आंतरिक सुरक्षा
खालिस्तान मुद्दा
- 21 Mar 2023
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प्रिलिम्स के लिये:आनंदपुर साहिब संकल्प, भारत की स्वतंत्रता, विभाजन, महाराजा रणजीत सिंह का ननकाना साहिब। मेन्स के लिये:खालिस्तान मुद्दा |
चर्चा में क्यों?
कुछ महीनों से पंजाब में खालिस्तान अलगाववादी आंदोलन के विचार का प्रचार कर रहे सिख आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले का अनुयायी अमृतपाल सिंह भागने में सफल रहा।
खालिस्तान आंदोलन:
- खालिस्तान आंदोलन वर्तमान पंजाब (भारत और पाकिस्तान दोनों) में एक अलग, संप्रभु सिख राज्य के लिये लड़ाई है।
- ऑपरेशन ब्लू स्टार (1984) और ऑपरेशन ब्लैक थंडर (1986 एवं 1988) के बाद भारत में इस आंदोलन को दबा दिया गया था किंतु यह सिख आबादी विशेष रूप से कनाडा, ब्रिटेन एवं ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में सिख प्रवासियों की सहानुभूति और उनका समर्थन प्राप्त करने के लिये सदैव क्रियाशील रहता है।
खालिस्तान आंदोलन की पृष्ठभूमि:
- भारत की स्वतंत्रता एवं विभाजन:
- इस आंदोलन की उत्पत्ति भारत की स्वतंत्रता और बाद में धार्मिक आधार पर हुए विभाजन के कारण हुई।
- भारत और पाकिस्तान के मध्य विभाजित पंजाब प्रांत में सबसे अधिक सांप्रदायिक हिंसा हुई जिसके कारण लाखों लोग शरणार्थी बनने को विवश हुए।
- इस विभाजन के कारण महाराजा रणजीत सिंह के महान सिख साम्राज्य का राजधानी क्षेत्र लाहौर पाकिस्तान के नियंत्रण में चला गया, साथ ही सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक का जन्म स्थान ननकाना साहिब सहित कई पवित्र सिख स्थल भी पाकिस्तान के अधिकार क्षेत्र में चले गए।
- स्वायत्त पंजाबी सूबे की मांग:
- पंजाबी भाषी राज्य के निर्माण और अधिक स्वायत्तता के लिये राजनीतिक संघर्ष की शुरुआत स्वतंत्रता के समय पंजाबी सूबा आंदोलन के साथ हुई।
- वर्षों के विरोध के बाद वर्ष 1966 में पंजाब को पंजाबी सूबे की मांग को प्रतिबिंबित करने के लिये पुनर्गठित किया गया था।
- तत्कालीन पंजाब राज्य को हिंदी भाषी, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा के हिंदू-बहुल राज्यों तथा पंजाबी-भाषी, सिख-बहुल पंजाब में विभाजित किया गया था।
- आनंदपुर साहिब प्रस्ताव:
- 1973 में नए सिख-बहुल पंजाब के प्रमुख दल- अकाली दल ने मांगों की एक सूची जारी की, जिसमें राजनीतिक मांगों के अतिरिक्त आनंदपुर साहिब प्रस्ताव में पंजाब से संबंधित चिह्नित क्षेत्रों की पूर्ण स्वायत्तता की भी मांग की गई। इसके अलावा पृथक राज्य और अलग संविधान की मांग भी की गई।
- जबकि अकालियों ने स्वयं बार-बार यह स्पष्ट किया कि वे भारत से अलग होने की मांग नहीं कर रहे हैं। भारत के लिये आनंदपुर साहिब प्रस्ताव गंभीर चिंता का विषय था।
- भिंडरांवाले:
- जरनैल सिंह भिंडरावाले, जो एक करिश्माई उपदेशक था, ने जल्द ही अकाली दल के नेतृत्त्व के विपरीत स्वयं को “सिखों की प्रामाणिक आवाज़" के रूप में स्थापित कर लिया।
- ऐसा माना जाता है कि कॉन्ग्रेस के राजनीतिक लाभ हेतु अकालियों के खिलाफ खड़े होने के लिये भिंडरावाले को संजय गांधी का समर्थन प्राप्त था। हालाँकि 1980 के दशक तक भिंडरांवाले की शक्ति इतनी बढ़ गई थी कि वह सरकार के लिये मुसीबत बन चुका था।
- धर्म युद्ध मोर्चा:
- वर्ष 1982 में भिंडरावाले ने अकाली दल के नेतृत्त्व के समर्थन से धर्म युद्ध मोर्चा नामक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया। उसने पुलिस के साथ प्रदर्शनों और झड़पों का निर्देशन करते हुए स्वर्ण मंदिर परिसर को निवास स्थान बना लिया।
- यह आंदोलन पहली बार आनंदपुर साहिब प्रस्ताव में शामिल मांगों की पूर्ति के उद्देश्य से तैयार किया गया था, जिसमें राज्य की ग्रामीण सिख आबादी की चिंताओं को संबोधित किया गया था। हालाँकि बढ़ते धार्मिक ध्रुवीकरण, सांप्रदायिक हिंसा और हिंदुओं के खिलाफ भिंडरावाले की कठोर बयानबाज़ी के कारण इंदिरा गांधी की सरकार ने आंदोलन को अलगाववादी घोषित कर दिया।
- ऑपरेशन ब्लूस्टार:
- ऑपरेशन ब्लू स्टार 1 जून, 1984 को शुरू हुआ लेकिन भिंडरावाले और भारी हथियारों से लैस उसके समर्थकों के उग्र प्रतिरोध के कारण सेना का ऑपरेशन टैंकों एवं हवाई उपयोग के साथ मूल उद्देश्य से अधिक बड़ा एवं हिंसक हो गया।
- इस ऑपरेशन में भिंडरावाला मारा गया और स्वर्ण मंदिर को उग्रवादियों से मुक्त कर लिया गया, हालाँकि इससे दुनिया भर में सिख समुदाय के लोग भावनात्मक रूप से अत्यधिक आहत हुए।
- इसने खालिस्तान की मांग को भी तेज़ कर दिया।
- ऑपरेशन ब्लूस्टार के परिणाम:
- अक्तूबर 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की दो सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दी गई, जिसने विभाजन के बाद से सबसे खराब सांप्रदायिक हिंसा को जन्म दिया, जहाँ बड़े पैमाने पर सिख विरोधी हिंसा में 8,000 से अधिक सिखों का नरसंहार किया गया था।
- इस घटना के प्रतिरोध में एक वर्ष बाद कनाडा में स्थित सिख राष्ट्रवादियों ने एयर इंडिया हवाई जहाज़ को विस्फोट से उड़ा दिया जिसमें 329 लोग मारे गए। उन्होंने दावा किया कि हमला "भिंडरावाले की हत्या का बदला लेने के लिये" था।
- पंजाब ने इस दौरान सबसे खराब हिंसा देखी, जो वर्ष 1995 तक विद्रोह का केंद्र बन गया।
- बाद में इस आबादी का बड़ा हिस्सा उग्रवादियों के खिलाफ हो गया, साथ ही भारत ने आर्थिक उदारीकरण की दिशा में कदम बढ़ाए।
खालिस्तान आंदोलन की वर्तमान स्थिति:
- पंजाब में हालत लंबे समय से शांतिपूर्ण रहे हैं, किंतु विदेशों में कुछ सिख समुदायों द्वारा किये जा रहे ऐसे आंदोलन देखे जाते रहे हैं।
- प्रवासियों में मुख्य रूप से ऐसे लोग शामिल हैं जो भारत में नहीं रहना चाहते हैं।
- वहाँ खालिस्तान के लिये समर्थन अभी भी अधिक मज़बूत है क्योंकि इनमें से बहुत लोग ऐसे हैं जिनके मस्तिष्क में 1980 के दशक की भयानक यादें स्पष्ट रूप से विद्यमान हैं।
- सिखों की कुछ नई पीढ़ियों में ऑपरेशन ब्लू स्टार और स्वर्ण मंदिर की बेअदबी को लेकर अत्यधिक गुस्सा प्रतिध्वनित होता रहता है। 1980 के दशक को अंधकार का युग माना जाता है और बहुत से लोग भिंडरावाले को शहीद के रूप में देखते हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि खालिस्तान आंदोलन के लिये वास्तव में राजनीतिक समर्थन प्राप्त होने लगा है।
- एक छोटा अल्पसंख्यक समुदाय अतीत की बातों में ही उलझा हुआ है और वह लोकप्रिय समर्थन के कारण प्रभावशाली नहीं बना हुआ है, बल्कि इसलिये कि वह लेफ्ट और राइट के विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ अपने राजनीतिक प्रभाव को बनाए रखने का प्रयास कर रहा है।