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शासन व्यवस्था

परिसीमन

  • 01 Jun 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

परिसीमन, परिसीमन आयोग अधिनियम, 1952, भारतीय संविधान, परिसीमन आयोग, 15वाँ वित्त आयोग, भारत निर्वाचन आयोग (ECI)

मेन्स के लिये:

परिसीमन की आवश्यकता एवं संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों? 

दक्षिणी राज्यों के कई राजनेता जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के विरोध में आवाज़ उठा रहे हैं, जिसे वे अनुचित मानते हैं।  

  • जनसंख्या नियंत्रण नीतियों का पालन करने वाले दक्षिणी राज्य अब जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में अपनी सफलता के बावजूद संभावित नुकसान का सामना कर रहे हैं। 

 परिसीमन: 

  • परिचय: 
    • परिसीमन का अर्थ है विधायी निकाय वाले देश या प्रांत में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का निर्धारण करने की प्रक्रिया।
      • लोकसभा (LS) और विधानसभा (LS) के लिये परिसीमन स्थानीय निकायों से अलग है। 
    • परिसीमन आयोग अधिनियम वर्ष 1952 में अधिनियमित किया गया था।
    • 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के आधार पर चार बार वर्ष 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोगों का गठन किया गया है।
    • पहला परिसीमन अभ्यास वर्ष 1950-51 में राष्ट्रपति (चुनाव आयोग की मदद से) द्वारा किया गया था।
  • इतिहास: 
    • लोकसभा की राज्यवार संरचना में परिवर्तन लाने वाला अंतिम परिसीमन वर्ष 1976 में पूरा हुआ और यह वर्ष 1971 की जनगणना के आधार पर किया गया।
    • भारत का संविधान यह आज्ञापित करता है कि लोकसभा में सीटों का आवंटन प्रत्येक राज्य की जनसंख्या के आधार पर होना चाहिये ताकि सीटों का जनसंख्या से अनुपात सभी राज्यों में लगभग सामान हो। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक व्यक्ति के वोट का भारांक लगभग समान हो, भले ही वे किसी भी राज्य में रहते हों।
      • हालाँकि इस प्रावधान का अर्थ यह था कि जनसंख्या नियंत्रण में कम दिलचस्पी लेने वाले राज्यों को संसद में अधिक संख्या में सीटें मिल सकती हैं।
    • इस तरह के परिणामों से बचने के लिये संविधान में संशोधन किया गया। 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 ने वर्ष 1971 के परिसीमन के आधार पर वर्ष 2000 तक के लिये राज्यों में लोकसभा में सीटों के आवंटन और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन पर रोक लगा दी।
    • 84वें संशोधन अधिनियम, 2001 ने सरकार को वर्ष 1991 की जनगणना के जनसंख्या आँकड़ों के आधार पर राज्यों में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्समायोजन और युक्तिकरण का अधिकार दिया।
    • 87वें संशोधन अधिनियम, 2003 में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का प्रावधान वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर किया गया, न कि वर्ष 1991 की जनगणना के आधार पर।
      • हालाँकि यह लोकसभा में प्रत्येक राज्य को आवंटित सीटों की संख्या में बदलाव किये बिना किया जा सकता है।
  • आवश्यकता:
    • जनसंख्या के समान वर्गों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान करने हेतु।
    • भौगोलिक क्षेत्रों के उचित विभाजन हेतु ताकि चुनाव में एक राजनीतिक दल को दूसरों पर फायदा न हो।
    • "एक वोट एक मूल्य" के सिद्धांत का पालन करने हेतु।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • अनुच्छेद 82 के तहत संसद प्रत्येक जनगणना के बाद एक परिसीमन अधिनियम बनाती है।
    • अनुच्छेद 170 के तहत राज्यों को प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।

परिसीमन संबंधी चिंताएँ:

  • क्षेत्रीय असमानता:   
    • निर्णायक कारक के रूप में जनसंख्या के कारण लोकसभा में भारत के उत्तर और दक्षिणी भाग के बीच प्रतिनिधित्व में असमानता है।
    • केवल जनसंख्या पर आधारित परिसीमन दक्षिणी राज्यों द्वारा जनसंख्या नियंत्रण में की गई प्रगति की अवहेलना करता है और संघीय ढाँचे में असमानताओं का कारण बनता है।
      • देश की जनसंख्या का केवल 18% होने के बावजूद दक्षिणी राज्य देश के सकल घरेलू उत्पाद में 35% योगदान करते हैं।
    • उत्तरी राज्य जनसंख्या नियंत्रण को प्राथमिकता नहीं देते हैं तथा उच्च जनसंख्या वृद्धि के कारण परिसीमन प्रक्रिया में उन्हें लाभ मिलने की उम्मीद है।
  • अपर्याप्त वित्तपोषण:  
    • 15वें वित्त आयोग द्वारा 2011 की जनगणना को अपनी सिफारिश के आधार के रूप में उपयोग करने के बाद दक्षिणी राज्यों के संसद में वित्तपोषण और प्रतिनिधित्व खोने के बारे में चिंता जताई गई।
    • इससे पहले 1971 की जनगणना को राज्यों को वित्तपोषण और कर विचलन सिफारिशों के आधार के रूप में उपयोग किया गया था।
  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को प्रभावित करना:
    • सीटों के निर्धारित परिसीमन और पुनः आवंटन के परिणामस्वरूप न केवल दक्षिणी राज्यों के लिये सीटों की हानि हो सकती है बल्कि उत्तर में अपने आधार के साथ राजनीतिक दलों के लिये सत्ता में वृद्धि भी हो सकती है।
      • यह संभवतः उत्तर की ओर और दक्षिण से दूर शक्ति का स्थानांतरण कर सकता है।
    • यह अभ्यास प्रत्येक राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के लिये आरक्षित सीटों के विभाजन को भी प्रभावित करेगा (अनुच्छेद 330 और 332 के तहत)।

परिसीमन आयोग

  • गठन:
    • परिसीमन आयोग का गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है तथा भारत निर्वाचन आयोग के सहयोग से कार्य करता है।
  • संरचना:
    • सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश
    • मुख्य निर्वाचन आयुक्त
    • संबंधित राज्य के निर्वाचन आयुक्त
  • कार्य:
    • सभी निर्वाचन क्षेत्रों की जनसंख्या को लगभग बराबर करने के लिये निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या और सीमाओं का निर्धारण करना।
    • अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षित सीटों की पहचान करना, जहाँ उनकी जनसंख्या अपेक्षाकृत अधिक है।
  • शक्तियाँ:
    • आयोग के सदस्यों के बीच मतभेद के मामले में बहुमत की राय प्रबल होती है।
    • भारत में परिसीमन आयोग एक उच्च-शक्ति प्राप्त निकाय है, जिसके आदेशों को कानून का संरक्षण प्राप्त होता है और किसी भी न्यायालय के समक्ष इस पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है।

आगे की राह 

  • वर्ष 2031 की जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं को फिर से परिभाषित करने हेतु एक परिसीमन आयोग का गठन किया जाना चाहिये। परिसीमन आयोग द्वारा की गई जनसंख्या सिफारिशों के आधार पर राज्यों को छोटे राज्यों में विभाजित करने के लिये एक राज्य पुनर्गठन अधिनियम बनाया जाना चाहिये।
  • पिछले परिसीमन अभ्यास ने बताया कि भारत की जनसंख्या में वृद्धि हुई है तथा राजनीतिक प्रतिनिधित्व में परिणामी विषमता को दूर करने की आवश्यकता पर बल दिया है।
  • परिसीमन की कसौटी के रूप में केवल जनसंख्या पर निर्भर रहने के बजाय अन्य कारकों जैसे कि विकास संकेतक, मानव विकास सूचकांक और परिवार नियोजन कार्यक्रमों को लागू करने के प्रयासों पर विचार करना चाहिये। यह राज्यों की ज़रूरतों और उपलब्धियों का अधिक व्यापक एवं न्यायसंगत प्रतिनिधित्व प्रदान करेगा।
  • जिन राज्यों ने प्रभावी ढंग से परिवार नियोजन कार्यक्रमों को लागू किया है उनके प्रयासों की सराहना और पुरस्कृत किया जाना चाहिये।
  • संतुलित दृष्टिकोण को शामिल करने के लिये निधियों के हस्तांतरण के दिशा-निर्देशों की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिये। 
  • विलय के लिये प्रस्तावित क्षेत्रों की विकास क्षमता और जनसंख्या में उनकी वृद्धि को परिसीमन अभ्यास के मानदंड के रूप में देखा जाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. परिसीमन आयोग के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. परिसीमन आयोग के आदेश को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
  2.  जब परिसीमन आयोग के आदेश लोकसभा या राज्य विधानसभा के समक्ष रखे जाते हैं, तो वे आदेशों में कोई संशोधन नहीं कर सकते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)

स्रोत: द हिंदू

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