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मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा

  • 13 Dec 2023
  • 6 min read

स्रोत: इंडियन 

वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) को मंज़ूरी देने के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।

  • वर्ष 2023 में UDHR की 75वीं वर्षगाँठ है।
  • 2023 विषय: सभी के लिये स्वतंत्रता, समानता और न्याय

मानवाधिकार क्या है

  • ये जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, जातीयता, भाषा, धर्म या किसी अन्य स्थिति की परवाह किये बिना सभी मनुष्यों के लिये अंतर्निहित अधिकार हैं।
  • इनमें जीवन का अधिकार, दासता तथा यातना से मुक्ति, वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, काम तथा शिक्षा का अधिकार एवं बहुत कुछ सम्मिलित हैं।
  • नेल्सन मंडेला ने कहा था, 'लोगों को उनके मानवाधिकारों से वंचित करना उनकी मानवता को चुनौती देना है।'
  • मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) के अनुच्छेद 1 में कहा गया है कि “सभी मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुए हैं और गरिमा तथा अधिकारों में समान हैं।” तथा
    • अनुच्छेद 2 कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति नस्ल, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक या अन्य राय, राष्ट्रीय या सामाजिक मूल, संपत्ति, जन्म या अन्य स्थिति जैसे किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना, घोषणा में निर्धारित सभी अधिकारों और स्वतंत्रता को प्राप्त करने का हकदार है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 में समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार, कुछ कानूनों को बचाने एवं संवैधानिक उपचारों का अधिकार प्रदान किया गया है।

मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) क्या है?

  • परिचय
    • 30 अधिकारों और स्वतंत्रताओं में नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार शामिल हैं, जैसे जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता, स्वतंत्र भाषण व गोपनीयता एवं आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकार, जैसे– सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं शिक्षा का अधिकार आदि।
      • भारत ने UDHR के प्रारूपण में सक्रिय रूप से भाग लिया।
    • UDHR एक संधि नहीं है, इसलिये यह सीधे तौर पर देशों के लिये कानूनन आवश्यक नहीं है।
    • UDHR, नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध एवं इसके दो वैकल्पिक प्रोटोकॉल (शिकायत प्रक्रिया एवं मृत्युदंड पर) तथा आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध व इसके वैकल्पिक प्रोटोकॉल के साथ मिलकर तथाकथित मानवाधिकारों का अंतर्राष्ट्रीय विधेयक बनाते हैं।
    • सभी लोगों और राष्ट्रों के लिये उपलब्धि के एक सामान्य मानक के रूप में स्थापित इस घोषणा ने द्वितीय विश्व युद्ध की तबाही के बाद उभरी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को आकार देने में एक मूलभूत भूमिका निभाई।
  • उपलब्धियाँ:
    • घोषणा की गैर-बाध्यकारी प्रकृति:
      • वर्ष 1948 में स्थापित UDHR अपने आप में कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि नहीं है। हालाँकि इसके सिद्धांतों को व्यापक रूप से अपनाया गया है और कई देशों के कानूनी ढाँचे में एकीकृत किया गया है।
    • पहुँच और वैश्विक प्रभाव:
      • UDHR का महत्त्व इसकी गैर-बाध्यकारी स्थिति से कहीं अधिक है, जिसने वैश्विक स्तर पर 70 से अधिक मानवाधिकार संधियों के लिये उत्प्रेरक के रूप में कार्य किया है। इसका प्रभाव विश्व भर में उपनिवेशवाद से मुक्ति, रंगभेद विरोध तथा विभिन्न स्वतंत्रता संग्राम जैसे आंदोलनों में स्पष्ट है।
      • UDHR के बिना विभिन्न मानकों वाला एक खंडित परिदृश्य उत्पन्न हो सकता था, जिससे स्थितियाँ संभावित रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकती थीं।
  • सार्वभौमिक मानक एवं समकालिक प्रासंगिकता:
    • विशिष्ट धर्मों, संस्कृतियों अथवा क्षेत्रों के लिये इसकी अनुपयुक्तता का दावा करने वाली कुछ आलोचनाओं के बावजूद, वर्ष 1948 की घोषणा पर आधारित समझौतों से उत्पन्न हुए UNDR, इसकी स्थायी प्रासंगिकता को रेखांकित करता है।
    • उदाहरण हेतु वर्ष 1993 में आयोजित वियना घोषणा एवं कार्रवाई कार्यक्रम ने UDHR में निर्धारित सिद्धांतों को और मज़बूत किया।

 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न: मूल अधिकारों के अतिरिक्त भारत के संविधान का निम्नलिखित में से कौन-सा/से भाग मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा, 1948 (Universal Declaration of Human Rights,1948) के सिद्धांतों एवं प्रावधानों को प्रतिबिंबित करता/करते है/हैं? (2020)

  1. उद्देशिका
  2. राज्य के नीति निदेशक
  3. मूल कर्त्तव्य

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

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