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आंतरिक सुरक्षा

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 (AFSPA)

  • 06 Apr 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958, भारत छोड़ो आंदोलन, अशांत क्षेत्र, नागा हिल्स, संसद, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, अशांत क्षेत्र, अशांत क्षेत्र (विशेष न्यायालय) अधिनियम, 1976,

मेन्स के लिये:

AFSPA, पक्ष में तर्क और विपक्ष में तर्क, 

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) ने नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 को अगले छह माह के लिये बढ़ा दिया है।

  • नगालैंड के आठ ज़िलों और 21 पुलिस स्टेशनों में AFSPA को अगले छह माह के लिये बढ़ा दिया गया है।
  • यह अरुणाचल प्रदेश के विशिष्ट क्षेत्रों में भी प्रभावी होगा।

AFSPA क्या है?

  • पृष्ठभूमि:
    • ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने भारत छोड़ो आंदोलन को शांत करने के लिये 15 अगस्त, 1942 को सशस्त्र बल विशेष अधिकार अध्यादेश लागू किया था।
    • यह चार अध्यादेशों की बुनियाद थी, जिसमें विभाजन-प्रेरित आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये वर्ष 1947 में लागू किये गए "असम अशांत क्षेत्रों" के लिये एक अध्यादेश भी शामिल था।
    • सशस्त्र बल (असम और मणिपुर) विशेष अधिकार अधिनियम, 1958, ने नागा हिल्स और आसपास के क्षेत्रों में विद्रोह से निपटने के लिये असम अशांत क्षेत्र अधिनियम, 1955 का पालन किया।
    • व्यापक अनुप्रयोग हेतु अधिनियम को AFSPA द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था। जम्मू और कश्मीर के लिये विशेष रूप से एक समान अधिनियम वर्ष 1990 में अधिनियमित किया गया था।
  • परिचय: 
    • सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया था और इसे 11 सितंबर, 1958 को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किया गया था। इसे सशस्त्र बल विशेष शक्तियाँ अधिनियम (AFSPA), 1958 के रूप में जाना जाता है।
    • यह अधिनियम दशकों पहले उत्तर-पूर्वी राज्यों में बढ़ती हिंसा के संदर्भ में लागू हुआ था, जिसे नियंत्रित करना राज्य सरकारों के लिये कठिन था।
    • AFSPA सशस्त्र बलों और "अशांत क्षेत्रों" में तैनात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को कानून के उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को मारने, गिरफ्तारी करने और वॉरंट के बिना किसी भी परिसर की तलाशी लेने के लिये कानून के तहत बेलगाम शक्ति प्रदान की गई है और केंद्र सरकार की स्वीकृति के बिना अभियोजन एवं कानूनी मुकदमों से सुरक्षा सुनिश्चित करता है। 
    • राज्य और केंद्र सरकार AFSPA के संबंध में अधिसूचना जारी कर सकते हैं। अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड राज्यों के लिये गृह मंत्रालय समय-समय पर "अशांत क्षेत्र" की अधिसूचना जारी करता है।

AFSPA के अंर्तगत वर्णित अशांत क्षेत्र क्या हैं?

  • अशांत क्षेत्र वह है जिसे AFSPA की धारा 3 के तहत अधिसूचना द्वारा घोषित किया जाता है। इसे उन स्थानों पर लागू किया जा सकता है जहाँ नागरिक शक्ति की सहायता के लिये सशस्त्र बलों का उपयोग आवश्यक है।
    • अधिनियम में 1972 में संशोधन किया गया और किसी क्षेत्र को "अशांत" घोषित करने की शक्तियाँ राज्यों के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी प्रदान की गईं।
  • विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषायी या क्षेत्रीय समूहों या जातियों या समुदायों के सदस्यों के बीच मतभेद या विवादों के कारण कोई क्षेत्र अशांत हो सकता है।
  • केंद्र सरकार, या राज्य के राज्यपाल या केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासक पूरे राज्य या केंद्र शासित प्रदेश को अशांत क्षेत्र घोषित कर सकते हैं।
  • अशांत क्षेत्र (विशेष न्यायालय) अधिनियम, 1976 के अनुसार, एक बार 'अशांत' घोषित होने के बाद, क्षेत्र को लगातार तीन महीने की अवधि के लिये अशांत बनाए रखा जाता है। राज्य सरकार यह सुझाव दे सकती है कि राज्य में इस अधिनियम की आवश्यकता है या नहीं।
    • वर्तमान में केंद्रीय गृह मंत्रालय केवल नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के लिये AFSPA का विस्तार करने के लिये समय-समय पर "अशांत क्षेत्र" अधिसूचना जारी करता है।

AFSPA के पक्ष और विपक्ष में क्या तर्क हैं?

  • पक्ष में तर्क:  
    • सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करना: AFSPA को उन क्षेत्रों में लगातार सुरक्षा खतरों से निपटने के लिये आवश्यक माना जाता है जहाँ इसे लागू किया जाता है।
      • सशस्त्र समूहों और विद्रोही गतिविधियों की उपस्थिति सार्वजनिक सुरक्षा और स्थिरता के लिये लगातार खतरा बनी हुई है।
      • AFSPA द्वारा प्रदान की गई कानूनी रूपरेखा के बिना, सुरक्षा बलों के लिये इन खतरों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करना मुश्किल हो सकता है।
    • सुरक्षा बलों को सशक्त बनाना: AFSPA सुरक्षा बलों को उग्रवाद और आतंकवाद से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये आवश्यक कानूनी अधिकार प्रदान करता है।
      • यह उन्हें अशांत क्षेत्रों में ऑपरेशन चलाने, गिरफ्तारियाँ करने और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिये आवश्यक शक्तियाँ प्रदान करता है।
      • सुरक्षा बलों को जटिल सुरक्षा चुनौतियों से कुशलतापूर्वक निपटने में सक्षम बनाने के लिये यह सशक्तिकरण महत्त्वपूर्ण है।
    • कर्मियों के लिये कानूनी सुरक्षा: AFSPA अशांत क्षेत्रों में काम करने वाले सुरक्षा कर्मियों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है।
      • जब वे चुनौतीपूर्ण और अक्सर खतरनाक परिस्थितियों में अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हैं तो ये सुरक्षा उन्हें कानूनी दायित्व से बचाती है।
      • ऐसे कानूनी सुरक्षा उपाय यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हैं कि सुरक्षाकर्मी अनुचित कानूनी परिणामों के भय के बिना अपना कार्य कर सकें।
    • मनोबल बढ़ाना: AFSPA द्वारा प्रदान की गई कानूनी सुरक्षा सशस्त्र बल कर्मियों के मनोबल को बढ़ाने में सहायक होती है।
      • यह जानते हुए कि अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाते समय वे कानूनी रूप से संरक्षित हैं, चुनौतीपूर्ण वातावरण में प्रभावी ढंग से प्रदर्शन करने के लिये उनके आत्मविश्वास और प्रेरणा को बढ़ा सकते हैं।
      • अशांत क्षेत्रों में सुरक्षा अभियानों की प्रभावशीलता और दक्षता बनाए रखने के लिये यह मनोबल बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है।
  • विपक्ष में तर्क:
    • राज्य की स्वायत्तता का उल्लंघन: AFSPA की धारा 3 केंद्र सरकार को संबंधित राज्य की सहमति के बिना किसी भी क्षेत्र को अशांत क्षेत्र के रूप में नामित करने का अधिकार देती है।
      • इससे राज्यों की स्वायत्तता कमज़ोर होती है और केंद्र सरकार द्वारा शक्ति का दुरुपयोग हो सकता है।
    • बल का अत्यधिक उपयोग: AFSPA की धारा 4 अधिकृत अधिकारियों को विशिष्ट शक्तियाँ प्रदान करती है, जिसमें व्यक्तियों के विरुद्ध आग्नेयास्त्रों का उपयोग भी शामिल है, जिसके परिणामस्वरूप संभावित मृत्यु हो सकती है।
      • यह प्रावधान सुरक्षा बलों द्वारा बल के अत्यधिक और असंगत उपयोग के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करता है।
    • नागरिक स्वतंत्रता का उल्लंघन: धारा 4 अधिकारियों को बिना वारंट के गिरफ्तार करने और बिना किसी वारंट के परिसर को ज़ब्त करने तथा तलाशी लेने की शक्ति भी देती है।
      • इससे व्यक्तियों की नागरिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता है, क्योंकि यह मनमाने ढंग से हिरासत और तलाशी के विरुद्ध मानक कानूनी प्रक्रियाओं एवं सुरक्षा उपायों को दरकिनार कर देता है।
    • जवाबदेही का अभाव: AFSPA की धारा 7 के तहत सुरक्षा बलों के किसी सदस्य के विरुद्ध मुकदमा चलाने के लिये केंद्रीय या राज्य अधिकारियों से पूर्व कार्यकारी अनुमोदन प्राप्त करना आवश्यक है।
      • यह प्रावधान सुरक्षा बलों द्वारा कथित मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में जवाबदेही और पारदर्शिता की कमी उत्पन्न करता है, क्योंकि यह उन्हें दण्ड से मुक्ति के साथ काम करने की अनुमति देता है।
    • दुर्व्यवहार के साक्ष्य: वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त हेगड़े आयोग ने पाया कि जिन छह मामलों की उसने जाँच की, उनमें सभी सात मौतें न्यायेत्तर निष्पादन थीं।
      • इसके अतिरिक्त, इसने मणिपुर में सुरक्षा बलों द्वारा AFSPA के व्यापक दुरुपयोग को उजागर किया।

सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश क्या हैं?

  • विधि और व्यवस्था के मामलों पर राज्यों के अधिकार क्षेत्र के साथ इसके अंतर्संबंध के कारण AFSPA की संवैधानिकता के संबंध में प्रश्न उठे। सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1998 में नगा पीपुल्स मूवमेंट ऑफ ह्यूमन राइट्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में अपने निर्णय में AFSPA की संवैधानिकता की पुष्टि की।
  • इस ऐतिहासिक निर्णय में, न्यायालय विशिष्ट निष्कर्षों पर पहुँचा, जिनमें शामिल हैं:
    • केंद्र सरकार के पास स्वतः संज्ञान (Suo-Motto Declaration) घोषणा का अधिकार है, फिर भी ऐसी घोषणा जारी करने से पूर्व केंद्र सरकार के लिये राज्य सरकार से परामर्श करना बेहतर होता है।
    • AFSPA किसी क्षेत्र को 'अशांत क्षेत्र' के रूप में नामित करने का अप्रतिबंधित अधिकार नहीं देता है।
    • घोषणा की एक निश्चित समय-सीमा होनी चाहिये और उसकी स्थिति का नियमित आकलन होना चाहिये। छह महीने बीत जाने के बाद घोषणा की समीक्षा ज़रूरी है।
    • " AFSPA द्वारा दी गई शक्तियों को लागू करते समय, अधिकृत अधिकारी को सफल संचालन के लिये आवश्यक न्यूनतम बल का उपयोग करना चाहिये, और साथ ही सेना "क्या करे व क्या न करे" में उल्लिखित दिशा-निर्देशों का कठोरता से पालन करना चाहिये।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने निर्धारित किया कि अधिनियम संविधान का उल्लंघन नहीं करता है, साथ ही धारा 4 व 5 के अंर्तगत दी गई शक्तियाँ न तो मनमानी हैं और न ही अनुचित हैं।

आगे की राह

  • जीवन रेड्डी समिति की अनुशंसाएँ:
    • नवंबर 2004 में केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों में अधिनियम के प्रावधानों की समीक्षा के लिये न्यायमूर्ति बी पी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय समिति नियुक्त की।
    • समिति की अनुशंसाएँ:
      • AFSPA को निरस्त किया जाना चाहिये एवं गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में उचित प्रावधान शामिल किये जाने चाहिये।
      • सशस्त्र बलों तथा अर्द्धसैनिक बलों की शक्तियों को स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करने हेतु गैरकानूनी गतिविधियाँ अधिनियम को संशोधित किया जाना चाहिये और साथ ही प्रत्येक ज़िले में जहाँ सशस्त्र बल तैनात हैं, शिकायत कक्ष भी स्थापित किये जाने चाहिये।
  • दूसरी ARC अनुशंसाएँ: 
    • सार्वजनिक व्यवस्था पर दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की 5वीं रिपोर्ट में भी AFSPA को निरस्त करने की सिफारिश की गई है। हालाँकि इन अनुशंसाओं को लागू नहीं किया गया है।
  • संतोष हेगड़े आयोग की अनुशंसाएँ:
    • अधिनियम को अधिक मानवीय तथा सुरक्षा बलों को अधिक जवाबदेह बनाने के उद्देश्य से इसके कार्यान्वयन की आवश्यकता का आकलन करने हेतु प्रति छह माह में AFSPA की समीक्षा की जानी चाहिये।
    • समिति ने सुझाव दिया कि केवल AFSPA पर निर्भर रहने के स्थान पर आतंकवाद से निपटने के लिये गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम में उचित संशोधन किया जा सकता है।
    • यह भी सिफारिश की गई थी कि सशस्त्र बलों को "अशांत क्षेत्रों" में भी अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन के दौरान की गई ज़्यादतियों के आधार पर जाँच से छूट नहीं दी जानी चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. सुरक्षा अभियानों, मानवाधिकारों एवं शासन पर इसके प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, AFSPA की निरंतरता के पक्ष और विपक्ष में तर्कों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

मेन्स:

प्रश्न. मानवाधिकार सक्रियतावादी लगातार इस विचार को उजागर करते हैं कि सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 (AFSP) एक क्रूर अधिनियम है, जिससे सुरक्षा बलों द्वारा मानवाधिकार के दुरुपयोगों के मामले उत्पन्न होते हैं। इस अधिनियम की कौन-सी धाराओं का सक्रियतावादी विरोध करते हैं? उच्चतम न्यायालय द्वारा व्यक्त विचार के संदर्भ में इसकी आवश्यकता का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (2015)

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