शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन
- 11 Jul 2023
- 16 min read
यह एडिटोरियल 10/07/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘National Research Foundation: Energizing the sciences’’ लेख पर आधारित है। इसमें राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन के बारे में चर्चा की गई है जो भारत के महत्त्वाकांक्षी विकास एजेंडे में तेज़ी लाने के लिये अंतःविषय अनुसंधान को उत्प्रेरित और मार्ग-निर्देशित करेगा।
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड, प्रधानमंत्री, जलवायु परिवर्तन, सकल घरेलू उत्पाद मेन्स के लिये:राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशनऔर इसके समक्ष चुनौतियाँ |
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (National Research Foundation- NRF) विधेयक को मंज़ूरी देकर देश में वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। NRF अनुसंधान एवं विकास निवेश में भारत के लगातार बने रहे अंतराल को दूर करने और उच्च शिक्षा संस्थानों के अंदर एक प्रबल अनुसंधान वातावरण को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखता है। यह पहल आशाजनक है, लेकिन इसके समक्ष निधि का उचित आवंटन सुनिश्चित करने, अंतःविषय साझेदारी को बढ़ावा देने और अंतर्राष्ट्रीय मानकों को बनाए रखने जैसी चुनौतियाँ भी मौजूद हैं।
राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (NRF)
- परिचय:
- NRF एक प्रस्तावित निकाय है जो विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (Science and Engineering Research Board of India- SERB) को प्रतिस्थापित करेगा और प्रभावशील ज्ञान सृजन एवं अंतरण के माध्यम से भारत के महत्त्वाकांक्षी विकास एजेंडे में तेज़ी लाने के लिये अंतःविषय अनुसंधान को उत्प्रेरित एवं मार्ग-निर्देशित करेगा।
- NRF के लक्ष्य:
- अंतःविषय अनुसंधान को बढ़ावा देना जो भारत की सबसे गंभीर विकास चुनौतियों को संबोधित कर सकेगा।
- अनुसंधान प्रयासों के दोहराव को न्यूनतम करना।
- नीति और व्यवहार में अनुसंधान के अंतरण को बढ़ावा देना।
- NRF की मुख्य बातें:
- NRF की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करेंगे और इसमें 10 प्रमुख निदेशालय शामिल होंगे, जो विज्ञान, कला, मानविकी, नवाचार और उद्यमिता जैसे विभिन्न क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
- NRF में एक 18 सदस्यीय बोर्ड होगा जिसमें प्रख्यात भारतीय एवं अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक, वरिष्ठ सरकारी अधिकारी और उद्योग जगत के नेतृत्वकर्त्ता शामिल होंगे।
- NRF एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत होगा और इसका एक स्वतंत्र सचिवालय होगा।
- NRF से अपेक्षाएँ:
- वर्ष 2030 तक अनुसंधान एवं विकास में भारत के निवेश को सकल घरेलू उत्पाद के 0.7% से बढ़ाकर 2% करना
- वैश्विक वैज्ञानिक प्रकाशनों में भारत की हिस्सेदारी को लगभग 5% से बढ़ाकर 7% करना
- विभिन्न विषयों और क्षेत्रों में प्रतिभाशाली शोधकर्त्ताओं के एक पूल का निर्माण करना
- भारत की विकास संबंधी चुनौतियों के लिये नवीन समाधान विकसित करना
- वैज्ञानिक ज्ञान को सामाजिक और आर्थिक लाभ में अंतरित करना
NRF की आवश्यकता क्यों है?
- घटता अनुसंधान निवेश:
- भारत के अनुसंधान एवं विकास व्यय और जीडीपी का अनुपात महज 0.7% है, जो अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में पर्याप्त कम है तथा वैश्विक औसत 1.8% से पर्याप्त नीचे है। अमेरिका (2.8%), चीन (2.1%), इज़राइल (4.3%) और दक्षिण अफ़्रीका (4.2%) जैसे देशों में यह अनुपात पर्याप्त उच्च है।
- निम्न अनुसंधान आउटपुट और प्रभाव:
- पेटेंट और प्रकाशनों की संख्या के मामले में भारत बहुत पीछे है।
- WIPO के अनुसार, चीन ने 1.538 मिलियन पेटेंट आवेदन फाइल किये (जिसमें केवल 10% अनिवासी चीनी नागरिक थे), अमेरिका ने 605,571 आवेदन फाइल किये, जबकि भारत ने मात्र 45,057 आवेदन फाइल किये (जिनमें से 70% से अधिक अनिवासी भारतीयों की ओर से थे)।
- पेटेंट और प्रकाशनों की संख्या के मामले में भारत बहुत पीछे है।
- सीमित अनुसंधान अवसर:
- अनुसंधान के लिये धन प्रायः उच्च-प्रतिष्ठित संस्थानों और अनुसंधानकर्त्ताओं तक सीमित रहता है और वे वंचित रह जाते हैं जो हाशिये पर स्थित क्षेत्रों में होते हैं।
- उदाहरण के लिये, डीएसटी अधिकारियों के अनुसार SERB से लगभग 65% निधि विभिन्न आईआईटी को जाता है और केवल 11% ही राज्य विश्वविद्यालयों को प्राप्त होता है।
- अनुसंधान के लिये धन प्रायः उच्च-प्रतिष्ठित संस्थानों और अनुसंधानकर्त्ताओं तक सीमित रहता है और वे वंचित रह जाते हैं जो हाशिये पर स्थित क्षेत्रों में होते हैं।
- अनुसंधान का खंडीकरण:
- भारत में अनुसंधान बड़े पैमाने पर विभिन्न संस्थानों द्वारा अलग-अलग आंतरिक स्तर पर किये जाते हैं, जिससे संसाधनों की बर्बादी एवं दोहराव की स्थिति बनती है।
- निजी क्षेत्र की कम भागीदारी:
- R&D व्यय का लगभग 56% सरकार की ओर से और 35% निजी क्षेत्र से प्राप्त होता है।
- इसके विपरीत, तकनीकी रूप से उन्नत देशों में निजी क्षेत्र अनुसंधान एवं विकास में अग्रणी भूमिका रखते हैं। उदाहरण के लिये इजराइल में निजी क्षेत्र का योगदान 88% तक है।
- R&D व्यय का लगभग 56% सरकार की ओर से और 35% निजी क्षेत्र से प्राप्त होता है।
- सामाजिक विज्ञान और मानविकी पर फोकस का अभाव:
- अधिकांश अनुसंधान निधि प्राकृतिक विज्ञान एवं इंजीनियरिंग क्षेत्र की ओर जाती है, जबकि सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी को प्रायः उपेक्षित किया जाता है।
NRF अंतर-विषयक और समस्या-समाधानकर्त्ता अनुसंधान को कैसे बढ़ावा देगा?
- मंच प्रदान करने के रूप में:
- NRF बहु-विषयक और बहु-संस्थागत सहयोगात्मक अनुसंधान के लिये एकीकृत मंच प्रदान करेगा जो उन जटिल चुनौतियों का समाधान कर सकता है जिनके लिये विभिन्न विषयों एवं क्षेत्रों की ओर से समाधान की आवश्यकता होती है।
- उदाहरण के लिये, सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति, बाल पोषण, वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन ऐसे कुछ क्षेत्र हैं जिनके लिये अंतःविषयक (inter-disciplinary और बहि-विषयक (trans-disciplinary) अनुसंधान की आवश्यकता है जो साक्ष्य संपन्न, संदर्भ के लिये प्रासंगिक, संसाधन के लिये इष्टतम, सांस्कृतिक रूप से अनुरूप और समता को बढ़ावा देने वाले समाधान प्रदान कर सकते हैं।
- NRF भारत के विकास के प्राथमिकता क्षेत्रों में कमीशन किये गए कार्यबल अनुसंधान और अन्वेषक द्वारा शुरू किये जाते सहयोगात्मक अनुसंधान, दोनों का समर्थन करेगा।
- NRF विभिन्न ज्ञान क्षेत्रों के युवा शोधकर्त्ताओं को समस्या समाधान अनुसंधान पर सहयोग करने के लिये आमंत्रित कर वैज्ञानिक करियर के आरंभ में ही बहु-विषयक (multi-disciplinary) अनुसंधान से संलग्न होने की मानसिकता भी तैयार करेगा।
- NRF बहु-विषयक और बहु-संस्थागत सहयोगात्मक अनुसंधान के लिये एकीकृत मंच प्रदान करेगा जो उन जटिल चुनौतियों का समाधान कर सकता है जिनके लिये विभिन्न विषयों एवं क्षेत्रों की ओर से समाधान की आवश्यकता होती है।
- सहकार्यता को बढ़ावा:
- NRF वैज्ञानिक उद्यम में निजी क्षेत्र, राज्य सरकारों, राज्य स्तरीय संस्थानों और नागरिक समाज संगठनों जैसे विभिन्न हितधारकों को शामिल करने का प्रयास करेगा।
- निजी क्षेत्र को कॉर्पोरेट और परोपकारी फंडिंग को बढ़ावा देने के लिये (जो सरकार के स्वयं के प्रतिबद्ध योगदान को बढ़ा सकता है) और नए विचारों एवं नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिये प्रमुख भागीदार के रूप में देखा जाता है।
- स्थानीय स्तर पर प्रासंगिक वैज्ञानिक अनुसंधान के संचालन के लिये भारत की क्षमता बढ़ाने हेतु राज्य सरकारें और राज्यस्तरीय संस्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
- अनुसंधान एजेंडे के लिये लोगों की प्रासंगिक प्राथमिकताओं की पहचान करने, सहभागी अनुसंधान में संलग्न होने, कार्यान्वयन और इसके प्रभाव की निगरानी एवं मूल्यांकन करने के साथ-साथ सामुदायिक गतिशीलता के माध्यम से कार्यान्वयन का समर्थन करने के लिये सामुदायिक भागीदारी आवश्यक है ।
- तभी वैज्ञानिक उद्यम ‘जन आंदोलन’ में परिणत हो सकता है।
- NRF वैज्ञानिक उद्यम में निजी क्षेत्र, राज्य सरकारों, राज्य स्तरीय संस्थानों और नागरिक समाज संगठनों जैसे विभिन्न हितधारकों को शामिल करने का प्रयास करेगा।
NRF के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ
- परामर्श और कैरियर विकास सहायता का अभाव:
- संस्थानों में औपचारिक या अनौपचारिक परामर्श और कैरियर विकास सहायता का अभाव।
- इससे शोधकर्त्ताओं के लिये अपना कौशल विकसित करना और अपने करियर को आगे बढ़ाना कठिन हो सकता है।
- संस्थानों में औपचारिक या अनौपचारिक परामर्श और कैरियर विकास सहायता का अभाव।
- अनुसंधान प्रबंधन के लिये अपर्याप्त समर्थन:
- शैक्षणिक नेतृत्व, प्रयोगशाला प्रबंधन, डेटा प्रबंधन, अनुसंधान कदाचार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिये अपर्याप्त समर्थन।
- इससे खराब शोध गुणवत्ता, डेटा उल्लंघन और नैतिक उल्लंघन जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- शैक्षणिक नेतृत्व, प्रयोगशाला प्रबंधन, डेटा प्रबंधन, अनुसंधान कदाचार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिये अपर्याप्त समर्थन।
- आवधिक मूल्यांकन की परिवर्तनीय गुणवत्ता:
- आवधिक मूल्यांकन की गुणवत्ता परिवर्तनशील होती है, जो प्रायः पुरस्कार या आलोचना की प्रदर्शन-प्रेरित प्रणाली से रहित होती है।
- इससे आत्मसंतुष्टि पैदा हो सकती है और शोधकर्त्ता जोखिम लेने के प्रति हतोत्साहित हो सकते हैं।
- आवधिक मूल्यांकन की गुणवत्ता परिवर्तनशील होती है, जो प्रायः पुरस्कार या आलोचना की प्रदर्शन-प्रेरित प्रणाली से रहित होती है।
- विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व:
- भारत में कुल नामांकन में महिला नामांकन का प्रतिशत वर्ष 2014-15 में 45% से बढ़कर वर्ष 2020-21 में लगभग 49% हो गया, लेकिन विज्ञान विभागों में संकाय पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व अभी भी कम है।
- यह प्रतिभाशाली शोधकर्त्ताओं के समूह को सीमित कर सकता है और विज्ञान में महिलाओं के लिये प्रतिकूल वातावरण का निर्माण कर सकता है।
- न्यायसंगत धन वितरण:
- NRF के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक यह सुनिश्चित करना है कि विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में स्थित संस्थानों को समान रूप से वित्तपोषण प्राप्त हो।
- NRF को पैटर्न को तोड़ने के तरीके खोजने होंगे और यह सुनिश्चित करना होगा कि देश के सभी हिस्सों में संस्थानों को फंडिंग उपलब्ध हो।
- अंतःविषयक सहयोग को प्रोत्साहित करना:
- NRF के सामने एक और चुनौती अंतःविषय सहयोग को प्रोत्साहित करने की है।
- पूर्व में भारत में अनुसंधान अलग-अलग किये जाते थे जहाँ विभिन्न विषय एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप से कार्य करते थे।
- NRF को विभिन्न विषयों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के तरीके खोजने की आवश्यकता होगी, ताकि उन जटिल समस्याओं को संबोधित किया जा सके जिनके लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
- अन्य चुनौतियाँ:
- राजनीतिक हस्तक्षेप:
- यह जोखिम मौजूद है कि NRF राजनीतिक हस्तक्षेप का शिकार होगा।
- NRF को यह सुनिश्चित करने के लिये स्पष्ट दिशानिर्देश और प्रक्रियाएँ स्थापित करने की आवश्यकता होगी कि उसके निर्णय राजनीतिक विचारों के बजाय योग्यता पर आधारित हों।
- जन जागरूकता का अभाव:
- भारत में अनुसंधान के महत्त्व के बारे में जन जागरूकता की कमी है।
- NRF को अपने कार्य हेतु समर्थन जुटाने के लिये अनुसंधान के लाभों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता होगी।
- राजनीतिक हस्तक्षेप:
आगे की राह
- अनुसंधान एवं विकास व्यय में वृद्धि करना:
- चूँकि भारत का अनुसंधान एवं विकास व्यय कम है, NRF का लक्ष्य होना चाहिये कि अनुसंधान और नवाचार में सार्वजनिक एवं निजी निवेश बढ़ाने का प्रयास करे तथा मौजूदा संसाधनों एवं अवसंरचना का कुशलतापूर्वक लाभ उठाए।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करना:
- NRF का लक्ष्य भारत के अनुसंधान उत्पादन की गुणवत्ता एवं प्रभाव को बढ़ाना और वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय में देश की रैंकिंग एवं दृश्यता में सुधार लाना होना चाहिये।
- इसे भारत और विदेश, दोनों में शोधकर्त्ताओं की गतिशीलता और आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करनी चाहिये तथा दुनिया भर से प्रतिभाओं को आकर्षित करना चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन भारत के विकास के प्राथमिकता क्षेत्रों को संबोधित करने के लिये बहु-संस्थागत, अंतःविषयक अनुसंधान और वित्तपोषण को बढ़ावा देगा।’’ टिप्पणी कीजिये।