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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की अनुसंधान एवं विकास निधि का पुनरुत्थान

  • 15 Mar 2024
  • 23 min read

यह एडिटोरियल 14/03/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “India’s R&D funding, breaking down the numbers” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के अनुसंधान एवं विकास (R&D) क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि पर विचार किया गया है जो अनुसंधान एवं विकास पर सकल व्यय (GERD) में उल्लेखनीय वृद्धि से चिह्नित होता है। हालाँकि, इस वृद्धि के बावजूद सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में अनुसंधान एवं विकास में कम निवेश के कारण भारत प्रमुख विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से पीछे बना हुआ है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड, जलवायु परिवर्तन, GDP, नेशनल रिसर्च फाउंडेशन, डीप टेक स्टार्टअप, डीप टेक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, बिग डेटा, क्वांटम कंप्यूटिंग

मेन्स के लिये:

वैज्ञानिक विकास हेतु सतत् वित्तपोषण, अनुसंधान एवं विकास में निजी क्षेत्र की अपर्याप्त भागीदारी से संबंधित मुद्दे।

देश के अंदर अनुसंधान एवं नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करने के लिये वर्ष 2024-25 के अंतरिम बजट में 1 लाख करोड़ रुपए के कोष की घोषणा ने वैज्ञानिक एवं अनुसंधान समुदायों के भीतर एक उत्साह को जन्म दिया है। ‘जय जवान जय किसान’ का नारा ‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान’ से आगे बढ़ता हुआ अब निर्वतमान प्रधानमंत्री द्वारा ‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान’ के नारे के रूप में पेश किया गया है जिसमें विकास के लिये अनुसंधान एवं नवाचार की नींव को सुदृढ़ करने का ध्येय निहित है।

भारत में R&D वित्तपोषण के विभिन्न सकारात्मक पहलू:

  • शैक्षणिक प्रतिभा पैदा करने का ‘पावरहाउस’:
    • अनुसंधान एवं विकास पर समर्पित सकल घरेलू उत्पाद की तुलनात्मक रूप से कम हिस्सेदारी के बावजूद, भारत शैक्षणिक प्रतिभा पैदा करने में एक शक्ति केंद्र के रूप में उभरा है। भारत प्रति वर्ष 40,813 पीएचडी शोधार्थी तैयार करता है और विश्व में संयुक्त राज्य अमेरिका एवं चीन के बाद तीसरे स्थान पर है। यह उपलब्धि बौद्धिक पूंजी को बढ़ावा देने और वैश्विक अनुसंधान प्रयासों में महत्त्वपूर्ण योगदान करने की भारत की प्रतिबद्धता को परिलक्षित करती है।
      • इसके अतिरिक्त, भारत का अनुसंधान उत्पादन उच्च स्तर पर बना हुआ है और वर्ष 2022 में 3,00,000 से अधिक प्रकाशनों के साथ यह वैश्विक स्तर पर तीसरे स्थान पर रहा। यह देश के सुदृढ़ अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र और विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता को प्रकट करता है।
  • पेटेंट अनुदान में सराहनीय प्रदर्शन:
    • भारत ने पेटेंट अनुदान (Patent Grants) में भी सराहनीय प्रदर्शन किया है जहाँ वर्ष 2022 में 30,490 पेटेंट अनुदान के साथ वैश्विक स्तर पर छठे स्थान पर रहा। हालाँकि यह संख्या अमेरिका और चीन की तुलना में कम है, लेकिन यह भारत के विकसित हो रहे नवाचार परिदृश्य और बौद्धिक संपदा निर्माण में आगे बढ़ने की इसकी क्षमता को रेखांकित करता है।
  • स्वायत्त अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं और संस्थानों पर बल:
    • R&D वित्तपोषण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा सरकार से प्राप्त होता है, जिसमें एक बड़ा आवंटन सरकार द्वारा संचालित स्वायत्त R&D प्रयोगशालाओं को दिया जाता है। ये प्रयोगशालाएँ रणनीतिक निहितार्थों के साथ अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी विकास को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
      • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के R&D आँकड़ों (2022-23) के अनुसार, वर्ष 2020-21 में अनुसंधान एवं विकास में भारत का कुल निवेश 17.2 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया। इस राशि में से 54% (9.4 बिलियन डॉलर) सरकारी क्षेत्र को आवंटित किया जाता है और मुख्य रूप से निम्नलिखित चार प्रमुख वैज्ञानिक एजेंसियों द्वारा इसका उपयोग किया जाता है:
      • रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) (30.7%), अंतरिक्ष विभाग (18.4%), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) (12.4%) और परमाणु ऊर्जा विभाग (11.4%)।
  • अंतरिम बजट 2024-25 में प्रावधान:
    • दीर्घावधिक वित्तपोषण या लंबी अवधि एवं कम या शून्य ब्याज दरों के साथ पुनर्वित्त प्रदान करने के लिये पचास वर्ष के ब्याज मुक्त ऋण के साथ 1 लाख करोड़ रुपए का एक कोष (corpus) स्थापित किया जाएगा। रक्षा उद्देश्यों के लिये डीप-टेक प्रौद्योगिकियों को सुदृढ़ करने और ‘आत्मनिर्भरता’ में तेज़ी लाने के लिये एक नई योजना शुरू करने पर भी विचार किया गया है।

भारत में R&D वित्तपोषण को लेकर विभिन्न चिंताएँ:

  • सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में कम R&D निवेश:
    • भारत के R&D में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है, जहाँ अनुसंधान एवं विकास पर सकल व्यय (Gross Expenditure on Research and Development- GERD) में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो वर्ष 2010-11 में 6,01,968 मिलियन रुपए से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 12,73,810 मिलियन रुपए हो गया।
    • हालाँकि, सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में R&D निवेश के महज 0.64% होने के साथ भारत चीन (2.4%), जर्मनी (3.1%), दक्षिण कोरिया (4.8%) और संयुक्त राज्य अमेरिका (3.5%) जैसी प्रमुख विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से बहुत पीछे है।

  • निजी क्षेत्र द्वारा कम योगदान:
    • भारत में, GERD मुख्य रूप से सरकारी क्षेत्र द्वारा संचालित होता है, जिसमें केंद्र सरकार (43.7%), राज्य सरकारें (6.7%), उच्च शिक्षा संस्थान (8.8%) और सार्वजनिक क्षेत्र उद्योग (4.4%) शामिल हैं। वर्ष 2020-21 के दौरान निजी क्षेत्र के उद्योगों का योगदान मात्र 36.4% रहा।
      • सरकार द्वारा इसे बढ़ाने की आवश्यकता के बारे में जागरूक होने के बावजूद R&D व्यय में इस कमी के कारण स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन ऐसा सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी और R&D व्ययों को प्राथमिकता देने के लिये मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता के कारण हो सकता है।
    • विकसित अर्थव्यवस्थाओं में निजी क्षेत्र का योगदान:
      • भारत में निजी उद्योगों का योगदान कई अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कम है। लगभग 6.2 बिलियन डॉलर के योगदान के साथ भारतीय व्यवसाय देश के GERD के 37% का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह वैश्विक रुझान के विपरीत है जहाँ व्यावसायिक उद्यम आम तौर पर R&D में 65% से अधिक का योगदान करते हैं।
      • चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका जैसी अग्रणी नवोन्मेषी अर्थव्यवस्थाओं में R&D वित्तपोषण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा (>70%) निजी उद्योगों से प्राप्त होता है, जो बाज़ार की शक्तियों एवं लाभ के उद्देश्यों से प्रेरित होता है और वास्तविक R&D गतिविधियाँ उच्च शैक्षणिक संस्थानों में संचालित की जाती हैं। 
  • आवंटित निधि का कम उपयोग:
    • वर्ष 2022-2023 में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) ने केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSSs)/परियोजनाओं पर अपने अनुमानित बजट आवंटन का केवल 72% उपयोग किया, जबकि DST ने केवल 61% आवंटन का उपयोग किया। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग (DSIR), जिसे CSSs के लिये सबसे कम आवंटन प्राप्त होता है, ने अपने आवंटन का 69% खर्च किया।
      • कम-आवंटन की ही तरह इस कम-उपयोग के कारण स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन यह संवितरण की मंज़ूरी में जटिल नौकरशाही प्रक्रियाओं, परियोजनाओं का मूल्यांकन करने या स्पष्ट उपयोग प्रमाणपत्रों की क्षमता की कमी, वित्त मंत्रालय द्वारा विज्ञान क्षेत्र के वित्तपोषण को प्राथमिकता की कमी या विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा अनुरोधित धनराशि के लिये योजना या कार्यान्वयन रणनीति की अपर्याप्तता का संकेत हो सकता है।
  • राज्य सरकारों द्वारा पर्याप्त धन आवंटन का अभाव:
    • RBI की ‘राज्य वित्त: वर्ष 2023-24 के बजट का एक अध्ययन’ शीर्षक रिपोर्ट में राज्य सरकारों के R&D व्यय पर एक समर्पित खंड शामिल किया गया था। अध्ययन में 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से केवल 10 को शामिल किया गया, जिसका अर्थ है कि अनुसंधान अधिकांश राज्यों के लिये प्राथमिकता का विषय नहीं है। अधिकांश राज्यों में अनुसंधान पर वार्षिक व्यय पर्याप्त कम भी था (औसतन GSDP का 0.09%), हालाँकि राजस्थान इस मामले में सबसे आगे रहा।

भारत में R&D वित्तपोषण बढ़ाने के लिये आवश्यक विभिन्न कदम:

  • निजी क्षेत्र के सहयोग को प्रोत्साहित करना:
    • दक्षता के मामले में भारत के अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र के अपने लाभ हैं, लेकिन निजी उद्यमों की मज़बूत संलग्नता और मज़बूत उद्योग-अकादमिक सहयोग से और अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है जहाँ ज्ञान हस्तांतरण की सुविधा मिलेगी तथा नवाचार को बढ़ावा प्राप्त होगा।
      • वर्ष 2013 की विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति (Science, Technology, and Innovation Policy) में कहा गया है कि GERD को GDP के 2% तक बढ़ाना कुछ समय से एक राष्ट्रीय लक्ष्य रहा है। वर्ष 2017-2018 के आर्थिक सर्वेक्षण के विज्ञान और प्रौद्योगिकी रूपांतरण संबंधी अध्याय में भी इसे दोहराया गया।
      • निजी निवेश के लिये प्रोत्साहन, जिसमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDIs) में ढील, कर छूट और उत्पादों के लिये स्पष्ट नियामक रोडमैप शामिल हैं, निवेशकों का विश्वास बनाने में मदद करेंगे।
  • GDP के प्रतिशत के रूप में R&D व्यय में वृद्धि करना:
    • आर्थिक विकास, तकनीकी प्रगति और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देने में अनुसंधान एवं नवाचार के महत्त्व को कम करके नहीं आँका जा सकता। हालाँकि, इसके प्रभाव को पूरी तरह से साकार करने के लिये भारत में वर्तमान R&D वित्तपोषण परिदृश्य और इसके परिणामी आउटपुट का आकलन करना अत्यंत आवश्यक है।
    • वर्ष 2021 में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) के सदस्य देशों ने R&D पर औसतन GDP का 2.7% व्यय किया। अमेरिका और यूके ने पिछले एक दशक से लगातार अपने GDP का 2% से अधिक R&D पर व्यय किया है।
      • इसलिये कई विशेषज्ञों ने भारत से आह्वान किया है कि वह विकास पर सार्थक प्रभाव डालने के लिये विज्ञान क्षेत्र में R&D पर वर्ष 2047 तक प्रत्येक वर्ष अपने GDP का कम से कम 1% (लेकिन आदर्शतः 3%) व्यय करे।

  • भारत में उच्च शिक्षा संस्थाओं (HEIs) के लिये बढ़ी हुई भूमिका सुनिश्चित करना:
    • भारत में HEIs समग्र R&D निवेश में तुलनात्मक रूप से मामूली भूमिका निभाते हैं, जहाँ इनका योगदान 8.8% (1.5 बिलियन डॉलर) है। यह स्वीकार करना महत्त्वपूर्ण है कि R&D में उद्योग का योगदान बढ़ाना एक जटिल मुद्दा है जिसका कोई एक समाधान नहीं है। चुनौतियों का समाधान करने और HEIs के माध्यम से भारत की आर्थिक वृद्धि एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के लिये R&D की क्षमता को ‘अनलॉक’ करने के लिये विविध हितधारकों को संलग्न करने वाला एक बहु-आयामी दृष्टिकोण आवश्यक है।
  • भारत की विनिर्माण वास्तविकता और आकांक्षाओं के बीच के अंतराल को दूर करना:
    • भारत की प्रौद्योगिकीय एवं विनिर्माण आकांक्षाएँ इसके R&D परिदृश्य में परिवर्तनकारी बदलाव पर निर्भर हैं। मौजूदा अंतराल को दूर करने के लिये एक दोहरी रणनीति की आवश्यकता है, यानी निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना और शिक्षा जगत के अनुसंधान अवसंरचना को सुदृढ़ करना।
    • राष्ट्रीय डीप टेक स्टार्टअप नीति (NDTSP) जैसी पहलें तकनीकी प्रगति और नवाचार के प्रति एक मज़बूत प्रतिबद्धता का संकेत देती हैं। यह नीति भारत के R&D पारिस्थितिकी तंत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने की क्षमता रखती है।
      • ‘डीप टेक’ के निर्माण में लगने वाले अधिक समय और तकनीकी अनिश्चितताओं के बावजूद, बौद्धिक संपदा की सुरक्षा और तकनीकी बाधाओं से निपटने के लिये संसाधनों का आवंटन अप्रयुक्त बाज़ारों को ‘अनलॉक’ कर सकता है।
    • हाल में अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF) अधिनियम, 2023 का अधिनियमन विकास की आधारशिला के रूप में अनुसंधान एवं नवाचार को उत्प्रेरित करने के प्रति सरकार के समर्पण को रेखांकित करता है।
    • यह विधायी कदम देश भर में वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देगा। इस अधिनियम का उद्देश्य HEIs के भीतर एक प्रबल अनुसंधान संस्कृति का पोषण करते हुए भारत के चिरस्थायी R&D निवेश अंतराल को दूर करना है।
      • यह आशाजनक है, लेकिन इस पहल को समान निधि वितरण सुनिश्चित करने, अंतःविषय सहयोग को बढ़ावा देने और वैश्विक मानकों को बनाए रखने जैसी चुनौतियों से भी निपटना होगा।
  • आवंटित निधियों का उचित उपयोग निर्दिष्ट करना:
    • केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने लगातार अपने बजट का कम उपयोग किया है। इसलिये, जबकि सरकारी और निजी दोनों स्रोतों के माध्यम से वित्तपोषण की वृद्धि की मांग वैध है, विज्ञान के परिणामों को प्रभावित करने के लिये एक सुदृढ़ बजट उपयोग की भी आवश्यकता है।
      • R&D के लिये निर्धारित धनराशि के कम खर्च और कम उपयोग का शमन करना स्पष्ट रूप से प्राथमिक कदम होगा। इसके लिये R&D व्यय को राजनीतिक प्राथमिकता देने और इसे भारत की विकास यात्रा के एक प्रमुख, अपूरणीय तत्व के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता है।
      • अंत में, भारत को विज्ञान परियोजनाओं का मूल्यांकन करने और आवंटन के बाद उपयोग की निगरानी करने के लिये नौकरशाही क्षमता की भी आवश्यकता है। वर्ष 2047 तक भारत को एक विज्ञान शक्ति बनाने के लिये ऐसी क्षमता का निर्माण करना एक पूर्वशर्त की स्थिति रखता है।
  • राज्य सरकारों के माध्यम से व्यय को प्राथमिकता देना:
    • सार्वजनिक क्षेत्र के R&D व्यय को विशेष रूप से राज्य स्तर पर बढ़ाने की आवश्यकता है। इससे राज्य विश्वविद्यालयों में अनुसंधान सुविधाओं की गुणवत्ता में सुधार होगा, जिससे फिर अनुसंधानकर्ताओं को यह स्वतंत्रता प्राप्त होगी कि वे स्थानीय रूप से प्रासंगिक समस्याओं अधिक कार्य कर सकेंगे।
    • व्यय को इस सीमा तक बढ़ाने की भी आवश्यकता है कि उपयुक्त नीतियों के साथ यह प्रयोगशाला से कारख़ाने तक अनुसंधान संबंधी लगातार बनी रहती बाधाओं को दूर करे। इस प्रवाह के बिना नवाचार का कोई महत्त्व नहीं होगा और यह निम्न-गुणवत्तापूर्ण प्रगति तक ही सीमित रहेगा।

निष्कर्ष:

भारत में R&D व्यय को बढ़ाने, अनुसंधान, नवाचार एवं उद्यमिता के लिये रणनीतिक मार्गदर्शन प्रदान करने और निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये सरकारी प्रयास जारी हैं। जबकि भारत का R&D क्षेत्र उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है, प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में GDP के प्रतिशत के रूप में R&D पर देश का कम निवेश चिंता का विषय बना हुआ है। NDTSP और ANRF अधिनियम, 2023 के साथ ही संयुक्त अंतरिम बजट (2024-25) निजी क्षेत्र के नेतृत्व में अनुसंधान एवं नवाचार को प्रोत्साहित करने (विशेष रूप से उभरते हुए उद्योगों में) की भारत की प्रतिबद्धता के बारे में सकारात्मक संकेत प्रदान करता है।

अभ्यास प्रश्न: आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति के लिये इसके निहितार्थों का आकलन करते हुए भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियों और तकनीकी सफलताओं पर R&D व्यय के प्रभाव पर विचार कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न.1 राष्ट्रीय नवप्रवर्तक प्रतिष्ठान-भारत (नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन इंडिया- एन.आई.एफ.) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)

  1. NIF केंद्र सरकार के अधीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एक स्वायत्त संस्था है।
  2.  NIF अत्यंत उन्नत विदेशी वैज्ञानिक संस्थाओं के सहयोग से भारत की प्रमुख (प्रीमियर) वैज्ञानिक संस्थाओं में अत्यंत उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान को मज़बूत करने की एक पहल है।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)


प्रश्न. 2 निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिये शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार दिया जाता है? (2009)

(a) साहित्य
(b) प्रदर्शन 
(c) विज्ञान
(d) समाज सेवा

उत्तर: (c)


प्रश्न. 3 अटल नवप्रवर्तन (इनोवेशन) मिशन किसके अधीन स्थापित किया गया है? (2019)

(a) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग
(b) श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय
(c) नीति आयोग
(d) कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय

उत्तर: (c)

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