतिरिक्त, इस पर पेटेंट अधिनियम, 1970 की धारा 3 और 4 के प्रावधान लागू नहीं होने चाहिये।
  • पेटेंट अधिनियम, 1970:
    • भारत में पेटेंट प्रणाली के लिये यह प्रमुख कानून वर्ष 1972 में लागू हुआ। इसने भारतीय पेटेंट एवं डिज़ाइन अधिनियम, 1911 का स्थान लिया।
    • इस अधिनियम को पेटेंट (संशोधन) अधिनियम, 2005 द्वारा संशोधित किया गया, जिसके अंर्तगत उत्पाद पेटेंट को खाद्य, औषधि, रसायन तथा सूक्ष्मजीवों सहित प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों तक बढ़ा दिया गया।
    • संशोधन के बाद विशेष विपणन अधिकार से संबंधित प्रावधानों को निरस्त कर दिया गया है, और साथ ही अनिवार्य लाइसेंस प्रदान करने के लिये सक्षम बनाने के साथ ही अनुदान-पूर्व तथा अनुदान-पश्चात विरोध से संबंधित प्रावधान भी प्रस्तुत किये गए हैं।
  • पेटेंट (संशोधन) नियम, 2024 के अंतर्गत प्रमुख परिवर्तन:
    • परीक्षण के लिये अनुरोध दाखिल करने की समयसीमा को घटाकर प्राथमिकता तिथि से 48 महीने से 31 महीने किया गया।
    • 'आविष्कार प्रमाणपत्र' की शुरूआत’: आविष्कारकों के पेटेंट किये गए आविष्कारों की पहचान करके उनके योगदान को स्वीकार करना।
    • विवरण दाखिल करने की आवृत्ति: वित्तीय वर्ष में एक बार से घटाकर प्रत्येक तीन वित्तीय वर्ष में एक बार कर दिया गया।
    • अनुदान-पूर्व तथा अनुदान-पश्चात् विरोध प्रक्रियाओं में संशोधन: विपक्षी बोर्ड द्वारा सिफारिशें प्रस्तुत करने की समय सीमा एवं आवेदकों के लिये प्रतिक्रिया समय को समायोजित किया गया है।

नोट

  • WIPO द्वारा जारी वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII), 2023 रैंकिंग में भारत ने 132 देशों में से 40वाँ स्थान प्राप्त किया है। यह वर्ष 2021 में 46वें स्थान और वर्ष 2015 में 81वें स्थान की तुलना में  सुधार को दर्शाता है।
  • विश्व बौद्धिक संपदा संगठन द्वारा जारी अध्ययन के अनुसार भारत में वर्ष 2022 में पेटेंट आवेदनों में रिकॉर्ड 31.6% की वृद्धि हुई जो चीन, यू.के. तथा अन्य देशों की तुलना में अधिक है।

पेटेंट अधिनियम, 1970 की धारा 3 और 4:

  • धारा 3 के अंतर्गत तुच्छ दावे, प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध आविष्कार, सार्वजनिक व्यवस्था या नैतिकता के विपरीत आविष्कार, वैज्ञानिक सिद्धांतों या अमूर्त सिद्धांतों की खोज, प्राकृतिक सजीव या निर्जीव पदार्थों की खोज आदि को आविष्कार नहीं माना जाता है।
  • धारा 4 परमाणु ऊर्जा से संबंधित उन आविष्कारों से संबंधित है जो पेटेंट योग्य नहीं हैं। धारा 4 के अनुसार, परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 की धारा 20 की उपधारा (1) के अंतर्गत आने वाले परमाणु ऊर्जा से संबंधित किसी आविष्कार के संबंध में कोई पेटेंट प्रदान नहीं किया जाएगा।

पेटेंट प्रदान करने का महत्त्व क्या है

  • नवाचार और अनुसंधान को प्रोत्साहित करना: पेटेंट के माध्यम से विशेष अधिकार प्रदान करना नवाचार को प्रोत्साहित करता है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित करना: बौद्धिक संपदा के संरक्षण हेतु सुदृढ़ व्यवस्था वाले देश अधिक FDI आकर्षित करते हैं। एक अच्छी तरह से संरक्षित IP परिवेश विदेशी निवेशकों को यह विश्वास दिलाता है कि उनके नवाचारों की सुरक्षा की जाएगी, जिससे भारत में निवेश करने के लिये वे प्रोत्साहित होंगे।
  • ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण: कॉपीराइट और ट्रेडमार्क का संरक्षण साहित्य, कला, संगीत और ब्रांडिंग जैसे क्षेत्रों में बौद्धिक संपत्तियों के निर्माण और व्यावसायीकरण को प्रोत्साहित करता है, जो ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान देता है।

पेटेंट प्रणाली में विद्यमान चुनौतियाँ क्या हैं?

  • अनुमोदन की लंबी प्रक्रिया: पेटेंट कार्यालयों को प्राप्त आवेदनों की जाँच करने में कई माह या वर्षों का समय लग सकता है। यह उन आविष्कारकों के लिये समस्याजनक हो सकता है जो अपने संपदा अधिकारों के संरक्षण के लिये प्रतीक्षा कर रहे हैं।
  • पेटेंट आवेदनों का बैकलॉग: पेटेंट कार्यालय प्रायः बड़ी संख्या में प्राप्त आवेदनों की जाँच करते हैं जिससे  इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है कार्य शेष रह जाता है और बैकलॉग बढ़ता है जो अनुमोदन के समय को और बढ़ा सकता है।
  • सीमित जागरूकता और शिक्षा: कई आविष्कारक, विशेष रूप से छोटे व्यवसाय और जनसाधारण को पेटेंट और इसकी प्रक्रिया के संबंध में पर्याप्त जानकारी नहीं होती है। यह उनके आविष्कारों को प्रभावी ढंग से संरक्षित रखने की उनकी क्षमता को बाधित कर सकता है।
  • संसाधन की कमी: पेटेंट कराने की प्रक्रिया में वकील की फीस, आवेदन शुल्क और संभावित रखरखाव शुल्क शामिल हैं जिससे पेटेंट की प्रक्रिया महँगी साबित हो सकती है। यह सीमित संसाधन वाले आविष्कारकों के लिये अड़चन उत्पन्न कर सकता है।
  • पेटेंट कराने के कठोर मानदंड: भारत में पेटेंट अधिनियम की धारा 3 के तहत विशिष्ट प्रावधान हैं जो कुछ आविष्कारों को पेटेंट कराने के दायरे से बाहर रखते हैं। यह संबद्ध विशिष्ट क्षेत्रों में नवाचार के लिये एक बाधा हो सकती है।
  • प्रवर्तन मुद्दे: पेटेंट कराने के बाद भी उल्लंघनकर्त्ताओं के खिलाफ पेटेंटी (पेटेंट धारक) अधिकारों को लागू रखना महँगा हो सकता है जिसमें काफी समय भी लग सकता है जिसके लिये कानूनी कार्रवाई की आवश्यकता होती है।
  • बायोपाइरेसी और पारंपरिक ज्ञान के विषय: आनुवंशिक संसाधनों तक उचित पहुँच सुनिश्चित करना और उनसे जुड़े पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा करना पेटेंट प्रणाली में जटिल मुद्दे हो सकते हैं।

पेटेंट प्रणाली में सुधार के लिये क्या कदम उठाने की आवश्यकता है?

  • प्रक्रिया को सुलभ बनाना: ऑनलाइन फाइलिंग और उपयोगकर्त्ता-अनुकूल इंटरफेस के साथ आवेदन प्रक्रिया को सुलभ बनाना
    • पेटेंट प्रारूपण और अभियोजन के लिये स्पष्ट और सुलभ दिशा-निर्देश प्रदान करना।
  • अनुमोदन प्रक्रिया को सरल बनाना: त्वरित जाँच के लिये पेटेंट कार्यालयों में मानव संसाधन एवं अन्य संसाधनों में वृद्धि
  • महत्त्वपूर्ण आविष्कारों के लिये त्वरित परीक्षण विकल्प प्रदान करना।
  • बैकलॉग को समाप्त करना: मामलों का कुशल प्रबंधन और निपटान रणनीतियों के माध्यम से बैकलॉग को समाप्त करना
  • जागरूकता में वृद्धि करना: शैक्षणिक पाठ्यक्रमों (STEM क्षेत्रों) में एकीकृत बौद्धिक संपदा (IP) की जागरूकता में वृद्धि करना।
    • लघु उद्योगों के लिये बौद्धिक संपदा (IP) सहायता केंद्र और निःशुल्क विधिक सेवाएँ स्थापित करना।
  • सब्सिडी का प्रावधान: व्यक्तिगत आविष्कारकों और स्टार्टअप के लिये सरकारी सब्सिडी और शुल्क में कटौती का प्रावधान।
  • लागत साझा करने के लिये पेटेंट पूल और सहयोगात्मक अनुसंधान को बढ़ावा देना
  • पेटेंट योग्यता मानदंड को आसन करना: पेटेंट योग्यता मानदंड की समीक्षा करना और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ सामंजस्य स्थापित करना।
    • आविष्कार की पेटेंट योग्यता का आकलन करने के लिये प्री-फाइलिंग का परामर्श प्रदान करना
  • विधिक तंत्र को मजबूत करना: विशेष अदालतों और त्वरित न्यायनिर्णयन सहित बौद्धिक संपदा प्रवर्तन तंत्र को मजबूत करना।
  • पारंपरिक ज्ञान की संरक्षण करना: बायोपाइरेसी के खिलाफ सख्त नियम और प्रभावी कार्यान्वयन लागू करना
    • बेहतर संरक्षण के लिये पारंपरिक ज्ञान का राष्ट्रीय डेटाबेस विकसित करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न  :

प्रश्न. भारत में दिये जाने वाले पेटेंट की संख्या में वृद्धि के संभावित सामाजिक-आर्थिक लाभों पर चर्चा कीजिये तथा सामाजिक उन्नति के लिये इन लाभों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की रणनीति प्रस्तुत कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. विनिर्माण क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये भारत सरकार ने कौन-सी नई नीतिगत पहल/पहलें की है/हैं? (2012)

  1. राष्ट्रीय निवेश एवं विनिर्माण क्षेत्रों की स्थापना
  2.  'एकल खिड़की मंज़ूरी’ (सिंगल विंडो क्लीयरेंस) की सुविधा प्रदान करना
  3.  प्रौद्योगिकी अधिग्रहण तथा विकास कोष की स्थापना

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. 'राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति (नेशनल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स पॉलिसी)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. यह दोहा विकास एजेंडा और TRIPS समझौते के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराता है
  2.  औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग भारत में बौद्धिक संपदा अधिकारों के  विनियमन के लिये केन्द्रक अभिकरण (नोडल एजेंसी) हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारतीय पेटेंट अधिनियम के अनुसार, किसी बीज को बनाने की जैव प्रक्रिया को भारत में पेटेंट कराया जा सकता है
  2.  भारत में कोई बौद्धिक संपदा अपील बोर्ड नहीं है
  3.  पादप किस्में भारत में पेटेंट कराए जाने के पात्र नहीं हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. भारत सरकार दवा के पारंपरिक ज्ञान को दवा कंपनियों द्वारा पेटेंट कराने से कैसे बचा रही है? (2019)

प्रश्न. वैश्वीकृत संसार में, बौद्धिक संपदा अधिकारों का महत्त्व हो जाता है और वे मुकद्दमेबाज़ी का एक स्रोत हो जाते हैं। कॉपीराइट, पेटेंट और व्यापार गुप्तियों के बीच मोटे तौर पर विभेदन कीजिये। (2014)


हिरासत में होने वाली मौत पर NHRC का ओडिशा सरकार को नोटिस

स्रोत:टाइम्स ऑफ इंडिया 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने ओडिशा सरकार को एक नोटिस जारी किया है, जिसमें इस बात का स्पष्टीकरण मांगा गया है कि आयोग को कथित तौर पर पुलिस हिरासत में मरने वाले एक व्यक्ति के परिजनों को आर्थिक मुआवजा देने की सिफारिश क्यों नहीं करनी चाहिये।

हिरासत में होने वाली मौत क्या है?

  • हिरासत में होने वाली मौत से तात्पर्य उस मौत से है,जो तब होती है जब कोई व्यक्ति कानून प्रवर्तन अधिकारियों या सुधार गृह की हिरासत में होता है। यह विभिन्न कारणों जैसे अत्यधिक बल का प्रयोग, उपेक्षा या अधिकारियों द्वारा दुर्व्यवहार से हो सकता है ।
  • भारत के विधि आयोग के अनुसार, किसी लोक सेवक द्वारा गिरफ्तार या हिरासत में लिये गए व्यक्ति के खिलाफ की गई हिंसा हिरासत में यातना के समान है।

  • हिरासत में होने वाली मौत पर न्यायिक घोषणाएँ:
    • किशोर सिंह बनाम राजस्थान राज्य (1981): सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि पुलिस द्वारा थर्ड डिग्री का इस्तेमाल भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है
    • नीलाबती बेहरा बनाम उड़ीसा राज्य (1993): जीवन के अधिकार की रक्षा के लिये राज्य की ज़िम्मेदारी को स्वीकार करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि पुलिस की लापरवाही या क्रूरता के परिणामस्वरूप हिरासत में होने वाली मौतों के लिये राज्य मुआवजा देने के लिये उत्तरदायी है।
    • जोगिंदर कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1994): सर्वोच्च न्यायालय ने मानव अधिकारों के उल्लंघन के परिणामस्वरूप होने वाली अव्यवस्थित गिरफ्तारियों के मुद्दे पर विचार किया। उन्होंने राष्ट्रीय पुलिस आयोग की तीसरी रिपोर्ट में की गई सिफारिशों का हवाला दिया कि अधिकारियों को तब तक गिरफ्तारी नहीं करनी चाहिये जब तक कि वे जघन्य अपराधों से संबंधित न हों।
    • डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1997): सर्वोच्च न्यायालय ने हिरासत में यातना और मौतों को रोकने के लिये विशिष्ट दिशा-निर्देश निर्धारित किये, जिनमें गिरफ्तारी मेमो, चिकित्सा परीक्षण का अधिकार और कानूनी परामर्श तक पहुँच की आवश्यकताएँ शामिल थीं

टिप्पणी:

  • डी.के. बसु मामले में हिरासत में होने वाली मृत्यु के संबंध में दिशा-निर्देश निर्धारित किये गए:
    • पुलिस अधिकारी का यह कर्त्तव्य है, कि वह अभियुक्त से जाँच और पूछताछ करते समय थर्ड डिग्री के तरीकों का इस्तेमाल न करें
    • पुलिस अधिकारियों के कामकाजी माहौल, प्रशिक्षण और बुनियादी मानवीय मूल्यों के साथ उनके उन्मुखीकरण की जाँच करने में ध्यान दिया जाना चाहिये।
    • विधानसभा को धारा 114-B को शामिल करके विधि आयोग की रिपोर्ट द्वारा दी गई सिफारिशों को अपनाना चाहिये
    • पुलिस को दुर्दांत अपराधियों से जानकारी निकालने के लिये संतुलित दृष्टिकोण का इस्तेमाल करना चाहिये।
    • गिरफ्तारी के समय प्रभारी पुलिस अधिकारी द्वारा एक ज्ञापन बनाया जाना चाहिये एवं गिरफ्तारी के समय अभियुक्त के कम से कम एक परिवार के सदस्य को मौजूद रहना चाहिये।
    • भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 (1) के तहत संविधान की आवश्यकताओं का पुलिस अधिकारियों द्वारा पालन किया जाना चाहिये
    • गिरफ्तार व्यक्ति को उसके मूल अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिये ताकि जब उसे हिरासत में लिया जाए तो वह उन्हें समझ सके।
    • साथ ही, न्यायालय ने कुछ निवारक उपाय भी प्रदान किये हैं जिनका किसी आरोपी की गिरफ्तारी के समय प्रभारी पुलिस अधिकारी को पालन करना चाहिये।

हिरासत में होने वाली मौतों से संबंधित नैतिक चिंताएँ क्या हैं?

  • मानव अधिकारों एवं गरिमा का उल्लंघन:
    • हर व्यक्ति के साथ गरिमापूर्ण एवं निष्पक्ष व्यवहार किया जाना चाहिये। हिरासत में हिंसा/यातना से शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक क्षति होने के साथ व्यक्तियों की गरिमा एवं मूल मानवाधिकारों की अवहेलना होती है।
  • विधि के शासन का कमज़ोर होना:
    • इससे विधि के शासन एवं सम्यक प्रक्रिया जैसे मूल सिद्धांतों पर प्रश्नचिह्न लगता है। विधि प्रवर्तन अधिकारियों पर विधि व्यवस्था बनाए रखने तथा लागू करने की ज़िम्मेदारी होती है ऐसे में हिंसा होने से न्याय, समानता तथा मानवाधिकारों की सुरक्षा जैसे मूल सिद्धांतों का खंडन होता है।
  • दोष की पूर्वधारणा:
    • इससे "दोषी साबित होने तक निर्दोष" को प्राप्त अधिकारों की अवहेलना होती है। किसी अपराध के लिये दोषी ठहराए जाने से पहले व्यक्तियों को यातना देने के साथ निष्पक्ष सुनवाई एवं उचित प्रक्रिया जैसे मौलिक अधिकारों से वंचित करना अमानवीय है।
  • व्यावसायिकता और ईमानदारी की अवहेलना: 
    • पुलिस अधिकारियों से उच्च नैतिक मानकों को बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है, जिसमें व्यावसायिकता, ईमानदारी और मानवाधिकारों का सम्मान करने की प्रतिबद्धता शामिल है। हिरासत में हिंसा से इन नैतिक सिद्धांतों का उल्लंघन होने के साथ इनकी पेशेवर प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिह्न लगता है।

हिरासत में होने वाली हिंसा को रोकने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • विधिक प्रणालियों को मज़बूत बनाना:
    • हिरासत में होने वाली हिंसा के आरोपों की त्वरित एवं निष्पक्ष जाँच सुनिश्चित होनी चाहिये।
    • हिरासत में होने वाली हिंसा के आरोपों की त्वरित एवं निष्पक्ष जाँच सुनिश्चित होनी चाहिये।
    • निष्पक्ष एवं त्वरित सुनवाई के माध्यम से अपराधियों को दंड देना चाहिये।

  • पुलिस सुधार और संवेदनशीलता:
  • मानव अधिकारों एवं गरिमा को बनाए रखने के क्रम में पुलिस प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सुधार किया जाना चाहिये। हिरासत में हिंसा के मामलों की प्रभावी निगरानी के साथ इनके समाधान हेतु निगरानी तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
  • विधि प्रवर्तन एजेंसियों की जवाबदेहिता, व्यावसायिकता तथा सहानुभूति संबंधी संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये, प्रकाश सिंह मामले, 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में पुलिस सुधारों से संबंधित सात निर्देश जारी किये। इसमें राजनीतिकरण एवं जवाबदेहिता की कमी के साथ पुलिस कर्मियों के प्रदर्शन को प्रभावित करने वाली प्रणालीगत कमज़ोरियों जैसे व्यापक मुद्दों पर प्रकाश डाला गया।
  • नागरिक समाज और मानवाधिकार संगठनों का सशक्तीकरण:
    • हिरासत में यातना से पीड़ित व्यक्तियों के लिये नागरिक समाज संगठनों द्वारा उनके लिये आवाज़ उठाने को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है।
    • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को मानवाधिकार उल्लंघन की कथित तिथि से एक वर्ष के पश्चात् भी किसी भी मामले की जाँच करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
    • पीड़ित व्यक्तियों और उनके परिवार का समर्थन कर उन्हें विधिक सहायता प्रदान की जानी चाहिये।
    • निवारण और न्याय प्रदान के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार निकायों और संगठनों के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है।

नोट: 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. अभिरक्षा में होने वाली मौतों से संबंधित नैतिक चिंताएँ क्या हैं? इनकी रोकथाम के लिये संभव उपायों की विवेचना कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, वित्त वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:  

प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2011)

  1. शिक्षा का
  2. सार्वजनिक सेवा तक समान पहुँच का
  3. भोजन का अधिकार

उपरोक्त में से कौन-सा/से "मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा" के अंतर्गत मानवाधिकार है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. यद्यपि मानवाधिकार आयोगों ने भारत में मानव अधिकारों के सरंक्षण में काफी हद तक योगदान दिया है, फिर भी वे ताकतवर और प्रभावशालियों के विरुद्ध अधिकार जताने में असफल रहे हैं। उनकी संरचनात्मक एवं व्यावहारिक सीमाओं का विश्लेषण करते हुए सुधारात्मक उपायों के सुझाव दीजिये। (2021)