भारतीय इतिहास
युद्ध स्मारक 1857 के विद्रोह की कहानी बताता है
- 20 Feb 2023
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प्रिलिम्स के लिये:1857 का विद्रोह, विद्रोह के नेता, कारण। मेन्स के लिये:विद्रोह के कारण और प्रभाव, सामूहिक भागीदारी की सीमा। |
चर्चा में क्यों?
1857 के विद्रोह के दौरान ब्रिटिश पक्ष से लड़ने वालों को सम्मानित करने के लिये वर्ष 1863 में युद्ध स्मारक (नई दिल्ली) बनाया गया था, लेकिन आज़ादी के 25 साल बाद इसे उन भारतीयों की याद में फिर से समर्पित किया गया, जिन्होंने अंग्रेज़ों से लड़ते हुए अपनी जान गँवाई थी।
- स्मारक में अष्टकोणीय टॉवर के सभी किनारों पर धनुषाकार संगमरमर-समर्थित खाँचे के साथ एक सामान्य गॉथिक डिज़ाइन है।
1857 का विद्रोह:
- वर्ष 1857-59 का भारतीय विद्रोह गवर्नर जनरल कैनिंग के शासन के दौरान भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ एक व्यापक लेकिन असफल विद्रोह था।
- यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के सिपाहियों के विद्रोह के रूप में शुरू हुआ, तथा इसने अंततः जनता की भागीदारी भी हासिल की।
- विद्रोह को कई नामों से जाना जाता है: सिपाही विद्रोह (ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा), भारतीय विद्रोह, महान विद्रोह (भारतीय इतिहासकारों द्वारा), 1857 का विद्रोह, भारतीय विद्रोह और स्वतंत्रता का पहला युद्ध (विनायक दामोदर सावरकर द्वारा)।
कारण:
- तात्कालिक कारण:
- चर्बी वाले कारतूस: 1857 का विद्रोह नई एनफील्ड राइफलों के उपयोग से शुरू हुआ था, जिनके कारतूसों को गाय और सुअर की चर्बी के साथ चिकना किया जाता था, जिससे हिंदू और मुस्लिम सिपाहियों ने उनका उपयोग करने से इनकार कर दिया था।
- शिकायतों का दमन: मंगल पांडे द्वारा बैरकपुर में कारतूस का उपयोग करने से इनकार करना और बाद में फाँसी, इसी तरह के इनकार के लिये मेरठ में 85 सैनिकों को कारावास देना, उन घटनाओं में से थे जिन्होंने भारत में 1857 के विद्रोह को जन्म दिया था।
- राजनीतिक कारण:
- व्यपगत का सिद्धांत: विद्रोह के राजनीतिक कारण व्यपगत के सिद्धांत और प्रत्यक्ष विलय के माध्यम से विस्तार की ब्रिटिश नीति थी।
- सतारा, नागपुर, झांसी, जैतपुर, संबलपुर, उदयपुर और अवध के विलय सहित भारतीय शासकों तथा प्रमुखों की संख्या को घटाने एवं विलय ने विस्तार की नीति के खिलाफ असंतोष को बढ़ा दिया। इससे अभिजात वर्ग के हज़ारों लोग, अधिकारी, अनुचर और सैनिक बेरोज़गार हो गए।
- व्यपगत का सिद्धांत: विद्रोह के राजनीतिक कारण व्यपगत के सिद्धांत और प्रत्यक्ष विलय के माध्यम से विस्तार की ब्रिटिश नीति थी।
- सामाजिक और धार्मिक कारण:
- पश्चिमी सभ्यता का प्रसार: भारत में तेज़ी से फैलती पश्चिमी सभ्यता पूरे देश के लिये चिंता का विषय थी।
- 1850 में एक अधिनियम द्वारा वंशानुक्रम के हिंदू कानून को बदल दिया गया, जिससे एक हिंदू को अपनी पैतृक संपत्तियों को विरासत में प्राप्त करने के लिये ईसाई धर्म में परिवर्तित होना पड़ता था, इसे भारतीयों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के प्रयास के रूप में देखा गया।
- यहाँ तक कि रेलवे और टेलीग्राफ की शुरुआत को भी संदेह की दृष्टि से देखा जाता था।
- रूढ़िवाद को चुनौती: सती और कन्या भ्रूण हत्या जैसी प्रथाओं का उन्मूलन, पश्चिमी शिक्षा की शुरुआत और विधवा पुनर्विवाह को वैध बनाने वाले कानून को स्थापित सामाजिक संरचना के लिये खतरा माना गया।
- पश्चिमी सभ्यता का प्रसार: भारत में तेज़ी से फैलती पश्चिमी सभ्यता पूरे देश के लिये चिंता का विषय थी।
- आर्थिक कारण:
- भारी कर: किसान और ज़मींदार दोनों भूमि पर भारी करों और राजस्व संग्रह के कड़े तरीकों से नाराज़ थे जिससे अक्सर पुश्तैनी भूमि का नुकसान होता था।
- सिपाहियों की शिकायतें: बड़ी संख्या में सिपाही कृषक वर्ग से थे और गाँवों में उनके पारिवारिक संबंध थे, इसलिये किसानों की शिकायतों ने भी उन्हें प्रभावित किया।
- स्थानीय उद्योग और हस्तशिल्प का पतन: इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के बाद भारत में ब्रिटिश निर्मित वस्तुओं का आगमन हुआ, जिसने उद्योगों, विशेष रूप से भारत के कपड़ा उद्योग और हस्तशिल्प को समाप्त कर दिया।
- सैन्य कारण:
- असमान पारिश्रमिक: भारत में 87% से अधिक ब्रिटिश सैनिक भारतीय थे, लेकिन उन्हें ब्रिटिश सैनिकों से कमतर माना जाता था और यूरोपीय समकक्षों की तुलना में कम भुगतान किया जाता था।
- सुदूर क्षेत्रों में पोस्टिंग: उन्हें अपने घरों से दूर और समुद्र पार के क्षेत्रों में सेवा करना आवश्यक था। कई लोगों ने समुद्र पार करने को जातिगत नुकसान के रूप में देखा।
विद्रोह के नेता:
विद्रोह का स्थान |
भारतीय नेता |
ब्रिटिश अधिकारी जिन्होंने विद्रोह को दबा दिया |
दिल्ली |
बहादुर शाह द्वितीय |
जॉन निकोलसन |
लखनऊ |
बेगम हजरत महल |
हेनरी लॉरेंस |
कानपुर |
नाना साहेब |
सर कॉलिन कैम्पबेल |
झांसी एवं ग्वालियर |
लक्ष्मी बाई और तात्या टोपे |
जनरल ह्यूरोज़ |
बरेली |
खान बहादुर खान |
सर कॉलिन कैम्पबेल |
इलाहाबाद और बनारस |
मौलवी लियाकत अली |
कर्नल ओनसेल |
बिहार |
कुंवर सिंह |
विलियम टेलर |
अंग्रेज़ों की प्रतिक्रिया:
- 1857 का विद्रोह एक वर्ष से अधिक समय तक चला। इसे 1858 के मध्य तक दमनात्मक कार्रवाइयों के माध्यम से दबा दिया गया था।
- 8 जुलाई, 1858 को मेरठ में विद्रोह के चौदह माह बाद लॉर्ड कैनिंग द्वारा शांति की घोषणा की गई थी।
विद्रोह के विफल होने का कारण:
- सीमित विद्रोह: हालाँकि विद्रोह काफी व्यापक था, किंतु देश का एक बड़ा हिस्सा इससे अप्रभावित रहा।
- दक्षिणी प्रांत और बड़ी रियासतें, हैदराबाद, मैसूर, त्रावणकोर और कश्मीर, साथ ही राजपूताना के छोटे राज्य विद्रोह में शामिल नहीं हुए।
- प्रभावी नेतृत्व की कमी: विद्रोहियों के पास एक प्रभावी नेता का अभाव था। यद्यपि नाना साहेब, तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई के रूप में वीर नेता थे, तथापि वे आंदोलन को प्रभावी समन्वित नेतृत्त्व प्रदान नहीं कर सके।
- सीमित संसाधन: विद्रोहियों के पास पुरुष और धन जैसे संसाधनों की कमी थी। दूसरी ओर, अंग्रेज़ों को भारत में पुरुष, धन और हथियारों की निरंतर आपूर्ति होती रही।
- मध्य वर्ग की कोई भागीदारी नहीं: अंग्रेज़ी शिक्षित मध्यम वर्ग, बंगाल के अमीर व्यापारियों एवं ज़मींदारों ने विद्रोह को दबाने में अंग्रेज़ो की मदद की।
विद्रोह के प्रभाव:
- ब्रिटिश क्राउन का प्रत्यक्ष शासन: भारत सरकार अधिनियम, 1858 द्वारा भारत में कंपनी शासन को समाप्त कर दिया और इसे ब्रिटिश क्राउन के प्रत्यक्ष शासन के तहत लाया गया।
- देश के शासन और प्रशासन को संभालने के लिये भारत में कार्यालय बनाया गया था।
- धार्मिक सहिष्णुता: भारत के रीति-रिवाज़ों और परंपराओं पर उचित ध्यान देने का वादा किया गया था। धार्मिक सुधारों के मामले में ब्रिटिश समर्थन पीछे हट गया।
- प्रशासनिक परिवर्तन: गवर्नर जनरल के कार्यालय को वायसराय द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।
- भारतीय शासकों के अधिकारों को मान्यता दी गई।
- व्यपगत का सिद्धांत समाप्त कर दिया गया।
- कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में पुत्र को गोद लेने का अधिकार स्वीकार किया गया।
- सैन्य पुनर्गठन: भारतीय सैनिकों के अनुपात में ब्रिटिश अधिकारियों में वृद्धि हुई लेकिन शस्त्रागार अंग्रेज़ों के हाथ में रहा।
निष्कर्ष:
1857 का विद्रोह ब्रिटिश भारत में एक उल्लेखनीय घटना थी। अपने इच्छित उद्देश्य को पूरा करने में विफल होने के बावजूद इसने भारतीय राष्ट्रवाद की नींव रखी और समाज के विभिन्न वर्गों को संगठित करने में योगदान किया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. महारानी विक्टोरिया की उद्घोषणा (1858) का उद्देश्य क्या था? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) व्याख्या:
प्रश्न. भारत के इतिहास के संदर्भ में "उलगुलान" अथवा महान उपद्रव निम्नलिखित में से किस घटना का विवरण था? (2020) (a) 1857 का विद्रोह उत्तर: (d) व्याख्या:
प्रश्न. यह स्पष्ट कीजिये कि 1857 का विप्लव किस प्रकार औपनिवेशिक भारत के प्रति ब्रिटिश नीतियों के विकासक्रम में एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक मोड़ है। (मुख्य परीक्षा, 2016) प्रश्न. आयु, लिंग और धर्म के बंधनों से मुक्त होकर भारतीय महिलाएँ भारत के स्वाधीनता संग्राम में अग्रणी बनी रहीं विवेचना कीजिये । (मुख्य परीक्षा, 2013) |