आंतरिक सुरक्षा
नए रेड कॉरिडोर की रूपरेखा
- 21 Apr 2018
- 14 min read
चर्चा में क्यों?
गृह मंत्रालय द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, देश के सबसे पुराने और सबसे लंबे समय से चलने वाले हिंसक उग्रवाद की समस्याओं में एक नक्सलवाद (Naxalism) का प्रभाव धीरे-धीरे क्षीण हो रहा है। मंत्रालय द्वारा रेड कॉरिडोर (red corridor) को पुन: चिन्हित करना शुरू किया गया है, जिसमें देश के 11 राज्यों में फैले नक्सलवाद से प्रभावित ज़िलों की संख्या 106 से घटाकर 90 कर दी गई है। इस सूची के अंतर्गत 30 सबसे अधिक प्रभावित ज़िलों को भी शामिल किया गया है, जिसमें पिछली सूची की तुलना में 6 ज़िलों को कम किया गया है।
- 2015 में एनडीए सरकार ने 'राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना' (National Policy and Action Plan) को अपनाया, जिसका उद्देश्य देश में वामपंथी अतिवाद (Left Wing Extremism - LWE) को संबोधित करना था।
- हालाँकि, पिछले कुछ सालों में माओवादियों ने कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया जिनमें बहुत से पुलिसकर्मियों की मौत हुई।
- 2017 में छत्तीसगढ़ में अलग-अलग घटनाओं में दो दर्जन से अधिक पुलिसकर्मी मारे गए, पिछले महीने सुकमा ज़िले में ऐसे ही एक हमले में नौ सीआरपीएफ जवानों की मौत हो गई थी।
LWE प्रभावित क्षेत्रों में कौन-कौन से राज्य शामिल हैं?
- रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और बिहार को बुरी तरह से LWE से प्रभावित राज्यों में शामिल किया गया है।
- पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश (कुछ समय पहले तक यह गंभीर रूप से नक्सलवाद से प्रभावित वर्ग का एक हिस्सा था) को आंशिक रूप से प्रभावित माना गया है।
- उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को उन राज्यों के रूप में वर्गीकृत किया गया है जो उपरोक्त राज्यों की तुलना में नक्सलवाद से थोड़ा कम प्रभावित हैं।
- रिपोर्ट के मुताबिक, माओवादी केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में अपना दायरा बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं।
- इतना ही नहीं इन राज्यों के माध्यम से इनकी योजना पश्चिमी और पूर्वी घाट के राज्यों तक अपना प्रभाव स्थापित करने की है।
- वे न केवल इन क्षेत्रों में अपनी गतिविधियों को बढ़ाने की योजना बना रहे हैं, बल्कि त्रिकोणीय जंक्शन में खुद के लिये एक आधार तैयार कर रहे हैं।
- रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि माओवादी असम और अरुणाचल प्रदेश में भी घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे हैं। यह वस्तुतः उनकी दीर्घकालिक रणनीति का एक भाग है।
नक्सलवाद क्या है?
- भारत में नक्सली हिंसा की शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग ज़िले के नक्सलबाड़ी नामक गाँव से हुई और इसी वज़ह से इस उग्रपंथी आंदोलन को यह नाम मिला।
- ज़मींदारों द्वारा किये जा रहे छोटे किसानों के उत्पीड़न पर अंकुश लगाने को लेकर सत्ता के खिलाफ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार, कानू सान्याल और कन्हाई चटर्जी द्वारा शुरू किये गए इस सशस्त्र आंदोलन को नक्सलवाद का नाम दिया गया।
- यह आंदोलन चीन के कम्युनिस्ट नेता माओ त्से तुंग की नीतियों का अनुगामी था (इसीलिये इसे माओवाद भी कहा जाता है) और आंदोलनकारियों का मानना था कि भारतीय मज़दूरों और किसानों की दुर्दशा के लिये सरकारी नीतियाँ ज़िम्मेदार हैं।
क्या हाल ही में तैयार की गई रेड कॉरिडोर की रूपरेखा पुराने से भिन्न है?
- 2015 में LWE प्रभावित ज़िलों की कुल संख्या 106 थी। वर्ष 2017 में यह बढ़कर 126 हो गई। प्रभावित क्षेत्रों पर किये गए सभी खर्चें गृह मंत्रालय की एसआरई (Security Related Expenditure - SRE) योजना के अंतर्गत आते हैं।
- इन ज़िलों को गृह मंत्रालय की सुरक्षा से संबंधित व्यय योजना (एसआरई) के अंतर्गत रखा गया है, जिसका उद्देश्य परिवहन, संचार, वाहनों को किराये पर लेना, आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों को वृत्तिका देना, सेनाओं के लिये अस्थायी अवसंरचना आदि जैसे खर्चों की राज्यों को प्रतिपूर्ति करना है।
- 106 ज़िलों में 36 ऐसे हैं जो देशव्यापी LWE हिंसा के लगभग 80 से 90% के लिये ज़िम्मेदार थे। इन ज़िलों को "सबसे ज़्यादा प्रभावित ज़िलों" के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
- अपनी हाल की समीक्षा में गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि LWE हिंसा से प्रभावित 126 ज़िलों में से 44 में किसी प्रकार की हिंसा की खबर दर्ज नहीं की गई है, जिस कारण इन्हें इस सूची से हटा दिया गया है।
- जबकि, आठ ऐसे नए ज़िलों को एसओई सूची में शामिल किया गया है जिनमें पिछले वर्ष के दौरान माओवादी घटनाओं को दर्ज किया गया।
- वर्तमान में नक्सलवाद से सबसे अधिक प्रभावित ज़िलों की संख्या 30 है, जो कि देश में फैली LWE हिंसा का 90% है।
वे कौन-से नए ज़िले हैं जहाँ माओवादी हस्तक्षेप करने का प्रयास कर रहे हैं?
- गृह मंत्रालय द्वारा आठ नए ज़िलों को इस सूची में शामिल किया गया हैः
- केरल: मलप्पुरम (Malappuram), पलक्कड़ (Palakkad) और वायनाड (Wayanad)
- आंध्र प्रदेश: पश्चिम गोदावरी
- छत्तीसगढ़: कबीरधाम (Kabirdham)
- मध्य प्रदेश: मंडला
- ओडिशा: अंगुल (Angul) और बौद्ध (Boudh)
किन ज़िलों को इस सूची से बाहर किया गया है?
इस सूची से 44 ज़िलों को हटा दिया गया है। इनमें से अधिकांश निम्नलिखित राज्यों से संबंधित हैं:
- तेलंगाना: 19 ज़िले
- ओडिशा: 6 ज़िले
- बिहार: 6 ज़िले
- पश्चिम बंगाल: 4 ज़िले
- छत्तीसगढ़: 3 ज़िले
- झारखंड: 2 ज़िले
- महाराष्ट्र: 1 ज़िला
इस सूची से ज़िलों को हटाने और नए ज़िलों को शामिल करने के लिये क्या मानदंड थे?
- इसका प्राथमिक मानदंड हिंसा की घटनाओं को माना गया। पिछले तीन सालों में LWE के कारण कोई महत्त्वपूर्ण घटना न होने के कारण 44 ज़िलों को इस सूची से बाहर कर दिया गया।
- इसी तरह केरल के तीन नए ज़िलों में नक्सली आन्दोलन और उनकी भूमिगत गतिविधियों की जानकारी मिलने के बाद उन्हें इस सूची में शामिल किया गया।
- 2013 की तुलना में 2017 में नक्सली हिंसा की घटनाओं में 20% और इसके कारण होने वाली मौतों में 34% की कमी देखी गई है।
- LWE हिंसा के भौगोलिक प्रसार के बारे में बात करें तो हम पाएंगे कि 2013 में 76 ज़िलों की तुलना में यह संख्या 2017 में घटकर 58 हो गई है।
- सूची में शामिल इन नए ज़िलों को अब केंद्र सरकार से एसआरई फंड प्राप्त होगा, जिसके तहत इन क्षेत्रों में विकास और सुरक्षा संबंधी परियोजनाओं की निगरानी की जाएगी। पिछले साल LWE प्रभावित ज़िलों का संयुक्त एसआरई व्यय 445 करोड़ रुपए था।
वर्तमान में 30 सबसे अधिक LWE प्रभावित ज़िले कौन-कौन से हैं?
- आंध्र प्रदेश: विशाखापत्तनम
- बिहार: औरंगाबाद, गया, जामूई, लखिसराय
- छत्तीसगढ़: बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, कांकर, कोंदगाँव, नारायणपुर, राजनांदगाँव, सुकमा
- झारखंड: बोकारो, चतरा, गढ़वा, गिरिडीह, गुमला, हज़ारीबाग, खुंती, लातेहार, लोहरदगा, पालमू, रांची, सिमडेगा पश्चिम, सिंहभूम
- महाराष्ट्र: गडचिरोली
- ओडिशा: कोरपुर, मलकानगिरी
- तेलंगाना: भाद्रादरी (Bhadradri), कोथागुदेम (Kothagudem)
सरकार की बहुआयामी रणनीति क्या है?
- सरकार की बहुआयामी रणनीति में मुख्यतः नक्सलवाद प्रभावित ज़िलों के विकास और सुरक्षा पहलुओं को शामिल किया गया है।
- विकास से संबंधित परियोजनाओं में बुनियादी ढाँचे, सड़कों, सेलफोन कनेक्टिविटी, पुल और स्कूल जैसी रोज़मर्रा की आवश्यकताओं को शामिल किया गया है।
- इस संबंध में गृह मंत्रालय द्वारा प्रदत्त आँकड़ों के अनुसार, सेलफोन कनेक्टिविटी में सुधार के उद्देश्य से माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में 2,329 मोबाइल टावर (परियोजना के प्रथम चरण में) स्थापित किये गए हैं, इनमें से सबसे अधिक टावर झारखंड (816) तथा इसके बाद छत्तीसगढ़ (519) में स्थापित किये गए हैं।
- परियोजना के दूसरे चरण में सरकार ने 4,072 मोबाइल टावर स्थापित करने की योजना बनाई है।
- इसी तरह इस क्षेत्र के लिये स्वीकृत कुल 5,422 किलोमीटर सड़क में से पहले चरण में कुल 4,544 किलोमीटर सड़क का निर्माण किया जा चुका है।
- इससे पहले 36 सर्वाधिक नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों में कोई केन्द्रीय विद्यालय (केवी) अवस्थित नहीं था और जवाहर नवोदय विद्यालयों (जेएनवी) की संख्या भी मात्र 6 थी।
- लेकिन, अब इन सभी 36 ज़िलों में जेएनवी के साथ-साथ आठ ज़िलों में कार्यात्मक केवी भी मौजूद हैं। इतना ही नहीं, तीन नए केवी का भी निर्माण किया जा रहा है।
- LWE प्रभावित राज्यों के दूरदराज इलाकों में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिये आठ पुलों का भी निर्माण किया गया है, जिनकी कुल निर्माण लागत लगभग 1,000 करोड़ रुपए रही है।
नक्सलवाद से निपटने के लिये 'SAMADHAN' नामक पहल
- नक्सल समस्या से निपटने के लिये केंद्र सरकार द्वारा आठ सूत्रीय 'समाधान’ नामक एक कार्ययोजना की शुरुआत की गई है।
- इस कार्ययोजना के आठ बिंदु इस प्रकार हैं:
♦ S-Smart leadership : कुशल नेतृत्व
♦ A-Aggressive strategy : आक्रामक रणनीति
♦ M-Motivation and training : प्रोत्साहन एवं प्रशिक्षण
♦ A-Actionable intelligence : कारगर खुफिया तंत्र
♦ D-Dashboard based key performance indicators and key result areas : कार्ययोजना के मानक
♦ H-Harnessing technology : कारगर प्रौद्योगिकी
♦ A-Action plan for each threat : प्रत्येक रणनीति की कार्ययोजना
♦ N-No access to financing : नक्सलियों के वित्त-पोषण को विफल करने की रणनीति
क्या किये जाने की आवश्यकता है?
- नक्सल मुक्त क्षेत्रों में युद्धस्तर पर सड़क, बिजली, पानी और शिक्षा से संबंधित विकास कार्यों की परियोजनाएँ चलाई जानी चाहिये और आदिवासियों की विशिष्ट पहचान को अक्षुण्ण रख उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिये।
- इसके लिये जनजातीय तथा आदिवासी बहुल क्षेत्रों में पाँचवी अनुसूची तथा पेसा कानून ईमानदारी के साथ लागू करके आदिवासियों को स्वशासन का अधिकार संविधान की सीमाओं के अंतर्गत देने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिये।
- नक्सलियों से लड़ने के लिये प्रदेशों की पुलिस क्षमता का विकास करना तो आवश्यक है ही, इसके साथ ही वंचित समाज के बीच यह संदेश भी जाना चाहिये कि सरकार उनकी हितैषी है न की दुश्मन।
- आदिवासी इलाकों में हो रहे खनन कार्यों तथा स्थापित होने वाले उद्योगों में स्थानीय लोगों के लिये आरक्षण उचित है।
- लेकिन समस्या के समुचित समाधान हेतु भूमि की अनुपलब्धता, गरीबी, सामान्य नौकरियों में कम प्रतिनिधित्व और सरकार की उदासीनता जैसे मुद्दों पर कार्य करने की ज़रूरत है। स्पष्ट रूप से सरकार द्वारा इस संदर्भ में आवश्यक प्रयास किये जाने चाहिये।