भारतीय विरासत और संस्कृति
बौद्ध धर्म में अभय मुद्रा
- 04 Jul 2024
- 15 min read
प्रिलिम्स के लिये:बौद्ध धर्म की उत्पत्ति, मुद्राएँ, बौद्ध धर्म के सिद्धांत, चंदन मेन्स के लिये:बौद्ध धर्म का महत्त्व, भारतीय साहित्य, प्राचीन भारत में बौद्ध धर्म का प्रसार |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में विपक्ष के नेता/नेता प्रतिपक्ष ने संसद में अपने भाषण के दौरान भगवान शिव की प्रतीकात्मक छवि और ‘अभय मुद्रा’ का उपयोग करते हुए संविधान, भारत की कल्पना पर सरकार के हमलों तथा इन हमलों का विरोध करने वालों के लिये सरकार की आलोचना की।
लोकसभा में विपक्ष का नेता (LoP)
- LoP एक संसद सदस्य (Member of Parliament- MP) होता है जो सबसे बड़ी विपक्षी दल का नेता होता है और साथ ही लोकसभा (LS) की कुल सीटों के कम-से-कम दसवें हिस्से पर विजय प्राप्त की होती है।
- वह लोक लेखा (अध्यक्ष), सार्वजनिक उपक्रम, प्राक्कलन जैसी महत्त्वपूर्ण समितियों और कई संयुक्त संसदीय समितियों का भी सदस्य होता है।
- वह केंद्रीय सतर्कता आयोग, केंद्रीय सूचना आयोग, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation- CBI), राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission- NHRC) और लोकपाल जैसे सांविधिक निकायों के प्रमुखों की नियुक्ति के लिये ज़िम्मेदार विभिन्न चयन समितियों का सदस्य होने का हकदार होता है।
- वह रचनात्मक रूप से सरकार की नीतियों की आलोचना करता है और एक वैकल्पिक सरकार की भूमिका निभाता है।
- दोनों सदनों में विपक्ष के नेता को संसद में विपक्षी नेता वेतन और भत्ता अधिनियम, 1977 के तहत सांविधिक मान्यता प्रदान की गई है तथा वे वे कैबिनेट मंत्री के बराबर वेतन, भत्ते एवं अन्य सुविधाओं के हकदार हैं।
- विपक्ष के नेता के पद का उल्लेख संविधान में नहीं है।
अभय मुद्रा क्या है?
- मुद्रा: मुद्रा का आशय हस्त मुद्राओं से है जिनका प्रयोग भारतीय नृत्य, योग और साधना में विशिष्ट अर्थों तथा भावनाओं को व्यक्त करने के लिये किया जाता है।
- ऐसी मान्यता है इनके अभ्यास से शरीर में प्राण या आवश्यक ऊर्जा का प्रवाह सुगम होता है और इनके उपचारात्मक लाभ भी होते हैं।
- भारत की शास्त्रीय नृत्य शैलियों में, मुद्राओं का उपयोग भावनाओं, विषयों और कहानियों को व्यक्त करने के लिये किया जाता है।
- योग और साधना अभ्यासों में, यह एकाग्रता, तनाव मुक्ति तथा विशिष्ट गुणों के अर्जन में मदद करता है।
- हालाँकि कई गूढ़ मुद्राएँ मौजूद हैं किंतु समय के साथ बौद्ध कला में बुद्ध के प्रतिनिधित्व के लिये उनमें से केवल 5 ही प्रचलित हैं जिनमें धर्मचक्र मुद्रा, भूमिस्पर्श मुद्रा, वरद मुद्रा, ध्यान मुद्रा और अभय मुद्रा शामिल है।
- अभय मुद्रा: यह एक हस्त मुद्रा है जो सामान्यतः बौद्ध और हिंदू धर्म की प्रतिमा में देखने को मिलता है तथा यह "निर्भयता की मुद्रा" का प्रतिनिधित्व करती है।
- यह प्रायः दाहिने हाथ की हथेली को कंधे की ऊँचाई पर बाहर की ओर करके बनाया जाता है, जिसमें उंगलियाँ ऊपर की ओर होती हैं।
- उत्पत्ति: इसकी उत्पत्ति भगवान बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति से संबंधित है जो ज्ञान प्राप्ति से प्राप्त सुरक्षा, शांति और करुणा की भावना को दर्शाता है।
- यह मुद्रा उस घटना का बोध कराती है जब बुद्ध ने एक क्रुद्ध हाथी को वश में किया था जो उनके अनुयायियों को निडरता प्रदान करने की उनकी क्षमता को दर्शाता है।
- अन्य धर्मों से संबद्धता: अभय मुद्रा ईसाई और जैन धर्म सहित अन्य धार्मिक परंपराओं की प्रतिमाओं में भी पाई जाती है।
बौद्ध धर्म में अन्य प्रकार की मुद्राएँ क्या हैं?
- धर्मचक्र मुद्रा: इसमें हाथों को हृदय के सामने रखा जाता है और प्रत्येक हाथ के अँगूठे तथा तर्जनी से एक वृत्त का निर्माण किया जाता है। प्रत्येक हाथ की शेष तीन उँगलियाँ ऊपर की ओर होती हैं, जो बौद्ध धर्म के त्रि-रत्नों- बुद्ध, धर्म (उनकी शिक्षाएँ) और संघ (अनुयायियों का समुदाय) का प्रतिनिधित्व करती हैं। अँगूठे और तर्जनी द्वारा निर्मित वृत्त धर्म चक्र का प्रतिनिधित्व करता है।
- यह उस महत्त्वपूर्ण क्षण का प्रतीक है जब बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश दिया था, जो धर्म की शिक्षा की शुरुआत को दर्शाता है।
- यह मुद्रा जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के निरंतर चक्र तथा बुद्ध की शिक्षाओं को इस चक्र से मुक्त होने के साधन के रूप में दर्शाती है
- भूमिस्पर्श मुद्रा: इस मुद्रा में दाहिने हाथ की उँगलियों से ज़मीन को छूना शामिल है, जबकि बायाँ हाथ गोद में रहता है
- यह बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के क्षण का प्रतिनिधित्व करता है तथा यह संकेत पृथ्वी द्वारा उनके ज्ञान प्राप्ति की साक्षी बनने का प्रतीक है।
- इसी मुद्रा में शाक्यमुनि सत्य का ध्यान करते हुए मार की बाधाओं पर विजय प्राप्त करते हैं।
- वरद मुद्रा: इस मुद्रा में दाहिना हाथ नीचे की ओर फैला होता है, जिसमें हथेली बाहर की ओर होती है।
- इस मुद्रा में 5 फैली हुई उंगलियाँ पाँच सिद्धियों का प्रतीक हैं: उदारता, नैतिकता, धैर्य, प्रयास और ध्यान एकाग्रता।
- ध्यान मुद्रा: इस मुद्रा में हाथों को गोद में रखा जाता है, दाहिना हाथ बाएँ हाथ के ऊपर रखा जाता है तथा अँगूठे पेट या जाँघों से ऊपर के स्तर पर रखे जाते हैं।
- यह मुद्रा ध्यान, एकाग्रता और आंतरिक शांति का प्रतीक है।
- अंजलि मुद्रा: यह बौद्ध धर्म में उपयोग की जाने वाली सबसे आम मुद्रा है और इसमें हथेलियों को छाती के सामने एक साथ दबाया जाता है, जिसमें उँगलियाँ ऊपर की ओर संकेत करती हैं
- यह सम्मान, अभिवादन और कृतज्ञता का प्रतीक है
- यह एक हाथ का इशारा है, जो नमस्कार या के समान है।
- वितर्क मुद्रा: इस मुद्रा को "शिक्षण मुद्रा" या "चर्चा मुद्रा" के रूप में भी जाना जाता है और इसमें दाहिने हाथ को ऊपर उठाने तथा अँगूठे एवं तर्जनी के माध्यम से वृत्त बनाना शामिल है।
- यह ज्ञान के संचरण और बुद्ध की शिक्षाओं के संचार का प्रतीक है।
- उत्तरबोधि मुद्रा: इस मुद्रा में दोनों हाथों को जोड़ कर हृदय के पास रखा जाता है और तर्जनी उँगलियाँ एक-दूसरे को छूते हुए ऊपर की ओर होती हैं तथा अन्य उँगलियाँ अंदर की ओर मुड़ी होती हैं, जिससे त्रिभुज के आकार का निर्माण होता है।
- यह मुद्रा ज्ञान और करुणा के मिलन, पुरुष तथा स्त्री ऊर्जा के संतुलन, तथा स्वयं के सभी पहलुओं के एकीकरण के माध्यम से ज्ञान की प्राप्ति का प्रतिनिधित्व करती है।
- करण मुद्रा: इसमें बायाँ हाथ हृदय तक ऊपर लाया जाता है और हथेली आगे की ओर होती है। तर्जनी तथा छोटी उँगलियाँ सीधी ऊपर की ओर संकेत करती हैं, जबकि अन्य तीन उँगलियाँ हथेली की ओर मुड़ी हुई होती हैं।
- यह मुद्रा अक्सर बुद्ध या बोधिसत्व के चित्रण में देखी जाती है, जिसे सुरक्षा और नकारात्मकता को दूर करने के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। कहा जाता है कि तर्जनी ज्ञान की ऊर्जा और बाधाओं को दूर करने की क्षमता का प्रतिनिधित्व करती है।
- ज्ञान मुद्रा: इसमें तर्जनी और अंगूठे को एक साथ लाकर वृत्त बनाया जाता है, जबकि अन्य तीन अंगुलियों को बाहर की ओर बढ़ाया जाता है।
- यह मुद्रा सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना की एकता एवं साधक और बुद्ध की शिक्षाओं के बीच संबंध को दर्शाती है।
- तर्जनी मुद्रा: इसमें तर्जनी उंगली को ऊपर की ओर बढ़ाया जाता है, जबकि अन्य उंगलियाँ हथेली की ओर मुड़ी होती हैं। तर्जनी मुद्रा को "धमकी देने वाला इशारा" भी कहा जाता है।
- इसका प्रयोग बुरी शक्तियों या हानिकारक प्रभावों के विरुद्ध चेतावनी या सुरक्षा के प्रतीक के रूप में किया जाता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: बौद्ध धर्म का भारतीय समाज और संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा है। बौद्ध धर्म की सामाजिक और नैतिक शिक्षाओं तथा भारतीय सभ्यता के विकास में उनके योगदान पर चर्चा कीजिये |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भगवान बुद्ध की प्रतिमा कभी-कभी एक हस्त मुद्रा युक्त दिखाई गई है, जिसे 'भूमिस्पर्श मुद्रा' कहा जाता है। यह किसका प्रतीक है? (2012) (a) मार पर दृष्टि रखने एवं अपने ध्यान में विघ्न डालने से मार को रोकने के लिये बुद्ध का धरती का आह्वान उत्तर: (b) प्रश्न. भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (B प्रश्न. भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं (a) केवल 1 उत्तर: (B) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा एक बौद्ध मत में निर्वाण की अवधारणा की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या करता है? (2013) (a) तृष्णारूपी अम्रि का शमन उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से कौन-सी विशेषता/विशेषताएँ महायान बौद्धमत की है/हैं? (a) केवल उत्तर: (d) प्रश्न. आरंभिक मध्ययुगीन समय में भारत में बौद्ध धर्म का पतन किस/किन कारण/कारणों से शुरू हुआ? (2010)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. भारत में बौद्ध धर्म के इतिहास में पाल काल सबसे महत्त्वपूर्ण चरण है। विश्लेषण कीजिये। (2020) प्रश्न. प्रारंभिक बौद्ध स्तूप-कला, लोक वर्ण्य विषयों और कथानकों को चित्रित करते हुए बौद्ध आदर्शों की सफलतापूर्वक व्याख्या करती है। विशदीकरण कीजिये। (2016) |