जैव विविधता और पर्यावरण
वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु नवीन आयोग
- 19 Jul 2021
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु नवीन आयोग, मानसून सत्र, बजट सत्र, अध्यादेश मेन्स के लिये:वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु नवीन आयोग का कार्य, शक्तियाँ एवं महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) मानसून सत्र के दौरान संसद में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग विधेयक, 2021 को पेश करने के लिये तैयार है।
प्रमुख बिंदु:
पृष्ठभूमि और नए परिवर्तन:
- प्रारंभ में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग संबंधी अध्यादेश को अक्तूबर 2020 में राष्ट्रपति द्वारा प्रख्यापित किया गया था, लेकिन अध्यादेश के प्रतिस्थापन हेतु विधेयक को संसद के बजट सत्र में पारित नहीं किया गया, जिसके परिणामस्वरूप आयोग ने मार्च 2020 में काम करना बंद कर दिया।
- इसके बाद MoEFCC ने किसानों के विरोध के कारण अप्रैल 2021 में संशोधनों के साथ दूसरा अध्यादेश प्रस्तुत किया।
- किसानों ने पराली जलाने के आरोप में कठोर दंड और जेल की सज़ा की चिंता जताई (जैसा कि पहले अध्यादेश में कहा गया)।
- सरकार ने पराली जलाने के कृत्य को अपराध से मुक्त कर दिया है और संभावित जेल की सज़ा से संबंधित खंड वापस ले लिया है।
- हालाँकि पर्यावरण प्रतिपूर्ति शुल्क उन लोगों पर लगाया जाता है जो किसानों के साथ पराली जलाने में लिप्त पाए जाते हैं।
विधेयक के विषय में:
- यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) और उसके आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता से संबंधित समस्याओं के बेहतर समन्वय, अनुसंधान, पहचान और समाधान के लिये एक आयोग के गठन का प्रावधान करता है।
- आसपास के क्षेत्रों में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से सटे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्यों के क्षेत्रों को शामिल किया गया है, जहाँ किसी भी प्रकार का प्रदूषण राजधानी में वायु गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
- यह विधेयक वर्ष 1998 में राजधानी दिल्ली के लिये स्थापित ‘पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण प्राधिकरण’ को भी भंग करता है।
संरचना
- इस आयोग का नेतृत्त्व एक पूर्णकालिक अध्यक्ष द्वारा किया जाएगा, जो कि भारत सरकार का सचिव या राज्य सरकार का मुख्य सचिव रहा हो।
- अध्यक्ष तीन वर्ष के लिये या 70 वर्ष की आयु तक पद पर रहेगा।
- इसमें कई मंत्रालयों के सदस्यों के साथ-साथ हितधारक राज्यों के प्रतिनिधि भी होंगे।
- साथ ही इसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और सिविल सोसाइटी के विशेषज्ञ भी शामिल होंगे।
कार्य:
- संबंधित राज्य सरकारों (दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश) द्वारा की गई समन्वित कार्रवाई।
- एनसीआर में वायु प्रदूषण को रोकने और नियंत्रित करने के लिये योजना बनाना तथा उसे क्रियान्वित करना।
- वायु प्रदूषकों की पहचान के लिये एक रूपरेखा प्रदान करना।
- तकनीकी संस्थानों के साथ नेटवर्किंग के माध्यम से अनुसंधान और विकास का संचालन करना।
- वायु प्रदूषण से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिये एक विशेष कार्यबल का प्रशिक्षण और गठन करना।
- वृक्षारोपण बढ़ाने और पराली जलाने से रोकने से संबंधित विभिन्न कार्य योजनाएँ तैयार करना।
शक्तियाँ:
- नए निकाय के पास दिशा-निर्देश जारी करने और शिकायतों के समाधान की शक्ति होगी क्योंकि यह एनसीआर तथा आसपास के क्षेत्रों में हवा की गुणवत्ता एवं सुधार के उद्देश्य से आवश्यक है।
- यह वायु प्रदूषण के नियंत्रण के लिये मानदंड भी निर्धारित करेगा।
- इसके पास पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन करने वालों की पहचान करने, कारखानों एवं उद्योगों और क्षेत्र में किसी भी अन्य प्रदूषणकारी इकाई की निगरानी करने तथा ऐसी इकाइयों को बंद करने की शक्ति होगी।
- इसके पास क्षेत्र में राज्य सरकारों द्वारा जारी किये गए निर्देशों जो प्रदूषण मानदंडों का उल्लंघन करती हों, को रद्द करने का भी अधिकार होगा।
आगे की राह
- वायु प्रदूषण जैसे सार्वजनिक मुद्दों से निपटने के लिये कानूनी और नियामक परिवर्तनों हेतु एक लोकतांत्रिक अवधारणा की आवश्यकता है।
- शहर के भीतर बड़े पैमाने पर सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाने व उद्योगों, बिजली संयंत्रों और अन्य उपयोगकर्त्ताओं को प्रदूषणकारी ईंधन जैसे- कोयले से प्राकृतिक गैस, बिजली व नवीकरणीय ऊर्जा को स्वच्छ दहन में स्थानांतरित करने की आवश्यकता है।
- सरकार को विभिन्न कानूनों और संस्थानों की प्रभावशीलता व उपयोगिता को देखने के लिये उनकी व्यापक समीक्षा करनी चाहिये, इसमें सभी संबंधित हितधारकों विशेष रूप से दिल्ली के बाहर के लोगों के साथ विस्तृत परामर्श होना चाहिये, जिसमें किसान समूह तथा लघु उद्योग एवं बड़े पैमाने पर जनता शामिल हैं।