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आंतरिक सुरक्षा

नगा शांति वार्ता

  • 12 Jul 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये

नगा समुदाय, शिलॉन्ग समझौता, उत्तर-पूर्व की भौगोलिक अवस्थिति

मेन्स के लिये

नगा विद्रोह: पृष्ठभूमि और संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नगालैंड सरकार ने सभी नगा राजनीतिक समूहों और चरमपंथी समूहों से क्षेत्र में एकता, सुलह और शांति स्थापित करने में सहयोग की अपील की है। 

  • केंद्र सरकार और नगा चरमपंथी समूहों के दो वर्गों के बीच शांति प्रक्रिया बीते लगभग 23 वर्ष से अधिक समय से लंबित है।

नगा

  • नगा पहाड़ी नृजातीय समुदाय हैं जिनकी आबादी लगभग 2.5 मिलियन (नगालैंड में 1.8 मिलियन, मणिपुर में 0.6 मिलियन और अरुणाचल में 0.1 मिलियन) है और वे भारतीय राज्य असम एवं बर्मा (म्याँमार) के मध्य सुदूर एवं पहाड़ी क्षेत्र में निवास करते हैं।
  • बर्मा (म्याँमार) में भी नगा समूह मौजूद हैं।
  • नगा एक जनजाति नहीं है, बल्कि एक जातीय समुदाय है, जिसमें कई जनजातियाँ शामिल हैं, जो नगालैंड और उसके पड़ोसी क्षेत्रों में निवास करती हैं।
  • नगा इंडो-मंगोलॉयड वंश से संबंध रखते हैं।
  • नगा समुदाय में कुल 19 जनजातियाँ शामिल हैं- एओस, अंगामिस, चांग्स, चकेसांग, कबूइस, कचारिस, खैन-मंगस, कोन्याक्स, कुकिस, लोथस (लोथास), माओस, मिकीर्स, फोम्स, रेंगमास, संग्तामास, सेमस, टैंकहुल्स, यामचुमगर और ज़ीलियांग।

Naga-Struggle

प्रमुख बिंदु

नगा विद्रोह की पृष्ठभूमि:

  • नगा हिल्स वर्ष 1881 में ब्रिटिश भारत का हिस्सा बना।
  • बिखरी हुई नगा जनजातियों को एक साथ लाने के प्रयास के परिणामस्वरूप वर्ष 1918 में ‘नगा क्लब’ का गठन किया गया।
    • इस क्लब ने समग्र समुदाय के बीच एक प्रकार की ‘नगा राष्ट्रवादी’ भावना को जन्म दिया।
  • इस क्लब को वर्ष 1946 में ‘नगा नेशनल काउंसिल’ (NNC) में रूपांतरित कर दिया गया।
  • अंगामी ज़ापू फिज़ो के नेतृत्व में ‘नगा नेशनल काउंसिल’ ने 14 अगस्त, 1947 को नगालैंड को एक स्वतंत्र राज्य घोषित किया और मई 1951 में एक "जनमत संग्रह" कराया, जिसमें दावा किया गया कि 99.9% नगाओं ने ‘संप्रभु नगालैंड’ का समर्थन किया है।
  • नगालैंड ने दिसंबर 1963 में राज्य का दर्जा हासिल किया। नगालैंड का गठन असम के नगा हिल्स ज़िले और तत्कालीन ‘नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी’ (NEFA) प्रांत (अब अरुणाचल प्रदेश) के हिस्सों को मिलाकर किया गया था।
  • वर्ष 1975 में शिलॉन्ग समझौते के तहत ‘नगा नेशनल काउंसिल’ (NNC) और ‘नगा संघीय सरकार’ (NFG) के कुछ गुट हथियार छोड़ने पर सहमत हुए।
  • थिंजलेंग मुइवा (जो उस समय चीन में थे) की अगुवाई में लगभग 140 सदस्यों के एक गुट ने शिलॉन्ग समझौते को मानने से इनकार कर दिया। इस गुट ने वर्ष 1980 में ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड’ (NSCN) का गठन किया। 
  • वर्ष 1988 में एक हिंसक झड़प के बाद ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड’ (NSCN) का विभाजन NSCN (IM) और NSCN (K) में हो गया।
  • एक ओर समय के साथ ‘नगा नेशनल काउंसिल’ कमज़ोर पड़ने लगी तथा वर्ष 1991 में लंदन में फिज़ो की मृत्यु हो गई, वहीं NSCN (IM) की ताकत और बढ़ने लगी एवं उसे इस क्षेत्र में ‘सभी विद्रोहियों की जननी’ के रूप में देखा जाने लगा।

नगा समूहों की मांग:

  • नगा समूहों की प्रमुख मांग एक वृहत नगालैंड अर्थात् नगालिम (संप्रभु राज्य का दर्जा) रही है, यानी पूर्वोत्तर में सभी नगा-आबादी क्षेत्रों को एक प्रशासनिक केंद्र के अंतर्गत लाने के लिये सीमाओं का पुनर्निर्धारण किया जाना है।
    • इसमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर तथा म्याँमार के भी विभिन्न क्षेत्र शामिल हैं।
  • इसमें एक पृथक नगा येजाबो (संविधान) तथा एक पृथक झंडे की मांग भी शामिल है । 

Nagaland

शांति पहल:

  • शिलॉन्ग समझौता (1975): शिलॉन्ग में एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये गए जिसमें NNC गुट ने हथियार छोड़ने पर सहमति जताई।
    • हालाँकि कई नेताओं ने समझौते को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, जिसके कारण NNC का विभाजन हो गया।
  • संघर्ष विराम समझौता (1997): NSCN-IM ने भारतीय सशस्त्र बलों पर हमलों को रोकने के लिये सरकार के साथ संघर्ष विराम समझौते पर हस्ताक्षर किये। इसके परिणामस्वरूप सरकार ने सभी उग्रवाद विरोधी गतिविधियों/अभियानों को रोक दिया।
  • फ्रेमवर्क समझौता (2015): इस समझौते में भारत सरकार ने नगाओं के अनोखे  इतिहास, संस्कृति और स्थिति तथा उनकी भावनाओं एवं आकांक्षाओं को मान्यता दी।
  • हाल ही में राज्य सरकार ने नगालैंड के स्थानीय निवासियों का एक रजिस्टर (RIIN) बनाने का निर्णय लिया है लेकिन बाद में विभिन्न गुटों के दबाव के कारण निर्णय को रोक दिया गया।

मुद्दे:

  • 2015 के समझौते ने कथित तौर पर शांति प्रक्रिया को समावेशी बना दिया, लेकिन इसने केंद्र सरकार द्वारा आदिवासी और भू-राजनीतिक आधार पर नगाओं का विभाजन कर उनके शोषण किये जाने का संदेह उत्पन्न किया।
  • 'ग्रेटर नगालिम' (Greater Nagalim) के क्षेत्रीय एकीकरण की मांग के मद्देनज़र मणिपुर, असम और अरुणाचल प्रदेश के निकटवर्ती नगा-आबादी क्षेत्रों के एकीकरण का मुद्दा विभिन्न प्रभावित राज्यों में हिंसक संघर्ष को बढ़ावा देगा।
  • नगालैंड में शांति प्रक्रिया के मार्ग में एक और बड़ी बाधा यह है कि यहाँ एक से अधिक संगठनों का अस्तित्व है, जिनमें से प्रत्येक नगाओं का प्रतिनिधि होने का दावा करता है।

आगे की राह 

  • केंद्र को दीर्घकालीन शांतिवार्ता वाले पहलुओं के लिये विद्रोहियों के सभी गुटों और समूहों के साथ बातचीत करनी चाहिये। इसके अलावा उनकी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और क्षेत्रीय सीमा को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
  • किसी भी व्यवस्थित प्रक्रिया को अपनाते समय उनके सामाजिक-राजनीतिक सद्भाव, आर्थिक समृद्धि और राज्यों के सभी जनजातियों तथा नागरिकों के जीवन एवं संपत्ति की सुरक्षा होनी चाहिये।
  • इस मुद्दे से निपटने का एक अन्य मार्ग जनजातीय समूहों में शक्तियों का अधिकतम विकेंद्रीकरण और शीर्ष स्तर पर न्यूनतम केंद्रीयकरण हो सकता है। इससे शासन को जनोन्मुख बनाने और वृहद् विकास परियोजनाओं को शुरू करने की दिशा में आसानी होगी।
  • इन राज्यों में नगा आबादी वाले क्षेत्रों को अधिक स्वायत्तता प्रदान की जा सकती है और इन क्षेत्रों के लिये उनकी संस्कृति एवं विकास हेतु अलग से बजट आवंटन भी किया जा सकता है।
  • इसके अलावा केंद्र को यह ध्यान रखना चाहिये कि विश्व भर में अधिकांश सशस्त्र विद्रोह या तो संपूर्ण जीत या व्यापक हार में समाप्त नहीं होते हैं, बल्कि 'समझौता' जैसे  एक ग्रे ज़ोन में समाप्त होते हैं।

स्रोत  : द हिंदू

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