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भारतीय समाज

जनसंख्या संबंधी रुझान

  • 23 Nov 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश, TFR, मातृ मृत्यु दर अनुपात

मेन्स के लिये:

भारत के जनसांख्यिकीय परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) के अनुमान के अनुसार वर्ष 2022 में चीन पहली बार अपनी आबादी में पूर्ण गिरावट दर्ज करेगा और वर्ष 2023 में भारत की आबादी 1,428.63 मिलियन तक पहुँच जाएगी, जो चीन की 1,425.67 मिलियन की आबादी से अधिक हो जाएगी।

जनसंख्या परिवर्तन के चालक:

  • कुल प्रजनन दर (TFR):
    • पिछले तीन दशकों में भारत के TFR में गिरावट आई है।
      • वर्ष 1992-93 और 2019-21 के बीच यह 3.4 से घटकर 2 पर पहुँच गई, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक गिरावट देखी गई।
      • वर्ष 1992-93 में औसत ग्रामीण भारतीय महिला ने अपने शहरी समकक्ष (3.7 बनाम 2.7) की तुलना में एक अतिरिक्त बच्चे को जन्म दिया। वर्ष 2019-21 तक यह अंतर आधा (2.1 बनाम 1.6) हो गया था।
      • 1 के TFR को "प्रतिस्थापन-स्तर प्रजनन क्षमता" माना जाता है।
      • TFR एक विशेष अवधि/वर्ष के लिये सर्वेक्षणों के आधार पर 15-49 आयु वर्ग की महिलाओं द्वारा जन्म देने की औसत संख्या है।
  • मृत्यु दर में गिरावट:
    • चीन के लिये क्रूड डेथ रेट (CDR) पहली बार वर्ष 1974 में 9.5 तक के इकाई अंक में पहुँचा जबकि भारत के लिये वर्ष 1994 में (9.8 तक) इसके बाद वर्ष 2020 में दोनों देशों के लिये यह दर घटकर क्रमशः 7.3 और 7.4 तक पहुँच गई।
      • CDR 1950 में चीन के लिये 23.2 और भारत के लिये 22.2 था।
      • CDR प्रतिवर्ष प्रति 1,000 आबादी पर मरने वाले व्यक्तियों की संख्या है।
    • शिक्षा के स्तर में वृद्धि, सार्वजनिक स्वास्थ्य और टीकाकरण कार्यक्रमों, भोजन एवं चिकित्सा देखभाल तक पहुँच व सुरक्षित पेयजल तथा स्वच्छता सुविधाओं के प्रावधान के परिणामस्वरूप मृत्यु दर में कमी आ जाती है।
  • जन्म के समय जीवन प्रत्याशा:
    • वर्ष 1950 और 2020 के बीच जन्म के समय जीवन प्रत्याशा चीन की 43.7 से बढ़कर 78.1 वर्ष और भारत की 41.7 से बढ़कर 70.1 वर्ष हो गई।
      • मृत्यु दर में कमी के कारण आमतौर पर जनसंख्या वृद्धि होती है। दूसरी ओर प्रजनन क्षमता में गिरावट जनसंख्या वृद्धि को धीमा कर देती है जिसके परिणामस्वरूप अंततः पूर्ण गिरावट आती है।

Fertility-Rate

चीन के लिये रुझानों के निहितार्थ:

  • चीन का TFR वर्ष 2010 और 2000 की जनगणना में 1.2 से थोड़ा अधिक प्रति महिला जन्म 1.3 था, लेकिन 2.1 की प्रतिस्थापन दर से काफी नीचे था।
  • वर्ष 2016 से चीन ने आधिकारिक तौर पर अपनी एक बच्चे की नीति को समाप्त कर दिया जिसे वर्ष 1980 में पेश किया गया था।
  • हालाँकि संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2050 में चीन की कुल आबादी 1.31 बिलियन होने का अनुमान लगाया है, जो वर्ष 2021 के उच्चतम आबादी से 113 मिलियन से अधिक की गिरावट दर्शाता है।
  • चीन की प्रमुख कामकाजी उम्र की आबादी में गिरावट आना चिंताजनक है क्योंकि यह एक दुष्चक्र बनाता है जिसमें आश्रितों का समर्थन करने के लिये काम करने वाले लोगों की संख्या कम हो जाती है लेकिन आश्रितों की संख्या बढ़ने लगती है।
  • 20 से 59 आयु वर्ग की आबादी का अनुपात वर्ष 1987 में 50% को पार कर गया तथा वर्ष 2011 में 61.5% पर पहुँच गया।
  • जैसे-जैसे यह चक्र बदलता है चीन की कामकाजी उम्र की आबादी वर्ष 2045 तक 50% से नीचे आ जाएगी।
  • इसके अलावा जनसंख्या की औसत आयु जो वर्ष 2000 में 28.9 वर्ष और वर्ष 2020 में 37.4 वर्ष थी, वर्ष 2050 तक 50.7 वर्ष तक बढ़ने की उम्मीद है।

Population-aged-20-59

जनसंख्या नियंत्रण के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदम:

  • भारत 1950 के दशक में राज्य प्रायोजित परिवार नियोजन कार्यक्रम वाले पहले विकासशील देशों में से एक बना।
    • जनसंख्या नीति समिति की स्थापना वर्ष 1952 में  की गई थी।
    • केंद्रीय परिवार नियोजन बोर्ड की स्थापना वर्ष 1956 में  की गई और इसका केंद्रीय बिंदु नसबंदी था।
    • भारत सरकार ने पहली राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा वर्ष 1976 में  की।
  • राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000 ने भारत के लिये एक स्थिर जनसंख्या प्राप्त करने की परिकल्पना की।
    • इस नीति का लक्ष्य वर्ष 2045 तक स्थिर जनसंख्या के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
    • इसके तत्काल उद्देश्यों में गर्भनिरोधक, स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे और कर्मियों संबंधी आवश्यक ज़रूरतों को पूरा करना और प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य देखभाल संबंधी बुनियादी एकीकृत सेवा प्रदान करना है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey-NFHS) बड़े पैमाने पर किया जाने वाला एक बहु-स्तरीय सर्वेक्षण है जो पूरे भारत में परिवारों के प्रतिनिधि नमूने के रूप में किया जाता है।
    • NFHS के दो प्रमुख लक्ष्य हैं:
      • नीति और कार्यक्रम के उद्देश्यों के लिये आवश्यक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी  डेटा प्रदान करना।
      • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संबंधी महत्त्वपूर्ण उभरते मुद्दों पर जानकारी प्रदान करना।
  • बढ़ती जनसंख्या दर की समस्याओं से निपटने में शिक्षा के महत्त्व को महसूस करते हुए शिक्षा मंत्रालय ने वर्ष 1980 से प्रभावी जनसंख्या शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया।
    • जनसंख्या शिक्षा कार्यक्रम एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है जिसे औपचारिक शिक्षा प्रणाली में जनसंख्या शिक्षा को शामिल करने के लिये तैयार किया गया है।
    • यह संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (United Nations Funds for Population Activities- UNFPA) के सहयोग से और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की सक्रिय भागीदारी के साथ विकसित किया गया है।

आगे की राह

  • भारत के लिये जनसांख्यिकीय लाभांश प्राप्त करने का एक अवसर है क्योंकि कुल आबादी में इसकी कार्यशील उम्र की आबादी का हिस्सा वर्ष 2007 में 50% तक पहुँच गया और अनुमान है कि वर्ष 2030 के मध्य तक यह 57% तक पहुँच जाएगा।
    • लेकिन जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ युवा आबादी के लिये रोज़गार के सार्थक अवसरों के सृजन पर निर्भर करता है।
  • इसके लिये उपयुक्त बुनियादी ढाँचे, अनुकूल सामाजिक कल्याण योजनाओं और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता है।
  • पहले से ही 25-64 आयु वर्ग के लोगों के लिये कौशल की आवश्यकता है, जो यह सुनिश्चित कर उनकी उत्पादकता और आय को बेहतर किया जा सकता है।
  • 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था में महिलाओं और लड़कियों की भागीदारी के लिये उपयुक्त नए कौशल एवं अवसरों की तत्काल आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत की राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000 के अनुसार, निम्नलिखित में से किस एक वर्ष तक जनसंख्या स्थिरीकरण प्राप्त करना हमारा दीर्घकालिक उद्देश्य है? (2008)

(a) 2025
(b) 2035
(c) 2045
(d) 2055

उत्तर: (c)


प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों की विवेचना कीजिये तथा भारत में उन्हें प्राप्त करने के उपायों को विस्तार से बताइये। (मुख्य परीक्षा, 2021)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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