भारत में जातिगत आंदोलन
प्रिलिम्स के लिये:राजनीतिक दल, जाति जनगणना, उप-वर्गीकरण, आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871, वर्ष 1857 का विद्रोह, सत्यशोधक समाज, गुलामगिरी, महाड़ सत्याग्रह, अखिल भारतीय दलित वर्ग संघ, इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी, इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन, आत्म-सम्मान आंदोलन, पूना समझौता, हरिजन सेवक संघ मेन्स के लिये:भारत में जातिगत आंदोलन और उसके प्रभाव |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कई राजनीतिक दलों ने आरक्षित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद एक नई भारतीय जाति जनगणना की मांग की।
- दक्षिण एशियाई समाज में जाति को प्रायः केंद्रीय तत्त्व माना जाता है, ठीक उसी प्रकार जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका में नस्ल, ब्रिटेन में वर्ग और इटली में गुटबाज़ी को केंद्रीय तत्त्व माना जाता है।
- भारत में राष्ट्रीय स्तर पर अंतिम जाति जनगणना ब्रिटिश शासन के दौरान वर्ष 1931 में हुई थी।
भारत में जातिगत आंदोलनों का इतिहास क्या है?
- ऐतिहासिक संदर्भ: 19वीं सदी के अंत तक जाति भारतीयों के दैनिक जीवन का केंद्रीय हिस्सा बन गयी थी।
- जाति की परिभाषा प्रायः शुद्धता एवं अपवित्रता की ब्राह्मणवादी धारणाओं के इर्द-गिर्द घूमती रही है और प्रायः निम्न जातियों द्वारा ऐसी धारणाओं का आक्रामक विरोध किया गया है।
- जातियाँ ‘सामाजिक सीमाओं में बँधी रहीं’ तथा उनके बीच अंतर्जातीय विवाहों के कारण ‘सामाजिक गतिशीलता’ निषिद्ध रही।
- औपनिवेशिक कानून: औपनिवेशिक प्रशासन ने उत्तर भारत में आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 जैसे कानून लाए और बाद में पूर्व में बंगाल (1876) तथा दक्षिण में मद्रास (1911) प्रेसिडेंसियों तक इसका विस्तार किया।
- इसने औपनिवेशिक राज्य को संपूर्ण समुदाय को अपराधी घोषित करने का अधिकार दिया।
- यह पदनाम प्रायः कुछ जाति या जनजातीय समूहों के विषय में पहले से विद्यमान पूर्वाग्रहों पर आधारित होता था, जो नकारात्मक रूढ़ियों को मज़बूत करता था तथा कानून के माध्यम से उन्हें संस्थागत बनाता था।
- उन्हें जाति और वर्ण के आधार पर इतना हीन माना जाता था कि उन्हें औपनिवेशिक सेना तथा राज्य तंत्र में नियुक्त नहीं किया जा सकता था।
- यह अधिनियम वर्ष 1949 तक जारी रहा और इसके स्थान पर आभ्यासिक अपराधी अधिनियम, 1952 (Habitual Offenders Act, 1952) लागू हुआ।
- फूट डालो और राज करो की नीति: स्पष्ट रूप से उच्च वर्ग के हिंदू तथा मुस्लिम अभिजात वर्ग के नेतृत्व में हुए सन् 1857 के विद्रोह ने ब्रिटिश अधिकारियों को भारतीय सेना में विविधता एवं औपनिवेशिक कार्यालयों की अधिक विस्तृत व्यवस्था पर ज़ोर देने के लिये विवश किया। परिणामस्वरुप इन भूमिकाओं में एक ही समुदाय के प्रभुत्व की उपस्थिति को कम करने में मदद मिली।
- इस प्रकार जाति प्रांतीय शिक्षा और सरकारी सेवा में उम्मीदवारों की रोज़गार पात्रता में एक महत्त्वपूर्ण मानदंड के रूप में उभरी।
- जाति को राष्ट्रवादी भावनाओं के उद्भव में एक संभावित अवरोध के रूप में पहचाना गया और इसने उपमहाद्वीप में ब्रिटिश शासन को कायम रखने में मदद की।
जातिगत आंदोलनों में प्रमुख व्यक्ति कौन थे?
- ज्योतिबा फुले: वे 19वीं सदी के मराठी कार्यकर्त्ता और सत्यशोधक समाज के संस्थापक थे तथा आधुनिक भारत के पहले जाति-विरोधी विचारकों में से एक थे।
- उन्होंने गुलामगिरी पुस्तक (वर्ष 1873) लिखी, जिसमें उन्होंने भारत में ‘अछूतों’ की दुर्दशा का विस्तार से वर्णन किया और भारतीय समाज में समानता की भावना लाने के लिये ईसाई मिशनरियों, मुस्लिम राजाओं एवं ब्रिटिश सरकार की प्रशंसा की।
- उन्होंने जाति-विरोधी आंदोलनों के शब्दकोश में ‘दलित’ (‘अस्पृश्य या अछूत’ या टूटे हुए लोग) शब्द भी शामिल किया।
- उन्होंने आर्यन आक्रमण सिद्धांत के अपने संस्करण को प्रचारित किया और मनुस्मृति जैसे ग्रंथों को देश के मूल निवासियों एवं जनजातियों के प्रति शोषक व दमनकारी ग्रंथ बताया।
- फुले द्वारा जाति-विरोधी विचारों को संगठित करने से बाद में बी.आर. अंबेडकर को प्रेरणा मिली।
- बी.आर. अंबेडकर: उन्होंने ‘हमें एक शासक समुदाय बनना चाहिये’ के नारे के साथ दलितों और शोषित वर्गों के सदस्यों को संगठित किया।
- वर्ष 1927 में उन्होंने महाराष्ट्र के महाड़ में एक सार्वजनिक तालाब से जल भरने के ‘अछूतों’ के अधिकार, जिसे विशेषाधिकार प्राप्त जातियों के नेताओं द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था, के लिये आंदोलन किया और महाड़ सत्याग्रह का नेतृत्व किया।
- दिसंबर 1927 में अंबेडकर ने सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति को आग लगा दी, जिसे जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता की प्रथा को बनाए रखने के स्रोत के रूप में देखा गया था।
- वर्ष 1930 में उन्होंने अखिल भारतीय दलित वर्ग संघ की स्थापना की।
- औपनिवेशिक प्रशासन से पहले अंबेडकर और अंबेडकरवादियों ने दलितों एवं वंचित वर्गों के लिये पृथक निर्वाचन क्षेत्र हेतु आंदोलन किया। बी.आर. अंबेडकर की अन्य पहलों में इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (1936), अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ (1942) आदि शामिल थे।
- एम.सी. राजा: 20वीं सदी में समग्र भारत में दलित आंदोलनों का पहला महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम वर्ष 1926 में नागपुर में आयोजित अखिल भारतीय दलित वर्ग नेताओं का सम्मेलन था।
- इसके परिणामस्वरूप अखिल भारतीय दलित वर्ग एसोसिएशन का गठन हुआ, जिसके अध्यक्ष राव बहादुर एम.सी. राजा और उपाध्यक्ष अंबेडकर थे।
- पेरियार: मद्रास प्रेसीडेंसी में इरोड वेंकटप्पा रामासामी (अथवा पेरियार) ने ब्राह्मणवाद विरोधी आत्म-सम्मान आंदोलन की स्थापना की।
- इस आंदोलन ने वर्ष 1939 में पेरियार का जस्टिस पार्टी का नेता बनने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- महात्मा गांधी: दलित वर्गों के लिये पृथक निर्वाचन क्षेत्रों (सांप्रदायिक परिनिर्णय के तहत) की घोषणा के बाद गांधीजी ने हिंदू समुदाय के अंतर्गत कथित 'विभाजन' के विरोध में आमरण अनशन करने का निर्णय लिया।
- गांधी और अंबेडकर ने पूना पैक्ट 1932 पर हस्ताक्षर किये, जिसके तहत हिंदु धर्म के सभी व्यक्तियों के लिये संयुक्त निर्वाचक मंडल का प्रावधान किया गया तथा दलित वर्ग के व्यक्तियों को सांप्रदायिक परिनिर्णय में प्राप्त सीटों की लगभग दोगुनी संख्या में आरक्षण प्रदान किया।
- वर्ष 1932 में गांधी ने अस्पृश्यता के उन्मूलन और जाति उत्थान के लिये हरिजन सेवक संघ की स्थापना की, किंतु गांधी के वर्णाश्रम मत पर अंबेडकर असहमत थे।
- ब्रिटिश नीति में परिवर्तन: उपमहाद्वीप के विभाजन के आसन्न कारकों को देखते हुए अंबेडकरवादी आंदोलन धीरे-धीरे भारत में संवैधानिक ढाँचे के निर्माण की आवश्यकता से प्रभावित हुआ।
- 1945 तक, जब एकीकृत भारत को सत्ता का हस्तांतरण होना था, औपनिवेशिक सरकार ने जाति को अराजनीतिक बनाने का निर्णय लिया।
गांधी और अंबेडकर की विचारधाराओं में क्या अंतर है?
पहलू |
महात्मा गांधी |
बी.आर. अंबेडकर |
स्वतंत्रता पर विचार |
व्यक्तियों को स्वतंत्रता सत्ता से छीन कर प्राप्त होगी। |
शासकों द्वारा स्वतंत्रता प्रदान किये जाने की अपेक्षा। |
लोकतंत्र |
व्यापक लोकतंत्र पर संशयपूर्ण मत; सरकार की सीमित शक्ति और स्थानीय स्वशासन को प्राथमिकता। |
दमितों पर होने वाले अत्याचारों के निवारण और उनकी उन्नति के साधन के रूप में संसदीय लोकतंत्र का समर्थन। |
राजनीतिक विचारधारा |
अहिंसा और विचारधाराओं के व्यावहारिक विकल्पों में विश्वास। |
संस्थागत ढाँचे पर ज़ोर देने के साथ उदार विचारधारा की ओर झुकाव। |
ग्राम व्यवस्था पर विचार |
सच्ची स्वतंत्रता के रूप में 'ग्रामराज' (ग्राम स्वशासन) का समर्थन किया। |
जाति और सामाजिक असमानताओं को बनाए रखने के लिये 'ग्रामराज' की आलोचना की। |
सामाजिक सुधार के प्रति दृष्टिकोण |
परिवर्तन के लिये नैतिक अनुनय और अहिंसक तरीकों का इस्तेमाल किया गया। |
कानूनी और संवैधानिक सुधारों पर ज़ोर दिया तथा बल प्रयोग का विरोध किया। |
अस्पृश्यता पर विचार |
अस्पृश्यता को एक नैतिक मुद्दे के रूप में संबोधित किया, तथा 'हरिजन' शब्द को बढ़ावा दिया। |
गांधीजी के दृष्टिकोण की आलोचना की, अस्पृश्यता को एक प्रमुख मुद्दा माना, जिसे कानूनी तरीकों से हल किया जाना चाहिये। |
धर्म और जाति व्यवस्था |
उनका मानना था कि जाति व्यवस्था वर्ण व्यवस्था का पतन है, न कि धार्मिक आज्ञापन का। |
जाति प्रथा और अस्पृश्यता को बनाए रखने के लिये हिंदू धर्मग्रंथों की निंदा की। |
कानूनी बनाम नैतिक दृष्टिकोण |
मुद्दों को सुलझाने के लिये आचारिक और नैतिक दृष्टिकोण पर ज़ोर दिया गया। |
सुधार के लिये कानूनी और संवैधानिक तरीकों को प्राथमिकता दी गयी। |
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. महात्मा गांधी और बी. आर. अंबेडकर के बीच वैचारिक मतभेदों पर चर्चा कीजिये। साथ ही स्वतंत्रता-पूर्व भारत में जाति आंदोलन का संक्षिप्त विवरण दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. प्राचीन भारत के इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2021)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. अस्पृश्य समुदाय के लोगों को लक्षित कर, प्रथम मासिक पत्रिका विटाल-विध्वंसक किसके द्वारा प्रकाशित की गई थी? (2020) (a) गोपाल बाबा वलंगकर उत्तर: (a) प्रश्न. सत्य शोधक समाज ने संगठित किया: (2016) (a) बिहार में आदिवासियों के उन्नयन का एक आंदोलन उत्तर: (c) प्रश्न. निम्नलिखित में से किन दलों की स्थापना डॉ० भीमराव अंबेडकर ने की थी? (2012)
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. "जाति व्यवस्था नई-नई पहचानों और सहचारी रूपों को धारण कर रही है। अतः भारत में जाति व्यवस्था का उन्मूलन नहीं किया जा सकता है।" टिप्पणी कीजिये। (2018) प्रश्न. अपसारी उपागमों और रणनीतियों के होने के बावजूद, महात्मा गांधी तथा डॉ. बी.आर.अंबेडकर का दलितों की बेहतरी का एक समान लक्ष्य था। स्पष्ट कीजिये। (2015) प्रश्न. इस मुद्दे पर चर्चा कीजिये कि क्या और किस प्रकार दलित प्राख्यान (ऐसर्शन) के समकालीन आंदोलन जाति विनाश की दिशा में कार्य करते हैं। (2015) |
क्रिप्टोकरेंसी और ब्लॉकचेन
प्रिलिम्स के लिये:क्रिप्टोकरेंसी, ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी, सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC), बिटकॉइन, मुद्रास्फीति, डिजिटल वॉलेट, टोकनाइज़ेशन, मनी लॉन्ड्रिंग, कर चोरी। मेन्स के लिये:अर्थव्यवस्था पर क्रिप्टोकरेंसी का प्रभाव |
स्रोत: फाइनेंशियल एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक क्रिप्टो सभा में बिटकॉइन के प्रति समर्थन व्यक्त किया।
- मुद्रास्फीति और आर्थिक संकटों से निपटने के सरकारी तरीकों से व्यापक असंतोष के बीच, पारंपरिक वित्तीय प्रणालियों के प्रति अविश्वास बढ़ा है।
- वित्तीय स्वायत्तता की खोज और ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी की परिवर्तनकारी संभावनाओं में विश्वास से प्रेरित यह क्रांति निरंतर विकसित हो रही है, यद्यपि इसकी स्थायी वित्तीय व्यवहार्यता व अस्तित्व संबंधी स्थिरता अनिश्चित बनी हुई है।
क्रिप्टोकरेंसी क्या है और यह कैसे कार्य करती है?
- क्रिप्टोकरेंसी एक विकेंद्रीकृत डिजिटल या आभासी मुद्रा है, जो सुरक्षा के लिये क्रिप्टोग्राफी का उपयोग करती है। इसके उदाहरणों में बिटकॉइन, एथेरियम, रिपल और लाइटकॉइन शामिल हैं।
- क्रिप्टोकरेंसी के साथ लेनदेन ब्लॉकचैन नामक एक सार्वजनिक डिजिटल खाताबही पर किया जाता है। यह बही-खाता वैश्विक स्तर पर कंप्यूटरों के एक नेटवर्क द्वारा बनाकर रखा जाता है और प्रत्येक नए लेनदेन को सत्यापित किया जाता है, साथ ही इन कंप्यूटरों द्वारा ब्लॉकचेन में जोड़ा जाता है।
- क्रिप्टोग्राफी के इस विकेंद्रीकरण और उपयोग से किसी के लिये भी ब्लॉकचेन पर रिकॉर्ड किये गए लेनदेन में हेर-फेर करना मुश्किल हो जाता है।
- क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग करने के लिये व्यक्तियों या व्यवसायों को पहले एक डिजिटल वॉलेट प्राप्त करना होगा, जो एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है, जो उपयोगकर्त्ता की सार्वजनिक और निजी कुंजियों (केस) को संग्रहीत करता है।
- इन कुंजियों का उपयोग क्रिप्टोकरेंसी भेजने और प्राप्त करने के लिये किया जाता है, साथ ही ब्लॉकचेन पर लेनदेन को सत्यापित करने के लिये भी किया जाता है।
- उपयोगकर्त्ता ‘माइनिंग’ नामक एक प्रक्रिया के माध्यम से क्रिप्टोकरेंसी प्राप्त कर सकते हैं, जिसमें जटिल गणितीय समीकरणों को हल करने के लिये कंप्यूटर की क्षमता का उपयोग करना शामिल है।
- यह प्रक्रिया ब्लॉकचेन पर लेनदेन को सत्यापित और रिकॉर्ड करती है तथा बदले में माइनर को एक निश्चित मात्रा में क्रिप्टोकरेंसी प्रदान करती है।
ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी क्या है?
- यह एक विकेंद्रीकृत डिजिटल बहीखाता है, जो कंप्यूटर के एक नेटवर्क में लेनदेन के रिकॉर्ड रखता है।
- शृंखला में प्रत्येक ब्लॉक में कई लेनदेन होते हैं और जब भी ब्लॉकचेन पर एक नया लेनदेन होता है, तो उस लेनदेन का एक रिकॉर्ड प्रत्येक प्रतिभागी के बही-खाता में जोड़ा जाता है।
- प्रौद्योगिकी की विकेंद्रीकृत प्रकृति यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी इकाई उच्च स्तर की सुरक्षा और पारदर्शिता प्रदान करते हुए पिछले लेनदेन को परिवर्तित या हटा नहीं सकती है।
- ब्लॉकचैन बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी की नींव है, लेकिन डिजिटल मुद्राओं से परे इसके कई संभावित उपयोग हैं।
- वित्तीय संस्थाएँ सुरक्षित और पारदर्शी लेनदेन प्रसंस्करण, धोखाधड़ी तथा परिचालन लागत को कम करने के लिये ब्लॉकचेन का उपयोग कर रही हैं।
- ब्लॉकचेन-आधारित तंत्र का उपयोग छात्रवृत्ति प्रणाली को डिज़ाइन करने के लिये भी किया जा सकता है, जो छात्रों को निरंतरता बनाए रखने और शैक्षणिक उत्कृष्टता प्राप्त करने हेतु प्रोत्साहित करेगी।
- ब्लॉकचेन विद्यार्थियों के रिकॉर्ड को प्रबंधित करने के लिये एक उत्कृष्ट ढाँचा प्रदान कर सकता है, जिसमें दैनिक जानकारी जैसे कि असाइनमेंट, उपस्थिति और पाठ्येतर गतिविधियों से लेकर उनकी डिग्री व कॉलेजों की जानकारी तक शामिल है।
भारत में क्रिप्टोकरेंसी की कानूनी स्थिति क्या है?
- भारत में क्रिप्टोकरेंसी अनियमित है, लेकिन इस पर विशेष रूप से प्रतिबंध नहीं है। सरकार क्रिप्टोकरेंसी को कानूनी मुद्रा के रूप में मान्यता नहीं देती है। इसका उद्देश्य अवैध गतिविधियों के वित्तपोषण या भुगतान पद्धति के रूप में उनके उपयोग को सीमित करना है।
- वर्ष 2022 में भारत सरकार ने केंद्रीय बजट 2022-23 में उल्लेख किया कि किसी भी आभासी मुद्रा/क्रिप्टोकरेंसी परिसंपत्ति का हस्तांतरण 30% कर कटौती के अधीन होगा।
- भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (National Payments Corporation of India- NPCI) ने वित्तीय सेवा विभाग (DFS), राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (National Health Authority- NHA), स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare- MoHFW) और साझेदार बैंकों के साथ मिलकर भारत की अपनी सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (Central Bank Digital Currency- CBDC) – डिजिटल रुपया या ‘e-RUPI’ लॉन्च की है।
- CBDC कागजी मुद्रा का एक डिजिटल रूप है और शून्य नियामक में काम करने वाली क्रिप्टोकरेंसी के विपरीत ये केंद्रीय बैंक द्वारा जारी और समर्थित वैध मुद्राएँ हैं।
- डिजिटल फिएट मुद्रा या CBDC का लेनदेन ब्लॉकचेन द्वारा समर्थित वॉलेट्स का उपयोग करके किया जा सकता है।
- यद्यपि CBDC की अवधारणा सीधे बिटकॉइन से प्रेरित थी, फिर भी यह विकेंद्रीकृत आभासी मुद्राओं और क्रिप्टो परिसंपत्तियों से अलग है, जिन्हें राज्य द्वारा जारी नहीं किया जाता है तथा उन्हें ‘वैध मुद्रा’ का दर्जा नहीं प्राप्त है।
क्रिप्टोकरेंसी के गुण और दोष क्या हैं?
क्रिप्टोकरेंसी के गुण:
- ब्लॉकचेन-संचालित सुरक्षा और पारदर्शिता: क्रिप्टोकरेंसी ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी पर आधारित है, जो वित्तीय लेनदेन में सुरक्षा, पारदर्शिता तथा दक्षता प्रदान करती है।
- इस विकेंद्रीकृत खाताबही प्रणाली से वित्तीय संस्थाओं के लिये धोखाधड़ी के जोखिम और परिचालन लागत में कमी आती है तथा अधिक सुरक्षित एवं पारदर्शी संव्यवहार (लेनदेन) परिवेश सुनिश्चित होता है।
- नवाचार और टोकनाइज़ेशन की संभावना: अंतर्निहित ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी से टोकनाइज़ेशन सक्षम होता है, जिसका क्रियान्वन विभिन्न क्षेत्रों में किया जा सकता है, जिससे परिसंपत्तियों को डिजिटल टोकन में परिवर्तित किया जा सकता है।
- इस नवाचार का उपयोग क्रिप्टोकरेंसी की आवश्यकता के बिना किया जा सकता है, जिससे नवीन वित्तीय साधन और परिसंपत्ति प्रबंधन मॉडल सरल होंगे।
- वैश्विक वित्त के स्वरुप में परिवर्तन: क्रिप्टोकरेंसी परिसंपत्तियों से संबंधित हुए नवीनतम विकास का उदाहरण हैं, जो विश्वास की सीमाओं में विस्तार, स्वामित्व को पुनः परिभाषित और विश्व में स्थापित वित्तीय प्रणालियों को महत्त्वपूर्ण रूप से नया स्वरुप प्रदान कर रही है।
- जैसे-जैसे डिजिटल परिसंपत्तियाँ स्वीकार्य होंगी, वे मूल्य को संग्रहीत करने और इसे सीमाओं के पार स्थानांतरित करने के तरीके में परिवर्तन ला सकती हैं, जिससे वित्तीय समावेशन एवं वैश्विक व्यापार के लिये एक नए परिवेश का निर्माण होगा।
- वित्तीय स्वायत्तता की संभावना: क्रिप्टोकरेंसी विशेषकर अस्थिर अर्थव्यवस्था वाले क्षेत्रों में अथवा बैंकिंग की परंपरागत प्रणालियों तक सीमित पहुँच वाले क्षेत्रों में वित्तीय स्वायत्तता का एक साधन प्रदान करती हैं।
- वे व्यक्तियों और व्यवसायों को केंद्रीकृत वित्तीय संस्थानों का विकल्प प्रदान करते हैं, जो संभावित रूप से बैंकिंग के परंपरागत बुनियादी ढाँचे पर निर्भरता को कम करते हैं।
क्रिप्टोकरेंसी के अवगुण:
- अप्रत्याशित प्रकृति और अस्थिरता: क्रिप्टोकरेंसी की अत्यधिक अप्रत्याशित/अनिश्चित प्रकृति से प्रायः इनकी कार्यात्मक क्षमता प्रभावित होती है। इनका मूल्य अधिकतर बाज़ार की स्थिति और पूर्वानुमानों पर आधारित होता होता है, जिससे कीमतों में अत्यधिक अस्थिरता आती है।
- यह अस्थिरता विनिमय के एक स्थिर माध्यम और मूल्य के एक विश्वसनीय साधन के रूप में उनकी उपयोगिता को प्रभावित करती है।
- नियामक चुनौतियाँ और अनिश्चितता: क्रिप्टोकरेंसी से संबद्ध नियामक परिवेश में अनिश्चितता की बहुलता है, जिसमें सरकारें स्वीकृति और पूर्ण प्रतिबंध के बीच संघर्ष करती हैं।
- सीमित व्यावहारिक उपयोगिता और स्वीकृति: वित्तीय संस्थानों और व्यापारियों द्वारा क्रिप्टोकरेंसी की सीमित स्वीकृति उनकी व्यावहारिक उपयोगिता को प्रतिबंधित करती है।
- क्रिप्टो परिसंपत्तियों की अस्थिरता व्यवसायों के लिये वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों को सुसंगततः निर्धारित करना चुनौतीपूर्ण बनाती है, जिससे रोज़मर्रा के लेनदेन में उनका उपयोग सहज़ नहीं हो पाता है।
- इसके अतिरिक्त परंपरागत वित्तीय प्रणालियों के साथ एकीकरण की कमी क्रिप्टो को फिएट करेंसी में बदलने को जटिल बनाती है, जिससे यह व्यवसायों के लिये बोझिल और खर्चीला हो जाता है।
- उच्च लेनदेन लागत और अकुशलता: परंपरागत भुगतान विधियों की अपेक्षा क्रिप्टोकरेंसी के मामले में प्रायः उच्च लेनदेन शुल्क और प्रसंस्करण की धीमी गति जैसी समस्याएँ होती हैं।
निष्कर्ष
निष्कर्षतः भारत में क्रिप्टोकरेंसी की बढ़ती वृद्धि डिजिटलीकरण की दिशा में देश की तीव्र प्रगति को दर्शाती है। हालाँकि क्रिप्टो-एसेट्स मार्केट को नियंत्रित करने वाले नियामक ढाँचे की अनुपस्थिति के कारण इस द्रुत विस्तार के साथ महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ भी हैं। यह नियामक शून्यता न केवल इस क्षेत्र में उद्यम करने के इच्छुक व्यवसायों के लिये अनिश्चितता उत्पन्न करती है, बल्कि निवेशकों को संभावित धोखाधड़ी और वित्तीय अपराधों के लिये भी उजागर करती है। इसके अलावा एक अनियमित पारिस्थितिकी तंत्र अनजाने में मनी लॉन्ड्रिंग, धोखाधड़ी और आतंकवाद के वित्तपोषण के लिये एक माध्यम के रूप में काम कर सकता है, जिसके लिये सुदृढ़ नियामक निगरानी की तत्काल स्थापना की आवश्यकता होती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. आर्थिक स्थिरता, विनियामक चुनौतियों और बाज़ार की अस्थिरता से संबंधित जोखिमों का परीक्षण करते हुए वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में क्रिप्टोकरेंसी की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। भारत के विनियामक ढाँचे के लिये निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. ‘‘ब्लॉकचेन तकनीकी’’ के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर : (d) प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 2 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. चर्चा कीजिये कि किस प्रकार उभरती प्रौद्योगिकियाँ और वैश्वीकरण मनी लॉन्ड्रिंग में योगदान करते हैं। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर मनी लॉन्ड्रिंग की समस्या से निपटने के लिये किये जाने वाले उपायों को विस्तार से समझाइये। (2021) प्रश्न. क्रिप्टोकरेंसी क्या है? वैश्विक समाज को यह कैसे प्रभावित करती है? क्या यह भारतीय समाज को भी प्रभावित कर रही है? (2021) |
एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (AQLI) 2024
प्रिलिम्स के लिये:एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (AQLI) 2024, PM2.5, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), कुपोषण, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका (MENA), जल और स्वच्छता, राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक, प्रदूषण मेन्स के लिये:स्वास्थ्य और जीवन प्रत्याशा पर वायु प्रदूषण का प्रभाव |
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
चर्चा में क्यों?
हाल ही में शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान (EPIC) ने एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (AQLI) 2024 जारी किया।
- भारत में लगभग 40% जनसंख्या ऐसे वातावरण में जीवन निर्वाह करती है, जिसमें वायु गुणवत्ता का स्तर वार्षिक PM2.5 सीमा 40 µg/m³ से अधिक है।
AQLI 2024 से संबंधित प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- जीवन प्रत्याशा पर वायु प्रदूषण का प्रभाव: रिपोर्ट के अनुसार यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार PM2.5 (2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास वाले कण) प्रदूषण को कम कर दिया जाए तो औसत व्यक्ति 1.9 वर्ष अधिक जीवित रह सकता है, जिससे वैश्विक स्तर पर कुल व्यक्तियों के जीवन में 14.9 बिलियन वर्ष की वृद्धि होगी।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों के अनुसार PM2.5 की वार्षिक औसत सांद्रता 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (µg/m3) से अधिक नहीं होनी चाहिये।
- दीर्घकालिक रोगों से भी अधिक घातक: वायु प्रदूषण के प्रभाव धूम्रपान, शराब का अत्यधिक सेवन से होने वाले प्रभावों से भी घातक हैं तथा ये एच.आई.वी./एड्स और कुपोषण जैसे स्वास्थ्य के अन्य प्रमुख जोखिमों से भी कई गुना अधिक घातक हैं।
- प्रदूषण का असमान वितरण: प्रदूषण के स्तर में भिन्नता है।
- सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों में जीवन निर्वाह करने वाले लोग स्वच्छतम क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की तुलना में छह गुना अधिक प्रदूषित वायु में श्वसन करते हैं, जिससे उनकी जीवन प्रत्याशा औसतन 2.7 वर्ष कम हो जाती है।
- गुणवत्ता मानक का अनुपालन: यद्यपि कई देशों ने राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक स्थापित किये हैं किंतु रिपोर्ट के अनुसार अभी भी इनके क्रियान्वयन एवं अनुपालन से संबंधित महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार, 94 देशों ने PM 2.5 के मानक स्थापित किये हैं, जिनमें से 37 अपने स्वयं से जारी किये गए दिशा-निर्देशों को पूरा करने में विफल रहे हैं। इसके अतिरिक्त, 158 देशों ने कोई मानक निर्धारित नहीं किया है।
- अनुपालन के संभावित लाभ: विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रदूषण मानकों को पूरा करने के कई संभावित लाभ हैं।
- यदि सभी देश अपने लक्ष्य हासिल करते हैं तो इन क्षेत्रों में निवास कर रहे औसत व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा में 1.2 वर्ष की वृद्धि होगी।
- वैश्विक परिदृश्य:
- अमेरिका, चीन, यूरोप: संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और चीन ने कठोर नीतियाँ लागू की हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रदूषण के स्तर में उल्लेखनीय कमी आई है।
- चीन में वर्ष 2014 से वायु प्रदूषण में 41% की कमी आई है तथा चीन के लोगों का जीवन 2 वर्ष बढ़ गया है।
- वर्ष 1970 के बाद से अमेरिका ने प्रदूषण में 67.2% की कमी की है, जिससे औसत जीवनकाल 1.5 वर्ष बढ़ गया है।
- वर्ष 1998 के बाद से यूरोप में जीवन प्रत्याशा में 30.2% की कमी आई है तथा जीवन प्रत्याशा में 5.6 महीने की वृद्धि हुई है।
- दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया: दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में वर्ष 2022 में उल्लेखनीय सुधार देखा गया, जिसमें वर्ष 2012 की तुलना में PM 2.5 के स्तर में 4% की गिरावट देखी गई।
- इस सुधार के बावजूद भी दक्षिण एशिया विश्व का सबसे प्रदूषित क्षेत्र बना हुआ है, जहाँ उच्च प्रदूषण के कारण वैश्विक जीवन वर्षों का 45% हिस्सा का ह्रास हो जाता है।
- बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान विश्व स्तर पर सबसे प्रदूषित देशों में शामिल हैं।
- म्याँमार में वायु प्रदूषण के कारण जीवन प्रत्याशा 2.9 वर्ष कम है।
- अफ्रीका: मध्य और पश्चिम अफ्रीका में वायु प्रदूषण वर्ष 2022 में काफी हद तक अपरिवर्तित रहा है।
- क्षेत्र की औसत PM 2.5 सांद्रता 22.2 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (μg/m3) है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देश से 4.4 गुना अधिक है।
- प्रदूषण का यह स्तर पूरे क्षेत्र में जीवन प्रत्याशा को औसतन 1.7 वर्ष तक कम कर रहा है।
- हालाँकि नाइजीरिया, रवांडा तथा घाना ने हाल ही में वायु गुणवत्ता विनियमन और मानक लागू किये हैं।
- पश्चिम एशिया: मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका (MENA) क्षेत्र एक नए प्रदूषण हॉटस्पॉट के रूप में उभरा है, जिससे पूरे क्षेत्र में जीवन प्रत्याशा औसतन 1.3 वर्ष कम हो गई है।
- कतर और इराक इस क्षेत्र के सबसे प्रदूषित देश हैं।
- लैटिन अमेरिका: लैटिन अमेरिका के PM 2.5 के स्तर में वर्ष 2021 से 4.8% और वर्ष 1998 से 3% की वृद्धि हुई।
- बोलीविया लैटिन अमेरिका का सबसे प्रदूषित देश है, ग्वाटेमाला में वायु प्रदूषण से जीवन प्रत्याशा 2.1 वर्ष कम हो जाती है।
- बोगोटा, मैक्सिको सिटी और क्विटो जैसे शहरों में प्रदूषण से निपटने के लिये वाहन चलाने पर प्रतिबंध लागू किये गए हैं तथा सार्वजनिक परिवहन में सुधार किया गया है।
- अमेरिका, चीन, यूरोप: संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और चीन ने कठोर नीतियाँ लागू की हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रदूषण के स्तर में उल्लेखनीय कमी आई है।
AQLI 2024 में भारत के लिये विशिष्ट निष्कर्ष क्या हैं?
- दिल्ली में जीवन प्रत्याशा पर स्वच्छ वायु का प्रभाव: स्वच्छ वायु जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के 5 µg/m³ के दिशानिर्देशों को पूरा करती है, दिल्ली के 18.7 मिलियन निवासियों की जीवन प्रत्याशा को 7.8 वर्ष तक बढ़ा सकती है।
- भारत के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक (40 µg/m³) को प्राप्त करने से जीवन प्रत्याशा 4.3 वर्ष बढ़ सकती है।
- दिल्ली में वर्तमान वायु गुणवत्ता और रुझान: वर्ष 2022 में औसत PM2.5 स्तर 84.3 µg/m³ के साथ दिल्ली भारत का सबसे प्रदूषित शहर है।
- हालाँकि वर्ष 2022 में औसत वार्षिक PM2.5 सांद्रता 84.3 µg/m3 के साथ दिल्ली में महत्त्वपूर्ण सुधार देखा गया है।
- पूरे भारत में वायु गुणवत्ता में सुधार: पिछले दशक के दौरान भारत में कणिका पदार्थ प्रदूषण में औसत 49 µg/m³ से वर्ष 2022 में 41.4 µg/m³ तक की कमी देखी गई।
- यदि प्रदूषण में यह गिरावट जारी रहती है तो आम भारतीय पिछले दस वर्षों में दर्ज किये गए प्रदूषण-स्तरों के मुकाबले नौ महीने अधिक जी सकते हैं।
- अन्य स्वास्थ्य जोखिमों के साथ तुलना: कणिका पदार्थ प्रदूषण के कारण भारतीय निवासी के जीवन में 3.6 वर्ष की कमी आती है, जबकि कुपोषण के कारण 1.6 वर्ष, तंबाकू के कारण 1.5 वर्ष और असुरक्षित जल एवं स्वच्छता के कारण 8.4 महीने की कमी आती है।
वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (Air Quality Life Index- AQLI) क्या है?
- AQLI एक प्रदूषण सूचकांक है, जो गणना करता है कि कणिका पदार्थ वायु प्रदूषण से जीवन प्रत्याशा पर कितना प्रभाव पड़ता है।
- विश्व भर के समुदायों में कणिका प्रदूषण की वास्तविक स्थिति का निर्धारण वायु प्रदूषण के दीर्घकालिक मानवीय संपर्क और जीवन प्रत्याशा के बीच संबंध को सूचकांक के साथ जोड़कर किया जाता है।
- सूचकांक यह भी दर्शाता है कि वायु प्रदूषण नीतियाँ जीवन प्रत्याशा को किस प्रकार बढ़ा सकती हैं, जब वे जोखिम के सुरक्षित स्तर, मौजूदा राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों या यूज़र-डिफाइंड वायु गुणवत्ता स्तरों के लिये WHO के दिशानिर्देश को पूरा करती हैं।
हम वायु प्रदूषण को किस प्रकार नियंत्रित कर सकते हैं?
- रोकथाम: प्रदूषण को उसके स्रोत पर कम करने, खत्म करने या रोकने के लिये प्रदूषण रोकथाम दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
- उदाहरण के लिये, कम विषाक्त कच्चे माल या ईंधन जैसे: BSVI इंजन का उपयोग करना, कम प्रदूषणकारी औद्योगिक प्रक्रिया का उपयोग करना और प्रक्रिया की दक्षता में सुधार करना।
- स्वच्छ वायु प्रौद्योगिकी को अपनाना: वायु प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण प्रौद्योगिकियाँ वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद कर सकती हैं।
- इसमें वेट स्क्रबर, फैब्रिक फिल्टर (बैगहाउस), इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रीसिपिटेटर, कंडेनसर, एबज़ॉर्बर, एडज़ॉर्बर और जैविक क्षरण शामिल हैं।
- आर्थिक प्रोत्साहन: प्रदूषणकारी उद्योगों के लिये एमिशन ट्रेडिंग और एमिशन कैप जैसे आर्थिक प्रोत्साहन का उपयोग किया जा सकता है।
- पुराने वाहनों की स्क्रैपिंग: देश में वर्तमान में एंड-ऑफ-लाइफ वाहनों (ELV) के बोझ को खत्म करने से वाहन जनित प्रदूषण के कारण होने वाले उत्सर्जन में 15-20% की कमी आएगी।
- वर्क-फ्रॉम-होम: वायु प्रदूषण से निपटने के लिये सरकार सर्दियों जैसे उच्च प्रदूषण वाले दिनों में घर से काम करने की नीतियों को बढ़ावा दे सकती है।
- कृत्रिम वर्षा: यह हवा में मौजूद प्रदूषकों जैसे कि पार्टिकुलेट मैटर (PM), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) को हटा सकती है।
- व्यवहार में बदलाव: सार्वजनिक परिवहन, साइकिल चलाने के उपयोग और पैदल चलने को बढ़ावा देने से सड़क पर व्यक्तिगत वाहनों की संख्या कम हो सकती है, जिससे उत्सर्जन एवं वायु प्रदूषण कम होगा।
वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये सरकार द्वारा क्या पहल की गई हैं?
निष्कर्ष
वायु प्रदूषण भारत के लिये एक बड़ा खतरा है, जो कुपोषण या तंबाकू के सेवन जैसे अन्य जोखिमों की तुलना में जीवन प्रत्याशा को कम करता है। हाल के सुधारों के बावजूद निरंतर प्रगति के लिये मज़बूत नीतियों, प्रवर्तन और स्वच्छ वायु के प्रति प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। WHO के दिशा-निर्देशों का पालन करने से पूरे देश में जीवन प्रत्याशा और समग्र सार्वजनिक स्वास्थ्य में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. वायु प्रदूषण भारत में एक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है, जो जीवन प्रत्याशा और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। स्थायी वायु गुणवत्ता सुधार प्राप्त करने के लिये अतिरिक्त रणनीतियाँ सुझाएँ। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. सार्वजनिक परिवहन में बसों के लिये ईंधन के रूप में हाइड्रोजन समृद्ध CNG (H-CNG) के उपयोग के प्रस्तावों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से कौन फसल/बायोमास अवशेषों को जलाने के कारण वायुमंडल में उत्सर्जित होता है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एन.जी.टी.) किस प्रकार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी.) से भिन्न है? (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) |
NIA की आतंकवाद-गैंगस्टर नेक्सस से लड़ाई
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण, संगठित अपराध, लश्कर-ए-तैयबा, वर्ष 2008 मुंबई हमले, प्रशासनिक सुधार आयोग मेन्स के लिये:संगठित अपराध और आतंकवाद, आतंक-गैंगस्टर गठजोड़, मनी लॉन्ड्रिंग/धन-शोधन, हथियारों की तस्करी। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) ने हाल ही में पंजाब, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के पुलिस अधिकारियों के साथ अपनी पहली बैठक बुलाई, ताकि आतंक-गैंगस्टर गठजोड़ की बढ़ती चिंता से निपटा जा सके।
- यह बैठक आतंकी समूहों, विशेषकर खालिस्तान समर्थक तत्त्वों (PKE) और पाकिस्तान से जुड़े संगठित अपराध से जुड़ी बढ़ती रिपोर्टों के मद्देनज़र हुई।
आतंकवाद-गैंगस्टर नेक्सस/गठजोड़ पर NIA की बैठक के मुख्य तथ्य क्या हैं?
- ज़बरन वसूली के लिये किये गए कॉल की मैपिंग: बैठक में गैंगस्टरों द्वारा विशेषकर आतंकी सिंडिकेट, PKE और पाकिस्तान स्थित नेटवर्क से जुड़े लोगों द्वारा की गई ज़बरन वसूली हेतु किये गए कॉल की मैपिंग पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- साइबर अपराध और ड्रग तस्करी: गिरफ्तारी से बचने के लिये गैंगस्टरों द्वारा साइबरस्पेस का उपयोग और मादक पदार्थ की तस्करी में उनकी संलिप्तता चर्चा के मुख्य विषय थे।
- केंद्र-राज्य समन्वय: बैठक में संगठित अपराध और आतंकवाद से निपटने में केंद्र-राज्य समन्वय को सुदृढ़ करने के लिये सहयोगात्मक कार्य योजनाओं एवं समान मानक प्रचालन प्रक्रियाओं (SOP) के कार्यान्वयन की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया।
- रणनीतिक महत्त्व: बैठक केंद्रीय गृह मंत्री के निर्देश के अनुरूप है, जिसमें NIA के अधिकार क्षेत्र के तहत एक आदर्श आतंकवाद विरोधी संरचना स्थापित करने का लक्ष्य है, जिसका उद्देश्य आतंक-गैंगस्टर नेक्सस/गठजोड़ से निपटने के लिये अधिक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाना है।
आतंक-गैंगस्टर नेक्सस/गठजोड़ क्या है?
- परिचय: आतंक-गैंगस्टर नेक्सस/गठजोड़ संगठित अपराध समूहों (गैंगस्टर) और आतंकवादी संगठनों के बीच सहयोग को संदर्भित करता है।
- इस गठबंधन में प्रायः अपने-अपने लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिये संसाधनों, नेटवर्क और संचालन रणनीति को साझा करना शामिल होता है।
- आतंकवाद और संगठित अपराध एक सहजीवी संबंध साझा करते हैं, जहाँ एक के संचालन से प्रायः दूसरे को लाभ होता है।
- इन गठजोड़ों में प्रायः अंतर्राष्ट्रीय आयाम होते हैं, जिनका संबंध उन देशों से होता है, जो आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करते हैं या इन्हें आश्रय देते हैं।
- गैंगस्टर प्रायः आतंकवादी समूहों को वित्तीय सहायता और रसद सहायता प्रदान करते हैं। इसमें मनी लॉन्ड्रिंग/धन शोधन, मादक पदार्थों की तस्करी और हथियारों की तस्करी शामिल हो सकती है।
- आतंकवादी संगठन आपराधिक गिरोहों से सदस्यों की भर्ती कर सकते हैं, हिंसा और कानून प्रवर्तन से बचने में अपने मौजूदा कौशल का लाभ उठा सकते हैं।
- भारत में गैंगस्टर-आतंकवाद नेक्सस/गठजोड़ के प्रमुख संघर्ष क्षेत्र:
- जम्मू और कश्मीर (J&K): लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे अन्य पाकिस्तान स्थित संगठन J&K में काम करते हैं, जिन्हें प्रायः हवाला, मनी लॉन्ड्रिंग और ड्रग मनी के माध्यम से वित्त पोषित किया जाता है।
- वर्ष 1989 में रुबिया सईद का अपहरण और वर्ष 1999 में इंडियन एयरलाइंस विमान का अपहरण, आतंकवादी एजेंडे को आगे बढ़ाने वाले आपराधिक गतिविधियों को उजागर करता है।
- पूर्वोत्तर राज्य: यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) और नगा उग्रवादियों जैसे समूहों के जुड़े लगातार उग्रवाद से हुई खराब शासन व्यवस्था के कारण अपराधी-आतंकवादी सहयोग को बढ़ावा मिलता है।
- म्याँमार एवं बांग्लादेश में आपराधिक समूहों का सहयोग समस्या को और बढ़ा देता है, जिससे इस क्षेत्र में अपराध-आतंकवाद का एक सुस्थापित गठजोड़ बन जाता है।
- पश्चिमी भारत (महाराष्ट्र और गुजरात): दाऊद इब्राहिम के नेतृत्व वाली कुख्यात 'D-कंपनी' संगठित अपराध और आतंकवाद के बीच ओवरलैप को दर्शाती है, विशेषकर वर्ष 1993 के मुंबई बम विस्फोटों और वर्ष 2008 के मुंबई हमलों में।
- इंडियन मुजाहिदीन (IM) और स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) जैसे समूह अपने संचालन हेतु धन जुटाने के लिये आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहे हैं।
- नक्सलवादी/माओवादी ('रेड कॉरिडोर'): मध्य और पूर्वी भारत के कई राज्यों में फैले नक्सलवादी आंदोलन ने संगठित अपराध के साथ भी मज़बूत संबंध प्रदर्शित किया है।
- माओवादी समूह जबरन वसूली, अवैध हथियारों के व्यापार तथा अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में समानांतर सरकार चलाने में संलिप्त हैं।
- उनके कार्यों को आपराधिक गतिविधियों से वित्त पोषित किया जाता है, जो बदले में भारतीय राज्य के खिलाफ उनके विद्रोह को बढ़ावा देता है।
- पंजाब: पंजाब में आतंकवाद का इतिहास, विशेषकर खालिस्तान आंदोलन के दौरान, मुख्य रूप से मादक पदार्थों की तस्करी से वित्त पोषित हुआ था। राज्य में आतंकवाद-मादक पदार्थों का गठजोड़ चिंता का विषय बना हुआ है।
- हरियाणा और दिल्ली: इन क्षेत्रों में गैंगस्टर संबंधी गतिविधियों में वृद्धि देखी गई है तथा आतंकवादी समूहों से इनके संबंध स्पष्ट होते जा रहे हैं।
- इन संस्थाओं द्वारा समन्वय और संचालन के लिये साइबरस्पेस का उपयोग एक बढ़ती हुई चिंता का विषय रहा है।
- जम्मू और कश्मीर (J&K): लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे अन्य पाकिस्तान स्थित संगठन J&K में काम करते हैं, जिन्हें प्रायः हवाला, मनी लॉन्ड्रिंग और ड्रग मनी के माध्यम से वित्त पोषित किया जाता है।
राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण के विषय में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: अंतर-राज्यीय और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों से जुड़े आतंकवाद के बहुमुखी खतरों से निपटने के लिये भारत सरकार ने वर्ष 2008 में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) की स्थापना की।
- इसकी स्थापना वर्ष 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के प्रतिक्रियास्वरूप की गई थी। इसका गठन राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण अधिनियम, 2008 के तहत किया गया है।
- इसकी शुरुआत प्रशासनिक सुधार आयोग सहित विभिन्न विशेषज्ञों और समितियों की सिफारिशों के आधार पर की गई थी।
- संगठनात्मक संरचना: केंद्रीय गृह मंत्रालय (मूल मंत्रालय), नई दिल्ली (मुख्यालय)।
जाँच प्रक्रिया: राज्य सरकारें केंद्र सरकार (केंद्रीय गृह मंत्रालय) के माध्यम से NIA को मामले भेज सकती हैं। NIA स्वप्रेरणा से या केंद्र सरकार के निर्देश पर भी मामले की जाँच कर सकती है।
NIA भारत के बाहर किये गए अनुसूचित अपराधों की जाँच कर सकती है, यदि वे उसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
- अधिदेश और अधिकार क्षेत्र: राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित करने वाले अपराधों की जाँच तथा मुकदमा चलाना।
- अधिकार क्षेत्र: विशेष अनुमति की आवश्यकता के बिना राज्यों में कार्य करता है, NIA (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत भारत के बाहर किये गए अपराधों की भी जाँच कर सकती है।
- अनुसूचित अपराध: NIA, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम 1908, परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1962, गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम 1967, अपहरण विरोधी अधिनियम 2016 और अन्य कानूनों के तहत विभिन्न अपराधों की जाँच करती है।
- सितंबर 2020 में NIA के कार्यक्षेत्र का विस्तार करके इसमें आतंकवाद से जुड़े नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट के तहत आने वाले अपराधों को भी शामिल किया गया था।
- विशेष न्यायालय: संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से केंद्र सरकार द्वारा नामित विशेष न्यायालयों में मुकदमे चलाए जाते हैं।
- आतंकवाद-गैंगस्टर नेक्सस से संबंधित ऑपरेशन: ऑपरेशन धवस्त।
आतंकवाद-गैंगस्टर नेक्सस से निपटने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- कानून: भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 में संगठित अपराध हेतु प्रावधान प्रस्तुत किये जाने के बावजूद इस ढाँचे को महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA), 1999 जैसे मौजूदा राज्य कानूनों के साथ एकीकृत करने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं, विशेष रूप से ऐसे अपराधों की अंतर-राज्यीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति को देखते हुए।
- जटिल नेटवर्क: आतंकवादी और गैंगस्टर दोनों ही समूह जटिल विकेंद्रित नेटवर्क का उपयोग करते हैं, जिससे कानून प्रवर्तन के लिये उन्हें ट्रैक करना और उन्हें विघटित करना कठिन हो जाता है।
- संसाधन साझा करना: ये समूह अक्सर हथियार, धन और सुरक्षित आवास जैसे संसाधनों को साझा करते हैं, जिससे उनकी परिचालन क्षमता तथा लचीलापन बढ़ता है।
- कानूनी और न्यायिक मुद्दे: विभिन्न देशों में कानून और प्रवर्तन के स्तर अलग-अलग हैं, जिससे अंतराल उत्पन्न होता है, जिसका लाभ ये समूह उठाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग अक्सर कानूनी और नौकरशाही बाधाओं से बाधित होता है।
- महत्त्वपूर्ण जानकारी देने वाले गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- प्रौद्योगिकी उन्नति: संचार, एन्क्रिप्शन और साइबर अपराध हेतु उन्नत प्रौद्योगिकी के उपयोग से अधिकारियों के लिये उनकी गतिविधियों को रोकना तथा निगरानी करना कठिन हो जाता है।
- भ्रष्टाचार और घुसपैठ: कानून प्रवर्तन और सरकारी एजेंसियों के भीतर भ्रष्टाचार इन नेटवर्कों से निपटने के प्रयासों में बाधा डाल सकता है। इसके अतिरिक्त ये समूह सुरक्षा और अंदरूनी जानकारी हासिल करने के लिये राज्य संस्थानों में घुसपैठ कर सकते हैं।
- स्थानीय समर्थन और प्रभाव: इन समूहों को अक्सर प्रभावी स्थानीय समर्थन (जैसे स्लीपर सेल) प्राप्त होता है, जो उन्हें सुरक्षा व संसाधन प्रदान कर सकता है, जिससे उन्हें समाप्त करना कठिन हो जाता है।
आगे की राह
- विधायी सुधार: संपूर्ण भारत में संगठित अपराध का एकरूपता से निवारण करने के लिये BNS, 2023 का प्रभावी कार्यान्वयन करने की आवश्यकता है।
- इस कानून में आपराधिक गिरोहों और उनके सदस्यों को परिभाषित किया जाना चाहिये तथा उनसे निपटने हेतु कठोर प्रावधान निर्धारित किये जाने चाहिये, जिसमें ज़मानत प्रावधान और समय सीमा में सख्त जाँच किया जाना शामिल है।
- आतंकवादी वित्तपोषण से निपटने हेतु कानूनों और विनियमों को सुदृढ़ करना आवश्यक है, जिसमें चरमपंथी समूहों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली वर्चुअल करेंसी और क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म (डार्क नेट) की निगरानी करने जैसे उपाय शामिल हैं।
- अपराधियों का समाज में पुनर्निवेशन करने और उनकी आदतन अपराध करने की प्रवृत्ति को कम करने के लिये उनके लिये व्यापक पुनर्वास कार्यक्रम क्रियान्वित किये जाने चाहिये।
- नेटवर्क मैपिंग: सभी ज्ञात आतंकी-गैंगस्टर नेक्सस, उनके दूसरे-पंक्ति कमांडरों और उनके ऑपरेटिव के नेटवर्क का एक व्यापक डेटाबेस विकसित किये जाने की आवश्यकता है। इन नेटवर्क का उन्मूलन करने हेतु लगातार और विस्तृत पूछताछ करने के साथ-साथ छापेमारी की जानी चाहिये।
- इन समूहों की ऑनलाइन गतिविधियों को ट्रैक करने और उनकी रोकथाम करने के लिये उन्नत डिजिटल फोरेंसिक और ब्लॉक चेन क्षमताओं में निवेश करना चाहिये, जिसमें सोशल मीडिया और एन्क्रिप्टेड संचार चैनलों का उपयोग शामिल है।
- संयुक्त अभियान: अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी नेटवर्कों का उन्मूलन करने और अपराधियों को विधि के तहत सज़ा देने हेतु INTERPOL जैसी विदेशी विधि प्रवर्तन एजेंसियों के साथ संयुक्त अभियान की शुरुआत करना चाहिये।
- आतंकवादी और आपराधिक नेटवर्क का पता लगाने, महत्त्वपूर्ण सूचना इकट्ठा करने और उनकी गतिविधियों की रोकथाम करने के लिये निरंतर और परिष्कृत अंडरकवर ऑपरेशन चलाए जाने चाहिये।
- संगठित गिरोहों का उन्मूलन करने हेतु छोटे, स्वतंत्र, आत्मनिर्भर विशेष कार्य बल (STF) का गठन किया जाना चाहिये। इन इकाइयों को बिना किसी नौकरशाही बाधा के छापे, ज़ब्ती और पूछताछ करने का अधिकार होना चाहिए और आवश्यक रसद और उपकरणों से लैस होना चाहिये।
दृष्टि मेन्स पश्न: प्रश्न. भारत में आतंकवाद-गैंगस्टर गठजोड़, राष्ट्रीय सुरक्षा पर इसके प्रभाव एवं विधि के प्रवर्तन में इससे उत्पन्न चुनौतियों की विवेचना कीजिये। कौन-सी रणनीतियों से इन नेटवर्कों का प्रभावी रूप से उन्मूलन किया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. आतंकवाद की जटिलता और तीव्रता, इसके कारणों, संबंधों तथा अप्रिय गठजोड़ का विश्लेषण कीजिये। आतंकवाद के खतरे के उन्मूलन के लिये उठाये जाने वाले उपायों का भी सुझाव दीजिये। (2021) प्रश्न. विश्व के दो सबसे बड़े अवैध अफीम उत्पादक राज्यों से भारत की निकटता ने भारत की आंतरिक सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। नशीली दवाओं के अवैध व्यापार एवं बंदूक बेचने, गुपचुप धन विदेश भेजने और मानव तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों के बीच कड़ियों को स्पष्ट कीजिये। इन गतिविधियों को रोकने के लिये क्या-क्या प्रतिरोधी उपाय किये जाने चाहिये? (2018) |
खाद्य तेलों में वृद्धि हेतु नीति आयोग की रणनीतियाँ
प्रिलिम्स के लिये:तिलहन क्षेत्र, नीति आयोग, खाद्य तेल, फसलें मेन्स के लिये:भारत में खाद्य तेल क्षेत्र का परिदृश्य, भारत में खाद्य तेल क्षेत्र में चुनौतियाँ, नीति आयोग की सिफारिशें |
स्रोत: पी. आई. बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नीति आयोग द्वारा “आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की दिशा में खाद्य तेलों में वृद्धि को गति देने के लियेमार्ग और रणनीति” शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की गई।
- रिपोर्ट में वर्तमान खाद्य तेल क्षेत्र का विश्लेषण और भविष्य की संभावनाओं को रेखांकित किया गया है तथा चुनौतियों से निपटने के लिये विस्तृत रोडमैप प्रस्तुत किया गया है, जिसका उद्देश्य मांग-आपूर्ति के अंतर को कम करना एवं आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है।
रिपोर्ट की मुख्य बातें क्या हैं?
- तिलहन उत्पादन और क्षेत्र: नौ प्रमुख तिलहन फसलें (मूंगफली, सरसों, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, कुसुम, नाइजर बीज, अरंडी तथा अलसी) सकल फसल क्षेत्र का 14.3% कवर करती हैं, जो आहार ऊर्जा में 12-13% एवं कृषि निर्यात में लगभग 8% का योगदान देती हैं।
- कुल तिलहन उत्पादन में सोयाबीन का योगदान 34% है, जिसके बाद रेपसीड-सरसों (31%) और मूंगफली (27%) का स्थान है।
- क्षेत्रीय उत्पादन वितरण: राजस्थान और मध्य प्रदेश शीर्ष उत्पादक हैं, दोनों राष्ट्रीय उत्पादन में लगभग 21.42% का योगदान करते हैं।
- गुजरात (17.24%) और महाराष्ट्र (15.83%) भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
- बढ़ती खपत और आयात निर्भरता: खाद्य तेल की प्रति व्यक्ति खपत पिछले दशक में बढ़कर 19.7 किलोग्राम/वर्ष हो गई है।
- घरेलू उत्पादन मांग का केवल 40-45% ही पूरा करता है। समग्र खपत में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप आयात 1986-87 में 1.47 मीट्रिक टन से बढ़कर 2022-23 में 16.5 मीट्रिक टन हो गया है, जिससे आयात निर्भरता अनुपात 57% तक बढ़ गया है।
- इन आयातों में पाम तेल का प्रभुत्व है, जो 59% है, इसके बाद सोयाबीन (23%) और सूरजमुखी (16%) का स्थान है।
- विकास के रुझान: वर्ष 1980-81 से 2022-23 तक तिलहन क्षेत्र, उत्पादन और उपज क्रमशः 0.90%, 2.84% तथा 1.91% की दर से बढ़ी।
- हाल के दशक में उत्पादन और उपज वृद्धि दर में सुधार हुआ तथा यह 2.12% तथा 1.53% हो गई। वर्ष 1991-2000 को छोड़कर सभी दशकों में तिलहनों के अंतर्गत क्षेत्रफल में वृद्धि हुई।
- रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि नौ प्रमुख तिलहनों का उत्पादन वर्ष 2030 तक 43 मीट्रिक टन और वर्ष 2047 तक 55 मीट्रिक टन हो जाएगा, जो कि सामान्य व्यवसाय (Business as Usual- BAU) परिदृश्य के तहत 2021-22 में 37.96 मीट्रिक टन से अधिक है।
- मांग पूर्वानुमान हेतु दृष्टिकोण:
- स्थिर/घरेलू दृष्टिकोण:
- जनसंख्या अनुमानों और प्रति व्यक्ति आधारभूत उपभोग डेटा का उपयोग करता है।
- अल्पकालिक स्थिर उपभोग व्यवहार को मानता है।
- वर्ष 2030 तक 14.1 मीट्रिक टन और वर्ष 2047 तक 5.9 मीट्रिक टन की मांग-आपूर्ति अंतर का अनुमान है।
- मानक दृष्टिकोण:
- भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद - राष्ट्रीय पोषण संस्थान(ICMR-NIN) द्वारा अनुशंसित सेवन स्तरों के आधार पर।
- वर्ष 2030 तक 0.13 मीट्रिक टन और वर्ष 2047 तक 9.35 मीट्रिक टन की संभावित अधिशेषता का संकेत देता है।
- व्यवहारवादी दृष्टिकोण:
- बदलती जीवनशैली और आय स्तर के कारण व्यवहार में होने वाले बदलावों पर विचार करता है।
- परिदृश्य I: खपत प्रति व्यक्ति 25.3 किलोग्राम पर सीमित।
- मांग-आपूर्ति अंतर: वर्ष 2030 तक 22.3 मीट्रिक टन, 2047 तक 15.20 मीट्रिक टन होने का अनुमान है।
- परिदृश्य II: प्रति व्यक्ति 40.3 किलोग्राम की उच्च खपत।
- मांग-आपूर्ति अंतर: वर्ष 2030 तक 29.5 मीट्रिक टन, वर्ष 2047 तक 40 मीट्रिक टन तक बढ़ सकता है।
- BAU की स्थिति: अनुमान है कि वर्ष 2028 तक अंतर परिदृश्य-I तथा वर्ष 2038 तक परिदृश्य-II हो जाएगा।
- उच्च आय वृद्धि परिदृश्य: वर्ष 2025 तक परिदृश्य-I और वर्ष 2031 तक परिदृश्य-II तक उन्नत मांग।
- स्थिर/घरेलू दृष्टिकोण:
खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने हेतु क्या कदम उठाने की आवश्यकता है?
- नीति आयोग की रिपोर्ट में इस अंतर को पाटने तथा दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये रणनीतिक हस्तक्षेप का सुझाव दिया गया है।
- यह रणनीति तीन स्तंभों पर केंद्रित है:
- संभावित क्षेत्रों में फसल प्रतिधारण और विविधीकरण:
- तिलहन फसलों को बनाए रखने और उनमें विविधता लाने से उत्पादन में 20% की वृद्धि हो सकती है, जिससे 7.36 मीट्रिक टन की वृद्धि होगी तथा आयात में 2.1 मीट्रिक टन की कमी आएगी।
- क्षैतिज विस्तार:
- चावल की परती भूमि के एक तिहाई भाग का उपयोग तिलहन के लिये करने से उत्पादन में 3.12 मिलियन टन की वृद्धि हो सकती है तथा आयात में 1.03 मिलियन टन की कमी आ सकती है।
- कृषि के क्षेत्र का विस्तार करना, चावल की परती भूमि और बंजर भूमि का उपयोग तिलहन एवं ताड़ की कृषि के लिये करना।
- ऊर्ध्वगामी विस्तार:
- उन्नत कृषि पद्धतियों, उच्च गुणवत्ता वाले बीजों और उन्नत प्रौद्योगिकियों के माध्यम से तिलहन की पैदावार में वृद्धि करना।
- संभावित क्षेत्रों में फसल प्रतिधारण और विविधीकरण:
- यह रणनीति तीन स्तंभों पर केंद्रित है:
- रिपोर्ट में उल्लिखित 'राज्य-वार चतुर्थभाग दृष्टिकोण' खाद्य तेलों में "आत्मनिर्भरता" प्राप्त करने के लिये एक मूल्यवान उपकरण प्रदान करता है।
- रिपोर्ट में चार चतुर्भुजों का उपयोग करके राज्य समूहों की पहचान की गई है:
- उच्च क्षेत्र-उच्च उपज (HA-HY) राज्य: दक्षता में सुधार करने और अग्रणी वैश्विक उत्पादकों से सर्वोत्तम विधियों को अपनाने पर फोकस कर सकते हैं।
- उच्च क्षेत्र-कम उपज (HA-LY) राज्य: राज्यों को ऊर्ध्वगामी विस्तार (यानी उपज बढ़ाने) के उद्देश्य से हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।
- कम क्षेत्र-उच्च उपज (LA-HY) राज्य: दक्षता बनाए रखते हुए क्षैतिज विस्तार पर फोकस तथा कृषि का विस्तार किया जा सकता है।
- कम क्षेत्र-कम उपज (LA-LY) राज्य: क्षेत्र एवं उपज बढ़ाने के लिये क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर विस्तार दोनों पर फोकस करने की आवश्यकता है।
- रिपोर्ट में चार चतुर्भुजों का उपयोग करके राज्य समूहों की पहचान की गई है:
- रणनीतिक हस्तक्षेप: इससे वर्ष 2030 तक 36.2 मीट्रिक टन और वर्ष 2047 तक 70.2 मीट्रिक टन खाद्य तेल की आपूर्ति हो सकती है, जिससे अधिकांश परिदृश्यों में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित हो सकती है।
- तकनीकी हस्तक्षेप: बीज उपयोग और प्रसंस्करण को अनुकूलित करने से उत्पादन में 15-20% की वृद्धि हो सकती है, जबकि बेहतर प्रबंधन के साथ संभावित रूप से 45% तक वृद्धि हो सकती है। वर्तमान बीज प्रतिस्थापन अनुपात (SRR) कम है, जो 25% (मूंगफली) से लेकर 62% (रेपसीड सरसों) के बीच है, जिससे उपज प्रभावित होती है।
- मिलों का आधुनिकीकरण करना और प्रसंस्करण अवसंरचना में निवेश करना आवश्यक है, क्योंकि वर्तमान मिलें केवल 30% रिफाइनिंग क्षमता पर काम करती हैं, जिनमें से कई छोटे पैमाने की एवं कम तकनीक वाली हैं।
भारत में खाद्य तेल क्षेत्र में क्या चुनौतियाँ हैं?
- वर्षा आधारित उत्पादन निर्भरता: तिलहन की 76% कृषि वर्षा आधारित है, जो कुल उत्पादन का 80% योगदान देती है, जिससे यह अनियमित मौसम पैटर्न के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
- पिछले दशक में सिंचाई कवरेज में केवल 4% (23% से 27% तक) की मामूली वृद्धि हुई।
- मांग-आपूर्ति अंतर: भारत को मांग-आपूर्ति के बीच पर्याप्त अंतर का सामना करना पड़ रहा है, जिससे घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये आयात पर अधिक निर्भरता है।
- सत्र 2022-23 में भारत की खाद्य तेल आवश्यकताओं का 60% आयात से पूरा होगा, जिसमें पाम ऑयल, सोयाबीन तेल और सूरजमुखी तेल प्रमुख योगदानकर्त्ता होंगे।
- बढ़ी हुई खपत: खाद्य तेलों की प्रति व्यक्ति खपत सालाना लगभग 19 किलोग्राम (पिछले दशक में) तक बढ़ गई है।
- किसानों पर प्रभाव: कम आयात शुल्क और उच्च आयात ने घरेलू तिलहन किसानों के लिये मूल्य प्राप्ति को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।
- सरकार द्वारा आयात शुल्क में कमी का उद्देश्य खुदरा मूल्य में वृद्धि को रोकना है, लेकिन कम शुल्क के परिणामस्वरूप भारत में सस्ते तेलों की प्रवाह बढ़ सकता है, जिससे स्थानीय किसान एवं प्रसंस्करणकर्त्ता प्रभावित हो सकते हैं।
नीति आयोग की रिपोर्ट की सिफारिशें क्या हैं?
- बुंदेलखंड और भारत-गंगा के मैदान में तिलहन विकास को प्रोत्साहन:
- आय बढ़ाने के लिये तिलहन, विशेष रूप से तिल के लिये बुंदेलखंड को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
- मुनाफे को बढ़ाने, मृदा और जल की समस्याओं को दूर करने के लिये भारत-गंगा के मैदान में सोयाबीन, रेपसीड-सरसों तथा सूरजमुखी की खेती शुरू करने की आवश्यकता है।
- पाम विस्तार के लिये बंजर भूमि के उपयोग को प्राथमिकता:
- उपयुक्त बंजर भूमि पर पाम (ताड़ के पेड़ों) की खेती का विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, जिससे उत्पादन में 24.7 मीट्रिक टन की संभावित वृद्धि हो सकती है।
- प्रभावी बड़े पैमाने पर खेती के लिये किसान उत्पादक संगठन (FPO) को किसान उत्पादक कंपनी (FPC) और स्वयं सहायता समूहों (SHG) के साथ साझेदारी का लाभ उठाने की आवश्यकता है।
- क्लस्टर-आधारित बीज गाँव:
- उच्च गुणवत्ता वाले तिलहन आपूर्ति के लिये ब्लॉक स्तर पर ‘एक ब्लॉक-एक बीज गाँव’ केंद्र स्थापित किये जाने चाहिये, FPO के माध्यम से SRR और VRR को बढ़ाने चाहिये।
- जैव-प्रतिबलित तिलहन की किस्मों का संवर्द्धन:
- तिलहन पोषण में सुधार लाने और पोषण-रोधी कारकों को कम करने के लिये राष्ट्रीय मिशनों में जैवप्रबलीकरण (Biofortification) को एकीकृत किया जाना चाहिये।
- जारी की गई 14 जैव-प्रतिबलित किस्मों का उपयोग करने में 10-12% का वार्षिक लक्ष्य निर्धारित कर इनके उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- राज्य स्तरीय सीड रोलिंग योजनाएँ और गुणवत्ता मानक:
- प्रजनक बीज उत्पादन के लिये पाँच वर्षीय रोलिंग योजनाएँ विकसित करना और पहले की किस्मों के प्रयोग को प्रतिस्थापित करना।
- वैश्विक गुणवत्ता आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) और अंतर्राष्ट्रीय बीज परीक्षण संघ (ISTA) के साथ भारतीय बीज मानकों का सामंजस्य स्थापित करना।
- उन्नत किस्मों के प्रयोग से उपज में वृद्धि:
- उच्च क्षमता वाली भारतीय तिलहन किस्मों के उत्पादन को बढ़ाना तथा उपज एवं गुणवत्ता को बढ़ावा देने के लिये उन्नत प्रजनन तकनीकों को प्रयोग में लाना।
- चावल की भूसी के तेल का उपयोग करना:
- बड़े पैमाने पर उत्पादन और अंतर्राष्ट्रीय नियमों के साथ मानकीकरण का लक्ष्य निर्धारित करते हुए खाना पकाने के तेलों के साथ चावल की भूसी के तेल का उपयोग करना।
- विलायक निष्कर्षण दक्षता में सुधार:
- सुविधाओं का आधुनिकीकरण करके और मिल प्रबंधन में सुधार करके विलायक निष्कर्षण संयंत्रों के अल्प क्षमता उपयोग (लगभग 30%) को संबोधित करना ताकि इनकी उपयोगिता लगभग 60% की जा सके।
- भंडारण लाभप्रदता का संतुलन:
- बाज़ार स्थिरता सुनिश्चित करने और साथ ही ऑफ-सीज़न में बिक्री को प्रोत्साहित करते हुए उपभोक्ता की सामर्थ्य के साथ ऑफ-सीज़न भंडारण लागत को संतुलित करने हेतु मूल्य निर्धारण की उचित प्रक्रियाओं का क्रियान्वन करना।
- विपणन अवसंरचना को उन्नत बनाना:
- भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) और राज्य संघों के माध्यम से MSP पर खरीद सुनिश्चित करना तथा गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में तिलहन की कृषि को बढ़ावा देने के लिये विपणन की प्रत्यक्ष सुविधा प्रदान करना।
- परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना:
- कृषि विश्वविद्यालयों और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के साथ सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) मॉडल का उपयोग करके गुणवत्ता मापदंडों को मानकीकृत करने और व्यक्तिपरक मूल्य निर्धारण से बचने के लिये मंडियों में परीक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित करना।
- पाम ऑयल क्षेत्र की दक्षता बढ़ाना:
- बड़े पैमाने पर पाम ऑयल बागानों और बीज उद्यानों को बढ़ावा देना, पाम ऑयल को बागान फसल घोषित करके विनियमन को सुव्यवस्थित करना तथा उप-उत्पादों का उपयोग करने के लिये ज़ीरो-वेस्ट नीतियों को लागू करना।
निष्कर्ष
भारत के खाद्य तेल क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के लिये रणनीतिक उपायों में फसल विविधीकरण, क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर विस्तार तथा बेहतर प्रसंस्करण के माध्यम से तिलहन उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। बीज की गुणवत्ता को अनुकूलित करके, बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण करके तथा बंजर भूमि का प्रभावी ढंग से उपयोग करके, भारत आयात निर्भरता को काफी हद तक कम कर सकता है एवं भविष्य की मांग को पूरा कर सकता है। 2030 और उसके बाद खाद्य तेल क्षेत्र में सतत् विकास तथा अनुकूलन सुनिश्चित करने हेतु इन उपायों को अपनाना महत्त्वपूर्ण होगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के खाद्य तेल क्षेत्र के संदर्भ में वर्तमान चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये और वर्ष 2030 तक आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिये एक व्यापक रणनीति प्रस्तावित कीजिये। |
UPSC सिवल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) |