डेली न्यूज़ (26 Jul, 2024)



आर्थिक विकास के लिये AI और नई ऊर्जा का उपयोग

प्रिलिम्स के लिये:

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), नैतिक AI, मशीन लर्निंग, लार्ज लैंग्वेज मॉडल, कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक भागीदारी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता मिशन

मेन्स के लिये:

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), विकसित भारत 2047, AI स्टैक, डेटा कॉलोनाइज़ेशन, डेटा संप्रभुता, डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI), उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI), FAME इंडिया योजना

स्रोत: लाइव मिंट

चर्चा में क्यों?

पिछले दशक में भारत का सकल घरेलू उत्पाद लगभग दोगुना होकर 3.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है, जो विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में इसकी स्थिति को दर्शाता है।

  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और नई ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को प्राथमिकता देना, जिनमें संपूर्ण अर्थव्यवस्था में क्रांति लाने की क्षमता है, विकास तथा प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण है।

भारत की आर्थिक वृद्धि हेतु प्रमुख उभरते क्षेत्र कौन-से हैं?

  • भारत का अपना AI स्टैक बनाना: भारतीय अर्थव्यवस्था में पर्याप्त डिजिटलीकरण के बावजूद कंप्यूटिंग की पहुँच कम बनी हुई है। सूचना प्रौद्योगिकी (IT) सेवाओं में भारी सफलता के बावजूद वे 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के वैश्विक प्रौद्योगिकी उद्योग का केवल 1% हिस्सा हैं।
    • चीन जैसे वैश्विक प्रतिस्पर्धियों ने अनुसंधान, बुनियादी ढाँचे और प्रतिभा में सैकड़ों अरबों डॉलर लगाते हुए अपने AI में निवेश को तेज़ी से बढ़ाया है।
    • भारत की AI रणनीति को डेटा, कंप्यूटिंग और एल्गोरिदम में अपनी बुनियादी क्षमताओं का उपयोग करना चाहिये।
  • डेटा कॉलोनाइज़ेशन: यह विदेशी संस्थाओं द्वारा डेटा संसाधनों के नियंत्रण और उपयोग को संदर्भित करता है जो डेटा संप्रभुता तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करता है। भारत विश्व का 20% डेटा उत्पन्न करता है, फिर भी 80% डेटा को विदेशों में संग्रहीत किया जाता है, AI में संसाधित किया जाता है और उसे अधिक डॉलर में वापस आयात किया जाता है।
  • कंप्यूट इंफ्रास्ट्रक्चर: कंप्यूट इंफ्रास्ट्रक्चर के संदर्भ में भारत में वर्तमान में केवल 1GW डेटा सेंटर क्षमता है, जबकि वैश्विक क्षमता 50GW है।
    • अनुमानों से पता चलता है कि वर्ष 2030 तक अमेरिका 70GW तक पहुँच जाएगा, यदि चीन और भारत अपने वर्तमान पथ पर चलते रहे तो वे क्रमशः 30GW एवं 5GW तक पहुँच जाएँगे।
    • AI नेतृत्व हासिल करने के लिये भारत को AI को तेज़ी से अपनाने, डेटा स्थानीयकरण मानदंडों, वैश्विक कंप्यूटिंग कंपनियों के लिये प्रोत्साहन और डेटा केंद्रों हेतु उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI) की आवश्यकता है। वर्ष 2030 तक 50GW की तैनाती के लिये  200 बिलियन अमेरिकी डॉलर की पूंजी की आवश्यकता होगी जो एक महत्त्वाकांक्षी लेकिन प्राप्त करने योग्य लक्ष्य है।
    • भारत, सिलिकॉन विकास और डिज़ाइन प्रतिभा हेतु विश्व का सबसे बड़ा केंद्र है, फिर भी इसमें भारतीय-डिज़ाइन किये गए चिप्स की कमी है। इसे उद्योग-नेतृत्व वाली चिप डिज़ाइन परियोजनाओं और अनुसंधान से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं के माध्यम से सरकारी प्रोत्साहन की आवश्यकता है।
  • चूँकि AI अनुसंधान अधिक प्रतिबंधित और स्वामित्वपूर्ण होता जा रहा है, इसलिये भारत के पास AI अनुसंधान और विकास (R&D) में खुले नवाचार में वैश्विक अभिकर्त्ता बनने का एक अनूठा अवसर है।
    • भारत विश्व स्तर की प्रतिभाओं और वैज्ञानिकों को देश में कार्य करने के लिये आकर्षित करके, औद्योगिक पैमाने पर अनुसंधान संसाधन उपलब्ध कराकर और AI अनुसंधान एवं विकास हेतु  सरकारी प्रोत्साहन प्रदान करके इस लक्ष्य को हासिल कर सकता है।
    • AI के लिये विश्व स्तर पर अग्रणी खुला नवाचार मंच बनाकर भारत स्वयं को AI उन्नति के क्षेत्र में अग्रणी स्थान पर रख सकता है, साथ ही यह सुनिश्चित कर सकता है कि इसके मूल्य और दृष्टिकोण इस परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकी के भविष्य को आकार देंगे।
  • नई ऊर्जा आपूर्ति शृंखलाएँ: नई ऊर्जा प्रतिमान जीवाश्म ईंधन के खनन और शोधन से उन्नत सामग्री विज्ञान की ओर स्थानांतरित हो रही है, विशेष रूप से लिथियम जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये। यह परिवर्तन वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य को नया आकार दे रहा है और भारत को इस क्रांति में सबसे आगे रहना चाहिये।

नई ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र के तीन स्तंभ क्या हैं?

  • नई ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र तीन स्तंभों पर टिका है:
    • नवीकरणीय ऊर्जा (RE) उत्पादन: भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वर्ष 2014 में 72GW से बढ़कर वर्ष 2023 में 175GW से भी अधिक हो गई है, जबकि सौर ऊर्जा क्षमता 3.8GW से बढ़कर 88GW से अधिक हुई है।
      • हालाँकि, भारत अभी भी वैश्विक अग्रणी राष्ट्रों से पीछे है। वर्ष 2023 में, चीन ने 215 GW सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित की, जबकि भारत ने केवल 8 GW स्थापित किया। वर्ष 2030 तक अपने 500 GW लक्ष्य को पूरा करने के लिये भारत को नवीकरणीय ऊर्जा परिनियोजन पर केंद्रित होने की आवश्यकता है।
    • बैटरी स्टोरेज: नवीकरणीय ऊर्जा को वास्तव में प्रभावी बनाने के लिये भारत को इसे एक सुदृढ़ बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के साथ जोड़ना होगा। वर्तमान में, इसकी बैटरी स्टोरेज उत्पादन क्षमता केवल 2GWh है, जबकि चीन की 1,700GWh है। 
      • नवीकरणीय ऊर्जा ग्रिड को शक्ति प्रदान करने और 100% EV अपनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये भारत को 1,000GWh क्षमता का लक्ष्य रखना होगा। बैटरी भंडारण में यह महत्त्वपूर्ण वृद्धि न केवल इसके नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों का समर्थन करेगी, बल्कि लागत में कमी में भी सहायक सिद्ध होगी जिससे देश भर में ऊर्जा की पहुँच में सुधार होगी।
    • EV क्षेत्र: EV क्षेत्र में, भारत की वर्तमान स्थिति प्रति 1,000 लोगों पर 200 वाहनों से कम है, वहीं चीन के 30 मिलियन की तुलना में वार्षिक रूप से  2 मिलियन EV बेचे जाते हैं।
      • वर्ष 2030 तक, भारत को संभावित रूप से 50 मिलियन EV का उत्पादन करते हुए विश्व का सबसे बड़ा EV बाज़ार बनने का लक्ष्य रखना चाहिये।
      • इस बदलाव से एक स्वच्छ पर्यावरण सुनिश्चित होगा, उपभोक्ताओं के लिये परिवहन लागत कम होगा और अर्थव्यवस्था के समग्र रसद खर्च भी कम होंगे।
      • वर्तमान में, नई ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र का 90% हिस्सा— जिसमें सौर उत्पादन, लिथियम सेल निर्माण, मिडस्ट्रीम प्रसंस्करण और EV उत्पादन शामिल है— चीन में केंद्रित है।
      • अपनी स्वयं की प्रौद्योगिकियों और आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण करके, भारत अपनी अर्थव्यवस्था को अधिक ऊर्जा-कुशल बना सकता है तथा भविष्य के लिये तैयार लाखों नौकरियों का सृजन कर सकता है।
      • यह परिवर्तन इसकी ऊर्जा स्वतंत्रता को सुरक्षित करेगा और इसे जलवायु परिवर्तन के नियंत्रण हेतु वैश्विक प्रयास में एक प्रमुख देश के रूप में स्थापित करेगा। वैश्विक नेतृत्व के लिये भारत का मार्ग भविष्य की इन प्रौद्योगिकियों में महारत प्राप्त करने में निहित है।

उभरते क्षेत्रों से संबंधित भारत की पहल

इन उभरते क्षेत्रों में चुनौतियाँ और इसके संभावित समाधान क्या हैं?

चुनौतियाँ

आगे की राह

बुनियादी ढाँचे की कमी

  • कंप्यूटिंग बुनियादी ढाँचे, विशेष रूप से डेटा केंद्रों को उन्नत करने के लिये महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता है। AI हार्डवेयर के लिये स्वदेशी चिप तकनीक का विकास महत्त्वपूर्ण है।

प्रतिभा अधिग्रहण और प्रतिधारणा

  • ऐसा माहौल बनाना जो घरेलू स्तर पर AI टैलेंट को पोषित करे और विदेशों से उनकी वापसी को प्रोत्साहित करे। कुशल पेशेवरों के लिये वैश्विक तकनीकी दिग्गजों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना।

डेटा गोपनीयता और सुरक्षा

  • सुदृढ़ डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क की स्थापना करना और उत्पन्न डेटा की विशाल मात्रा का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिये नागरिकों में विश्वास का निर्माण करना।

वित्तीय बाधाएँ

  • AI स्टैक बनाने और नई ऊर्जा अर्थव्यवस्था में संक्रमण के उद्देश्य से बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिये सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के संसाधनों को जुटाना

आपूर्ति शृंखला की कमज़ोरियाँ

  • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता कम करने और आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिये सेमीकंडक्टर और बैटरी सामग्री जैसे महत्त्वपूर्ण घटकों के लिये एक लचीली घरेलू आपूर्ति शृंखला का निर्माण करना।

नीति और विनियामक वातावरण

  • AI और नए ऊर्जा क्षेत्रों के लिये एक अनुकूल नीति तथा विनियामक वातावरण बनाना जो नवाचार को सुरक्षा, सुरक्षा एवं नैतिक विचारों के साथ संतुलित करता है।

तकनीकी जटिलता

  • तेज़ी से हो रही तकनीकी प्रगति के साथ अपडेट रहने और AI एवं नए ऊर्जा क्षेत्रों में स्वदेशी क्षमताओं को विकसित करने हेतु अनुसंधान व  विकास में निरंतर निवेश।

निष्कर्ष

चूँकि भारत वर्ष 1947 में प्राप्त अपनी राजनीतिक स्वतंत्रता का उत्सव मना रहा है, इसलिये वर्ष 2047 का लक्ष्य तकनीकी स्वतंत्रता प्राप्त करना होना चाहिये। भारत को तकनीकी उन्नति के लिये एक अनूठी कार्यपुस्तिका विकसित करनी चाहिये, अपनी विशिष्ट चुनौतियों का समाधान करना चाहिये और अपनी शक्तियों का लाभ उठाना चाहिये, न केवल आर्थिक विकास हेतु बल्कि सामाजिक परिवर्तन के लिये भी प्रौद्योगिकी का उपयोग करना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: ‘भारत कई प्रमुख क्षेत्रों में अपनी तकनीकी और अवसंरचनात्मक क्षमताओं को बढ़ाने के लिये सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है।’ टिप्पणी कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1. विकास की वर्तमान स्थिति में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020)

  1. औद्योगिक इकाइयों में विद्युत की खपत कम करना  
  2. सार्थक लघु कहानियों और गीतों की रचना  
  3. रोगों का निदान  
  4. टेक्स्ट-से-स्पीच (Text-to-Speech) में परिवर्तन  
  5. विद्युत ऊर्जा का बेतार संचरण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 3 और 5
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. भारत के प्रमुख शहरों में आईटी उद्योगों के विकास से उत्पन्न होने वाले मुख्य सामाजिक-आर्थिक प्रभाव क्या हैं? (2022)

प्रश्न. "चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के प्रादुर्भाव ने ई-गवर्नेन्स को सरकार का अविभाज्य अंग बनाने में पहल की है"। विवेचन कीजिये। (2020)


अमरावती एक बौद्ध स्थल

प्रिलिम्स के लिये:

राजा वेसारेड्डी नायडू, अमरावती स्तूप, मगध, सम्राट अशोक, बौद्ध परिषद, नागार्जुनकोंडा, शैव धर्म, महापाषाणकालीन समाधि, महायान बौद्ध धर्म, आचार्य नागार्जुन, अमरावती कला शैली 

मेन्स के लिये:

अमरावती कला शैली, भारतीय वास्तुकला

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वित्त मंत्री ने आंध्र प्रदेश को राजधानी अमरावती के निर्माण तथा राज्य में अन्य विकास गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये 15,000 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता की घोषणा की।

  • इससे आंध्र प्रदेश में अमरावती नामक एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्त्व वाले स्थल पर पुनः ध्यान केंद्रित हो गया है, जो अभी तक अपेक्षाकृत अज्ञात है।

अमरावती और आंध्र बौद्ध धर्म के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • ऐतिहासिक विकास:
    • 1700 के दशक के अंत में राजा वेसरेड्डी नायडू ने अनजाने में आंध्र के धन्यकटकम गाँव में प्राचीन चूना पत्थर के खंडहरों की खोज की, जिसका उपयोग उन्होंने और स्थानीय लोगों ने निर्माण के लिये किया तथा इसके परिणामस्वरूप गाँव का नाम बदलकर अमरावती रख दिया गया।
    • खंडहरों का निरंतर विनाश वर्ष 1816 तक जारी रहा, जब कर्नल कोलिन मैकेंज़ी के गहन सर्वेक्षण से और अधिक क्षति होने के बावजूद भव्य अमरावती स्तूप की पुनः खोज हुई।
    • वर्ष 2015 में, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने ऐतिहासिक बौद्ध स्थल से प्रेरित होकर नई राजधानी अमरावती की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य इसे सिंगापुर के समान एक आधुनिक शहर के रूप में विकसित करना था।
  • अमरावती और आंध्र बौद्ध धर्म:
    • बौद्ध धर्म जो पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में प्राचीन मगध राज्य (वर्तमान बिहार) में विकसित हुआ, मुख्यतः व्यापारिक संबंधों के माध्यम से आंध्र प्रदेश तक फैल गया।
      • सिद्धार्थ गौतम जिन्हें बुद्ध के नाम से भी जाना जाता है, ने ज्ञान प्राप्ति के बाद बौद्ध धर्म की स्थापना की।
    • आंध्र प्रदेश में बौद्ध धर्म का पहला महत्त्वपूर्ण प्रमाण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का है, जब सम्राट अशोक ने इस क्षेत्र में एक शिलालेख स्थापित किया, जिससे इसके प्रसार को काफी बढ़ावा मिला।
      • 483 ईसा पूर्व में राजगीर बिहार में आयोजित प्रथम बौद्ध समिति में आंध्र के भिक्षु उपस्थित थे।
    • इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म लगभग छह शताब्दियों तक फलता-फूलता रहा, जिसका समयकाल  तीसरी शताब्दी ई.पू. तक रहा, अमरावती, नागार्जुनकोंडा, जग्गयापेटा, सालिहुंडम और शंकरम जैसे अलग-अलग स्थलों पर 14वीं शताब्दी ई.पू. तक धर्म का पालन होता रहा। 
    • इतिहासकारों ने उल्लेख किया है कि आंध्र में बौद्ध धर्म की उपस्थिति इसकी पहली शहरीकरण प्रक्रिया के साथ हुई, जिसमें समुद्री व्यापार ने महत्त्वपूर्ण रूप से सहायता की, जिसने धर्म के प्रसार को सुगम बनाया।
  • उत्तरी बौद्ध धर्म और आंध्र बौद्ध धर्म की प्रकृति के बीच अंतर:
    • व्यापारी संरक्षण: आंध्र में, व्यापारियों, शिल्पकारों और घुमक्कड़ भिक्षुओं ने बौद्ध धर्म के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो उत्तर भारत में देखे जाने वाले शाही संरक्षण (राजा बिम्बिसार या अजातशत्रु) के विपरीत था।
    • राजनीतिक शासकों पर प्रभाव: व्यापारियों की सफलता और बौद्ध धर्म के साथ उनके जुड़ाव ने आंध्र के राजनीतिक शासकों को प्रभावित किया, जिन्होंने बौद्ध संघ का समर्थन करते हुए शिलालेख जारी किये जिनसे बौद्ध धर्म के उर्ध्वगामी प्रसार का संकेत मिलते हैं।
    • स्थानीय प्रथाओं का एकीकरण: आंध्र में बौद्ध धर्म ने स्थानीय धार्मिक प्रथाओं, जैसे कि महापाषाण समाधि, तथा देवी एवं नाग (सर्प) पूजा को अपने सिद्धांतों में एकीकृत किया, जो क्षेत्रीय परंपराओं के लिये बौद्ध धर्म के एक अद्वितीय अनुकूलन को दर्शाता है।
  • बौद्ध धर्म में अमरावती का महत्त्व:
    • अमरावती महायान बौद्ध धर्म के जन्मस्थान के रूप में प्रसिद्ध है, जो बौद्ध धर्म की प्रमुख शाखाओं में से एक है और बोधिसत्व के मार्ग पर ज़ोर देती है।
    • प्रमुख बौद्ध दार्शनिक आचार्य नागार्जुन ने अमरावती में शून्यता और मध्य मार्ग की अवधारणा पर ध्यान केंद्रित करते हुए मध्यमिका दर्शन विकसित किया।
    • अमरावती से, महायान बौद्ध धर्म का प्रसार दक्षिण एशिया, चीन, जापान, कोरिया और दक्षिण पूर्व एशिया तक हो गया।
  • आंध्र प्रदेश में बौद्ध धर्म के पतन के लिये अग्रणी कारक:
    • शैव मत का उदय: आंध्र प्रदेश में बौद्ध धर्म के पतन में योगदान देने वाले प्राथमिक कारकों में से एक शैव मत का उदय था।
      • सातवीं शताब्दी ई.पू. तक, चीनी यात्रियों ने बौद्ध स्तूपों के पतन और शिव मंदिरों को समृद्ध होते देखा, जिन्हें कुलीन परिवारों एवं राजघरानों से संरक्षण प्राप्त था।
      • शैव मत के बढ़ते प्रभाव ने एक अधिक संरचित और सामाजिक रूप से एकीकृत धार्मिक ढाँचा प्रस्तुत किया, जिसने स्थानीय जनता और शासकों को बौद्ध संस्थाओं से समर्थन वापस लेने के लिये प्रेरित किया।।
    • शहरीकरण में गिरावट: तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान, इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण शहरीकरण और व्यापार का उदय हुआ। चूँकि बौद्ध धर्म ने जातिविहीन समाज को अधिक प्रेरित किया जिससे बौद्ध धर्म के प्रसार में सहायता मिली। 
      • हालाँकि, छह शताब्दियों बाद, आर्थिक गिरावट के कारण बौद्ध संस्थाओं के संरक्षण में गिरावट आई।
      • चौथी शताब्दी ई.पू. तक, बौद्ध संस्थाओं को बहुत अधिक संरक्षण नहीं मिला।
    • इस्लाम का आगमन: इस्लाम के आगमन के साथ, आम तौर पर इस्लामी संस्थापन का समर्थन करने वाले इस्लामी शासकों के कारण बौद्ध प्रतिष्ठानों का शाही संरक्षण छीन गया।

अमरावती कला शाखा की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • परिचय:
    • मौर्योत्तर काल में, आंध्र प्रदेश के अमरावती के प्राचीन बौद्ध स्थल से अमरावती कला शैली मथुरा और गांधार शैलियों के साथ-साथ प्राचीन भारतीय कला की तीन सबसे महत्त्वपूर्ण शैलियों में से एक के रूप में उभरी।
  • ऐतिहासिक संदर्भ और प्रभाव:  
    • अमरावती स्तूप: 
      • अमरावती स्तूप, एक भव्य बौद्ध स्मारक, अमरावती मूर्तिकला शैली का केंद्रबिंदु था। यह स्थल कलात्मक और स्थापत्य गतिविधि का केंद्र बन गया, जिसने भारत में बौद्ध कला के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 
      • 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में, प्राचीन स्मारकों के संरक्षण के प्रति सरकार की उदासीनता के कारण स्थानीय लोगों व ब्रिटिश अधिकारियों ने निर्माण के लिये स्तूप सामग्री का प्रयोग किया, जिससे और अधिक गिरावट आई।
      • सन् 1845 में वाल्टर इलियट जैसे अधिकारियों द्वारा उत्खनन और कलकत्ता, लंदन एवं मद्रास में मूर्तियों के आयात ने भी इस स्थल के पतन में योगदान दिया। 

  • अमरावती मूर्तिकला शैली की मुख्य विशेषताएँ: 
    • प्रमुख केंद्र: अमरावती और नागार्जुनकोंडा।
    • संरक्षण: इस मूर्तिकला शैली को सातवाहन शासकों का संरक्षण प्राप्त था।
    • अमरावती शैली की मूर्तियों में त्रिभंग मुद्रा, यानी तीन मोड़ वाला शरीर का अत्यधिक प्रयोग किया गया था।
    • अमरावती की मूर्तियाँ अपनी उच्च सौंदर्य गुणवत्ता और जटिल कलात्मकता के लिये प्रसिद्ध हैं, जिन्हें मुख्य रूप से पलनाद संगमरमर, जो एक विशेष प्रकार का चूना पत्थर है तथा बारीक व जटिल नक्काशी के लिये उपयुक्त होता है, से तैयार किया गया है।
    • इस मूर्तिकला में प्रायः बुद्ध के जीवन, जातक कथाओं और विभिन्न बौद्ध अनुष्ठानों एवं प्रथाओं के दृश्य दर्शाये गए हैं।
    • अमरावती में बुद्ध का एक विशेष चित्रण, जिसमें उनके बाएँ कंधे पर वस्त्र और दूसरा हाथ अभय (निर्भयता की मुद्रा) में था, प्रतिष्ठित हो गया एवं दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य भागों में भी इसका अनुकरण किया गया।
    • मथुरा और गांधार शैलियों के विपरीत, जिनमें ग्रीको-रोमन प्रभाव दिखाई देते हैं, अमरावती शैली ने बहुत कम बाहरी प्रभाव के साथ एक अनूठी शैली विकसित की, जिसमें स्वदेशी कलात्मक परंपराओं पर ज़ोर दिया गया।
  • अमरावती कला का वैश्विक प्रसार:
    • आज अमरावती स्तूप की मूर्तियाँ विश्व भर में फैली हुई हैं तथा ब्रिटिश संग्रहालय, शिकागो के आर्ट इंस्टीट्यूट, पेरिस के म्यूसी गुइमेट तथा न्यूयॉर्क के मेट्रोपोलिटन म्यूजियम ऑफ आर्ट में उनके महत्त्वपूर्ण संग्रह मौजूद हैं।
    • चेन्नई स्थित सरकारी संग्रहालय और नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय जैसे भारतीय संग्रहालयों में भी अमरावती कला की कलाकृतियाँ मौजूद हैं।
    • आस्ट्रेलिया एकमात्र ऐसा देश है जिसने चोरी की हुई अमरावती शैली की मूर्ति लौटा दी है।
  • अमरावती, मथुरा और गांधार कला शैलियों के बीच अंतर:

गांधार

मथुरा

अमरावती

1. हेलेनिस्टिक और ग्रीक कला का उच्च प्रभाव.

1. प्रकृति में स्वदेशी

1. प्रकृति में स्वदेशी

2. ग्रे-बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है। (हमें चूने के प्लास्टर के साथ प्लास्टर से बनी छवियाँ भी मिलती हैं)

2. चित्तीदार लाल बलुआ पत्थर

2. सफेद संगमरमर

3. मुख्यतः बौद्ध प्रतिमाएँ पाई जाती हैं

3. बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिंदू धर्म की छवियाँ पाई जाती हैं

3. मुख्यतः बौद्ध धर्म

4. संरक्षक-कुषाण

4. कुषाण

4. शातवाहन 

5. उत्तर-पश्चिम भारत में पाया जाता है

5. उत्तर भारत, मुख्यतः मथुरा का क्षेत्र

5. कृष्णा-गोदावरी डेल्टा के पास दक्कन क्षेत्र

6. आध्यात्मिक बुद्ध की छवियाँ, लहराते बालों के साथ बहुत सुरुचिपूर्ण

6. प्रसन्नचित्त बुद्ध और आध्यात्मिक दृष्टि नहीं

6. मुख्य रूप से जातक कथाओं का चित्रण

7. दाढ़ी और मूँछ है

7. दाढ़ी-मूँछ नहीं

8. दुबला - पतला शरीर

8. मज़बूत मांसपेशीय विशेषता

9. बैठे और खड़े दोनों चित्र पाए जाते हैं

9. उनमें से अधिकतर बैठे हुए हैं

10. आँखें आधी बंद और कान बड़े हैं।

10. आँखें खुली हुई हैं तथा कान छोटे हैं

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. अमरावती कला शैली की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिये और प्राचीन भारतीय कला के संदर्भ में इसके महत्त्व का विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है? (2021)

(a) अजंता गुफाएँ, वाघोरा नदी की घाटी में स्थित हैं।
(b) साँची स्तूप, चंबल नदी की घाटी में स्थित है।
(c) पांडु-लेणा गुफा देव मंदिर, नर्मदा नदी की घाटी में स्थित हैं।
(d) अमरावती स्तूप, गोदावरी नदी की घाटी में स्थित है।

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित राज्यों में से किनका संबंध बुद्ध के जीवन से था? (2015)

  1. अवंती 
  2. गांधार
  3. कोशल 
  4. मगध

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) 1, 3 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. गांधार कला में मध्य एशियाई एवं यूनानी-बैक्ट्रियाई तत्त्वों को उजागर कीजिये। (2019)

प्रश्न. गांधार मूर्तिकला रोमन की उतनी ही ऋणी थी जितनी कि यूनानियों की थी। स्पष्ट कीजिये। (2014)


कारगिल विजय दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

कारगिल विजय दिवस, कारगिल युद्ध, परमाणु संपन्न राष्ट्र, सियाचिन ग्लेशियर, लाहौर घोषणा, कश्मीर संघर्ष, नियंत्रण रेखा (LOC), ऑपरेशन विजय, ऑपरेशन सफेद सागर, ऑपरेशन तलवार, कारगिल समीक्षा समिति (KRC), कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत

मेन्स के लिये:

भारत के पड़ोस में स्वतंत्रता के बाद के घटनाक्रमों का महत्त्व और उनके प्रभाव।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  

चर्चा में क्यों?

कारगिल युद्ध (वर्ष 1999) में देश के लिये सर्वोच्च बलिदान देने वाले भारतीय सैनिकों के शौर्य, पराक्रम व बहादुरी के सम्मान में श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है।

  • यह स्मृति दिवस भारत और पाकिस्तान के बीच मई 1999 में शुरू हुए कारगिल युद्ध के समापन का प्रतीक है। 

कारगिल विजय दिवस क्या है?

  • परिचय: कारगिल विजय दिवस या कारगिल विक्ट्री डे, भारत में प्रतिवर्ष 26 जुलाई को मनाया जाने वाला एक महत्त्वपूर्ण दिन है।
    • यह दिन वर्ष 1999 में पाकिस्तान के साथ संघर्ष में भारत की विजय/जीत का स्मरण कराता है और युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों की बहादुरी एवं बलिदान का सम्मान करता है। 
    • वर्ष 1999 का कारगिल युद्ध परमाणु संपन्न दक्षिण एशिया में पहला सैन्य संघर्ष/युद्ध था जो यकीनन दो परमाणु संपन्न देशों के बीच पहला वास्तविक युद्ध था।
  • पृष्ठभूमि:
    • भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षों का इतिहास रहा है, जिसमें वर्ष 1971 का एक महत्त्वपूर्ण संघर्ष भी शामिल है, जिसके कारण बांग्लादेश का गठन हुआ। 
    • वर्ष 1971 के बाद, दोनों देशों ने विशेष रूप से निकटवर्ती पर्वत शृंखलाओं पर सैन्य चौकियों के माध्यम से सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण की होड़ में निरंतर तनाव का सामना किया।
    • वर्ष 1998 में, दोनों देशों ने परमाणु परीक्षण किये जिससे तनाव बढ़ गया। फरवरी 1999 में लाहौर घोषणा का उद्देश्य कश्मीर संघर्ष को शांतिपूर्ण और द्विपक्षीय रूप से हल करना था।
    • वर्ष 1998-1999 की सर्दियों के दौरान पाकिस्तानी सशस्त्र बलों ने कारगिल, लद्दाख के द्रासबटालिक सेक्टर में NH 1A पर स्थित किलेबंद ठिकानों पर कब्ज़ा करने के लिये नियंत्रण रेखा (LOC) के पार गुप्त रूप से सैनिकों को प्रशिक्षित और तैनात किया।
    • भारतीय सैनिकों ने पहले तो इसे घुसपैठियों को आतंकवादी या 'जिहादी' समझा, लेकिन जल्द ही स्पष्ट हो गया कि यह हमला एक सुनियोजित सैन्य अभियान था।
    • यह युद्ध वर्ष 1999 की गर्मियों में कारगिल सेक्टर में मश्कोह घाटी से लेकर तुरतुक तक फैली 170 किलोमीटर लंबी पर्वतीय सीमा पर लड़ा गया था।
    • इसके प्रत्युत्तर में, भारत ने ऑपरेशन विजय की शुरुआत की, जिसमें घुसपैठ का मुकाबला करने के लिये 200,000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया गया।

  • कारगिल युद्ध दिवस का महत्त्व:
    • वर्ष 1999 में युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए भारतीय सैनिकों की स्मृति में उनका सम्मान करने के लिये 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
    • वर्ष 2000 में द्रास में कारगिल युद्ध स्मारक की स्थापना भारतीय सेना द्वारा वर्ष 1999 में ऑपरेशन विजय की सफलता की याद में बनाया गया था।
      • बाद में वर्ष 2014 में इसका जीर्णोद्धार किया गया। जम्मू और कश्मीर के कारगिल ज़िले के द्रास शहर में स्थित होने के कारण इसे "द्रास युद्ध स्मारक" के रूप में भी जाना जाता है।
    • राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का उद्घाटन वर्ष 2019 में किया गया। यह उन सैनिकों को समर्पित है जिन्होंने वर्ष 1962 में चीन-भारत युद्ध, वर्ष 1947, वर्ष 1965 और वर्ष 1971 में भारत-पाक युद्ध, श्रीलंका में वर्ष 1987-90 में भारतीय शांति सेना के ऑपरेशन और वर्ष 1999 में कारगिल संघर्ष सहित विभिन्न संघर्षों व मिशनों में अपने प्राणों की आहुति दी।
  • कारगिल युद्ध का प्रभाव:
    • नियंत्रण रेखा (LoC) की वैश्विक मान्यता: अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने नियंत्रण रेखा को भारत तथा पाकिस्तान के बीच वास्तविक सीमा के रूप में मान्यता दी है, जिससे जम्मू और कश्मीर की क्षेत्रीय अखंडता पर भारत के रुख को बल मिला है।
    • मज़बूत रणनीतिक साझेदारी: कारगिल ने भारत-अमेरिका संबंधों में भी महत्त्वपूर्ण मोड़ का प्रतिनिधित्व किया। भारत को अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में एक ज़िम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता दी गई, जिससे रणनीतिक साझेदारी के अगले चरण का मार्ग प्रशस्त हुआ, जिसकी परिणति भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के रूप में हुई।
    • कूटनीतिक लाभ: युद्ध ने पाकिस्तान पर काफी कूटनीतिक दबाव डाला, जिसकी परिणति 4 जुलाई 1999 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की संयुक्त राज्य अमेरिका की उच्चस्तरीय यात्रा के रूप में हुई, जिसके दौरान उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। पाकिस्तान की कार्रवाइयों की इस अंतर्राष्ट्रीय निंदा ने उसे कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने में सहायता की।
    • परमाणु कूटनीति पर प्रकाश डालना: इस संघर्ष ने भारत और पाकिस्तान के बीच अस्थिर संबंधों की ओर वैश्विक ध्यान आकर्षित किया, विशेषकर परमाणु जोखिमों के संबंध में। युद्ध ने परमाणु-सशस्त्र क्षेत्र में संघर्ष के बढ़ने की संभावना को रेखांकित किया।
    • वैश्विक धारणा पर प्रभाव: इस युद्ध ने भारत की सैन्य क्षमताओं और क्षेत्रीय संघर्षों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने तथा उनका जवाब देने की उसकी क्षमता को उजागर किया, जिससे मज़बूत रक्षा क्षमताओं के साथ एक उभरती हुई शक्ति के रूप में उसकी वैश्विक छवि मज़बूत हुई।

कारगिल युद्ध से जुड़े ऑपरेशन

  • ऑपरेशन विजय: ऑपरेशन विजय कारगिल क्षेत्र में पाकिस्तानी घुसपैठ के लिये भारत की सैन्य प्रतिक्रिया का कोड नाम था। 
    • इस ऑपरेशन का उद्देश्य नियंत्रण रेखा (LOC) के भारतीय हिस्से से घुसपैठियों को हटाना और व्यवस्था तैनात करना था।
  • ऑपरेशन सफेद सागर: भारतीय वायुसेना ने ज़मीनी अभियानों को समर्थन देने के लिये "ऑपरेशन सफेद सागर" चलाया। उच्च तुंगता वाले अभियानों में MiG-21s, MiG-23s, MiG-27s, मिराज 2000 और जगुआर जैसे विमानों का इस्तेमाल किया गया।
  • ऑपरेशन तलवार: भारतीय नौसेना के "ऑपरेशन तलवार" ने समुद्री सुरक्षा और प्रतिरोध सुनिश्चित किया। नौसेना की तत्परता ने पाकिस्तान को आगामी आक्रामकता के संभावित प्रतिक्रियाओं के बारे में एक कड़ा संदेश दिया।

कारगिल युद्ध के बाद क्या सुधार किये गए?

  • सुरक्षा क्षेत्र में सुधार: कारगिल युद्ध ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा ढाँचे की समीक्षा को प्रेरित किया, जिससे पारदर्शिता बढ़ी और के. सुब्रह्मण्यम के नेतृत्व में कारगिल समीक्षा समिति (KRC) की स्थापना हुई। KRC रिपोर्ट ने खुफिया, सीमा और रक्षा प्रबंधन में कमियों को उजागर किया, जिससे सुरक्षा क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सुधार तथा संस्थागत परिवर्तन हुए।
  • चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) का गठन: इसका गठन सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच "संयुक्तता" को बढ़ावा देने के लिये किया गया था।
    • CDS सरकार के एकल-बिंदु सैन्य सलाहकार के रूप में कार्य करता है और तीनों सेवाओं के एकीकरण की देखरेख करता है।
  • त्रि-सेवा कमानों की स्थापना: अंडमान और निकोबार कमान को भविष्य के थिएटर कमांडों के लिये एक परीक्षण स्थल के रूप में बनाया गया था, जिसमें सेना, नौसेना और वायु सेना के संसाधनों को एकीकृत किया गया था।
  • खुफिया सुधार: तकनीकी खुफिया क्षमताओं को बढ़ाने के लिये राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO) की स्थापना की गई।
    • रक्षा खुफिया एजेंसी (DIA) का गठन तीनों सेवाओं में खुफिया जानकारी के समन्वय हेतु  किया गया था।
    • तकनीकी समन्वय समूह का गठन उच्च तकनीक खुफिया अधिग्रहण की निगरानी हेतु  किया गया था।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) को सभी खुफिया एजेंसियों का समन्वयक नियुक्त किया गया, जो NTRO की निगरानी करेंगे और बेहतर खुफिया एकीकरण सुनिश्चित करेंगे।
  • सीमा प्रबंधन में सुधार: घुसपैठ को रोकने के लिये सीमा पर बेहतर निगरानी और गश्त। सीमा सुरक्षा हेतु बेहतर तकनीक की तैनाती। उदाहरण के लिये, थर्मल इमेजिंग कैमरे, मोशन सेंसर और रडार सिस्टम की स्थापना।
  • परिचालन सुधार: हथियार प्रणालियों, तोपखाने और संचार उपकरणों का आधुनिकीकरण किया गया। उच्च तुंगता पर होने वाले युद्ध और संयुक्त अभियानों के लिये विशेष प्रशिक्षण पर अधिक ध्यान दिया गया। उदाहरण के लिये, धनुष आर्टिलरी गन, आकाश सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल आदि।
  • बेहतर समन्वय और संचार: बेहतर समन्वय सुनिश्चित करने के लिये सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच संयुक्त अभ्यास तथा संचालन पर ज़ोर दिया गया। विभिन्न एजेंसियों और सैन्य शाखाओं के बीच खुफिया जानकारी के वास्तविक समय के आदान-प्रदान के लिये उन्नत तंत्र स्थापित किए गए।
  • आतंकवाद विरोधी उपाय: इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) प्रमुख आतंकवाद विरोधी एजेंसी बन गई। विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के बीच आतंकवाद विरोधी क्षमताओं और समन्वय को मज़बूत किया गया।
  •  स्वदेशी सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम: अमेरिकी सरकार द्वारा बनाए गए अंतरिक्ष-आधारित नेविगेशन सिस्टम से महत्त्वपूर्ण जानकारी मिल सकती थी, लेकिन अमेरिका ने भारत को इससे वंचित कर दिया। स्वदेशी सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम की आवश्यकता पहले से ही महसूस की जा रही थी, लेकिन कारगिल के अनुभव ने देश को इसकी अनिवार्यता का एहसास कराया। उदाहरण के लिये, भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) का विकास। 
  • सैद्धांतिक परिवर्तन: युद्ध ने भारतीय सैन्य सिद्धांतों के विकास को उत्पन्न कर दिया, जिसमें कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत भी शामिल है। कारगिल ने बहुआयामी छद्म युद्धों को कम करने और भविष्य की सैन्य रणनीतियों को आकार देने के लिये एक समग्र सिद्धांत की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

निष्कर्ष

वर्ष 1999 का कारगिल युद्ध भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण घटना थी, जिसने इसकी सैन्य रणनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया। ऑपरेशन विजय की सफलता ने रणनीतिक क्षेत्रों पर नियंत्रण बहाल किया और भारत की रक्षा क्षमताओं को मजबूत किया। युद्ध ने मज़बूत सुरक्षा उपायों की आवश्यकता को उजागर किया और राष्ट्रीय सुरक्षा बुनियादी ढाँचे में बड़े सुधारों को प्रेरित किया। इसने नियंत्रण रेखा (LoC) को एक प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय  सीमा के रूप में फिर से स्थापित किया और कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत जैसे नए सैन्य सिद्धांतों के विकास को गति दी। संघर्ष की विरासत भारत की रक्षा रणनीतियों और कूटनीतिक संबंधों को आकार देना जारी रखती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध ने दक्षिण एशियाई क्षेत्र की क्षेत्रीय गतिशीलता पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाला। चर्चा कीजिये।

  UPSC यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

प्रश्न. “भारत में सीमा पार से बढ़ते आतंकवादी हमले और पाकिस्तान द्वारा कई सदस्य-राज्यों के आंतरिक मामलों में बढ़ता हस्तक्षेप SAARC (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) के भविष्य के लिये अनुकूल नहीं है।” उपयुक्त उदाहरणों के साथ समझाएँ। (वर्ष 2016)

प्रश्न. आतंकवादी हमलों के खिलाफ सशस्त्र कार्रवाई के संबंध में अक्सर ‘हॉट परस्यूट’ और ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ शब्दों का प्रयोग किया जाता है। ऐसी कार्रवाइयों के रणनीतिक प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (वर्ष 2016)

प्रश्न. आतंकवादी गतिविधियों और आपसी अविश्वास ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को धूमिल कर दिया है। खेल और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसी सॉफ्ट पावर का उपयोग किस हद तक दोनों देशों के बीच सद्भावना उत्पन्न  करने में मदद कर सकता है। उपयुक्त उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये। (2015)


जलवायु परिवर्तन और बच्चों की शिक्षा पर इसका प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO), बाढ़, सूखा, हीटवेव, अल नीनो

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन के शमन हेतु सरकारी नीतियों और हस्तक्षेपों का महत्त्व

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट की एक नई रिपोर्ट ने प्रारंभिक बाल्यावस्था में अनुभव किये जाने वाले जलवायु संबंधी आघातों के दीर्घकालिक प्रभाव पर प्रकाश डाला है।

जलवायु परिवर्तन बच्चों और उनकी शिक्षा पर किस प्रकार प्रभाव डालता है?

  • बच्चों की भेद्यता:
    • रिपोर्ट में कहा गया है कि छोटे बच्चे बाढ़, सूखे और हीटवेव जैसे शारीरिक खतरों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं, जो उनकी शारीरिक क्षमताओं, संज्ञानात्मक क्षमताओं, भावनात्मक कल्याण तथा शैक्षिक अवसरों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
    • अधिकांश निम्न और मध्यम आय वाले देशों में जलवायु संबंधी घटनाओं के कारण प्रतिवर्ष स्कूल बंद कर दिये जाते हैं, जिससे सीखने की क्षमता में कमी तथा पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने की दर बढ़ जाती है।
  • बच्चों की संज्ञानात्मक क्षमताओं पर प्रभाव:
    • इक्वाडोर में गंभीर अल नीनो बाढ़ की घटना के दौरान गर्भ में पल रहे बच्चों की लंबाई कम पाई गई, जिसके बाद संज्ञानात्मक परीक्षणों में भी उनका प्रदर्शन खराब रहा।
    • भारत में, प्रारंभिक जीवन में वर्षा के आघातों ने 5 वर्ष की आयु में शब्दावली और 15 वर्ष की आयु में गणित तथा गैर-संज्ञानात्मक कौशल पर नकारात्मक प्रभाव डाला।
    • सात एशियाई देशों में 140,000 से अधिक बच्चों को प्रभावित करने वाली आपदाओं के विश्लेषण से पता चला कि 13-14 वर्ष की आयु तक लड़कों के स्कूल नामांकन और लड़कियों के गणित प्रदर्शन के बीच नकारात्मक सहसंबंध था।
  • स्कूल बंद होना और बुनियादी ढाँचे को नुकसान:
    • जलवायु-संबंधी तनावों के कारण स्कूल बार-बार बंद होते हैं तथा पिछले 20 वर्षों में विषम मौसम की 75% घटनाओं के कारण स्कूल बंद होने की समस्या उत्पन्न हुई है।
    • बाढ़ और चक्रवात सहित प्राकृतिक आपदाओं के कारण मृत्यु हुई हैं तथा शैक्षिक बुनियादी ढाँचे को काफी नुकसान पहुँचा है।
      • उदाहरण के लिये, वर्ष 2013 में जकार्ता में आई बाढ़ के कारण स्कूलों तक पहुँच बाधित हुई; वर्ष 2019 में चक्रवात ईदाई ने मोज़ाम्बिक में 3,400 कक्षाएँ नष्ट कर दीं; वर्ष 2018 में उष्णकटिबंधीय चक्रवात गीता ने टोंगा में 72% स्कूलों को क्षतिग्रस्त कर दिया।
    • इथियोपिया, भारत और वियतनाम में बाढ़ के कारण युवाओं की शैक्षिक उपलब्धि में कमी आई।
  • हीट और पर्यावरणीय परिवर्तनशीलता का प्रभाव:
    • हीट इफेक्ट: जन्मपूर्व और प्रारंभिक बाल्यावस्था के दौरान औसत से अधिक तापमान के संपर्क में आने से बच्चों की विद्यालय के स्तर की पढ़ाई में कमी आती है।
    • गर्भावस्था और बाल्यावस्था के प्रारंभिक चरण के दौरान औसत से अधिक तापमान का संबंध स्कूल में कम वर्षों की पढ़ाई से है।
      • अध्ययनों से पता चलता है कि हीट के कारण चीन में हाई स्कूल स्नातक और कॉलेज प्रवेश दर में कमी आई है।
      • भारत के महाराष्ट्र में अनावृष्टि के कारण गणित के अंकों में 4.1% की कमी आई और अध्ययन-अंकों में 2.7% की कमी आई।
      • पाकिस्तान में, बाढ़ग्रस्त ज़िलों में बच्चों के स्कूल जाने की संभावना गैर-बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों की तुलना में 4% कम थी।

रिपोर्ट की सिफारिशें क्या हैं?

  • अनुकूलन की आवश्यकता: रिपोर्ट में व्यापक जलवायु अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है, जिसमें बेहतर स्कूल अवसंरचना, पाठ्यक्रम सुधार और सामुदायिक समन्वय शामिल हैं।
  • पाठ्यक्रम एकीकरण: रिपोर्ट में जलवायु विज्ञान के ज्ञान और आघातसहनीयता, अनुकूलन एवं सतत् विकास में कौशल प्रदान करने के लिये स्कूली पाठ्यक्रम में जलवायु परिवर्तन शिक्षा को शामिल करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है।
  • सक्रिय उपाय: शिक्षा पर जलवायु प्रभावों को कम करने के लिये सक्रिय उपायों की सिफारिश की गई है, जिसमें स्कूल के अवसंरचना को मज़बूत करना, मनोवैज्ञानिक एवं शैक्षणिक सहायता के लिये शिक्षकों को प्रशिक्षित करना, जागरूकता एवं अनुकूलन पहलों के माध्यम से सामुदायिक आघातसहनीयता को बढ़ावा देना शामिल है।
  • शिक्षा में निवेश: पर्यावरणीय चुनौतियों के बावजूद शिक्षा की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये जलवायु संबंधी व्यवधानों के प्रति उनकी आघातसहनीयता बढ़ाने हेतु शैक्षिक प्रणालियों में निवेश बढ़ाने का आह्वान किया गया है।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के शमन हेतु क्या उपाय किये गए हैं?

  • वैश्विक स्तर:
    • पेरिस समझौता: राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों और $100 बिलियन वार्षिक जलवायु वित्त सहायता के साथ वैश्विक तापमान को 2°C से नीचे सीमित करने का लक्ष्य रखता है।
    • UNFCCC: COP बैठकों और वैश्विक स्टॉकटेक के माध्यम से वैश्विक जलवायु वार्ता और प्रगति आकलन की सुविधा प्रदान करता है।
    • सतत् विकास लक्ष्य (SDG): जलवायु कार्रवाई को व्यापक विकास लक्ष्यों (लक्ष्य-13) में शामिल करता है।
    • वैश्विक पहल: जलवायु परिवर्तन के शमन हेतु कार्रवाई और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के लिये भागीदारी एवं वित्तपोषण शामिल है।
  • भारत में जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिये उठाए गए कदम
    • LiFE पहल: LiFE का विचार भारत द्वारा वर्ष 2021 में ग्लासगो में 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) के दौरान पेश किया गया था, ताकि पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन शैली को बढ़ावा दिया जा सके जो ‘विचारहीन और अनावश्यक उपभोग’ के बजाय ‘वैचारिक और ध्यानपूर्वक उपयोग’ पर केंद्रित हो।
    • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC): इसमें सौर ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और संधारणीय आवासों पर मिशन शामिल हैं।
    • नवीकरणीय ऊर्जा: लक्ष्य में वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट सौर ऊर्जा और 60 गीगावाट पवन ऊर्जा शामिल है।
    • इलेक्ट्रिक मोबिलिटी: परिवहन उत्सर्जन में कटौती के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना।
    • अनुकूलन और लचीलापन: राज्य-विशिष्ट कार्य योजनाएँ और आपदा प्रबंधन संवर्द्धन।
    • वनीकरण: ग्रीन इंडिया मिशन और बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण पहल।
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: पेरिस समझौते के प्रति प्रतिबद्धता और वैश्विक जलवायु वित्त में भागीदारी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. विकासशील देशों में विद्यालयीय शिक्षा पर जलवायु परिवर्तन के बहुमुखी प्रभावों पर चर्चा कीजिये। परीक्षण कीजिये कि शैक्षिक अभिगम, गुणवत्ता व परिणामों को चरम मौसम की घटनाएँ, बढ़ता तापमान और पर्यावरणीय गिरावट किस प्रकार बाधित करती हैं।

और पढ़ें: जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव   

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. ‘जलवायु परिवर्तन’ एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत कैसे प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन से भारत के हिमालयी और तटीय राज्य कैसे प्रभावित होंगे? (2017)