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सामाजिक न्याय

वैश्विक रुझान: वर्ष 2022 में विस्थापन

  • 22 Jun 2023
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त, द्वितीय विश्व युद्ध, आंतरिक विस्थापन, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, यूक्रेन, शरणार्थी सम्मेलन 1951, संयुक्त राष्ट्र महासभा

मेन्स के लिये:

विश्व भर में विस्थापन के कारक, जबरन विस्थापन से निपटने हेतु समाधान

चर्चा में क्यों?  

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (Nations High Commissioner for Refugees- UNHCR) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में वर्ष 2022 में सामाजिक कारकों तथा जलवायु संकट के कारण बेघर व विस्थापित होने वाले लोगों की संख्या में भारी वृद्धि देखी गई। 

  • वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 में 21% की वृद्धि के साथ जबरन विस्थापित होने वाले लोगों की कुल संख्या 108.4 मिलियन के करीब पहुँच गई , जिनमें बड़ी संख्या में बच्चे भी शामिल हैं। 

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:  

  • जबरन विस्थापन पर UNHCR के आँकड़ों के अनुसार, उत्पीड़न, संघर्ष, हिंसा के कारण  होने वाली परेशानियों और मानवाधिकारों के उल्लंघन तथा सार्वजनिक व्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाली घटनाओं की वजह से  वर्ष 2022 में रिकॉर्ड 108.4 मिलियन लोगों, जिनमें लगभग 30% बच्चे थे, को अपने घरों को छोड़कर भागने पर मजबूर होना पड़ा।
    • जबरन विस्थापन का कारण आंतरिक अथवा बाह्य दोनों हो सकता है, यह इस पर निर्भर करता है कि विस्थापित लोग अपने मूल देश के भीतर ही रहते हैं अथवा सीमा पार कर जाते हैं।
    • इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 के अंतिम आँकड़ों की तुलना में वर्ष 2022 में विस्थापित होने वाले लोगों की संख्या 19 मिलियन अधिक है।
      • वैश्विक स्तर पर विस्थापित हुए कुल 108.4 मिलियन लोगों में से 35.3 मिलियन शरणार्थी थे, जो सुरक्षा पाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार कर गए थे।
  • विस्थापन के कारक:  
    • वर्ष 2022 में विस्थापन का मुख्य कारण यूक्रेन में फरवरी 2022 में शुरू हुआ वृहत पैमाने पर युद्ध था, यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से सबसे तीव्र और सबसे बड़े विस्थापन संकटों में से था।
      • वर्ष 2022 के अंत तक कुल 11.6 मिलियन यूक्रेनी लोग विस्थापित हुए, जिनमें 5.9 मिलियन लोग अपने देश के भीतर और 5.7 मिलियन लोग पड़ोसी व अन्य देशों में चले गए।
    • विश्व भर में जारी और नए संघर्षों ने भी बड़ी संख्या में जबरन विस्थापन में योगदान दिया, जैसे- डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इथियोपिया और म्याँमार, इन दोनों देशों के 1 मिलियन से अधिक लोग विस्थापित हुए।
    • संघर्ष और हिंसा के अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन एवं प्राकृतिक आपदाओं के कारण भी भारी संख्या में विस्थापन हुए।
      • जलवायु आपदाओं के कारण वर्ष 2022 में आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की संख्या 32.6 मिलियन रही और करीब 8.7 मिलियन लोग वर्ष के अंत तक स्थायी रूप से विस्थापित हो गए।
      • वर्ष 2022 में सभी आंतरिक विस्थापनों में से आधे से अधिक (54%) आपदाओं के कारण हुए।
  • विपन्न/गरीब देशों में विस्थापन के कारण उत्पन्न समस्याएँ:  
    • विस्थापित होने वाली 90 फीसदी आबादी निम्न और मध्यम आय वाले देशों से थी, जिन पर सबसे अधिक बोझ पड़ा तथा  विस्थापित आबादी का 90% इन्हीं देशों से है।
    • इसके अतिरिक्त वर्ष 2022 में विश्व के 76% शरणार्थियों को इन गरीब देशों ने शरण दी, जो कि इन देशों की बड़ी ज़िम्मेदारी को रेखांकित करता है।
    • विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रहे बांग्लादेश, चाड, कांगो, इथियोपिया, रवांडा, दक्षिण सूडान, सूडान, युगांडा, तंज़ानिया और यमन जैसे देशों से आए वैश्विक शरणार्थी आबादी के 20% शरणार्थियों को अल्प विकसित देशों ने शरण दी।
  • राज्यविहीनता:  
    • राज्यविहीनता शरणार्थियों के सामने आने वाली कठिनाइयों को बढ़ा देती है जो उन्हें स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा तथा रोज़गार जैसी बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुँच से वंचित कर देती है।
    • अनुमान है कि वर्ष 2022 के अंत तक दुनिया भर में 4.4 मिलियन लोग राज्यविहीन या अनिर्धारित राष्ट्रीयता वाले थे जो कि वर्ष 2021 से 2% अधिक है।

जबरन विस्थापन के प्रभाव:

  • शरणार्थियों पर प्रभाव: 
    • आर्थिक कठिनाइयाँ: विस्थापन के कारण अनेक शरणार्थी अपनी आजीविका और आर्थिक स्थिरता की स्थिति को खो देते हैं। उन्हें अक्सर मेज़बान देशों में रोज़गार के अवसरों, शिक्षा और वित्तीय संसाधनों तक पहुँच में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
      • आर्थिक कठिनाइयों के परिणामस्वरूप गरीबी, आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं तक सीमित पहुँच और भेद्यता बढ़ सकती है।
    • शिक्षा में व्यवधान: शरणार्थी बच्चों और युवाओं के लिये शिक्षा तक पहुँच बाधित हो जाती है या पूरी तरह से अस्वीकार कर दी जाती है।
      • सीमित शैक्षिक अवसर उनके दीर्घकालिक विकास और बेहतर भविष्य की संभावनाओं में बाधा बन सकते हैं जिससे गरीबी एवं निर्भरता का चक्र बन सकता है।
    • आघात और भावनात्मक संकट: शरणार्थी अक्सर विस्थापन के दौरान दर्दनाक घटनाओं का सामना करते हैं जिसमें हिंसा, प्रियजनों की हानि तथा उनके घरों एवं समुदायों का विनाश शामिल है।
      • इससे गंभीर भावनात्मक संकट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है जिसमें पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), चिंता और अवसाद आदि शामिल हैं।
    • शारीरिक स्वास्थ्य चुनौतियाँ: विस्थापित शरणार्थियों को अनेक स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है जिनमें स्वास्थ्य देखभाल तक अपर्याप्त पहुँच, कुपोषण और अस्वच्छ स्थितियों का जोखिम शामिल है।
      • उचित स्वच्छता एवं स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की कमी के कारण  बीमारियाँ फैल सकती हैं जिससे उनकी सेहत भी प्रभावित हो सकती है।
    • सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौतियाँ: शरणार्थियों को अक्सर भाषा की बाधाओं, सांस्कृतिक मतभेदों और भेदभाव के कारण समाज में एकीकृत होने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
      • सामाजिक बहिष्कार और हाशियाकरण उनमें अलगाव की भावनाओं को बढ़ा सकता है तथा उनके जीवन के पुनर्निर्माण की क्षमता में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
  • मेज़बान समुदायों पर प्रभाव: 
    • संसाधनों और सेवाओं पर दबाव: शरणार्थियों की असमय आमद आवास, स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं, स्कूलों एवं सार्वजनिक सेवाओं सहित मेज़बान समुदायों के संसाधनों पर गंभीर  दबाव डाल सकती है।
      • शरणार्थियों की अधिक संख्या के कारण संसाधनों की मौजूदा मांग बढ़ सकती है जो बुनियादी ढाँचे पर दबाव डाल सकती है, जिससे संसाधनों की कमी तथा शरणार्थियों और मेज़बान समुदाय के सदस्यों दोनों के लिये संसाधनों तक पहुँच कम हो सकती है।
    • सामाजिक एकजुटता और सांस्कृतिक गतिशीलता पर प्रभाव: शरणार्थियों के आगमन से सामाजिक तनाव और मेज़बान समुदायों के भीतर सांस्कृतिक गतिशीलता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
      • भाषा, धर्म और रीति-रिवाज़ों में अंतर गलतफहमी और संघर्ष की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
    • नौकरियों के लिये प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि: शरणार्थियों की उपस्थिति मेज़बान समुदायों में रोज़गार के अवसरों के लिये प्रतिस्पर्द्धा को जन्म दे सकती है।
      • शरणार्थियों को नौकरियाँ देने या उनके द्वारा कम वेतन पर काम करने से मेज़बान समुदाय के सदस्यों में तनाव और द्वेष बढ़ सकता है।

जबरन विस्थापन से निपटने हेतु संभावित समाधान:

  • मानवीय सहायता: विस्थापित आबादी को भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छ पेयजल जैसी तत्काल मानवीय सहायता प्रदान करना आवश्यक है।
    • विस्थापित लोगों की बुनियादी ज़रूरतें पूरी हों यह सुनिश्चित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, सरकारों तथा गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर काम करना चाहिये।
  • संघर्ष का समाधान और शांति स्थापना: जबरन विस्थापन के मूल कारणों को संबोधित करने के लिये संघर्षों को हल करने और शांति को बढ़ावा देने के प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
    • राजनयिक वार्ता, मध्यस्थता और शांति हेतु पहल से अंतर्निहित मुद्दों को हल करके भविष्य में  विस्थापन को रोकने में मदद मिल सकती है।
  • मानवाधिकारों का संरक्षण: विस्थापित व्यक्तियों के मानवाधिकारों को कायम रखना और उनकी रक्षा करना आवश्यक है। 
    • सरकारों को ऐसे कानून बनाने और लागू करने चाहिये जो विस्थापित लोगों के अधिकारों की रक्षा करें, इसमें उनकी सुरक्षा, सम्मान और बुनियादी सेवाओं तक पहुँच का अधिकार भी शामिल है।
  • स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना: विस्थापित आबादी को समायोजित करने और समर्थन करने के लिये मेज़बान समुदायों की क्षमता को मज़बूत करने से तनाव को कम करने एवं सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
    • यह कार्य बुनियादी ढाँचे, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और आजीविका के अवसरों में निवेश के माध्यम से किया जा सकता है।
  • क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: जबरन विस्थापन के लिये अक्सर कई देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की समन्वित प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है।
    • विस्थापन की चुनौतियों से निपटने में ज़िम्मेदारियों, संसाधनों और विशेषज्ञता को साझा करने के लिये सरकारों, क्षेत्रीय निकायों तथा  मानवीय एजेंसियों के बीच सहयोग सुनिश्चित करना आवश्यक है।
    • इसमें एक ऐसे कानून का निर्माण करना  शामिल है जो विस्थापित लोगों के अधिकारों को मान्यता देता हो, उनकी सुरक्षा हेतु प्रक्रियाएँ और स्वैच्छिक वापसी, पुनर्वास तथा स्थानीय एकीकरण जैसे टिकाऊ समाधानों के लिये मार्ग प्रदान करता हो।

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त:  

  • संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) एक वैश्विक संगठन है जो संघर्ष और उत्पीड़न के कारण जबरन विस्थापित समुदायों को बचाने, उनके अधिकारों की रक्षा करने तथा बेहतर भविष्य के निर्माण के लिये समर्पित है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1950 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उन लाखों लोगों की मदद के लिये संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा की गई थी, जो अपना घर छोड़कर भाग गए थे या लापता हो गए थे।
  • यह 1951 शरणार्थी कन्वेंशन और इसके 1967 प्रोटोकॉल द्वारा निर्देशित है एवं संरक्षक के रूप में कार्य करता है।
    • भारत 1951 शरणार्थी सम्मेलन और इसके 1967 प्रोटोकॉल का पक्षकार नहीं है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

मेन्स: 

प्रश्न. "शरणार्थियों को उस देश में वापस नहीं लौटाया जाना चाहिये जहाँ उन्हें उत्पीड़न अथवा मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ेगा"। खुले समाज और लोकतांत्रिक होने का दावा करने वाले राष्ट्र द्वारा नैतिक आयाम का उल्लंघन के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये। (2021)

प्रश्न. बड़ी परियोजनाओं के नियोजन के समय मानव बस्तियों का पुनर्वास महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक संघात है, जिस पर सदैव विवाद होता है। विकास की बड़ी परियोजनाओं के प्रस्ताव के समय इस संघात को कम करने के लिये सुझाए गए उपायों पर चर्चा कीजिये। (2016)

स्रोत: डाउन टू अर्थ  

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