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प्रश्न :
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने यह संभव बनाया कि लोग भारत में जातियों के बीच व्याप्त गहन असमानताओं को दूर करने के बारे में न केवल सोचें बल्कि इसकी शुरुआत भी करें। टिप्पणी कीजिये।
03 Mar, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाजउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- बी.आर. अंबेडकर पर संक्षिप्त चर्चा करते हुए उत्तर की शुरुआत करें।
- दलित चेतना को जगाने में अंबेडकर के योगदान पर चर्चा करें।
- उचित निष्कर्ष दें।
स्वतंत्रता पूर्व युग में दलितों के उत्पीड़न का मुद्दा कई नेताओं ने उठाया, जैसे- ज्योतिबा फुले, ई.वी. रामासामी, किंतु भीम राव अंबेडकर के प्रयासों के कारण दलितों का मुद्दा एक देशव्यापी सामाजिक आंदोलन में परिवर्तित हो गया। उन्होंने न केवल भारत के कमज़ोर तबके के लोगों की आवाज़ बुलंद की बल्कि उन्हें एक राजनीतिक पहचान भी दी।
दलित चेतना को जगाने में अंबेडकर का योगदान:
दलित चेतना के जनक: दलित चेतना बढ़ाने में अंबेडकर का अत्यधिक राजनीतिक और साहित्यिक योगदान है, अत: उन्हें सार्वभौमिक रूप से दलित चेतना के जनक के रूप में स्वीकार किया जाता है।
- अंबेडकर ने वर्ष 1930 के दशक के दौरान दलितों के अधिकारों के लिये आंदोलन चलाया।
- उन्होंने सार्वजनिक पेयजल स्रोतों को सभी के लिये खोलने और सभी जातियों के लोगों को मंदिरों में प्रवेश के अधिकार की मांग की।
- उन्होंने खुले तौर पर भेदभाव की वकालत करने वाले हिंदू शास्त्रों की निंदा की और नासिक के कालाराम मंदिर में प्रवेश करने के लिये प्रतीकात्मक प्रदर्शन किया।
दलितों के राजनीतिक अधिकार : उन्होंने दलित अधिकारों की रक्षा के लिये विभिन्न माध्यमों को अपनाया। जैसे- लंदन में गोलमेज सम्मेलन में वह दलितों के प्रतिनिधि थे, जहाँ उन्होंने दलितों के लिये एक अलग निर्वाचक मंडल की मांग की।
- वर्ष 1932 में प्रांतीय विधानसभाओं में दलित वर्ग के लिये सीटों का आरक्षण सुनिश्चित करने हेतु डॉ. अंबेडकर और पंडित मदन मोहन मालवीय ने पूना समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे। उल्लेखनीय है कि मदन मोहन मालवीय ने इसे हिंदुओं और महात्मा गांधी की ओर से तथा अंबेडकर ने दलित वर्गों की ओर से इस समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- भारतीय संविधान की ड्राफ्ट समिति के अध्यक्ष होने के नाते डॉ. अंबेडकर ने सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक क्षेत्रों में दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिये कुछ संवैधानिक प्रावधान किये, जैसे- सकारात्मक भेदभाव या वंचित वर्गों के लिये आरक्षण।
दलितों को राजनीतिक पहचान प्रदान करना: अंबेडकर के अनुसार, भारत के लिये जिस तरह से ब्रिटिश साम्राज्यवाद था उसी तरह दलितों के लिये हिंदू साम्राज्यवाद था। उन्होंने वर्ष 1936 में राष्ट्रवाद को दलितों की सामाजिक और राजनीतिक आकांक्षाओं से जोड़ा।
- अंबेडकर ने इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की जो बाद में अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ में परिवर्तित हो गई।
- उन्होंने दलित आंदोलन में दार्शनिक दृष्टि का अभाव देखा, इसलिये उन्होंने फ्राँसीसी क्रांति के विचारों- स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व के बारे में लिखा।
- उन्होंने दलितों को बौद्ध धर्म अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया ताकि वे स्वयं को हिंदू अधीनता से मुक्त कर सकें।
निष्कर्ष
भारत में दलित आंदोलन सामाजिक व्यवस्था में समानता एवं सकारात्मक बदलाव लाने के अंबेडकर के प्रयासों का परिणाम है।
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