आंतरिक सुरक्षा
नगा विद्रोह
- 24 May 2024
- 15 min read
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA), नगा शांति प्रक्रिया, नगा हिल्स, सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA), 1975 का शिलांग समझौता, ब्रू समझौता 2020, बोडो शांति समझौता 2020, कार्बी आंगलोंग समझौता 2021, मिज़ो शांति समझौता 1986, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) मेन्स के लिये: |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (National Investigation Agency- NIA) ने गुवाहाटी न्यायालय में एक आरोप पत्र दायर किया, जिसमें नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-इसाक मुइवा (NSCN-IM) के "चीन-म्याँमार मॉड्यूल" पर, भारत में घुसपैठ के लिये दो प्रतिबंधित मैतेई संगठनों के कैडरों का समर्थन करने का आरोप लगाया गया।
- NIA का आरोप है कि NSCN-IM की कार्रवाइयों का उद्देश्य मणिपुर में जातीय अशांति का लाभ उठाना, राज्य को अस्थिर करना और भारत सरकार के खिलाफ युद्ध की शुरुआत करना था।
नगा विद्रोह और संबंधित मुद्दे क्या है?
- नगा:
- नगा भारत के उत्तरपूर्वी भाग और म्याँमार के पड़ोसी क्षेत्रों में रहने वाला एक स्वदेशी समुदाय है।
- ऐसा व्यापक रूप से माना जाता है कि वे इंडो-मंगोलॉयड हैं जो 10वीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास भारत में चले आए थे।
- नगा भारत के उत्तरपूर्वी भाग और म्याँमार के पड़ोसी क्षेत्रों में रहने वाला एक स्वदेशी समुदाय है।
- नगाओं का इतिहास:
- ब्रिटिश शासन के अधीन नगा: नगा पहली बार विदेशी शासन के अधीन आए जब 19वीं शताब्दी में अंग्रेज़ों ने उनकी भूमि पर कब्ज़ा कर लिया।
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नगा: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, नागाओं ने ब्रिटिश सेना की सहायता की।
- नगा नेशनल काउंसिल (Naga National Council- NNC) की स्थापना वर्ष 1946 में हुई थी और उसने असम के राज्यपाल के साथ 9-सूत्री समझौते (Nine-Point Agreement) पर हस्ताक्षर किये जिससे नगाओं को उनके क्षेत्र पर नियंत्रण मिल गया।
- 14 अगस्त, 1947 को नगा स्वतंत्रता की घोषणा की गई।
- 1950 के दशक में NNC ने नगा की संप्रभुता पर हथियार उठाए और हिंसा का सहारा लिया।
- NNC ने वर्ष 1952 में भूमिगत नगा संघीय सरकार (Naga Federal Government- NFG) और इसकी सैन्य शाखा, नगा संघीय सेना (Naga Federal Army- NFA) का गठन किया।
- शिलांग समझौते (1975) के बाद NNC, NSCN में विभाजित हो गया, जो वर्ष 1988 में पुनः NSCN (IM) और NSCN (खापलांग) में विभाजित हो गया।
- नगा का मुद्दा:
- नगा समूह मुख्य रूप से ग्रेटर नगालिम की मांग कर रहे हैं, जिसमें पूर्वोत्तर के सभी नगा-बसे हुए क्षेत्रों को एक प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र के तहत एकजुट करने के लिये सीमाओं को फिर से तैयार करना शामिल है, जिसका लक्ष्य अंततः संप्रभु राज्य का दर्ज़ा प्राप्त करना है।
- इसमें अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, असम और म्याँमार के विभिन्न क्षेत्र भी शामिल हैं।
- इस मांग में पृथक नगा येज़ाबो (नगाओं का संविधान) और नगा राष्ट्रीय ध्वज भी शामिल है।
- नगा समूह मुख्य रूप से ग्रेटर नगालिम की मांग कर रहे हैं, जिसमें पूर्वोत्तर के सभी नगा-बसे हुए क्षेत्रों को एक प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र के तहत एकजुट करने के लिये सीमाओं को फिर से तैयार करना शामिल है, जिसका लक्ष्य अंततः संप्रभु राज्य का दर्ज़ा प्राप्त करना है।
- शांति की पहल:
- शिलांग समझौता (1975): शिलांग में हस्ताक्षरित एक शांति समझौते में NNC नेतृत्व निरस्त्रीकरण के लिये सहमत हुआ, लेकिन नेताओं के बीच असहमति के कारण संगठन में आंतरिक विभाजन हो गया।
- युद्धविराम समझौता (1997): NSCN-IM ने भारतीय सशस्त्र बलों पर हमलों को रोकने के लिये सरकार के साथ युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किये। बदले में सरकार द्वारा सभी उग्रवाद विरोधी आक्रामक अभियानों को नियंत्रित किया गया था।
- NSCN-IM के साथ फ्रेमवर्क समझौता (2015): इस समझौते में भारत सरकार ने नगाओं के अद्वितीय इतिहास, संस्कृति और स्थिति तथा उनकी भावनाओं व आकांक्षाओं को मान्यता दी।
नगालैंड और मणिपुर में संघर्ष की स्थिति क्या है?
- मणिपुर में संघर्ष का इतिहास:
- मणिपुर में 16 ज़िले हैं, लेकिन इस राज्य को आमतौर पर 'घाटी' और 'पहाड़ी' ज़िलों में विभाजित माना जाता है।
- राज्य के घाटी क्षेत्र में अधिकतर मैतेई समुदाय का वर्चस्व है।
- मणिपुर घाटी निचली पहाड़ियों से घिरी हुई है और 15 नगा जनजातियों तथा चिन-कुकी-मिज़ो-ज़ोमी समूह (Chin-Kuki-Mizo-Zomi group) का निवास है, जिसमें कुकी (Kuki), थाडौ (Thadou), हमार (Hmar), पाइट (Paite), वैफेई (Vaiphei) और ज़ाउ (Zou) समुदाय के लोग शामिल हैं।
- ब्रिटिश सरकार द्वारा संरक्षित मणिपुर के कांगलेइपक साम्राज्य (Kangleipak kingdom) पर उत्तरी पहाड़ियों से आए नगा जनजातियों ने हमला कर दिया था। ब्रिटिश राजनीतिक एजेंट मैतेई और नगाओं के बीच एक बफर के रूप में कार्य करके घाटी को लूट से बचाने के लिये बर्मा की कुकी-चिन पहाड़ियों से कुकी-ज़ोमी लोगों को लाए थे।
- कुकी, नगाओं जैसे खतरनाक शीर्ष-शिकारी योद्धा को नीचे इंफाल घाटी के लिये ढाल के रूप में कार्य करने के लिये चोटियों के किनारे ज़मीन दी गई थी।
- मणिपुर में 16 ज़िले हैं, लेकिन इस राज्य को आमतौर पर 'घाटी' और 'पहाड़ी' ज़िलों में विभाजित माना जाता है।
- कुकी-मैतेई विभाजन: पहाड़ी समुदायों (नगा और कुकी) और मैतेई (घाटी) में साम्राज्य काल से ही जातीय तनाव रहा है। 1950 के दशक में स्वतंत्रता के लिये नगा आंदोलन ने मैतेई और कुकी-ज़ोमी के बीच विद्रोह को जन्म दिया।
- कुकी-ज़ोमी समूहों ने 1990 के दशक में भारत के भीतर 'कुकीलैंड' (भारत के भीतर एक राज्य) नामक एक राज्य की मांग के लिये सैन्यीकरण किया। इसने उन्हें मैतेई लोगों से अलग कर दिया, जिनका उन्होंने पहले बचाव किया था।
- जबकि मैतेई लोग अपनी जनजातीय स्थिति को बहाल करने की मांग कर रहे हैं, जैसा कि मणिपुर के वर्ष 1949 में भारत में विलय से पहले मान्यता प्राप्त थी।
- कुकी-ज़ोमी समूहों ने 1990 के दशक में भारत के भीतर 'कुकीलैंड' (भारत के भीतर एक राज्य) नामक एक राज्य की मांग के लिये सैन्यीकरण किया। इसने उन्हें मैतेई लोगों से अलग कर दिया, जिनका उन्होंने पहले बचाव किया था।
- हालिया संघर्ष का कारण:
- परिसीमन प्रक्रिया में मुद्दे: वर्ष 2020 में, वर्ष 1973 के बाद से राज्य में पहली परिसीमन प्रक्रिया के दौरान, मैतेई समुदाय ने दावा किया कि उपयोग किये गए जनगणना के आँकड़े गलत थे, जबकि आदिवासी समूहों (कुकी और नगा) ने तर्क दिया कि 40% जनसंख्या होने के बावजूद विधानसभा में उनका प्रतिनिधित्व कम है।
- पड़ोसी क्षेत्र से प्रवासियों की घुसपैठ: फरवरी 2021 में म्याँमार के तख्तापलट ने भारत के पूर्वोत्तर में शरणार्थी संकट उत्पन्न कर दिया है, मैतेई नेताओं ने चुराचांदपुर ज़िले के गाँवों में प्रवासियों की अचानक वृद्धि का दावा किया है।
- हिंसा को बढ़ावा देना: प्रारंभिक हिंसक विरोध एक कुकी गाँव को बेदखल करने से उत्पन्न हुआ, जिसमें चूड़ाचंदपुर-खोपुम संरक्षित वन क्षेत्र के 38 गाँवों को कथित रूप से अनुच्छेद 371 C का उल्लंघन करते हुए "अवैध बस्तियाँ" करार दिया गया।
- उग्रवादियों के हितों का अभिसरण (Convergence of Interest of Militants): हाल ही में दाखिल किया गया आरोप पत्र (Charge Sheet) मौज़ूदा जातीय संकट के दौरान नगालैंड स्थित NSCN-IM और इम्फाल घाटी स्थित विद्रोही समूहों के बीच संबंधों को प्रदर्शित करता है।
- गिरफ्तार किये गए व्यक्तियों में से एक पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) का प्रशिक्षित कैडर है, जो उन आठ मैतेई विद्रोही समूहों में से एक है, जिन्हें "सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से भारत से मणिपुर को अलग करने की वकालत करने" के लिये गृह मंत्रालय (Ministry Of Home Affairs- MHA) द्वारा प्रतिबंधित किया गया है। ”
- PLA का गठन वर्ष 1978 में हुआ था और यह पूर्वोत्तर में सबसे हिंसक आतंकवादी संगठनों में से एक बना हुआ है तथा वर्तमान में इसका नेतृत्व एम.एम. नगौबा कर रहे हैं।
पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में संघर्ष की स्थिति:
- मिज़ोरम: वर्ष 1987 में राज्य का दर्ज़ा प्राप्त करने से पूर्व मिज़ोरम असम का हिस्सा था और "मौतम अकाल (Mautam famine)" के दौरान सहायता के अनुरोध पर केंद्र सरकार की अपर्याप्त प्रतिक्रिया के कारण उग्रवाद का सामना करना पड़ा था, वर्ष 1966 में लालडेंगा के नेतृत्व में मिज़ो नेशनल फ्रंट ने स्वतंत्रता की मांग की थी।
- त्रिपुरा: ब्रिटिश शासित पूर्वी बंगाल से हिंदुओं की बहुतायत जनसंख्या के कारण स्वदेशी आदिवासी लोगों की संख्या घटकर अल्पसंख्यक हो गई, जिससे हिंसक प्रतिक्रिया हुई और आदिवासी अधिकारों की बहाली की मांग करने वाले उग्रवादी समूहों का उदय हुआ।
- असम: अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के आह्वान के कारण वर्ष 1979 में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (United Liberation Front of Assam- ULFA) जैसे उग्रवादी समूहों के साथ-साथ बोडो लिबरेशन टाइगर्स और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (National Democratic Front of Bodoland- NDFB) जैसे अन्य उग्रवादी समूहों का उदय हुआ।
- मेघालय: असम से मेघालय के निर्माण का उद्देश्य गारो, जैंतिया और खासी सहित प्रमुख जनजातियों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करना था, लेकिन आदिवासी स्वायत्तता की आकांक्षाओं के कारण GNLA और HNLC जैसे विद्रोही आंदोलनों को भी बढ़ावा मिला।
- अरुणाचल प्रदेश: अरुणाचल प्रदेश ऐतिहासिक रूप से एक शांतिपूर्ण राज्य रहा है, लेकिन म्याँमार और नगालैंड से निकटता के कारण, हाल ही में उग्रवाद में वृद्धि हुई है। इस क्षेत्र में एकमात्र स्वदेशी विद्रोह आंदोलन अरुणाचल ड्रैगन फोर्स (Arunachal Dragon Force- ADF) है, जिसने 2001 में इसका नाम बदलकर ईस्ट इंडिया लिबरेशन फ्रंट (East India Liberation Front- EALF) कर दिया।
आगे की राह
- लोकुर समिति (1965) और भूरिया आयोग (2002-2004) जैसी विभिन्न समितियों की सिफारिशों के अनुसार अनुसूचित जनजाति (ST) स्थिति (मैतेई के लिये) के मानदंडों का आकलन करने की आवश्यकता है।
- म्याँमार से प्रवासियों की घुसपैठ को रोकने के लिये सीमावर्ती क्षेत्रों में निगरानी को बढ़ाया जाना चाहिये।
- पड़ोसी देशों के साथ आर्थिक और राजनयिक संबंधों में सुधार क्षेत्रीय स्थिरता एवं सुरक्षा को मज़बूत करने में योगदान दे सकता है।
- सीमावर्ती क्षेत्र के समुदायों की पहचान को सुरक्षित रखने तथा स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये विद्रोही समूहों के साथ शांति समझौतों पर बातचीत करनी चाहियेI
- विश्वास-निर्माण उपायों को लागू करने के साथ-साथ AFSPA की नियमित समीक्षा करना आवश्यक है।
- सरकार को स्वामित्व और जुड़ाव की भावना उत्पन्न करने के लिये निर्णय लेने में स्थानीय जनसंख्या की भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में प्रचलित आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। इन चुनौतियों से निपटने में सरकारी उपायों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. दक्षिण एशिया के अधिकतर देशों तथा म्यांँमार से लगी विशेषकर लंबी छिद्रिल सीमाओं की दृष्टि से भारत की आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियाँ सीमा प्रबंधन से कैसे जुड़ी हैं? (2013) प्रश्न. भारत की सुरक्षा को गैर-कानूनी सीमापार प्रवसन किस प्रकार एक खतरा प्रस्तुत करता है? इसे बढ़ावा देने के कारणों को उजागर करते हुए ऐसे प्रवसन को रोकने की रणनीतियों का वर्णन कीजिये। (2014) |