सामाजिक न्याय
अंतर्राष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस
- 07 Apr 2021
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चर्चा में क्यों?
प्रत्येक वर्ष 21 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस मनाया जाता है।
- यह दिवस जातिवाद और नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध एकजुटता का आह्वान करता है।
प्रमुख बिंदु
परिचय
- अक्तूबर 1966 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी।
- 21 मार्च, 1960 को पुलिस ने दक्षिण अफ्रीका के शार्पविले में लोगों द्वारा नस्लभेदी कानून के खिलाफ किये जा रहे एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान आग लगा दी और 69 लोगों को मार डाला।
- रंगभेद
- यह एक नीति थी जिसने दक्षिण अफ्रीका के ‘श्वेत’ अल्पसंख्यकों और ‘अश्वेत’ बहुसंख्यकों के बीच संबंधों को नियंत्रित किया।
- इस नीति ने ‘अश्वेत’ बहुसंख्यकों के विरुद्ध नस्लीय अलगाव तथा राजनीतिक और आर्थिक भेदभाव को मंज़ूरी दी।
- वर्ष 1966 में की गई इस दिवस की घोषणा दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति को समाप्त करने हेतु किये गए संघर्ष का प्रतीक है।
वर्ष 2021 की थीम
- ‘यूथ स्टैंडिंग अप अगेंस्ट रेसिज़्म’
महत्त्व
- मानवाधिकारों के उल्लंघन के अतिरिक्त इस नस्लीय भेदभाव का मानव स्वास्थ्य और कल्याण पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है तथा यह सामाजिक सामंजस्य में बाधा उत्पन्न करता है।
नस्लवाद
परिचय
- नस्लवाद का आशय ऐसी धारणा से है, जिसमें यह माना जाता है कि मनुष्यों को ‘नस्ल’ नामक अलग और विशिष्ट जैविक इकाइयों में विभाजित किया जा सकता है; इस धारणा के मुताबिक, विरासत में मिली भौतिक विशेषताओं और व्यक्तित्व, बुद्धि, नैतिकता तथा अन्य सांस्कृतिक एवं व्यावहारिक विशेषताओं के लक्षणों के बीच संबंध होता है और कुछ विशिष्ट ‘नस्लें’ अन्य की तुलना में बेहतर होती हैं।
- यह शब्द राजनीतिक, आर्थिक या कानूनी संस्थानों और प्रणालियों पर भी लागू होता है, जो ‘नस्ल’ के आधार पर भेदभाव करते हैं अथवा धन एवं आय, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, नागरिक अधिकारों तथा अन्य क्षेत्रों में नस्लीय असमानताओं को बढ़ावा देते हैं।
नोट
- प्रायः ज़ेनोफोबिया और नस्लवाद को एक समान माना जाता हैं, किंतु इनमें सबसे बड़ा अंतर यह है कि नस्लवाद में शारीरिक विशेषताओं के आधार पर भेदभाव किया जाता है, जबकि ज़ेनोफोबिया में इस धारणा के आधार पर भेदभाव किया जाता है कि कोई विदेशी है अथवा किसी अन्य समुदाय या राष्ट्र में उत्पन्न हुआ है।
- ‘ज़ेनोफोबिया’ शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द ‘ज़ेनो’ से हुई है।
वर्तमान स्थिति
- इंटरनेट की एनोनिमिटी/गुमनामी ने नस्लवादी रूढ़ियों और गलत सूचनाओं के ऑनलाइन प्रयास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
- आँकड़ों की मानें तो महामारी के बाद से एशियाई लोगों के विरुद्ध नफरत फैलाने वाली वेबसाइट्स पर जाने वाले लोगों की संख्या में 200 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
- भारत और श्रीलंका में सोशल मीडिया ग्रुप और मैसेजिंग प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल धार्मिक अल्पसंख्यकों के सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार का आह्वान करने के लिये किया जा रहा है तथा सोशल मीडिया के माध्यम से अल्पसंख्यकों पर वायरस फैलाने का झूठा आरोप लगाया जा रहा है।
- नस्लीय भेदभाव का संरचनात्मक स्वरूप, जिसमें सूक्ष्म-आक्रामकता और अपमान आदि शामिल हैं, व्यापक स्तर पर हमारे समाज में प्रचलित है।
- नई तकनीकों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग ने ‘टेक-नस्लवाद’ की अवधारणा को जन्म दिया है, क्योंकि इस प्रकार की तकनीक के माध्यम से किसी एक नस्लीय समुदाय के लोगों की पहचान कर उन्हें अनुचित रूप से लक्षित करने की संभावना काफी बढ़ गई है।
- पक्षपातपूर्ण व्यवहार और भेदभावपूर्ण कार्य, समाज में मौजूद असमानता को बढ़ाते हैं।
- ‘द लांसेट’ द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में कोरोना वायरस महामारी के सामाजिक आयामों और उससे प्रभावित जातीय अल्पसंख्यकों की सुभेद्यता की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है।
नस्लवाद के विरुद्ध अन्य पहलें
- संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और संचार के माध्यम से नस्लवाद के विरुद्ध की जा रही कार्रवाई इस संबंध में एक बेहतर उदाहरण प्रस्तुत करती है।
- यूनेस्को द्वारा गठित ‘समावेशी एवं सतत् शहरों का अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन’ शहरी स्तर पर नस्लवाद के विरुद्ध लड़ाई को और मज़बूत करने और इस संबंध में बेहतर प्रथाओं को अपनाने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
- पेरिस स्थित यूनेस्को के मुख्यालय में कोरिया गणराज्य के साथ साझेदारी के माध्यम से 22 मार्च, 2021 को ‘ग्लोबल फोरम अगेंस्ट रेसिज़्म एंड डिस्क्रिमिनेशन’ की मेजबानी की गई थी।
- इस फोरम के दौरान नस्लवाद के विरुद्ध एक नई बहु-हितधारक भागीदारी शुरू करने के लिये शिक्षाविदों और शैक्षणिक भागीदारों समेत तमाम हितधारक एकत्रित हुए थे।
- जनवरी 2021 में विश्व आर्थिक मंच ने कार्यस्थल में नस्लीय और जातीय न्याय की व्यवस्था में सुधार के लिये प्रतिबद्ध संगठनों का एक गठबंधन शुरू किया था।
- ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलन ने न केवल संयुक्त राज्य अमेरिका बल्कि संपूर्ण विश्व में नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध आक्रोश को जन्म दिया है। वैश्विक स्तर पर तमाम तरह के लोग नस्लीय भेदभाव की व्यापकता के विरुद्ध एकजुट हुए हैं।
भारत में नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध प्रावधान
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15, अनुच्छेद 16 और अनुच्छेद 29 ‘नस्ल’, ‘धर्म’ तथा ‘जाति’ के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध लगाते हैं।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153A भी ’नस्ल’ को संदर्भित करती है।
- भारत ने वर्ष 1968 में ‘नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन’ (ICERD) की पुष्टि की थी।
आगे की राह
- अंतर-सांस्कृतिक संवाद का नवीनतम दृष्टिकोण युवाओं को किसी वर्ग विशिष्ट से संबंधित रूढ़ियों को समाप्त करने और उनमें सहिष्णुता बढ़ाने में सहायक हो सकता है।
- नस्लवाद और जातिवाद से संबंधित भेदभाव की हालिया घटनाएँ संपूर्ण समाज को समानता के संबंध में विभिन्न पहलुओं को नए सिरे से सोचने पर मज़बूर करती हैं। नस्लवाद की समस्या को केवल सद्भाव अथवा सद्भावना के माध्यम से समाप्त नहीं किया जा सकता, बल्कि इसके लिये नस्लवाद-विरोधी कार्रवाई की भी आवश्यकता होगी।
- इसके लिये सहिष्णुता, समानता के साथ ही भेदभाव विरोधी एक वैश्विक संस्कृति का निर्माण किया जाना काफी महत्त्वपूर्ण है।