लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

जैव विविधता और पर्यावरण

भारत में कोयला गैसीकरण को प्रोत्साहन

  • 17 Jul 2023
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में कोयला गैसीकरण को प्रोत्साहन, कोयला गैसीकरण, वस्तु एवं सेवा कर, इनपुट टैक्स क्रेडिट, सिनगैस, प्राकृतिक गैस 

मेन्स के लिये:

भारत में कोयला गैसीकरण को प्रोत्साहन देना

चर्चा में क्यों? 

कोयला गैसीकरण को बढ़ावा देने के लिये कोयला मंत्रालय एक व्यापक योजना पर विचार कर रहा है जिसका लक्ष्य वित्त वर्ष 2030 तक 100 मिलियन टन (MT) कोयला गैसीकरण हासिल करना है। 

  • मंत्रालय वाणिज्यिक परिचालन तिथि (COD) के बाद 10 वर्षों की अवधि के लिये गैसीकरण परियोजनाओं में उपयोग किये गए कोयले पर वस्तु और सेवा कर (GST) मुआवज़ा उपकर की प्रतिपूर्ति हेतु प्रोत्साहन पर भी विचार कर रहा है, बशर्ते कि GST मुआवज़ा उपकर वित्त वर्ष 2027 से आगे बढ़ाया जाए। इस प्रोत्साहन का उद्देश्य संस्थाओं की इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा करने में असमर्थता को दूर करना है।

योजना के मुख्य बिंदु:

  • परिचय: 
    • इस पहल में उपायों का एक व्यापक सेट शामिल है जो प्राकृतिक संसाधनों का लाभ उठाने के साथ कोयला गैसीकरण की वित्तीय एवं तकनीकी व्यवहार्यता प्रदर्शित करता है।
    • इसका उद्देश्य कोयला गैसीकरण क्षेत्र में नवाचार, निवेश और सतत् विकास को बढ़ावा देकर सरकारी सार्वजनिक उपक्रमों तथा निजी क्षेत्र को आकर्षित करना है।
  • प्रक्रिया: 
    • लिग्नाइट कोयला गैसीकरण योजना के लिये संस्थाओं का चयन प्रतिस्पर्द्धी और पारदर्शी बोली प्रक्रिया के माध्यम से किया जाएगा।
    • सरकार सहायता प्राप्त सरकारी सार्वजनिक उपक्रमों (PSUs) और निजी क्षेत्र को कोयला गैसीकरण परियोजनाएँ प्रारंभ करने में सक्षम बनाने के लिये बजटीय सहायता प्रदान करेगी।
  • महत्त्व: 
    • यह पहल कार्बन उत्सर्जन को कम करनें के साथ टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देकर हरित भविष्य के प्रति हमारी वैश्विक प्रतिबद्धताओं में योगदान देकर पर्यावरणीय बोझ को कम करने की क्षमता रखती है।

कोयला गैसीकरण: 

  • परिचय:  
    • कोयला गैसीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें ईंधन गैस बनाने के लिये कोयले का वायु, ऑक्सीजन, भाप या कार्बन डाइऑक्साइड के साथ आंशिक रूप से ऑक्सीकरण किया जाता है।
    • इस गैस का उपयोग ऊर्जा प्राप्त करने के लिये पाइप्ड प्राकृतिक गैस, मीथेन और अन्य गैसों के स्थान पर किया जाता है।
    • कोयले के स्वस्थाने (In-situ) गैसीकरण या भूमिगत कोयला गैसीकरण (UCG) कोयले को गैस में परिवर्तित करने की एक तकनीक है, इसे कुओं के माध्यम से निकाला जाता है।  
  • सिनगैस का उत्पादन: 
    • सिनगैस मुख्य रूप से मीथेन (CH4), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), हाइड्रोजन (H2), कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और जल वाष्प (H2O) से युक्त मिश्रण है।
    • सिनगैस का उपयोग उर्वरक, ईंधन, सॉल्वैंट्स और सिंथेटिक सामग्री की एक विस्तृत शृंखला का उत्पादन करने के लिये किया जा सकता है।
  • महत्त्व:  
    • स्टील कंपनियाँ अपनी विनिर्माण प्रक्रिया में महँगे आयातित कोक-कोयले को कोयला गैसीकरण संयंत्रों से सिनगैस में प्रतिस्थापित कर लागत को कम कर सकती हैं।
    • इसका उपयोग मुख्य रूप से विद्युत उत्पादन, रासायनिक फीडस्टॉक के उत्पादन के लिये किया जाता है।
    • कोयला गैसीकरण से प्राप्त हाइड्रोजन का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है जैसे- अमोनिया निर्मित करना और हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था को शक्ति प्रदान करना।

  • चिंताएँ:  
    • सिनगैस प्रक्रिया अपेक्षाकृत उच्च गुणवत्ता वाले ऊर्जा स्रोत (कोयला) को निम्न गुणवत्ता वाली अवस्था (गैस) में परिवर्तित करती है और ऐसा करने में बहुत अधिक ऊर्जा की खपत होती है। इस प्रकार रूपांतरण की दक्षता भी कम होती है।

भारत में कोयला गैसीकरण परियोजनाओं को बढ़ावा देने की आवश्यकता: 

  • भारत में गैसीकरण प्रौद्योगिकी को अपनाने से कोयला क्षेत्र में क्रांति आ सकती है, जिससे प्राकृतिक गैस, मेथनॉल, अमोनिया और अन्य आवश्यक उत्पादों के आयात पर निर्भरता कम हो सकती है।
    • वर्तमान में भारत घरेलू मांग को पूरा करने के लिये अपनी प्राकृतिक गैस का लगभग 50%, कुल मेथनॉल खपत का 90% से अधिक और कुल अमोनिया खपत का लगभग 13-15% हिस्सा आयात करता है।
  • यह भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में योगदान करने के साथ ही रोज़गार के अवसर में वृद्धि कर सकता है।
  • कोयला गैसीकरण के कार्यान्वयन से वर्ष 2030 तक आयात में कमी आएगी, इससे देश के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान मिलने की संभावना है।

आगे की राह 

  • सरकार को कोयला गैसीकरण परियोजनाओं के पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक प्रभावों का व्यापक मूल्यांकन करना चाहिये।
  • कोयला गैसीकरण प्रौद्योगिकी में प्रगति के लिये अनुसंधान और विकास में निरंतर निवेश किये जाने की आवश्यकता है, ताकि यह अधिक कुशल एवं पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल बन सके।
  • विविध स्रोतों से ऊर्जा प्राप्त करने पर बल दिये जाने की भी आवश्यकता है जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत, ऊर्जा दक्षता उपाय और कोयला आधारित ऊर्जा उत्पादन के स्थायी विकल्प शामिल हों।
  • धारणीय विकास सुनिश्चित करने के लिये कोयला गैसीकरण और हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था कार्यान्वयन में वैश्विक अनुभवों एवं सर्वोत्तम प्रथाओं से सीख लेनी चाहिये

स्रोत: पी.आई.बी.

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2