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डेली न्यूज़

  • 05 Feb, 2024
  • 69 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

अंतरिम बजट 2024-2025

प्रिलिम्स के लिये:

पूंजीगत व्यय, राजकोषीय घाटा, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर, लखपति दीदी, नमो भारत, नैनो-DAP, सर्वाइकल कैंसर टीकाकरण, रूफटॉप सोलराइज़ेशन, PM- स्वनिधि, मुद्रा योजना, फसल बीमा योजना, कोयला गैसीकरण, आयुष्मान भारत, तिलहन, बहुआयामी निर्धनता, विभिन्न क्षेत्रों में सरकारी निवेश के वितरण का क्रम

मेन्स के लिये:

अंतरिम बजट 2024-2025 में प्रमुख विकास योजनाएँ

स्रोत: पी.आई.बी. 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संसद में अंतरिम बजट 2024-25 प्रस्तुत किया गया। इसमें सर्वांगीण, सर्वव्यापी तथा सर्व-समावेशी विकास के साथ वर्ष 2047 तक 'विकसित भारत' की परिकल्पना की गई है।

अंतरिम बजट क्या है?

  • अंतरिम बजट एक ऐसी सरकार द्वारा प्रस्तुत किया जाता है जो संक्रमण काल से गुज़र रही है या आम चुनाव से पूर्व अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में है।
  • अंतरिम बजट का उद्देश्य नई सरकार के कार्यभार संभालने के बाद पूर्ण बजट पेश करने तक सरकारी व्यय तथा आवश्यक सेवाओं की निरंतरता सुनिश्चित करना है।

अंतरिम बजट और लेखानुदान के बीच क्या अंतर है?

विशेषता

अंतरिम बजट

लेखानुदान

सांविधानिक उपबंध

अनुच्छेद 112

अनुच्छेद 116

उद्देश्य

आम चुनाव से पूर्व सरकार द्वारा प्रस्तुत किया गया वित्तीय विवरण।

बजट स्वीकृत होने तक सीमित अवधि के लिये आवश्यक सरकारी व्ययों की पूर्ति करना।

व्यय की अवधि

इसमें अमूमन नई सरकार स्थापित होने तथा पूर्ण बजट पेश होने तक कुछ महीने की अवधि शामिल होती है।

अनुदान की राशि सामान्यतः पूरे वर्ष के लिये कुल अनुमानित व्यय के छठे हिस्से के बराबर दो महीने के लिये प्रदान की जाती है।

नीति परिवर्तन

इसके अंतर्गत कर व्यवस्था में बदलाव का प्रस्ताव दे सकते हैं।

किसी भी परिस्थिति में कर व्यवस्था में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।

शासन व्यवस्था पर प्रभाव

दो सरकारों के बीच संक्रमण काल के दौरान शासन में निरंतरता प्रदान करता है।

नियमित बजट स्वीकृत होने तक सरकार और सार्वजनिक सेवाओं का सुचारू कामकाज़ सुनिश्चित करता है।

अंतरिम बजट 2024-25 से संबंधित प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

  • पूंजीगत व्यय: वर्ष 2024-2025 के लिये पूंजीगत व्यय में 11.1% की वृद्धि की घोषणा की गई।
    • पूंजीगत व्यय को बढ़ाकर 11,11,111 करोड़ रुपए किया गया जो सकल घरेलू उत्पाद का 3.4% होगा।
  • आर्थिक विकास अनुमान: वित्त वर्ष 2023-24 के लिये वास्तविक GDP वृद्धि दर 7.3% रहने का अनुमान है, जो RBI के संशोधित विकास अनुमान के अनुरूप है।
  • राजस्व तथा व्यय अनुमान (2024-25):
    • कुल प्राप्तियाँ: ऋण ग्रहण के अतिरिक्त 30.80 लाख करोड़ रुपए की कुल प्राप्तियाँ होने का अनुमान है।
    • कुल व्यय: अनुमानित रूप से 47.66 लाख करोड़ रुपए का कुल व्यय।
    • कर प्राप्तियाँ: अनुमानित रूप से 26.02 लाख करोड़ रुपए की कुल कर प्राप्तियाँ।
  • GST संग्रह: GST संग्रह दिसंबर 2023 में ₹1.65 लाख करोड़ रहा है जो सातवीं बार सकल GST राजस्‍व 1.6 लाख करोड़ रुपए के आँकड़ें के पार चला गया है।
  • राजकोषीय घाटा तथा बाज़ार ऋण-ग्रहण: राजकोषीय घाटा वर्ष 2024-25 में GDP का 5.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है जो वर्ष 2025-26 तक इसे 4.5% से कम करने (बजट 2021-22 में घोषित) के लक्ष्य के अनुरूप है ।
    • वर्ष 2024-25 के दौरान दिनांकित प्रतिभूतियों (Dated Securities) के माध्यम से सकल तथा निवल बाज़ार ऋण-ग्रहण क्रमशः 14.13 तथा 11.75 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान है।
  • करारोपण: अंतरिम बजट में आयात शुल्क सहित प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों की मौजूदा दरों को बनाए रखा गया है।
    • कॉर्पोरेट करों के लिये: मौजूदा घरेलू कंपनियों हेतु 22% और कुछ नई विनिर्माण कंपनियों के लिये 15%।
    • नई कर व्यवस्था के तहत 7 लाख रुपए तक की आय वाले करदाताओं के लिये कोई कर देनदारी नहीं।
    • स्टार्ट-अप और निवेश के लिये कुछ कर लाभ 31 मार्च, 2025 तक एक वर्ष हेतु बढ़ाए गए।
  • प्राथमिकताएँ: गरीबों, महिलाओं, युवाओं और किसानों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • गरीब: 25 करोड़ लोगों को बहुआयामी गरीबी से बाहर निकालने का सफल अभियान।
      • PM-स्वनिधि के तहत 78 लाख स्ट्रीट वेंडर्स को क्रेडिट सहायता प्रदान की गई।
    • महिला: महिला उद्यमियों को 30 करोड़ मुद्रा योजना ऋण का वितरण।
      • STEM पाठ्यक्रमों में 43% महिला नामांकन।
      • 83 लाख स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से 1 करोड़ महिलाओं को सहायता, 'लखपति दीदियों' को बढ़ावा देना।
      • एक दशक में उच्च शिक्षा में महिला नामांकन में 28% की वृद्धि।
    • युवा: कौशल भारत मिशन के तहत 1.4 करोड़ युवाओं को प्रशिक्षण।
    • किसान: प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) के तहत 11.8 करोड़ किसानों को सीधी वित्तीय सहायता प्रदान की गई।
      • फसल बीमा योजना के माध्यम से 4 करोड़ किसानों तक फसल बीमा पहुँचाया गया।
      • सुव्यवस्थित कृषि व्यापार के लिये राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (eNAM) के तहत 1,361 मंडियों का एकीकरण।
  • प्रमुख विकास योजनाएँ:
    • आधारभूत संरचना:
      • रेलवे: तीन प्रमुख आर्थिक रेलवे कॉरिडोर कार्यक्रम लागू किये जाएंगे- ऊर्जा, खनिज और सीमेंट कॉरिडोर, बंदरगाह कनेक्टिविटी कॉरिडोर तथा उच्च यातायात घनत्व कॉरिडोर।
        • बेहतर सुरक्षा, सुविधा और यात्री सुविधा के लिये 40 हज़ार सामान्य रेल डिब्बों को वंदे भारत मानकों के अनुरूप परिवर्तित किया जाएगा।
      • विमानन: उड़ान योजना के तहत मौजूदा हवाई अड्डों का विस्तार और नए हवाई अड्डों का व्यापक विकास।
      • शहरी परिवहन: मेट्रो रेल और नमो भारत के माध्यम से शहरी परिवर्तन को बढ़ावा देना।
    • स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र:
      • पवन ऊर्जा के लिये व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण
        • यह 1 गीगावाट की प्रारंभिक क्षमता के लक्ष्य के साथ अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता का दोहन करने में मदद करेगा।
      • वर्ष 2030 तक 100 मिलियन टन की कोयला गैसीकरण एवं द्रवीकरण क्षमता की स्थापना।
      • CNG, PNG और संपीड़ित बायोगैस का चरणबद्ध अनिवार्य सम्मिश्रण।
      • बायोमास एकत्रीकरण मशीनरी की खरीद के लिये वित्तीय सहायता
      • रूफटॉप सोलर: 1 करोड़ परिवार प्रति माह 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली प्राप्त करने में सक्षम होंगे।
      • विनिर्माण और चार्जिंग का समर्थन करके ई-वाहन पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करना।
      • पर्यावरण अनुकूल विकल्पों का समर्थन करने के लिये बायोमैन्युफैक्चरिंग और बायो-फाउंड्री की नई योजना शुरू की जाएगी।
    • आवास क्षेत्र: सरकार की योजना ग्रामीण क्षेत्रों में 30 मिलियन किफायती घरों के निर्माण पर सब्सिडी देने की है।
      • मध्यम वर्ग को अपना घर खरीदने/बनाने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु मध्यम वर्ग के लिये आवास योजना शुरू की जाएगी।
    • स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र: लड़कियों (9-14 वर्ष) के लिये सर्वाइकल कैंसर टीकाकरण को प्रोत्साहित करना।
    • कृषि क्षेत्र: सभी कृषि-जलवायु क्षेत्रों में विभिन्न फसलों के लिये 'नैनो DAP' के उपयोग को प्रोत्साहित करना।
      • डेयरी किसानों को समर्थन देने और खुरपका एवं मुंहपका रोग से निपटने के लिये नीतियाँ बनाना।
      • तिलहन में आत्मनिर्भरता के लिये रणनीति बनाना, अनुसंधान, खरीद, मूल्य संवर्धन और फसल बीमा को कवर करना।
        • नैनो-DAP (डाई-अमोनियम फॉस्फेट) भारतीय किसान उर्वरक सहकारी लिमिटेड (Indian Farmers Fertilizer Cooperative Limited - IFFCO) द्वारा विकसित एक नैनो तकनीक आधारित कृषि इनपुट है। यह खड़ी फसलों में नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी को पूर्ण करने में मदद करता है।
    • मत्स्य पालन क्षेत्र: मछुआरों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये एक नया विभाग, 'मत्स्य सम्पदा' की स्थापना।
    • राज्यों के कैपेक्स के लिये: राज्यों को पूंजीगत व्यय हेतु पचास वर्ष की ब्याज मुक्त ऋण योजना जारी रखने की घोषणा की गई।
      • राज्य के नेतृत्व वाले सुधारों का समर्थन करने के लिये पचास वर्ष के ब्याज मुक्त ऋण हेतु 75,000 करोड़ रुपए के प्रावधान के साथ 1.3 लाख करोड़ रुपए का कुल परिव्यय।
      • पूर्वी क्षेत्र को भारत के विकास का एक शक्तिशाली चालक बनाने के लिये विशेष ध्यान दिया जाएगा।
    • अन्य: 
      • सूर्योदय डोमेन में अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिये पचास साल के ब्याज मुक्त ऋण के साथ 1 लाख करोड़ रुपए के कोष की स्थापना।
        • साथ ही, अनुसंधान और नवाचार में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा गया है।
      • तीव्र जनसंख्या वृद्धि और जनसांख्यिकीय बदलाव के लिये सरकार एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति बनाएगी।
        • समिति 'विकसित भारत' के लक्ष्य के अनुरूप व्यापक सिफारिशें प्रदान करेगी।

रुपया कहाँ से आता है (Rupee Comes From):

रुपया कहाँ जाता है (Rupee Goes To):

 

भारत में बजट से संबंधित निधि क्या हैं?

  • भारत की संचित निधि: संविधान का अनुच्छेद 266 (1) केंद्र सरकार द्वारा प्राप्त सभी राजस्व, ऋण और ऋण पुनर्भुगतान को एक एकल निधि में समेकित करता है जिसे भारत की संचित निधि के रूप में जाना जाता है। 
    • निकासी के लिये संसद की अनुमति की आवश्यकता होती है (न्यायाधीशों के वेतन जैसे आरोपित व्यय को छोड़कर)।
  • भारत का लोक लेखा: संविधान के अनुच्छेद 266(2) के अनुसार भारत सरकार द्वारा या उसकी ओर से प्राप्त सभी अन्य लोक धनराशियाँ भारत के लोक लेखों में जमा की जाती हैं।
    • सरकार धन को इधर से उधर स्थानांतरित करने वाले बैंकर के समान कार्य करती है इसलिये संसद की अनुमति आवश्यक नहीं है।
  • भारत की आकस्मिक निधि: इसे भारतीय आकस्मिकता निधि अधिनियम, 1950 के तहत स्थापित किया गया है और अनुच्छेद 267(1) के अनुसार अग्रदाय के रूप में कार्य करती  है। इस निधि को भारत की आकस्मिक निधि कहा जाता है।
    • यह वित्तीय वर्ष के दौरान अप्रत्याशित खर्चों के लिये सरकार को अग्रिम राशि की पेशकश करने के उद्देश्य से कार्य करती है, जो संसद द्वारा प्राधिकरण के लिये लंबित है।
    • आकस्मिक निधि से निकाली गई धनराशि को अनुदान की अनुपूरक मांगों के माध्यम से संसदीय अनुमोदन पर पुनः जमा कर दिया जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. "लेखानुमोदन" और "अंतरिम बजट" में क्या अंतर है? (2011)  

  1.  स्थायी सरकार लेखानुमोदन के प्रावधान उपयोग करती है, जबकि कार्यवाहक सरकार "अंतरिम बजट" के प्रावधान का प्रयोग करती है।  
  2.  लेखानुमोदन सरकार के बजट के व्यय पक्ष मात्र से संबद्ध होता है, जबकि अंतरिम बजट में व्यय तथा अवती दोनों सम्मिलित होते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो  1 और न ही 2  

उत्तर: (b)  


प्रश्न. जब वार्षिक केंद्रीय बजट लोकसभा द्वारा पारित नहीं किया जाता है, तो (2011)

(a) बजट को संशोधित कर पुनः प्रस्तुत किया जाता है।
(b) बजट को सुझावों के लिये राज्यसभा में भेजा जाता है।
(c) केंद्रीय वित्त मंत्री को इस्तीफा देने के लिये कहा गया है।
(d) प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद का इस्तीफा सौंपता है।

उत्तर: (d)


प्रश्न. वित्त मंत्री संसद में बजट प्रस्तुत करते हुए उसके साथ अन्य प्रलेख भी प्रस्तुत करते हैं जिनमें वृहद आर्थिक रूपरेखा विवरण (The Macro Economic Framework Statement) भी सम्मिलित रहता है। यह पूर्वोक्त प्रलेख निम्न आदेशन के कारण प्रस्तुत किया जाता है: (2020)

(a) चिरकालिक संसदीय परंपरा के कारण
(b) भारत के संविधान के अनुच्छेद 112 तथा अनुच्छेद 110 (1) के कारण
(c) भारत के संविधान के अनुच्छेद 113 के कारण
(d) राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम, 2003 के प्रावधानों के कारण

उत्तर : (d) 


प्रश्न. संघ की सरकार के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. राजस्व विभाग, संसद में पेश किये जाने वाले केंद्रीय बजट की तैयारी के लिये उत्तरदायी है।
  2. भारत की संसद की प्राधिकरण के बिना कोई धन भारत की संचित निधि से निकाला नहीं जा सकता।
  3. लोक लेखा से किये जाने वाले सभी संवितरणों के लिये भी भारत की संसद के प्राधिकरण की आवश्यकता होती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/कौन सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित मे से कौन-सी विधियाँ भारत के लोक वित्त पर संसदीय नियंत्रण रखने के काम आती हैं? (2012)

  1. संसद के सम्मुख वार्षिक वित्तीय विवरण का प्रस्तुत किया जाना
  2.  विनियोग विधेयक के पारित होने के बाद ही भारत की संचित निधि से मुद्रा निकाल पाना
  3.  अनुपूरक अनुदानों तथा लेखानुदान का प्रावधान
  4.  संसदीय बजट कार्यालय द्वारा समष्टिगत आर्थिक पूर्वानुमानों तथा व्यय हेतु सरकार के कार्यक्रम का एक नियतकालिक अथवा कम-से-कम मध्यवर्षीय पुनरावलोकन
  5.  संसद में वित्त विधेयक को प्रस्तुत किया जाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 3 और 5
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (a)


प्रश्न. संसद में केंद्रीय बजट की तैयारी और प्रस्तुति के लिये निम्नलिखित में से कौन ज़िम्मेदार है?(2010)

(a) राजस्व विभाग
(b) आर्थिक मामलों का विभाग
(c) वित्तीय सेवा विभाग
(d) व्यय विभाग

उत्तर: (b)


प्रश्न. साल दर साल लगातार घाटे का बजट रहा है। घाटे को कम करने के लिये सरकार द्वारा निम्नलिखित में से कौन-सी कार्रवाई/कार्रवाईयाँ की जा सकती है/हैं? (2016)

  1. राजस्व व्यय को घटाना
  2. नई कल्याणकारी योजनाओं को प्रारंभ करना
  3. सहायिकी (सब्सिडी) को युक्ति बनाना
  4. आयात-शुल्क कम करना

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1और 3 
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. पूंजी बजट और राजस्व बजट के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिये। इन दोनों बजटों के संघटकों को समझाइये। (2021)

प्रश्न. उदारीकरण के बाद की अवधि के दौरान बजट बनाने के संदर्भ में सार्वजनिक व्यय प्रबंधन भारत सरकार के लिये एक चुनौती है। स्पष्ट कीजिये। (2019)

प्रश्न. भारत के 14वें वित्त आयोग की संस्तुतियों ने राज्यों को अपनी राजकोषीय स्थिति सुधारने में कैसे सक्षम किया है? (2021)

प्रश्न. वित्तीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम, 2003 को प्रारंभ करने के क्या कारण थे? उसके  प्रावधानों और उनकी प्रभाविता का समालोचनात्मक विवेचन कीजिये। (2013)


आंतरिक सुरक्षा

राष्ट्रीय आतंकवाद डेटा संलयन और विश्लेषण केंद्र

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (National Investigation Agency - NIA), राष्ट्रीय आतंकवाद डेटा संलयन और विश्लेषण केंद्र (National Terrorism Data Fusion & Analysis Centre - NTDFAC), अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और प्रणाली (CCTNS)

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय आतंकवाद डेटा संलयन और विश्लेषण केंद्र, आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौतियाँ पैदा करने में बाहरी राज्य तथा गैर-राज्य अभिकर्त्ता की भूमिका।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (National Investigation Agency - NIA) ने राष्ट्रीय आतंकवाद डेटा संलयन और विश्लेषण केंद्र (National Terrorism Data Fusion & Analysis Centre - NTDFAC) विकसित किया है जो सरकार को विभिन्न स्रोतों से आतंकवादियों तथा उनके सहयोगियों के बारे में जानकारी एकत्र एवं संकलित करने का काम करता है।

  • NIA ने पहली बार इंडियन मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा के साथ-साथ खालिस्तानी आतंकवादी समूहों सहित सभी आतंकवादियों का विवरण एकत्र किया है।

राष्ट्रीय आतंकवाद डेटा संलयन एवं विश्लेषण केंद्र (NTDFAC) क्या है?

  • परिचय:
    • NTDFAC को अमेरिका के वैश्विक आतंकवाद डेटाबेस (Global Terrorism Database - GTD) की तर्ज़ पर तैयार किया गया है।
      • GTD का प्रबंधन संयुक्त राज्य अमेरिका में मैरीलैंड विश्वविद्यालय में स्थित नेशनल कंसोर्टियम फॉर द स्टडी ऑफ टेररिज़्म एंड रिस्पॉन्स टू टेररिज़्म (START) द्वारा किया जाता है।
      •  GTD एक सार्वजनिक रूप से सुलभ डेटाबेस है जो वैश्विक स्तर पर आतंकवादी घटनाओं पर डेटा एकत्रित और विश्लेषण करता है। यह प्रत्येक घटना के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत जानकारी प्रदान करता है, जिसमें तारीख, स्थान, इस्तेमाल किये गए हथियार, अपनाई गई रणनीति, लक्ष्य और हताहतों की संख्या शामिल है।
    • यह आतंकवाद तथा देश में सक्रिय आतंकवादियों से संबंधित जानकारी के लिये एक केंद्रीकृत डेटाबेस और विश्लेषण केंद्र के रूप में काम करेगा।
      • वर्ष 2023 में गृह मंत्रालय ने सभी राज्य पुलिस बलों और आतंकवाद रोधी एजेंसियों को नए आतंकवादी समूहों के गठन को रोकने के लिये एक दृष्टिकोण अपनाने के लिये कहा था।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • व्यापक डेटाबेस: इसमें केस हिस्ट्री, फिंगरप्रिंट, वीडियो, तस्वीरें और सोशल मीडिया प्रोफाइल शामिल हैं, जो आतंकवादी गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों का व्यापक अवलोकन प्रदान करते हैं।
    • स्वचालित फिंगरप्रिंट पहचान प्रणाली: NTDFAC में राष्ट्रीय स्वचालित फिंगरप्रिंट पहचान प्रणाली (National Automated Fingerprint Identification System - NAFIS) शामिल है जिसमें 92 लाख से अधिक फिंगरप्रिंट रिकॉर्ड हैं।
      • यह फिंगरप्रिंट डेटा के आधार पर व्यक्तियों की त्वरित और सटीक पहचान में सहायता करता है।
    • चेहरा पहचानयुक्त प्रणाली: यह चेहरा पहचान प्रणाली (face recognition system) से सुसज्जित है, जो CCTV फुटेज से संदिग्धों की तस्वीरों को स्कैन करने में सक्षम बनाता है, साथ ही यह तकनीक आतंकवादी गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों की पहचान करने और उन पर नज़र रखने में मदद करती है।
    • राज्य पुलिस बलों के लिये सहायक: NTDFAC न केवल NIA अधिकारियों की सहायता करता है बल्कि संदिग्धों के विवरण की पहचान करने में राज्य पुलिस बलों की भी सहायता करता है।
      • राज्य पुलिस बल अपने अधिकार क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादियों के बारे में जानकारी एकत्रित करने के लिये केंद्रीकृत सर्वर का प्रयोग कर सकते हैं।

राष्ट्रीय स्वचालित फ़िंगरप्रिंट पहचान प्रणाली ( National Automated Fingerprint Identification System- NAFIS) क्या है?

  • परिचय:
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau - NCRB) द्वारा संकल्पित और प्रबंधित, यह अपराध तथा आपराधिक-संबंधित फिंगरप्रिंट का एक देशव्यापी खोज योग्य डेटाबेस है।
    • वेब आधारित यह एप्लिकेशन सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से फिंगरप्रिंट डेटा को समेकित करके एक केंद्रीय सूचना भंडार के रूप में कार्य करता है।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • वेब-आधारित अनुप्रयोग (Application): यह प्रणाली एक वेब-आधारित एप्लिकेशन के रूप में काम करती है जो कानून प्रवर्तन एजेंसियों को 24x7 आधार पर वास्तविक समय में फिंगरप्रिंट डेटा तक पहुँचने और प्रबंधित करने की अनुमति देती है।
    • विशिष्ट पहचानकर्त्ता: NAFIS किसी अपराध के लिये गिरफ्तार किये गए प्रत्येक व्यक्ति को एक अद्वितीय 10-अंकीय राष्ट्रीय फ़िंगरप्रिंट नंबर (NFN) प्रदान करता है।
      • इस विशिष्ट आईडी का उपयोग व्यक्ति के जीवनकाल तक किया जा सकता है और विभिन्न FIR के तहत दर्ज विभिन्न अपराधों को एक ही NFN से जोड़ा जाएगा।
    • CCTNS के साथ एकीकरण: NAFIS बैकएंड पर अपराध तथा अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क एवं प्रणाली (CCTNS) डेटाबेस से जुड़ा है, जो CCNTS में प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति के लिये एक विशिष्ट पहचानकर्त्ता प्रदान करता है।
    • रीयल-टाइम डेटा अपलोड और पुनःप्राप्ति: यह प्रणाली कानून प्रवर्तन एजेंसियों को वास्तविक समय में फिंगरप्रिंट डेटा अपलोड करने, ट्रेस करने और पुनर्प्राप्त करने में सक्षम बनाती है, जिससे आपराधिक पहचान प्रक्रियाओं की दक्षता बढ़ जाती है।
    • प्रणालियों के लिये प्रतिस्थापन: NAFIS भारत में स्वचालित फ़िंगरप्रिंट पहचान प्रणालियों की शृंखला में नवीनतम पुनरावृत्ति है जिसे पुराणी प्रणाली FACTS 5.0 के स्थान पर लाया गया है

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) क्या है?

  • परिचय:
    • NIA भारत सरकार की एक संघीय एजेंसी है जो आतंकवाद, उग्रवाद और अन्य राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों से संबंधित अपराधों की जाँच एवं मुकदमा चलाने हेतु ज़िम्मेदार है। इसमें शामिल है:
      • विदेशी राज्यों से मैत्रीपूर्ण संबंध।
      • परमाणु एवं नाभिकीय सुविधाओं के विरुद्ध।
      • हथियारों, नशीली दवाओं और नकली भारतीय मुद्रा की तस्करी तथा सीमा पार से घुसपैठ।
      • संयुक्त राष्ट्र, इसकी एजेंसियों और अन्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त संस्थानों की अंतर्राष्ट्रीय संधियों, समझौतों, सम्मेलनों तथा प्रस्तावों को लागू करने के लिये पारित वैधानिक कानूनों का उल्लंघन।
    • इसका गठन राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) अधिनियम, 2008 के तहत किया गया था।
    • एजेंसी को गृह मंत्रालय की लिखित उद्घोषणा के तहत राज्यों की विशेष अनुमति के बिना राज्यों में आतंकवाद से संबंधित अपराधों की जाँच से निपटने का अधिकार है।
    • मुख्यालय: नई दिल्ली
  • स्थापना:
  • अधिकार क्षेत्र:
    • जिस कानून के तहत एजेंसी काम करती है वह पूरे भारत में लागू होता है और देश के बाहर भारतीय नागरिकों पर भी लागू होता है।
    • सरकार की सेवा में कार्यरत व्यक्ति, चाहे वे कहीं भी तैनात हों।
    • भारत में पंजीकृत जहाज़ों और विमानों पर सवार व्यक्ति चाहे वे कहीं भी हों।
    • वे व्यक्ति जो भारतीय नागरिक के खिलाफ भारत से बाहर कोई अनुसूचित अपराध करते हैं या भारत के हित को प्रभावित करते हैं।

सूचीबद्ध अपराध क्या होते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

मेन्स:

प्रश्न. आतंकवाद का अभिशाप राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये एक गंभीर चुनौती है। इस बढ़ते खतरे को रोकने के लिये आप क्या उपाय सुझाएंगे? आतंकवादी फंडिंग के प्रमुख स्रोत क्या हैं? (2017) 

प्रश्न. भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाह्य राज्य और गैर-राज्य कारकों द्वारा प्रस्तुत बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन संकटों का मुकाबला करनेके लिये आवश्यक उपायों की भी चर्चा कीजिये।(2021)


कृषि

इकोनॉमिक्स ऑफ फूड सिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन

प्रिलिम्स के लिये:

खाद्य और कृषि संगठन (FAO), सकल घरेलू उत्पाद (GDP), कुपोषण

मेन्स के लिये:

इकोनॉमिक्स ऑफ फूड सिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खाद्य प्रणाली अर्थशास्त्र आयोग (FSEC) ने "इकोनॉमिक्स ऑफ फूड सिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन" शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसके अनुसार प्रति वर्ष 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अनुमानित कुल लागत के साथ मौजूदा खाद्य प्रणालियों के स्थायी परिवर्तन की तत्काल आवश्यकता है।

  • खाद्य प्रणाली अर्थशास्त्र आयोग (FSEC) एक निजी संघ है जिसमें कई राष्ट्र तथा शैक्षणिक क्षेत्रों के वैज्ञानिक शामिल हैं और इसका उद्देश्य खाद्य प्रणाली सुरक्षा की चुनौतियों की पहचान करना एवं उन्हें समाधान करने के लिये आवश्यक नीतिगत परिवर्तन करना है।

खाद्य प्रणालियाँ क्या हैं?

  • खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation- FAO) के अनुसार खाद्य प्रणालियों का आशय इसमें शामिल कारकों की पूरी शृंखला से है:
    • कृषि, वानिकी अथवा मत्स्य पालन तथा व्यापक आर्थिक, सामाजिक एवं प्राकृतिक वातावरण के कुछ हिस्सों से उत्पन्न होने वाले खाद्य उत्पादों का उत्पादन, एकत्रीकरण, प्रसंस्करण, वितरण, खपत तथा निपटान प्रक्रिया।

रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • वर्तमान लागत तथा प्रभाव:
    • विश्व स्तर पर वर्तमान खाद्य प्रणालियों की लागत विकास में उनके योगदान की तुलना में काफी अधिक है। प्रति वर्ष $500 बिलियन की अनुमानित कुल लागत के साथ मौजूदा खाद्य प्रणालियों में स्थायी परिवर्तन की तत्काल आवश्यकता है।
      • यह लागत कुल वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का केवल 0.2-0.4% है तथा इससे होने वाले मल्टी-ट्रिलियन डॉलर के लाभ की तुलना में यह लागत बहुत कम है।
  • वर्तमान खाद्य प्रणाली चुनौतियाँ:
    • वर्तमान वैश्विक खाद्य प्रणाली की विशेषता छिपी हुई पर्यावरण, स्वास्थ्य तथा सामाजिक लागत है जो वर्ष 2020 में 10 ट्रिलियन अमरीकी डालर से अधिक थी।
    • यदि वर्तमान स्थिति बनी रही तो वर्ष 2050 तक 640 मिलियन से अधिक व्यक्ति (121 मिलियन बच्चों सहित) भूख तथा कुपोषण का शिकार हो सकते हैं।
  • वैश्विक ग्रीनहाउस गैस को बढ़ावा देने वाली खाद्य प्रणाली:
    • मौजूदा परिदृश्य के अंतर्गत कुल वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में खाद्य प्रणालियों का योगदान एक तिहाई है जिसके परिणामस्वरूप सदी के अंत तक पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में वैश्विक तापमान में 2.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी।
    • खाद्य उत्पादन तेज़ी से जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील हो जाएगा तथा खराब मौसम घटनाओं की संभावना भी बढ़ जाएगी।
  • वर्ष 2050 तक की खाद्य प्रणाली के संबंध में अनुमान:
    • इस रिपोर्ट में वर्ष 2050 तक खाद्य प्रणाली को लेकर दो अनुमानों की तुलना की गई है जिसमें वर्तमान रुझान तथा खाद्य प्रणाली परिवर्तन शामिल है।
      • वर्तमान रुझान के अनुसार वर्ष 2050 तक निरंतर खाद्य असुरक्षा, मोटापा संबंधी समस्याओं में वृद्धि तथा नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव की काफी संभावना है
      • खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन अर्थव्यवस्थाओं में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है तथा स्वास्थ्य एवं जलवायु चुनौतियों का समाधान कर सकता है।
      • स्वस्थ आहार के प्रति वैश्विक अभिसरण, खाद्य प्रणाली परिवर्तनों को अपनाने से होने वाले कुल आर्थिक लाभों में 70% तक का योगदान दे सकता है।
      • खाद्य प्रणाली में परिवर्तन के अंतर्गत खाद्य प्रणालियाँ वर्ष 2040 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य की प्राप्ति में योगदान दे सकती हैं जिससे ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करने में मदद मिलेगी।
      • खाद्य प्रणाली हेतु सकारात्मक विकासों में व्यापक पुनः वनरोपण, खराब मौसम की घटनाओं के प्रभावों को कम करना, भूमि की रक्षा करना, नाइट्रोजन अधिशेष को सीमित करना एवं जैवविविधता की क्षति को कम करना शामिल है।
  • अनुशंसाएँ:
    • खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन के वैश्विक लाभों को विस्तारित करने के लिये निम्न-आय वाले देशों के लिये वित्तपोषण संबंधी बाधाओं को दूर करना महत्त्वपूर्ण है।
    • नीति निर्माताओं से खाद्य प्रणाली की चुनौती का सामना करने, आवश्यक परिवर्तन करने तथा विश्व स्तर पर अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक योगदान देने हेतु आग्रह किया गया।
    • यह रिपोर्ट खाद्य प्रणालियों के परिवर्तन के लिये व्यापक तथा सतत् मार्गों को अपनाने की आवश्यकता को उजागर करती है।

हम वैश्विक खाद्य प्रणाली को और अधिक सतत् कैसे बना सकते हैं?

  • भोजन की बर्बादी कम करना:
    • सर्कुलर खाद्य प्रणालियों को अपनाने को प्रोत्साहित तथा समर्थन करना जिसके अंतर्गत बचे हुए भोजन को ज़रूरतमंद लोगों के लिये कुशलतापूर्वक पुनर्वितरित किया जाता है।
    • व्यवसायों एवं उपभोक्ताओं को भोजन की बर्बादी को कम करने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु नीतियाँ विकसित कर उनका कार्यान्वन करना।
  • खाद्य उत्पादन प्रक्रियाओं का अनुकूलन:
    • स्मार्ट कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना और उनमें निवेश करना जो खाद्य संबंधी बढ़ती आवश्यकताओं की निगरानी तथा अनुकूलन के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करती हैं।
    • हाइड्रोपोनिक तथा वर्टिकल फार्मिंग जैसी सतत् कृषि तकनीकों को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करना
    • अत्यधिक संसाधन इनपुट की आवश्यकता को कम करते हुए पर्यावरणीय चुनौतियों के प्रति लचीली फसल किस्मों के अनुसंधान तथा विकास का समर्थन करना।
  • सतत् कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना:
    • पुनर्योजी कृषि के उपयोग का समर्थन करना जो मृदा स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर केंद्रित है।
    • उर्वरकों, कीटनाशकों तथा जल के अत्यधिक उपयोग को कम करने के लिये सटीक कृषि तकनीकों का कार्यान्वन करना।
    • अधिक सतत् तथा जैविक कृषि पद्धतियों को अपनाने हेतु किसानों का समर्थन करना।
  • सतत् उपभोग को प्रोत्साहित करना:
    • पशु आधारित उत्पादों के स्थान पर पादप-आधारित आहार के उपभोग को प्रोत्साहित करना, जिसका सामान्यतः पर्यावरण पर कम प्रभाव पड़ता है।
    • उपभोक्ताओं को उनके भोजन विकल्पों के पर्यावरणीय तथा सामाजिक प्रभावों के बारे में शिक्षित करना।
    • स्थानीय रूप से उत्पादित वस्तुओं की खपत को प्रोत्साहित करने के लिये स्थानीय तथा सतत् खाद्य बाज़ारों का समर्थन करना।
  • अनुसंधान तथा नवाचार में निवेश:
    • अधिक सतत् कृषि पद्धतियों तथा प्रौद्योगिकियों के निर्माण के उद्देश्य से अनुसंधान व विकास प्रयासों के लिये संसाधन आवंटित करना।
    • खाद्य प्रणाली में उभरती चुनौतियों का समाधान करने के लिये जलवायु-लचीली फसलों एवं नवीन समाधानों पर केंद्रित पहलों का समर्थन करना।
  • स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना:
    • सतत् कृषि तथा खाद्य उत्पादन के लिये समुदाय के नेतृत्व वाली पहलों का समर्थन करना।
    • किसानों, विशेषकर छोटे किसानों को सतत् पद्धतियाँ अपनाने के लिये प्रशिक्षण एवं संसाधन उपलब्ध कराना।
    • खाद्य उत्पादन तथा वितरण से संबंधित निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. गन्ना उत्पादन के लिये एक व्यावहारिक उपागम का, जिसे ‘धारणीय गन्ना उपक्रमण’ के रूप में जाना जाता है, क्या महत्त्व है? (2014)

  1. कृषि की पारंपरिक पद्धति की तुलना में इसमें बीज की लागत बहुत कम होती है। 
  2. इसमें च्यवन (ड्रिप) सिंचाई का प्रभावकारी प्रयोग हो सकता है। 
  3. इसमें रासायनिक/अकार्बनिक उर्वरकों का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं होता। 
  4. कृषि की पारंपरिक पद्धति की तुलना में इसमें अंतराशस्यन की ज़्यादा गुंज़ाइश है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. एकीकृत कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस) किस सीमा तक कृषि उत्पादन को संधारित करने में सहायक है? (2019)

प्रश्न. अनाज वितरण प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने हेतु सरकार द्वारा कौन-कौन से सुधारात्मक कदम उठाए गए  हैं? (2019)


भारतीय राजनीति

उत्तराखंड की यूसीसी मसौदा रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये :

समान नागरिक संहिता (UCC), मौलिक अधिकार, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत

मेन्स के लिये:

समान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन में चुनौतियाँ।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में समान नागरिक संहिता (UCC) मसौदा रिपोर्ट को उत्तराखंड मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया था और इसे अधिनियमन के लिये विधेयक के रूप में 6 फरवरी 2024 को राज्य विधानसभा में प्रस्तुत किये जाने की संभावना है।

  • UCC मसौदा समिति का नेतृत्व सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई ने किया।
  • UCC उत्तराखंड के सभी निवासियों, चाहे उनका धर्म, जाति या लिंग कुछ भी हो, के लिये सामान्य कानूनों का एक प्रस्तावित सेट है।

नोट:

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 162 स्पष्ट करता है कि किसी राज्य की कार्यकारी शक्ति उन मामलों तक विस्तृत है जिनके संबंध में राज्य के विधानमंडल को कानून निर्माण की शक्ति है। सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची की प्रविष्टि 5 के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए, समान नागरिक संहिता (UCC) को क्रियान्वित तथा कार्यान्वित करने के लिये एक समिति के गठन को अधिकार क्षेत्र से बाहर के रूप में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
    • समवर्ती सूची की प्रविष्टि 5 "विवाह और तलाक" शिशु तथा नाबालिग; दत्तक ग्रहण, वसीयत, निर्वसीयत एवं उत्तराधिकार, संयुक्त परिवार व विभाजन से संबंधित है, सभी मामले जिनके संबंध में न्यायिक कार्यवाही में पक्ष इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले उनके व्यक्तिगत कानून के अधीन थे।
  • इसका अर्थ यह है कि उत्तराखंड राज्य सरकार अपने क्षेत्र के भीतर UCC अधिनियमित कर सकती है।

उत्तराखंड की UCC मसौदा रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • UCC का लक्ष्य संविधान के अनुच्छेद 44 द्वारा निर्देशित, विवाह, तलाक,दत्तक और विरासत पर ध्यान केंद्रित करते हुए, हर धर्म के अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनों को बदलना है।
    • संविधान अनुच्छेद 44, राज्य के नीति निदेशक तत्त्व (DPSP) है। इसमें कहा गया है कि राज्य को संपूर्ण भारत में सभी नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता स्थापित करने का प्रयास करना चाहिये।
    • यह मसौदा व्यक्तिगत कानूनों का एक एकल सेट होगा जो सभी नागरिकों पर लागू होगा, चाहे वे किसी भी धर्म के हों।
  • समिति द्वारा पेश किये गए कुछ प्रमुख प्रस्तावों में बहुविवाह, हलाल, इद्दत (मुस्लिम विवाह के विघटन के बाद महिलाओं द्वारा की जाने वाली प्रतीक्षा की अनिवार्य अवधि), तीन तलाक एवं बाल विवाह पर प्रतिबंध, लड़कियों के लिये समान उम्र के साथ ही 'सभी धर्मों में विवाह तथा लिव-इन संबंधों का अनिवार्य पंजीकरण शामिल हैं। 
  • UCC के मसौदे का उद्देश्य विरासत तथा विवाह जैसे मामलों में पुरुषों और महिलाओं के साथ समान व्यवहार करके लैंगिक समानता पर ध्यान केंद्रित करना है।
    • इस मसौदे में मुस्लिम महिलाओं को मुस्लिम व्यक्तिगत कानूनों के तहत प्राप्त मौजूदा 25% हिस्सेदारी के मुकाबले समान संपत्ति हिस्सेदारी का विस्तार करने की भी संभावना है।
    • पुरुषों और महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु एक समान रखी गई है, महिलाओं के लिये 18 वर्ष एवं पुरुषों के लिये 21 वर्ष है।
  • अनुसूचित जनजाति (ST) को इस विधेयक के दायरे से बाहर रखा गया है। राज्य में आदिवासी आबादी जो लगभग 3% है, उन्हें दिये गए विशेष दर्जे के कारण UCC के खिलाफ अपना असंतोष व्यक्त कर रही थी।

उत्तराखंड की UCC मसौदा रिपोर्ट के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?

  • UCC मसौदा रिपोर्ट भारत के संविधान द्वारा गारंटीकृत धार्मिक स्वतंत्रता तथा वैयक्तिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकती है।
    • कुछ आलोचकों का तर्क है कि UCC मसौदा रिपोर्ट भारत की विविधता तथा बहुलवाद के अनुरूप नहीं है एवं एक समान संहिता कार्यान्वित करने का प्रावधान है जो विभिन्न समुदायों के रीति-रिवाज़ों और प्रथाओं के अनुरूप नहीं हो सकती है।
  • यूसीसी ड्राफ्ट रिपोर्ट से उत्तराखंड के ST के अधिकारों और हितों पर असर पड़ सकता है।
    • कुछ कार्यकर्त्ताओं का दावा है कि UCC मसौदा रिपोर्ट ST के मुद्दों और आकांक्षाओं को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं करती है तथा उनकी सांस्कृतिक पहचान एवं स्वायत्तता को नष्ट कर सकती है।

समान नागरिक संहिता क्या है?

  • परिचय:
    • समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में किया गया है, जो राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व (Directive Principles of State Policy- DPSP) का अंग है।
      • हालाँकि संविधान निर्माताओं ने UCC को लागू करने का कार्य सरकार के विवेक पर छोड़ दिया था।
    • गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ समान नागरिक संहिता लागू है। वर्ष 1961 में पुर्तगाली शासन से स्वतंत्रता के बाद गोवा ने अपने सामान्य पारिवारिक कानून को बनाये रखा, जिसे गोवा नागरिक संहिता (Goa Civil Code) के रूप में जाना जाता है।
  • UCC पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय का रुख:
    • मो. अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम (वर्ष 1985) मामला: 
      • न्यायालय ने कहा कि "यह अफसोस की बात है कि अनुच्छेद 44 एक मृत पत्र बनकर रह गया है" और इसके कार्यान्वयन का आह्वान किया।
      • इस तरह की मांग बाद के मामलों जैसे सरला मुद्गल बनाम भारत संघ, 1995 और जॉन वल्लामट्टम बनाम भारत संघ, 2003 में दोहराई गई थी।
  • विधि आयोग का रुख:
    • वर्ष 2018 में, सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बलबीर सिंह चौहान की अध्यक्षता वाले 21वें विधि आयोग ने "पारिवारिक विधि में सुधार" पर एक परामर्श पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें यह माना गया कि "इस स्तर पर समान नागरिक संहिता का निर्माण न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय"
      • इसने रेखांकित किया कि धर्मनिरपेक्षता को देश में प्रचलित बहुलता के साथ सह-अस्तित्व में रहना चाहिये। हालाँकि इसने सिफारिश की कि मौजूदा व्यक्तिगत कानूनों/पर्सनल लॉ के भीतर भेदभावपूर्ण प्रथाओं तथा रूढ़िवादिता में संशोधन किया जाना चाहिये
    • प्रारंभिक परामर्श पत्र जारी होने के बाद तीन वर्ष से अधिक समय बीत जाने को स्वीकार करते हुए वर्ष 2022 में, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ऋतुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाले 22वें विधि आयोग ने एक अधिसूचना जारी कर UCC पर सार्वजनिक और धार्मिक संगठनों सहित विभिन्न हितधारकों से राय मांगी।

और पढ़ें: न्यायपूर्ण (समान) नागरिक संहिता

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

भारतीय संविधान में प्रतिष्ठापित राज्य की नीति के निदेशक तत्त्वों के अंतर्गत निम्नलिखित प्रावधानों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. भारतीय नागरिकों के लिये समान नागरिक (सिविल) संहिता सुरक्षित करना
  2.  ग्राम पंचायतों को संघटित करना
  3.  ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करना
  4. सभी श्रमिकों के लिये उचित अवकाश और सांस्कृतिक अवसर सुरक्षित करना

उपर्युक्त में से कौन-से गांधीवादी सिद्धांत हैं, जो राज्य की नीति के निदेशक तत्त्वों में प्रतिबिंबित होते हैं?

(a) केवल 1, 2 और 4
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. कानून को लागू करने के मामले में कोई विधान, जो किसी कार्यपालक अथवा प्रशासनिक प्राधिकारी को अनिर्देशित एवं अनियंत्रित विवेकाधिकार देता है, भारत के संविधान के निम्नलिखित अनुच्छेदों में से किसका उल्लंघन करता है? (2021)

(a) अनुच्छेद14
(b) अनुच्छेद 28
(c) अनुच्छेद 32
(d) अनुच्छेद 44

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. चर्चा कीजिये कि वे कौन-से संभावित कारक हैं जो भारत को राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व में प्रदत्त के अनुसार अपने नागरिकों के लिये समान सिविल संहिता को अभिनियमित करने से रोकते हैं। (2015)


भारतीय अर्थव्यवस्था

चीन का बदलता आर्थिक परिदृश्य

प्रिलिम्स के लिये:

अपस्फीति, चीन की आर्थिक मंदी के कारण, सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक, डिकॉउलिंग, दक्षिण चीन सागर, शिनजियांग में उइगर, इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन, IMEC गलियारा, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन

मेन्स के लिये:

चीन में आर्थिक चुनौतियों में योगदान देने वाले प्रमुख कारक, चीन में आर्थिक उथल-पुथल के बीच भारत का परिवर्तन।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया

चर्चा में क्यों? 

चीन की अर्थव्यवस्था को वर्ष 2023 में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसने तीन दशकों में सबसे धीमी विकास दर दर्ज की, क्योंकि यह गंभीर संपत्ति संकट, निष्क्रिय खपत, जनसांख्यिकीय रुझानों में बदलाव और वैश्विक उथल-पुथल से जूझ रही थी।

चीन में आर्थिक चुनौतियों में योगदान देने वाले प्रमुख कारक क्या हैं? 

  • आर्थिक स्थिति: चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो (NBS) ने GDP में 5.2% की वृद्धि दर्ज की, जो वर्ष 2023 में 126 ट्रिलियन युआन तक पहुँच गई।
    • लक्ष्य को पार करने और वर्ष 2022 में दर्ज 3% से बेहतर प्रदर्शन करने के बावजूद, यह वृद्धि महामारी के वर्षों को छोड़कर, वर्ष 1990 के बाद से सबसे धीमे प्रदर्शन का प्रतिनिधित्व करती है।
    • लगातार तीन महीनों तक अपस्फीति ने आर्थिक प्रतिकूलताओं को बढ़ा दिया।
  • आर्थिक चुनौतियों में योगदान देने वाले कारक:
    • युवाओं के लिये नौकरियों की कमी: मई 2023 में 16 से 24 वर्ष के बीच के 5 में से 1 से अधिक व्यक्ति बेरोज़गार थे, जो युवाओं के लिये रोज़गार सृजन में चुनौतियों को उजागर करता है।
      • 15 से 59 वर्ष के बीच कामकाजी उम्र की आबादी, जिसे किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादक माना जाता है, अब कुल आबादी का 61% रह गई है।
    • जनसांख्यिकीय रुझान: चीन की जनसंख्या 2016 से घट रही है, जो कुल प्रजनन दर (TFR) में गिरावट और एक-बाल नीति की विरासत पर काबू पाने में चुनौतियों को दर्शाती है।
      • 3 बच्चों तक की अनुमति देने वाले नीतिगत बदलावों के बावजूद, जनसांख्यिकीय रुझान उलट नहीं हुआ है।
    • अस्थिर रियल एस्टेट बाज़ार: रियल एस्टेट बाज़ार, पारंपरिक रूप से चीन की अर्थव्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता है, एवरग्रांडे और कंट्री गार्डन जैसी प्रमुख कंपनियों के साथ वित्तीय चुनौतियों का सामना कर रहा है।

वैश्विक संदर्भ में चीन से संबंधित अन्य चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • पर्यावरणीय गिरावट: चीन विश्व में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत है। वायु प्रदूषण चीन में प्रति वर्ष (WHO) लगभग 2 मिलियन मौतों के लिये ज़िम्मेदार है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ तनावपूर्ण संबंध: चल रहे व्यापार युद्ध, तकनीकी प्रभुत्व के लिये प्रतिस्पर्द्धा और मूल्यों में अंतर चीन तथा अमेरिका के बीच महत्त्वपूर्ण तनाव पैदा करते हैं, जिससे वैश्विक शक्ति संतुलन प्रभावित होता है।
    • अमेरिका और उसके सहयोगी सेमीकंडक्टर जैसे प्रमुख तकनीकी क्षेत्रों में चीन से तेज़ी से अलग हो रहे हैं।
  • दक्षिण चीन सागर विवाद: दक्षिण चीन सागर में चीन के क्षेत्रीय दावों का कई देशों ने विरोध किया है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता और नेविगेशन की स्वतंत्रता को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
  • मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ: चीन को मानवाधिकार के मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय जाँच और आलोचना का सामना करना पड़ा है, विशेष रूप से शिनजियांग में उइगर जैसे जातीय अल्पसंख्यकों के उपचार के संबंध में।

चीन में आर्थिक उथल-पुथल के बीच भारत कैसे बदल रहा है?

  • जनसांख्यिकीय लाभ: अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत की कामकाजी उम्र की आबादी कुल आबादी का 68.9% हो जाएगी, जो चीन की उम्रदराज़ आबादी के बिल्कुल विपरीत है।
  • विकसित हो रहा विनिर्माण और परिवहन परिदृश्य: इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन और दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा जैसे समर्पित औद्योगिक गलियारे जैसी पहल बुनियादी ढाँचे को मज़बूत कर रहे हैं तथा भारत में निवेश आकर्षित कर रहे हैं।
    • Apple का एक प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता फॉक्सकॉन, iPhone उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा चीन से भारत में स्थानांतरित कर रहा है।
  • व्यवसाय-अनुकूल वातावरण: मेक इन इंडिया और उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना जैसे कार्यक्रम व्यवसायों के लिए महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान करते हैं।
    • इलेक्ट्रॉनिक्स के लिये PLI योजना ने सैमसंग, पेगाट्रॉन, राइजिंग स्टार और विस्ट्रॉन जैसे प्रमुख खिलाड़ियों को सफलतापूर्वक आकर्षित किया है।
  • संपन्न घरेलू बाज़ार: विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (नाममात्र GDP के अनुसार) के रूप में, भारत स्थानीय रूप से निर्मित वस्तुओं के लिये महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है, जो बहुराष्ट्रीय निगमों को भारत को अपनी उत्पादन प्रक्रियाओं में एकीकृत करने हेतु आकर्षित करता है।
    • उदाहरण के लिये, H&M, भारतीय परिधान निर्माताओं से स्रोत है।
  • स्थिरता तथा ESG पर ज़ोर: वर्ष 2030 तक 50% नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ भारत हरित विनिर्माण के लिये प्रतिबद्ध कंपनियों को आकर्षित कर रहा है।
    • उदाहरण हेतु टेस्ला की योजना वर्ष 2024 में भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन बाज़ार में प्रवेश करने की है।
  • वैश्विक मान्यता और निर्भरता: IMEC कॉरिडोर में भारत की सदस्यता तथा अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में इसका नेतृत्व भारत को एक विश्वसनीय निवेश गंतव्य के रूप में स्थापित कर रहा है एवं इसकी वैश्विक प्रतिष्ठा को बढ़ा रहा है।

भारत की प्रगति में बाधा उत्पन्न करने वाली चुनौतियाँ क्या हैं?

  • अवसंरचना संबंधी बाधाएँ: निरंतर सुधार के बावजूद भारत की अवसंरचना, जिसमें पावर ग्रिड, लॉजिस्टिक्स नेटवर्क तथा परिवहन प्रणालियाँ शामिल हैं, चीन से कम सुदृढ़ है, जो संभावित रूप से विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता एवं निवेश आकर्षित करने में बाधा बन रहा है।
  • कुशल कार्यबल की कमी: हालाँकि जनसांख्यिकी के अनुसार भारत में एक बड़ी कामकाजी उम्र की उपलब्धता है किंतु आबादी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से में उच्च मूल्य वाले विनिर्माण के लिये आवश्यक विशिष्ट कौशल (कौशल भारत रिपोर्ट: केवल 5% भारतीय औपचारिक रूप से कुशल) का अभाव है जिससे अपस्किलिंग तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण में अत्यधिक निवेश की आवश्यकता प्रदर्शित होती है।
  • व्यवसाय करने में वांछित आसानी का अभाव: हालाँकि मेक इन इंडिया जैसी पहल का उद्देश्य व्यवसाय करने में सरलता प्रदान करना करना है किंतु वर्तमान में भी भारत का स्थान व्यापार सुगमता (Ease of Doing Business) की वैश्विक रैंकिंग में चीन से नीचे है जिसके परिणामस्वरूप संबंधित प्रक्रियाओं को सरल बनाने एवं नौकरशाही बाधाओं को कम करने के लिये और उपायों की आवश्यकता है।
  • अनुसंधान तथा विकास क्षमताओं की कमी: पर्याप्त प्रगति के बावजूद भारत अनुसंधान तथा विकास के क्षेत्र में पिछड़ रहा है। संबद्ध क्षेत्र में चीन के 2.56% निवेश की तुलना में भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.6-0.7% अनुसंधान तथा विकास हेतु आवंटित करता है।

आगे की राह

  • कार्यबल को उन्नत बनाना: भारत को उद्योग क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुरूप व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा कौशल कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जिससे उच्च मूल्य वाले विनिर्माण के लिये योग्य श्रमिकों का नियोजन सरलता से किया जा सके।
  • विनियमों तथा नौकरशाही को सुव्यवस्थित करना: ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिये सुधारों को का कार्यान्वन करना, नौकरशाही संबंधी बाधाओं को कम करना एवं व्यापार स्वीकृतियों में तेज़ी लाने से भारत में व्यापार करने में सरलता प्राप्त हो सकती है।
  • नवाचार तथा प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना: अनुसंधान एवं विकास निवेश बढ़ाना, शिक्षा तथा उद्योग के बीच सहयोग को बढ़ावा देना एवं उद्यमिता को प्रोत्साहन प्रदान कर भारत में एक सुदृढ़ नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र विकसित किया जा सकता है।
  • राजनयिक संवाद तथा संघर्ष समाधान: भारत इस समय का लाभ उठाते हुए चीन के साथ राजनयिक संवाद कर सकता है ताकि लंबित सीमा मुद्दों का समाधान किया जा सके एवं व्यापार, आर्थिक साझेदारी व सांस्कृतिक आदान-प्रदान सहित विभिन्न मुद्दों पर बेहतर संबंधों को प्रोत्साहन दिया जा सके जिससे वैश्विक समुदाय तथा दोनों देशों को व्यापक रूप से लाभ होगा। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का उल्लेख किसके संदर्भ में किया जाता है? (2016) 

(a) अफ्रीकी संघ
(b) ब्राज़ील
(c) यूरोपीय संघ
(d) चीन

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. चीन की तुलना में भारत के पास अधिक कृषियोग्य क्षेत्र है।
  2. चीन की तुलना में भारत में सिंचित क्षेत्र का अनुपात अधिक है।
  3. चीन की तुलना में भारत की कृषि में प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादकता अधिक है।

उपर्युक्त कथनों में से कितने सही हैं?

(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) तीनों
(d) कोई नहीं

उत्तर: B


मेन्स:

प्रश्न, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सी० पी० ई० सी०) को चीन की अपेक्षाकृत अधिक विशाल 'एक पट्टी एक सड़क' पहल के एक मूलभूत भाग के रूप में देखा जा रहा है। सी० पी० ई० सी० का एक संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत कीजिये और भारत द्वारा उससे किनारा करने के कारण गिनाइये। (2018)

प्रश्न. "चीन अपने आर्थिक संबंधों एवं सकारात्मक व्यापार अधिशेष को, एशिया में संभाव्य सैनिक शक्ति हैसियत को विकसित करने के लिये, उपकरणों के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।" इस कथन के प्रकाश में, उसके पड़ोसी के रूप में भारत पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (2017)


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