विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
इसरो का नया NavIC उपग्रह NVS-01
- 30 May 2023
- 10 min read
प्रिलिम्स के लिये:NVS-01, GSLV, NavIC, IRNSS, GPS, IMO, इसरो मेन्स के लिये:ISRO का नया NavIC उपग्रह NVS-01, NavIC का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) द्वारा NVS-01 उपग्रह को GSLV-F12 का उपयोग करके सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था और 19 मिनट की उड़ान के बाद इसे सटीक रूप से जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में स्थापित किया गया।
- GSLV-F12 भारत के भू-तुल्यकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle- GSLV) की 15वीं उड़ान है और स्वदेशी साइरो स्टेज वाली 9वीं उड़ान है। स्वदेशी क्रायोजेनिक चरण के साथ GSLV की यह छठी परिचालन उड़ान है।
NVS-01:
- परिचय:
- यह उपग्रह इसरो के नेविगेशनल सैटेलाइट (NVS) शृंखला के पेलोड की दूसरी पीढ़ी के उपग्रहों में से पहला है।
- इसका वज़न 2,232 किलोग्राम है, जो इसे तारामंडल में सबसे भारी बनाता है।
- NVS-01 नेविगेशन पेलोड के साथ L1, L5 और S बैंड भेजा गया।
- इसका उद्देश्य NavIC की सेवाओं को निरंतरता प्रदान करना है, जो जीपीएस के समान एक भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम है और यह केवल भारतीय उपमहाद्वीप के 1,500 किमी. क्षेत्र तक सटीक और रीयल-टाइम नेविगेशन की सुविधा प्रदान करता है।
- पहली पीढ़ी में भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) में सात उपग्रह हैं जिन्हें परिचालन रूप से NavIC नाम दिया गया है। इनका वज़न बहुत कम लगभग 1,425 किलोग्राम है।
- परमाणु घड़ी:
- इस उपग्रह में रुबिडियम परमाणु घड़ी (Rubidium Atomic Clock) लगाई गई है जो भारत द्वारा विकसित एक महत्त्वपूर्ण तकनीक है।
- नेविगेशन तारामंडल में मौजूद कुछ उपग्रहों की परमाणु घड़ियों (एटॉमिक क्लॉक) ने इनके खराब होने के कारण स्थान का सटीक डेटा प्रदान करने की क्षमता खो दी है। उपग्रह-आधारित पोज़िशनिंग प्रणाली स्थानों को निर्धारित करने हेतु परमाणु घड़ियों द्वारा सटीक समय मापन पर भरोसा करती हैं। जब घड़ियाँ खराब हो जाती हैं, तो उपग्रह सटीक स्थान की जानकारी नहीं दे सकता है।
- इस उपग्रह में रुबिडियम परमाणु घड़ी (Rubidium Atomic Clock) लगाई गई है जो भारत द्वारा विकसित एक महत्त्वपूर्ण तकनीक है।
- वियरएवल डिवाइस में बेहतर L1 सिग्नल का उपयोग:
- यह मौजूदा उपग्रहों द्वारा प्रदान किये जाने वाले L5 और S फ्रीक्वेंसी सिग्नल के अतिरिक्त तृतीय फ्रीक्वेंसी के L1 सिग्नल भी भेजेगा, जिससे अन्य उपग्रह-आधारित नेविगेशन प्रणालियों के साथ अंतर्संचालनीयता और अधिक बढ़ेगी।
- L1 फ्रीक्वेंसी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) में सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली फ्रीक्वेंसी में से एक है। यह पहनने योग्य उपकरणों में सिंगल-फ्रीक्वेंसी चिप्स का उपयोग करने वाले व्यक्तिगत ट्रैकर्स में क्षेत्रीय नेविगेशन सिस्टम के उपयोग को बढ़ाएगी।
- लंबा मिशन काल:
- इसका मिशन काल 12 वर्ष से अधिक का होगा, जबकि मौजूदा उपग्रहों का मिशन काल 10 वर्ष है।
NavIC:
- परिचय:
- NavIC या IRNSS को 7 उपग्रहों के समूह और 24×7 संचालित ग्राउंड स्टेशनों के नेटवर्क के साथ डिज़ाइन किया गया है।
- इसमें कुल आठ उपग्रह हैं लेकिन अभी केवल सात ही सक्रिय हैं।
- भूस्थैतिक कक्षा में तीन उपग्रह तथा भूतुल्यकालिक कक्षा में चार उपग्रह हैं।
- तारामंडल का पहला उपग्रह (IRNSS-1A) 1 जुलाई, 2013 को लॉन्च किया गया था और आठवाँ उपग्रह IRNSS-1I अप्रैल, 2018 में लॉन्च किया गया था।
- तारामंडल के उपग्रह (IRNSS-1G) के सातवें प्रक्षेपण के साथ वर्ष 2016 में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा IRNSS का नाम बदलकर NavIC कर दिया गया।
- इसे वर्ष 2020 में हिंद महासागर क्षेत्र में संचालन के लिये वर्ल्ड-वाइड रेडियो नेविगेशन सिस्टम (WWRNS) के एक भाग के रूप में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) द्वारा मान्यता दी गई थी।
- NavIC या IRNSS को 7 उपग्रहों के समूह और 24×7 संचालित ग्राउंड स्टेशनों के नेटवर्क के साथ डिज़ाइन किया गया है।
- संभावित उपयोग:
- स्थलीय, हवाई और समुद्री नेविगेशन;
- आपदा प्रबंधन;
- वाहन ट्रैकिंग और बेड़ा प्रबंधन (विशेष रूप से खनन और परिवहन क्षेत्र के लिये);
- मोबाइल फोन के साथ एकीकरण;
- सटीक समय (ATM और पावर ग्रिड के लिये);
- मैपिंग और जियोडेटिक डेटा कैप्चर।
क्षेत्रीय नेविगेशन प्रणाली लाभ:
- क्षेत्रीय नेविगेशन प्रणाली:
- NavIC (नाविक), भारत की अपनी क्षेत्रीय नेविगेशन प्रणाली है जिसे इसरो द्वारा विकसित किया गया है। यह संपूर्ण भारतीय भू-भाग को कवर करती है और यह चारों ओर 1,500 किलोमीटर तक फैली हुई है। NavIC का प्राथमिक उद्देश्य इस विशिष्ट क्षेत्र में उपयोगकर्त्ताओं की स्थिति और नेविगेशन आवश्यकताओं को पूरा करना है।
- ग्राउंड स्टेशन:
- इसरो जापान, फ्राँस और रूस जैसे देश ग्राउंड स्टेशन स्थापित करने पर काम कर रहे हैं। ये अतिरिक्त ग्राउंड स्टेशन बेहतर त्रिकोण के माध्यम से नाविक संकेतों की सटीकता और कवरेज को बढ़ाएंगे।
- सिग्नल रिसेप्शन:
- NavIC, सिग्नल 90 डिग्री के कोण पर भारत तक पहुँचते हैं, जिससे भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों, घने जंगलों और पहाड़ी इलाकों में संकेतों की पहुँच आसान हो जाती है। इसके विपरीत GPS सिग्नल एक कोण पर पहुँचते हैं, जो कभी-कभी कुछ स्थानों पर संकेत प्राप्ति के लिये चुनौतियों उत्पन्न करते हैं।
- उपयोगिता:
- NavIC, सिग्नल मुख्य रूप से भारतीय क्षेत्र की सेवा के लिये डिज़ाइन किये गए हैं। इसलिये कवरेज क्षेत्र के भीतर उपयोगकर्त्ता नाविक सिग्नलों तक विश्वसनीय पहुँच की अपेक्षा कर सकते हैं, जो दूरस्थ या दुर्गम क्षेत्रों तक भी पहुँच में सहायता प्रदान करता है
विश्व के अन्य नेविगेशन सिस्टम
- चार ग्लोबल सिस्टम्स:
- अमेरिका का GPS
- रूस का GLONASS
- यूरोपीय संघ का गैलीलियो
- चीन का BeiDou।
- दो क्षेत्रीय सिस्टम:
- भारत का NavIC
- जापान का QZSS
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किस देश का अपना सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम है? (2023) (a) ऑस्ट्रेलिया उत्तर: (d) विश्व में परिचालन नेविगेशन प्रणाली:
प्रश्न. भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (A) मेन्स:प्रश्न. भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) की आवश्यकता क्यों है? यह नेविगेशन में कैसे मदद करती है? (2018) |