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जैव विविधता और पर्यावरण

क्लाइमेट माइग्रेशन

  • 07 May 2024
  • 22 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC), राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC), जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAFCC), जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजना (SAPCC)

मेन्स के लिये:

क्लाइमेट माइग्रेशन (जलवायु प्रवासन) का मुद्दा और संभावित उपाय

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में जलवायु प्रवासन (जलवायु परिवर्तनों के कारण प्रवास) की समस्या ने सभी का ध्यान आकर्षित किया है, परंतु फिर भी विश्व में गंभीर मौसम आपदाओं के कारण अपने स्थायी आवासों को छोड़ने के लिये बाध्य व्यक्तियों की सुरक्षा के लिये एक व्यापक कानूनी ढाँचे का अभाव है।

  • यह गंभीर अंतर बढ़ते विस्थापन के समय में एक सुभेद्य जनसांख्यिकी को पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना छोड़ देता है।

जलवायु प्रवासी कौन हैं?

  • परिचय:
  • इंटरनेशनल ऑर्गनाइज़ेशन फॉर माइग्रेशन (IOM) के अनुसार, "जलवायु प्रवासन" का तात्पर्य किसी व्यक्ति या जनसमूह की गतिविधियों से है, जो मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन अथवा आकस्मिक या क्रमिक पर्यावरणीय परिवर्तनों के कारण अपने आवास की छोड़ने के लिये बाध्य होते हैं।
  • यह गतिविधि अस्थायी या स्थायी हो सकती है एवं किसी देश के भीतर या बाहर भी हो सकती है।
  • यह परिभाषा इस तथ्य पर प्रकाश डालती है कि जलवायु प्रवासी मुख्य रूप से ऐसे व्यक्ति हैं जिनके पास जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण अपना स्थाई आवास छोड़ने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं है।
  • जलवायु प्रवासन के कारण:
  • आकस्मिक आपदाएँ एवं विस्थापन:
  • आंतरिक विस्थापन: मानवीय मामलों के समन्वय के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (OCHA) की रिपोर्ट इस तथ्य पर प्रकाश डालती है कि बाढ़, तूफान और भूकंप जैसी आकस्मिक आपदाएँ अक्सर उनके आंतरिक विस्थापन का कारण बनती हैं।
  • लोग अपने देशों में सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन कर रहे हैं, परंतु बुनियादी ढाँचे एवं आजीविका के नष्ट हो जाने के कारण उनका स्थायी आवास क्षेत्रों में लौटना कठिन हो सकता है।
  • आपदाएँ और संवेदनशीलता: संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR), इस तथ्य पर दबाव डालती है कि आपदाएँ अक्सर सुभेद्य जनसांख्यिकी को प्रभावित करती हैं।
  • संसाधनों की कमी या उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में रहने वाली इस जनसांख्यिकी के विस्थापित होने एवं संघर्ष करने की संभावनाएँ अधिक हैं।
  • धीमी गति से प्रारंभ होने वाली आपदाएँ एवं प्रवासन:
    • पर्यावरणीय क्षरण एवं आजीविका: IOM की रिपोर्ट है कि सूखा, मरुस्थलीकरण तथा लवणीकरण जैसी धीमी गति से घटित होने वाली आपदाएँ भूमि और जल संसाधनों को विनष्ट कर सकती हैं।
  • इससे लोगों के लिये अपनी आजीविका चला पाना दुष्कर होता है तथा उन्हें आजीविका के बेहतर अवसरों की तलाश में प्रवासन करना पड़ता है।
  • समुद्र के स्तर में वृद्धि एवं तटीय समुदाय: जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC) की रिपोर्ट में समुद्र के बढ़ते स्तर से तटीय क्षेत्रों में निवास कर रहे समुदायों को संकट होने की चेतावनी दी गई है। इससे लोगों घर और खेत जलमग्न हो जाएंगे, जिससे स्थायी विस्थापन हो सकता है।
  • जलवायु प्रवासन की जटिलताएँ:
  • मिश्रित कारक: संयुक्त राष्ट्र का आर्थिक और सामाजिक मामलों का विभाग (UNDESA) स्वीकार करता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले प्रवासन के लिये कोई एक कारक उत्तरदायी नहीं है।
  • गरीबी, राजनीतिक अस्थिरता एवं सामाजिक सुरक्षा का अभाव, आपदाएँ आने पर नागरिकों को प्रवासन के लिये विवश करतीं हैं।
  • डेटा अंतराल और नीतिगत चुनौतियाँ: विश्व बैंक जलवायु प्रवासन का स्पष्ट डेटा निर्धारित करने में चुनौतियों पर प्रकाश डालता है।
  • इससे विस्थापित लोगों एवं सुभेद्य समुदायों को सुरक्षित करने के लिये प्रभावी नीतियाँ विकसित करना कठिन हो जाता है।

जलवायु शरणार्थियों के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय प्रयास:

  • वर्ष 1951: जिनेवा अभिसमय शरणार्थियों की कानूनी परिभाषा देता है। इसमें जलवायु आपदाओं को शरण लेने के आधार के रूप में सम्मिलित नहीं किया गया है
    • हालाँकि, वर्ष 2019 में शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त का कहना है कि जिनेवा अभिसमय को जलवायु परिवर्तन से प्रभावित व्यक्तियों पर लागू किया जा सकता है।
  • वर्ष 1985: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम पहली बार सामान्यतः पर्यावरण शरणार्थियों को ऐसे लोगों के रूप में परिभाषित करता है जो "पर्यावरणीय व्यवधान" के कारण अस्थायी या स्थायी रूप से अपने पारंपरिक निवास स्थान को छोड़ने के लिये मजबूर होते हैं।
  • वर्ष 2011: नॉर्वे में जलवायु परिवर्तन और विस्थापन पर आयोजित हुए नानसेन सम्मेलन में 10 सिद्धांत तैयार किये गए हैं।
  • वर्ष 2013: यूरोपीय आयोग यूरोप में जलवायु-प्रेरित प्रवासन को कम महत्त्व देता है।
  • वर्ष 2015: पेरिस समझौते में जलवायु परिवर्तन से संबंधित विस्थापन को रोकने, कम करने और संबोधित करने के दृष्टिकोण की सिफारिश करने के लिये एक कार्यबल का आह्वान किया गया 
  • वर्ष 2018: हालाँकि, जलवायु से प्रभावित शरणार्थियों को संयुक्त राष्ट्र ग्लोबल कॉम्पैक्ट में शामिल किया गया है, किंतु इसके लिये किसी भी सरकार ने कोई ठोस प्रतिबद्धता नहीं बनाई है।
  • वर्ष 2022: प्रवास, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर कंपाला मंत्रिस्तरीय घोषणा से जलवायु परिवर्तन की घटनाओं से प्रभावित लोगों को हॉर्न और पूर्वी अफ्रीका क्षेत्रों में सीमाओं के पार सुरक्षित रूप से जाने की अनुमति मिलती है।
  • वर्ष 2023: प्रशांत-द्वीपीय देश जलवायु परिवर्तन के कारण लोगों की सीमा-पार आवाजाही को अनुमति देने के लिये एक रूपरेखा पर सहमत हैं।

जलवायु प्रवासियों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?

  • संकटपूर्ण आजीविका:
    • कौशल और संपत्ति का हानि: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने चेतावनी दी है कि विस्थापन के कारण जलवायु प्रवासियों को अक्सर अपने कौशल और संपत्ति की हानि होती हैं।
      • इससे लोगों के लिये अपरिचित वातावरण में अपनी आजीविका और दूसरा रोज़गार प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
    • अनौपचारिक कार्य और शोषण: संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) की रिपोर्ट बताती है कि जलवायु प्रवासी अक्सर कम वेतन और खराब कामकाज़ी परिस्थितियों वाले अनौपचारिक कार्य क्षेत्रों में चले जाते हैं।
      • अपनी अनिश्चित स्थिति के कारण वे शोषण के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं।
  • एकीकरण और सामाजिक चुनौतियाँ:
    • सेवाओं तक पहुँच का अभाव: विश्व बैंक ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जलवायु प्रवासी अक्सर अपने नए स्थानों में स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और आवास जैसी आधारभूत सेवाओं तक पहुँचने के लिये संघर्ष करते हैं।
      • यह इनके सामाजिक बहिष्कार और हाशिये पर रखे जाने का कारण बन सकता है।
    • सांस्कृतिक और भाषाई बाधाएँ: IOM जलवायु प्रवासियों को नई संस्कृतियों और भाषाओं को अपनाने में आने वाली कठिनाइयों पर ज़ोर देता है।
      • यह नए समुदायों में एकीकृत होने की उनकी क्षमता में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
  • कानूनी स्थिति और सुरक्षा:
    • सीमित कानूनी ढाँचा: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) की रिपोर्ट बताती है कि जलवायु प्रवासियों की सुरक्षा के लिये कोई स्पष्ट कानूनी ढाँचा नहीं है।
      • वे वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत शरणार्थी का दर्ज़ा पाने के लिये योग्य नहीं हैं।
    • राज्यविहीन होने का बढ़ता जोखिम: जर्नल ऑफ एनवायरनमेंटल लॉ का दावा है कि जलवायु परिवर्तन से प्रेरित विस्थापन राज्यविहीनता का कारण बन सकता है, विशेष रूप से उन लोगों के लिये जो देशीय सीमाओं को पार करते हैं।
      • वर्ष 2021 में विश्व बैंक ने अपनी ग्राउंड्सवेल रिपोर्ट में अनुमान लगाया कि वर्ष 2050 तक, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण विश्व भर में लगभग 216 मिलियन लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हो जाएंगे।
  • मनोवैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव:
    • अभिघात और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे: WHO विस्थापन और क्षति के कारण जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप प्रवासियों द्वारा अनुभव किये जाने वाले मनोवैज्ञानिक व्यथा एवं अभिघात (Trauma) पर प्रकाश डालता है।
      • आमतौर पर मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक इनकी पहुँच सीमित होती है, जिससे उनके स्वास्थ्य का संघर्ष और भी बढ़ जाता है।
    • स्वास्थ्य जोखिमों के प्रति सुभेद्यता में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन के कारण प्रवास करने वाले व्यक्तियों को नए स्थानों पर स्वास्थ्य जोखिमों, जैसे संक्रामक रोग अथवा खराब मौसम की घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है। यह विशेष रूप से बच्चों और वृद्धजनों के लिये चिंताजनक है।

क्लाइमेट माइग्रेशन के मुद्दे के समाधान से संबंधित नीतियों की सीमाएँ क्या हैं?

  • प्रवासन के लिये वैश्विक समझौता: हालाँकि, यह समझौता मानव प्रवासन को जलवायु परिवर्तन के कारक के रूप में स्वीकार करता है किंतु इसमें जलवायु शरणार्थियों के संबंध में कोई उल्लेख नहीं किया गया है जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे पर सर्वसम्मति स्थापित करने में होने वाली कठिनाई को दर्शाता हो।
  • क्षेत्रीय संधियाँ और घोषणाएँ: कंपाला घोषणा जैसे क्षेत्रीय समझौतों में सामान्यतः क्लाइमेट रेफ्यूज़ी की स्पष्ट मान्यता का अभाव होता है, जो अधिक व्यापक विधिक ढाँचे की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
  • क्लाइमेट रेफ्यूज़ी की पहचान: जलवायु-प्रेरित विस्थापन की जटिल प्रकृति को देखते हुए, प्रमुख चुनौतियों में से एक जलवायु परिवर्तन से प्रभावित व्यक्तियों अथवा समुदायों को शरणार्थियों के रूप में पहचानना और वर्गीकृत करना शामिल है।
  • सामूहिक विस्थापन: जलवायु परिवर्तन मुख्य तौर पर समग्र समुदायों अथवा राष्ट्रों को प्रभावित करता है, जिसके लिये सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता होती है।

क्लाइमेट माइग्रेशन की समस्या के समाधान के लिये क्या कदम उठाए गए हैं?

  • बांग्लादेश जैसे देश अपने निवासियों को समुद्र के बढ़ते स्तर और तूफान से बचाने के लिये तटीय तटबंधों एवं बाढ़ प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे में निवेश कर रहे हैं।
  • फिजी जैसे द्वीप राष्ट्र समुद्र के बढ़ते स्तर के कारण, जीवन योग्य अनुकूल भूभाग को ऊँचा करने जैसे नवीन उपाय तलाश रहे हैं।
    • समुद्र के बढ़ते स्तर के कारण किरिबाती अपनी आबादी के नियोजित स्थानांतरण के विकल्प तलाश रहे हैं।
      • इसमें नई बस्तियों में भूमि अधिग्रहण, सांस्कृतिक संरक्षण और आजीविका के अवसरों पर सावधानीपूर्वक विचार करना शामिल है।
  • भारत और वियतनाम जैसे देशों में बाढ़, चक्रवात और अन्य खराब मौसम की घटनाओं से बचाव के लिये त्वरित चेतावनी प्रणालियाँ कार्यान्वित की गई हैं।
    • ये प्रणालियाँ समुदायों को संवेदनशील क्षेत्रों को खाली करने और हताहतों तथा विस्थापन को कम करने में सहायता प्रदान करती हैं।
  • प्रलंबित (लंबे समय तक जारी रहने वाला) विस्थापन पर कंपाला घोषणा अफ्रीकी देशों द्वारा संघर्ष की स्थिति, प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन से विस्थापित लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अपनाया गया एक क्षेत्रीय ढाँचा है।
  • यह क्लाइमेट माइग्रेशन के संबंध में क्षेत्रीय सहयोग के लिये एक मॉडल प्रदान करता है।
  • इथियोपिया जैसे देश किसानों को मौसम के बदलाव के अनुकूल ढलने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायता करने के लिये सूखा प्रतिरोधी फसलों तथा सिंचाई प्रौद्योगिकियों में निवेश कर रहे हैं।
    • इससे भोजन की कमी के कारण होने वाले विस्थापन का जोखिम कम हो जाता है।
  • अनुकूलन उपायों के अन्य उदाहरण:
    • पेसिफिक आइलैंड क्लाइमेट मोबिलिटी फ्रेमवर्क: यह फ्रेमवर्क जलवायु परिवर्तन से प्रभावित लोगों के लिये प्रशांत द्वीप देशों के बीच विधिसम्मत आवगमन की सुविधा प्रदान करता है, जो क्षेत्रीय सहयोग और अनुकूलन के लिये एक मॉडल प्रदान करता है।
    • तुवालु-ऑस्ट्रेलिया संधि: यह संधि तुवालु और ऑस्ट्रेलिया के बीच की गई जिसका उद्देश्य जलवायु संबंधी खतरों का सामना करने वाले तुवालु के निवासियों को निवास प्रदान करना है जो क्लाइमेट माइग्रेशन चुनौतियों से निपटने के लिये द्विपक्षीय दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है।

भारत की जलवायु परिवर्तन शमन हेतु नई पहलें क्या हैं?

आगे की राह

  • जलवायु परिवर्तन से निपटना:
    • IPCC ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिये आक्रामक शमन रणनीतियों के महत्त्व पर ज़ोर देता है।
    • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UN Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) समुदायों को जलवायु प्रभावों के प्रति अधिक लचीला बनने और विस्थापन जोखिमों को कम करने में सहायता करने के लिये अनुकूलन रणनीतियों को बढ़ावा देता है।
  • आपदा की तैयारी और जोखिम न्यूनीकरण:
  • कानूनी ढाँचे और सुरक्षा तंत्र:
    • संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UN Refugee Agency- UNHCR) और IOM जलवायु प्रवासियों की सुरक्षा के लिये कानूनी ढाँचा विकसित करने का समर्थन करते हैं।
    • इसमें शरणार्थी शब्द की परिभाषा को और व्यापक बनाना या जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापित लोगों के लिये संरक्षण की एक नई श्रेणी बनाना शामिल हो सकता है।
  • नियोजित पुनर्वास और पुनर्स्थापन:
    • विश्व बैंक की ग्राउंड्सवेल रिपोर्ट द्वारा यह माना गया कि जलवायु परिवर्तन के कारण कुछ समुदाय स्थायी रूप से रहने योग्य नहीं रह जाएंगे।
      • इन चरम मामलों में नियोजित स्थानांतरण और पुनर्वास कार्यक्रम आवश्यक हो सकते हैं।
  • तत् विकास एवं जलवायु-स्मार्ट कृषि में निवेश:
    • संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक मामलों का विभाग (UN Department of Economic and Social Affairs- UNDESA) सतत् विकास और जलवायु-स्मार्ट कृषि में निवेश के महत्त्व पर ज़ोर देता है।
    • इससे लोगों के लिये जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं और प्रवासन की आवश्यकता में कमी आ सकती है।
  • श्रमिक प्रवासन योजनाएँ:
    • जलवायु-विस्थापित जनसंख्या के लिये अनुकूलन उपाय के रूप में देशों के मध्य श्रम प्रवास को प्रोत्साहित करने से आर्थिक रूप से कमज़ोर समुदायों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में सहायता मिल सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में जलवायु प्रवासन की चुनौतियों और नीतिगत प्रभावों पर चर्चा कीजिये। सरकार प्रवासन को प्रेरित करने वाली पर्यावरणीय चिंताओं को संबोधित करते हुए जलवायु प्रवासियों की सुरक्षा एवं कल्याण कैसे सुनिश्चित कर सकती है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. बड़ी परियोजनाओं के नियोजन के समय मानव बस्तियों का पुनर्वास एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक संघात है, जिस पर सदैव विवाद होता है। विकास की बड़ी परियोजनाओं के प्रस्ताव के समय इस संघात को कम करने के लिये सुझाए गए उपायों पर चर्चा कीजिये। (2021)


प्रश्न. बड़ी परियोजनाओं के नियोजन के समय मानव बस्तियों का पुनर्वास एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक संघात है, जिस पर सदैव विवाद होता है। विकास की बड़ी परियोजनाओं के प्रस्ताव के समय इस संघात को कम करने के लिये सुझाए गए उपायों पर चर्चा कीजिये। (2016)

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