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डेली न्यूज़


भारतीय इतिहास

भारत में आर्यों का प्रवासन

  • 26 Sep 2019
  • 7 min read

संदर्भ

मार्च 2018 में ‘द जीनोमिक फॉर्मेशन ऑफ साउथ एंड सेंट्रल एशिया’ (The Genomic Formation of South and Central Asia) शीर्षक से एक पेपर ऑनलाइन जारी हुआ था, इसने भारत में आर्यों के प्रवेश के संबंध में दुनिया भर में सनसनी फैला दी थी।

अध्ययन के प्रमुख बिंदु

  • इसने यह प्रतिपादित किया कि 2000 ई.पू. और 1000 ईसा पूर्व के बीच मध्य एशियाई स्टेपी (Central Asian Steppe) से प्रवासन हुआ, संभवतः इसके चलते ही इंडो-यूरोपीय भाषा (Indo-European language) का भारत में प्रवेश हुआ।
  • दूसरे शब्दों में, यह अध्य्यन भारत में आर्यों के प्रवेश का समर्थन करता है या इसे और अधिक सटीक रूप से कहा जाए तो इंडो-यूरोपीय भाषा बोलने वाले लोगों के भारत में प्रवासन का समर्थन करता है, जिन्होंने स्वयं को 'आर्य' कहकर संबोधित किया।

प्रथम भारतीय

  • दक्षिण-पूर्व एशिया के शिकारी समूहों का संबंध अंडमानी समूह से है, जिन्हें इस अध्ययन में AHG या अंडमानी शिकारी समूहों (Andamanese Hunter Gatherers) के रूप में संदर्भित किया गया है।
  • दक्षिण पूर्व एशिया के शिकारी समूह, AHG या प्रथम भारतीय- ये सभी अफ्रीका से प्रवास करने वाले समूहों के वंशज को संदर्भित करते हैं, जो लगभग 65,000 साल पहले भारत में पहुँचे थे।

भारतीयों का विकास

  • वर्तमान दक्षिण एशियाई लोग प्रथम भारतीय तथा ईरान के शिकारी समूहों का मिश्रण हैं।
  • इस मिश्रित आबादी ने उत्तर-पश्चिमी भारत में कृषि प्रणाली को जन्म दिया तथा हड़प्पा सभ्यता का विकास किया।
  • जब 2000 ईसा पूर्व के बाद हड़प्पा सभ्यता का पतन हुआ तब हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने उत्तर-पश्चिम भारत से दक्षिण-पूर्व की ओर रुख किया और अन्य प्रथम भारतीयों के साथ घुल-मिल गए जिससे पैतृक दक्षिण भारतीय (Ancestral South Indians-ASI) वंशावली का विकास हुआ। इनके वंशज वर्तमान में दक्षिण भारत में रहते हैं।
  • लगभग इसी समय हड़प्पा सभ्यता के कुछ लोग स्टेपी घास के मैदानों में रहने वाले चरवाहा समूह के साथ भी घुल-मिल गए तथा दूसरी प्रमुख आबादी पैतृक उत्तर भारतीय (Ancestral North Indians-ANI) विकसित हुई।
  • कांस्य युग में दक्षिण एशिया तथा पूर्वी यूरोप दोनों की स्टेपी वंशावली यह दर्शाती है कि किस तरह से इन दो क्षेत्रों के बीच मध्य एशियाई लोगों की गतिविधियों के कारण इंडो-ईरानी तथा बल्टो-स्लाविक (Balto-Slavic) भाषाओँ के बीच समानता पाई जाती है।

Migration Path

विचारों पर असहमति:

  • पुणे के शोधकर्त्ताओं द्वारा किया गया अध्ययन आर्यों के प्रवासन के सिद्धांत का खंडन करता है। यह अध्ययन लगभग 4,600 साल पहले हड़प्पा सभ्यता के राखीगढ़ी नामक स्थान पर रहने वाली एक महिला के प्राचीन डी.एन.ए. के अध्ययन पर आधारित है।
  • भारत में स्टेपी चरवाहों का पलायन हड़प्पा सभ्यता के पतन के बाद हुआ। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हालाँकि हमेशा से यही समझा जाता रहा है कि स्टेपी क्षेत्रों से आर्यों का प्रवासन 2000 ईसा पूर्व के बाद हुआ था।
  • राखीगढ़ी से प्राप्त 2600 ईसा पूर्व के कंकाल में स्टेपी वंश की अनुपस्थिति से स्पष्ट रूप से इस बात की पुष्टि होती है कि आर्यों की उपस्थिति के संदर्भ में पूर्व का विचार/मत ही सही था जिसके अनुसार, हड़प्पा सभ्यता के दौरान आर्यों की मौजूदगी नहीं थी। दूसरे शब्दों में हड़प्पा सभ्यता आर्यों के उद्भव से पूर्व विद्यमान थी।

हड़प्पावासी और आर्य कौन थे?

  • हड़प्पावासी (Harappans), जिन्होंने पश्चिमोत्तर भारत में कृषि क्रांति को जन्म दिया और फिर हड़प्पा सभ्यता का निर्माण किया, वे सबसे पहले भारतीय और ईरानी लोगों का मिश्रित रूप थे जो आर्य से पूर्व की भाषा बोलते थे।
  • आर्य, मध्य एशियाई स्टेपी चरवाहे (Asian Steppe pastoralists) थे जो लगभग 2000 ईसा पूर्व और 1500 ईसा पूर्व के बीच भारत आए, इसके ज़रिये इंडो-यूरोपियन भाषाओं का इस उपमहाद्वीप में प्रवेश हुआ।

इस अध्ययन में नया क्या है?

  • दूसरी सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व के पूर्वार्द्ध में दक्षिण एशिया में इंडो-यूरोपियन भाषाओँ का प्रसार एक प्राकृतिक मार्ग से हुआ जो पूर्वी यूरोप से शुरू होकर मध्य एशिया से होकर गुजरता है। यह तथ्य कि दक्षिण एशिया के स्टेपी चरवाहों के पूर्वज कांस्य युग के पूर्वी यूरोप (लेकिन पश्चिमी यूरोप नहीं) के पूर्वजों के समान ही थे, इस सिद्धांत को अतिरिक्त साक्ष्य प्रदान करता है।
  • यह अध्ययन बल्टो-स्लाविक और इंडो-ईरानी भाषाओं की साझा विशिष्टताओं की व्याख्या और अधिक बेहतर तरीके से करता है।
  • नए अध्ययन में कहा गया है कि ईरानी लोग उस समय भारत में पहुँचे थे जब कृषि पद्धति अथवा दुनिया में किसी भी स्थान पर पशुपालन की शुरुआत नहीं हुई थी। दूसरे शब्दों में ये घुमंतू लोग संभवतः शिकारी प्रवृत्ति के रहे होंगे जिसका तात्पर्य यह है कि इन लोगों को कृषि के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

स्रोत: द हिंदू

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